31 July 2023
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🚩पंजाब से खबर मिली है। वहां के कुछ लोग जो अपने आपको वाल्मीकि कहते हैं उन्होंने रावण पूजा करना आरम्भ किया है। ये लोग अपने आपको अब द्रविड़ और अनार्य कहना पसंद करते है। इन्होने अपने नाम के आगे दैत्य, दानव, अछूत और राक्षस जैसे उपनाम भी लगाना आरम्भ किया है। ये लोग अपने आपको हिन्दू नहीं अपितु आदि धर्म समाज के रूप में सम्बोधित करेंगे। ये कोई हिन्दू धर्म से सम्बंधित कर्मकांड नहीं करते । पूरे पंजाब में रावण सेना की गतिविधियां बढ़ाई जाएँ , ऐसा इनका इरादा है।
🚩एक तथ्य इस खबर से स्पष्ट है। यह कृत्य करने वाले तो केवल कठपुतलियां हैं। इसके पीछे कोई NGO , तथाकथित अम्बेडकरवादी, साम्यवादी, नक्सली या ईसाई दिमाग सक्रिय है। जो इन लोगों के भोलेपन का फायदा उठाकर अपनी दुकानदारी चमकाना अथवा विधान सभा चुनाव में किसी बड़े दल का टिकट प्राप्त करना चाहता है। असल में पंजाब के वाल्मीकि समाज में गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास, नशा आदि प्रचलित हैं। इनकी स्थिति का फायदा उठाकर इन्हें इसाई बनाने के लिए अम्बेडकरवाद का लबादा लपेट कर मिशनरीज बड़े पैमाने पर लगी हुई हैं। यह कार्य सीधे न करके अनेक बार पिछले दरवाजे से भी किया जाता रहा है।
🚩इस रणनीति के तहत ... पहले चरण में इन्हें हिन्दू धर्म से सम्बंधित मान्यताओं से दूर किया जाता है। दूसरे चरण में इनका प्रतिरोध समाप्त होने और हिन्दुओं से अलग होने पर आसानी इनका इसाईकरण कर दिया जाता है।
विडंबना यह है हिन्दू/सिख समाज के तथाकथित बुद्धिजीवियों को इन उभरती हुई समस्याओं के समाधान में कोई रूचि नहीं है। शायद उनके लिए खुद ही सिर्फ आराम से रहना जीवन का उद्देश्य है।
🚩पंजाब में दलित समाज महर्षि वाल्मीकि और संत रविदास जी को अपना गुरु मानते हैं। जबकि स्वयं महर्षि वाल्मीकि रामायण के रचियता थे। उन्ही के द्वारा रचित वाल्मीकि रामायण में हमने पढ़ा है , श्रीराम मर्यादापुरुषोत्तम और सर्वगुण संपन्न हैं और रावण एक दुराचारी, अत्याचारी व एक विवाहिता स्त्री , माता सीता का अपहरणकर्ता है ।
दूसरी ओर संत रविदास जी भी अपने दोहों में श्री राम की स्तुति करते हैं।
🚩फिर...कमाल यह है , कि इन्हीं दो महापुरुषों को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने का ढोंग रचने वाले इन्हीं के उपदेशों की अवहेलना कर अपना उल्लू सीधा करने के लिए सत्य को सिरे से नकार रहे हैं और पंजाब के गाँव के भोले-भाले अनपढ़ गरीब लोगों को ठग रहे है॔ ।
🚩अब रावण का भी इतिहास पढ़िए। रावण कोई द्रविड़ देश का अनार्य राजा नहीं था। लंकापति रावण सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र था। वह महान शिव भक्त , महापंडित और प्रकाण्ड विद्वान भी था... जो कि वेदों की शिक्षा को भूलकर गलत रास्ते पर चल पड़ा था। जिसकी सजा श्री रामचंद्र जी ने उसे दी। फिर किस आधार पर रावण को कुछ नवबौद्ध, अम्बेडकरवादी अपना पूर्वज बताते हैं? कोई आधार नहीं। केवल कोरी कल्पना मात्र है...वह भी साजिशों में सनी हुई।
🚩दक्षिण भारत, द्रविड़ देश नामक कोई भिन्न प्रदेश नहीं था। बल्कि यह श्री राम के पूर्वज राजा इक्ष्वाकु का ही क्षेत्र था। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड का प्रमाण देखिये। श्री राम बाली से कहते हैं👇
इक्ष्वाकूणामीयं भूमि स:शैल वन कानना।
मृग पक्षी मनुष्याणां निग्रहानु ग्रहेष्वपि।।
अर्थात्...
यहां भगवान श्र राम कह रहे हैं, "वन पर्वतों सहित यह भूमि इक्ष्वाकु कुल के राजाओं की अर्थात हमारी है। अत: यहां के वन्य पशु, पक्षियों और मनुष्यों को दंड देने और या उनपर अनुग्रह करने में हम समर्थ है॔।"
रामायण में वर्णित बाली, सुग्रीव और रावण ये सभी पात्र भी आर्य ही थे...इसका प्रमाण पढ़िए-👇
आज्ञापयतदा राजा सुग्रीव: प्लवगेश्वर:।
औध्वर्य देहीकमार्यस्य क्रियतामानुकूलत:।।
अर्थात यहां सुग्रीव बाली के अंतिम संस्कार के लिए आदेश दे रहा है। कहता है इस आर्य का अंतिम संस्कार आर्योचित रीती से किया जाये।
रावण राम के साथ युद्ध में घायल हो गया तो उसका सारथी उसे युद्धक्षेत्र से बाहर ले गया। होश आने पर रावण उसे दुत्कारते हुए कहता है कि👇
त्वयाद्य: हि ममानार्य चिरकाल मुपार्जितम।
यशोवीर्य च तेजश्च प्रत्ययश्च विनाशिता:।।
अर्थात हे अनार्य! तूने चिरकाल से उपार्जित मेरे यश, वीर्य, तेज और स्वाभिमान को नष्ट कर दिया। यहाँ रावण क्रोध से भरकर अनार्य शब्द का प्रयोग कर रहा है। इससे यही सिद्ध हुआ कि वह अपने आपको श्रेष्ठ अर्थात् आर्य मानता था।
🚩रावण आर्य कुल में उत्पन्न होने के पश्चात भी अपने बुरे कर्मों के कारण अनार्य हो चुका था। रावण विलासी राजा बन चुका था। अनेक देश - विदेश की सुन्दरियां उसके महल में थीं। हनुमान अर्धरात्रि के समय माता सीता को खोजने के लिए महल के उन कमरों में घूमें जहाँ रावण की अनेक स्त्रियां सोई हुई थी। नशा कर सोई हुई स्त्रियों के उथले वस्त्र देखकर हनुमान जी कहते है।
कामं दृष्टा मया सर्वा विवस्त्रा रावणस्त्रियः ।
न तु मे मनसा किञ्चद् वैकृत्यमुपपद्यते ।।
अर्थात - मैंने प्रसुप्तावस्था में शिथिलवस्त्रा रावण की स्त्रियों को देखा है, किन्तु इससे मेरे मन में किञ्चन्मात्र भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ।
सब कक्षों में घूमकर विशेष-विशेष लक्षणों से हनुमान जी ने यह निश्चिय किया कि इनमें से सीता माता कोई नहीं हो सकती।
ऐसा निश्चय हनुमान जी ने इसलिए किया , क्यूंकि वो जानते थे , कि माता सीता महान पतिव्रता और चरित्रवान स्त्री है। न की रावण और उसकी स्त्रियों के समान भोगवादी है। अंततः माता सीता उन्हें अशोक वाटिका में निरीह अवस्था में मिलीं।
🚩अगर आपका पूर्वज शराबी, व्यभिचारी, विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी हो तो आप उसके गुण-गान करेंगे या निंदा !?
🚩स्पष्ट है , कि आप मर्यादावश उसकी निंदा न भी करेंगे तो कम से कम उसकी पूजा भी न कर सकेंगे...
और उसे अपना आदर्श न बनाकर , उसके कृत्यों की आलोचना और तिरस्कार जरूर करेंगे।
बस हम यही तो कर रहे हैं। यही सदियों से दशहरे पर होता आया है। रावण का पुतला जलाने का भी यही सन्देश है, कि पाप कर्म का सदैव यही परिणाम होता है।
🚩एक ओर वात्सलय के सागर, सदाचारी, आज्ञाकारी, पत्नीव्रती, शूरवीर, मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम हैं , तो दूसरी ओर शराबी, व्यभिचारी, भोगी , विलासी, अपहरणकर्ता, चरित्रहीन, अत्याचारी रावण है।
पूज्य कौन और त्याज्य कौन इतना तो साधारण बुद्धि वाले भी समझ सकते हैं!
🚩कुछ लोग क्यों नहीं समझना चाहते , यह समझ के परे है !! साफतौर पर जानबूझकर ही यह सब किया जा रहा है ।
यह घमासान अब बंद होना ही चाहिए ...
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