Wednesday, July 8, 2020

पाकिस्तान में एक भी हिंदू मंदिर नही बनने दे रहे हैं, किया जा रहा है प्रताड़ित!

08 जुलाई 2020

🚩भारत-पाकिस्तान के विभाजन के 73 वर्षों के बाद 24 जून को यहां रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को राजधानी इस्लामाबाद में पहले श्री कृष्ण मंदिर के निर्माण की खबर मिली थी। यदि मंदिर बन जाता है तो उन्हें पूजा के लिए शहर के बाहर नहीं जाना होगा। मानवाधिकारों पर संसदीय सचिव लाल चंद माल्ही ने मंदिर का शिलान्यास किया था। लेकिन अब पाकिस्तान में इस मंदिर निर्माण का पुरजोर विरोध हो रहा हैं इसके कारण मंदिर निर्माण का कार्य रोक दिया गया हैं।

🚩जो मुसलमान पाकिस्तान मे एक हिन्दू मन्दिर को स्वीकार नहीं करना चाहते वे भारत मे शरिया कानून लागू करवाना चाहते हैं। तेज आवाज मे 5 बार लाउड स्पीकर पर अजान चलाते हैं। आवाज धीमी करने को कहो तो धमकी देते हैं। तारिक फतेह, तसलीमा नसरीन और सलमान रश्दी को बोलने नहीं देना चाहते। भारत को संविधान से नहीं, कोर्ट से नहीं फतवों से चलाना चाहते हैं। पिछले 70 साल से पाकिस्तान की यही सच्चाई है। सैंकड़ों पुराने मन्दिर और गुरुद्वारों को पिछले 70 साल मे मस्जिद मे बदल दिया परन्तु 1 मन्दिर का बनना बर्दाश्त नहीं है। पुराने मन्दिर खंडहर हो गए हैं।

🚩पहले पूरे पाकिस्तान में हंगामा करके इस्लामाबाद में प्रस्तावित मंदिर को रोका गया। फतवे निकाले गये। सरकार गिराने की धमकी दी गयी। इस "कुफ्र" के लिए इमरान खान को खाक में मिला देने की आवाजें उठी। परिणामस्वरूप इमरान खान सरकार ने कृष्ण मंदिर का निर्माण रुकवा दिया।

🚩लेकिन इतने से भी बात बनी नहीं। कुछ लोग वहां पहुंचे और चारदीवारी की नींव की ईंटे उखाड़कर फेंक दी। बुतपरस्तों की ये मजाल कि इस्लामाबाद में मंदिर बनायेंगे। फिर भी संतोष न हुआ। अब वहां जाकर कुछ लोगों ने अजान दी है। नमाज पढ़ी है ताकि उस जमीन को "पाक" किया जा सके जहां बुतपरस्ती की नींव पड़ रही थी। लेकिन मुझे लगता है इतने से भी बात बनेगी नहीं। जल्द ही मंदिर के लिए एलॉट की गयी जमीन पर गोकशी करके उसे "पवित्र" किया जाएगा ताकि दोबारा वहां मंदिर बनने की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो सके।

🚩सहिष्णुता इसको कहते हैं। असहिष्णु हिन्दुओं को अपने मुस्लिम भाइयों से कुछ सीखना चाहिए।

🚩आपको बता दें कि पाकिस्तान में 23% हिंदू थे आज 2% भी नही बचे हैं और पाकिस्तान में हिन्दुओं के 95% मंदिरों पर कब्ज़ा कर उनमें दुकानें चलाई जातीं हैं। कभी मुगल आक्रांताओं और औरंगज़ेब के सिपहसालारों जैसे देसी जिहादियों की मौत कहे जाने वाले सिख समुदाय की हालत भी ऐसी ही है।


🚩पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की घटनाएं केवल सिंध तक सीमित नहीं है बल्कि देश के अन्य भागों में भी ऐसा हो रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों का अपहरण होता है, उनके साथ बलात्कार किया जाता है और बाद में यह दलील दी जाती है कि, लडकी ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है। उसकी मुस्लिम व्यक्ति से शादी हो गई है और वह अपने पुराने धर्म में लौटना नहीं चाहती। यदि वे उसके अपहरण की एफआईआर करते हैं, तो यह उसे ढूंढ़ने और वापिस काफिर बनाने का पैंतरा है। लडकी नाबालिग होती है, तो उसका नकली जन्म प्रमाणपत्र बनवा लिया जाता है। इन्हीं अत्याचारो से तंग आ कर 5,000 हिन्दू हर साल अपना घरबार छोड कर भारत भाग आते हैं।


🚩एक महिला का कहना है कि पाकिस्तान में अब वह सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं, क्योंकि पुलिस के सामने ही किसी को भी किडनैप कर लिया जाता है। नॉर्थ वेस्ट क्षेत्र में आज कोई महिला सुरक्षित नहीं है।

🚩भारत को ‘असहिष्णु’ बोलनेवाले तथा भारत में रहने से ‘डर’ लगता है, ऐसा कहनेवाले आमिर खान, नसीरूद्दीन शाह क्या पाकिस्तान की इस ‘असहिष्णुता’ पर कुछ कहेंगे ? भारत में अल्पसंख्यक डरा हुआ है, ऐसा ढिंढोरा पिटा जाता है, किंतु पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की यह स्थिती देखकर कौन सच में ‘डरा’ हुआ है, यह ध्यान में आता है।

🚩पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ इतना अत्याचार हो रहा है लेकिन कोई भी मानव अधिकार, संयुक्त राष्ट्र, विदेश मंत्रालय, सरकार, मीडिया, सेक्युलर, वामपंथी , न्यायालय , तथाकथित बुद्धिजीवी सब चुप है क्योंकि हिंदू तो उनको मनुष्य ही नही दिखते है अब खुद हिंदुओं को संगठित होकर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए नही तो एक के बाद एक की बारी होगी।

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Tuesday, July 7, 2020

सिक्ख भाई अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सबक सीखे, सोचे कहीं देर न हो जाये।

07 जुलाई 2020

🚩कुछ सिक्ख अपने भाइयों को गुमराह कर रहे हैं और हिंदुओं से अलग होकर मुस्लिम समुदाय के साथ हिलमिल रहे हैं उनको यह खबर जरूर पढ़नी चाहिए कि आगे क्या होगा....।

🚩सिखों पर अत्याचार...
-काबुल गुरुद्वारा हमले में 25 सिख मारे गए।
-अफगानिस्तान के जलालाबाद में आत्मघाती हमले में 13 सिख मारे गए।
- पेशावर में सिख कार्यकर्ता चरणजीत सिंह की गोली मारकर हत्या।
- पाकिस्तान में तालिबान द्वारा जसपाल सिंह की सर काट कर हत्या।
-पाकिस्तान के फाटा इलाके में सिखों को जज़िया देने के लिए मजबूर किया गया।
-नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में सिखों की दुकानें लूट ली गई। उन्हें भागकर पेशावर आना पड़ा।
-हाफ़िज़ सईद के रिश्तेदार अब्दुल रहमान मक्की द्वारा एक प्रेस कांफ्रेंस में गुरु नानक की निंदा की गई।
-अफगानिस्तान में कोई सिख अगर मर जाता है तो उसकी शव यात्रा पर स्थानीय लोग पत्थर फैंकते हैं।
-लेसिस्टर, ब्रिटेन में 40-50 सिखों ने मुग़ल दरबार रेस्तरा में घुसकर एक 15 साल की सिख लड़की की इज्जत से खिलवाड़ करने वाले मुस्लिम गैंग से मारपीट की।


🚩कुछ सिख भाइयों द्वारा गुमराह करना

-पाकिस्तान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य गोपाल सिंह चावला द्वारा हाफिद सईद को ननकाना साहिब में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया।

- कनाडा में कुछ गुरुद्वारों द्वारा भारतीय दूतावास के अधिकारीयों का आधिकारिक रूप से गुरुद्वारों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

-26 जनवरी को लंदन के भारतीय दूतावास के सामने पाकिस्तानी मुसलमानों के साथ मिलकर कुछ सिखों द्वारा कश्मीर और खालिस्तान की आज़ादी के नारे लगाए गए।

-बर्मा से निकाले गए रोहिंग्या मुसलमानों के लिए खालसा ऐड द्वारा लंगर और राहत शिविर लगाया गया।

-प्रधानमंत्री मोदी जी की ब्रिटेन यात्रा के दौरान उनके विरोध में क्कुह सिखों द्वारा विरोधी नारे लगाए गए और पाकिस्तानी मुसलमानों के साथ मिलकर भारत का झंडा उतार दिया गया।

- दिल्ली के शाहीन बाग CAA विरोधियों के लिए कुछ सिखों द्वारा लंगर लगाना। 

🚩पहले वाली घटनाओं में एक बात समान है कि जिनका दमन हो रहा हैं वो सिख हैं और जो दमन कर रहे है। वह पाकिस्तानी या अफगानी मुसलमान है।

🚩दूसरी घटनाओं में कुछ सिख पाकिस्तानी मुसलमानों के साथ मिलकर हम हिन्दू नहीं है का सन्देश देना चाहते हैं।

🚩पहले वाली घटनाओं में सिखों के आगे केवल दो ही विकल्प हैं। या तो भारत भाग जाओ। या फिर इस्लाम स्वीकार कर लो।

🚩दूसरी घटनाओं में गुरुद्वारों का प्रयोग अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए किया जा रहा हैं।

🚩पहले वाली घटनाओं पर कोई विदेश में बैठा सिख दो शब्द भी कभी पाकिस्तानी/अफगानी सिखों के हितों की रक्षा के लिए नहीं बोलते।

🚩दूसरी घटनाओं में विदेश में बैठा सिख अपने धन-बल का प्रयोग केवल हम हिन्दू नहीं है और हिन्दू और सिखों के साँझा इतिहास को झुठलाने की कोशिश करने में लगा हैं।

🚩इन गलतियों का क्या दूरगामी परिणाम होगा? यह एक अंग्रेज लेखक के शब्दों में जानना उचित रहेगा।

🚩2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल करआए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।

🚩उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं।

🚩आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।

🚩जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।

🚩जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं।

🚩इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।

🚩जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आॢथक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है।

🚩जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।

🚩किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

🚩निष्कर्ष- पहले वाली सभी घटनाएं तभी घटित होती है जब मुस्लिम समाज की जनसंख्या बढ़ जाती हैं। दूसरी घटनाएं तभी तक हैं जब तक मुस्लिम समाज की जनसंख्या अभी अल्प या सीमित है। यूरोप, अमरीका, कनाडा में रहने वाले मेरे सिख भाई जो अपने क्षणिक लाभ और राजनीतिक हितों के लिए अलगाववाद की जहरीली बेल को पोषित करने का प्रयास कर रहे हैं। वे यह न भूले कि विदेशों में भी मुस्लिम जनसंख्या दर आज भी सिखों,हिन्दुओं और ईसाईयों से बहुत अधिक हैं। मुस्लिम समाज न केवल संगठित है अपितु उसे क्या करना हैं। वह उसे भली प्रकार से जानता है। इसलिए वे यह न समझे की उनका भविष्य सुरक्षित है। उनका भविष्य भी कोई सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान में जो आज सिखों और हिन्दुओं के साथ हो रहा है। आज से कुछ दशकों के बाद वही उनके साथ भी होगा। इसलिए अलगाववाद और विघटन का रास्ता छोड़कर हिन्दुओं के साथ मिलकर एकता और परस्पर सामंजस्य का रास्ता अपनाने में सभी का हित है और खास बात यह है कि सिख भी हिंदू ही है बस गुरु की बात माने उनको सिख कहते है और देश मे मुगल राज्य खत्म करने में हिंदू से बने सिख सिपाहियों के बड़ा बलिदान रहा हैं।

🚩सोचे कहीं देर न हो जाये वरना आने वाली नस्लें आपको कभी माफ नहीं करेगी!

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Monday, July 6, 2020

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने ऐसा तो क्या किया था जिसके कारण उनको मौत से आलिंगन करना पड़ा!

06 जुलाई 2020

🚩डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को चढ़ाया गया था तथाकथित धर्मनिरेपक्षता की बलि, इन्हे मिली थी देशप्रेम की सज़ा और इनकी मृत्यु तक को बना दिया गया ऐसा रहस्य जिसे आज तक खोलने की किसी की भी हिम्मत नहीं हो पायी है। जी हाँ चर्चा चल रही है नकली धर्मनिरपेक्षता की आंधी और हिन्दू विरोध की सुनामी में अपने आप को स्वाहा कर के कश्मीर को बचा लेने वाले अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की.... आज भी जब जब और जहाँ जहाँ ये नारे गूँजते हैं की जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है तो उस महापुरुष की याद आ जाती है जिसे पहले जेल और बाद में मृत्यु इसलिए दे डाली गयी क्योकि उन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए वहां कूच कर देने का एलान कर दिया।

🚩भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6 जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के पश्चात श्री मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात, 1924 में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया। 1926 में उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया जहाँ लिंकन्स इन से उन्होंने 1927 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 33 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए और विश्व का सबसे युवा कुलपति होने का सम्मान प्राप्त किया। श्री मुखर्जी 1938 तक इस पद को शुशोभित करते रहे।

🚩अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक रचनात्मक सुधार किये तथा इस दौरान ‘कोर्ट एंड काउंसिल ऑफ़ इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बैंगलोर’ तथा इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड के सक्रिय सदस्य भी रहे। श्यामाप्रसाद अपनी माता पिता को प्रतिदिन नियमित पूजा-पाठ करते देखते तो वे भी धार्मिक संस्कारों को ग्रहण करने लगे। वे पिताजी के साथ बैठकर उनकी बातें सुनते। माँ से धार्मिक एवं ऐतिहासिक कथाएँ सुनते-सुनते उन्हें अपने देश तथा संस्कृति की जानकारी होने लगी। वे माता-पिता की तरह प्रतिदिन माँ काली की मूर्ति के समक्ष बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते। परिवार में धार्मिक उत्सव व त्यौहार मनाया जाता तो उसमें पूरी रुचि के साथ भाग लेते। गंगा तट पर मंदिरों में होने वाले सत्संग समारोहों में वे भी भाग लेने जाते। आशुतोष मुखर्जी चाहते थे कि श्यामाप्रसाद को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी जाए। उन दिनों कलकत्ता में अंग्रेजी माध्यम के अनेक पब्लिक स्कूल थे।

🚩आशुतोष बाबू यह जानते थे कि इन स्कूलों में लार्ड मैकाले की योजनानुसार भारतीय बच्चों को भारतीयता के संस्कारों से काटकर उन्हें अंग्रेजों के संस्कार देने वाली शिक्षा दी जाती है। उन्होंने एक दिन मित्रों के साथ विचार-विमर्श कर निर्णय लिया कि बालकों तथा किशोरों को शिक्षा के साथ-साथ भारतीयता के संस्कार देने वाले विद्यालय की स्थापना कराई जानी चाहिए। उनके अनन्य भक्त विश्वेश्वर मित्र ने योजनानुसार ‘मित्र इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की। भवानीपुर में खोले गये इस शिक्षण संस्थान में बंग्ला तथा संस्कृत भाषा का भी अध्ययन कराया जाता था। श्यामा प्रसाद को किसी अंग्रेजी पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलाने की बजाए ‘मित्र इंस्टीट्यूट’ में प्रवेश दिलाया गया। आशुतोष बाबू की प्रेरणा से उनके अनेक मित्रों ने अपने पुत्रों को इस स्कूल में दाखिला दिलाया। वे स्वयं समय-समय पर स्कूल पहुँच कर वहाँ के शिक्षकों से पाठ्यक्रम के विषय में विचार-विमर्श किया करते थे।

🚩“श्यामाप्रसाद मुखर्जी नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे। जब नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो उन्होंने और बंगाल के एक और मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया। उसके बाद उन्होंने जनसंघ की नींव डाली। आम चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में बहुत कड़ी टक्कर हो रही थी। इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वो चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है।” विडम्बना यह है कि तात्कालीन सत्ता के खिलाफ जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, और उससे भी बड़ी विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे की सच को जान पाने में नाकामयाब रही है।

🚩डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है। उन्होंने सिंह-गर्जना करते हुए कहा था कि, “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा।” समान नागरिक संहिता बनाने की बात करने वालों ने भी कभी पलट कर ये नहीं जानना चाहा की किस ने और क्यों मारा कश्मीर के रक्षक श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को? उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि, “नेहरू जी ने ही ये बार-बार ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता।

🚩मुखर्जी ने कहा कि मैं नही समझता कि भारत सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है।” उन्होंने इस प्रावधान के विरोध में भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू व कश्मीर जाने की योजना बनाई। इसके साथ ही उनका अन्य मकसद था वहां के वर्तमान हालात से स्वयं को वाकिफ कराना क्योंकि जम्मू व कश्मीर के तात्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सरकार ने वहां के सुन्नी कश्मीरी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े स्थानीय भाषाई डोगरा समुदाय के लोगों पर असहनीय जुल्म ढाना शुरू कर दिया था।

🚩1950 के आसपास ईस्ट पाकिस्तान में हिन्दुओं पर जानलेवा हमले शुरु हो गये। करीब 50 लाख हिन्दू ईस्ट पाकिस्तान को छोड़ भारत वापस आ गए। हिन्दुओं की यह हालत देखकर मुखर्जी चाहते थे कि देश पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए। वह कुछ कहते इससे पहले जवाहरलाल नेहरु और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने समझौता कर लिया था। समझौते के मुताबिक दोनों देश के रिफ्यूजी बिना किसी परेशानी के अपने-अपने देश आ जा सकते थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरु जी की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत ही कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफ़ा देते ही उन्होंने रिफ्यूजी की मदद के काम में खुद को झोंक दिया।

🚩आख़िरकार कश्मीर को अलग कर दिया गया। उसे अपना एक नया झंडा और नई सरकार दे दी गई। एक नया कानून भी जिसके तहत कोई दूसरे राज्य का व्यक्ति वहां जाकर नहीं बस सकता। सब कुछ खत्म हो चुका था, लेकिन मुखर्जी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे’ के नारे के साथ वह कश्मीर के लिए निकल पड़े। नेहरु को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने हर हाल में मुखर्जी को रोकने का आदेश जारी कर दिया। उन्हें कश्मीर जाने की इजाजत नहीं थी। ऐसे में मुखर्जी के पास गुप्त तरीके से कश्मीर पहुंचने के सिवा कोई दूसरा विकल्प न था। वह कश्मीर पहुंचने में सफल भी रहे।

🚩मगर उन्हें पहले कदम पर ही पकड़ लिया गया। उन पर बिना इजाजत कश्मीर में घुसने का आरोप लगा। एक अपराधी की तरह उन्हें श्रीनगर की जेल में बंद कर दिया गया। कुछ वक्त बाद उन्हें दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया गया। कुछ वक्त बाद उनकी बीमारी की खबरें आने लगी। वह गंभीर रुप से बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां कई दिन तक उनका इलाज किया गया। माना जाता है कि इसी दौरान उन्हें ‘पेनिसिलिन’ नाम की एक दवा का डोज दिया गया। चूंकि इस दवा से मुखर्जी को एलर्जी थी, इसलिए यह उनके लिए हानिकारक साबित हुई।

🚩कहते हैं कि डॉक्टर इस बात को जानते थे कि यह दवा उनके लिए जानलेवा है। बावजूद इसके उन्हें यह डोज दिया गया। धीरे-धीरे उनकी तबियत और खराब होती गई। अंतत: 23 जून 1953 को उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर ली। मुखर्जी की मौत की खबर उनकी मां को पता चली तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने नेहरु से गुहार लगाई कि उनके बेटे की मौत की जांच कराई जाये। उनका मानना था कि उनके बेटे की हत्या हुई है। यह गंभीर मामला था, लेकिन नेहरू ने इसे अनदेखा कर दिया। हालाँकि, कश्मीर में उनके किये इस आन्दोलन का काफी फर्क पड़ा और बदलाव भी हुआ और कश्मीर अलग बनता बच गया।

🚩इस कड़ी में, नेहरु का रवैया लोगों के गले से नहीं उतरा। वह मुखर्जी की मौत के वाजिब कारण को जानना चाहते थे। लोगों ने आवाजें भी उठाई, लेकिन सरकार के सामने किसी की एक नहीं चली। नतीजा यह रहा कि उनकी मौत का रहस्य उनके साथ ही चला गया। इतने सालों बाद भी किसी के पास जवाब नहीं है कि उनकी मौत के पीछे की असल वजह क्या थी? 

🚩कश्मीर की अखंडता के उस महान रक्षक अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की गाथा सदा-सदा के लिए अमर रहेगी।

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