Friday, June 30, 2023

कैमरा के सामने हत्या फिर भी कन्हैया लाल और उमेश कोल्हे के हत्यारों को साल भर बाद भी सजा नहीं

30 June 2023

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🚩कन्हैया लाल तेली की हत्या को 1 वर्ष पूरे हो चुके हैं। अब तक हत्यारों को सज़ा नहीं हो पाई है। फिर जिन्होंने हत्यारों को पनाह दी या उन्हें संसाधन दिए, उन्हें सज़ा की बात तो भूल ही जाइए। हम उस देश में रहते हैं, जहाँ एक ऐसे व्यक्ति को सज़ा देने में 4 साल लग गए। जो आतंकी 166 लोगों का खून बहाने में शामिल था, वो 4 साल तक भारत के जेल में बैठ कर अपनी मनपसंद किताबें पढ़ता रहा और मुँहमाँगे भोजन का आनंद उठाता रहा।


🚩ठीक इसी तरह, कन्हैया लाल के हत्यारों को सज़ा अब तक नहीं मिल पाई है। बेटा नंगे पाँव है तो क्या हुआ, अस्थियाँ अब तक विसर्जन की बाट जोह रही हैं तो क्या हुआ, विधवा पत्नी दिन भर अपने पति की सिलाई मशीन को निहारती रहती है तो क्या हुआ, पुलिसकर्मियों की मर्जी के बिना परिजन चाय पीने तक बाहर नहीं जा सकते तो क्या हुआ, उदयपुर के मालदास स्ट्रीट बाजार का पूरा धंधा ही मंदा पड़ गया तो क्या हुआ, अपराधियों को अब तक सज़ा नहीं मिल पाई।


🚩कैमरे पर हत्या, वीडियो में लहराए हथियार, अब तक सज़ा नहीं


🚩कैमरे पर पूरे देश ने देखा कि कैसे कन्हैया लाल तेली का गला काटा गया। पूरे देश ने ये भी देखा कि कैसे हत्यारों ने हँसते हुए वीडियो बनाया और हथियार लहरा कर अपने कारनामे पर गौरव का इजहार किया। कैमरे में सब कुछ कैद होने के बावजूद अब तक हत्यारों को सज़ा न मिलना क्या ऐसे तत्वों को प्रोत्साहित नहीं करता? कैमरे के सामने ‘सर तन से जुदा’ करने वाले भी जब जेल में ऐश करते रहेंगे, तो क्या इससे उनकी कट्टर विचारधारा से प्रेरित होने वालों की संख्या नहीं बढ़ेगी?


🚩इस घटना में तीसरा किरदार था निजाम का। निजाम पड़ोसी था कन्हैया लाल तेली का। नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण उसने कन्हैया लाल पर FIR दर्ज करा दी थी। इसके बाद कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान की पुलिस ने कन्हैया लाल तेली को जेल में बंद कर दिया। जेल से निकलने के बाद पुलिस ने दोनों में तथाकथित सुलह करवाई। इसी निजाम ने कन्हैया लाल की रेकी की और हत्यारों को उनके बारे में सूचित किया।


🚩उमेश कोल्हे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। राजस्थान के उदयपुर की तरह ही महाराष्ट्र के अमरावती में भी ‘सर तन से जुदा’ की घटना हुई थी। केमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या करने वालों में उनका 16 वर्षों का दोस्त युसूफ खान का मुख्य हाथ था। युसूफ ने उमेश कोल्हे का पोस्ट इस्लामी कट्टरपंथियों के व्हाट्सएप्प ग्रुप में फॉरवर्ड कर दिया। इसका सीधा अर्थ है कि वो आपके पड़ोसी हों या दोस्त, उनके मजहब की कट्टरता का उनके लिए पहला स्थान है।


🚩व्यवस्था की सुस्ती तो हमने देख ली, अब व्यवस्था की सुषुप्तावस्था का उदाहरण देख लीजिए। मोहम्मद जुबैर – ये एक कुख्यात नाम है। वही AltNews वाला मोहम्मद जुबैर, जिसका दिन भर का काम ही है इस्लामी कट्टरपंथियों और पाकिस्तान का बचाव करना। उसका काम है कि लोगों को बताना कि तुमने क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया है, तुमने बातों को ठीक से नहीं समझा, तुमने वीडियो के बाद या पहले वाला हिस्सा नहीं देखा, तुमने पुराना वीडियो शेयर किया।


🚩इस ‘डिजिटल जिहादी’ की हिम्मत तो देखिए कि जब नूपुर शर्मा ने पूरा वीडियो डालने की चुनौती दी, तब ये जोकर वाले इमोजी लगा कर उन्हें चिढ़ाता रहा। जब नूपुर शर्मा हत्या की धमकियों को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही थीं, तब ये खुद को पत्रकार बताते हुए उन्हें चिढ़ा रहा था। उन्हें ‘गुस्ताख़-ए-रसूल’ बताए जाने वाले ट्वीट्स को आगे बढ़ाता रहा। वो नूपुर शर्मा की बर्बादी की व्यवस्था कर के इसी के नाम पर अपने फॉलोवर्स से AltNews के लिए पैसे जुटाता रहा।


🚩‘डिजिटल जिहादी’ मोहम्मद जुबैर, जिसने शेयर किया क्रॉप्ड वीडियो


🚩जबकि सच्चाई ये है कि मोहम्मद जुबैर वही व्यक्ति है जिसने नूपुर शर्मा का एडिटेड वीडियो शेयर किया था। एक डिबेट में उन्होंने इस्लामी पुस्तक से उद्धरण भर दिया था, अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा था। क्यों उद्धरण दिया था? क्योंकि सामने ‘मुस्लिम स्कॉलर’ बना कर मीडिया चैनल द्वारा बैठाया गया तस्लीम रहमानी बार-बार भगवान शिव का अपमान कर रहा था। काशी विश्वनाथ विध्वंस का मजाक बना रहा था। शिवलिंग पर पाँव धोने वाले अपने मजहब के साथियों का साथ दे रहा था।


🚩नूपुर शर्मा ने जवाब में सिर्फ बताया कि उसके मजहब की एक किताब में क्या लिखा हुआ है। ‘डिजिटल जिहादी’ मोहम्मद जुबैर ने नूपुर शर्मा का क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया, फिर अपने गिरोह के साथ मिल कर क़तर जैसे इस्लामी मुल्कों को टैग करने लगा। देश भर में एक महिला के खिलाफ ‘सर तन से जुदा’ गिरोह नारेबाजी करते हुए सड़कों पर उतरा। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे की हत्या कर दी गई। और नूपुर शर्मा? उन्हें घर में कैद होने को मजबूर होना पड़ा।

🚩इस प्रकरण के बाद से फिर नूपुर शर्मा को किसी डिबेट में नहीं देखा गया, किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं देखा गया और न ही उनका राजनीतिक करियर आगे बढ़ पाया। नूपुर शर्मा का जीवन अब भी खतरे में है। और तस्लीम रहमानी? वो इस घटना के बाद भी बेधड़क टीवी डिबेट्स में बुलाया जाता रहा। उसका रवैया वैसा ही रहा। इस्लामी कट्टरपंथ वाला प्रोपेगंडा फैलाने में उसने कहीं कोई कमी नहीं की। उसके लिए जीवन और आसान हो गया।


🚩पिछले 1 वर्ष में नूपुर शर्मा और तस्लीम रहमानी के जीवन का जो अंतर है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ की सफलता है। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे के परिवार की आज जो दुर्दशा है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ का सुकून है। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे के हत्यारों को तक सज़ा नहीं मिली है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ का उत्साहवर्धन है। इस पूरे प्रकरण को जन्म देने वाला मोहम्मद जुबैर एक ‘डिजिटल जिहादी’ है।


🚩तस्लीम रहमानी आज ईद-बकरीद दोगुनी ख़ुशी से मना रहा है, नूपुर शर्मा के लिए होली-दीवाली सब उदास रहा। तस्लीम रहमानी अबकी बकरीद पर भी इस्लामी कट्टरपंथियों का बचाव करता हुआ घूम रहा है, नूपुर शर्मा के लिए अगली दीवाली पर त्योहार की बधाई या शुभकामना सन्देश देना भी आफत है। एक तस्लीम रहमानी ऐसी कई नूपुर शर्माओं के जीवन को तबाह करने की क्षमता रखता है, क्योंकि उसके साथ एक ‘डिजिटल जिहादी’ है।


🚩आज कन्हैया लाल तेली एक पोटली में बंद हैं, मोहम्मद जुबैर ‘डिजिटल जिहाद’ में दोगुने जोश के साथ लगा हुआ है। व्यवस्था की सुषुप्तावस्था देखिए कि जब जम्मू कश्मीर में एक मस्जिद से ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगे, तब इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और इस्लामी कट्टरपंथियों को इसे वास्तविकता में तब्दील करने में समय नहीं लगा। जब मुस्लिम भीड़ जम्मू के डोडा के भद्रवाह स्थित मस्जिद में इकट्ठी होकर कह रही थी कि अजान या नमाज का विरोध करने वालों को मार डाला जाएगा, उस समय क्या कार्रवाई हुई?


🚩कहीं मस्जिद में नारे, कहीं पुतला टाँगा: सोई रही व्यवस्था


🚩उस मस्जिद में इकट्ठी हुई भीड़ ने जब नारा लगाया कि नूपुर शर्मा का सिर कहीं और फेंका हुआ मिलेगा और धड़ कहीं और, तब उनमें से कितनों को पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे डाला गया? जब वो ललकार रहे थे कि ‘गाय का पेशाब पीने वालों की हैसियत क्या है’, तब कानून ने उन्हें इसके लिए एक बार फटकार तक भी लगाई? अरे, वहाँ मौजूद लोग तो उलटा कह रहे थे कि प्रशासन उनका साथ देता है, आशा है आगे भी ऐसे ही साथ देता रहेगा।


🚩जब कर्नाटक के बेलगावी में नूपुर शर्मा के पुतले को फाँसी के फंदे पर टाँग दिया गया, तब कितने लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई? हत्या की धमकियों और रिहर्सल पर अगर व्यवस्था चुप रहेगी तो हत्या को कैसे रोका जा सकता है? एक महिला का पुतला बना कर लोगों में खौफ पैदा करने के लिए बीच सड़क पर टाँग दिया जाता है, कहीं कोई हलचल नहीं होती। यही कारण है कि एक के बाद एक हत्याएँ होती हैं और हत्यारों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता।


🚩जले पर नमक छिड़कते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज टिप्पणी करते हैं कि नूपुर शर्मा के कारण पूरे देश में आग लगी हुई है और उन्हें राहत देने से इनकार कर देते हैं। सोचिए, इससे उन आतंकियों का मनोबल कितना बढ़ा होगा। न्यायपालिका ने कभी मोहम्मद जुबैर से पूछा कि उसने एडिटेड वीडियो क्यों शेयर किया? भारत के आंतरिक मामले में बाह्य हस्तक्षेप की माँग क्यों की? तस्लीम रहमानी ने क्या बोला था, ये क्यों छिपाया? नूपुर शर्मा ने जो कहा था, वो सच में किताब में लिखा है या नहीं?


🚩‘डिजिटल जिहादी’ ने इसका फैक्ट-चेक करने की जहमत नहीं उठाई, क्योंकि ये उनके एजेंडे में था ही नहीं। लेकिन, न्यायपालिका कहाँ थी? नूपुर शर्मा को डाँटने-फटकारने वाली ये न्यायपालिका आज तक कैमरे के सामने हत्या करने वालों को सज़ा नहीं दे पाई, तो भविष्य में भला इनसे हम क्या उम्मीद रखें। मोहम्मद जुबैर द्वारा क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया जाना, जम्मू के मस्जिद में नारा लगना और नूपुर शर्मा का पुतला टाँगा जाना – ये हत्याएँ तो तभी हो गई थीं क्योंकि ऐसा करने वालों को व्यवस्था की सुषुप्तावस्था पर पूरा यकीन था।


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Thursday, June 29, 2023

होली-दीवाली पर ‘ज्ञान’, बकरीद पर निरीह पशुओं को काटने वाले ‘मोहब्बत की दुकान’.....

29 June 2023

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🚩मुंबई के मीरा रोड पर मोहसिन खान के सोसायटी में बकरा लाने पर हुआ विवाद बकरीद से पहले खूब तूल पकड़ा। इस बीच दिल की तसल्ली के लिए जानवर के कितने टुकड़े काटकर बकरीद पर खाएँगे इसका एक नया ट्रेंड भी इस दिन सोशल मीडिया पर देखने को मिला। खुद को पत्रकार बताने वाली काविश अजीज ने सोशल मीडिया पर उस समय अपनी भड़ास निकाली जब एक अन्य पत्रकार सिर्फ ये अपील कर रहे थे कि मजहब के नाम पर जानवरों को न काटा जाए।


🚩काविश ने इतनी सी बात पर एक भारी भरकम बकरे के साथ अपनी तस्वीर डाली और लिखा, “ये ट्विटर है तुम्हारे बाप का बगीचा नहीं जो कुछ भी लिख कर चले जाओगे और सुनो बकरा हमारा, त्योहार हमारा, कुर्बानी देंगे, कीमा कलेजी, कबाब, बिरयानी खाएँगे हम, मगर जलेगी तुम्हारी….”


🚩अब कोई शाकाहारी व्यक्ति इस पोस्ट को अचानक पढ़े तो शायद उसे ऐसी भाषा पढ़ते ही उलटी हो या फिर पत्रकार से ही हमेशा के लिए घिन्न हो जाए… क्योंकि इस पोस्ट को देखकर यही पता नहीं चल रहा कि बकरा दिखाकर त्योहार मनाने की बात हो रही है या त्योहार के नाम पर जो उसका कत्ल किया जाना है उसकी उत्सुकता जाहिर हो रही है। 


🚩ऐसा पोस्ट लिखने वाली पत्रकार अच्छे से जानती होंगी कि उन्होंने लिखा क्या है। उन्हें पता है कुर्बानी का अर्थ कोई केक कटिंग जैसा नहीं है। उसमें बाकायदा एक जीव का गला रेतकर उसकी खाल को नोचा जाता है। उसके माँस के धारदार चाकू से टुकड़े होते हैं, उसमें जो खून लगा होता है उसे धो-पोंछकर ही वो कीमा कलेजी, कबाब, बिरयानी बनता है जिसे खाने के लिए काविश की लार टपक रही है।


🚩काविश मानती हैं कि उनका ये जवाब सिर्फ हेटर्स के लिए है जिसे देकर उनके दिल को सुकून मिल रहा है। वो मजहब के नाम पर इतना अंधी हो गईं हैं कि वो ये नहीं समझ पा रहीं सामने वाला उनसे क्या अपील कर रहा है। अभय प्रताप सिंह ने सिर्फ इतना ही तो लिखा – बकरीद आने वाली है। खून बहाया जाएगा, बेजुबान काटे जाएँगे। हमें ये सब बंद करना होगा। मजहब के नाम पर जानवरों का कत्लेआम सही नहीं है। आओ बकरों को बचाएँ… बकरा फ्री ईद मनाएँ…केक का बकरा काटकर ईको फ्रेंडली ईद मनाएँ।


🚩बताइए इस पूरे पोस्ट में गलत क्या है। क्या इससे पहले दिवाली-होली पर आपने ऐसी चिंताएँ नहीं देखीं। होली पर जब कहा जाता है कि सैंकड़ो लीटर पानी बर्बाद होगा, दिवाली पर तर्क दिया जाता है कि प्रदूषण बढ़ेगा तब क्या कोई आपको बकरीद पर ये नहीं समझा सकता कि ये एक हिंसात्मक प्रक्रिया है और त्योहार के नाम पर इसे बढ़ावा देना गलत है। इस अपील को मानने की बजाय उसपर ढिठाई दिखाई जा रही है कि हम खाएँगे जो मन हो कर लो।


🚩बकरीद पर कुर्बानी न देने की अपील सिर्फ इसलिए है ताकि त्योहार के नाम पर सालों से चली आ रही हिंसात्मक प्रक्रिया पर विराम लगे और समाज में सकारात्मक संदेश जाए कि बिन हिंसा भी त्योहार मनते हैं उसके लिए जीव हत्या जरूरी नहीं।


🚩लेकिन, पत्रकार काविश अकेली नहीं हैं जिन्हें ये सुनकर गुस्सा आता है कि वो आखिर क्यों कोई उन लोगों से ये कह रहा है कि त्योहार पर बकरा न काटें जाए। इस लिस्ट में आरजे सायमा बहुत पुराना नाम हैं। वह हर साल जब एक अभियान को चलता देखती हैं कि कैसे बकरा काटने से मना किया जा रहा है तो उन्हें दुख होता है। एक बार उन्होंने इस अपील को बेहद शर्मनाक बताया था।


🚩उन्होंने कहा था, ”ये बहुत शर्मनाक है कि आप एक समुदाय को उनका त्योहार शांति, खुशी और उल्लास के साथ मनाने देना नहीं चाहते। मैं इसको कोई तूल नहीं देती। ये मजाक तुम पर नहीं है। तुम ही मजाक हो।”


🚩आज वो सायमा राहुल गाँधी के ईद मुबारक पर लिख रही हैं कि मोहब्बत की दुकान आबाद रहे। ईद के मौके पर मोहब्बत की दुकान कौन सी है ये समझना मुश्किल है। क्या ये वो दुकानें हैं जहाँ बेजुबान पशुओं को काटा जाता है और अगर कोई ऐसा करने से रोके तो उसे असहिष्णु कह दिया जाता है कि एक समुदाय को उसका त्योहार मनाने से मना कर रहे हैं। अगर नहीं, तो फिर आरजे सायमा को उन लोगों से दिक्कत क्यों होती रही है जो बकरीद पर कुर्बानी न देने की अपील करते हैं।


🚩बीते समय में जाइए और याद करिए कि मुस्लिमों के कौन से त्योहार को कभी मनाने से रोका गया है! सिर्फ एक बकरीद ऐसा त्योहार है जिसे कोई मनाने से मना नहीं कर रहा सिर्फ उसका तरीका बदलने को कह रहा है।


🚩सोचिए, मोहसिन को सोसायटी में बकरा नहीं लाने दिया गया तो उसपर इतना हंगामा हो गया। लेकिन आपको नहीं लगता ये सब अनुमति के साथ होना चाहिए। हो सकता है बकरे की कुर्बानी आपके लिए एक सामान्य प्रक्रिया हो लेकिन किसी के लिए ये झकझोरने वाले दृश्य भी हो सकते हैं। हो सकता है मोहसिन उसकी कुर्बानी सोसायटी से बाहर देता लेकिन कुर्बानी के उद्देश्य से उसे घर पर लाना क्या किसी को प्रभावित नहीं कर सकता?

🚩सोसायटी में कितने लोग रहते हैं, किस धर्म के हैं, कुर्बानी के लिए उनकी अनुमति है या नहीं ये सब मैटर करता है। मोहब्बत की दुकान आबाद तभी नहीं रहेगी जब बकरे का खून बहेगा और वो गोश्त बनकर घर-घर बँटेगा। मोब्बत की दुकान तब भी आबाद रह सकती है जब आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से मजबूत कौम के लोग के सालों से चली आ रही हिंसात्मक प्रक्रिया को बदलें या उसे बदलने का प्रयास करें। - जयन्ती मिश्रा


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Wednesday, June 28, 2023

सनातनी वैवाहिक व्यवस्था और अंग्रेजी कानून

28 June 2023

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🚩अंग्रेजों का यह चरण शुरू होता है 1941 में....


🚩आजादी से भी लगभग 6 वर्ष पूर्व सन 1941 में अंग्रेजों ने भारत के ही एक और महान सपूत #मैकाले_शिक्षा_जनित अपने एक सिविल सर्वेंट "Sir" #बी_एन_राव को पकड़ा और उससे कहा कि वह भारत के इन हिन्दुओं के लिए ऐसा कानून लिखे कि इनकी अर्धनारीश्वर की इस गौरवमयी प्रतिमा का गुरुर टूट जाये और यह प्रतिमा छिन्न छिन्न हो जाये। पुरुष और स्त्री एक दूसरे को पूरक नहीं, प्रतिद्वंदी समझने लगें।।  इनकी स्त्रियाँ पतितपथ गामिनी, व्यभिचारिणी हो जाएँ और इनके पुरुष अपनी स्त्रियों की आन बान और शान के लिए सिर तो क्या, सिर का एक बाल तक ना कटवाएं और सनातनी वैवाहिक व्यवस्था जो सात सात जन्मों तक वैवाहिक बन्धन की पवित्रता की बात करती है, एक जन्म भी इस बंधन को न निभा पाए। समाज में तलाक होने लगे, परिवार टूट जाए, परिवारों के बच्चे बिखर जाएँ, और स्त्री और पुरुष एक दूसरे को अपना दुश्मन समझने लगें।


🚩देश के सुपूत बी एन राव अंग्रेजों के दिए हुए इस पवित्र कार्य में लग गये।


🚩उन्होंने पाया कि इस महान किताब का पहला पाठ तो उनके जैसे ही मैकाले शिक्षा पुत्र देशमुख नाम के एक अन्य अंग्रेज भक्त 1937 में लिख ही चुके हैं। जिसको उन्होंने नाम दिया था Hindu Women's Rights to Property Act (Deshmukh Act 1937). इस एक्ट के द्वारा हिन्दू औरतों को पॉवर देने की बात कहकर भारतीय सनातनी परिवारों में पहली दरार तो खींची ही जा चुकी थी...!!


🚩फिर क्या था, इसी पाठ को आगे बढ़ाते हुए मैकाले शिक्षा पुत्र बी एन राव ने इस किताब में अगला अध्याय जोड़ दिया कि हिन्दू पति पत्नी चाहें तो एक दूसरे से अलग अलग भी रह सकते हैं। इस अध्याय में प्रावधान दिया गया कि हिन्दू औरत और पुरुष जब चाहे कुछ कुछ कारण बताकर एक दूसरे से अलग अलग रहे और स्त्री अपने लिए #पुरुष_से_मेंटेनेंस_की_मांग करे, जो उसको पुरुष से दिलवाया जायेगा।


🚩इन सबको पता था कि पति से कारण-अकारण अलग रह कर पति से ही मेंटेनेंस लेकर अलग रह रही नारी और नारी से विलग हुआ विरही पुरुष अपने आप टूट जायेंगे, उनके #बच्चे_बिखर_जायेंगे और भारत के आचार विचार तो क्या चरित्र तक का अपने आप हनन होता चला जायेगा...!! यही तो चाहते थे कुटिल अंग्रेज।


🚩बी एन राव की यह किताब 1941 से 1947 तक लिखी जाती रही। और इस किताब का नाम दिया "हिन्दू कोड बिल"


🚩वर्ष 1947 में इस कुटिल किताब में एक और कुटिल अध्याय जोड़ा गया "तलाक" के अधिकार का। और यही से सनातन धर्म के सात-सात जन्मो के वैवाहिक बंधन के विचार को नष्ट करने का सबसे कुटिल अध्याय शुरू हो गया और फिर वर्ष 1947 में ही इस कुटिल किताब में एक अंतिम अध्याय जोडा गया जिसके प्रावधानों के अनुसार सनातन धर्म के मजबूत स्तम्भ "सयुंक्त परिवार" अर्थात जॉइंट फॅमिली एवं प्रॉपर्टी सिस्टम को ख़त्म करने का प्रावधान हिन्दुओं को दे दिए जाने की बात कही गयी।


🚩इस अध्याय में कहा गया कि पिता की संपत्ति में पुत्र के साथ-साथ पुत्री का भी अधिकार होगा। भारत की नारियों को इस प्रकार के प्रावधान बहुत लुभावने से लगने वाले थे, किन्तु इसी में तो अंग्रेजों की कुटिल नीति छिपी हुई थी..जो देश आज तक न समझ पाया.....!!


🚩"हिन्दू कोड बिल" का आखिरी पन्ना 1947 में लिख कर तैयार हो गया।


🚩कितना खास होगा वह पन्ना...!! शायद इसी पन्ने के इंतज़ार में अंग्रेज अब तक भारत से चिपके बैठे थे और जैसे ही 1947 में इस बिल का आखिरी पन्ना लिखा गया, अंग्रेजो ने देश को छोड़ने की घोषणा कर दी। और जाते-जाते "हिन्दू कोड बिल" की यह कुटिल किताब अपने प्रिय, #मैकाले_शिक्षा_पुत्र श्री #जवाहर_लाल_नेहरु को देना नहीं भूले... शायद इस आदेश के साथ, कि प्रधानमंत्री तुम बन जाओगे, वह हम पर छोड़ दो, किन्तु प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहला कार्य जो तुमको करना होगा वह होगा इस "हिन्दू कोड बिल" को पूरे भारत के हिन्दुओं पर लागू करना।


🚩अंग्रेजों और नेहरु के बीच इसको लेकर और क्या-क्या कुटिल समझौते हुए होंगे, यह तो वो चार दीवारे ही जानती होंगी, जिनमें बैठकर वें खूनी समझौते हुए, किन्तु इतिहास को तो सिर्फ वही पता होता है जो उसने स्वयं देखा, स्वयं पर झेला और स्वयं किसी के खून से लिखा। यह लेख इतिहास के उन्ही पन्नों पर सनातन धर्म के खून से लिखी -अधलिखी कहानी ही तो है....!!


🚩हिन्दू कोड बिल नेहरु को दिया जा चुका था। कितने आश्चर्य की बात है कि औरंगजेबी "फतवा-ए-आलमगीरी" अर्थात "मुस्लिम पर्सनल लॉ" को लेकर अंग्रेजो ने भी कोई नया बिल नही लिखा था। शायद यह भी अंग्रेजों की कोई कुटिल नीति ही थी...जो अब आजादी के सत्तर साल बाद रंग दिखा रही है....


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Tuesday, June 27, 2023

वायु कितने प्रकार के है ? शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है...!!

27 June 2023

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🚩संत तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस के सुन्दर कांड में , जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी , उस प्रसंग पर लिखा है |

"हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।"


🚩अर्थात :- जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो, उस समय भगवान की ही प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगे । हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश मार्ग से जाने लगे।


🚩उनचास मरुत का क्या अर्थ है ?

यह तुलसी दास जी ने भी नहीं लिखा। जब समय निकालकर 49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी खोजी । तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।

        

🚩यह जानकर आश्चर्य होगा कि वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समवायु, लेकिन ऐसा नहीं है। 


🚩जल के भीतर जो वायु है उसका शास्त्रों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।


🚩ये 7 प्रकार हैं- 1. प्रवह, 2. आवह, 3. उद्वह, 4. संवह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह।

 

🚩1. प्रवह :- पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणित हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं। 

 

🚩2. आवह :- आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।

 

🚩3. उद्वह :- वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है। 

 

🚩4. संवह :- वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।

 

🚩5. विवह :- पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है। 

 

🚩6.परिवह :- वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।

 

🚩7. परावह :- वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।

 

🚩इन सातों वायु के सात-सात गण (संचालन करने वाले) हैं , जो निम्न जगह में विचरण करते हैं-


 🚩ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह  7x7=49, कुल 49 मरुत हो जाते हैं , जो आदि भौतिक देव रूप में विचरण करते रहते हैं।

  

🚩 कितना अद्भुत ज्ञान !!

हम अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं , परंतु उसका चिन्तन-मनन जो कि बहुत महत्वपूर्ण है , विरले ही कोई कोई करता है।

हमारे वेदों शास्त्रों में लिखी छोटी से छोटी बातों का भी गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक रहस्यों का ज्ञान निश्चित रूप से प्राप्त होता है ।


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Monday, June 26, 2023

इतना समझ लिया तो कभी आपकी बेटी लव जिहाद में नही फसेगी.....

26 June 2023

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🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे ही गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरता के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुलतान देशभक्त आदि पढ़ा पढ़ा इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई। जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया।


🚩ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से 50 मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- आधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हाराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था।


🚩200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कूटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का न पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।


🚩दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़की कभी लव जिहाद का शिकार न बने।


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लव जिहाद में नही फसेगी कभी आपकी बेटी इतना समझ लिया तो

 इतना समझ लिया तो कभी आपकी बेटी लव जिहाद में नही फसेगी.....

26 June 2023

🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे ही गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरता के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुलतान देशभक्त आदि पढ़ा पढ़ा इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई। जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया।

🚩ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से 50 मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- आधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हाराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था।




🚩200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कूटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का न पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।


🚩दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़की कभी लव जिहाद का शिकार न बने।


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Sunday, June 25, 2023

अब बच्चें बनेंगे होनहार क्यूँकि पढ़ेगे सही इतिहास सुन्दर बदलाव...

 अब बच्चें बनेंगे होनहार क्यूँकि पढ़ेंगे सही इतिहास...

यूपी बोर्ड सिलेबस में हुआ बड़ा प्रभावी और सुन्दर बदलाव...




24 June 2023

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🚩हिन्दुस्थान में अनेकों शूरवीर, बुद्धिमान और साहसी महापुरुष पैदा हुए , जिन्होंने हवाई जहाज से लेकर परमाणु तक की खोजें की , मानव से महेश्वर बनाने की युक्तियां दीं । गृहस्थियों को भी स्वस्थ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाने के साथ-साथ ईश्वर प्राप्ति ही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है यह बताया ।


🚩पर दुर्भाग्य की बात यह है , कि भारत के इतिहास में उन सनातनी महापुरुषों को आजतक कहीं स्थान नहीं दिया गया था । इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों और भारत को गुलामी की ज़जीरों में जकड़ने वाले अंग्रेजों का ही इतिहास पढ़ाया जाता रहा है । 


🚩अब खुशी की बात है , कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों के सिलेबस में बड़ा बदलवा करने का निर्णय लिया है । अब हमारे बच्चों को सही इतिहास पढ़ाया जाएगा । जिससे भारत के बच्चे अपने देश की महिमा और अपने पूर्वजों की महानता से अवगत होंगे और निश्चित रूप से होनहार बनेंगे । ज़ाहिर है अपना गौरवशाली इतिहास पढ़ने और जानने के बाद बच्चे विदेशी संस्कृति के आकर्षण और विधर्मियों की कूटनीतिक चालों में कदापि नहीं फंसेंगे...

भारत फिर से विश्वगुरु पद पर आसीन हो यही संतों का संकल्प रहा है और उत्तर प्रदेश सरकार का यह निर्णय उसी ओर बढ़ता हुआ एक ठोस कदम है ।


🚩उत्तर प्रदेश सरकार का सही निर्णय 


🚩उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी बोर्ड के सिलेबस में बड़ा बदलाव किया है। कक्षा 9-12 के छात्रों को अब विद्यालयों में नियमित और अनिवार्य रूप से देश की 50 महान हस्तियों की जीवनगाथा पढ़ाई जाएगी। इसमें महर्षि पतंजलि से लेकर श्रीमद् आद्यशंकराचार्य, महावीर , गुरुनानक देव, छत्रपति शिवाजी महाराज, मंगल पांडेय, बिरसा मुंडा, रानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आजाद, वीर सावरकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि तक के नाम शामिल हैं।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार... इन तमाम हस्तियों की जीवनी को नैतिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा और योग के विषयों में शामिल किया जाएगा। ये विषय सभी छात्रों के लिए अनिवार्य होंगे। यही नहीं, छात्रों के लिए इन विषयों में पास होना भी जरूरी होगा। हालाँकि बोर्ड परीक्षा यानी 10वीं और 12वीं के छात्रों की मार्कशीट में इन विषयों के नंबर नहीं जोड़े जाएँगे। ग़ौरतलब है, जुलाई 2023 से स्कूल खुलने के बाद नए सिलेबस के तहत पढ़ाई होगी।


🚩बता दें कि , इन 50 हस्तियों के नामों की सूची पहले ही सरकार को भेजी जा चुकी थी। सरकार की मंजूरी के बाद अब ये हस्तियाँ सिलेबस का भी हिस्सा होंगी। यूपी बोर्ड के 27 हजार से अधिक सरकारी तथा सरकार द्वारा सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 9-12 तक के 1 करोड़ से अधिक छात्र इन महापुरुषों की जीवनी पढ़ेंगे।


🚩किस कक्षा में क्या पढ़ेंगे छात्र


🚩यूपी बोर्ड की कक्षा 9 के छात्र गौतम बुद्ध, छत्रपति शिवाजी महाराज, चंद्रशेखर आजाद, बिरसा मुंडा, बेगम हजरत महल, वीर कुंवर सिंह, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले, विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर), विनोबा भावे, श्रीनिवास रामानुजन और जगदीश चंद्र बसु की जीवन गाथा पढ़ेंगे।


🚩वहीं कक्षा 10 के सिलेबस में स्वामी विवेकानंद, मंगल पांडे, रोशन सिंह, सुखदेव, खुदी राम बोस, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, मोहन दास करमचंद गाँधी की जीवनी को जोड़ा गया है।


🚩कक्षा 11वीं के छात्रों के लिए महर्षि पतंजलि, सुश्रुत, महावीर जैन, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, पंडित दीन दयाल उपाध्याय, महामना मदन मोहन मालवीय, अरविंद घोष, राजा राम मोहन रॉय, सरोजिनी नायडू, नाना साहिब और डॉ होमी जहाँगीर भाभा को सिलेबस में शामिल किया गया।


🚩इसके अलावा, कक्षा 12वीं के सिलेबस में श्रीमद् आद्यशंकराचार्य जी , गुरु नानक देव जी , श्री रामकृष्ण परमहंस, गणेश शंकर विद्यार्थी जी , श्री राजगुरु, रवींद्रनाथ टैगोर जी , लाल बहादुर शास्त्री जी , महारानी लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप जी , बंकिम चंद्र चटर्जी,  डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम , रामानुजाचार्य, पाणिनी, आर्यभट्ट और सी.वी. रमन की जीवन गाथा शामिल की गई।


🚩साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में पाठ्यक्रम में बदलाव करने का वादा किया था। साथ ही कहा था , कि चन्द्रशेखर आजाद, रामकृष्ण परमहंस समेत अन्य महापुरुषों की जीवनी को सिलेबस में शामिल किया जाएगा। इस वादे को पूरा करते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूपी बोर्ड के सिलेबस में बदलाव किया है।


🚩भारत का इतिहास – हैरान करने वाली बातें🚩कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है, कि भारत की सभ्यता कुछ 8000 साल पुरानी है। लेकिन सत्य यह है , कि भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति है । और इससे भी खास बात यह है कि , इतनी पुरानी सभ्यता आजतक अपना वजूद सुदृढ बनाए हुए है , तो निसंदेह इसमें जरूर कुछ खास बात है और वह खासियत है हमारे महान पूर्वज ( साधु-संत, ऋषि-मुनि और वीर,साहसी महान हस्तियां )


🚩सनातनी सभ्यता ने विश्व का मार्गदर्शन किया है । हमारे शास्त्रों से ही विश्व ने चलना सीखा है । भारत माता के वेद अपौरुषेय और सनातन हैं और पूरे विश्व ने इन्हीं वेदों का किसी न किसी रूप में अनुसरण किया ही है । विज्ञान हो या फिर ब्रह्माण्डीय ज्ञान, तकनीक हो या फिर धर्म, सभी बातें आपको भारत माता के इतिहास में सबसे पहले मिल जायेंगी ।


🚩विज्ञान की बात करें , तो अत्यंत उत्कृष्ट वायुयानों और जलयानों का वर्णन रामायण व महाभारत में मिलता है । परमाणु अस्त्र-शस्त्रों का भी वर्णन हमारे शास्त्रों में मिलता है । परंतु निराशाजनक बात यह थी , कि हमारे बच्चों को स्कूल की किताबों में अबतक भारत माता को गरीब और अनपढ़ बताया जाता था । भारत माता का झूठा इतिहास ही हमसब स्कूलों की किताबों में आजतक  पढ़ते आए हैं ।



🚩अबतक के भारत का इतिहास – यानि की...वामपंथियों द्वारा रचा गया झूठा इतिहास


🚩भारत को इतिहास में वामपंथियों ने सांपों-सपेरों और नट-जादूगरों का देश बताया है । परंतु असल में भारत माता का सच्चा इतिहास चाणक्य, मनु और कौटिल्य पर आधारित है । यहां सपेरों का इतिहास नहीं बल्कि मंगल, सूरज और चांद तारों की हैरान करनेवाली रहस्यमयी बातें बताई गयी हैं । भारत ने ही ‘शुन्य’ का आविष्कार किया है । सौर-ऊर्जा की बातें हजारों सालों पहले भारत में ही बताई गयी हैं ।


🚩उत्तर प्रदेश सरकार की ही भाँति आज आवश्यकता है , कि सम्पूर्ण भारत के बच्चों को विद्यालयों में हमारे देश का सही इतिहास पढ़ाया जाए...

ताकि हमारे आज के नौनिहाल और आनेवाली पीढ़ियां अपने भारतीय होने का गर्व अनुभव कर सकें...

यदि ऐसा हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब भारत एक बार फिर से विश्वगुरु पद पर आसीन होगा ।



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गाँव की आबादी 5000 पर हिंदू एक भी नहीं....

25 June 2023

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🚩इस्लामिक जगत पूरे विश्व में अन्य समुदायों की तुलना में 150% ज्यादा प्रजनन कर रहा है। यह हम नहीं, दुनिया के सबसे ‘लिबरल’ देश अमेरिका का fact-tank प्यू रिसर्च सेंटर कह रहा है। अपनी इस रिपोर्ट में उसने चेतावनी दी है कि जहाँ दुनिया के बाकी बड़े मज़हब महज 11% (स्थानीय उपासना पद्धतियाँ) से लेकर 34-35% (ईसाई और हिंदुत्व) तक की दर से बढ़ रहे हैं, और बौद्ध मतावलंबी तो 0.3% से घट रहे हैं, वहीं इस्लाम 73% से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है- वह भी ज्यादा बच्चे पैदा करके। दुनिया की जरूरतों के लिए वैसे ही कम पड़ रहे संसाधनों के बीच यह खबर अत्यंत निराशाजनक है।


🚩नेपाल बॉर्डर पर बुरी हालत


🚩गाँव का नाम बिचपटा। आबादी 3500 के करीब। पर इनमें कोई भी हिंदू नहीं है। गाँव का नाम रामगढ़। 550 के करीब वोटर। इनमें 500 से अधिक मुस्लिम हैं। ये गाँव उत्तर प्रदेश से सटे नेपाल बाॅर्डर के करीब हैं। लखीमपुर के चंदन चौकी से बिचपटा करीब एक किलोमीटर दूर है। इसी गाँव से सटा हुआ है रामगढ़। नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में हुए डेमोग्राफी चेंज को आप इन गाँवों में आकर समझ सकते हैं। महसूस कर सकते हैं।


🚩ये केवल दो गाँवों तक ही सीमित नहीं है। बहराइच में बाॅर्डर का आखिरी गाँव सीतापुरवा है। यहाँ भी सिर्फ मुस्लिम आबादी है। कोई हिंदू परिवार इस गाँव में नहीं रहता। श्रावस्ती में बाॅर्डर से लगा गाँव है- भरथा रोशनपुरवा। करीब 5 हजार की आबाद वाला ये गाँव नो मेंस लैंड में भी आबाद है। एक छोर भारत में तो दूसरा छोर नेपाल में। बाॅर्डर बताने वाले पिलर तक नजर नहीं आते। नो मेंस लैंड उस भूमि को कहते हैं जिसे दो देशों की सीमाओं के बीच छोड़ दिया जाता है। इस जमीन पर किसी देश का अधिकार नहीं होता। इसमें पिलर या बाड़ लगाकर देश अपनी सीमा का निर्धारण कर लेते हैं।


🚩दैनिक भास्कर के रिपोर्टर रवि श्रीवास्तव नेपाल बाॅर्डर से लगे यूपी के लखीमपुर, बहराइच और श्रावस्ती जिलों के इन गाँवों की पड़ताल की है। वे जानना चाहते थे कि बाॅर्डर के इलाकों में डेमोग्राफी चेंज को लेकर किए जा रहे दावे कितने सही हैं। यूपी सरकार बिना मान्यता के चल रहे मदरसों पर कार्रवाई की तैयारी कर रही है। इन इलाकों के मदरसों की वास्तविक स्थिति क्या है। इस दौरान उन्होंने वह सब कुछ पाया जिन तथ्यों से ऑपइंडिया ने बीते साल अपने सिलसिलेवार ग्राउंड रिपोर्ट में आपको परिचित कराया था।


🚩रवि श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से इन गाँवों की आबादी, मस्जिद-मदरसे, यहाँ रहने वाले लोगों की स्थिति के बारे में बताया है। उन्होंने पाया कि ज्यादा बच्चे पैदा करना और दामाद कल्चर डेमोग्राफी चेंज के मुख्य कारणों में से हैं। चंदन चौकी के शौकत ने उन्हें बताया, “निकाह के बाद बेटियों के शौहर यहीं आकर बसने लगे। कहाँ से आकर बसे ये नहीं पता पर उन्हें घर दामाद कहा जाता है।” रामगढ़ के पूर्व प्रधान मोहम्मद उमर के हवाले दैनिक भास्कर ने कहा है, “एक परिवार में कई बच्चे होने से आबादी लगातार बढ़ रही है। हमने होश सँभाला तब यहाँ 24 से 25 परिवार थे। हमारे तीन बेटे हैं। अभी ताे एक ही परिवार में हैं। लेकिन मेरे बाद अलग होकर तीन परिवार बन जाएँगे। गाँव में कुछ लोग बाहर से आए हैं। उन्हें घर दामाद कहते हैं।”


🚩ऑपइंडिया ने अपनी पड़ताल के पाया था कि बाॅर्डर इलाकों में घरों और दुकानों पर इस्लामी झंडों का लहराना सामान्य है। बलरामपुर जिले में बॉर्डर के 15 किलोमीटर के दायरे में 150 मदरसे चल रहे थे। मस्जिदों की संख्या 200 से अधिक थी। बलरामपुर जिले के ग्राम पंचायत अहलादडीह के ग्राम प्रधान हरीश चंद्र शर्मा ने बताया था कि 10 किमी के दायरे में 20 गाँव मुस्लिम बहुल हैं। डेमोग्राफी चेंज के कारण हिन्दू दब कर त्योहार मनाते हैं।


🚩हिंदुओं के लिए ये चेतावनी है अगर नहीं संभले तो क्या हाल होगा इन आंकड़ों से देख सकते हैं, हर हिंदू को कम से कम 4 बच्चे तो पैदा करना चाहिए नहीं तो आगे जाकर अस्तित्व बचाना ही मुश्किल हो जायेगा।


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Friday, June 23, 2023

नारी तू है महान : रानी दुर्गावती ने देश व सनातन धर्म रक्षार्थ लड़े गए 52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त की

23 June 2023

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🚩हिंदुस्तान में जब-जब भी महान और वीरांगना नारियों की वीरगाथा का जिक्र होता है,तो सबसे पहला नाम वीरांगना रानी दुर्गावती का आता है। रानी दुर्गावती वह वीर और साहसी महिला थी, जो राज्य और प्रजा की रक्षा के लिए मुगलों से युद्ध करते करते वीरगति को प्राप्त हो गई । वे बहुत ही बहादुर और साहसी महिला थीं। जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद न केवल उनका राज्य संभाला बल्कि राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी। रानी दुर्गावती ने 52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त की थी।


🚩गढ़मंडला की वीर तेजस्वी रानी दुर्गावती का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है । क्योंकि पति की मृत्यु के पश्चात भी रानी दुर्गावती ने अपने राज्य को बहुत ही अच्छे से संभाला था। इतना ही नहीं रानी दुर्गावती ने मुगल शासक अकबर के आगे कभी भी घुटने नहीं टेके थे। इस वीर महिला योद्धा ने तीन बार मुगल सेना को हराया और अपने अंतिम समय में मुगलों के सामने घुटने टेकने के जगह इन्होंने अपनी कटार से ही अपने जीवन का अन्त कर प्राण त्याग दिए । उनके इस वीरतापूर्ण बलिदान के कारण लोगों के हृदय में उनके प्रति सम्मान अमिट हो गया है।


🚩भारत में शूरवीर, बुद्धिमान और साहसी कई वीरांगनाएँ पैदा हुई । जिनके नाम से ही मुगल सल्तनत काँपने लगती थी पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के इतिहास में उनको कहीं स्थान नहीं दिया गया इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों व अंग्रेजो का इतिहास पढ़ाया जाता है । आज अगर सही इतिहास पढ़ाया जाए तो हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की तरफ मुड़कर भी नही देखेगी इतना महान इतिहास है अपना।

 

🚩भारत की नारियों में अथाह सामर्थ्य है, अथाह शक्ति है। प्रत्येक नारी भारतीय संस्कृति के बताये हुए मार्ग के अनुसार अपनी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करके अवश्य महान बन सकती है ।


🚩 विडम्बना यह है कि आज स्वतन्त्रता और फैशन के नाम पर नारियों का शोषण किया जा रहा है। आज की पीढ़ी को ज्ञात ही नहीं कि , नारी अबला नहीं बल्कि सबला है। भारत की महान नारियों में से एक अद्भुत और अदम्य साहस सम्पंन नारी रत्न थीं , महारानी दुर्गावती देवी ।

 

🚩रानी दुर्गावती का जन्म 10 जून, 1525 को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीया को चंदेल राजा कीर्ति सिंह की पुत्री के रूप में रानी कमलावती के गर्भ से हुआ । वे बाल्यावस्था से ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकला का प्रशिक्षण भी बचपन से ही लिया । प्रचाप (बंदूक)   भाला, तलवार और धनुष-बाण चलाने में वह प्रवीण थी । गोंड राज्य के शिल्पकार राजा संग्राम सिंह बहुत शूरवीर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीर दलपति सिंह का विवाह रानी दुर्गावती के साथ वर्ष 1542 में हुआ । वर्ष 1541 में राजा संग्राम सिंह का निधन होने से राज्य का कार्यभार वीरदलपति सिंह ही देखते थे । रानी का वैवाहिक जीवन 7-8 वर्ष अच्छे से चला और इसी कालावधि में उन्हें एक सुपुत्र भी हुआ , जिसका नाम उन्होंने वीरनारायण सिंह रखा ।

 

🚩रानी दुर्गावती ने राजवंश की बागडोर थाम ली

 

🚩राजा दलपित सिंह की मृत्यु लगभग 1550 ईसवी सदी में हुई । उस समय वीर नारायण की आयु बहुत छोटी होने के कारण, रानी दुर्गावती ने गोंड राज्य की बागडोर (लगाम) अपने हाथों में थाम ली । अधर कायस्थ एवं मन ठाकुर, इन दो मंत्रियों ने सफलतापूर्वक तथा प्रभावी रूप से राज्य का प्रशासन चलाने में रानी की मदद की । रानी ने सिंगौरगढ से अपनी राजधानी चौरागढ स्थानांतरित की । सातपुडा पर्वत से घिरे इस दुर्ग का (किले का) रणनीति की दृष्टि से बडा महत्त्व था।

 

🚩कहा जाता है , कि इस कालावधि में व्यापार बडा फूला-फला । प्रजा संपन्न एवं समृद्ध थी । अपने पति के पूर्वजों की तरह रानी ने भी राज्य की सीमा बढाई तथा बडी कुशलता, उदारता एवं साहस के साथ गोंडवन का राजनैतिक एकीकरण प्रस्थापित किया ।


🚩राज्य के 23000 गांवों में से 12000 गांवों का व्यवस्थापन उनकी सरकार करती थी । अच्छी तरह से सुसज्जित सेना में 20,000 घुडसवार तथा 1000 हाथीदल के साध बडी संख्या में पैदल सेना भी अंतर्भूत थी । रानी दुर्गावती में सौंदर्य एवं उदारता , धैर्य एवं बुद्धिमत्ता का सुंदर संगम था । अपनी प्रजा के सुख के लिए उन्होंने राज्य में कई काम करवाए तथा अपनी प्रजा का हृदय जीत लिया ।


🚩जबलपुर के निकट ‘रानीताल’ नाम का भव्य जलाशय बनवाया । उनकी पहल से प्रेरित होकर उनके अनुयायियों ने चेरीताल का निर्माण किया तथा अधर कायस्थ ने जबलपुर से तीन मील की दूरी पर अधरताल का निर्माण किया । रानी ने अपने राज्य में अध्ययन को भी बढ़ावा दिया ।


🚩शक्तिशाली राजाओं को भी युद्ध में हराया...🚩राजा दलपति सिंह के निधन के उपरांत कुछ शत्रुओं की कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्य पर पड़ी । मालवा के मांडलिक राजा बाजबहादुर ने विचार किया, हम एक दिन में गोंडवाना अपने अधिकार में लेंगे । उसने बडी आशा से गोंडवाना पर आक्रमण किया; परंतु रानी ने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानी का संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावती द्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराने से उनकी कीर्ति सुदूर फैल गई । सम्राट अकबर के कानों तक जब बात पहुंची , तो वह चकित हो गया । रानी का साहस और पराक्रम देख उनके प्रति आदर व्यक्त करने के लिए अपनी राजसभा के विद्वान 'गोमहापात्र तथा नरहरिमहापात्र’ को रानी की राजसभा में भेज दिया । रानी ने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित किया ।


🚩अकबर ने वीर नारायण सिंह को राज्य का शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकार से शक्तिशाली राज्य से मित्रता बढने लगी । रानी तलवार की अपेक्षा बंदूक का प्रयोग अधिक करती थी । बंदूक से लक्ष साधने में वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेट की पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालने में बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी।

 

🚩अकबर का सेनानी तीन बार रानी से पराजित

 

🚩अकबर ने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलशाली सेनानी को गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानी ने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया । एक पर्वत की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ । बडे आवेश से युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे; परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की । इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित किया । आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ।

 

🚩स्वतंत्रता के लिए आत्मबलिदान

 

🚩अंत में वर्ष 1564 में आसफखान ने सिंगारगढ पर घेरा डाला; परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफ खान ने रानी का पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतने में रानी के पुत्र वीरनारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे ।


🚩रानी के पास केवल 300 सैनिक थे । उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफ खान से शौर्य से लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की; परंतु रानी ने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए ।”


🚩अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीर का नख भी शत्रु के हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए।" परंतु सैनिक यह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला दी।

 

🚩वह दिन था 24 जून 1564 का । इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वो झूझती रहीं । गोंडवाना पर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का अधिराज्य था, जो मुगलों ने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावती की नश्वर देह का तो अंत हुआ पर उनकी महानता सदैव स्मरणीय और अनुकरणीय रहेगी । इस महान वीरांगना को हमारा कोटिशः नमन💐🙏 !


🚩आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें, ऐसी हमारे देश में शिक्षा दीक्षा की रूपरेखा होनी चाहिए ।

भारत की नारियां अपने बच्चों में सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं,जब पूरे विश्व में सनातन धर्म की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी।


🚩भारत की नारियों आपमें बहुत महानता छुपी है । आप चाहे तो शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जैसे महान पुत्रों को जन्म देकर अपनी कोख को पावन कर सकती हैं। आप पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर अपने को दिन-हीन नहीं बनाना।बल्कि ऋषि-मुनियों के बनाए नियमों को पालन कर लाभ लेना एंव परिवार को भी स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन की ओर अग्रसर करना । किन्हीं ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु की शरण लेना एवं भगवद्गीता का ज्ञान पचाकर अपने को महान बनाना।


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Thursday, June 22, 2023

समलैंगिकता को प्रोत्साहन देना क्यों गलत है ? जानिए....


22 June 2023

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🚩हमें इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध समाज के लिए क्यों अहितकारक है। अपने आपको आधुनिक बनाने की हौड़ में स्वछन्द सम्बन्ध की पैरवी भी आधुनिकता का परिचायक बन गया है। सत्य यह है कि इसका समर्थन करने वाले इसके दूरगामी परिणामों की अनदेखी कर देते हैं। प्रकृति ने मानव को केवल और केवल स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध बनाने के लिए बनाया है। इससे अलग किसी भी प्रकार का सम्बन्ध अप्राकृतिक एवं निरर्थक है। चाहे वह पुरुष-पुरुष के मध्य हो या स्त्री-स्त्री के मध्य हो। वह विकृत मानसिकता को जन्म देता है। उस विकृत मानसिकता कि कोई सीमा नहीं है। उसके परिणाम आगे चलकर बलात्कार (Rape) , सरेआम नग्न होना (Exhibitionism), पशु सम्भोग (Bestiality), छोटे बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म (Pedophilia), हत्या कर लाश से दुष्कर्म (Necrophilia), मार पीट करने के बाद दुष्कर्म (Sadomasochism) , मनुष्य के शौच से प्रेम (Coprophilia) और न जाने किस-किस रूप में निकलता हैं। अप्राकृतिक सम्बन्ध से संतान न उत्पन्न हो सकना क्या दर्शाता है? सत्य यह है कि प्रकृति ने पुरुष और नारी के मध्य सम्बन्ध का नियम केवल और केवल संतान की उत्पत्ति के लिए बनाया था। आज मनुष्य अपने आपको उन नियमों से ऊपर समझने लगा है। जिसे वह स्वछंदता समझ रहा है। वह दरअसल अज्ञानता है। 


🚩भोगवाद मनुष्य के मस्तिष्क पर ताला लगाने के समान है। भोगी व्यक्ति कभी भी सदाचारी नहीं हो सकता। वह तो केवल और केवल स्वार्थी होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को सामाजिक हितकारक नियम पालन का करने के लिए बाध्य होना चाहिए। जैसे आप अगर सड़क पर गाड़ी चलाते हैं तब आप उसे अपनी इच्छा से नहीं अपितु ट्रैफिक के नियमों को ध्यान में रखकर चलाते हैं। वहाँ पर क्यों स्वछंदता के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं करते? अगर करेंगे तो दुर्घटना हो जायेगी। जब सड़क पर चलने में स्वेच्छा की स्वतंत्रता नहीं है। तब स्त्री पुरुष के मध्य संतान उत्पत्ति करने के लिए विवाह व्यवस्था जैसी उच्च सोच को नकारने में कैसी बुद्धिमत्ता है?


🚩कुछ लोगो द्वारा समलैंगिकता के समर्थन में खजुराहो की नग्न मूर्तियाँ अथवा वात्सायन के कामसूत्र को भारतीय संस्कृति और परम्परा का नाम दिया जा रहा है। जबकि सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति का मूल सन्देश वेदों में वर्णित संयम विज्ञान पर आधारित शुद्ध आस्तिक विचारधारा हैं।


🚩भौतिकवाद अर्थ और काम पर ज्यादा बल देता हैं। जबकि अध्यातम धर्म और मुक्ति पर ज्यादा बल देता हैं । वैदिक  जीवन में दोनों का समन्वय हैं। एक ओर वेदों में पवित्र धनार्जन करने का उपदेश है। दूसरी ओर उसे श्रेष्ठ कार्यों में दान देने का उपदेश है। एक ओर वेद में सम्बन्ध केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए है। दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवित्र बनाये रखने की कामना है। एक ओर वेद में बुद्धि की शांति के लिए धर्म की और दूसरी ओर आत्मा की शांति के लिए मोक्ष (मुक्ति) की कामना है। धर्म का मूल सदाचार है। अत: कहां गया है कि आचार परमो धर्म: अर्थात सदाचार परम धर्म है। आचारहीन न पुनन्ति वेदा: अर्थात दुराचारी व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रह्मचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया है।


🚩जैसे-

★ यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु! मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।

★ ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।

★ यजुर्वेद ३/४५ – ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं।

★ यजुर्वेद २०/१५-१६ – दिन, रात्रि, जागृत और स्वप्न में हमारें अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।

★ ऋग्वेद १०/५/६ – ऋषियों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं। उनमें से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी है। चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।

★ अथर्ववेद ६/४५/१ – हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटों। मैं तुझे नहीं चाहता।

★ अथर्ववेद ११/५/१० – ब्रह्मचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता है।

★ अथर्ववेद११/५/१९ – देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रह्मचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया है।

★ ऋग्वेद ७/२१/५ – दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

 

🚩इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

🚩खजुराहो आदि की व्यभिचार को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियाँ , वात्सायन आदि के अश्लील ग्रन्थ एक समय में भारत वर्ष में प्रचलित हुए वाममार्ग का परिणाम हैं। जिसके अनुसार मांसाहार, मदिरा एवं व्यभिचार से ईश्वर प्राप्ति है। कालांतर में वेदों का फिर से प्रचार होने से यह मत समाप्त हो गया पर अभी भी भोगवाद के रूप में हमारे सामने आता रहता है।

 

🚩मनु स्मृति में समलैंगिकता के लिए दंड एवं प्रायश्चित का विधान होना स्पष्ट रूप से यही दिखाता है कि हमारे प्राचीन समाज में समलैंगिकता किसी भी रूप में मान्य नहीं थी। कुछ कुतर्की यह भी कह रहे हैं कि मनुस्मृति में अत्यंत थोड़ा सा दंड है। उनके लिए मेरी सलाह है कि उसी मनुस्मृति में ब्रह्मचर्य व्रत का नाश करने वाले के लिए मनु स्मृति में दंड का क्या विधान है, जरा देख लें।

 

🚩इसके अतिरिक्त बाइबिल, क़ुरान दोनों में इस सम्बन्ध को अनैतिक, अवांछनीय, अवमूल्यन का प्रतीक बताया गया हैं।


🚩जो लोग यह कुतर्क देते हैं कि समलैंगिकता पर रोक से AIDS कि रोकथाम होती है। उनके लिए विशेष रूप से यह कहना चाहूँगा कि समाज में जितना सदाचार बढ़ेगा, उतना समाज में अनैतिक सम्बन्धों पर रोकथाम होगी। आप लोगों का तर्क कुछ ऐसा है कि आग लगने पर पानी कि व्यवस्था करने में रोक लगने के कारण दिक्कत होगी, हम कह रहे हैं कि आग को लगने ही क्यूँ देते हो? भोग रूपी आग लगेगी तो नुकसान तो होगा ही होगा। कहीं पर बलात्कार होंगे, कहीं पर पशुओं के समान व्यभिचार होगा, कहीं पर बच्चों को भी नहीं बक्शा जायेगा। इसलिए सदाचारी बनो, ना कि व्यभिचारी।

 

🚩एक कुतर्क यह भी दिया जा रहा है कि समलैंगिक समुदाय अल्पसंख्यक है, उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए। मेरा इस कुतर्क को देने वाले सज्जन से प्रश्न है कि भारत भूमि में तो अब अखंड ब्रह्मचारी भी अल्प संख्यक हो चले हैं। उनकी भावनाओं का सम्मान रखने के लिए मीडिया द्वारा जो अश्लीलता फैलाई जा रही हैं उस पर लगाम लगाना भी तो अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के समान है।

 

🚩एक अन्य कुतर्की ने कहा कि पशुओं में भी समलैंगिकता देखने को मिलती हैं। मेरा उस बंधू से एक ही प्रश्न हैं कि अनेक पशु बिना हाथों के केवल जिव्हा से खाते हैं, आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते? अनेक पशु केवल धरती पर रेंग कर चलते हैं आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते ? चकवा चकवी नामक पक्षी अपने साथी कि मृत्यु होने पर होने प्राण त्याग देता हैं, आप उसका अनुसरण क्यों नहीं करते?

 

🚩ऐसे अनेक कुतर्क हमारे समक्ष आ रहे हैं जो केवल भ्रामक सोच का परिणाम हैं।

 

🚩जो लोग भारतीय संस्कृति और प्राचीन परम्पराओं को दकियानूसी और पुराने ज़माने कि बात कहते हैं वे वैदिक विवाह व्यवस्था के आदर्शों और मूलभूत सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं। चारों वेदों में वर-वधु को महान वचनों द्वारा व्यभिचार से परे पवित्र सम्बन्ध स्थापित करने का आदेश है। ऋग्वेद के मंत्र के स्वामी दयानंद कृत भाष्य में वर वधु से कहता है- हे स्त्री! मैं सौभाग्य अर्थात् गृहाश्रम में सुख के लिए तेरा हस्त ग्रहण करता हूँ और इस बात की प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो काम तुझको अप्रिय होगा उसको मैं कभी ना करूँगा। ऐसे ही स्त्री भी पुरुष से कहती है कि जो कार्य आपको अप्रिय होगा वो मैं कभी न करूँगी और हम दोनों व्यभिचारआदि दोषरहित हो के वृद्ध अवस्था पर्यन्त परस्पर आनंद के व्यवहार करेंगे। परमेश्वर और विद्वानों ने मुझको तेरे लिए और तुझको मेरे लिए दिया हैं, हम दोनों परस्पर प्रीति करेंगे तथा उद्योगी हो कर घर का काम अच्छी तरह और मिथ्याभाषण से बचकर सदा धर्म में ही वर्तेंगे। सब जगत का उपकार करने के लिए सत्यविद्या का प्रचार करेंगे और धर्म से संतान को उत्पन्न करके उनको सुशिक्षित करेंगे। हम दूसरे स्त्री और दूसरे पुरुष के साथ मन से भी व्यभिचार ना करेंगे।

 

🚩एक और गृहस्थ आश्रम में इतने उच्च आचार और विचार का पालन करने का मर्यादित उपदेश हैं , दूसरी ओर पशु के समान स्वछन्द अमर्यादित सोच हैं। पाठक स्वयं विचार करें कि मनुष्य जाति कि उन्नति उत्तम गृहस्थी बनकर समाज को संस्कारवान संतान देने में हैं अथवा पशुओं के समान कभी इधर कभी उधर मुँह मारने में हैं।


🚩समलैंगिकता एक विकृत सोच है, मनोरोग है, बीमारी है। इसका समाधान इसका विधिवत उपचार है। ना कि इसे प्रोत्साहन देकर सामाजिक व्यवस्था को भंग करना है। इसका समर्थन करने वाले स्वयं अंधेरे में हैं, ओरो को भला क्या प्रकाश दिखायेंगे। कभी समलैंगिकता का समर्थन करने वालो ने भला यह सोचा है कि अगर सभी समलैंगिक बन जायेंगे तो अगली पीढ़ी कहाँ से आयेगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को दंड की श्रेणी से बाहर निकालने का हम पुरजोर असमर्थन करते हैं। – डॉ विवेक आर्य


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Wednesday, June 21, 2023

कुछ स्वार्थी लोग गीता प्रेस को करते रहे बदनाम जबकि गीताप्रेस ने 41 करोड़ किताबें छापकर घर-घर में बनाई अपनी जगह.....

 


कुछ स्वार्थी लोग गीता प्रेस को करते रहे बदनाम जबकि गीताप्रेस ने 41 करोड़ किताबें छापकर घर-घर में बनाई अपनी जगह.....


21 June 2023

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🚩100 वर्ष से धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन कर उन्हें देश-विदेश तक पहुँचाने का माध्यम बनने वाली गीता प्रेस को साल 2021 के लिए गाँधी शांति पुरस्कार मिला। लेकिन कॉन्ग्रेसी नेता जयराम रमेश समेत कई अन्य इससे किलस गए और उन्होंने गीता प्रेस को अवार्ड मिलने को कहा कि ये बिलकुल ऐसा है जैसे सावरकर या गोडसे को सम्मान मिला हो।


🚩जयराम रमेश के ट्वीट पर उन्हें सोशल मीडिया यूजर्स खूब लताड़ लगा रहे हैं। भाजपा नेता शहजाद जय हिंद ने कहा कि हैरानी नहीं हो रही कि कॉन्ग्रेसियों को गीता प्रेस से दिक्कत है। अगर ये कोई और प्रेस होती तो इसकी प्रशंसा होती है लेकिन गीता प्रेस के कारण इन्हें समस्या है। कॉन्ग्रेस को मुस्लिम लीग सेकुलर लगती है मगर गीता प्रेस कम्युनल है। जाकिर नाइक शांति का मसीहा है पर गीता प्रेस सांप्रदायिक है। कॉन्ग्रेस को चाहिए कर्नाटक में गाय कटे। ये गीता को जिहाद से जोड़ते हैं। प्रभु श्रीराम और राम मंदिर का विरोध करते हैं।


🚩इसी तरह राजद प्रवक्ता मनोज झा ने भी गीता प्रेस को गाँधी पीस प्राइज दिए जाने पर सवाल खड़े किए और कहा कि सरकार पूर्ण रूम से गाँधी विरोधी है। सरकार को चाहिए कि वो गीता प्रेस को जितना मन हो उतना पैसा दें। लेकिन गाँधी के नाम पर न दें। राजद प्रवक्ता का ऐसा भ्रामक बयान तब आया है जब गीता प्रेस ये बात स्पष्ट कर चुका है कि उन्हें गाँधी शांति पुरस्कार-2021 स्वीकार है लेकिन वो इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपए की राशि नहीं लेंगे


🚩बता दें कि गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गाँधी शांति पुरस्कार दिया गया है। यहाँ धार्मिक किताबें प्रकाशित होती हैं और एक बार इनपर जिल्द चढ़ने के बाद इन्हें कभी जमीन पर नहीं रखा जाता। इन्हें रखने के लिए लकड़ी के फट्टे हैं। इसके अलावा इन्हें मशीन से नहीं हाथों से चिपकाया जाता है,क्योंकि बाजार में बिकने वाली गोंद में जानवरों से जुड़ी चीजें मिली होती हैं। गीताप्रेस सालाना 2 करोड़ से ज्यादा पुस्तक छापकर देश विदेश भेजती है। 100 सालों में प्रेस ने 41 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छापी हैं।


🚩घर-घर गीता प्रेस पहुँचाने वाले श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

उल्लेखनीय है कि आज गीता प्रेस द्वारा करोड़ों की तादाद में प्रकाशित की जा रही किताबें हर साल बिकती हैं। लोग केवल गीता प्रेस लिखा होने भर से उसे खरीद लेते हैं। मगर इसके प्रति इतना विश्वास लोगों में यूँ ही नहीं बना। साल 1923 में इसकी शुरुआत होने के बाद ये धीरे-धीरे लोगों तक पहुँची और इसे घर-घर तक पहुँचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हनुमान प्रसाद पोद्दार हैं। जिन्होंने अलीपुर जेल में श्री ऑरोबिंदो (उस समय बाबू ऑरोबिंदो घोष) के साथ बंद रहते हुए जेल में ही गीता का अध्ययन शुरू कर दिया था।


🚩वहीं से छूटने के बाद उनका ध्यान इस बात पर गया कि कैसे कलकत्ता ईसाई मिशनरी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था, जहाँ बाइबिल के अलावा ईसाईयों की अन्य किताबें भी, जिनमें हिन्दुओं की धार्मिक परम्पराओं के लिए अनादर से लेकर झूठ तक भरा होता था, सहज उपलब्ध थीं। लेकिन गीता- जो हिन्दुओं का सर्वाधिक जाना-माना ग्रन्थ था, उसकी तक ढंग की प्रतियाँ उपलब्ध नहीं थीं। इसीलिए बंगाली तेज़ी से हिन्दू से ईसाई बनते जा रहे थे।


🚩1926 में हुए मारवाड़ी अग्रवाल महासभा के दिल्ली अधिवेशन में पोद्दार की मुलाकात सेठ घनश्यामदास बिड़ला से हुई, जिन्होंने आध्यात्म में पहले ही गहरी रुचि रखने वाले पोद्दार को सलाह दी कि जन-सामान्य तक आध्यात्मिक विचारों और धर्म के मर्म को पहुँचाने के लिए आम भाषा (आज हिंदी, उस समय की ‘हिन्दुस्तानी’) में एक सम्पूर्ण पत्रिका प्रकाशित होनी चाहिए। पोद्दार ने उनके इस विचार की चर्चा जयदयाल गोयनका से की, जो उस समय तक गोबिंद भवन कार्यालय के अंतर्गत गीता प्रेस नामक प्रकाशन का रजिस्ट्रेशन करा चुके थे।


🚩गोयनका ने पोद्दार को अपनी प्रेस से यह पत्रिका निकालने की ज़िम्मेदारी दे दी, और इस तरह ‘कल्याण’ पत्रिका का उद्भव हुआ, जो तेज़ी से हिन्दू घरों में प्रचारित-प्रसारित होने लगी। आज कल्याण के मासिक अंक लगभग हर प्रचलित भारतीय भाषा और इंग्लिश में आने के अलावा पत्रिका का एक वार्षिक अंक भी प्रकाशित होता है, जो अमूमन किसी-न-किसी एक पुराण या अन्य धर्मशास्त्र पर आधारित होता है।


🚩गीता प्रेस की स्थापना के पीछे का दर्शन स्पष्ट था- प्रकाशन और सामग्री/जानकारी की गुणवत्ता के साथ समझौता किए बिना न्यूनतम मूल्य और सरलतम भाषा में धर्मशास्त्रों को जन-जन की पहुँच तक ले जाना। हालाँकि गीता प्रेस की स्थापना गैर-लाभकारी संस्था के रूप में हुई, लेकिन गोयनका-पोद्दार ने इसके लिए चंदा लेने से भी इंकार कर दिया, और न्यूनतम लाभ के सिद्धांत पर ही इसे चलाने का निर्णय न केवललिया, बल्कि उसे सही भी साबित करके दिखाया। 5 साल के भीतर गीता प्रेस देश भर में फ़ैल चुकी थी, और विभिन्न धर्मग्रंथों का अनुवाद और प्रकाशन कर रही थी। गरुड़पुराण, कूर्मपुराण, विष्णुपुराण जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन ही नहीं, पहला शुद्ध और सही अनुवाद भी गीता प्रेस ने ही किया।


🚩बम्बई से आई गोरखपुर, गोरखधाम बना संरक्षक

गीता प्रेस ने श्रीमद्भागवत गीता और रामचरितमानस की करोड़ों प्रतियाँ प्रकाशित और वितरित की हैं। इसका पहला अंक वेंकटेश्वर प्रेस बम्बई से प्रकाशित हुआ, और एक साल बाद इसे गोरखपुर से ही प्रकाशित किया जाने लगा। उसी समय गोरखधाम मन्दिर के प्रमुख और नाथ सम्प्रदाय के सिरमौर की पदवी को प्रेस का मानद संरक्षक भी नामित किया गया- यानी आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और नाथ सम्प्रदाय के मुखिया योगी आदित्यनाथ गीता प्रेस के संरक्षक हैं।


🚩गीता प्रेस की सबसे खास बात है कि इतने वर्षों में कभी भी उस पर न ही सामग्री (‘content’) की गुणवत्ता के साथ समझौते का इलज़ाम लगा, न ही प्रकाशन के पहलुओं के साथ- वह भी तब जब 60 करोड़ से अधिक प्रतियाँ प्रेस से प्रकाशित हो चुकीं हैं। 96 वर्षों से अधिक समय से इसका प्रकाशन उच्च गुणवत्ता के कागज़ पर ही होता है, छपाई साफ़ और स्पष्ट, अनुवाद या मुद्रण (printing) में शायद ही कभी कोई त्रुटि रही हो, और subscription लिए हुए ग्राहकों को यह अमूमन समय पर पहुँच ही जाती है- और यह सब तब, जबकि पोद्दार ने इसे न्यूनतम ज़रूरी मुनाफे के सिद्धांत पर चलाया, और यही सिद्धांत आज तक गीता प्रेस गोरखपुर में पालित होता है। न ही गीता प्रेस पाठकों से बहुत अधिक मुनाफ़ा लेती है, न ही चंदा- और उसके बावजूद गुणवत्ता में कोई कमी नहीं।


🚩‘भाई जी’ कहलाने वाले पोद्दार ने ऐसा सिस्टम बना और चला कर यह मिथक तोड़ दिया कि धर्म का काम करने में या तो धन की हानि होती है (क्योंकि मुनाफ़ा कमाया जा नहीं सकता), या फिर गुणवत्ता की (क्योंकि बिना ‘पैसा पीटे’ उच्च गुणवत्ता वाला काम होता नहीं है)। उन्होंने मुनाफ़ाखोरी और फकीरी के दोनों चरम छोरों पर जाने से गीता प्रेस को रोककर, ethical business और धर्म-आधारित entrepreneurship का उदाहरण प्रस्तुत किया।



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Tuesday, June 20, 2023

जीवन में योग का महत्व क्यों हैं ? योग दिवस क्यों मनाया जाता है ? जानिए

20 June 2023

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🚩योग जीवन के लिए उतने ही जरुरी है, जितना की एक मरीज को उसकी टेबलेट। किसी बीमारी में पड़कर फिर उसके इलाज के लिए इधर उधर भागना और बहुत खर्चा करना, इससे बेहतर हैं आज से ही योग के लिए वक्त निकालना। ना इसमें कोई खर्चा होता हैं और न ही कोई नुकसान। योग के बस फायदे होते हैं, जिन्हें दुनिया के सभी लोगो ने माना है, इसलिए देश में अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा हैं। दुनिया में बढ़ती हुई बीमारियों को देखते हुए यह बहुत अच्छा निर्णय हैं,जो विश्वस्तर पर लिया गया हैं। जरुरी नहीं हैं कि योग के लिए कई घंटो का वक्त निकाला जाए, 30 मिनिट भी आपके लिए फायदेमंद होंगे। योग केवल मोटे लोगो या बीमार लोगो के लिए ही जरुरी नहीं हैं। योग व्यक्ति का सर्वांगिक विकास करता हैं। शारीरिक विकास के साथ मनो विकास भी करता हैं। योग से जीवन के हर क्षेत्र में लाभ हैं इससे कई तकलीफों का अंत हैं। अतः सभी धर्म एवं जाति में योग के प्रति जागरूकता होनी चाहिये।



🚩योग के फायदे


🚩योग से शारीरिक तंदुरुस्ती तो आती ही हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मानसिक शांति मिलती हैं। इससे मन शांत रहता हैं एवं तनाव कम होता हैं। साथ ही यह शरीर की सभी क्रियाओं को नियंत्रित भी करता हैं। योग से जीवन के सभी भाव नियंत्रित होते हैं।


🚩शरीर स्वस्थ रहता हैं :


🚩योग से शरीर का ब्लड का प्रवाह नियंत्रित रहता है, जिससे शरीर में चुस्ती आती है, जो कि हानिकारक टोक्सिंस को बाहर निकालती है, जिससे शरीर के विकार दूर होते हैं और रोगियों को इससे आराम मिलता हैं। साथ ही सकारात्मकता का भाव प्रवाहित होता हैं। जिससे शरीर स्वस्थ रहता हैं।


🚩स्ट्रा वजन कम होता हैं :


🚩योग की सबसे प्रभावशाली विद्या हैं सूर्य नमस्कार, जिससे शरीर में लचीलापन आता हैं। रक्त का प्रवाह अच्छा होता हैं। शरीर की अकड़न, जकड़न में आराम मिलता हैं। योग से वजन नियंत्रित रहता हैं। जिनका वजन कम है, वह बढ़ता हैं और जिनका अधिक हैं कम होता हैं।


🚩चिंता का भाव कम होता हैं :


🚩योग से मन एकाग्रचित्त रहता है, उसमे शीतलता का भाव आता है और चिंता जैसे विकारों का अंत होता हैं। योग से गुस्सा कम आता है, इससे ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है, जिससे शारीरिक एवं  मानसिक संतुलन बना रहता हैं।


🚩मानसिक शांति


🚩योग से मन शांत रहता हैं। यादशक्ति बढ़ती  है, जिससे सकारात्मक विचार का प्रवाह होता हैं। सकारात्मक भाव से जीवन उन्नत होता  हैं। मनुष्य को किसी भी वस्तु, अन्य इन्सान या जानवर में कुछ गलत दिखाई नहीं देता। किसी के लिए मन में बैर नहीं रहत। इस तरह योग से मनुष्य का मनोविकास होता हैं।


🚩मनोबल बढ़ता हैं :


🚩योग से मनुष्य में आत्मबल बढ़ता हैं, कॉन्फिडेंस आता हैं। जीवन के हर क्षेत्र में कार्य में सफलता मिलती हैं। मनुष्य हर परिस्थिती से लड़ने के काबिल होता हैं। साथ ही जीवन की चुनौतियों को उत्साह से लेता हैं।


🚩प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं :


🚩योग से पाचन की क्रिया दुरुस्त होती हैं और श्वसन क्रिया संतुलित होती हैं जिससे मनुष्य में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती हैं। बड़ी से बड़ी बीमारी से लड़ने के लिए शक्ति का संचार होता हैं। योग एवं ध्यान में बड़ी से बड़ी बीमारी के लिए उपाय हैं।


🚩जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता :


🚩योग को आप जादू भी कह सकते है, नियमित योग करने से जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता हैं। आत्मबल बढ़ता हैं, सकारात्मक भाव आता है, साथ ही आत्म विश्वास में भी वृद्धी होती है, जिससे जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता हैं।


🚩उर्जा बढ़ती हैं :


🚩मनुष्य रोजाना कई गतिविधियाँ करता है और दिन के अंत में थक जाता है, लेकिन अगर वह नियमित योगा करता है, तो उसमे उर्जा का संचार होता हैं। थकावट या किसी भी काम के प्रति उदासी का भाव नहीं रहता। सभी अंगो को अपना कार्य करने के लिए पर्याप्त उर्जा मिलती है,क्योंकि योग से भोजन का सही मायने में पाचन होता हैं जो दैनिक उर्जा को बढ़ाता हैं।


🚩शरीर लचीला बनता हैं


🚩योग से शरीर की जकड़न खत्म होती हैं। शरीर में वसा की मात्रा कम होती हैं जिससे लचीलापन आता हैं। लचीले पन के कारण शरीर में कभी अनावश्यक दर्द नहीं रहता और शरीर को जिस तरह का होना चाहिये, उसकी बनावट धीरे-धीरे रोजाना योग करने से ठीक हो जाती हैं।


🚩भारत को योग का जनक क्यों कहते हैं ?


🚩अन्तराष्ट्रीय योग दिवस की बात हो रही है तो भारत की बात क्यों ना हो! क्योंकि योग का इतिहास भारत में ही है। माना जाता है की योग का इतिहास लाखों साल पुराना है। कहते हैं की महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र को लिखा था। योग संस्कृत से प्राप्त हुआ शब्द है, यही वजह है की एक समय यह सिर्फ हिन्दू धर्म के लोगों तक सीमित था। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के बारें में भी बताया, उन्ही की वजह से यह एक धर्म में ना रहकर सम्पूर्णदुनिया में फैलाया गया। आज विज्ञान भी योग के महत्व को बताती है। आज योग हमारे जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है चाहे वह स्वास्थ्य के लिए हो या आत्मशांति के लिए।


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Monday, June 19, 2023

गूढ़ रहस्य : महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में आखिर ऐसा क्या है , जो अभी तक कोई जान नहीं पाया...!?

19 June 2023

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🚩जगन्नाथपूरी के भव्य और दिव्य मंदिर के अति दिव्य रहस्य...

जहाँ मंदिर के गर्भ-गृह में विराजमान भगवान् श्री कृष्ण जगन्नाथ का हृदय बिल्कुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़कता रहता है ।आश्चर्य को भी आश्चर्य हो जाए ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर धड़कता हुआ उनका हृदय...

जबकि ये बात बहुत कम लोगों को पता होगी !



🚩ऐसी मान्यता है , कि भगवान श्रीकृष्ण के शरीर त्यागने के बाद अग्नि संस्कार के उपरांत भी उनका हृदय बिल्कुल सुरक्षित और धड़कता हुआ मिला , जिसे बाद में भगवान जगन्नाथ की काष्ठ प्रतिमा के भीतर स्थापित कर दिया गया ।


🚩महाप्रभु का महा रहस्य


🚩महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है। पुरी (उड़ीसा) में जगन्नाथ स्वामी अपनी बहन देवी सुभद्रा और बल के धाम भाई श्रीबलराम के साथ निवास करते हैं ।

यहाँ रहस्य ऐसे -ऐसे हैं कि आज तक कोई तर्कवादी या खोजकर्ता उनका भेद न जान पाया। 


🚩हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है । उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है, यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है । लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को CRPF की सेना चारो तरफ से घेर लेती है,उस समय कोई भी मंदिर में नहीं जा सकता । मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है । पुजारी की आँखों पर पट्टी बंधी होती है और हाथों में दस्ताने होते हैं । वो पहले वाली पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालते हैं और नई मूर्ती में डाल देते हैं ।



🚩क्या है ये ब्रह्म पदार्थ...!?

यह आज तक किसी को नहीं पता , इसे आज तक किसी ने नहीं देखा , जो हज़ारों सालों से एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांस्फर किया जा रहा है । ऐसी मान्यता है , कि यह एक अलौकिक पदार्थ है , जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के शरीर के चिथड़े उड़ जाएंगे । कहते हैं इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है, मगर ये क्या है !? कोई नहीं जानता।


🚩भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के साथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं, जब साल में आषाढ़ के 2 महीने आते हैं । इस बार 19 साल बाद यह अवसर आया है । वैसे कभी-कभी 14 साल में भी ऐसा होता है, इस मौके को नव-कलेवर कहते हैं। मगर आज तक कोई भी पुजारी ये नहीं बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??

कुछ पुजारियों का कहना है , कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था, आंखों पर पट्टी और हाथ में दस्ताने थे , तो हम सिर्फ महसूस कर पाए।


🚩आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते हैं । भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती । जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है , कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देगी । 


🚩आपने सभी मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे... लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता, झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशा में लहराता है । दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती ।


🚩भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज़ बदला जाता है । ऐसी मान्यता है , कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा। इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपको आपके मुंह की तरफ ही , मतलब सीधा ही दीखता है।


🚩भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं । भोग प्रसाद को लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है । आश्चर्य कि , सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता । लेकिन हैरान करने वाली बात ये है , कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं , वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है ।


🚩...और भी कितनी ही आश्चर्यजनक बातें हैं हमारे सनातन धर्म की , जो की पग-पग पर उस परम् सत्ता का प्रमाण देती हैं और साथ ही हमारे सनातन धर्म की महिमा और गहराई को भी उजागर करती हैं ।

ज़रूरत है तो बस हमारी जागरूकता की...

आज सचमुच ज़रूरत है , कि हम आधुनिकता की अंधी दौड़ को छोड़कर अपनी स्वयं की महिमा और अपनी गौरवशाली सनातन संस्कृति की महानता को जानें ।

🚩जय जगन्नाथ 💐🙏


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Sunday, June 18, 2023

रानी केवल 22 वर्ष और 7 महीने ही जीवित रहीं, पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’

18 June 2023

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🚩भारत में अंग्रेजी सत्ता के आने के साथ ही गाँव-गाँव में उनके विरुद्ध विद्रोह होने लगा; पर व्यक्तिगत या बहुत छोटे स्तर पर होने के कारण इन संघर्षों को सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के विरुद्ध पहला संगठित संग्राम 1857 में हुआ। इसमें जिन वीरों ने अपने साहस से अंग्रेजी सेनानायकों के दाँत खट्टे किये, उनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम प्रमुख है।



🚩19 नवम्बर, 1835 को वाराणसी में जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था। प्यार से लोग उसे मणिकर्णिका तथा छबीली भी कहते थे। इनके पिता श्री मोरोपन्त ताँबे तथा माँ श्रीमती भागीरथी बाई थीं। गुड़ियों से खेलने की अवस्था से ही उसे घुड़सवारी,  तीरन्दाजी, तलवार चलाना, युद्ध करना जैसे पुरुषोचित कामों में बहुत आनन्द आता था। नाना साहब पेशवा उसके बचपन के साथियों में थे।


🚩उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन था। अतः सात वर्ष की अवस्था में ही मनु का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधरराव से हो गया। विवाह के बाद वह लक्ष्मीबाई कहलायीं। उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा। जब वह 18 वर्ष की ही थीं, तब राजा का देहान्त हो गया। दुःख की बात यह भी थी कि वे तब तक निःसन्तान थे। युवावस्था के सुख देखने से पूर्व ही रानी विधवा हो गयीं।

उन दिनों अंग्रेज शासक ऐसी बिना वारिस की जागीरों तथा राज्यों को अपने कब्जे में कर लेते थे। इसी भय से राजा ने मृत्यु से पूर्व ब्रिटिश शासन तथा अपने राज्य के प्रमुख लोगों के सम्मुख दामोदर राव को दत्तक पुत्र स्वीकार कर लिया था; पर उनके परलोक सिधारते ही अंग्रेजों की लार टपकने लगी। उन्होंने दामोदर राव को मान्यता देने से मनाकर झाँसी राज्य को ब्रिटिश शासन में मिलाने की घोषणा कर दी। यह सुनते ही लक्ष्मीबाई सिंहनी के समान गरज उठी - मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।


🚩अंग्रेजों ने रानी के ही एक सरदार सदाशिव को आगे कर विद्रोह करा दिया। उसने झाँसी से 50 कि.मी दूर स्थित करोरा किले पर अधिकार कर लिया; पर रानी ने उसे परास्त कर दिया। इसी बीच ओरछा का दीवान नत्थे खाँ झाँसी पर चढ़ आया। उसके पास साठ हजार सेना थी; पर रानी ने अपने शौर्य व पराक्रम से उसे भी दिन में तारे दिखा दिये।


🚩इधर देश में जगह-जगह सेना में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गये। झाँसी में स्थित सेना में कार्यरत भारतीय सैनिकों ने भी चुन-चुनकर अंग्रेज अधिकारियों को मारना शुरू कर दिया। रानी ने अब राज्य की बागडोर पूरी तरह अपने हाथ में ले ली; पर अंग्रेज उधर नयी गोटियाँ बैठा रहे थे।


🚩जनरल ह्यू रोज ने एक बड़ी सेना लेकर झाँसी पर हमला कर दिया। रानी दामोदर राव को पीठ पर बाँधकर 22 मार्च, 1858 को युद्धक्षेत्र में उतर गयी। आठ दिन तक युद्ध चलता रहा; पर अंग्रेज आगे नहीं बढ़ सके। नौवें दिन अपने बीस हजार सैनिकों के साथ तात्या टोपे रानी की सहायता को आ गये; पर अंग्रेजों ने भी नयी कुमुक मँगा ली। रानी पीछे हटकर कालपी जा पहुँची।

कालपी से वह ग्वालियर आयीं। वहाँ 17 जून, 1858 को ब्रिगेडियर स्मिथ के साथ हुए युद्ध में उन्होंने वीरगति पायी। रानी के विश्वासपात्र बाबा गंगादास ने उनका शव अपनी झोंपड़ी में रखकर आग लगा दी। रानी केवल 22 वर्ष और सात महीने ही जीवित रहीं। पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’ गाकर उन्हें सदा याद किया जाता है।


🚩ब्राह्मण कुल में जन्मी और महलों में पलने वाली भारत माता की सिंहनी ” वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ” ने अपनी वीरता, साहस, संयम, धैर्य तथा देशभक्ति के कारण सन् 1857 के महान क्रांतिकारियों की शृृंखला में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा दिया ।


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Saturday, June 17, 2023

बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है....

17 June 2023

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🚩भारत देश की सिनेमा इंडस्ट्री अर्थात बॉलीवुड के दोगलेपन से हम सब काफी समय से वाकिफ हैं। कला के नाम पे, ये अनगिनत अपमानजनक सामग्री बना कर बेच चुके हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी ने अपनी मर्यादा बेच दी हो। दूर से चमचमाता हुआ,ये कालसर्पी गटर बड़ा ही आकर्षक लगता है। बहुत ही गिने चुने व्यक्ति हैं, जो सामाजिक दृश्य की सही प्रस्तुति करते हैं, अपनी सिनेमा में । बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है।



🚩जी हाँँ, हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के शौर्य और शिक्षा को अमर्यादित रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश हैं । माता सीता की झलक ऐसी दिखाई गई है जैसे पुराने फिल्मों की मधुबाला । राम भक्त श्री हनुमान जी की भक्ति और तप का उपहास और शिव भक्त प्रकांड पंडित रावण की भी भर्त्सना की गई है।


🚩हनुमान चालीसा में ही अंजनीपुत्र के स्वरूप का वर्णन श्री तुलसीदास जी ने किया है। वो पंक्तियाँ हैं:

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥ अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥अर्थ- आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।


🚩इस फ़िल्म में दर्शाए गए हनुमान जी के चरित्र का इससे दूर-दूर तक कोई सामंजस्य नहीं दिखता। विपरीत रूप में उन्हें चमड़े के वस्त्र और बिना गदा के दिखाया गया है।


🚩ये फ़िल्म अभी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, इसने सनातनी भावनाओं को आघात किया है। कला का सही मूल्य तभी है, जब वो जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए सच प्रदर्शित करे । इस फ़िल्म में ना ही श्रीराम की स्वर्णिम व्यक्तित्व की झलक मिलती है, ना हनुमान जी की प्रेमपूर्ण भक्ति। सात्विक स्वभाव के हमारे देवगणों को चमड़े के वस्त्रों में दिखाया गया हैं।


🚩वहीं पंडित रावण की वेशभूषा ऐसी प्रतीत होती है, जैसे कोई मध्यकालीन क्रूर शासक ओरंगजेब हो, जो भारत पे आक्रमण करने आया हो। रावण की स्वर्णरूपी नगरी लंका को भी एक काले खंडहर के रूप में दिखाया गया है। पुष्कप विमान की जगह किसी काले चमगादड़ को रावण की सवारी बना दी गई है। जैसा हमें ज्ञात है की शिव भक्त रावण को चारो वेद कंठस्त्य थे। शिवतांडव स्त्रोत की रचना रावण ने ही की थी। रावण अहंकारी जरूरी था, पर उतना ही ज्ञानी भी। रावण का वध तय था श्रीराम के हाथों, पर श्रीराम ने भी उसकी विद्वत्ता की सराहना की थी। रावण को तो फिल्म निर्माताओं ने छपरी हेयरकट और औरंगजेबी वेशभूषा दे दी है।


🚩ये पहली बार नहीं है,कि बॉलीवुड ने हिंदू विरोधी फिल्म कला या यह कहूँ की कलंक के नाम पर पेश की है। पिछले वर्ष ही तांडव नाम की कुप्रस्तुति की गई थी। इस फिल्म में सैफ अली खान था और इस पर बहुत बहस हुई थी। आज से कुछ वर्षो पहले आमिर खान की फिल्म पीके (PK) ने भी हिंदू समाज के गुरु की नकारात्मक छवि दिखाई थी। इसी पीके (PK) फिल्म में शिवजी के रूप का उपहास किया गया था, कहीं उन्हें मोबाइल फ़ोन पर बात करते भी दिखाया गया, सिर्फ हिंदू रीति रिवाजों का मजाक उड़ाया गया। अन्य कई फिल्में हैं, जो की लव जिहाद और हिंदू फोबिया को नॉर्मलाइज करती हैं।


🚩बॉलीवुड के गटर से निकले कुछ निर्देशक अब वेब सीरीज़ भी बनाते हैं। अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफार्म पे,ये गंदी वेब सीरीज़ का अंबार लगा रहे है। ठीक वैसे ही जैसे कूड़े का पहाड़ हो । ऐसी ही वेब सिरीज़ जो भारतीय संस्कृति के वार पे इस सुसंस्कृति को वासना से भर रही है। कला के नाम पे बस अश्लीतला बेची जा रही ही जाती है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सुटेबल ब्वॉय में अगर एक मंदिर की मर्यादा को चोट पहुँचाने की कोशिश की गई तो वहीं नेटफ्लिक्स पर ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म लुडो को लेकर भी सवाल उठे।


🚩इस फिल्म में चार कहानियों को एक में पिरोया गया,लेकिन अनुराग बासु अपनी एंटी हिंदू सोच का गटर यहाँ भी खोल गए। एक रिसर्च के मुताबिक:-

बॉलीवुड की फिल्मों में 58% भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62% फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है। फिल्मों में 74% फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया। जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं। 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है, यहाँ तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।

🚩कट्टरपंथियों के कब्जे में फिल्म इंडस्ट्री:-कुल मिलाकर बॉलीवुड में एक खास धड़ा इसी पर काम कर रहा है, उन्हें पक्का यकीन है कि वो अगर हिंदू संस्कृति पर सवाल उठाएँगे तो ज़ाहिर है लिबरल सनातन समाज उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करेगा, जबकि मुस्लिम समुदाय कार्टून/कैरिकेचर बनने पर ही बवाल खड़े कर देता है। यही वजह है कि कुछ फिल्मों में हिंदू धर्म के प्रति पक्षपाती रवैया देखा गया।


🚩एक फिल्म निर्देशक का काम है सही रिसर्च करना अगर वो एक महाकाव्य पर फ़िल्म बनाने की इच्छा रखते हैं और सवाल यह है कि बॉलीवुड में सिर्फ हिंदू भावनाओं के साथ क्यों खिलवाड़ किया जाता आ रहा है। ख़ैर हमारी उम्मीद ही शायद गलत है। जिन लोगों की ख़ुद की ज़मीर ही नहीं न खुद की इज़्ज़त, वो दूसरो के धार्मिक भावनाओं का क्या ध्यान रखेंगे। समय आ गया है खुद के लिए आवाज़ उठाने का। अपनी आवाज़ बुलंद करे और पूर्ण रूप से इस अपमानजनक फिल्म का बहिष्कार करें। जब बॉलीवुड हमारे इतिहास और भावनाओं का सम्मान नही कर सकता तो उसे भी सम्मान नही मिलेगा।


🚩आदिपुरुष रिलीज होते ही दPIL दायर


🚩हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष से रावण, भगवान राम, हनुमान, माता सीता से संबंधित कुछ ‘आपत्तिजनक दृश्यों’ को हटाने की माँग की है।


🚩विष्णु गुप्त द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि फिल्म में धार्मिक चरित्रों का फिल्मांकन रामायण में किए गए चित्रण के विपरीत हैं। फिल्म के दृश्यों में हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक शख्सियतों और मूर्तियों का अपमान करते हुए धार्मिक चरित्रों को खराब स्वाद में दिखाया गया है।


🚩याचिका में कहा गया है, “हिंदुओं का भगवान राम, सीता और हनुमान की छवि के बारे में एक विशेष दृष्टिकोण है और फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा उनकी दिव्य छवि में किया गया बदलाव/छेड़छाड़ उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि इस फिल्म की वजह से देश की संस्कृति का मजाक बन रहा है।


🚩आगे कहा गया है, “महाकाव्यों में बनाई गई छवि के अनुसार हेयर स्टाइल, दाढ़ी और ड्रेसिंग को अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा कोई भी बदलाव निश्चित रूप से उपासकों, भक्तों और धार्मिक विश्वासियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाएगा।”


🚩रावण को ब्राह्मण बताते हुए कहा गया है, “फिल्म में सैफ अली खान द्वारा निभाए गए रावण के किरदार का दाढ़ी वाला लुक हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत कर रहा है, क्योंकि ब्राह्मण रावण को गलत तरीके से भयानक चेहरा बनाते हुए दिखाया गया है, जो हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक हस्तियों एवं आदर्शों का घोर अपमान है।”


🚩याचिकाकर्ता ने कहा है कि फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से फिल्म में ‘सुधारात्मक उपाय’ करने की माँग की गई है। इसमें कहा गया है, “आदिपुरुष फिल्म द्वारा हिंदू धार्मिक शख्सियतों का विकृत सार्वजनिक प्रदर्शन अंतरात्मा और अभ्यास की स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन है। यह अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन है।”


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Friday, June 16, 2023

समान नागरिक संहिता के लिए विधि आयोग ने माँगी जनता की राय , ऐसे भेजें अपने सुझाव

16 June 2023

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🚩समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) को लेकर विधि आयोग (Law Commission) ने एक बार फिर से लोगों सेे रायशुमारी शुरू कर दी है। इसको लेकर देश के प्रबुद्ध लोगों तथा सभी धर्मों के मान्यता प्राप्त प्रमुख धार्मिक संगठनों से उनकी राय माँगी है।


🚩विधि आयोग ने बुधवार (14 जून 2023) को कहा कि 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों को जानने के लिए फिर से निर्णय लिया। आयोग ने कहा , कि जिन लोगों को इसमें रुचि है और अपनी राय देना चाहते हैं, वे राय दे सकते हैं।


🚩विधि आयोग ने कहा कि जो लोग अपनी राय रखना चाहते हैं , वे नोटिस जारी करने की तारीख के 30 दिनों के भीतर इससे संबंधित लिंक पर अपनी राय भेज सकते हैं। इसके अलावा, भारत सरकार के विधि आयोग को Membersecretary-lci@gov.in  पर ईमेल द्वारा भी राय भेज सकते हैं।


🚩कानूनी पैनल ने आगे कहा, “शुरुआत में भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विषय की जाँच की थी और 7 अक्टूबर 2016 को एक प्रश्नावली दी थी। इसके साथ ही, 19 मार्च 2018 एवं 27 मार्च 2018 और 10 अप्रैल 2018 की सार्वजनिक अपील/नोटिस देकर सभी हितधारकों को अपने विचार रखने का अनुरोध किया था।”


🚩विधि आयोग ने अपने बयान में कहा , कि इस अपील पर लोगों से उन्हें भारी प्रतिक्रिया मिली थी। इसके बाद 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ पर परामर्श पत्र जारी किया थी।


🚩पैनल ने कहा कि चूंकि परामर्श पत्र जारी किए हुए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। ऐसे में विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए तथा इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए भारत के 22वें विधि आयोग ने इस पर पहल करना जरूरी समझा।


🚩क्या है समान नागरिक संहिता


🚩समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समान रूप लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सबके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सारे समुदायों पर लागू किया, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से जुड़े मसलों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।


🚩आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों के कानून को ज्यों का त्यों बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।


🚩मुस्लिमों का कानून , पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि आता है, जो इस्लामी शरिया कानून के तहत संचालित होते हैं। अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।


🚩गोवा में लागू है UCC


🚩देश भर में समान नागरिक संहिता को लागू करने की माँग दशकों से हो रही है, लेकिन देश में गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा में वर्ष 1962 में यह कानून लागू किया गया था।


🚩साल 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था। इसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई और तब से राज्य में यह कानून लागू है।


🚩पिछले दिनों गोवा में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. ए. बोबड़े ने भी की थी। सी.जे.आई. ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।


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