Monday, September 14, 2020

कश्मीरी हिन्दूओं का 14 सितंबर को शुरू हुआ था नरसंहार, आज भी शरणार्थी हैं कश्मीरी पंडित।

14 सितंबर 2020


कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। मुस्लिम आतंकी संगठन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी ।




मुस्लिम आतंकवादियों ने 14 सितंबर के दिन कश्मीरी हिन्दूओं को धमकी देकर सर्वप्रथम 14 सितम्बर 1989 को श्रीनगर में हिंदुओं की रक्षा करने वाले भाजपा नेता श्री टिकालाल की हत्या की थी। उसके बाद 19 जनवरी 1990 को लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सदा के लिए अपनी धरती, अपना घर छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा। वे आज भी शरणार्थी हैं। उन्हें वहां से भागने के लिए बाध्य करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं। उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिन्दू शरणार्थियों को वो भी नहीं !

वर्ष 1990 के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी। हिजबुल मुजाहिद्दीन ने 4 जनवरी 1990 को प्रेस नोट जारी किया, जिसे कश्मीर के उर्दू समाचार पत्रों `आफताब’ और `अल सफा’ ने छापा । प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था । कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएं आरंभ हो गयी थी । कश्मीर की मस्जिदों के ध्वनि प्रक्षेपक जो अब तक केवल `अल्लाह-ओ-अकबर’ के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कहने लगे कि, ‘कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियां हमारे लिए छोड जाओ ! `कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है’, `असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन’ (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदु स्त्रियों के साथ, किंतु पुरुष नहीं’), ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे ।

दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि कश्मीर में सभी इस्लामी वेशभूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया ।  कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, घर और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिह्नित कर दिए गए । यहां तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने के लिए उन्हें बाध्य किया गया । 24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ – कश्मीर में `काफिरों का कत्ल करो’ का सन्देश गूंज रहा था । इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भूल चुका था, वह एक बार पुन: अपने सामने था !

आज कश्मीर घाटी में हिन्दू नहीं हैं। जम्मू और दिल्ली में आज भी उनके शरणार्थी शिविर हैं। 22 साल से वे वहां जीने को बाध्य हैं। कश्मीरी पंडितों की संख्या 3 से 7 लाख के लगभग मानी जाती है, जो भागने पर प्रेरित हुए। एक पूरी पीढ़ी नष्ट हो गयी। कभी धनवान रहे ये हिन्दू, आज सामान्य आवश्यकताओं के लिए भी पराश्रित हो गए हैं।  उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे। उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आ के कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरुंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं।

कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहां कभी पांडवों की 28 पीढ़ियों ने राज्य किया था, वो कश्मीर जिसे आज भी भारत मां का मुकुट कहा जाता है। 500 साल पूर्व तक भी यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था। औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गया था। किंतु कुछ समय पश्चात उसे औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित कर भरे दरबार में उसका क़त्ल कर दिया था। भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है। ‘हिंदु घटा तो भारत बंटा’ के `तर्क’ की कोई काट उपलब्ध नहीं है! कश्मीर उसी का एक उदाहरण मात्र है।

मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेकुलर पार्टियों और हिंदु संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजी के पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती ! गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेकुलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर कत्ल किए गए दसों सहस्र कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता ! सरकार कहती है कि कश्मीरी हिंदु `स्वेच्छा से’ कश्मीर छोड़ कर भागे । इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड्यंत्र भी रचा गया है । आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं जो आज भी विस्थापित हैं ।  भोगने वाले भोग रहे हैं । जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है, और याद करके आंखें आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है ।  रामायण की देवी सीता को शरण देने वाले भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पडा ! कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है – `मन करता है फूल चढा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी ही धरती पर’ ! स्त्रोत : IBTL

कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद के पहली बलि सिद्ध हुए। वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 29 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सकें !

अब मोदीजी की सरकार ने कश्मीर से 370 हटाने से कश्मीरी हिंदुओंको पुनः घाटी में बसने की उम्मीदे जागृत हुई है । अब शीघ्र ही सरकार कश्मीरी हिंदुओं का पुनर्वसन करें, ऐसी हिंदुओं की मांग है।

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Sunday, September 13, 2020

हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली एवं सबसे उन्नत भाषा है।

13 सितंबर 2020


संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। सरकारी काम काज हिंदी भाषा में ही होगा । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।




अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक हैं। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।

हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है। हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नहीं है। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है। हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाएं।

आज उस मैकाले की वजह से ही हमने अपनी मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता। हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उपयोग करना चाहिए।

मदन मोहन मालवीयजी ने 1898 में सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में हिन्दी भाषा को प्रवेश दिलाया।

लोकमान्य तिलकजी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया। वे कहते थे : ‘‘अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है। जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते। ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है। ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती।’’

जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है।

हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए। एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है। हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए।

राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए। जब कमाल पाशा अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की कुछ दिन की मोहलत ठुकराकर रातोंरात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए क्या यह असम्भव है ?

आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है। इसलिए हिन्दी की संस्कृति को विश्व को अपना अंशदान करना है।

राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है। इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है। आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें।

स्वभाषा की महत्ता बताते हुए हिन्दू संत आशाराम बापू कहते हैं : ‘‘मैं तो जापानियों को धन्यवाद दूँगा। वे अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं। ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्द बोलने लगते हैं । आदत जो पड़ गयी है ! आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी।’’
(लोक कल्याण सेतु : नवम्बर 2012)

अंग्रेजी भाषा के दुष्परिणाम

लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे, मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे, माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे, वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!

विदेशी शासन के अनेक दोषों में देश के नौजवानों पर डाला गया विदेशी भाषा के माध्यम का घातक बोझ इतिहास में एक सबसे बड़ा दोष माना जायेगा। इस माध्यम ने राष्ट्र की शक्ति हर ली है, विद्यार्थियों की आयु घटा दी है, उन्हें आम जनता से दूर कर दिया है और शिक्षण को बिना कारण खर्चीला बना दिया है। अगर यह प्रक्रिया अब भी जारी रही तो वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी। इसलिए शिक्षित भारतीय जितनी जल्दी विदेशी माध्यम के भयंकर वशीकरण से बाहर निकल जायें उतना ही उनका और जनता का लाभ होगा।

अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें। बोलचाल, इंटरनेट, ऑफिस आदि में हिंदी का प्रयोग करें व अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी विकास में सहभागी बनें।

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Saturday, September 12, 2020

साधुओं की हत्या रुक नहीं रही है, मंदिर में मिला 3 पुजारियों का खून से लथपथ शव....

12 सितंबर 2020


राष्ट्र विरोधी ताकतों ने देखा कि अगर भारतीय संस्कृति को खत्म करना है तो सबसे पहले उनके रक्षक साधु-संतों के प्रति लोगों की श्रद्धा खत्म करो जिसके लिए मीडिया द्वारा बदनाम करो या झूठे केस द्वारा जेल भिजवा दो अथवा हत्या कर दो जिससे आसानी से हिन्दू संस्कृति को खत्म करके धर्मान्तरण कर सकें एवं जिहाद फैला सकें और मंदिर की जगा चर्च या मस्जिद बनाकर उनका धर्म आसानी से फैला सकें ।




आपको बता दें कि कर्नाटक के मांड्या जिले के प्रसिद्ध अरकेश्वर मंदिर के 3 पुजारियों की गुरुवार (सितंबर 10, 2020) को बेरहमी से हत्या कर दी गई। वारदात को अंजाम उस समय दिया गया जब पुजारी मंदिर परिसर में सो रहे थे। पुजारियों को मौत के घाट उतारने के लिए धारदार हथियार के अलावा पत्थर का इस्तेमाल किया गया। बताया जा रहा है कि ये काम चोरी करने वाली गैंग का है।

पुलिस का कहना है कि मंड्या शहर के बाहरी इलाके गुट्टलु (Guttalu) में स्थित मंदिर के भीतर खून से लथपथ हालत में गणेश (55), प्रकाश (58) और आनंद (40) का शव मिला। तीनों पुजारियों को बेहरमी से मारा गया था। इनके सिर पत्थर से कुचले गए थे और मंदिर की दान पेटी से सारे रुपए गायब थे। जाँच में केवल दानपेटी से कुछ सिक्के ही मिले हैं। इसके अलावा उपद्रवियों ने कीमती सामान की तलाश में मंदिर के गर्भगृह में तोड़फोड़ भी की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये तीनों पुजारी मंदिर की देखभाल करते थे। शुक्रवार को जब ग्रामीणों ने मंदिर का दरवाजा टूटा हुआ पाया, तब उन्होंने मामला जानने के लिए अंदर जाकर देखा और वहाँ उन्हें खून से लथपथ पुजारियों के शव मिले। इसके बाद उन लोगों ने पुलिस को सूचित किया।

मामले की जानकारी होते ही आई.जी. समेत सभी वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँचे और पड़ताल शुरू की। फोरेंसिक टीम से लेकर स्निफर डॉग्स तक को क्राइम सीन के पास लाया गया।

इस घटना की सूचना पाते ही कर्नाटक के मुख्य मंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने पुजारियों के परिजनों को 5 लाख रुपए मुआवजा का ऐलान किया। मुख्यमंत्री ने कहा, “ये बेहद परेशान करने वाली बात है कि अरकेश्वर मंदिर के पुजारियों गणेश, प्रकाश और आनंद की हत्या चोरों ने कर दी है। मंदिर में मारे गए पुजारियों परिवार को 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा और दोषियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई होगी।”


गौरतलब है कि पिछले कुछ समय में साधु, संतों और पुजारियों पर हमले की घटनाओं में अचानक वृद्धि देखने को मिली है। अप्रैल में सबसे पहले पालघर में दो साधुओं की लिंचिंग का मामला सामने आया था। इसके बाद महाराष्ट्र के नांदेड़ में लिंगायत समाज के साधु की हत्या हुई थी। कुछ दिनों बाद वृंदावन में साधु तमालदास के साथ मारपीट की घटना सामने आई थी। बिहार में भी कजरा थाना क्षेत्र के श्रृंगी ऋषि धाम के पुजारी नीरज झा की हत्या कर उनके शव को जंगल स्थि‍त हनुमान थान के समीप फेंक दिया गया था। इनके अलावा यूपी के सुल्तानपुर, संभल में भी इसी तरह के हमले देखने को मिले थे।

भारतीय संस्कृति महान एवं प्राचीन है लेकिन राक्षसी स्वभाव के लोगों को सनातन संस्कृति कांटे की नाई चुभ रही है इसलिए इसे नष्ट करने के लिए अनेक कुठाराघात किये पर अभी भी सनातन संस्कृति अडिग है क्योंकि इस संस्कृति के रक्षक स्वयं भगवान एवं साधु-संत हैं, जिसकी वजह से ऐसे घोर कलिकाल में भी करोड़ों लोगों की आस्था साधु-संतो के प्रति है और वे सनातन संस्कृति को लोगों के दिल मे प्रगटाते रहते हैं जिसके कारण दुष्ट स्वभाव के लोग सफल नहीं हो पा रहे हैं इसलिए साधु-संतों की हत्या कर देते है अथवा झूठे केस में जेल भेजवा देते हैं।

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Friday, September 11, 2020

अमेरिका में वर्ल्ड पार्लियामेंट में दो संतों ने हिंदू संस्कृति का लहराया है परचम

11 सितंबर 2020


भारत के साधु-संतों ने देश-विदेश में जो सनातन धर्म की धजा फहराया वे अतुलित है इन संतों ने भारतीय हिंदू संस्कृति को मिटने नही देने में बड़ा योगदान रहा है, साधु-संत राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की भी परवाह नही करते है लेकिन सनातन धर्म विरोधी ताकते उनके खिलाफ अनेक षड्यंत्र करते रहते हैं।




स्वामी विवेकानंदजी ने अमरीका के शिकागो में 11 सितंबर 1893 को आयोजित विश्व धर्म परिषद में जो भाषण दिया था उसकी प्रतिध्वनि युगों-युगों तक सुनाई देती रहेगी।

हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने वर्ल्ड रिलीजियस पार्लियामेंट (विश्व धर्मपरिषद) शिकागो में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 में स्वामी विवेकानंदजी ने किया था और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 में हिंदू संत आशारामजी बापू ने किया था ।

लेकिन दुर्भाग्य है कि जिन संतों को "भारत रत्न" की उपाधि से अलंकृत करना चाहिए उन्हें ईसाई मिशनरियों के इशारे पर राजनीति के तहत झूठे आरोपों द्वारा जेल में भेजा जाता है और विदेशी फण्ड से चलने वाली भारतीय मीडिया द्वारा उन्हें बदनाम कराया जाता है।

स्वामी विवेकानंद ने जब हिंदुओं की घरवासपी शुरू किया और पादरियों का विरोध करने लगे तब ईसाई मिशनरियों की कठ पुतली बने वीरचंद गांधी द्वारा अखबारों में उनके लिए गन्दा-गंदा लिखा गया । स्वामी  विवेकानंद जी पर स्त्री लंपट, चरित्रहीन, विलासी युवान इस तरह के अनेक आरोप लगाए गए उनके हयाती काल में उन्हें इतना परेशान किया गया, उनका इतना कुप्रचार किया गया कि उनके गुरूजी की समाधि के लिये एक गज जमीन तक उन्हें नहीं मिली थी । पर अब पूरी दुनिया स्वामी विवेकानंद जी व उनके गुरूजी श्री रामकृष्ण परमहंस का जय-जयकार करती है ।

जब स्वामी विवेकानंद जी धरती से चले गए, अर्थात् इतिहास के पन्नों पर जब उनकी महिमा आयी तब लोग उनको इतना आदर - सम्मान देते हैं पर उनकी हयातीकाल में उनके साथ दुष्टों अनेक षडयंत्र किये।

क्या हम भी ऐसा व्यवहार हयात संतों के साथ तो नहीं कर रहे..??

बता दें कि आज मल्टी नेशनल कंपनियों को भारी घाटा होने के कारण ही आशारामजी बापू षड़यंत्र के तहत फंसाये गए हैं । क्योंकि उनके 8 करोड़ भक्त बीड़ी, सिगरेट, दारू, चाय, कॉफी, सॉफ्ट कोल्ड्रिंक आदि नही पीते हैं । वेलेंटाइन डे आदि नहीं मनाते जिससे विदेशी कंपनियों को अरबो-खबरों का घाटा हो रहा था और उन्होंने जो हिन्दू ईसाई बन गए थे उन लाखों हिन्दुओं की घर वापसी कराई, सनातन धर्म की महिमा सुनाई, इसलिए ईसाई मिशनरियों ने और विदेशी कंपनियों ने मिलकर मीडिया में बदमाम करवाया और राजनीति से मिलकर झूठे केस में फंसाया।

फकीरी स्वभाव के संत आशारामजी बापू सात वर्ष से कष्टदायी जेल में हैं । इसके बावजूद उन्होंने समता का साथ नहीं छोड़ा है । 8-10 करोड़ साधकों का बल होने के बाद भी कभी उसका दुरुपयोग नहीं किया । हमेशा शांति का संदेश दे के शासन-प्रशासन को सहयोग दिया । जेल में रहकर भी हमेशा अपने भक्तों को समता, धीरज और अहिंसा का संदेश भेजते रहे ।जहर उगलनेवाले टीवी चैनलों ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया ।बापू नहीं चाहते कि उनके भक्त उनके लिए कष्ट सहें, कानून को हाथ में लेकर कोई भी गलत कदम उठायें , देश की संपत्ति का नुकसान पहुंचे। वे हमेशा कहते रहते हैं : ‘‘सबका मंगल, सबका भला हो ।’’ वे स्वयं कष्ट सहकर मुस्कराते हैं और अपने साधकों को कहते हैं :*
"मुस्कराकर गम का जहर जिनको पीना आ गया ।
यह हकीकत है कि जहाँ में उनको जीना आ गया ।।’’

बापू आशारामजी हर परिस्थिति में सम रहने का जो उपदेश देते हैं, वह उनके स्वयं के जीवन में, व्यवहार में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है । आज हर वह व्यक्ति पीड़ित है, जिसे अपने देश, धर्म और संस्कृति तथा इनके रक्षक संतों से प्यार है । आज दुःखद बात यह है कि देश के इतने बड़े संत, जिन्होंने विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के बाद भारत का प्रतिनिधित्व किया और भारतीय संस्कृति की महानता का  डंका बजाया तथा पूरे विश्व को प्रेम और भाईचारा सिखाया, उनको सात वर्ष से जेल में रखा गया है । इसे अन्याय की पराकाष्ठा नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?

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Thursday, September 10, 2020

अगर आप भी देशभक्त अथवा भारतीय संस्कृति के प्रचारक हैं तो सावधान रहें, कीमत चुकानी होगी।

10 सितंबर 2020


जब भी प्रसिद्ध हस्ती अथवा कोई व्यक्ति देशभक्ति, भारतीय संस्कृति या सनातन धर्म की बात करते हैं और राष्ट्र विरोधी लोगों का विरोध करते हैं तो उनको बहुत कुछ सहन करना पड़ता है, यहाँ तक ही हत्या भी हो सकती है अथवा जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं। उसमें से हम कुछ उदाहरण बता रहे हैं जिससे आप भी राष्ट्र विरोधी ताकतों से सावधान रहें।




आपने कुछ दिन से देखा होगा कि अभिनेत्री कंगना रनौत ने जब से बॉलीवुड और ड्रग्स माफियाओं की पोल खोली है तब से उनके खिलाफ कई आरोप भी लगें यहाँ तक कि उनका मकान भी तोड़ा गया और एयरपोर्ट पर विरोध भी सहन करना पड़ा और ऊपर से FIR भी दर्ज की गई तथा मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया जा रहा है।

दूसरा उदाहरण आपको बता रहे हैं सुरेश चव्हाणके का। UPSC में मुस्लिम घुसपैठियों और जिहाद का खुलासा किया तब उनके खिलाफ केम्पेन चलाया गया, उनके खिलाफ अनेक एफआईआर दर्ज करवाई गई, यहाँ तक कि उनके चैनल को विज्ञापन देना बंद करवा दिया जिसके कारण उनका चैनल बंद हो जाये उससे पहले भी उनको काफी संघर्ष करना पड़ा।

बंगाल, केरल आदि में कई राष्ट्र भक्तो की हत्या की जा रही हैं।

जिन आदिवासियों को ईसाई बना दिया गया था, उन लाखों हिंदुओं की घर वापसी हिन्दू सन्त आशारामजी बापू ने करवा दी थी, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बना दिया, सैंकड़ों गुरुकुल और 17000 से अधिक बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन जीने की कला बताई, कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर अनेकों गौशालाएं खोल दी, वेलेंटाइन डे के दिन करोडों लोगो में मातृ-पितृ पूजन शुरू करवा दिया।

विदेशों में भी उनके लाखों अनुयायी बन चुके थे और वे भारतीय संस्कृति का वहाँ प्रचार करने लगे थे, करोड़ो लोगों को व्यभिचारी से सदाचारी बना दिया उसके बाद उन करोडों लोगो ने व्यसन छोड़ दिये, सिनेमा में जाना छोड़ दिया, क्लबों में जाना छोड़ दिया, ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे, स्वदेशी अपनाने लगें इसके कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अरबो-खरबों रुपये का घाटा हुआ और ईसाई मिशनरियों के धर्मान्तरण की दुकानें बंद होने लगीं, फिर उनको सुनियोजित ढंग से षड्यंत्र रचकर जेल भेज दिया गया और 7 साल से जेल में बंद है। 85 वर्ष की उम्र है लेकिन एक दिन भी जमानत नही दी गई।

प्रखर राष्ट्रभक्त साध्वी प्रज्ञाजी को 9 साल, डीजी वंजाराजी को 8 साल, स्वामी असीमानन्दजी को 8 साल, कर्नल पुरोहित 7 साल, केशवानन्दजी महाराज, शंकराचार्य आदि को सालों तक जेल में रखा गया और अमानवीय यातनाएं दी गई थी।

ओडीशा में धर्मान्तरण का विरोध करने वाले दारा सिंह को सालो से जेल में रखा गया है, अपनी मां की अंतेष्टि करने के लिए भी पेरोल नही दी गई। 2008 में कंधमाल में माओवादियों ने स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती सहित तीन और साधुओं की हत्या गोली मार कर दी थी। लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या इसलिए हुई थी क्योंकि स्वामी जी कंधमाल में निर्दोष आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का विरोध कर रहे थे।

आपको यह उदाहरण इसलिए बता रहे हैं कि हिन्दू ही आपस मे संगठित नही हैं, आपस मे लड़ते रहते हैं, जाति-पाती में बंटे रहे हैं, कोई एक राष्ट्रवादी फंसता है तो उसको सपोर्ट करने वाले बहुत कम हुए है जिसके कारण आज हिंदू धर्म की भी दुर्दशा हो रही है इसलिए समय आ गया है कि जिन राष्ट्रभक्तों का विरोध हो रहा है उनका पुरजोश समर्थन करें, उनके किये आवाज उठाये इसके कारण राष्ट्र विरोधी ताकते आसानी से हार जाएगी और राष्ट्रवादियों की जीत होगी इससे राष्ट्र सुरक्षित रहेगा और राष्ट्र सुरक्षित रहेगा तो हम भी सुरक्षित रहेंगे।

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Wednesday, September 9, 2020

धर्मांतरण कराने वालें 13 NGO का FCRA लाइसेंस किया रद्द, अब नही कर पायेंगे धर्मान्तरण।

08 सितंबर 2020


खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट (2016) में बताया था कि कई NGOs भारत देश में धर्मान्तरण के काम में लगे हुए हैं और इनमें से कई ऐसे हैं जो बहुत ही छोटी - मोटी घटनाओं को मजहबी रंग देने की साजिश रचते हैं ।




रिपोर्ट के अनुसार विदेशी डोनर्स की पहचान हुई हैं जो भारत में NGOs को फ़ण्डिंग करते हैं ताकि हिंदुओं का धर्मान्तरण करवाया जा सकें । इन विदेशी डोनर्स में अमेरिका, दक्षिण कोरिया और यूरोप शामिल हैं ।

आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 13 ईसाई संगठनों के विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) लाइसेंस को सस्पेंड कर दिया है। मंत्रालय ने यह निर्णय पिछड़े इलाकों में आदिवासियों को प्रलोभन देकर उनके धर्मांतरण कराए जाने की रिपोर्ट के बाद लिया है।

जिन 13 ईसाई संगठनों का FCRA लाइसेंस सस्पेंड किया गया है, उनके बैंक अकाउंट भी फ्रिज कर लिए गए हैं। कुछ राज्यों के पिछड़े इलाकें खासकर झारखंड से आई इंटेलिजेंस रिपोर्ट की मानें तो ये संस्था आदिवासियों को लोभ-लालच देकर उनका धर्मांतरण कर उन्हें ईसाई बना रहे थे।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जिन 13 ईसाई संगठनों का FCRA लाइसेंस सस्पेंड किया है, उन्हें पहले ‘कारण-बताओ’ नोटिस भेजा था। लेकिन तय समय-सीमा के भीतर किसी ने भी जवाब नहीं दिया। अभी तक सिर्फ एक संगठन की ओर से जवाब आया है, वो भी तय समय-सीमा के बाद। मंत्रालय के अनुसार भेजा गया जवाब संतुष्टि के लायक नहीं है।

दो दिन पहले भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 4 ईसाई संगठनों के विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) लाइसेंस को सस्पेंड कर दिया था। जिन चार ईसाई समूहों का FCRA सस्पेंड किया गया है, उनमें झारखंड का Ecreosoculis North Western Gossner Evangelical, मणिपुर का Evangelical Churches Association (ECA), झारखंड का Northern Evangelical Lutheran Church और मुंबई स्थित New Life Fellowship Association (NLFA) शामिल हैं।

क्या है विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) :: किसी भी संगठन के लिए विदेश से चंदा प्राप्त करने के लिए गृह मंत्रालय से FCRA की मँजूरी होना अनिवार्य है। इस लाइसेंस के नहीं होने से संस्थान या संगठन विदेश से चंदा या वित्तीय योगदान मँगाने में कानूनी रूप से सक्षम नहीं होता है।

विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) 2010 के प्रावधानों के अनुसार प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराना गैर-कानूनी है। इस अधिनियम के सेक्शन 12(4) के अनुसार सक्षम अधिकारी किसी NGO या संगठन को धार्मिक गतिविधियों से परे लोभ-लालच-प्रलोभन देकर धर्मांतरण करने की स्थिति में उसका लाइसेंस सस्पेंड कर सकते हैं।

भारत में बहुत सारे NGO's धर्म परिवर्तन के काम में लगे हुए हैं। विदेशी पैसों से चलने वालें NGO's धर्मपरिवर्तन ही करा रहे हैं ऐसा ही नहीं है बल्कि छोटी-छोटी घटनाओं को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश करके भारत देश का माहोल भी खराब कर रहें हैं। 2016 की रिपोर्ट में दो तरीके की बातें हैं, एक तो धर्म परिवर्तन करने वाले NGO's की पहचान हुई है और भारत को बदनाम करने के लिए कैसे साजिश रची जा रही है, इसके लिए काफी ज्यादा मात्रा में विदेशों से NGO's को पैसे मिलते हैं ।

उसमें छत्तीसगढ़, झारखण्ड, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश आदि कई राज्यों में गरीब आदिवासियों में धर्म परिवर्तन कराने के लिए बड़े पैमाने पर इस पैसों का उपयोग हो रहा है।
 
गैर कानूनी कामों में लिप्त विदेशी फंड से चलने वाली NGO's की इन्क्वाइरी में पता चला की इसके पैसे विदेश से इसलिए आते थे की वो बच्चों की शिक्षा में उपयोग करें।

लेकिन ये NGO's देश में जगह-जगह दँगा फैलाने का काम करते हैं। भारत देश को तोड़ने के लिए कई जगहों पर इन्होने दंगे भी करवाये थे। इसलिए गृह मंत्रालय ने इनका लाइसेंस रद्द कर दिया है।

अब ये बड़ी चौंकाने वाली रिपोर्ट है। लेकिन ये बात स्वर्गीय VHP के श्री अशोक सिंघल जी ने पहले ही बता दी थी। लेकिन इस बात पर कोई ध्यान नही दें रहा था। भारत को तोड़ने के लिए एक नहीं, दो नहीं कई हजारों NGO's लगे हैं जो आज से नहीं चल रहे हैं कई सालों से चल रहे हैं।

इनका उद्देश्य केवल यही है कि भारत देश को फिर से गुलाम बनाया जाये। उसके लिए ये NGO's दिन रात काम कर रहें हैं और उनको इसके लिए विदेश से अरबों-खरबों रूपए भेजे जातें हैं। इनसे सावधान रहें।

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Tuesday, September 8, 2020

जानिए लव जिहाद में हिंदू लड़कियां फंसकर अपनी जिंदगी बर्बाद कैसे कर देती हैं।

 

08 सितंबर 2020

हिंदू युवतियों को अपने माँ-बाप धर्म के संस्कार नहीं देते हैं जिससे हिंदू युवतियां सेक्युलर बन जाती हैं और स्कूलों में भी शिक्षा सेक्युलरिज्म की दी जा रही है। ऊपर से वेब सीरीज, सीरियलों एवं फिल्मों द्वारा लव जिहाद को बढ़ावा दिया जाता है जिसके कारण हिंदू युवती लव जिहाद में आसानी से फस जाती है और उनका आखरी अंत बड़ा दर्दनाक होता है।




लव जिहाद से हिंदू युवतियों की जिंदगी बर्बाद हो गई है ऐसी एक-दो नहीं हजारों-लाखों घटनाएं होंगी पर उसकी खबरें इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया नहीं बताती है जिसके कारण ऐसी खबरें जनता तक पहुँच नही पाती है जिसके कारण दूसरी हिंदू युवतियां भी लव जिहाद में फंसकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर देती हैं।

आपको यहाँ दो ताजा खबरें दिख रहे है लव जिहाद में फंसकर कैसे हिंदू युवतियां अपनी जिंदगी बर्बाद कर देती हैं।

अहमदाबाद में लव जिहाद

अहमदाबाद पुलिस ने मोइन कुरैशी नाम के युवक के खिलाफ उसी की पत्नी की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की है। पत्नी ने अपने शौहर के खिलाफ धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। कुरैशी की पत्नी नयना (बदला हुआ नाम) जन्म से हिंदू है। उसने बताया कि उसके पति ने शादी से पहले उससे वादा किया कि वह कभी भी उसे हिंदू धर्म छोड़ने और इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर नहीं करेगा। लेकिन बाद में मोईन कुरैशी ने कथित तौर पर उस पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और नयना पर इस्लाम धर्म कबूलने का दबाव डाला।

नयना कहती है कि शादी से पहले कुरैशी ने उससे अहमदाबाद के पॉश इलाके शाहीबाग में रहने का दावा किया था। लेकिन बाद में यह सामने आया कि कुरैशी दुधेश्वर नामक सामान्य इलाके में रहता हैं।

हिंदू लड़की नयना ने कहा कि फरवरी 2017 में उसने मोइन से साथ कोर्ट मैरिज की थी। कुरैशी ने 2018 में रमज़ान के दौरान उस पर इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डालना शुरू किया। इसके अलावा छोटी-छोटी बातों पर उसने झगड़े शुरू कर दिए और वो कुछ कमाता नही था और नयना खुद जॉब करके करीब 6.5 लाख रुपये कमा लेती थी उससे मोइन मौज मस्ती करता था।

वहीं 16 जनवरी, 2020 को उसके बेटे का जन्म हुआ तो कुरैशी ने नयना को अपने बेटे का हिंदू नाम रखने से मना कर दिया। नयना ने  बताया कि बच्चे के जन्म के बाद उनका रिश्ता और अधिक तनावपूर्ण हो गया था। जब उसने अपनी समस्याओं के बारे में अपनी माँ से बात की तो उसे समझौता करने के लिए कहा गया। 23 जुलाई, 2020 को कुरैशी ने नयना और अपने बेटे को उसके माता-पिता के घर ले गया और उन्हें वहाँ छोड़ दिया। तब से नयना, अपने बेटे के साथ अपने माता-पिता के साथ रह रही है। नयना ने अपने पति पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए न्याय माँगा है।

कानपुर लव जिहाद की पीड़िता मुस्कान

उत्तर प्रदेश पुलिस ने कानपुर में जाजमऊ निवासी आसिफ शाह उर्फ नफीज को गिरफ्तार किया है। आसिफ ने गोविंद नगर की 18 वर्षीय मुस्कान को अपने प्रेम जाल में फँसाया और ब्रेनवॉश कर जबरन उसको इस्लाम कबूलने पर मजबूर किया।

🚩मुस्कान के परिवार ने कानपुर के गोविंद नगर में स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की थी, जिसमें आसिफ शाह उर्फ नफीज नाम के एक युवक पर उनकी बेटी पर जादू-टोना करके ब्रेनवॉश करने, शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार करने और जबरन इस्लाम कबूल कर शादी करने के लिए धमकाने का आरोप लगाया।

आरोपित की गिरफ्तारी के बारे में बात करते हुए, मुस्कान की माँ ने कहा कि आसिफ शादीशुदा और दो बच्चों का पिता है। वह 35 साल का है, जबकि मुस्कान केवल 18 साल की थी। उसने अपनी पिछली शादी के बारे में मुस्कान से झूठ बोला था। जब वह मुस्कान को अपने घर ले गया, तो उसने कथित तौर पर अपनी पत्नी को अपनी बड़ी बहन के रूप में उससे मिलवाया था।

युवती ने बताया था कि उस पर जबरन इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया जा रहा था। इतना ही नहीं वे लोग जादू-टोना, झाड़-फूँक से उसके धर्मांतरण की कोशिश कर रहे थे। उसने यह भी कहा कि आसिफ के साथ उसका निकाह हो गया है।

सभी ने पुष्टि की थी कि कानपुर में अन्य मामलों की तरह यह भी लव जिहाद का मामला था, जहाँ आरोपित के परिवार ने योजनाबद्ध तरीके से एक हिंदू लड़की को निशाना बनाया और फँसाया था।

लव जिहाद की यहाँ केवल 2 ही घटनाओ का ही उल्लेख किया है बाकी ऐसी लाखों घटनाएं है जिसमे हिंदू युवतियों ने लव जिहाद में फंसकर अपनी जिंदगी को बर्बाद कर लिया है, कई हिंदू युवतियों का तो पता भी नही चल पा रहा है कि वे कहां गई, विदेश में बेच दिया, हत्या कर दी या खुद आत्महत्या कर ली? अब हिंदुओं को जागरूक होने की अत्यंत आवश्यकता है सबसे पहले अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा दें, अच्छे संस्कार दें, टीवी सिनेमा से दूर रखें, उनका मोबाइल चेक करते रहें जिससे बच्चे अपनी जिंदगी बर्बाद न कर लें नही तो यही बच्चे बड़े होकर आपको ही गालियां देंगे, बच्चों का भी कर्तव्य है कि अपने माँ-बाप की बात माने नही तो आगे पछताना पड़ेगा।

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