Monday, September 7, 2020

पितरों का श्राद्ध करना चाहिए? शास्त्रों और पुराणों में श्राद्ध के बारे में क्या बताया है?

07 सितंबर 2020


प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर देवऋण, पितृऋण एवं ऋषिऋण रहता है। श्राद्ध क्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है। देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है। ऋषि-मुनि-संतों के विचारों को, आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उन्हें लक्ष्य मानकर आदर सहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है।




औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया था तब शाहजहाँ ने अपने बेटे को लिख भेजाः "धन्य हैं हिन्दू जो अपने मृतक माता-पिता को भी खीर और हलुए-पूरी से तृप्त करते हैं और तू जिन्दे बाप को एक पानी की मटकी तक नहीं दे सकता? तुझसे तो वे हिन्दू अच्छे, जो मृतक माता-पिता की भी सेवा कर लेते हैं।"


■ गरुड़ पुराण में श्राद्ध की महिमा

कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।
देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।

"समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।"
(10.57.59)

"अमावस्या के दिन पितृगण वायु रूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे निराश होकर दुःखित मन से अपने-अपने लोकों को चले जाते हैं। अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया-तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्हीं पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। उन्हें भूख-प्यास कभी नहीं लगती। इसीलिए विद्वान को प्रयत्नपूर्वक यथाविधि शाकपात से भी अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

जो लोग अपने पितृगण, देवगण, ब्राह्मण तथा अग्नि की पूजा करते हैं, वे सभी प्राणियों की अन्तरात्मा में समाविष्ट मेरी ही पूजा करते हैं। शक्ति के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करके मनुष्य ब्रह्मपर्यंत समस्त चराचर जगत को प्रसन्न कर देता है।

हे आकाशचारिन् गरूड़ ! पिशाच योनि में उत्पन्न हुए पितर मनुष्यों के द्वारा श्राद्ध में पृथ्वी पर जो अन्न बिखेरा जाता है उससे संतृप्त होते हैं। श्राद्ध में स्नान करने से भीगे हुए वस्त्रों द्वारा जी जल पृथ्वी पर गिरता है, उससे वृक्ष योनि को प्राप्त हुए पितरों की संतुष्टि होती है। उस समय जो गन्ध तथा जल भूमि पर गिरता है, उससे देव योनि को प्राप्त पितरों को सुख प्राप्त होता है। जो पितर अपने कुल से बहिष्कृत हैं, क्रिया के योग्य नहीं हैं, संस्कारहीन और विपन्न हैं, वे सभी श्राद्ध में विकिरान्न और मार्जन के जल का भक्षण करते हैं। श्राद्ध में भोजन करने के बाद आचमन एवं जलपान करने के लिए ब्राह्मणों द्वारा जो जल ग्रहण किया जाता है, उस जल से पितरों को संतृप्ति प्राप्त होती है। जिन्हें पिशाच, कृमि और कीट की योनि मिली है तथा जिन पितरों को मनुष्य योनि प्राप्त हुई है, वे सभी पृथ्वी पर श्राद्ध में दिये गये पिण्डों में प्रयुक्त अन्न की अभिलाषा करते हैं, उसी से उन्हें संतृप्ति प्राप्त होती है।

इस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्यों के द्वारा विधिपूर्वक श्राद्ध किये जाने पर जो शुद्ध या अशुद्ध अन्न जल फेंका जाता है, उससे उन पितरों की तृप्ति होती है जिन्होंने अन्य जाति में जाकर जन्म लिया है। जो मनुष्य अन्यायपूर्वक अर्जित किये गये पदार्थों से श्राद्ध करते हैं, उस श्राद्ध से नीच योनियों में जन्म ग्रहण करने वाले चाण्डाल पितरों की तृप्ति होती है।

हे पक्षिन् ! इस संसार में श्राद्ध के निमित्त जो कुछ भी अन्न, धन आदि का दान अपने बन्धु-बान्धवों के द्वारा किया जाता है, वह सब पितरों को प्राप्त होता है। अन्न जल और शाकपात आदि के द्वारा यथासामर्थ्य जो श्राद्ध किया जाता है, वह सब पितरों की तृप्ति का हेतु है। - गरूड़ पुराण

अश्रद्दधानाः पाप्मानो नास्तिकाः स्थितसंशयाः।
हेतुद्रष्टा च पंचैते न तीर्थफलमश्रुते।।

गुरुतीर्थे परासिद्धिस्तीर्थानां परमं पदम्।
ध्यानं तीर्थपरं तस्माद् ब्रह्मतीर्थं सनातनम्।।

श्राद्ध न करने वाले, पापात्मा, परलोक को न मानने वाले अथवा वेदों के निन्दक, स्थिति में संदेह रखने वाले संशयात्मा एवं सभी पुण्यकर्मों में किसी कारण का अन्वेषण करने वाले कुतर्की-इन पाँचों को पवित्र तीर्थों का फल नहीं मिलता। - वायु पुराणः 77.127.128

'वायु पुराण' में आत्मज्ञानी सूत जी ऋषियों से कहते हैं- "हे ऋषिवृंद ! परमेष्ठि ब्रह्मा ने पूर्वकाल में जिस प्रकार की आज्ञा दी है उसे तुम सुनो। ब्रह्मा जी ने कहा हैः 'जो लोग मनुष्यलोक के पोषण की दृष्टि से श्राद्ध आदि करेंगे, उन्हें पितृगण सर्वदा पुष्टि एवं संतति देंगे। श्राद्धकर्म में अपने प्रपितामह तक के नाम एवं गोत्र का उच्चारण कर जिन पितरों को कुछ दे दिया जायेगा वे पितृगण उस श्राद्धदान से अति संतुष्ट होकर देने वाले की संततियों को संतुष्ट रखेंगे, शुभ आशिष तथा विशेष सहाय देंगे।"

पिता की आज्ञा प्राप्त करके जब भगवान श्री राम वन को चले गये तो उसके बाद सीता जी के साथ श्रीराम ने पुष्कर तीर्थ की यात्रा की। पुष्कर तीर्थ में पहुँचकर भगवान श्री रामजी ने भी श्राद्ध किया था।

■ श्राद्घ नहीं कर सकते हैं तो....

अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :
“हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित्त मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं ।

श्राद्ध पक्ष में रोज भगवदगीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और 1 माला "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा" की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितरों को अर्पण करना चाहिए।
 
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Sunday, September 6, 2020

श्रीकृष्ण के मंदिर में पाकिस्तान ने गिराए थे 156 बम, कर न सकें बाल भी बांका।

06 सितंबर 2020


भारत का गौरवशाली इतिहास तो हमें पढ़ाया ही नहीं जाता है बस केवल मुग़लों और अंग्रेजों के इतिहास पढ़ाकर भारतवासियों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है। गलत इतिहास पढ़ाने के कारण आज आईपीएस और आईएएस जैसे बुद्धिमान अधिकारी भी उसको ही सच मानने लगते हैं पर भारत का गौरवशाली इतिहास भूल गए। हमारा भारत सोने की चिड़िया था, आज के वैज्ञानिक जो खोज कर रहे हैं वो हमारे ऋषि मुनि पहले से ही कर चुके हैं।




भारत के राजा विक्रमादित्य का राज अरब देश तक फैला था और उसके पहले भी ऐसे कई राजा थे जिनका पूरी दुनिया में राज था, उनको एकछत्र सम्राट बोलते थे और सनातन धर्म जब से सृष्टि का उद्गम हुआ तब से है यह सब बाते हमें नही पढ़ाई जा रही हैं जिसके कारण हम लोग वास्तविक इतिहास नहीं जानते हैं जिसके कारण अंग्रेजों और मुग़लो को महान समझने लगते हैं।

एक आपको ऐसा इतिहास बता रहे हैं जिसमे पाकिस्तान की सारी हेकड़ी निकल गई थी।

आपको बता दें कि पश्चिम भारत के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल और चार धामों में से एक द्वारकाधीश (गुजरात) मंदिर पर 7 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान की नेवी ने जमकर बम बरसाए थे। मंदिर पर 156 बम फेंके गए थे, लेकिन फिर भी ये बम मंदिर का बाल-बांका न कर सकें। मंदिर पर 156 बम फेंके जाने की बात खुद पाकिस्तान के रेडियो में प्रसारित की गई थी। रेडियो में पाक नेवी के सैनिकों ने हर्षोल्लास के साथ कहा था... ‘मिशन द्वारका कामयाब, हमने द्वारका का नाश कर दिया। हमने कुछ ही मिनटों के अंदर मंदिर पर 156 बम फेंक कर मंदिर को तबाह कर दिया’। हालांकि यह पाक नैवी की गलतफहमी मात्र थी। दरअसल, जब नैवी ने सब-मरीन से मंदिर पर बम बरसाने शुरू किए, उस समय भगवान श्री कृष्ण की कृपा से समुद्र किनारे विशाल पत्थरों की ओट थी। हमले के समय ओट और ऊंची हो चुकी थी, जिसके चलते बम मंदिर तक पहुंच ही नहीं सकें और पानी में डिफ्यूज हो गए थे।

बंटवारे के बाद सन् 1965 में भारत-पाक के बीच हुआ यह दूसरा युद्ध था। इस जंग में पाकिस्तान ने तीनों मोर्चों पर जंग लड़ी थी, जिसमें तीनों जगह उसे मुंह की खानी पड़ी थी। द्वारका मंदिर पर हमला कमोडोर एस एम अनवर के नेतृत्व में पाकिस्तानी नेवी के एक बेड़े ने किया था।

इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय एयरबेस पर घुसपैठ और इन्हें तबाह करने के लिए कई गोपनीय ऑपरेशन भी चलाए थे। 7 सितंबर 1965 को स्पेशल सर्विसेज ग्रुप के कमांडो पैराशूट के जरिए भारतीय इलाकों में भी घुस आए थे। पाकिस्तानी आर्मी के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मुहम्मद मुसा के मुताबिक करीब 135 कमांडो भारत के तीन एयरबेस (हलवारा, पठानकोट और आदमपुर) पर उतारे गए। हालांकि पाकिस्तानी सेना को इस दुस्साहस की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी और उसके केवल 22 कमांडो ही अपने देश लौट सके थे। 93 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इनमें एक ऑपरेशन के कमांडर मेजर खालिद बट्ट भी शामिल थे।

ऐसे कई मंदिरों का इतिहास था कि मुगल नष्ट नहीं कर सकें थे और मुग़लो व अंग्रेजो ने भारत को 2000 साल तक गुलाम रखा, मार काट की, धर्मपरिवर्तन करवाया, बंटवारा करवाया, संपत्ति लूटकर ले गए फिर भी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा सुख शांति भारत में है और आज भी सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति जगमगा रही है यही असली भारत की पहचान है।

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Saturday, September 5, 2020

राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है ये जानिए चाणक्य नीति से।

05 सितंबर 2020


हर वर्ष हम 5 सितंबर को शिक्षिक दिवस तो मना लेते हैं पर शिक्षक का हमारे जीवन और राष्ट्र के लिए कितना महत्व है ये नही जानते हैं। हर व्यक्ति के जीवन के निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अगर किसी की है तो वे शिक्षक की है, अगर शिक्षक सही शिक्षा विद्यार्थी को दे तो वो महानता को छू लेगा और राष्ट्र व संस्कृति के प्रति जागरूक रहेगा अगर उसको शिक्षक ने सही शिक्षा नही दी तो वो अपने जीवनकाल में हताश निराश रहेगा और कोई महत्वपूर्ण कार्य नही कर सकेगा और राष्ट्र व अपनी संस्कृति के विरुद्ध भी जा सकता है।




आइए चाणक्य नीति से जानते है क्या कहते थे वे शिक्षकों के लिए...

आचार्य चाणक्य ने बताया कि शिक्षक गौरव घोषित तब होगा जब ये राष्ट्र गौरवशाली होगा और ये राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब ये राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों एवं परम्पराओं का निर्वाह करने में सफल एवं सक्षम होगा। और ये राष्ट्र सफल एवं सक्षम तब होगा, जब शिक्षक अपने उतरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा। और शिक्षक सफल तब कहा जाएगा, जब वह राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में सफल हो। यदि व्यक्ति राष्ट्र भाव से शून्य है, राष्ट्र भाव से हिन है, अपनी राष्ट्रीयता के प्रति सजग नही है तो ये शिक्षक की असफलता है।

और हमारा अनुभव साक्षी है की राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है। हमारा अनुभव है की शस्त्र से पहले हम शास्त्र के अभाव से पराजित हुए है। हम शस्त्र और शास्त्र धारण करने वालो को राष्ट्रीयता का बोध नही करा पाए और व्यक्ति से पहले खंड खंड हमारी राष्ट्रीयता हुई। शिक्षक इस राष्ट्र की राष्ट्रीयता व सामर्थ्य को जाग्रत करने में असफल रहा। यदि शिक्षक पराजय स्वीकार कर ले तो पराजय का वो भाव राष्ट्र के लिए घातक होगा।

अत: वेद वंदना के साथ साथ राष्ट्र वन्दना का स्वर भी दिशाओं में गूंजना आवश्यक है। आवश्यक है व्यक्ति एवं व्यवस्था को ये आभास कराना की यदि व्यक्ति की राष्ट्र की उपासना में आस्था नहीं रही तो तो उपासना के अन्य मार्ग भी संघर्ष मुक्त नहीं रह पायेंगे। अत: व्यक्ति से व्यक्ति, व्यक्ति से समाज, व समाज से राष्ट्र का एकीकरण आवश्यक है।

अत: शीघ्र ही व्यक्ति समाज एवं राष्ट्र को एक सूत्र में बांधना होगा। और वह सूत्र राष्ट्रीयता ही हो सकती है। शिक्षक इस चुनोती को स्वीकार करे व शीघ्र ही राष्ट्र का नव निर्माण करने के लिए सिद्ध हो। संभव है की आपके मार्ग में बाधाएं आएँगी, पर शिक्षक को उन पर विजय पानी होगी। और आवश्यकता पड़े तो शिक्षक शस्त्र उठाने में भी पीछे ना हटे।

मैं स्वीकार करता हु की शिक्षक का सामर्थ्य शास्त्र है, और यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हो और राष्ट्र मार्ग के कंटक सिर्फ शस्त्र की ही भाषा समझते हो तो शिक्षक उन्हें अपने सामर्थ्य का परिचय अवश्य दे। अन्यथा सामर्थ्यहीन शिक्षक अपने शास्त्रों की भी रक्षा नही कर पायेगा। संभव है की इस राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए शिक्षक को सत्ताओ से भी लड़ना पड़े पर स्मरण रहे की सत्ताओ से राष्ट्र महत्वपूर्ण है। राजनैतिक सत्ताओ के हितो से राष्ट्रीय हित महत्वपूर्ण है। अत: राष्ट्र की वेदी पर सत्ताओ की आहुति देनी पड़े तो भी शिक्षक संकोच न करे। इतिहास साक्षी है की सत्ता व स्वार्थ की राजनीति ने इस राष्ट्र का अहित किया है। हमे अब सिर्फ इस राष्ट्र का विचार करना है। यदि शासन सहयोग दे तो ठीक अन्यथा शिक्षक अपने पूर्वजो के पुण्य व कीर्ति का स्मरण कर अपने उतरदायित्व का निर्वाह करने में सिद्ध हो विजय निश्चित है। सप्त सिंधु की संस्कृति की विजय निश्चित है। विजय निश्चित है इस राष्ट्र के जीवन मूल्यों की। विजय निश्चित है इस राष्ट्र की, आवश्यकता मात्र आवाहन की है। - आचार्य चाणक्य

हमारी प्राचीन गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली के साथ आधुनिक शिक्षा-प्रणाली की तुलना करेंगे तो दोनों के बीच बहुत बड़ी खाई दिखाई पड़ेगी। गुरुकुल में प्रत्येक विद्यार्थी नैतिक शिक्षा प्राप्त करता था। प्राचीन संस्कृति का यह महत्त्वपूर्ण अंग था। प्रत्येक विद्यार्थी में विनम्रता, आत्मसंयम, आज्ञा-पालन, सेवा और त्याग-भावना, सद्व्यवहार, सज्जनता, शिष्टता तथा अंततः बल्कि अत्यंत प्रमुख रूप से आत्मज्ञान की जिज्ञासा रहती थी। आधुनिक प्रणाली में शिक्षा का नैतिक पक्ष सम्पूर्णतः भुला दिया गया है।

शिक्षकों का कर्तव्य-

विद्यार्थियों को सदाचार के मार्ग में प्रशिक्षित करने और उनका चरित्र सही ढंग से मोड़ने में स्कूल तथा कॉलेजों के शिक्षकों और प्रोफेसरों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आती है। उनको स्वयं पूर्ण सदाचारी और पवित्र होना चाहिए। उनमें पूर्णता होनी चाहिए। अन्यथा वैसा ही होगा जैसा एक अंधा दूसरे अंधे को रास्ता दिखाये। शिक्षक-वृत्ति अपनाने से पहले प्रत्येक शिक्षक को शिक्षा के प्रति अपनी स्थिति की पूरी जिम्मेदारी जान लेनी चाहिए। केवल शुष्क विषयों को लेकर व्याख्यान देने की कला सीखने से ही काम नहीं चलेगा। यही प्राध्यापक की पूरी योग्यता नहीं है।

संसार का भावी भाग्य पूर्णतया शिक्षकों और विद्यार्थियों पर निर्भर है । यदि शिक्षक अपने विद्यार्थियों को ठीक ढंग से सही दिशा में, धार्मिक वृत्ति में शिक्षा दें तो संसार में अच्छे नागरिक, योगी और जीवन्मुक्त भर जायेंगे, जो सर्वत्र प्रकाश, शांति, सुख और आनंद बिखेर देंगे।

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Friday, September 4, 2020

ये कौनसा कानून है? नेता को बेल और संतों को जेल?

04 सितंबर 2020


तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक बहुत बड़े वर्ग से सुनने को मिलता है कि "कानून अपना काम कर रहा है", "कानून सबके लिए समान है" , लेकिन वास्तव में क्या कानून सबके लिए एक है कि नहीं या क़ानून के रखवालें केवल समान बोलतें ही हैं कि उसका पालन भी करते हैं या नहीं, यह आपको जानना चाहिए।




आपको बता दें कि अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रहे सामूहिक दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद गायत्री प्रसाद प्रजापति को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जमानत दे दी है। लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज में भर्ती गायत्री प्रसाद प्रजापति ने कोरोना वायरस संक्रमण का हवाला देकर जमानत की याचिका दायर की थी। गायत्री प्रसाद प्रजापति 15 मार्च, 2017 से जेल में है। गायत्री प्रसाद प्रजापति के खिलाफ लखनऊ के गौतमपल्ली पुलिस स्टेशन में नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज है और उन पर पॉक्सो एक्ट भी है और कोर्ट ने इसी केस में प्रजापति को दो महीने की अंतरिम जमानत की मंजूरी दी है।

आपको यह भी बता दें कि जोधपुर जेल में 7 साल से बंद 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को आज तक एक दिन भी जमानत नही दी गई जबकि उनकी धर्मपत्नी को हार्ट अटैक भी आया था उनके परिवार में 1-2 लोगों की मृत्यु भी हुई और उनकी उम्र भी ज्यादा है उनका स्वास्थ्य भी कई बार खराब हुआ है और कोरोना का खतरा सबसे ज्यादा अधिक उम्र वालों को होता है और जोधपुर जेल में कई कैदी कोरोना पोजेटिव भी पाए गए फिर भी उनकी सुनवाई नही हो रही हैं और सपा नेता को तुरंत जमानत दे दी इसके कारण आम जनता का भी कानून से भरोसा उठ रहा है।

जाकिर नाईक एवं मौलाना साद फरार और न्यायालय चुप रहता है पर हिंदू संतों को आधी रात में गिरफ्तार करने का आदेश देता है। इमाम बुखारी पर कई गैर जमानती वारंट हैं पर उसको गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं है।

बता दें कि जब किसी नेता, अभिनेता, जज या पत्रकार अथवा मुस्लिम और इसाई धर्मगुरु आदि पर आरोप लगते हैं तब सभी बुद्धजीवी बोलतें हैं कि जांच चल रही है, कानून अपना काम कर रहा है, कानून सबके लिए समान है आदि-आदि, लेकिन जैसे ही किसी हिंदुनिष्ठ या हिंदू साधु-संत पर झुठे आरोप लगते हैं तो सभी बोलने लग जाते हैं कि आरोपी पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, फिर भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है, ये शर्मनाक बात है आदि-आदि, कुछ इस तरह के नारे लगते हैं और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया जाता है और सालों तक जमानत भी नहीं दी जाती है।

जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी पर हत्या का आरोप लगा और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया गया फिर वे बाद में निर्दोष बरी हुए।

वैसे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद, स्वामी नित्यानंद, डीजी वंजारा जी आदि को भी सालों तक जेल में प्रताड़ित किया गया और आखिर में निर्दोष बरी हुए।

अभी वर्तमान में हिंदू संत आसाराम बापू का केस तो आप देख ही रहे हैं, उनके पास षडयंत्र के तहत फ़साने और निर्दोष होने के प्रमाण भी हैं फिर भी उनको जमानत नही दी जा रही है।

दूसरी ओर सलमान खान को सजा होने के बाद भी 1 घण्टे में ही जमानत मिल जाती है, संजय दत्त को बार-बार पेरोल मिल जाती है, लालू को सजा होने के बाद बेटे की शादी में जाने के लिए जमानत मिल जाती है, पत्रकार तरुण तेजपाल पर आरोप सिद्ध होने के बाद भी जमानत मिल जाती है, बिशप फ्रैंको को 21 दिन में जमानत मिल जाती है, इससे साफ सिद्ध होता है कि कानून केवल समान बोला जा रहा है पर कानून व्यवस्था देखने वाले समानता का व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु लगता है कि नीति बहुत ही पक्षपाती है। देश में कई ऐसे कैदी हैं जिनके पास वकील रखने व जमानत लेने के पैसे नहीं हैं इसलिए जेल में सड़ रहे हैं, वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। किसी साधु-संत अथवा आम आदमी पर आरोप लगते ही गिरफ्तार कर लिया जाता है पर बड़े नेता-अभिनेता, अमीर आदि को गिरफ्तारी से पहले ही जमानत हासिल हो जाती है।

इन सब बातों से साफ पता चलता है कि कानून समान बोला जा रहा है पर उसका पालन नहीं हो रहा है इससे हिंदुनिष्ठ और आम जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है, यह जनता के लिए दुःखद बात है इस पर सरकार और न्यायालय को ठोस कदम उठाना चाहिए नहीं निर्दोष पीड़ित होते ही रहेंगे।

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Thursday, September 3, 2020

हॉस्पिटल में चल रही है लूट, जानिए इन खबरों को और हो जाइए सावधान...

03 सितंबर 2020


कोई भी व्यक्ति बीमार होता है तो उसको सबसे पहले डॉक्टर याद आते हैं और डॉक्टर पर भरोसा करता है की वे मुझे ठीक कर देंगे लेकिन कुछ डॉक्टर और कुछ हॉस्पिटल ने लूट पाट के धंधे शुरु कर दिए हैं। वे ठीक तो नही करते हैं लेकिन मौत के घाट भी उतार देते हैं ऊपर से बड़े-बड़े बिल बनाकर थमा देते हैं इसके कारण आज लोगों को हॉस्पिटल से भरोसा उठ रहा है।




डिलीवरी फीस चुकाने के लिए नहीं रुपये, बच्चे को ही बेच दिया।

धरती पर डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन वो भगवान किसी माँ से उसके नवजात बच्चे को छीनकर बेच सकता है। ऐसा सुनने में थोड़ा सा अजीब लगता है। लेकिन ऐसा ही एक वाकया उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में सामने आय़ा है। जहां डिलीवरी के बाद एक दंपति ने करीब 35 हजार रुपए की फीस देने में अपनी असमर्थता जताई। आरोप है की अस्पताल वालों ने उससे जबरदस्ती बच्चा छीन लिया और एक कागज पर अंगूठा लगवा लिया।

दंपती का यह पांचवां बच्चा है और वे उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में शंभू नगर इलाके में किराए के कमरे में अपने पति शिवचरण के साथ रहती हैं। बता दें कि शिवचरण रिक्शा चालक है। रिक्शा चलाकर वो दिन के 200 से तीन सौ रुपए कमाता है। उनका सबसे बड़ा बेटा 18 साल का है। वह एक जूता कंपनी में मजदूरी करता है। कोरोना लॉकडाउन में उसकी फैक्ट्री बंद हो गई तो वह बेरोजगार हो गया।

हिन्दुस्तान की खबर के मुताबिक, 24 अगस्त एक आशा वर्कर उनके घर आई और बबिता को वह फ्री में डिलीवरी करवा देगी। शिवचरण ने कहा कि उन लोगों का नाम आयुष्मान भारत योजना में नहीं था, लेकिन आशा ने कहा कि फ्री इलाज करवा देगी। जब बबिता अस्पताल पहुंची तो अस्पताल वालों ने कहा कि सर्जरी करनी पड़ेगी। 24 अगस्त की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर उसने एक लड़के को जन्म दिया। अस्पताल वालों ने उन लोगों को करीब 35 हजार रुपए का बिल थमाया।

डीएम ने कहा, कराएंगे जांच

शिवचरण ने कहा, 'मेरी पत्नी और मैं पढ़ लिख नहीं सकते हैं। हम लोगों का अस्पताल वालों ने कुछ कागजों में अंगूठा लगवा लिया। हम लोगों को डिस्चार्ज पेपर नहीं दिए गए। उन्होंने बच्चे को एक लाख रुपए में खरीद लिया।' वहीं, जब ये मामला आगरा जिले के डीएम प्रभूनाथ सिंह के संज्ञान में आया। तो उन्होंने कहा, 'यह मामला गंभीर है। इसकी जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।'

'लिखित समझौते का कोई मोल नहीं।'

उधर, बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने कहा कि अस्पताल के स्पष्टीकरण से उनका अपराध नहीं कम होता। हर बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ने निर्धारित की है। उसी प्रक्रिया के तहत ही बच्चे को गोद दिया और लिया जाना चाहिए। अस्पताल प्रशासन के पास जो लिखित समझौता है, उसका कोई मूल्य नहीं है। उन्होंने अपराध किया है।'


ऐसे ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है उसमें एक महिला बता रही है, मेरे पिताजी को कोरोना पोजेटिव बताया गया और अस्पताल में भर्ती कर दिया 15 दिन के बाद बताया कि उनकी मौत हो गई है, वीडियो कॉल करवाने के लिए बताया था पर वो भी नही करवाया था और 14 लाख रुपये का बिल बना दिया, और 11 लाख रुपये देने पर भी उनकी डेड बॉडी नही दे रहे हैं।

मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल ने कोरोना के इलाज के लिए दाखिल एक शख्स को 18 लाख 80 हजार रुपए का बिल दिया है। इससे पहले  ऑटो रिक्शा ड्राइवर और मजदूर को  9-9 लाख से ज्यादा का बिल दिया गया जबकि एक व्यापारी को कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए 15 लाख रुपए का बिल थमा दिया गया।


हादसों में घायल और खाने-पीने वाली वस्तुओं के मिलावट की वजह से लोग डॉक्टरों के पास जाते हैं। उनके पास और कोई चारा भी नहीं होता। अस्पताल का ही सहारा होता है। चाहे कोई गरीब हो या अमीर प्रत्येक घायल व बीमार के लिए डॉक्टर एक भगवान की तरफ से भेजा गया फरिश्ता ही होता है, जो कि मरीज को तंदुरुस्त करता है। मगर, आजकल इलाज को भी बहुत बड़ा व्यापार बना दिया है। हर बड़े व छोटे अस्पतालों में इतनी भीड़ होती है कि उन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सारा शहर ही बीमार हो अस्पताल में आ गया हो। अगर बात की जाए सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की तो ज्यादातर अस्पतालों में इलाज के नाम पर इतनी अंधी लूट मची हुई है कि एक मरीज की वजह से पहले से ही परेशान उसके परिजन अस्पतालों के बड़े-बड़े बिलों का भुगतान कर जहां बेहद परेशान हो रहे है, वहीं वो आर्थिक तौर पर भी खोखले हो रहे हैं।

प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर की चेकअप पर्ची फीस भी 200 से ले 1000 तक हो चुकी है। चेकअप के बाद टेस्टों का दौर शुरू हो जाता है, जो कि ज्यादातर हजारों रुपये में होता है। फिर डॉक्टरों की तरफ से वहीं दवाई मरीज को लिख कर दी जाती है जो सिर्फ उन्हीं के अस्पताल में मौजूद होती है। मजबूरी में मरीजों को बड़े बड़े बिल दे वहां ठहरना पड़ता है।

इस लूट को बंद करवाने के लिए सबसे पहले हमें निरोग रहना होगा इसके लिए नियमित रूप से आसान-प्राणायाम करने होंगे उसके बाद आर्युवेद पर आना होगा और फास्टफूड बंद करके ताजा भोजन करना होगा और देशी गाय के दूध दही, मूत्र, गोबर आदि का उपयोग करके स्वस्थ रहना होगा नही तो ये लोग लूटते ही रहेंगे और सरकार को भी इनपर नियंत्रण लाना होगा और जो डॉक्टर की पढ़ाई में लाखों रुपये फीस हो रही है वे भी कम करना होगा इससे ईमानदार डॉक्टर होंगे तो भी लूटपाट बंद होगी।

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Wednesday, September 2, 2020

पादरी ने बच्ची का ब्लैकमेल करके बनाया न्यूड फोटो, ईसाई धर्म अपनाने को डाला दबाव।

02 सितंबर 2020


कन्नूर (कैरल) के कैथोलिक चर्च की एक नन सिस्टर मैरी चांडी ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी । एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार की कोशिश की थी । मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचायी थी । ’ यहाँ गर्भ में ही बच्चों को मार देने की प्रवृत्ति होती है ।




दुनिया भर में हजारों ईसाई पादरी छोटे बच्चें-बच्चियों और महिलाओं का यौन शोषण कर रहे हैं। इस पर उनके मुख्य पोप ने माफी भी मांगी है पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि इतना होने पर भी मीडिया उन दुष्कर्मी पादरियों के बारे में बोलने में पहरेज करता है। कुछ मीडिया को तो सिर्फ हिंदू धर्म से ही नफरत है इसलिए वे सिर्फ पवित्र हिंदू धर्मगुरुओं को ही बदनाम करती है।

आपको बता दें कि गुजरात के अहमदाबाद के अमराईवाडी इलाके में एक पादरी के खिलाफ एक नाबालिग से छेड़छाड़ करने और उसका न्यूड वीडियो बनाने के आरोप में शिकायत दर्ज की गई है। ऑप इंडिया के मुताबिक उसने राबड़ी कॉलोनी में रहने वाली नाबालिग लड़की को प्यार का झूठा झाँसा देकर फँसा लिया। इसके बाद उसने वीडियो कॉल के माध्यम से उसका न्यूड वीडियो बना लिया और फिर बाद में उसे ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की।

रिपोर्ट के मुताबिक, पादरी ने नाबालिग लड़की के चाचा को यह वीडियो भेजा। जब लड़की के माता-पिता को इसका पता चला, तो उन्होंने पुलिस स्टेशन पहुँचकर पादरी गुलाबचंद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

रिपोर्ट में बताया गया है कि पादरी 11 वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़की को धमकाता था। नाबालिग लड़की 25 दिसंबर, 2019 को क्रिसमस के मौके पर अपने पड़ोसी के साथ अपने घर के पास वाले एक चर्च में गई थी। पादरी ने लड़की से बात की और उसे अपने माता-पिता को चर्च में लाने के लिए कहा।

हालाँकि, उसने अपने माता-पिता से इस बारे में कोई बात नहीं की। कुछ दिनों बाद, पादरी के भतीजे ने लड़की के माता-पिता को फोन किया और उन्हें चर्च बुलाया। लगभग एक महीने बाद, लड़की अपने माता-पिता के साथ फिर से चर्च गई। इसके बाद पादरी गुलाबचंद और उनके भतीजे ने नाबालिग के घर पर भी ‘प्रार्थना’ सभा का आयोजन किया।

पादरी नाबालिग को उसके पिता के फोन पर कॉल करता था। कथित तौर पर उसने नाबालिग लड़की को ‘चुंबन’ वाली तस्वीर भेजी थी और ‘आई लव यू’ भी बोला था। उसने उसके साथ प्यार में पड़ने का नाटक किया और उसका पीछा भी किया। जब भी वह अकेली होती, वह उसे वीडियो कॉल पर कपड़े उतारने के लिए कहता। मना करने पर वह उसे धमकी देता था कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगी तो वो उसे बदनाम कर देगा।

पादरी ने लगभग एक हफ्ते पहले लड़की का वीडियो उसके चाचा को भेजा था। तब जाकर उसके पिता को सारी बात पता चली। इसके 2-3 दिन बाद भी उसने कथित तौर पर फिर से उसकी न्यूड तस्वीरें भेजी थी। मामले में फिलहाल पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली है और जाँच की जा रही है।

यहाँ तो केवल एक ही घटना आपको बताई बाकी हजारों ईसाई पादरी हैं जिन्होंने कई छोटे बच्चों के साथ और कई ननों के साथ रेप किया है पर मीडिया इस पर मौन रहती है। वामपंथी मीडिया को तो सिर्फ हिंदू धर्म से ही नफरत है इसलिए वे सिर्फ पवित्र हिंदू धर्मगुरुओं को ही बदनाम करती है क्योंकि हिंदू साधु-संत हिंदू संस्कृति के प्रति लोगों को जगरूक करते हैं, धर्मान्तरण पर रोक लगवाते हैं, समाज को व्यसनमुक्त, सदाचारी बनाते हैं जिसके कारण राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी ताकतें कुछ मीडिया को फंडिंग करते हैं जिससे पादरियों के दुष्कर्म छुपाते हैं और हिंदू धर्मगुरुओं को बदनाम करते हैं।

दूसरी तरफ न्यायालय भी उनको तुरंत राहत दे देता है। बिशप फ्रैंको को 21 दिन में ही जमानत हासिल हो गई थी जबकि 85 वर्षीय हिंदू संत आसाराम बापू के खिलाफ 5 साल तक न्यायालय में सुनवाई होती रही पर 1 दिन भी जमानत नहीं दी गई। आज 7 साल हुए लेकिन अभी तक जमानत हासिल नही हुई।

मीडिया द्वारा हिंदू साधु-संतों को बदनाम करना और न्यायलय द्वारा जमानत नहीं देना और ईसाई पादरी और मौलवी के दुष्कर्म को छुपाना और न्यायालय से तुरंत जमानत हासिल होना, यह भारतीय संस्कृति को खत्म करने का यह एक भयंकर साजिश ही है, हिंदुस्तानी इससे समझे और सावधान रहें।

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Tuesday, September 1, 2020

अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए विदेशों से लोग आते हैं भारत...

01 सितंबर 2020


भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है लेकिन मरने के बाद भी, अंत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सदगति के लिए किये जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है।




‘श्राद्ध’ पितृऋण चुकाने के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। श्राद्धविधि में किए जानेवाले मंत्रोच्चारण में पितरों को गति देने की सूक्ष्म शक्ति समाई हुई होती है। श्राद्ध में पितरों को तर्पण करने से वे संतुष्ट होते हैं। श्राद्धविधि करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है।

अपने पुर्वजों के लिए हिन्दू धर्म में किया जानेवाला ये संस्कार विदेशी लोगों को भी ज्ञात है और शायद यही कारण है कि, कई विदेशी लोग अपने पुर्वजों को मुक्ति दिलाने की यह विधि करने के लिए भारत आते हैं एवं पूरी श्रद्धा से यह विधि करते हैं । पिछले साल यह विधि करने के लिए रूस की नताशा सप्रबनोभआ, सरगे और एकत्रिना ने धर्मनगरी गया आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।

गया में पिंडदान किया रुसी नागरिकों ने

इन लोगों ने ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर, फल्गु के देवघाट, प्रेतशिला और रामशिला वेदी पर पिंडदान किया और पूर्वजों के लिए स्वर्गलोक की कामना की। इन लोगों ने विष्णुपद मंदिर में पूजा अर्चना की। मीडिया से बात करते हुए इन लोगों ने कहा कि, सनातन धर्म के बारे में पढ़ा था जिसमें पिंडदान को काफी महत्वपूर्ण माना गया है और इस परंपरा को भारतीय वेशभूषा में संपन्न करने के बाद उनकी आकांक्षा आज पूरी हो गयी है !

आपको बता दें कि वर्ष 2017 में मोक्ष स्थली गया में पितरों की मुक्ति के महापर्व पितृपक्ष मेला के दौरान देवघाट पर अमेरिका, रूस, जर्मनी और स्पेन के 20 विदेशी नागरिकों ने अपने पितरों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदान व तर्पण किया था। इनमें से एक जर्मनी की इवगेनिया ने कहा था कि, भारत धर्म और अध्यात्म की धरती है। गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है। मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूं।

इन विदेशियों को हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करते देख, हिन्दू धर्म की महानता हमारें ध्यान में आती है। माता-पिता तथा अन्य निकट संबंधियों की मृत्युपरांत की यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति मिले, इस हेतु किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’। श्राद्धविधि करने से पितरों की कष्ट से मुक्ति हो जाती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है। परंतु दुर्भाग्यवश आज हिंदुओं को धर्म मे बताई गई ऐसी विधी करना पिछडापन लगता है। उनके मॉडर्न जीवनशैली को श्राद्ध करने जैसी कृति अंधश्रद्धा लगती है।

हिन्दू समाज की यह दु:स्थिती धर्मशिक्षा का महत्त्व दर्शाती है। आज हिंदुओं को धर्मशिक्षा न मिलने के कारण ही उनका इस प्रकार अध:पतन हो रहा है। आज ऐसी स्थिति है कि, विदेशों से आकर श्रद्धालु हिन्दू धर्म तथा अध्यात्म के बारे में जानकारी प्राप्त कर हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करने लगें हैं। वही हिन्दू धर्म के उदगमस्थान तथा पुण्यभूमी भारतवर्ष के कई हिंदुओं को ही आज धर्माचरण करना पिछड़ेपन जैसे लगता है।

मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।

पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसीलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।

आपको बता दें कि भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे। जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। इस दिनों में पितृऋण से मुक्त होने के लिए हमे श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

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