23 फरवरी 2019
‘धारा 370 एवं 35 A’ जम्मूवासियों के साथ सभी स्तरों पर भेदभाव करनेवाली धाराएं हैं, यह कड़वा सच है और इन अत्याचारी धाराओं का विसर्जन करने का समय अब आ गया है ! जम्मू की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है और इस महत्त्वपूर्ण राज्य में स्थित लोगों का संयम शीघ्रता से समाप्त होने की कगार पर आ चुका है ! फलस्वरूप जम्मू की जनता कभी भी क्षुब्ध हो सकती है तथा उसकी तीव्रता वर्ष 2008 में अनुभव किए गए क्षोभ से भी अधिक हो सकती है !
1. अमरनाथ बोर्ड की भूमि के संदर्भ पर कश्मीरी जनता का क्षोभ:
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार, बालटाल स्थित भूमि को तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड को प्रदान किया गया था; परंतु तत्कालीन कांग्रेस एवं पीडीपी के गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में कार्यरत संयुक्त शासनद्वारा इस भूमि को बोर्ड से छीन लेने के षडयंत्र के कारण वहां की जनता क्षुब्ध हो चुकी थी । इसके फलस्वरूप 28 जून से 31 अगस्त की अवधि में राजनीतिक गतिविधियां तीव्र होकर आजाद शासन गिर गया और वहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया । इस संदर्भ पर जम्मू की जनता में इतना क्षोभ था कि वर्तमान मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तथा नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख फारूख अब्दुल्ला भी 5 मास तक जम्मू की यात्रा करने का साहस नहीं दिखा सके ।
2. जम्मू की स्थिति बिगाड़ने हेतु कई विदेशी वहां कर रहे निवास !
जम्मू में अब वर्ष 2008 से भी अधिक भीषण स्थिति है ! यह क्यों हुआ, इसके भी कई कारण हैं । पहला कारण यह है कि अवैध विस्थापित रोहिंग्या-बांग्लादेशी लोग आपराधिक कृत्य कर रहे हैं; परंतु वहां का वर्तमान पीडीपी-भाजपा शासन उनको देश से बाहर करने में असफल हुआ है । इस हिन्दूबहुसंख्यक क्षेत्र की स्थिति में परिवर्तन लाकर वहां भी कश्मीर जैसी गंभीर स्थिति उत्पन्न करने हेतु यह विदेशी लोग वहां जाकर बस रहे हैं, ऐसा जम्मू के लोगों का मानना है । उनके इस आरोप की अनदेखी करना तो मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद होगा ! ऐसी स्थिति में भी जम्मू-कश्मीर शासन द्वारा इन आपराधिक पार्श्वभूमिवाले विदेशियों को सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवा दी गई हैं और उनके लिए 24 से भी अधिक शिक्षकों को नियुक्त किया गया है !
3. सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर मुसलमानों की नियुक्ति कर हिन्दुओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार
जम्मूवासियों के दुःख का दूसरा कारण है कि जम्मूवासियों को महत्त्वपूर्ण सेवाक्षेत्रों से हटाकर उनको प्रशासकीय यंत्रणा में गौण स्थान देकर उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है ! जम्मू एवं कश्मीर लोकसेवा आयोग की ओर से 90 प्रतिशत राजपत्रित अधिकारियों के पद कश्मीरी मुसलमानों को दिए जाते हैं तो जम्मू के लोगों के हाथ में केवल 10 प्रतिशत पद ही आते हैं । विगत 70 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान अनुपात नीचांकपर है। केवल इतना ही नहीं, अपितु यहां की प्रशासकीय यंत्रणा में मुसलमानों की नियुक्ति करते समय उनके बहुसंख्यक होते हुए भी उनको ही प्रधानता देकर उनकी सहायता की जा रही है। आज के दिन केवल मुसलमानों को ही 100 प्रतिशत उच्च पद दिए जा रहे हैं, उदा. जम्मू वैद्यकीय महाविद्यालय एवं चिकित्सालय में जनरल सर्जन के पदपर 4 मुसलमानों की नियुक्ति की गई है। इससे जम्मू के हिन्दुओं के साथ किए जानेवाले भेदभाव एवं अन्याय की गंभीरता ध्यान में आएगी !
4. शासनद्वारा राजशिष्टाचार की अनदेखी कर अत्याचारी धारा 35-ए को अविकल रखने का प्रयास:
जम्मू के लोगों में क्षोभ की लहर दौड़ने के कई कारण हैं और उनका यह क्षोभ ‘केंद्र में स्थित भाजपा शासन एवं राज्य का भाजपा एवं पीडीपी के संयुक्त शासन को लेकर है ! हम इन सभी कारणों को छोड़कर केवल इसे बल देनेवाले प्रमुख सूत्रपर ध्यान देंगे ! इस प्रकरण में कश्मीरी नेता, मुख्य प्रवाह में स्थित जनता एवं अलगाववादी ये सभी पाकिस्तान में विस्थापित हिन्दू-सिख एवं जम्मू-कश्मीर के बाहर की जनता के विरोध में एकत्रित हैं । फारूख अब्दुल्ला, उनका पुत्र तथा जम्मू-काश्मीर प्रतिपक्ष का नेता ओमर अब्दुल्ला, मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एवं कांग्रेस के नेता सैफुद्दीन सोज द्वारा अनेक आपत्तिजनक वक्तव्य दिए गए हैं, तो पीडीपी एवं नेशनल कॉन्फरन्स में तीव्र शत्रुता होते हुए 9 अगस्त को मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राजशिष्टाचार की अनदेखी कर और सभी मर्यादाओं को लांघकर फारूख अब्दुल्ला के साथ उनके घर जाकर उनसे भेंट की। उन्होंने उनके साथ अत्याचारी ‘धारा 35 अ’ को विकल रखने हेतु हम क्या कर सकते हैं ?, इस संदर्भ पर बातचीत भी की ! अतः इससे राजनीतिक वातावरण दूषित होकर जम्मूवासियों की समस्यारूपी इस आग में घी डाला गया !
5. महबूबा शासन द्वारा राष्ट्रीय एकता को बाधा पहुंचाने की चेतावनी:
‘संविधान की ‘धारा 35 अ’ को यदि हाथ लगाया गया, तो हिंसा भड़क जाएगी’, इस पर उनका एकमत है और जम्मू एवं लद्दाख के लोगों के सामने इन नेताओं के पीछे जाना यही एकमात्र विकल्प है, ऐसा कहकर ये लोग जनता का दिशाभ्रम कर रहे हैं । वो यह भी भय दिखा रहे हैं कि ‘धारा 35 अ’ को यदि थोड़ा भी हाथ लगाया गया, तो कोई भी देश के राष्ट्रध्वज का साथ नहीं देगा !’ धारा 35 अ को वापस लेने की मांग करनेवाले कश्मीर मुसलमानों की जनसंख्या को बढ़ाकर उनको जम्मूवासियों की पहचान को ही मिटाना है, वो इसी दिशा में एकमत से आग उगल रहे हैं ! (कश्मीर में 99.99 प्रतिशत मुसलमान हैं।) वास्तव में उनके द्वारा किया जानेवाला यह आरोप अत्यंत झूठा है !
14.5.1954 को राष्ट्रपति ने अध्यादेश निकालकर जम्मू एवं कश्मीर में धारा 35 अ को बड़ी जल्दबाजी में लागू किया था। तत्कालीन नेहरू शासन ने संविधान के अनुसार ‘धारा 368’ लागू नहीं की ! वास्तव में नेहरू शासनद्वारा लोकसभा को दूर रखकर यह धारा लागू की थी; क्योंकि यह धारा मुख्य संविधान में नहीं है, अपितु उसे केवल संविधान में परिशिष्ट में अंतर्निहित किया गया है !
6. क्या है यह अत्याचारी ‘धारा 35 A

‘धारा 35 अ’ क्या है ?, वह हमें क्या देती है ? तो धारा 35 अ एक अन्यायकारी धारा है । यह धारा कश्मीर के लोगों को ‘वो सभी भारतीय हैं’, यह नाटक करने हेतु बनाई गई धारा है ! इस अत्याचारी धारा के कारण राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री अथवा कोई भी भारतीय नागरिक इस राज्य की एक इंच भी भूमि नहीं खरीद सकता ! धारा 370 तो जम्मू एवं कश्मीर के लोग और शेष भारतीयों में नेहरू शासनद्वारा खड़ी की गई दीवार ही है !
7. ‘धारा 35 अ’ जैसी है वैसी !
‘धारा 35 अ’ के माध्यम से जम्मू एवं कश्मीर के शासन को ‘किस भारतीय व्यक्ति को अथवा किस भारतीय समूह को नागरिकता देनी है’, इस संदर्भ में असीमित एवं विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं ! इस धारा के संदर्भ में योग्य दृष्टिकोण मिले; इसके लिए यह धारा यथाशब्द निम्न प्रकार से है –
‘‘जम्मू एवं कश्मीर राज्य में तथा राज्य की विधानसभा में भारतीय संविधानद्वारा निर्देशित की गई पद्धति से कोई विधि कार्यान्वित नहीं होगी !’’
अ. जम्मू एवं कश्मीर के कौन से लोग शाश्ववत निवासी होंगे अथवा
आ. शाश्व त निवासी एवं विशेषाधिकार और अधिकार अथवा दूसरी व्यक्तिपर बंधन लगाना, उससे संबंधित –
1. राज्यशासन में नियुक्तियां करना
2. राज्य में अचल संपत्ति प्राप्त करना
3. राज्य में निवास करना
4. इस धारा में किए गए प्रावधान के अनुसार कोई भी भारतीय नागरिक छात्रवृत्ति के अधिकार एवं उसी प्रकार का राज्यशासन से प्राप्त अनुदान प्राप्त करने हेतु पात्र नहीं होगा
8. धारा 35 अ के कारण भारतियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार !
इस धारा के कारण ही जम्मू एवं कश्मीर के नागरिकों को छोड़कर शेष लोग, पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थी एवं राज्य की महिलाएं त्रस्त हैं। वर्ष 1947 से लेकर पाकिस्तान के सियालकोट क्षेत्र से विस्थापित अनुमानित 2 लाख हिन्दू एवं सिख यहां रह रहे हैं। उनको संपत्ति, शिक्षा, प्रशासनिक नौकरीयां, मतदान एवं अधिकोष से ऋण लेने से वंचित रखा गया है। वो चाहे भारतीय भी हों; परंतु वो इस राज्य के नागरिक नहीं हैं। वो अनेक दशकों से अपने अधिकारों के लिए लड रहे हैं; परंतु शासन ने उनके लिए कुछ नहीं किया है !
9. राज्य की महिलाओं पर भी अनेक बंधन:
जम्मू एवं कश्मीर की महिलाओं पर विवाह के लिए भी कई बंधन डाले गए हैं ! राज्य की किसी लड़की ने यदि राज्य में रहनेवाले अन्य किसी तत्कालीन निवासी से विवाह किया, तो उसके बच्चे एवं उसके पति के लिए राज्य में कोई अधिकार नहीं मिलते। उनकी श्रेणी तो पाकिस्तान से विस्थापित लोगों जैसी ही होती है !
वर्ष 2002 में जम्मू एवं काश्मीर उच्च न्यायालयद्वारा यह निर्णय किया था कि बच्चे एवं लडकियों को ‘शाश्व0त निवासी प्रमाणपत्र’ देते समय उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाए ! ऐसा होते हुए भी राज्य का राजस्व विभाग 24.9.2004 तक वहां की लड़कियों को ‘शाश्वोत निवासी प्रमाणपत्र’ देते समय ‘विवाह तक के लिए आधिकारिक’ की मुद्रा अंकित कर (मुद्रांक लगाकर) प्रमाणपत्र देते थे, इसका संज्ञान लिया जाना चाहिए। इसके लिए लेखक ने वर्ष 2004 में उच्च न्यायालय में याचिका क्र. 1002/2004 एवं सीएमपी (परिवाद) क्र. 1089/2004 प्रविष्ट कर न्यायालय के पहले के आदेश का पालन किए जाने की मांग की। इस याचिका पर निर्णय करते हुए न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि अविवाहित लड़कियों को ‘शाश्व त निवासी प्रमाणपत्र’ देते समय ‘विवाहतक के लिए आधिकारिक’ मुद्रा अंकित नहीं की जाए !
10. ‘धारा 35 अ’ के शीघ्र ही रद्द होने की आहट !!!

धाराएं 370 एवं 35 अ जम्मूवासियों को भारत से दूर करती हैं ! अतः वास्तविक रूप से कश्मीरी नेताओं को राज्य में भारतीय संविधान को पूर्णरूप से लागू कर जम्मू-कश्मीर राज्य का पूर्णरूप से भारत में विलय करने हेतु प्रयास करने चाहिएं। इससे जम्मू के लोगों की भावनाओं का सम्मान हो सकेगा, अन्यथा राज्य की नेताओं की इच्छाओं को यदि जम्मू के लोगों पर थोपा गया, तो राज्य विभाजन की ओर अग्रसर होगा !
भाजपा शासनद्वारा 10 अगस्त 2017 को ऐसा कहा गया है, ‘‘धारा 370 एवं धारा 35 अ’ के कारण देश एवं राज्य की हानि हो चुकी है, साथ ही जम्मू एवं कश्मीर क्षेत्र में अंतर्गत संबंधों को भी बाधा पहुंची है; इसलिए अब इन धाराओं को हटाने का समय आ गया है !’’ यह संतोषजनक बात है। इस दिन गृहमंत्रालय के अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘धारा 35 अ’ के संदर्भ में महाधिवक्ता (एटर्नी जनरल) के. के. वेणुगोपाल सर्वोच्च न्यायालय में शासन का पक्ष रखेंगे। यह भी एक संतोषजनक समाचार ही है !
– प्रा. हरि ओम महाजन, पूर्व विभागप्रमुख, सामाजिकशास्त्र शाखा, जम्मू एवं कश्मीर विश्वतविद्यालय (संदर्भ : ‘SwarajyaMag.com’ हे संकेतस्थळ)
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