20 अप्रैल 2020
पालघर (महाराष्ट्र ) में 16 अप्रैल की रात को दो निर्दोष साधुओं और एक ड्राइवर की बेरहमी से पीटकर संतों की हत्या कर दी गई लेकिन आखिर सवाल उठता है कि हत्या के पीछे कौन थे जो अचानक इतने लोग इकट्ठे हो गए और पुलिस के सामने ही बेहरमी से पीटने लगे और पुलिस भी कुछ नही कर सकी और कुछ ही मिनिटों में हत्या हो गई?
अभी सबका सवाल उठता होगा कि ये लोग कौन थे? क्या आदिवासी हिंदू थे? मुस्लिम थे? या फिर ईसाई थे जो साधुओं की हत्या कर रहे थे?
कुछ तथ्य से जाने कौन थे हत्यारे?
ऑपइंडिया ने अखाड़ों के कई संतो से बात की तो उन्होंने अंदेशा जताया कि यह कृत्य सामान्य ग्रामीणों का नहीं है बल्कि इसमें नक्सल और मुस्लिम पक्ष की मौजूदगी का दावा किया जा रहा है। गंगा सेना के संत श्री आनंद गिरी ने तो साफ कहा कि संत समाज के दो संतों को बेरहमी से मारकर कहीं न कहीं तबलीगी जमात का बदला लिया गया है। उनका दावा है कि उन इलाकों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की भी उपस्थिति है।
हत्यारी भीड़ के साथ मौजूद थे NCP और CPM के नेता
साधुओं की हत्या करने वाले वीडियो में काशीनाथ चौधरी भीड़ को निर्देशित करता हुआ दिखता है। काशीनाथ चौधरी शरद पवार की NCP का जिला सदस्य है। हत्यारी भीड़ में CPM के पंचायत सदस्य व उसके साथ विष्णु पातरा, सुभाष भावर और धर्मा भावर भी शामिल थे। हत्यारी भीड़ में एनसीपी और सीपीएम नेताओं की मौजूदगी कई सवाल खड़े करती है।
संबित पात्रा ने कहा कि ये घटना और इससे जुड़े खुलासे एक बहुत बड़ी साज़िश की ओर इंगित करते हैं। उन्होंने कहा कि उस जगह पर राजनेताओं की मौजूदगी का क्या अर्थ समझा जाए? वो क्या कर रहे थे? पात्रा ने पूछा कि कहीं वो भीड़ को भड़का तो नहीं रहे थे? उन्होंने ये भी याद दिलाया कि वहाँ उन्हीं पार्टियों के लोग मौजूद हैं, जो भाजपा से घृणा करते हैं, भगवा से घृणा करते हैं।
सुदर्शन न्यूज चेनल के संपादक सुरेश जी ने लिखा कि ज़बरदस्त गति से बढ़ता इसाई धर्मांतरण, ग़ैर क़ानूनी मदरसे और सरकारी ज़मीन पर बढ़ती मस्जिदों का गढ़ बनते आदिवासी पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या कोई सामान्य घटना नहीं, मैं इसकी उच्चस्तरीय जाँच की माँग करता हूँ। https://t.co/ALY6vxyYOO
आपको बता दे कि 2008 में कंधमाल में माओवादियों ने स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती सहित तीन और साधुओं की हत्या गोली मार कर दी थी। लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या इसलिए हुई थी क्योंकि स्वामी जी कंधमाल में निर्दोष आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का विरोध कर रहे थे। आज यह हत्या उसी घटना की याद दिलाती है। और कहीं न कहीं इसकी आड़ में भी किसी साजिश या हत्यारों को बचाने की बू आ रही है।
आपको यह भी बता दे कि विश्व हिंदू परिषद द्वारा एक प्रेसनोट जारी करके बताया गया है कि भले 110 लोगो को गिरफ्तार किया गया हो लेकिन उसमे मुख्य आरोपी आज भी फरार हैं।
मीडिया की पोल और सोशल मीडिया पर आक्रोश
संतों की हत्या हुए आज तीसरा दिन है और जिस तरह से मीडिया गिरोह इसकी लीपापोती में लगा है। बल्कि इस पूरे घटना को ही हवा में उड़ा देने के लिए या तो पूरी तरह मौन है या फेक नैरेटिव की आड़ में दोषियों और महाराष्ट्र सरकार पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है। आपको याद होगा जब तबरेज़ अंसारी की चोरी करने के कारण मॉब लिंचिंग हुई थी तब मीडिया ने ना सिर्फ तबरेज को निर्दोष साबित किया बल्कि इस हत्या के सारे आरोप हिंदुओं पर मढ़ दिए।
साथ वामपंथी-लिबरल गिरोह पूरी दुनियाँ मे हिंदुओं और देश का नाम खराब करने में पूरी तरह सक्रिय हो गई थी तुरंत ही बिना ये जाने कि मामला क्या है? क्योंकि वहाँ जिसे पीटा गया था वह एक मुस्लिम था। यही इस गिरोह के नैरेटिव के लिए पर्याप्त है वह क्या कर रहा था, चोर था आदि, इसे मीडिया ने ख़ारिज कर दिया था लेकिन अब जब दो निर्दोष साधुओं की हत्या हुई जिसमें कहा जा रहा है कि लूट-पाट का विरोध करना भी एक कारण है तो उल्टा खबरों में यह चलाया गया कि चोरी की शक में हत्या हुई है। और ना जाने क्या क्या आरोप लगाए जा रहे हैं ताकि लोगों को न सिर्फ सच से दूर रखा जाए बल्कि आरोपितों को बचाने में सक्रीय है यहाँ यह गिरोह।
जूना अखाड़े के संतों की हत्या पर मीडिया गिरोह लीपापोती पर उतारू है और उसे बच्चा चोरी जैसे नैरेटिव की आड़ में मॉबलिंचिंग को एक सामान्य घटना बनाकर पेश करते हुए उन हत्यारों का बचाव कर रही है ।
द हिंदू ने भी अपनी रिपोर्ट के शीर्षक में किसी जगह पर साधू शब्द का इस्तेमाल करना उचित नहीं समझा। इन्होंने भी 3 लोगों की लिंचिंग को ही अपनी खबर में प्राथमिकता दी।
इसी प्रकार टाइम्स ऑफ इंडिया की भी खबर इसी एंगल पर चली। इसके बाद हिंदुस्तान टाइम्स ने भी 200 लोगों की भीड़ का उल्लेख कर पूरी घटना की, NDTV का भी वही हाल है, भर्त्सना को जरा सा दर्शाया लेकिन मुख्य बात यानी साधुओं की हत्या की बात उनके शीर्षक से भी नदारद रही।
किन तीन लोगों की हत्या हुई? वे कौन थे? वे बताने के बदले बल्कि उसे और हलका करने के लिए यह लिखा जा रहा है कि आक्रोशित भीड़ ने बच्चा चोर समझ कर तीन लोगों को पीट दिया जिससे बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इस नैरेटिव की आड़ में आज घटना घटे तीन दिन होने के बाद भी हर छोटी बात पर बवाल काटने वाली वामपंथी लिबरल गैंग मौन है।
सोशल मीडिया पर संतों के शवों को बेकदरी से डम्पर में डालकर ले जाने पर भी आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर जारी तस्वीरों में देखा जा सकता है कि किस तरह से बिना कफ़न या किसी कपड़े के लावरिसो की तरह यूँ ही उनका शरीर लोड कर पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया।
इन सबसे पता चलता है की भारत मे जिस तरह से ईसाई मिशनरियां धर्मान्तरण करवा रही है ओर नक्सलवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और कुछ मीडिया उनके पक्ष लेकर खड़ी रहती है और हिंदू साधु-संतों को जिस तरह से बदनाम कर रही है इससे साफ पता चलता है कि भारतीय संस्कृति को तोड़ने के लिए कार्य को जोरो-शोरो से किया जा रहा है और उसके बचाने के लिए सबसे ज्यादा आगे साधु-संत आते है इसलिए वे सबसे ज्यादा टारगेट पर है क्योंकि वे आदिवासियों को जीवनुपयोगी सामग्री, मकान आदि देते है जिससे मिशनरियां के प्रभाव में वे लोग न आये और धर्मपरिवर्तन न करे दूसरा जिनका धर्मपरिवर्तन हो चुका है उनकी घरवापसी करवाते है इन सभी कारणों से मिशनरियां और इस्लाम स्टेट चिढ़ते है और साधु संतों को झूठे केस में फंसकर मीडिया से बदनाम करवाकर जेल भिजवाते है या हत्या कर देते है और आम जनता को साधुओं के खिलाफ करते है जिससे उनका काम आसानी हो सके और भारत की भोली जनता उनके बहकावे में आ जाये और निर्दोष लोगों की हत्या तक करने को तैयार हो जाये।
अभी भी हिंदुओं के लिए समय है चेत जाए एकजुट होकर राष्ट्रवादी सरकार को वोट दे और बिकाऊ मीडिया का सोशल मीडिया पर पर्दाफाश करे और धर्मान्तरण पर रोक लगाकर साधु-संतों की रक्षा करे।
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