16 फरवरी 2019
आपने सुना होगा कि किसी बड़ी हस्ती के खिलाफ या उसके पक्ष में फैसला देना होता है तो मीडिया ट्रायल चालू हो जाता है और उसके कारण जज दबाव में आकर पक्ष या विपक्ष में फैसले सुना देते हैं, ऐसे हमने कई मामले देखे हैं । अभी हाल ही में देखें तो जोधपुर कोर्ट में सलमान खान को सजा हुई तो उसके पक्ष में बोलना शुरू कर दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि उसे सजा होने के बाद भी जमानत मिल गई और वहीं दूसरी ओर जोधपुर कोर्ट में हिन्दू संत आसाराम बापू करीब 6 साल से जेल में हैं पर अभीतक जमानत नहीं मिली क्योंकि जमानत अर्जी लगते ही मीडिया उनके खिलाफ ट्रायल शुरू कर देती है क्योंकि वे धर्मान्तरण, विदेशी कम्पनियों के विरोध और हिन्दू संस्कृति के हित में कार्य कर रहे थे और ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जिसमें देश, संस्कृति हित के कार्य करने वालों के खिलाफ मीडिया उल्टा-सीधा बोलती है और देश, संस्कृति के खिलाफ कार्य करने वालों का समर्थन करती है ।
पहले भी कई जज मीडिया ट्रायल के खिलाफ बोल चुके हैं और अभी हाल ही में सोशल मीडिया को लेकर जज साहब का बयान आया है ।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी ने रविवार को कहा कि डिजिटल दौर में न्यायपालिका दबाव में है । उन्होंने कहा कि कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग सोशल मीडिया पर यह बहस शुरू कर देते हैं कि फैसला क्या होना चाहिए और यह बात न्यायाधीशों पर भी प्रभाव डालती है ।
जस्टिस सीकरी लॉ एसोसिएशन एंड द पैसेफिक कॉन्फ्रेंस के दौरान "डिजिटल युग में प्रेस की आजादी' विषय पर बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि प्रेस की आजादी आज नागरिक और मानवाधिकारों को बदल रही है और मीडिया ट्रायल का मौजूदा स्वरूप इसका उदाहरण है ।
जस्टिस सीकरी ने कहा, "मीडिया ट्रायल पहले भी होेते थे, लेकिन आज यह हो रहा है कि जब एक याचिका दायर की जाती है, तब कोर्ट की सुनवाई से पहले ही लोग यह बहस करने लग जाते हैं कि फैसला क्या होना चाहिए । फैसला क्या है इस पर नहीं, बल्कि फैसला क्या होना चाहिए और मैं आपको अपने अनुभव के आधार पर यह बताना चाहूंगा कि इसका असर एक जज किस तरह से फैसला करेगा, इस पर पड़ता है ।'
जस्टिस सीकरी ने कहा, "कुछ साल पहले यह हमेशा एक सोच रहती थी कि एक बार सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट या किसी भी कोर्ट द्वारा फैसला दे दिया जाता था, तब इसकी आलोचना का पूरा अधिकार है, लेकिन आज उस न्यायाधीश के खिलाफ भी अपमानजनक और मानहानि वाले बयान दिए जाते हैं । और अभी भी इस पर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहा जाता । कोर्ट की अवमानना की ताकत का ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाता है ।'
वकील भी एक्टिविस्ट बनने लगे हैं- एएसजी दीवान
एडिशनल सॉलिसीटर जनरल माधवी गोराडिया दीवान ने सोशल मीडिया पर कहा- आज न्यूज और फेक न्यूज, न्यूज और विचार, नागरिकों और पत्रकारों के बीच का फर्क बहुत धुंधला हो गया है । ट्विटर के विस्तार के साथ वकील भी अब एक्टिविस्ट बन गए हैं, लेकिन एक्टिविस्ट बनने और स्टारडम की दौड़ में किसी को अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए ।
दीवान ने कहा- कभी भी एक्टिविस्ट बनने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन जब कोई उन मामलों में खड़ा हो रहा हो, उन पर बहस कर रहा हो और सुनवाई के तुरंत बाद ट्वीट कर रहा हो तो यह आपकी पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ टकराव पैदा कर सकता है ।
जज साहब से हम पूर्ण सहमत है कि सोशल मीडिया पर ऐसी प्रतिक्रिया देने से जज पर दबाव बनाता है पर जब कोई जज गलत जजमेंट देता है सालों तक निर्दोष को जेल में रखा जाता हो तो उसका जिम्मेदार कौन ?
यदि सेशन कोर्ट किसी निर्दोष को उम्रकैद की सजा सुना देती है फिर सालों बाद ऊपरी कोर्ट से निर्दोष बरी होता है तो निर्दोष होने पर भी उसे सालों तक जेल में रखा, उसकी संपत्ति गई, इज्जत गई, उसका समय गया उसकी भरपाई कौन करेगा, जैसे तलवार दंपति के केस में हुआ उसका जिम्मेदार कौन ?
किसी निर्दोष पुरुष पर कोई झूठा मुकदमा करता है उसको सालों तक जेल में रखा जाता है जमानत तक उसे नसीब नहीं होती तो जिम्मेदार कौन है ? न्याय देना जज साहब का ही काम है और जब न्याय न मिले तो लोग प्रतिक्रिया तो देंगे ही ।
हिन्दू संत आसाराम बापू के लिए 5 साल तक ट्रायल चला, लेकिन एक दिन भी जमानत नहीं दी गई, आज 6 साल होने को आए हैं पर जमानत नहीं मिल पा रही है जबकि सलमान खान को सजा हुई तो भी जमानत हो गई ऐसे दोगले फैसले आने पर जनता प्रतिक्रिया तो जरूर ही देगी ।
निर्दोष पुरुषों से बदला लेने की भावना या पैसे ऐंठने के लिए कई महिलाएं झूठे मुकदमे कर देती हैं जिससे पुरुषों की इज्जत, पैसे, समय, परिवार सब बर्बाद हो जाता है, उसे जमानत तक नहीं मिलती है सालों तक जेल में रखा जाता है । न्याय नहीं मिलता है, मिलती है तो बस अगली तारीख । इन सब कारणों से ही परेशान होकर जनता सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देने शुरू कर देती है ।
श्री राम मंदिर पर तारीख पर तारीख देना, सबरीमाला मंदिर की आस्था के खिलाफ और जलीकट्टू, दहीहांडी, दीवाली आदि हिन्दू त्यौहार के खिलाफ फैसले देने के कारण जनता आक्रोश में आकर प्रतिक्रिया देने लगती है ।
आतंकवादियों पर फैसले देने के लिए आधी रात को कोर्ट खुलना, और साध्वी प्रज्ञा, शंकराचार्य जी आसाराम बापू, नारायण साईं को सालों जेल में रखना इससे जनता में रोष प्रकट होता है और वही रोष सोशल मीडिया पर उजागर हो जाता है ।
अतः जज साहब को न्याय जल्दी देना चाहिए निर्दोषों को सजा न दें और किसी भी धर्म की आस्था पर चोट न करें तो सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया बंद हो सकती है ।
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