Wednesday, May 9, 2018

आयुर्वेदिक अंडे की हकीकत जानकर आप भी रह जायेंगे हैरान

Knowing the reality of ayurvedic egg, you will also be surprised
🚩जो अंडे अभी तक सिर्फ अंडे थे जिसे शाकाहार कि श्रेणी में नहीं रखा जा रहा था अब वो अचानक से आयुर्वेदिक हो गये। अंडे के फायदे, नुकसान और उपयोग को लेकर भले ही सबके अपने-अपने दावे और तर्क हों, पर सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुक्कुट अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के अनुसार उनके अंडे को आयुर्वेदिक इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इस प्रक्रिया में मुर्गियों को जो आहार दिया जाता है उसमें आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है। मतलब मुर्गियों को मुनक्खा, किशमिश बादाम और छुआरे आदि परोसे जा रहे तो उनसे पैदा होने वाले अंडे आयुर्वेदिक कहे जा रहे है|

🚩असल में आयुर्वेदिक अण्डो कि बिक्री शुरू भी हो चुकी है। तेलगु समाचार पत्र इनाडु में प्रकाशित खबर कि माने तो आयुर्वेदिक अंडे कि बिक्री तेलगु भाषी कई राज्यों के साथ बेंगलुरु में भी कि जा रही है। सौभाग्य पोल्ट्री  द्वारा इसे आयुर्वेदिक बताकर दक्षिण भारत में बेचा जा रहा है। बात सिर्फ अंडे तक सीमित नहीं हैं समाचार पत्र का दावा है कि अंडे ही नहीं बल्कि आयुर्वेदिक मुर्गियों का मीट भी हैदराबाद में उपलब्ध है।
🚩इसे कुछ दुसरे तरीके से भी समझा जा सकता हैं कि अभी तक मुर्गियों से ज्यादा से ज्यादा अंडे प्राप्त करने के लिए स्टेरॉयड्स, हार्मोन्स और एंटी-बायोटिक्स (प्रतिजैविक पदार्थ) का इंजेक्शन दिया जाता है। लेकिन इन मुर्गियों को दिया जाने वाला आहार पूरी तरह आयुर्वेदिक है तो उनके अनुसार अंडे भी आयुर्वेदिक हो गये और उसका मांस भी।
🚩बकरी भैंस भी घास-पात खेतों में खड़ी जड़ी बूटियां खाती है तो इस तरह उसका मांस भी आयुर्वेदिक हो जायेगा? क्या ऐसा हो सकता है कि कोई महिला शाकाहारी हैं। उसका खान-पान प्राकृतिक है और  बच्चें को आयुर्वेदिक बच्चा कहा जाये ? हो सकता है कल कहा जाये कि काजू, मखाने, पिस्ता खाने वाली और शरबत पीने वाली गाय का बीफ भी आयुर्वेदिक है? क्योंकि जब बाजार पर पूंजीवाद हावी हो जाएँ तो आगे ऐसी खबरें लोगों के लिए सुनना और पढना कोई नई बात नहीं रह जाएगी।
🚩आयुर्वेद के संदर्भ में बात जब होती है तो मन में अपने आप उसकी महानता का आध्यात्मिक और धार्मिक भाव पैदा हो जाता है। विश्व कि सभी संस्कृतियों में अपने देश कि संस्कृति न सिर्फ प्राचीन ही है बल्कि सर्वश्रेष्ठ और बेजोड़ भी है। हमारी सभ्यता संस्कृति और सभ्यता के मूल स्रोत और आधार हैं वेद, जो कि मानव जाति के पुस्तकालय में सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं और इन्हीं कि एक शाखा को आयुर्वेद भी कहा जाता है। आयुर्वेद के जनक के तौर पर जिन तीन आचार्यो कि गणना मुख्यरूप से होती है उनमें महर्षि चरक, सुश्रुत के बाद महर्षि वाग्भट का नाम आता है। इस ग्रन्थ का निर्माण वेदों और ऋषियों के अभिमतों तथा अनुभव के आधार पर किया गया है। कहा जाता है इस ग्रन्थ के पठन-पाठन, मनन एवं प्रयोग करने से निश्चय ही दीर्घ जीवन आरोग्य धर्म, अर्थ, सुख तथा यश कि प्राप्ति होती है।
🚩आयुर्वेद का ज्ञान बहुत ही विशाल है। इसमें ही ऐसी प्रणाली का ज्ञान है, जो मानव को निरोगी रहते हुए स्वस्थ लम्बी आयु तक जीवित रहने की लिये मार्ग प्रशस्त कराता है जबकि मांसाहारी भोजन में तमतत्त्व की अधिकता होने के कारण मानव मन में अनेक अभिलाषाऐं एवं अन्य तामसिक विचार जैसे लैंगिक विचार, लोभ, क्रोध आदि उत्पन्न होते हैं। शाकाहारी भोजन में सत्त्व तत्त्व अधिक मात्रा में होने के कारण वह आध्यात्मिक साधना के लिए पोषक होता है।
🚩आयुर्वेद के आध्यात्मिक संदर्भ में यदि गहराई से झांके तो अंडे खाने से मन पूरी तरह से आध्यात्मिकता प्राप्त करने का विरोध करता है। क्योंकि आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण से आयुर्वेद कि अपने आप में एक पवित्रता है! आयुर्वेद के अनुसार अंडे प्राकृतिक है खाद्य पदार्थ नहीं हैं। अंडे मुर्गियों के बच्चों कि तरह हैं  क्या किसी का बच्चा खाना आध्यात्म कि दृष्टि से पवित्र हो सकता है? आयुर्वेद में अपवित्र खाद्य पदार्थों की अनुमति नहीं है! और कोई मुर्गी स्वाभाविक रूप से अंडे नहीं देती है अंडा पाने के लिए मुर्गियों के कुछ हार्मोनों को उत्तेजित करने के लिए इंजेक्ट किया जाता है जो कि निसंदेह अप्राकृतिक है।
🚩भोजन के लिए बेचे जाने वाले अंडे आध्यात्मिकता को विकसित करने के बजाय मुनाफा कमाने के लिए आयुर्वेद के नाम का सिर्फ घूंघट ओढ़ाया जा रहा हैं। आयुर्वेद के नाम पर संतुलित भोजन बताकर बेचने वाले वेदो उपवेदो का अपमान ही नहीं बल्कि पाप भी कर रहें है। मांस के समान अंडे तामसिक खाद्य पदार्थ है आयुर्वेद अंडे खाने पर रोक लगाता है क्योंकि यह शारीरिक और भावनात्मक उग्रता को बढ़ाता है। आयुर्वेद में जब कहीं भी मांस को भोजन या दवा कि श्रेणी में नहीं रखा है तो आयुर्वेद में अंडे कहाँ से आ गये?... विनय आर्य
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Tuesday, May 8, 2018

खुलासा : मुहम्मद अली जिन्ना , सर सैयद खान और एएमयू कि जाने हकीकत

🚩आप सभी में से बहोत कम लोगो को ही शायद यह पता होगा कि पाकिस्तान में जिन्ना ,इकबाल और सर सैय्यद अहमद खान तीनों व्यक्ति ‘पाकिस्तान के जनक’ के रूप में जाने जाते हैं।
🚩वहां के स्कूली पाठ्यक्रमों में तीनों हिंदू-मुस्लिम अलगाववाद पर बल देने और पाकिस्तान निर्माण के लिए आवश्यक विभाजनकारी मानसिकता को प्रोत्साहन देने वाले नेताओं के रूप में वर्णित हैं।
Revealed: It is true that Muhammad
 Ali Jinnah, Sir Syed Khan and AMU

🚩जिन्ना और इकबाल प्रारंभ में जहां स्वतंत्रता के आंदोलन से जुड़े और बाद में औपनिवेशिक प्रपंच का महत्वपूर्ण हिस्सा बने वहीं सैयद अहमद खान ने 19वीं शताब्दी के मध्य के बाद भारत में ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत का समर्थन किया था ।
🚩पाकिस्तान ने अपनी अलग पहचान को रेखांकित करने के लिए गांधीजी, नेताजी शुभासचंद्र बोस या फिर भगत सिंह के सम्मान में अपने किसी भी सार्वजनिक भवन, संस्था या फिर सड़क का नाम नहीं रखा है।
🚩वहां सैयद अहमद खान के नाम पर कई संस्थान और भवन हैं जिनमें कराची का सर सैयद अहमद इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सर सैयद सरकारी कॉलेज और रावलपिंडी स्थित प्रख्यात एफजी सर सैयद अहमद कॉलेज आदि शामिल हैं।
🚩सर सैयद अहमद कि 200वीं जयंती पर पाकिस्तान ने उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया और आज भारत में उनकी विरासत को राष्ट्रवाद का प्रतीक बताया जा रहा है। सैयद अहमद खान के भ्रामक और मिथकीय महिमामंडन कि पृष्ठभूमि में सत्य कि खोज आवश्यक है।
🚩17 अक्टूबर 1817 को जन्मे सैयद अहमद खान 1838 में ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़े। अंग्रेजो का विश्वास जीतकर वह 1867 में एक न्यायालय के न्यायाधीश भी बने और 1876 में सेवानिवृत्त हुए। अप्रैल 1869 में सैयद अहमद खान अपने बेटे के साथ इंग्लैंड गए, जहां छह अगस्त को उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया’ से सम्मानित किया गया। 1887 में उन्हें लॉर्ड डफरिन द्वारा सिविल सेवा आयोग के सदस्य के रूप में भी नामित किया गया। इसके अगले वर्ष उन्होंने अंग्रेजो के साथ राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देने और अंग्रेजी शासन में मुस्लिम भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अलीगढ़ में ‘संयुक्त देशभक्त संघ’ कि स्थापना की। खान बहादुर के नाम से प्रख्यात सैयद अहमद कि वफादारी से खुश होकर ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें वर्ष 1898 में नाइट की उपाधि भी दी।
🚩वर्ष 1885 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कि स्थापना के साथ देश में पूर्ण स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक व्यवस्था कि मांग उठनी शुरू हुई तब उन्होंने हिंदू बनाम मुस्लिम, हिंदी बनाम उर्दू, संस्कृत बनाम फारसी का मुद्दा उठाकर मुसलमानों कि मजहबी भावनाओं का दोहन किया। उन्होंने यह विचार स्थापित किया कि मुसलमान का दैवीय कर्तव्य है कि वे कांग्रेस से दूर रहें। अपने इस अभियान में वह काफी हद तक सफल भी हुए।
🚩ऐसा अनुमान है कि उस कालखंड में देश के बहुत कम मुस्लिम ही गांधीजी के अखंड भारत के सिद्धांत के साथ खड़े रहे। शेष मुस्लिम समाज कि सहानुभूति पाकिस्तान के साथ थी। यह ठीक है कि उनमें से अधिकांश भारत में ही रह गए।
16 मार्च, 1888 को मेरठ में दिए सैयद अहमद खान के भाषण ने भारत में मजहब आधारित विभाजन के वैचारिक दर्शन का शिलान्यास कर दिया।
🚩उनके अनुसार,
सोचिए, यदि अंग्रेज भारत में नहीं हों तो कौन शासक होगा? क्या दो राष्ट्र-हिंदू और मुसलमान एक ही सिंहासन पर बराबर के अधिकार से बैठ सकेंगे? निश्चित रूप से नहीं। आवश्यक है कि उनमें से एक-दूसरे को पराजित करें। जब तक एक कौम दूसरे को जीत न ले तब तक देश में कभी शांति स्थापित नहीं हो सकती। मुस्लिम आबादी हिंदुओं से कम हैं और अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मुस्लिम तो और भी कम, किंतु उन्हें कमजोर नहीं समझा जाए। वे अपने दम पर मुकाम पाने में सक्षम हैं। ’
🚩सैयद अहमद के अनुसार, सात सौ वर्षों तक हमने जिन पर शासन किया उनके अधीन रहना हमें अस्वीकार्य है। अल्लाह ने कहा है कि मुसलमानों का सच्चा मित्र केवल ईसाई ही हो सकता है, अन्य समुदाय के लोगों से दोस्ती संभव नहीं है। हमें ऐसी व्यवस्था को अपनाना चाहिए जिससे वे हमेशा के लिए भारत में राज कर सकें और सत्ता कभी भी ‘बंगालियों’ के हाथों में न जाए।’ वह कांग्रेसियों को अक्सर ‘बंगाली’ कहकर संबोधित करते थे क्योंकि उस समय कांग्रेसी नेतृत्व के बड़े हिस्से पर बंगाली काबिज थे।
🚩अपने एजेंडे के तहत सर सैयद अहमद खान ने 1875 में एक शैक्षणिक संस्था कि शुरुआत कि जो बाद में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज और अंतत: वर्ष 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय यानी एएमयू के रूप में स्थापित हुआ। यह एक तथ्य है कि मोहम्मद अली जिन्ना ने वर्ष 1941 में इस विश्वविद्यालय को ‘पाकिस्तान की आयुधशाला’ की संज्ञा दी थी।
🚩इसी तरह 31 अगस्त 1941 को एएमयू छात्रों को संबोधित करते हुए मुस्लिम लीग के नेता लियाकत अली खान ने कहा था
‘हम मुस्लिम राष्ट्र की स्वतंत्रता कि लड़ाई जीतने के लिए आपको उपयोगी गोला-बारूद के रूप में देख रहे हैं।’
🚩बाद में लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने थे।
🚩वर्ष 1954 में आगा खान ने अलीगढ़ के छात्रों के लिए कहा था
‘सभ्यता के इतिहास में विश्वविद्यालय देश के बौद्धिक और आध्यात्मिक जागरण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। हम यह गौरव के साथ दावा कर सकते हैं कि संप्रभु पाकिस्तान का जन्म अलीगढ़ के मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुआ।
सैयद अहमद खान मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा का प्रसार इसलिए चाहते थे ताकि मुस्लिम समाज औपनिवेशिक साम्राज्य कि बेहतर तरीके से खिदमत कर सके और अंग्रेजो के साथ मिलकर हिंदुओं के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाए।
🚩सर सैयद के समय से लेकर जिन्ना के समय तक मुसलमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हिंदू पार्टी कहकर आलोचना करते रहे। कांग्रेस ने मुसलमानों कि आम भागीदारी अल्प रही। 1946 का अंतरिम चुनाव ने मुस्लिम मतदाताओं का मुस्लिम लीग के प्रति भारी समर्थन दर्शाया। मुस्लिम लीग साधारणत: अग्रेजों का वफादार रहा। फिर भी क्या कारण है कि मुस्लिम लीग स्वतंत्र भारत में कई दशकों तक यह मुसलमानों का सर्वाधिक प्रिय पार्टी बनी रही। यह बात तय हैं कि स्वतंत्रता-सह-बंटवारा कि सुबह मुसलमान हिंदुओं के प्रति कोई विशेष प्रेम विकसित नहीं कर पाए। कांग्रेस शासन के दौरान अनेक बड़े दंगे भारत को अपने चपेट में लेता रहा। इस विरोधाभास का उत्तर तब मिलता है जब हम सुविधा के गठजोड़ कि तरफ देखें।
एक तथ्य यह भी है कि अल्पसंख्यक दर्जा के बिना ही यूनिवर्सिटी के 90 प्रतिशत छात्र और शिक्षक मुस्लिम हैं।
🚩फखरूद्दीन अली अहमद के जीवनीकार रहमानी बंटबारे में अलीगढ़ कि भूमिका के बारे में कहते हैं, ‘… 1940 के बाद मुस्लिम लीग ने अपने राजनैतिक सिध्दांतों के प्रसार के लिए इस यूनिवर्सिटी को एक सुविधाजनक और उपयोगी मीडिया के रूप में इस्तेमाल किया और द्विराष्ट्र सिध्दांत का जहरीली बीज बोया। यूनिवर्सिटी के अध्यापक व छात्र सारे देश में फैल गए और मुसलमानों को यह समझाने कि कोशिश की कि पाकिस्तान बनने का उद्देश्य क्या है और उससे फायदे क्या हैं।
🚩अक्टूबर 1947 में ऐसा पाया गया कि पाकिस्तानी सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से अपनी सेना के लिए अफसरों कि नियुक्ति की। उस समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को यूनिवर्सिटी के उप-कुलपति को आदेश देना पड़ा कि कोई पाकिस्तानी अफसर यूनिवर्सिटी न आने पाए। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संदिग्ध इतिहास के बावजूद सेक्युलर गुट कानून बनवाने में व्यस्त हैं कि मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए।
🚩आगा खां ने 1954 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों को निम्न शब्दों में भेंट दी:
‘प्राय: विश्वविद्यालय ने राष्ट्र के बौध्दिक व आध्यात्मिक पुनर्जागरण के लिए पृष्ठभूमि तैयार की है।…अलीगढ़ भी इससे भिन्न नहीं है। लेकिन हम गर्व के साथ दावा कर सकते हैं कि यह हमारे प्रयासों का फल है न कि किसी बाहरी उदारता का। निश्चित तौर पर यह माना जा सकता है कि स्वतंत्र, सार्वभौम पाकिस्तान का जन्म अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ही हुआ था।’
🚩16 मार्च 1888 को मेरठ में दिए गए सर सैयद अहमद के भाषण का संक्षिप्त उल्लेख जरूरी है:
क्या इन परिस्थितियों में संभव है कि दो राष्ट्र-मुसलमान व हिंदू-एक ही गद्दी पर एक साथ बैठे और उनकी शक्तियां बराबर हों। ज्यादातर ऐसा नहीं। ऐसा होगा कि एक विजेता बन जाएगा और दूसरा नीचे फेंक दिया जाएगा। ऐसी उम्मीद रखना कि दोनों बराबर होंगे, असंभव और समझ से परे है। साथ ही इस बात को भी याद रखना चाहिए कि हिंदुओं कि तुलना में मुसलमानों की संख्या कम है। हालांकि उनमें से काफी कम लोग उच्च अंग्रेजी शिक्षा हासिल किए हुए हैं लेकिन उन्हें कमजोर व महत्वहीन नहीं समझना चाहिए। संभवत: वे अपने हालात स्वयं संभाल लेंगे। यदि नहीं, तो हमारे मुसलमान भाई, पठान, पहाड़ों से असंख्य संख्या में टूट पड़ेंगे और उत्तरी सीमा-प्रांत से बंगाल के आखिरी छोर तक खून की नदी बहा देंगे। अंग्रेजों के जाने के बाद कौन विजेता होगा यह ईश्वर कि इच्छा पर निर्भर करेगा। लेकिन जब तक एक राष्ट्र दूसरे को नहीं जीत लेगा और उसे आज्ञाकारी नहीं बना लेगा, तब तक शांति स्थापित नहीं हो सकेगी। यह निष्कर्ष ऐसे ठोस प्रमाणों पर आधारित है कि कोई इसे इनकार नहीं कर सकता।
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Monday, May 7, 2018

दुर्भाग्यपूर्ण : भारतवासी महान परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मदिन ही भूल गए

07 May 2018

🚩परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी ने चिकित्साशास्त्र की पढाई पूरी करने के पश्‍चात वर्ष 1971 से 1978 तक ब्रिटेन में उच्च शिक्षा प्राप्त कर, सम्मोहन उपचार-पद्धति के विषय में शोध किया । इस शोध में उन्होंने, अनुचित कृत्यों का बोध तथा उनपर नियंत्रण (मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया पद्धति; साइको-फीडबैक टेक्निक), अनुचित प्रतिक्रियाआें के विरुद्ध उचित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करना (प्रतिक्रिया प्रतिस्थापना पद्धति; रिस्पॉन्स सब्स्टीट्यूशन टेक्निक), घटना का मन में पूर्वाभ्यास करना (सम्मोहक विसुग्राहीकरण पद्धति; हिप्नोटिक डिसेंसिटाइजेशन टेक्नीक); आदि सम्मोहन-उपचार से संबंधित नई पद्धतियों को प्रस्तुत किया ।
Unfortunate: India's greatest superhero guru,
Dr. Athavaleji's birthday was forgotten

🚩परात्पर गुरु डॉ आठवले जी ने बताया कि ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं अपितु संपूर्ण मानवजाति के लिए ही आवश्यक है । हिन्दू राष्ट्र अर्थात ‘आदर्श राष्ट्र’ ही है । इसलिए उसका लाभ भारत की जनता को तो होगा ही; परंतु साथ ही हिन्दू राष्ट्र के कारण विश्व में हिन्दू धर्म का प्रसार करना सरल होगा । इससे संपूर्ण मानव जाति को अध्यात्म एवं साधना ज्ञात होगी, जिससे उनकी आध्यात्मिक प्रगति मे भी सहायता होगी । फलस्वरूप पृथ्वी पर सात्त्विक वातावरण उत्पन्न होगा एवं संपूर्ण मानवजाति सुखी होगी !’ 

🚩परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हिन्दू राष्ट्र के प्रखर समर्थक हैं । वर्ष 1998 से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ग्रंथसंकलन; सनातन प्रभात के लिए राष्ट्र और धर्म संबंधी लेखन करना; विविध संत, संप्रदाय, हिन्दुत्वनिष्ठ, देशभक्त और सामाजिक कार्यकर्ताआें का दिशादर्शन करना; ब्राह्मतेज से युक्त संत बनाना आदि माध्यमों से अथक रूप से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य कर रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के विचारों से प्रेरित होकर 7 अक्टूबर 2002 को हिन्दू जनजागृति समिति की स्थापना हुई । धर्मशिक्षा, धर्मजागृति, धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा, हिन्दू-संगठन आदि द्वारा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करना, समिति का ध्येय है ।

*🚩धर्मशिक्षा*

🚩हिन्दुओं की वर्तमान दु:स्थिति के पीछे धर्मरक्षा का अभाव यही मूल कारण है ! प्रत्येक हिन्दू में धर्माभिमान जागृत होने हेतु धर्मशिक्षा आवश्यक है । हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देकर उसके द्वारा धर्माचरण कर उन्हें संगठित करने की आवश्यकता है। इसलिए हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा धर्मशिक्षा वर्ग का आयोजन किया जाता है । हिन्दुओं की भावी पीढी को सुसंस्कारित और धर्मशिक्षित बनाने के लिए हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से बालसंस्कारवर्ग लिए जाते हैं ।

*🚩सनातन संस्था की स्थापना*

🚩परात्पर गुरु डॉ. आठवले को अध्यात्म की श्रेष्ठता ज्ञात होनेपर उन्होंने अध्यात्मप्रसार के लिए अपने सद्गुरु परम पूज्य भक्तराज महाराज के आशीर्वाद से सनातन संस्था की स्थापना की ।

*🚩हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के प्रेरणास्रोत*

🚩परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए सनातन प्रभात नामक नियतकालिकों का प्रकाशन आरंभ किया है । उनके मार्गदर्शन से अनेक लोग, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए संगठित होकर कार्य कर रहे हैं । हिन्दुत्ववादी संगठनों को भी उनसे प्रेरणा मिलती है ।

*🚩आध्यात्मिक शोध* 

🚩परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने विपुल शोधकार्य किया है; उदाहरणस्वरूप, आध्यात्मिक कष्ट का आध्यात्मिक उपचार; हिन्दुआें के आहार, वेशभूषा, धार्मिक कृत्य आदि से व्यक्ति को होनेवाले लाभ इत्यादि ।

*🚩अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की स्थापना*

🚩प्राचीन काल में तक्षशिला, नालंदा आदि विश्‍वविद्यालयों के माध्यम से वेद, शास्त्र, कला, तत्त्वज्ञान आदि का प्रचार होता था । अब उस धार्मिक ज्ञान का प्रसार करने के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में अध्यात्म विश्‍वविद्यालय का निर्माण किया जा रहा है ।
पूरे संसार में भौतिक शिक्षा देनेवाले अनेक विद्यापीठ हैं, परंतु परिपूर्ण अध्यात्मशास्त्र और ईश्‍वरप्राप्ति की शिक्षा देनेवाला एक भी विद्यापीठ नहीं है । इसलिए 22.3.2014 को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने गोवा में ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ स्थापित किया है ।

🚩इतने महान कार्य करने वाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को आज देश ने भुला दिया लेकिन जो हमे चरित्रहीन बनाते है ऐसे हीरो-हीरोइन के जन्मदिन याद रखते है, हम ही हमारे धर्म की खाई खोद रहे है और देश को पतन की तरफ ले जा रहे है ।

🚩आज़ाद भारत की तरफ से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मदिन की खूब-खूब हार्दीक शुभकामनाएं ।

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