Thursday, May 21, 2020

जानिए वटसावित्री-व्रत कबसे शुरू हुआ, क्यो किया जाता है? कैसे करें व्रत

21 मई 2020

🚩वट सावित्री व्रत ‘स्कंद’ और ‘भविष्योत्तर’ पुराणाेंके अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमापर और ‘निर्णयामृत’ इत्यादि ग्रंथोंके अनुसार अमावस्यापर किया जाता है । उत्तरभारतमें प्रायः अमावस्याको यह व्रत किया जाता है । अतः महाराष्ट्रमें इसे ‘वटपूर्णिमा’ एवं उत्तरभारतमें इसे ‘वटसावित्री’के नामसे जाना जाता है।

🚩पतिके सुख-दुःखमें सहभागी होना, उसे संकटसे बचानेके लिए प्रत्यक्ष ‘काल’को भी चुनौती देनेकी सिद्धता रखना, उसका साथ न छोडना एवं दोनोंका जीवन सफल बनाना, ये स्त्रीके महत्त्वपूर्ण गुण हैं । 

🚩सावित्रीमें ये सभी गुण थे । सावित्री अत्यंत तेजस्वी तथा दृढनिश्चयी थीं । आत्मविश्वास एवं उचित निर्णयक्षमता भी उनमें थी । राजकन्या होते हुए भी सावित्रीने दरिद्र एवं अल्पायु सत्यवानको पतिके रूपमें अपनाया था; तथा उनकी मृत्यु होनेपर यमराजसे शास्त्रचर्चा कर उन्होंने अपने पतिके लिए जीवनदान प्राप्त किया था । जीवनमें यशस्वी होनेके लिए सावित्रीके समान सभी सद्गुणोंको आत्मसात करना ही वास्तविक अर्थोंमें वटसावित्री व्रतका पालन करना है ।

🚩वृक्षों में भी भगवदीय चेतना का वास है, ऐसा दिव्य ज्ञान वृक्षोपासना का आधार है । इस उपासना ने स्वास्थ्य, प्रसन्नता, सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति एवं पर्यावरण संरक्षण में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है ।

🚩वातावरण में विद्यमान हानिकारक तत्त्वों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्त्व है । वटवृक्ष के नीचे का छायादार स्थल एकाग्र मन से जप, ध्यान व उपासना के लिए प्राचीन काल से साधकों एवं महापुरुषों का प्रिय स्थल रहा है । यह दीर्घ काल तक अक्षय भी बना रहता है । इसी कारण दीर्घायु, अक्षय सौभाग्य, जीवन में स्थिरता तथा निरन्तर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए इसकी आराधना की जाती है ।

🚩वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श तथा सेवा से पाप दूर होते हैं; दुःख, समस्याएँ तथा रोग जाते रहते हैं । अतः इस वृक्ष को रोपने से अक्षय पुण्य-संचय होता है । वैशाख आदि पुण्यमासों में इस वृक्ष की जड़ में जल देने से पापों का नाश होता है एवं नाना प्रकार की सुख-सम्पदा प्राप्त होती है । 

🚩इसी वटवृक्ष के नीचे सती सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल से यमराज से अपने मृत पति को पुनः जीवित करवा लिया था । तबसे ‘वट-सावित्री’ नामक व्रत मनाया जाने लगा । इस दिन महिलाएँ अपने अखण्ड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए व्रत करती हैं । 

🚩व्रत-कथा :-

सावित्री मद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी । द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से उसका विवाह हुआ था । विवाह से पहले देवर्षि नारदजी ने कहा था कि सत्यवान केवल वर्ष भर जीयेगा । किंतु सत्यवान को एक बार मन से पति स्वीकार कर लेने के बाद दृढ़व्रता सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला और एक वर्ष तक पातिव्रत्य धर्म में पूर्णतया तत्पर रहकर अंधेे सास-ससुर और अल्पायु पति की प्रेम के साथ सेवा की । वर्ष-समाप्ति  के  दिन  सत्यवान  और  सावित्री समिधा लेने के लिए वन में गये थे । वहाँ एक विषधर सर्प ने सत्यवान को डँस लिया । वह बेहोश  होकर  गिर  गया । यमराज आये और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को ले जाने लगे । तब सावित्री भी अपने पातिव्रत के बल से उनके पीछे-पीछे जाने लगी । 

🚩यमराज द्वारा उसे वापस जाने के लिए कहने पर सावित्री बोली :
‘‘जहाँ जो मेरे पति को ले जाय या जहाँ मेरा पति स्वयं जाय, मैं भी वहाँ जाऊँ यह सनातन धर्म है । तप, गुरुभक्ति, पतिप्रेम और आपकी कृपा से मैं कहीं रुक नहीं सकती । तत्त्व को जाननेवाले विद्वानों ने सात स्थानों पर मित्रता कही है । मैं उस मैत्री को दृष्टि में रखकर कुछ कहती हूँ, सुनिये । लोलुप व्यक्ति वन में रहकर धर्म का आचरण नहीं कर सकते और न ब्रह्मचारी या संन्यासी ही हो सकते हैं । 

🚩विज्ञान (आत्मज्ञान के अनुभव) के लिए धर्म को कारण कहा करते हैं, इस कारण संतजन धर्म को ही प्रधान मानते हैं । संतजनों के माने हुए एक ही धर्म से हम दोनों श्रेय मार्ग को पा गये हैं ।’’

🚩सावित्री के वचनों से प्रसन्न हुए यमराज से सावित्री ने अपने ससुर के अंधत्व-निवारण व बल-तेज की प्राप्ति का वर पाया । 

🚩सावित्री बोली : ‘‘संतजनों के सान्निध्य की सभी इच्छा किया करते हैं । संतजनों का साथ निष्फल नहीं होता, इस कारण सदैव संतजनों का संग करना चाहिए ।’’

🚩यमराज : ‘‘तुम्हारा वचन मेरे मन के अनुकूल, बुद्धि और बल वर्धक तथा हितकारी है । पति के जीवन के सिवा कोई वर माँग ले ।’’

🚩सावित्री ने श्वशुर के छीने हुए राज्य को वापस पाने का वर पा लिया ।

🚩सावित्री : ‘‘आपने प्रजा को नियम में बाँध रखा है, इस कारण आपको यम कहते हैं । आप मेरी बात सुनें । मन-वाणी-अन्तःकरण से किसीके साथ वैर न करना, दान देना, आग्रह का त्याग करना - यह संतजनों का सनातन धर्म है । संतजन वैरियों पर भी दया करते देखे जाते हैं ।’’

🚩यमराज बोले : ‘‘जैसे प्यासे को पानी, उसी तरह तुम्हारे वचन मुझे लगते हैं । पति के जीवन के सिवाय दूसरा कुछ माँग ले ।’’

🚩सावित्री ने अपने निपूत पिता के सौ औरस कुलवर्धक पुत्र हों ऐसा वर पा लिया ।

🚩सावित्री बोली : ‘‘चलते-चलते मुझे कुछ बात याद आ गयी है, उसे भी सुन लीजिये । आप आदित्य के प्रतापी पुत्र हैं, इस कारण आपको विद्वान पुरुष ‘वैवस्वत’ कहते हैं । आपका बर्ताव प्रजा के साथ समान भाव से है, इस कारण आपको ‘धर्मराज’ कहते हैं । मनुष्य को अपने पर भी उतना विश्वास नहीं होता जितना संतजनों में हुआ करता है । इस कारण संतजनों पर सबका प्रेम होता है ।’’ 

🚩यमराज बोले : ‘‘जो तुमने सुनाया है ऐसा मैंने कभी नहीं सुना ।’’

🚩प्रसन्न यमराज से सावित्री ने वर के रूप में सत्यवान से ही बल-वीर्यशाली सौ औरस पुत्रों की प्राप्ति का वर प्राप्त किया । फिर बोली : ‘‘संतजनों की वृत्ति सदा धर्म में ही रहती है । संत ही सत्य से सूर्य को चला रहे हैं, तप से पृथ्वी को धारण कर रहे हैं । संत ही भूत-भविष्य की गति हैं । संतजन दूसरे पर उपकार करते हुए प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं रखते । उनकी कृपा कभी व्यर्थ नहीं जाती, न उनके साथ में धन ही नष्ट होता है, न मान ही जाता है । ये बातें संतजनों में सदा रहती हैं, इस कारण वे रक्षक होते हैं ।’’

🚩यमराज बोले : ‘‘ज्यों-ज्यों तू मेरे मन को अच्छे लगनेवाले अर्थयुक्त सुन्दर धर्मानुकूल वचन बोलती है, त्यों-त्यों मेरी तुझमें अधिकाधिक भक्ति होती जाती है । अतः हे पतिव्रते और वर माँग ।’’ 

🚩सावित्री बोली : ‘‘मैंने आपसे पुत्र दाम्पत्य योग के बिना नहीं माँगे हैं, न मैंने यही माँगा है कि किसी दूसरी रीति से पुत्र हो जायें । इस कारण आप मुझे यही वरदान दें कि मेरा पति जीवित हो जाय क्योंकि पति के बिना मैं मरी हुई हूँ । पति के बिना मैं सुख, स्वर्ग, श्री और जीवन कुछ भी नहीं चाहती । आपने मुझे सौ पुत्रों का वर दिया है व आप ही मेरे पति का हरण कर रहे हैं, तब आपके वचन कैसे सत्य होंगे ? मैं वर माँगती हूँ कि सत्यवान जीवित हो जायें । इनके जीवित होने पर आपके ही वचन सत्य होंगे ।’’

🚩यमराज ने परम प्रसन्न होकर ‘ऐसा ही हो’ यह  कह  के  सत्यवान  को  मृत्युपाश  से  मुक्त कर दिया ।

🚩व्रत-विधि :-

इसमें वटवृक्ष की पूजा की जाती है । विशेषकर सौभाग्यवती महिलाएँ श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक अथवा कृष्ण त्रयोदशी से अमावास्या तक तीनों दिन अथवा मात्र अंतिम दिन व्रत-उपवास रखती हैं । यह कल्याणकारक  व्रत  विधवा,  सधवा,  बालिका, वृद्धा, सपुत्रा, अपुत्रा सभी स्त्रियों को करना चाहिए ऐसा ‘स्कंद पुराण’ में आता है । 

🚩प्रथम दिन संकल्प करें कि ‘मैं मेरे पति और पुत्रों की आयु, आरोग्य व सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए एवं जन्म-जन्म में सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट-सावित्री व्रत करती हूँ ।’

🚩वट  के  समीप  भगवान ब्रह्माजी,  उनकी अर्धांगिनी सावित्री देवी तथा सत्यवान व सती सावित्री के साथ यमराज का पूजन कर ‘नमो वैवस्वताय’ इस मंत्र को जपते हुए वट की परिक्रमा करें । इस समय वट को 108 बार या यथाशक्ति सूत का धागा लपेटें । फिर निम्न मंत्र से सावित्री को अर्घ्य दें ।


🚩अवैधव्यं च  सौभाग्यं देहि  त्वं मम  सुव्रते । पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ।।
🚩निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना कर गंध, फूल, अक्षत से उसका पूजन करें । 
वट  सिंचामि  ते  मूलं सलिलैरमृतोपमैः । यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ।। 

🚩भारतीय संस्कृति वृक्षों  में  भी  छुपी  हुई भगवद्सत्ता का ज्ञान करानेवाली, ईश्वर  की सर्वश्रेष्ठ कृति- मानव के जीवन में आनन्द, उल्लास एवं चैतन्यता भरनेवाली है । (स्त्रोत्र : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका से)

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Wednesday, May 20, 2020

क्या इस खबर को छुपाया जा रहा है? इतने दिन हो गए अभी तक क्यो नही बताई गई?

20 मई 2020

🚩पुराणों में हमने पढा था कि कोई साधु-संत हवन करते अथवा तप करते तो उनको राक्षस लोग आकर प्रताड़ित करते थे, विघ्न डालते थे, हड्डियां फेकते थे यहाँ तक कि उनकी हत्या भी कर देते थे अथवा कोई राक्षक राजा होता था तो उनको जेल में डालकर प्रताड़ित करता था, क्योंकि साधु-संतों द्वारा जो समाज सुधार का कार्य होता था वो राक्षकों को पसंद नही आता था। यह सिलसिला आज भी जारी है, आज भी साधु-संत गांव-गांव , नगर-नगर जाकर भारतीय संस्कृति का प्रचार करते है, लोगो को सन्मार्ग पर चलाते है, व्यसन, मांस आदि छुड़वाते हैं, क्लबो और फिल्मों में जाने से रोकते है समाज में जो भी कुरीतियां अथवा बुराइयां फैली है उनको दूर करते हैं और जो लोग धर्मान्तरण आदि करवाते है उनके खिलाफ डटकर मुकाबला करते हैं इसलिए राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति के विरोधी लोगो को यह रास नही आ रहा है जिसके कारण जैसे पहले राक्षक लोग साधु-संतों के साथ करते थे ऐसी ही प्रताड़ना आज भी साधु-संतों के साथ कर रहे हैं।

पंजाब में संत की निर्मम तरीके से हुई हत्या...

🚩देश के अलग-अलग हिस्सों में एक के बाद एक संतों को निशाना बनाया जा रहा है। इस बार खबर पंजाब से आई है, जहां एक संत की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई। 

🚩खबरों के मुताबिक पंजाब के काठगढ़ थाना क्षेत्र में स्वराज माजदा फैक्ट्री के सामने नूरपुरबेदी स्थित डेरा ऋषि मुनि देशम आश्रम में रविवार (17 मई, 2020) को संत महा योगेश्वर महाराज का शव मिला। महात्मा के शव की पहचान नही हो पा रही थी, उनकी एक बाजू भी नही थी, महात्मा के बाल सिर से उखाड़े थे व सिर धड़ से अलग था उनका कमर तक शरीर खून से लथपथ था।

🚩इसकी जानकारी उस समय हुई कि जब पनियाली कलाँ का रहने वाला एक शिष्य जगदीश लाल आश्रम में उनके लिए भोजन लेकर पहुँचा था।

🚩जगदीश लाल के मुताबिक वह आश्रम में पहुँचा तो उसे आश्रम के अंदर से बदबू आ रही थी, उसने अंदर जाकर देखा तो कमरे में सारा सामान बिखरा हुआ था, जबकि संत महाराज का शव सड़ा हुआ जमीन पर पड़ा हुआ था। इसकी जानकारी तत्काल पुलिस को दी गई।

🚩कुछ ही देर में सूचना पर थाना काठगढ़ की पुलिस मौके पर पहुँची गई। इसके बाद पहुँची फारेंसिक टीम ने मौके से सबूत एकत्रित किए। इसी के साथ पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। वहीं पुलिस ने संत के भाई दिनेश कुमार के बयानों के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लिया है। संत के भाई ने बताया कि लॉकडाउन और राज्य में लागू कर्फ्यू के कारण आश्रम पर श्रद्धालुओं का आवागमन बेहद कम हो गया था।

🚩वहीं मामले को लेकर अब पुलिस जाँच में जुट गई है। पुलिस हत्या के पीछे आश्रम की भूमि पर कब्जे और उसमें चोरी की नीयत आदि पहलुओं को लेकर भी जाँच कर सकती है, क्योंकि आश्रम के पास तीन एकड़ की भूमि है।

🚩थाना प्रभारी परमिंदर सिंह ने बताया कि संत का शव गल चुका था और यह कत्ल कुछ दिन पहले का हुआ था। लूटपाट से और दरवाजे की तोड़फोड़ से यह लुटेरों का काम लगता है। पुलिस ने संत के भाई के बयानों के आधार पर मामला दर्ज किया।

🚩जानकारी के मुताबिक 85 वर्षीय संत अवधूत महायोगेश्वर पिछले 40 सालों से भी ज्यादा समय से इस आश्रम रह रहे थे, जो कि हिमाचल के जिला मंडी के सरकाघाट के रहने वाले थे। वह अग्नि अखाड़ा काली कमली वाले ऋषिकेश से जुड़े हुए थे।

🚩आपको बता दें कि इससे पहले भी महाराष्ट्र के पालघर 16 अप्रैल, 2020 को 2 साधुओं सहित 3 लोगों की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी। इस घटना का वीडियो 3 दिन बाद सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था, जिसके बाद लोगों को सच्चाई पता चली थी।

🚩संतों की मॉब लिंचिंग पर अखिल भारतीय संत समिति ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इसकी सीबीआई जाँच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भी दो साधुओं की हत्या की गई। कुछ इसी तरह अब पंजाब में एक संत की हत्या की घटना सामने आई है। 

🚩पालघर की खबर को जैसे छुपाया गया था ऐसे ही इस खबर को भी छुपाया जा रहा है? पालघर का 3 दिन बाद वीडियो वायरल हुआ फिर जनता को पता चला कुछ मीडिया तो लीपापोती करने लगी कि चोर समझकर मार दिया जबकि बाद में सच्चाई पता चली की वे संत हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे थे और सभी हिंदुओ को एक कर रहे थे और धर्मान्तरण पर रोक लगा रहे थे इसलिए हत्या हुई थी।

🚩इन सबसे पता चलता है की भारत मे जिस तरह से ईसाई मिशनरियां धर्मान्तरण करवा रही हैं ओर नक्सलवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और मीडिया उनके पक्ष लेकर खड़ी रहती है तथा हिंदू साधु-संतों को जिस तरह से बदनाम कर रही है इससे साफ पता चलता है कि भारतीय संस्कृति को तोड़ने के लिए कार्य को जोरो-शोरो से किया जा रहा है और उसके बचाने के लिए सबसे ज्यादा आगे साधु-संत आते हैं इसलिए वें सबसे ज्यादा टारगेट पर है क्योंकि वें आदिवासियों को जीवनोपयोगी सामग्री, मकान आदि देते है जिससे मिशनरियों के प्रभाव में वे लोग न आये और धर्मपरिवर्तन न करे, दूसरा जिनका धर्मपरिवर्तन हो चुका है उनकी घरवापसी करवाते है इन सभी कारणों से मिशनरियां और इस्लाम स्टेट चिढ़ते है और साधु संतों को झूठे केस में फंसाकर मीडिया से बदनाम करवाकर जेल भिजवाते है या हत्या कर देते है और आम जनता को साधुओं के खिलाफ करते है जिससे उनका काम आसानी हो सके और भारत की भोली जनता उनके बहकावे में आ जाये और निर्दोष लोगों की हत्या तक करने को तैयार हो जाये।https://bit.ly/2LNJsJK

🚩अभी भी हिंदुओं के लिए समय है चेत जाए एकजुट होकर राष्ट्रवादी सरकार को वोट दे और बिकाऊ मीडिया का सोशल मीडिया पर पर्दाफाश करे और धर्मान्तरण पर रोक लगाकर साधु-संतों की रक्षा करे।

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