Sunday, July 12, 2020

सावन में वामपंथियों का फिर जागा हिन्दूफोबिक ज्ञान, इन्हें करारा जवाब जरूर दें!

12 जुलाई 2020

🚩आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ वामपंथी लिबरल्स हिंदू धर्म, उनके देवी देवताओं, उनकी मान्यताओं और त्योहारों को लेकर तमाम तरह के हिन्दूफोबिया से ग्रसित अनर्गल बातें करते हुए नजर आते हैं। कभी वो हिन्दुओं के रीति-रिवाजों, परम्पराओं को लेकर अपने घटिया कुतर्क को महान तर्क के रूप में पेश करते हैं, तो कभी त्योहारों खासतौर से नवरात्र और सावन के समय नॉनवेज (माँसाहारी) नहीं खाने को लेकर मजाक उड़ाते हुए नजर आते हैं।

🚩यही वामपंथी बुद्धिजीवी लोग इस्लाम में बुरके, तीन तलाक, निक़ाह हलाला, जैसी कई बुराइयों पर चुप्पी साध लेते है। वहाँ इनका तर्क कुंद और जबान आवाज खो देती है। लिखना तो ये सामाजिक सद्भाव में भूल जाते हैं। वहीं हिंदुओं को सॉफ्ट टारगेट समझ कर उनकी मान्यताओं पर व्यंग्य करने में क्षण भर भी देर नहीं लगाते हुए जी जान से लग जाते हैं।

🚩आपको पिछला नवरात्र याद होगा। तब भी ऐसे वामपंथी इसी तरह शुरू हो गए थे और अब जब सावन का महीना शुरू हो चुका है, तब लिबरल्स भी इस वक़्त अपने घटिया एजेंडे के साथ जाग चुके है। जहाँ वो बकरीद पर मारी जा रहीं सैकड़ों बकरियों को लेकर आँख मूँद लेते है, वहीं सावन में नॉन वेज नहीं खाने को ढोंग बताते हैं।

🚩सावन में भगवान शिव की पूजा के लिए दूध चढ़ाने पर इन्हें दूध की बर्बादी सहित कई ज्ञान और सिद्धांत याद आएँगे। ये वामपंथी हमेशा सिर्फ हिंदुओं की आलोचना करते हुए नजर आएँगे और इसी कर्म से खुद को सेकुलर बताएँगे। ये तमाम मझे हुए वामपंथी अपने आपको नास्तिक बताते हैं और इसकी आड़ में हिंदुओं की भावनाओं का मजाक उड़ाते हैं। दूसरी ओर यही अन्य धर्मों और मजहब के आगे ये भीगी बिल्ली बन जाते हैं। इन्हें पता होता है कि ऐसी कोई भी अनर्गल बात अगर इन लोगों ने ईसाई या मुसलमानों को लेकर लिखी तो उन्हें इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है।

🚩वैसे इन वामपंथियों की जानकारी के लिए बता दे कि सावन में माँस नहीं खाने को लेकर धार्मिक कारणों के साथ कुछ वैज्ञानिक तर्क भी हैं। जिनके बारे में इन ‘बुद्धिजीवियों’ ने जानने की भी कोशिश नहीं की होगी। हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में किसी जीव-जंतु की हत्या करना भी पाप माना जाता है। इसलिए सावन के महीने में नॉन वेज न खाकर लोगों को पाप से बचना चाहिए।

🚩सावन के मौसम में नॉन वेज नहीं खाने को लेकर कई साइंटिफिक वजहें भी हैं। जैसे- इस मौसम में लगातार बारिश होती है। जिसके चलते वातावरण में कीड़े, मकोड़े की संख्या बढ़ जाती है। कई अन्य बीमारियाँ जैसे डेंगू, चिकनगुनिया होने लगती हैं, जो जानवरों को भी बीमार कर देती हैं। जिसके बाद इनका सेवन करने का मतलब है, सीधे बीमारियों को दावत देना। इसलिए कहा जाता है कि सावन के दौरान इंसान को माँस-मछली नहीं खाना चाहिए। अगर आप पूरी बारिश के मौसम में मांसाहार से बचें तो ये और अच्छा माना गया है।

🚩वहीं वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि इस महीने में लगभग हर दिन लगातार बारिश होती है और आसमान में बादल छाए रहते हैं। जिसके कारण इस महीने में कई बार सूर्य और चंद्रमा दर्शन भी नहीं देते। सूरज की रोशनी कम मिलने की वजह से हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। हमारे शरीर को नॉनवेज खाने को पचाने में ज्यादा समय लगता है। पाचन शक्ति कमजोर होने की वजह से खाना नहीं पचता है, जिसकी वजह से पाचन सहित स्वास्थ्य संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। यही कारण है कि इन महीनों में माँसाहार नहीं खाने की सलाह दी जाती है।

🚩कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि इस महीने में मछलियाँ, पशु, पक्षी सभी में गर्भाधान करने की संभावना होती है। अगर किसी गर्भवती मादा का माँस खाने के लिए उसकी हत्या की जाती है तो इसे भी हिंदू धर्म में पाप बताया जाता है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो अगर कोई इंसान गर्भवती जीव को खा लेता है, तो उसके शरीर में हार्मोनल समस्याएँ भी हो सकती हैं।

🚩थोड़ी और गहराई में जाये तो आध्यात्मिक दृष्टि से ध्यान, साधना और पूजा में मांस को वर्जित माना गया है। नॉनवेज के सेवन से चित्त का भटकाव भी साधना में सबसे बड़ी बाधा है। दूसरा सावन का यह महीना साधना-सत्कर्म के शास्त्रों में विशेष तौर पर निर्धारित किया गया है। तो ऐसे में जो धार्मिक और आध्यात्मिक वजहों या व्रत आदि के कारण नॉनवेज नहीं खा रहे है या मांसाहार की आड़ लेकर सम्पूर्ण हिन्दू धर्म की मान्यताओं-परम्पराओं का मजाक उड़ाना कहाँ तक उचित है आप खुद ही विचार कर सकते हैं।

🚩वैसे आपको बता दें कि मांस खाना हिंदू धर्म मे पाप ही माना गया है, जीव हत्या सनातन हिंदू धर्म स्वीकार नही करता है, किसी की भी हत्या करना फिर खाना ये हिंदू धर्म के खिलाफ ही है इसलिए अधिकतर हिंदू मांस खाते नही है कुछ हिंदू पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करके खा रहे है वे भी पाप ही कर रहे है।

🚩वामपंथी सनातन धर्म के दुश्मन है इसलिए वे हमेंशा हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए कार्य करते हैं, जैसे उल्लू को सूर्य पसंद नही है वैसे है वामपंथीयों को हिंदू धर्म पसंद नही है इसलिए वे हमेंशा हिंदू धर्म के खिलाफ बाते करते है लिखते है इसलिए इनसे सावधान रहें।

🚩आपको जहाँ भी वामपंथी-लिबरल्स आपके हिन्दू धर्म-परंपरा को मानने और पालन करने को लेकर ज्ञान दें तो इन्हें ज्ञान देने का नया अवसर देते हुए दूसरे मजहबों की कुछ प्रचलित कुरीतियों की याद दिलाएँ। इन्हें वहीं जलील करें, ये साइड से निकल जाएँगे। - लेखिका : ऋचा सोनी

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Saturday, July 11, 2020

कोरोना में ईसाई मिशनरीज बनवा रही है चर्च और करवा रही है धर्मान्तरण। मीडिया और कानून सोए हैं गहन निंद्रा में।

11 जुलाई 2020


🚩कोरोना वायरस की महामारी के दौरान इसाई मिशनरियों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध चर्च निर्माण से लेकर धर्मांतरण के कई मामले सामने आए हैं। आपको बता दें कि किसी एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की देशभर में कोरोना के कारण आश्रम में रहने वालों को बाहर किया जाए और जरूरत पड़ने पर आश्रम बंद करवाया जाए नहीं तो सरकार के नीति नियमों से चलना चाहिए। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनने को तैयार हुई, मीडिया भी जोर शोर से खबरें चलाने लगी लेकिन दूसरी तरफ कोरोना में ईसाई मिशनरी पुरे जोश से धर्मान्तरण करवा रहे हैं और चर्च बनवा रहे हैं। उस पर न मीडिया कुछ बोल रही है और ना ही न्यायालय कोई संज्ञान ले रहा है।

🚩मिशनरियां द्वारा चर्च और धर्मान्तरण का खेल

1. उत्तराखंड राज्य में प्रलोभन देकर और युवाओं को गुमराह कर अनुसूचित जाति के लोगों को निशाना बनाकर उन्हें चर्च निर्माण और धर्मांतरण के लिए उकसाया जाता है।

2. आंध्र प्रदेश में जिस गांव में केवल हिंदू रहते हैं , वहाँ चर्च बनाया जा रहा, शिकायत किया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है ऊपर से प्रशासन ने ग्रामीणों का उत्पीड़न कर रही हैं।


3. झारखंड में लातेहार के एक गाँव से पादरी द्वारा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की खबर सामने आई है, जहाँ के पाँच युवकों ने 23 सदस्यों के साथ अपने पिता के विरोध के बाद भी धर्म परिवर्तन कर लिया। इसकी जानकारी मिलते ही पिता ने अब अपने बेटों को संपत्ति से बेदखल करते हुए थाने में धर्म परिरवर्तन कराने वाले के खिलाफ में मुकदमा दर्ज कराया है।

4. झारखंड धनबाद झरिया पुनर्वास के नाम पर दो दर्जन परिवारों का धर्म परिवर्तन कर उन्हें ईसाई बना दिया गया। ये मामला सामने आने के बाद हिंदू संगठनों और स्थानीय लोगों ने इसका जमकर विरोध किया और प्रशासन को शिकायत दर्ज कराई थी।

🚩झारखण्ड से समाचार ये भी मिल रहे हैं कि मदर टेरेसा से सम्बंधित संगठन की ईसाई नन बच्चें बेचते पकड़ी गई हैं। 280 बच्चों की गुमशुदगी की खबर है। कभी केरल से समाचार मिलता है कि पादरियों ने नन का यौन शोषण किया। कभी समाचार मिलता है कि ईसाई अनाथालय में बच्चों का यौन शोषण हुआ। कभी समाचार मिलता है कि तमिलनाडु में ईसाई संस्था अंगों को निकाल कर बेचती हैं। मीडिया इन ख़बरों को कभी प्रमुखता से नहीं दिखाता। इसके कुछ दिनों पहले तक गोवा और दिल्ली के ईसाई आर्कबिशप देश में भय के माहौल की बात कर रहे थे बड़ी प्रमुखता से दिखाते हैं।

🚩निष्पक्ष रूप से यह दोहरे मापदंड है। इनका प्रयोजन हिन्दू समाज से सम्बंधित किसी खबर को राई का पहाड़ बनाकर दिखाना होता है। और ईसाई या मुस्लिम समाज से सम्बंधित किसी भी खबर को जितना हो सके। उतना छुपाना होता है। ईसाई समाज हिन्दुओं का धर्मान्तरण व्यापक रूप से करता आया हैं। मानवता की सच्ची सेवा में प्रलोभन, लोभ, लालच, भय, दबाव से लेकर धर्मान्तरण का कोई स्थान नहीं है। इससे तो यही सिद्ध हुआ कि जो भी सेवा कार्य मिशनरी द्वारा किया जा रहा है। उसके मूल उद्देश्य ईसा मसीह के लिए भेड़ों की संख्या बढ़ाना है।

🚩मदर टेरेसा की संस्थाएं धर्मान्तरण के कार्य करने के लिए प्रसिद्द हैं। यही लोग मदर टेरेसा को संत मानते है। संत वही होता है जो पक्षपात रहित आचरण वाला हो एवं जिसका उद्देश्य केवल मानवता की भलाई है। ईसाई मिशनरीयों का पक्षपात इसी से समझ में आता है की वह केवल उन्हीं गरीबों की सेवा करना चाहती है जो ईसाई मत को ग्रहण कर ले। विडंबना यह है की ईसाईयों को पक्षपात रहित होकर सेवा करने का सन्देश देने के स्थान पर मीडिया हिन्दू संगठनों की आलोचना अधिक प्रचारित करता है।

🚩हमारे देश के संभवतः शायद ही कोई चिंतक ऐसे हुए हों जिन्होंने प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरण करने की निंदा न की हो। महान चिंतक स्वामी दयानंद का एक ईसाई पादरी से शास्त्रार्थ हो रहा था। स्वामी जी ने पादरी से कहा कि हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के तीन तरीके है। पहला जैसा मुसलमानों के राज में गर्दन पर तलवार रखकर जोर जबरदस्ती से बनाया जाता था। दूसरा बाढ़, भूकम्प, प्लेग आदि प्राकृतिक आपदा जिसमें हज़ारों लोग निराश्रित होकर ईसाईयों द्वारा संचालित अनाथाश्रम एवं विधवाश्रम आदि में लोभ-प्रलोभन के चलते भर्ती हो जाते थे और इस कारण से आप लोग प्राकृतिक आपदाओं के देश पर बार बार आने की अपने ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और तीसरा बाइबिल की शिक्षाओं के जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके। मेरे विचार से इन तीनों में सबसे उचित अंतिम तरीका मानता हूँ। स्वामी दयानंद की स्पष्टवादिता सुनकर पादरी के मुख से कोई शब्द न निकला। स्वामी जी ने कुछ ही पंक्तियों में धर्मान्तरण के कुचक्र का पर्दाफाश कर दिया। स्वामी जी ईसाई प्रचारकों द्वारा हिन्दू देवी देवताओं की निंदा करने के सख्त आलोचक थे।

🚩महात्मा गांधी ईसाई धर्मान्तरण के सबसे बड़े आलोचकों में से एक थे। अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी लिखते है "उन दिनों ईसाई मिशनरी हाई स्कूल के पास नुक्कड़ पर खड़े हो हिन्दुओं तथा देवी देवताओं पर गालियां उड़ेलते हुए अपने मत का प्रचार करते थे। यह भी सुना है कि एक नया कन्वर्ट (मतांतरित) अपने पूर्वजों के धर्म को, उनके रहन-सहन को तथा उनके गलियां देने लगता है। इन सबसे मुझमें ईसाइयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई।" इतना ही नहीं गांधी जी से मई, 1935 में एक ईसाई मिशनरी नर्स ने पूछा कि क्या आप मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगाना चाहते है तो जवाब में गांधी जी ने कहा था,' अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो मैं मतांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ। मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में जहाँ मिशनरी पैठे है, वेशभूषा, रीतिरिवाज एवं खानपान तक में अंतर आ गया है।

🚩समाज सुधारक एवं देशभक्त लाला लाजपत राय द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में अनाथ बच्चों एवं विधवा स्त्रियों को मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का पुरजोर विरोध किया गया जिसके कारण यह मामला अदालत तक पहुंच गया। ईसाई मिशनरी द्वारा किये गए कोर्ट केस में लाला जी की विजय हुई एवं एक आयोग के माध्यम से लाला जी ने यह प्रस्ताव पास करवाया की जब तक कोई भी स्थानीय संस्था निराश्रितों को आश्रय देने से मना न कर दे तब तक ईसाई मिशनरी उन्हें अपना नहीं सकती।

🚩समाज सुधारक डॉ अम्बेडकर को ईसाई समाज द्वारा अनेक प्रलोभन ईसाई मत अपनाने के लिए दिए गए मगर यह जमीनी हकीकत से परिचित थे कि ईसाई मत ग्रहण कर लेने से भी दलित समाज अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित ही रहेगा। डॉ आंबेडकर का चिंतन कितना व्यवहारिक था यह आज देखने को मिलता है।''जनवरी 1988 में अपनी वार्षिक बैठक में तमिलनाडु के बिशपों ने इस बात पर ध्यान दिया कि धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति के ईसाई परंपरागत अछूत प्रथा से उत्पन्न सामाजिक व शैक्षिक और आर्थिक अति पिछड़ेपन का शिकार बने हुए हैं। फरवरी 1988 में जारी एक भावपूर्ण पत्र में तमिलनाडु के कैथलिक बिशपों ने स्वीकार किया 'जातिगत विभेद और उनके परिणामस्वरूप होने वाला अन्याय और हिंसा ईसाई सामाजिक जीवन और व्यवहार में अब भी जारी है। हम इस स्थिति को जानते हैं और गहरी पीड़ा के साथ इसे स्वीकार करते हैं।' भारतीय चर्च अब यह स्वीकार करता है कि एक करोड़ 90 लाख भारतीय ईसाइयों का लगभग 60 प्रतिशत भाग भेदभावपूर्ण व्यवहार का शिकार है। उसके साथ दूसरे दर्जे के ईसाई जैसा अथवा उससे भी बुरा व्यवहार किया जाता है। दक्षिण में अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों को अपनी बस्तियों तथा गिरिजाघर दोनों जगह अलग रखा जाता है। उनकी 'चेरी' या बस्ती मुख्य बस्ती से कुछ दूरी पर होती है और दूसरों को उपलब्ध नागरिक सुविधाओं से वंचित रखी जाती है। चर्च में उन्हें दाहिनी ओर अलग कर दिया जाता है। उपासना (सर्विस) के समय उन्हें पवित्र पाठ पढऩे की अथवा पादरी की सहायता करने की अनुमति नहीं होती। बपतिस्मा, दृढि़करण अथवा विवाह संस्कार के समय उनकी बारी सबसे बाद में आती है। नीची जातियों से ईसाई बनने वालों के विवाह और अंतिम संस्कार के जुलूस मुख्य बस्ती के मार्गों से नहीं गुजर सकते। अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों के कब्रिस्तान अलग हैं। उनके मृतकों के लिए गिरजाघर की घंटियां नहीं बजतीं, न ही अंतिम प्रार्थना के लिए पादरी मृतक के घर जाता है। अंतिम संस्कार के लिए शव को गिरजाघर के भीतर नहीं ले जाया जा सकता। स्पष्ट है कि 'उच्च जाति' और 'निम्न जाति' के ईसाइयों के बीच अंतर्विवाह नहीं होते और अंतर्भोज भी नगण्य हैं। उनके बीच झड़पें आम हैं। नीची जाति के ईसाई अपनी स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष छेड़ रहे हैं, गिरजाघर अनुकूल प्रतिक्रिया भी कर रहा है लेकिन अब तक कोई सार्थक बदलाव नहीं आया है। ऊंची जाति के ईसाइयों में भी जातिगत मूल याद किए जाते हैं और प्रछन्न रूप से ही सही लेकिन सामाजिक संबंधोंं में उनका रंग दिखाई देता है।

🚩महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।

🚩इस प्रकार से प्राय: सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है।

🚩पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा है, उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया। मिशनरी द्वारा मोनिका बेसरा के ठीक होने को चमत्कार एवं मदर टेरेसा को संत के रूप में प्रचारित करने का बहाना मिल गया। यह चमत्कार का दावा हमारी समझ से परे हैं की एक ओर जीवन में अनेक बार मदर टेरेसा को चिकित्सकों की आवश्यकता पड़ी, कई बार भयंकर बीमार हुई थी, उन्हीं मदर टेरेसा की कृपा से ईसाई समाज उनके नाम से प्रार्थना करने वालो को बिना दवा केवल दुआ से चमत्कार द्वारा ठीक होना मानता है। अगर कोई हिन्दू बाबा चमत्कार द्वारा किसी रोगी के ठीक होने का दावा करता है तो सेक्युलर लेखक उस पर खूब चुस्कियां लेते है मगर जब पढ़ा लिखा ईसाई समाज ईसा मसीह से लेकर अन्य ईसाई मिशनरियों द्वारा चमत्कार होने एवं उससे सम्बंधित मिशनरी को संत घोषित करने का महिमा मंडन करता है तो उसे कोई भी सेक्युलर लेखक दबी जुबान में भी इस तमाशे को अन्धविश्वास नहीं कहता।

🚩जब मोरारजी देसाई की सरकार में सांसद ओमप्रकाश त्यागी द्वारा धर्म स्वातंत्रय विधेयक के रूप में धर्मान्तरण के विरुद्ध बिल पेश हुआ तो इन्ही मदर टेरेसा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर इस विधेयक का विरोध किया और कहाँ था की ईसाई समाज सभी समाज सेवा की गतिविधिया जैसे की शिक्षा, रोजगार, अनाथालय आदि को बंद कर देगा अगर उन्हें अपने ईसाई मत का प्रचार करने से रोका जायेगा। तब प्रधान मंत्री देसाई ने कहाँ था इसका अर्थ क्या यह समझा जाये की ईसाईयों द्वारा की जा रही समाज सेवा एक दिखावा मात्र हैं और उनका असली प्रयोजन तो धर्मान्तरण हैं। देश के तत्कालीन प्रधान मंत्री का उत्तर ईसाई समाज की सेवा के आड़ में किये जा रहे धर्मान्तरण की पोल खोल रहा है।

🚩अब भी मदर टेरेसा एवं अन्य ईसाई संस्थाओं के कटु उद्देश्य को जानकर मीडिया इन संस्थाओं का अगर समर्थन करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस करने के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं किया जा सकता। हिन्दू समाज को संगठित होकर ईसाई धर्मान्तरण के विरुद्ध कार्य करना चाहिए। कहीं देर न हो जाये। डॉ विवेक आर्य

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Friday, July 10, 2020

भारत में जनसंख्या 150 करोड़ पार कर गई, जनसंख्या नियंत्रण अध्यादेश की उठी मांग!

10 जुलाई 2020

🚩वर्तमान में अगर आंकडों को देखा जाए तो विश्व की जनसंख्या लगभग 780 करोड हैं। वर्तमान में भारत की जनसंख्या 138 करोड है यानि पूरे विश्व की जनसंख्या के लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में रहती है। ये बेहद तेजी से बढती जा रही है । आबादी बढने से स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य जरूरी संसाधनों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। यदि ऐसे ही गती से जनसंख्या बढती रही तो देश की स्थिति और विकट हो सकती है।

🚩हर दिन हर पल बढ़ रहे जनसंख्या के दबाव को हर साल महसूस करने के लिए मनाया जाता है विश्व जनसंख्या दिवस । आने वाली 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस है, इस दिन को मनाने के पीछे कारण, हर सेकंड बढ़ रही आबादी के मुद्दे पर लोगों का ध्यान खींचना है। इस दिन की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की शासी परिषद द्वारा पहली बार 1989 में तब हुई जब आबादी का आंकड़ा करीब 500 करोड के आस-पास पहुंच गया था । संयुक्त राष्ट्र की गवर्निंग काउंसिल के फैसले के अनुसार, वर्ष 1989 में विकास कार्यक्रम में, विश्व स्तर पर समुदाय की सिफारिश के द्वारा यह तय किया गया कि हर साल 11 जुलाई विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाएगा ।

🚩भारत में आज एक बड़ी समस्या बढ़ती जनसंख्या है तथा पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से भारत में जनसंख्या बढ़ी है । भारत में जनसंख्या के विस्फोट को रोकने के लिए अगर अब अभी कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बना तो यह आने वाले कुछ सालों में देश की आबादी 200 करोड़ के पार होगी । इसलिए जरूरी है कि इस पर सख्त कानून बनाया जाए ।

🚩बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा किए गए प्रयास

🚩देश में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने चिंता व्यक्त की है । इसके लिए उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है, जिसमें उपाध्याय ने एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population control Law) बनाने की मांग की है । उपाध्याय का कहाना है कि भारत की जनसंख्या सवा सौ करोड़ नहीं बल्कि डेढ़ सौ करोड़ है । अपने पत्र में उपाध्याय लिखते हैं…

🚩वर्तमान समय में सवा सौ करोड़ भारतीयों के पास आधार है, लगभग 20% अर्थात 25 करोड़ नागरिक (विशेष रूप से बूढ़े और बच्चे) बिना आधार के हैं। इसके अतिरिक्त लगभग पांच करोड़ बंगलादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये अवैध रूप से भारत में रहते हैं । इससे स्पष्ट है कि हमारे देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ नहीं बल्कि डेढ़ सौ करोड़ से ज्यादा है और हम चीन से बहुत आगे निकल चुके हैं ।

🚩यदि संसाधनों की बात करें तो हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की लगभग 2% है, पीने योग्य पानी लगभग 4% है, और जनसंख्या दुनिया की 20% है । चीन का क्षेत्रफल 95,96,960 वर्ग किमी और अमेरिका का क्षेत्रफल 95,25,067 वर्ग किमी है जबकि भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है अर्थात हमारा क्षेत्रफल चीन और अमेरिका के क्षेत्रफल का लगभग एक तिहाई है लेकिन प्रतिदिन जनसंख्या वृद्धि की दर चीन से डेढ़ गुना है और अमेरिका से छह गुना ज्यादा है । इस वर्ष नए वर्ष पर अमेरिका में बच्चे चीन में बच्चे और भारत में बच्चे पैदा हुए थे ।

🚩जल, जंगल, जमीन की समस्या, रोटी कपड़ा मकान की समस्या, चोरी लूट झपटमारी की समस्या, ट्रैफिक जाम व पार्किग की समस्या, बलात्कार व व्याभिचार की समस्या, आवास व कृषि विकास की समस्या, दूध दही घी में मिलावट की समस्या, फल सब्जी में रसायन की समस्या, रोड एक्सीडेंट व रोड रेज की समस्या, बढ़ती हिंसा व आत्महत्या की समस्या, अलगाववाद व कट्टरवाद की समस्या, आतंकवाद व नक्सलवाद की समस्या, सड़क रेल व जेल में भीड़ की समस्या, मुकदमों के बढ़ते अंबार की समस्या, अनाज की कमी व भुखमरी की समस्या, गरीबी बेरोजगारी व कुपोषण की समस्या, वायु जल मृदा व ध्वनि प्रदूषण की समस्या, कार्बन वृद्धि व ग्लोबल वार्मिग की समस्या, अर्थव्यवस्था के धीमी रफ्तार की समस्या व थाना तहसील हॉस्पिटल और स्कूल में भीड़ की समस्या का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है। चोर-लुटेरे, झपटमार, जहरखुरानी करने वालों, बलात्कारियों और भाड़े के हत्यारों पर सर्वे करने से पता चलता है कि 80% से अधिक अपराधी ऐसे हैं जिनके माँ-बाप ने “हम दो- हमारे दो” नियम का पालन नहीं किया । इन तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत की 50% से अधिक समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट ही है ।

🚩अंतराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत की दयनीय स्थिति का मुख्य कारण भी जनसंख्या विस्फोट है । ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम 103वें स्थान पर, साक्षरता दर में 168वें स्थान पर, वर्ल्ड हैपिनेस इंडेक्स में 140वें स्थान पर, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 130वें स्थान पर, सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में 53वें स्थान पर, यूथ डेवलपमेंट इंडेक्स में 134वें स्थान पर, होमलेस इंडेक्स में 8वें स्थान पर, लिंग असमानता इंडेक्स में 76वें स्थान पर, न्यूनतम वेतन में 64वें स्थान पर, रोजगार दर में 42वें स्थान पर, क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इंडेक्स में 43वें स्थान पर, फाइनेंसियल डेवलपमेंट इंडेक्स में 51वें स्थान पर, करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में 80वें स्थान पर, रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में 68वें स्थान पर, एनवायरमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में 177वें स्थान पर तथा जीडीपी पर कैपिटा में 139वें स्थान पर हैं लेकिन जमीन से पानी निकालने के मामले में पहले स्थान पर हैं जबकि हमारे पास पीने योग्य पानी मात्र 4% है ।

🚩प्रत्येक वर्ष 5 जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस और 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाते हैं, पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए पिछले पांच वर्ष में विशेष प्रयास भी किया गया लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वायु, जल, ध्वनि और मृदा प्रदूषण की समस्या कम नहीं हो रही है और इसका मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है । जनसंख्या विस्फोट के कारण वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है इसलिए चीन की तर्ज पर एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना स्वच्छ भारत और स्वस्थ भारत अभियान का सफल होना मुश्किल है ।

🚩अब तक 125 बार संविधान संशोधन हो चुका है, 3 बार सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बदला जा चुका है, सैकड़ों नए कानून बनाये गए लेकिन देश के लिए सबसे ज्यादा जरुरी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया, जबकि ‘हम दो-हमारे दो’ कानून से भारत की 50% समस्याओं का समाधान हो जाएगा ।

🚩सभी राजनीतिक दलों के नेता सांसद और विधायक, बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री, पर्यावारणविद, शिक्षाविद, न्यायविद, विचारक और पत्रकार इस बात से सहमत हैं कि देश की 50% से ज्यादा समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है । टैक्स देने वाले ‘हम दो-हमारे दो’ नियम का पालन करते हैं लेकिन मुफ्त में रोटी कपड़ा मकान लेने वाले जनसंख्या विस्फोट कर रहे हैं ।

🚩जब तक 2 करोड़ बेघरों को घर दिया जायेगा तब तक 10 करोड़ बेघर और पैदा हो जायेंगे इसलिए एक नया कानून ड्राफ्ट करने में समय खराब करने की बजाय चीन के जनसंख्या नियंत्रण कानून में ही आवश्यक संशोधन कर उसे संसद में पेश करना चाहिए । कानून मजबूत और प्रभावी होना चाहिये और जो व्यक्ति इस कानून का उल्लंघन करे उसका राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, बैंक खाता, बिजली कनेक्शन और मोबाइल कनेक्शन बंद करना चाहिए । इसके साथ ही कानून तोड़ने वालों पर सरकारी नौकरी और चुनाव लड़ने तथा पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना चाहिए । ऐसे लोगों को सरकारी स्कूल हॉस्पिटल सहित अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित करना चाहिये और 10 साल के लिए जेल भेजना चाहिए ।

🚩भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून तुरंत लागू करने की मांग को लेकर ट्रेंड हुआ

🚩11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस है, इस अवसर पर देश में प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की मांग को लेकर गुरुवार को ट्विटर पर #PopulationControlLaw तथा #जनसंख्या_नियंत्रण_अध्यादेश ऐसे दो हॅशटॅग ट्रेंड हुए दिखाई दिए । सुबह यह दोनो ट्रेंड क्रमश: तीसरे एवं दुसरे स्थान पर थे । इस ट्रेंड में नागरिकों ने भारत सरकार को बहुमत के साथ जनसंख्या नीति पर प्रस्ताव पारित कर उसके आधार पर कठोर व प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग की है । साथ ही यह कानून सभी धर्मियों को लागू करना चाहिए, ऐसी भी मांग की।

🚩भारत मे हिंदू ज्यादा बच्चें पैदा नही कर रहे है, मुस्लिम अपनी जनसंख्या बढ़ाने में तेजी से लगे है , रिपोर्ट के अनुसार अगर ऐसे ही वे जनसंख्या बढ़ाते रहे तो एकदिन हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे और मुस्लिम बहुसंख्यक फिर पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी बुरी हालत भारत मे हिदुओं की होगी इसलिए जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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