Wednesday, September 19, 2018

क्या इस देश में बहुसंख्यक होना अपराध है ? : डॉ विवेक आर्य

19 September 2018

🚩आजकल हामिद अंसारी, पूर्व उपराष्ट्रपति का आपने विदाई भाषण में दिया गया बयान कि भारत में मुस्लिम भयभीत हैं, चर्चा में है । उनका यह बयान कांग्रेस की अल्पसंख्यक के नाम पर बरगलाने की पुरानी नीति का अनुसरण मात्र है । भारत के मुसलमानों को इतना भयभीत करो कि वह सेकुलरता के नाम पर कांग्रेस को वोट करें । उनकी इसी नीति का परिणाम यह निकला की देश के हिन्दुओं ने संगठित होकर भाजपा को वोट दिया । जिससे कांग्रेस की बुरी दशा हो गई । इस लेख का उद्देश्य राजनीति नहीं अपितु यह दर्शना है कि मुसलमानों को रिझाने के नाम पर हमारे राजनेताओं ने क्या-क्या किया । पढ़ने वालों की आंखें खुल जाएगी । हमारे संविधान में मुसलमान, ईसाई , सिख, जैन , बौद्ध और पारसी को मुख्य रूप से अल्पसंख्यक माना गया है । यह परिभाषा गलत है । कश्मीर और उत्तरपूर्वी राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं । फिर भी उसे कोई अल्पसंख्यक वाली सुविधा नहीं मिलती, जबकि एक मुसलमान को कश्मीर में और एक ईसाई को नागालैंड में बहुसंख्यक होते हुए भी सभी अल्पसंख्यक वाली सुविधाएँ मिलती है । इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि अल्पसंख्यक के नाम पर मलाई केवल गैर हिन्दुओं के लिए है । पाठक सोच रहे होंगे कि मैं इसे मलाई क्यों बोल रहा हूँ । आप पढ़ेंगे तो आपकी आंखें खुली की खुली रह जाएंगी ।
Is crime in the country to be a majority? : Dr. Vivek Arya


🚩अल्पसंख्यक के नाम पर सुविधा की सूची:- 

🚩1. एक हिन्दू अगर कोई शिक्षण संस्थान खोलता है तो उसे उस संस्थान की 25% सीटों को अल्पसंख्यक वर्ग के लिए आरक्षित रखना होता है । जहाँ पर अल्पसंख्यक वर्ग को नाम मात्र की फीस देनी होती है, जबकि हिन्दू छात्रों को भारी भरकम फीस देनी पड़ती है । अर्थात अल्पसंख्यकों को हिन्दू अपने जेब से पढ़ाता है ।

🚩2. किसी भी अल्पसंख्यक को शिक्षण संस्थान खोलने के लिए सरकार 95% तक आर्थिक सहयोग करती है, जबकि किसी हिन्दू को अपने संस्थान को खोलने के लिए आसानी से लोन तक नहीं मिलता । अल्पसंख्यक संस्थान sc/st/obc के अनुपात में शिक्षकों की भर्ती के लिए किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं है, जबकि एक हिन्दू संस्थान को सरकारी नियम के अनुसार अध्यापकों की भर्ती इसी अनुपात में करनी होती है । अर्थात किसी भी मुस्लिम या ईसाई संस्थान के 100% शिक्षक मुस्लिम या ईसाई हो सकते हैं । वहां पर किसी भी हिन्दू शिक्षक को कभी नौकरी पर रखने के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता । यह सरकारी सुविधा National Commission for Minority Education Institutions (NCMEI) के अंतर्गत सरकार द्वारा दी जाती है । UPA सरकार के कार्यकाल में हज़ारों मुस्लिम या ईसाई संस्थानों को अनुमति दी, जबकि हिन्दू संस्थाओं को अनुमति के लिए दफ्तरों के चक्कर के चक्कर काटने पड़े ।

🚩3. 2014-2015 में 7,500,000 अल्पसंख्यक छात्रों को कक्षा पहली से दसवीं तक 1100 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गया ।

4. इसी काल में 11वीं से पीएचडी तक 905,620 अल्पसंख्यक छात्रों को 501 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिए गए ।

🚩5. इसी काल में टेक्निकल शिक्षा के लिए 138,770 अल्पसंख्यक छात्रों को 381 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिए गए ।

6. अल्पसंख्यक छात्रों को प्रोफेशनल कोर्स की कोचिंग के लिए 1500 से 3000 रुपये का अनुदान दिया गया । वर्तमान सरकार ने यह अनुदान दुगुना कर दिया है ।

🚩7. 2015-2016 में मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फ़ेलोशिप के नाम पर 7,500,000 अल्पसंख्यक छात्रों को पीएचडी और M.Phil के लिए 55 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गया ।

8. UPSC और SPSC के prelim में प्रवेश पाने पर 50000 से 250000 रुपये तक का सहयोग अल्पसंख्यक छात्रों को दिया गया ।

🚩9. पढ़ो-पढ़ाओ अभियान के अंतर्गत विदेश में शिक्षा के लिए पीएचडी और M.Phil के लिए 55 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिए गए ।

10. नई मंजिल अभियान के अंतर्गत मोदी सरकार ने मदरसों में पढ़ने वाले 25000 बच्चों की शिक्षा के लिए 155 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिए ।

🚩11. बेगम हजरत महल छात्रवृति योजना के अंतर्गत कक्षा 11 वीं और 12 वीं की 48000 छात्राओं को 57 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिए गए ।

12. बैंक से लोन व्यवस्था में भी अल्पसंख्यक को विशेष अधिकार प्राप्त है । रोजगार के लिए 30 लाख तक लोन केवल 8% (पुरुषों के लिए) और 6% (महिलाओं के लिए) दिया जाता है ।

🚩13. शिक्षा लोन व्यवस्था में भी अल्पसंख्यक को विशेष अधिकार प्राप्त है । प्रोफेशनल शिक्षा के लिए देश में 20 लाख और विदेश में 30 लाख का लोन केवल 4% (छात्रों के लिए) और 2% (छात्राओं के लिए) दिया जाता है ।

14. इसके अतिरिक्त अल्पसंख्यक युवाओं को Vocational Training Scheme, Marketing Assistance Scheme, Mahila Samridhi Yojana and Grant in Aid Assistance scheme आदि योजनाओं के अंतर्गत विशेष लाभ दिया जाता है ।

🚩15. जिन जिलों में अल्पसंख्यक की जनसंख्या 20% से ऊपर है । उन्हें विशेष रूप से धन दिया जा रहा है । एक जिले में अगर कोई ब्लॉक ऐसा है जिसमें 25% से अधिक अल्पसंख्यक की जनसंख्या है, तो वे भी इस सुविधा के अंतर्गत आते हैं । ऐसे देश में 710 ब्लॉक और 196 जिलों का चयन केंद्र सरकार द्वारा 12 वीं पञ्च वर्षीय योजना के अंतर्गत किया गया है । इन जिलों पर सरकार अल्प संख्यक विकास के नाम पर हर वर्ष 1000 करोड़ रुपये खर्च करती है । सोचिए अगर हिन्दू बाहुल्य गरीब पिछड़ा हुआ जिला या ब्लॉक है तो उसे केवल हिन्दू होने के कारण यह लाभ नहीं मिलेगा ।

16. सीखो सिखाओ, उस्ताद, नई रोशनी, हमारी धरोहर, अल्पसंख्यक महिलाओं और वक्फ बोर्ड के लिए विशेष रूप से चलाई गई योजनाएं है ।

🚩17. हिन्दुओं को इस प्रकार की किसी योजना का कोई लाभ नहीं मिलता । इसके विपरीत सरकार द्वारा हर समृद्ध और बड़े हिन्दू मंदिरों का अधिग्रहण कर लिया गया है । वहां से प्राप्त होने वाला धन और दान सरकार अपने कोष में पहले जमा करती है, फिर उसी धन को ईसाई चर्च और मस्जिद-मदरसों के विकास पर खर्च करती है । ईसाई चर्च और मदरसों को विदेशों से मिलने वाले धन पर सरकार का कोई हक नहीं है, क्योंकि अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों में सरकार हस्तक्षेप नहीं करती ।

18. हिन्दुओं के मनोबल को तोड़ने के लिए जल्लिकट्टु, दही-हांडी, होली, दिवाली आदि पर सरकार अपना हस्तक्षेप करना हक समझती है, जबकि बकरीद पर लम्बी चुप्पी धारण कर लेती हैं, क्योंकि अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों में सरकार हस्तक्षेप नहीं करती ।

🚩19. हज़ यात्रा पर दी जाने वाले सब्सिडी पहले 500 करोड़ थी। जिसे अटल बिहारी जी की सरकार से 1000 करोड़ कर दिया था, जबकि अमरनाथ आदि यात्रा पर विशेष कर सुविधा के नाम पर लगाया जाता है ।

20. इसके अतिरिक्त सच्चर आयोग के नाम पर मुस्लिम सांसद चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी के हों, सरकार पर सदा दबाव बनाने का कार्य करते हैं ।

🚩हम यह भी भूल गए कि 1947 में देश के ही मुसलमानों ने पाकिस्तान और बांग्लादेश इसी मानसिकता के चलते लिए थे कि मुसलमान कभी हिन्दू बाहुल्य देश में नहीं रह सकता । यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे देश के मुसलमानों की सेवा घर के जमाई के समान देश के हिन्दू कर रहे हैं । फिर भी 10 वर्ष तक उपराष्ट्रपति के पद पर बैठकर मलाई खाने के बाद भी देश का उपराष्ट्रपति का बयान यही दर्शाता है कि वे उसी मानसिकता के पोषक है, जिसने इस देश का विभाजन करवाया था ।

🚩यह लेख पढ़कर मेरे मन में एक ही विचार आता है कि क्या इस देश में बहुसंख्यक होना अपराध है ?

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Tuesday, September 18, 2018

वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाये थे झूठे केस में, 24 साल बाद मिला न्याय

18 September 2018
http://azaadbharat.org
🚩इसरो के वैज्ञानिक नंबीनारायणन की कहानी देश के हर नागरिक को जाननी जरूरी है क्योंकि हमारे देश में इतनी भ्रष्ट व्यवस्था है कि जो भी व्यक्ति देशहित में कार्य करना शुरू कर देता है तो उसके खिलाफ राष्ट्रविरोधी ताकतों के इशारे पर देश मे बैठे गद्दारों को मोहरा बनाकर, उनके खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो जाता है उनके कार्य में अनेक विघ्न डाले जाते हैं । आखिरकार उनको बदनाम करके जेल भिजवाया जाता है ।
🚩वैज्ञानिक नंबी नारायणन को 1994 में केरल पुलिस ने जासूसी और भारत की रॉकेट टेक्नोलॉजी दुश्मन देश को बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया था ।
Scientist Nambi Narayanan was framed
 in false case, found after 24 years justice

🚩नंबी नारायणन का यह मामला कई दिन अखबारों की सुर्खियों में रहा था, मीडिया ने बिना जांचे-परखे पुलिस की थ्योरी पर भरोसा करते हुए, उन्हें देश का गद्दार मान लिया था ।
🚩गिरफ्तारी के समय नंबी नारायणन रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने के बेहद करीब पहुंच चुके थे ।
इस गिरफ्तारी ने देश के पूरे रॉकेट और क्रायोजेनिक प्रोग्राम को कई दशक पीछे धकेल दिया था ।
उस घटना के करीब 24 साल बाद इस महान वैज्ञानिक को अब जाकर इंसाफ मिला है ।
🚩नंबी नारायणन वैसे तो 1996 में ही आरोपमुक्त हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपने सम्मान की लड़ाई जारी रखी और अब 24 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ लगे सारे नेगेटिव रिकॉर्ड को हटाकर उनके सम्मान को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया है ।
🚩 चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने केरल सरकार को आदेश दिया है कि नारायणन को उनकी सारी बकाया रकम, मुआवजा और दूसरे लाभ दिए जाएं ।
🚩मुआवजे की यह रकम केरल सरकार देगी और इसकी रिकवरी उन पुलिस अधिकारियों से की जाएगी जिन्होंने उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाया, साथ ही सभी सरकारी दस्तावेजों में नंबी नारायणन के खिलाफ दर्ज प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया गया है ।
🚩सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें हुए नुकसान की भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती है, लेकिन नियमों के तहत उन्हें 50 लाख रुपये का भुगतान किया जाए । कोर्ट का आदेश सुनने के लिए 76 साल के नंबी नारायणन खुद कोर्ट में मौजूद थे ।
नंबी नारायण के खिलाफ लगे आरोपों की जांच सीबीआई से करवाई गई थी और सीबीआई ने 1996 में उन्हें सारे आरोपों से मुक्त कर दिया था I
🚩जांच में यह बात सामने आ गई कि भारत के स्पेस प्रोग्राम को डैमेज करने की नीयत से केरल की तत्कालीन वामपंथी सरकार ने नंबी नारायण को फंसाया था, जिसके कारण
क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित होने में देरी के चलते हमें अबतक लाखों डॉलर का नुकसान हो चुका है ।
🚩सीबीआई की जांच में ही इस बात के संकेत मिल गए थे कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एक अधिकारी के इशारे पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने नंबी को साजिश का शिकार बनाया, एक इतने सीनियर वैज्ञानिक को न सिर्फ गिरफ्तार करके लॉकअप में बंद किया गया, बल्कि उन्हें टॉर्चर किया गया कि वो बाकी वैज्ञानिकों के खिलाफ गवाही दे सकें ।
🚩यह सारी कवायद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने की नीयत से हो रही थी, ये वो दौर था जब भारत जैसे देश अमेरिका से स्पेस टेक्नोलॉजी करोड़ों रुपये किराये पर लिया करते थे । भारत के आत्मनिर्भर होने से अमेरिका को अपना कारोबारी नुकसान होने का डर था । जिसके लिए सीआईए ने वामपंथी पार्टियों को अपना हथियार बनाया ।
एसआईटी के जिस अधिकारी सीबी मैथ्यूज़ ने नंबी के खिलाफ जांच की थी, उसे कम्युनिस्ट सरकार ने बाद में राज्य का डीजीपी बना दिया, सीबी मैथ्यूज के अलावा तब के एसपी केके जोशुआ और एस विजयन के भी इस साजिश में शामिल होने की बात सामने आ चुकी है ।
🚩1994 की केरल सरकार के अलावा तब केंद्र की  सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है, जिसने इतने बड़े वैज्ञानिक के खिलाफ साजिश पर अांखें बंद कर ली थीं ।
अगर नंबी नारायण के खिलाफ साजिश नहीं हुई होती तो भारत को अपना पहला क्रायोजेनिक इंजन 15 साल पहले मिल गया होता और इसरो आज पूरी दुनिया से पंद्रह वर्ष आगे होता ।
🚩उस दौर में भारत क्रायोजेनिक इंजन को किसी भी हाल में पाना चाहता था । अमेरिका ने इसे देने से साफ इनकार कर दिया । जिसके बाद रूस से समझौता करने की कोशिश हुई, रूस से बातचीत अंतिम चरण में थी, तभी अमेरिका के दबाव में रूस मुकर गया ।
इसके बाद नंबी नारायणन ने सरकार को भरोसा दिलाया कि वो और उनकी टीम देसी क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाएंगे ।
उनका ये मिशन सही रास्ते पर चल रहा था कि तब तक वो साजिश के शिकार हो गए नंबी नारायण ने अपने साथ हुई साजिश पर ‘रेडी टु फायर’ नाम से एक किताब भी लिखी है ।
🚩नंबी नारायणन का मानना है कि, इस मामले की साजिश में सीआईए पर शक करने के लिए मजबूत आधार था । क्योंकि क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित करने के लिए रूस के साथ समझौते के भारत के कदम से अमेरिका परेशान था । दरअसल भारत ने 1991 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ग्लेवकॉसमॉस से सात क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन और उनके साथ प्रौद्योगिकी के पूर्ण हस्तांतरण का करार किया था, लेकिन अमेरिका ने इसरो और ग्लेवकॉसमॉस पर प्रतिबंध लगाकर उस समझौते को नाकाम कर दिया था ।
🚩नंबी नारायणन के मुताबिक, ‘अगर यह समझौता परवान चढ़ गया होता, तो इसरो 15 साल पहले क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित कर सकता था, लेकिन भारत में क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित होने में हुई देरी से अमेरिका और फ्रांस को फायदा हुआ । इन दोनों देशों ने अपने कम विकसित टेक्नोलॉजी वाले क्रायोजेनिक इंजनों को भारत को बेचने की कोशिश की थी । दोनों ही देशों का हाथ इसरो जासूसी कांड में शामिल हो सकता है, इस सच्चाई को खोजने के लिए विस्तृत जांच जरूरी है ।’
🚩नंबी नारायणन ने कहा कि, ‘देश हित के लिए यह जरूरी है कि, झूठे केस की साजिश रचने वाले का पता लगाया जाए । साथ ही इस बात की भी पड़ताल की जाए कि उनका उद्देश्य क्या था । क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित होने में देरी के चलते हमें अबतक लाखों डॉलर का नुकसान हो चुका है ।’
🚩नंबी नारायणन का कहना है कि उनकी प्राथमिकता मुआवजा पाना नहीं थी । हालांकि उन्होंने माना कि बेकसूर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने और उसे बर्बाद करने वाले अफसरों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए, ताकि जांच और खुफिया एजेंसियों में बेलगाम होकर काम करने वाले लोगों को सबक मिले ।
🚩नंबी नारायणन ने आगे कहा, ‘पुलिसवालों को लगता है कि वह कुछ भी कर सकते हैं, किसी को भी ठिकाने लगा सकते हैं । उनका यह रवैया बदलना चाहिए । मुझे यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लॉ एनफोर्समेंट मशीनरी (कानून प्रवर्तन संस्थानों) की मानसिकता को बदलने में मदद मिलेगी ।’
🚩पाठकों को यह लेख पढ़कर समझ में आया होगा कि जो भी व्यक्ति देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, दुनिया में भारत का नाम रोशन करना चाहते हैं, उनको कैसे षड्यंत्र करके फंसाया जाता है और उनका पूरा केरियर खराब कर दिया जाता है यह एक उदाहरण रूप में प्रस्तुत है ।
🚩हिंदुस्तानियों को जागरूक होना पड़ेगा, आज भी राष्ट्रहित करने वाले हिन्दू साधु-संत और हस्तियां जेल में हैं । उनके खिलाफ भी मीडिया ने ऐसा माहौल बनाया है कि जैसे यही अपराधी हैं और उनको जेल में सड़ाया जा रहा है । जबतक वे निर्दोष छूटकर आएंगे तबतक काफी समय बीत गया होगा और देश को आगे बढ़ाने में जो समय जाना चाहिए था उसमे रुकावट आ जाएगी । अतः इन षड्यंत्र का विरोध अभी से होना चाहिए ।
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Monday, September 17, 2018

चांदी के वर्क वाली मिठाई का सच जानकर आप भी खाना छोड़ देंगे

17 September 2018

🚩 हिन्दू त्यौहार में मिठाईयां खूब खाई जाती है, उसमें भी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए चांदी के वर्क वाली मिठाईयां ख़रीद के खाई जाती हैं और खिलाई जाती हैं ।

🚩 देशभर में गणेश महोत्सव की धूम मची है, उसमे भी वर्क वाली मिठाईयों का खूब उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ये मिठाई खाने जैसी है कि नहीं, क्या भगवान को वर्क वाली मिठाई का भोग लगाना उचित है या नहीं, ये जानना बेहद जरूरी है ।
Knowing the truth about silver-working sweets will leave you

🚩कुछ लोग #खूबसूरती के लिए ये मिठाईयां #घर लाते हैं तो कुछ लोग सेहत के लिए फायदेमंद समझकर #खरीदते हैं ।

🚩  मिठाईयों पर लगे #चाँदी के #वर्क का सच जानने के बाद आप मिठाई खाने से पहले सौ बार सोचेंगे । हो सकता है खाना ही छोड़ दें । क्या आपको पता है कि आपको वर्क के नाम पर मांसाहारी #मिठाई परोसी जा रही है ?

🚩 #चांदी के #वर्क वाली #मिठाई दिखने में जितनी सुंदर है । उसी #चांदी के #वर्क के बनने की #कहानी बेहद ही घिनौनी है । सालों से #लोग वर्क लगी मिठाई को शाकाहारी समझ कर खा रहे हैं, लेकिन #सजावट के लिए लगाया जाने वाला #चांदी का वर्क असलियत में जानवर की खाल से बनता है ।

🚩बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि यह वर्क #गाय-बैल की आंतों से #तैयार किया जाता है ।

🚩जिस #चांदी के वर्क लगी #मिठाई को #शाकाहारी समझ कर आप बरसों से खा रहे हैं, वो दरअसल शाकाहारी नहीं है #जानवर के अंश का इस्तेमाल करके चांदी का वर्क बनाया जाता है ।

🚩बता दें कि #देश में चांदी के वर्क की सालाना #मांग करीब 275 टन की है । चांदी के वर्क का #कारोबार फिलहाल #भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में है जो कि पूरी तरह असंगठित क्षेत्र के हाथ में है । यही वजह है कि इसके कारोबार का सही-सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है ।

🚩 चांदी का बाजार !!

#परंपरागत रूप से देश में #चांदी का वर्क बूचड़खानों से ली गई जानवरों की खालों और उनकी आंतों को हथौड़ों से पीटकर तैयार किया जाता है ।

🚩इसके अलावा विदेशी मशीनों से भी चांदी का #वर्क तैयार होता है, इसमें एक #स्पेशल पेपर और पॉलिएस्टर कोटेड शीट के बीच चांदी को रखकर उसके वर्क का पत्ता तैयार होता है । इसमें #जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं किया जाता । चूंकि ये #मशीनें महंगी हैं और देश में गिनी चुनी कंपनियों के पास ही हैं, ऐसे में इनका चांदी का वर्क #महंगा भी पड़ता है और कम भी । एक अनुमान के मुताबिक #भारत में 90 फीसदी चांदी का वर्क पुराने तरीके से, जानवरों के अंश का इस्तेमाल करके बनता है, जबकि 10 फीसदी मशीनों से तैयार होता है ।

🚩 #सरकारी आदेश का असर !!

#सरकार ने चांदी के वर्क को बनाने में जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं करने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है । #फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्य और फूड एक्सपर्ट बिजॉन मिश्रा का भी कहना है कि चांदी के वर्क बेचते समय बताना चाहिए कि ये मांसाहारी है या शाकाहारी । इसके पैकेट पर हरा और लाल निशान होना चाहिए ।

🚩आपको बता दें कि पैकेट पर हरा निशान मतलब की शाकाहारी है और लाल निशान मतलब की वो वस्तु मांसाहारी है ।

🚩 पिछले साल #मेनका गांधी ने #मीडिया को बताया कि मिठाई व #पान ही नहीं #सेब जैसे #फल को #आकर्षक बनाने के लिए उनके ऊपर जो चांदी का वर्क लगाया जाता है वह #मांसाहार की श्रेणी में आता है।

🚩उनका कहना है कि यह वर्क #जिंदा #बैलों का #कत्ल कर उनकी #आंत के सहारे तैयार किया जाता है । वर्क लगी #मिठाइयों के बढ़ते आकर्षण के कारण प्रति वर्ष हजारों #गौवंशीय #पशुओं की #हत्या की जाती है।

🚩उन्होंने बताया कि गौवंशीय पशु की आंत से बनी वर्क में #चांदी, #एल्यूमिनियम अथवा उस जैसी धातु का बड़ा टुकड़ा डाला जाता है । फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से पीट कर पतला करके आकार दिया जाता है ।

🚩बैल की आंत #पीटते रहने से #फटती नहीं है । चांदी के वर्क के चक्कर में कुछ लोग एल्यूमिनियम भी बेच देते हैं।

🚩मेनका गाँधी का कहना है कि इस कारोबार से जुड़े लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से #पशु #हत्या, #गाय की हत्या में भी संलिप्त कहे जा सकते हैं । 'तीन साल पहले #इंडियन #एयरलाइंस ने यह महसूस किया कि चांदी वर्क #मांसाहार है, और अपने #कैटरर को #विमान में परोसी जाने वाली मिठाइयों पर वर्क न लगाने के निर्देश दिए थे । साथ ही पत्र भेज कर बैल की आंतों के सहारे तैयार कराए जाने वाले वर्क पर रोक लगाने को कहा था ।

🚩#स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कराई गई जांच में भी वर्क के मांसाहार होने की पुष्टि हुई ।
🚩#केंद्र अब #कानून के जरिये इस पर प्रतिबंध की तैयारी में है ।

🚩इस आशय का 19 अप्रैल 2016 को #राजपत्र भी आम राय के लिए #वेबसाइट पर डाला था ।

🚩आप भी घरेलू बनी मिठाई ही खायें  और
बैल के वर्क से बनी मिठाइयों, सुपारी, लडडू, इलायची आदि से सावधान रहें ।


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