Tuesday, January 19, 2021

भगवान की जगह अल्लाह का मजाक उड़ाने की है हिम्मत? - कंगना

19 जनवरी 2021


अमेजन प्राइम पर आने वाली सीरीज तांडव को लेकर बवाल जीशान अयूब के सीन पर हुआ है। इस सीन में जीशान भगवान शिव बने हुए हैं। उस वीडियो में जीशान कैंपस के छात्रों की आजादी की बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि इन छात्रों को देश में रहकर आजादी चाहिए, देश से आजादी नहीं चाहिए। आरोप है कि जीशान ने इस सीन में भगवान शिव का मजाक उड़ाया है।




इस पर जनता का गुस्सा फुट निकला हैं, आम जनता के बाद अब बड़ी-बड़ी हस्तियों ने इस सीरीज के मेकर्स को घेरना शुरू किया है।

अभिनेत्री कंगना रनौत ने सीरीज के मेकर्स से पूछा कि क्या उनमें ‘अल्लाह’ का मजाक बनाने की हिम्मत है? उन्होंने कपिल मिश्रा के ट्वीट को रीट्वीट करके लिखा, “माफी माँगने के लिए बचेगा कहाँ? ये सीधा गला काट देते हैं, जिहादी देश फतवा निकाल देते हैं, लिब्रु मीडिया वर्चुअल लिंचिंग कर देती है, तुम्हें ना सिर्फ़ जान से मार दिया जाएगा बल्कि उस मौत को भी जस्टिफ़ाई किया जाएगा, बोलो अली अब्बास जफर, है हिम्मत अल्लाह का मज़ाक़ उड़ाने की?”
इससे पहले बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने लिखा था, “अली अब्बास जफर, कभी अपने मजहब पर मूवी बनाकर माफी माँगिए। सारी अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारे ही धर्म के साथ क्यों? कभी अपने एकमात्र ईष्ट का भद्दा मजाक उड़ा कर भी शर्मिंदा होइए। आपके अपराधों का हिसाब भारत का कानून करेगा, जहरीला कंटेट वापस लीजिए, तांडव को हटाना ही पड़ेगा।” https://twitter.com/KanganaTeam/status/1351172718004154381?s=19

वहीं कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव ने वीडियो जारी करके कहा,  “मैं बहुत समय से कह रहा हूँ। ये हमारी आस्था के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। ये किसी साजिश के तहत हिंदू धर्म को बदनाम किया जा रहा है। शर्म करो! डूब मरो! ऐसे फिल्म वालों, ऐसी वेब सीरीज बनाने वालों। हमारे हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाते हो। तुम्हें शर्म आनी चाहिए। अगर हिम्मत है तो दूसरे धर्म पर भी ऐसी कॉमेडी करो। लेकिन तुम नहीं करोगे। क्योंकि तुम्हारा सिर कलम कर दिया जाएगा।”

श्रीवास्तव कहते हैं, “हर बार वेबसीरीज में सैफ अली खान बार-बार ये हरकत करता है। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। कोई कानून नहीं है। हिंदू धर्म में हर कोई सहिष्णु। हिंदुओं का दिल बड़ा होता है, माफ करते जा रहे हैं। क्षमा करते जा रहे हैं। अब समय आ गया है हिंदुओं जागो। तुम्हें जागना होगा। ये जो माँग हो रही है सीन को हटा दो… सीन को हटाने से काम नहीं चलेगा। तुम्हें कड़ी से कड़ी सजा देनी पड़ेगी। ऐसा कानून बनाना पड़ेगा कि दोबारा कोई ऐसी हरकत न करे।”
गौरतलब है कि तांडव वेब सीरीज को लेकर हुए विवाद के कारण इसके मेकर्स ने सोमवार को इस संबंध में माफी माँगी थी। लेकिन लोगों का गुस्सा और अधिक बढ़ गया। 

हिंदुत्व जिस प्रकार से पहले बॉलीवुड और अब वेब सीरीज ने निशाना बनाया है और जितना आघात सनातन धर्म को तथाकथित मनोरंजन ने दिया है संभवतः उतना आघात बड़े से बड़े और क्रूर से क्रूर मजहबी आक्रांता और विदेशी लुटेरे भी नहीं दे पाए होंगे। 

अब हिंदुओं को जागना होगा और ऐसे फिल्मों व वेब सिरिजो का बहिष्कार करना होगा तभी ये लोग सुधरेंगे, आज ट्वीटर पर ट्रेंड भी चल रहा था कि जैसे पाकिस्तान आदि मुस्लिम देश में ईशनिंदा का कानून है वैसे ही भारत मे देव निंदा का कानून बने और ऐसे लोगों को कड़ी सजा देनी चाहिए।

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Monday, January 18, 2021

वो काली रात जब लाखों हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने को किया मजबूर...

18 जनवरी 2021



 इतिहास का वो काला दिन 19 जनवरी 1990 जब लाखों हिन्दू बंधुओं को जिहादियों ने धमकी देकर उन्हें वहां से विस्थापित होने के लिए विवश किया था ।




 19 जनवरी जब-जब यह तारीख आती है, कश्मीरी पंडितों के जख्म हरे हो जाते हैं । यही वह तारीख है जिस दिन जम्मू कश्मीर में बसे कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर कर दिया गया । इस तारीख ने उनके लिए जिंदगी के मायने ही बदल दिए थे । 

आपको बता दें कि कश्मीर में केवल पंडितों को ही नही सभी जाति के हिंदुओं भगाया गया था, इतिहास में केवल पंडितों का नाम इसलिए बताया है कि जिसके कारण दूसरे जाति के हिंदू शांत रहे क्योंकि नकली इतिहासकार अच्छे से जानते हैं कि हिंदू जाति-पाति में बंटे है, एक नहीं है इसलिए केवल ब्राह्मणों का ही उल्लेख किया गया है।


कश्मीेरी पंडितों को बताया काफिर-

देश की आजादी के बाद धरती के जन्नत कश्मीर में जहन्नुम का मौहाल बन चुका था । 19 जनवरी 1990 की काली रात को करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों व हिंदुओं को अपना आशियाना छोड़कर पलायन को मजबूर होना पड़ा था । अलगावादियों ने हिन्दुओ के घर पर एक नोटिस चस्पा की गई । जिसपर लिखा था कि ‘या तो मुस्लिम बन जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ…या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ ।’


 20 जनवरी 1999 को कश्मीर की मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों को काफिर करार दिया गया । मस्जिदों से लाउडस्पीकरों के जरिए ऐलान किया गया, 'कश्मीरी पंडित या तो मुसलमान धर्म अपना लें, या चले जाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें ।' यह ऐलान इसलिए किया गया ताकि कश्मीरी पंडितों (हिंदुओं) के घरों को पहचाना जा सके और उन्हें या तो इस्लाम कुबूल करने के लिए मजबूर किया जाए या फिर उन्हें मार दिया जाए ।


कश्मीरी पंडितों के सर काटे गए, कटे सर वाले शवों को चौक-चौराहों पर लटकाया गया था  ।


बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने अपने घर छोड़ दिए । आंकड़ों के मुताबिक 1990 के बाद करीब 7 लाख कश्मीरी पंडित (हिंदू) अपने घरों को छोड़कर कश्मीर से विस्थापित होने को मजबूर हुए ।

सरेआम हुए थे बलात्कार!!

एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मार कर उसकी हत्या कर दी । घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए ।

मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया कि इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं ।

डर की वजह से वापस लौटने से कतराते!!

आज भी कश्मीेरी पंडितों के अंदर का डर उन्हें वापस लौटने से रोक देता है । कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ने से पहले अपने घरों को कौड़‍ियों के दाम पर बेचा था । 27 वर्षों में कीमतें तीन गुना तक बढ़ गई हैं । आज अगर वह वापस आना भी चाहें तो नहीं आ सकते क्योंकि न तो उनका घर है और न ही घाटी में उनकी जमीन बची है । इस मौके पर अभिनेता अनुपम खेर ने एक कविता शेयर की है । आप भी देखिए अनुपम ने कैसे कश्मीररी पंडितों का दर्द बयां किया है ।

 कर्नाटक के श्री प्रमोद मुतालिक, श्रीराम सेना (राष्ट्रिय अध्यक्ष) ने बताया कि यह कश्मीरी हिंदुओं के विस्थापन का प्रश्न नहीं, यह पूरे भारत की समस्या है । हिंदुओं को 1990 में कश्मीर में से क्यों निकाला गया ? क्या वो कोई दंगा कर रहे थे ? या उनके घर में हथियार थे ?

उन्हें केवल इसलिए वहां से निकल दिया गया कि वो ’हिन्दू´ हैं । आज यही समस्या भारत के विविध राज्यों में उभरनी शुरू हो गई है । इसलिए आज एक भारत अभियान की आवश्यकता है ।

 डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिती ने बताया कि जिस प्रकार महाभारत के काल में भगवान श्रीकृष्ण ने 5 गांव मांगे थे किंतु कौरवों ने वो भी देने से इन्कार कर दिया था , तदुपरांत महाभारत हुआ । उसी प्रकार आज कश्मीरी हिंदुओं के लिए पूरे भारत के हिन्दुत्वनिष्ठ और राष्ट्रप्रेमी संगठन पनून कश्मीर मांग रहे हैं।

कश्मीर भारत माता का मुकुट है । कश्मीर भूभाग नहीं, कश्यप ऋषि की तपोभूमि है । वहां से हिंदुओं का पलायन हुआ है, परंतु उन्हाेंने हार नहीं मानी है  । कश्मीर में पुनः कश्मीर और भारत हिन्दू राष्ट्र बनने तक हम कार्य करते रहेंगे यह हमारा धर्मदायित्व है  ।

अधिवक्ता श्रीमती चेतना शर्मा, हिन्दू स्वाभिमान, उत्तर प्रदेश ने बताया कि राजनैतिक दलों ने हर जगह जाति का नाम देकर हर मामले को राजनैतिक करने का प्रयास किया है । परंतु आज समय आ गया है कि जो स्थिति जैसी है, वैसा ही सत्य रूप दुनिया के सामने लाया जाए । जब भी, जहां भी जनसांख्यिकी बदली है, वहां कश्मीर बना है । अब उत्तर प्रदेश की भी स्थिति वैसी ही होना शुरु हो गई है । कैराना में जो हुआ, वही आज उत्तर प्रदेश के बाकी क्षेत्रों में भी होने लगा है । अब मात्र 10 वर्ष में या तो भारत हिन्दू राष्ट्र होगा , या हिन्दू विहीन राष्ट्र !

आपको बता दें कि 14 सितंबर, 1989 को बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या से कश्मीर में शुरू हुए आतंक का दौर समय के साथ और वीभत्स होता चला गया ।

टिक्कू की हत्या के महीने भर बाद ही जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनाने वाले सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई । फिर 13 फरवरी को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की निर्मम हत्या के साथ ही आतंक अपने चरम पर पहुंच गया था । उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई । उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओं और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की ।

सुप्रीम कोर्ट में 27 साल पहले हुए पंडितों पर नरसंहार की जांच करने से इंकार कर दिया था ।  जिसमें 700 लोगों की मौत हुई थी । कोर्ट ने कहा कि इतने साल से आप कहां थे, अब 27 साल बाद इन मामलों में सबूत कैसे मिलेंगे ?  कुल मिला कर अब वो सभी हिन्दू कम से कम भारत के तंत्र से न्याय से सदा वंचित ही रहेंगे जबकि अदालत ने ही लगभग 30 साल पुराने मेरठ के हाशिमपुरा दंगो में मारे गए मुस्लिमों के केस में कई PAC के जवानों को सज़ा दी ।

उन कश्मीर पंडितों की हालात की कल्पना कीजिये जब उनके घरों में सामान बिखरा पड़ा था । गैस स्टोव पर देग़चियां और रसोई में बर्तन इधर-उधर फेंके हुए थे । घरों के दरवाज़े खुले थे । हर घर में ऐसा ही समान था । ऐसा लगता था कि कोई बहुत बड़ा भूकंप के कारण घर वाले अचानक अपने घरों से भाग खड़े हुए हों..कश्मीरी पंडित हिंसा, आतंकी हमले और हत्याओं के माहौल में जी रहे थे । सुरक्षाकर्मी थे लेकिन उन्हें किस ने मना किया था चुप रह कर सब देखते रहने के लिये ये आज तक रहस्य है...शुरू में उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं । “जम्मू में पहले हम सस्ते होटल में रहे, छोटी-छोटी जगहों पर रहे । बाद में एक धर्मशाला में रहे.. इतना  ही नहीं, उनके पेट भीख माग कर भी  पले... ।

सरकार प्रयास करें कि वहाँ पुनः हिन्दू बसें और अन्य राज्यों में हिंदू कम हो रहे हैं। उसके लिए जनता ध्यान दें,  हिंदुओं को कम से कम 4 बच्चें पैदा करना चाहिए।

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Sunday, January 17, 2021

फिल्मों का प्रभाव : ‘आश्रम’ वेब सीरीज देखकर जंगल में की युवती की हत्या

17 जनवरी 2021


जो लोग कहते हैं कि फिल्मों का हमारे वास्तविक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ता है और उन्हें कला के नाम पर जो आवश्यक लगे वो दिखाने की आजादी दी जानी चाहिए इस प्रकार का ज्ञान लिखने या सुनाने वाले लोग ऐसा करते समय इसके दूसरे पहलू से आँखें बंद कर लेना बेहतर समझते हैं। लेकिन ओरमाँझी में जो वीभत्स घटना घटी है, वह इस दावे पर मोहर लगाती है कि समय के साथ भारतीय सिनेमा का जो स्वरुप बदला है, उसने समाज पर अपना पूरा प्रभाव छोड़ा है।




झारखंड की राजधानी राँची स्थित ओरमाँझी से कुछ ही दिन पहले एक युवती की सिर कटी लाश बरामद हुई थी। इस युवती के हत्यारे आरोपित शेख बेलाल ने कहा है कि उसे हाल ही में विवाद के कारण चर्चा में आई वेब सीरीज ‘आश्रम’ ने ऐसा करने की प्रेरणा दी और इसे देखकर ही उसने इस क्रूरता को अंजाम दिया।

रविवार (जनवरी 10, 2021) को जिराबार जंगल से एक युवती की सिर कटी हुई लाश मिली थी, जो नग्न अवस्था में थी। सिर न मिलने के कारण मृतका की पहचान नहीं हो सकी थी। पुलिस ने मामले में आरोपित बिलाल खान उर्फ शेख बेलाल की तलाश की और उसे दबोचने में कामयाब रही। लाश मिलने के बाद राँची के पुलिस अधीक्षक नौशाद आलम ने बताया था कि उन्हें निर्वस्त्र अवस्था में महिला की सिर कटी लाश मिली और युवती का कटा हुआ सिर उसके पहले पति बिलाल खान के खेत से बरामद किया। युवती का सिर बिलाल खान के खेत में दफ़नाया गया था, जिसे पुलिस अधिकारियों ने खोद कर निकलवाया।

इस हत्या की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारियों ने हत्या के तरीके से कयास लगाए हैं कि फ़िल्मी तरीके से बिलाल ने हत्‍या के बाद युवती की लाश की पहचान ना हो सके, इसलिए उसका धड़ और सिर अलग-अलग जगहों पर दो किलोमीटर दूर फेंक दिए। पुलिस का कहना है कि ‘आश्रम’ वेब सीरीज के पहले भाग की थीम की तरह ही इस हत्या को भी अंजाम दिया गया और जंगल में हत्या कर लाश को ठिकाने लगाया गया। पुलिस ने कहा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ये बात सामने आई कि पहले युवती की गला दबाकर हत्या की गई, उसके बाद सिर और चेहरे पर 15 बार वार किए गए।

उल्लेखनीय है कि निर्देशक प्रकाश झा और अभिनेता बॉबी देओल की ‘आश्रम’ वेब सीरीज की कहानी ड्रग्स, बलात्कार, नरसंहार और राजनीति से सम्बंधित है और फिल्म में ‘बाबा’ को सनातन धर्म का बाबा दिखाकर हिंदुत्व को बदनाम करने का जमकर प्रयास किया गया।

‘आश्रम’ के रिलीज होने के साथ ही इसकी पटकथा और हिन्दूघृणा चर्चा का विषय रही। इसमें कई ऐसे तथाकथित दृश्य भी डाले गए जो सनातन धर्म से जुड़ी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाते हैं।

भारतीय संस्कृति तोड़ने का कार्य व युवा पीढ़ी को बर्बाद करने का सबसे अधिक कार्य फिल्मों ने किया है, फिल्मों में अश्लीलता, नशा करना, हत्या करना, रेप करना, चोरी करना आदि आदि अनेक प्रकार की गंदगी परोसी जा रही है जिसके कारण देश का भविष्य बच्चे व युवा-युवतियां बर्बाद हो रहे है, और आजकल तो हिंदी विरोधी फिल्में, वेब सीरीज आदि बनाकर हिंदू धर्म को नष्ट करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।

हिंदू धर्म के कारण ही आज मानवता टिकी है, फिर भी झूठी कहानियां बनाकर हिंदू धर्म को बदनाम किया जाता है, जबकि मजहब-पंथ आदि दूसरे धर्मों में अनेक बुराइयां है जिसको नही दिखाया जाता है यह एक बड़ी साजिक है भारत की जनता को जागरूक होने की आवश्यकता हैं।

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Saturday, January 16, 2021

अंग्रेजों ने 68 गौभक्तों को उड़ा दिया था तोप से, आज भी बंद नहीं हुई गौहत्या

 16 जनवरी 2021


भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई । जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए थे उस वक़्त यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था। हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे। अंग्रेजों ने मुसलमानों को भड़काया कि क़ुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय कि क़ुर्बानी हराम है । इसलिए उन्हें गाय कि क़ुर्बानी करनी चाहिए । उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए । इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस की बिक्री कर मोटी रकम कमाने का झांसा दिया । नतीजन 18वीं सदी के आख़िर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी । अंग्रेज़ों की बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देश भर में कसाईखाने बनवाए । जैसे-जैसे यहां अंग्रेज़ी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ने लगी वैसे-वैसे गौ हत्या में भी बढ़ोत्तरी होती गई ।




गौ हत्या और सुअर हत्या की आड़ में अंग्रेज़ों को हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौक़ा मिल गया । इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौ हत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी । नामधारी सिखों का कूका आंदोलन कि नींव गौरक्षा के विचार से जुड़ी थी ।

यह आंदोलन भी एक ऐसा इतिहास है जो समय के पन्नो के नीचे जानबूझ कर दबाया गया । एक गहरी व सोची समझी साजिश थी इसके पीछे क्योंकि यहां संबंध गाय से था और गाय शब्द आते ही स्वघोषित इतिहासकारों की भृकुटियां तन जाती है क्योंकि उसमें से तो कुछ गाय खाते हुए सेल्फी तक डालते हैं ।

गाय शब्द आते ही बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग में बेचैनी आ जाती है क्योंकि गाय की रक्षा को उन्होंने एक बेहद नए व आयातित शब्द से जोड़ रखा है जिसका नाम मॉब लिंचिंग है । गाय शब्द आते ही सत्ता में भी हलचल मचती है क्योंकि संसद में गौ रक्षको को सज़ा दिलाने के लिए कुछ लोग अपनी सीट तक छोड़ देते हैं और संसद तक नहीं चलने देते हैं । उसी गौ माता की रक्षा व उनके रक्षकों का आज बलिदान दिवस है जो परम् गौ भक्त रामसिंह कूका के नेतृत्व में थे...

17 जनवरी, 1872 की प्रातः ग्राम जमालपुर (मालेरकोटला, पंजाब) के मैदान में भारी भीड़ एकत्र थी । एक-एक कर 50 गौभक्त सिख वीर वहाँ लाये गये । उनके हाथ पीछे बँधे थे । इन्हें मृत्युदण्ड दिया जाना था । ये सब सद्गुरु रामसिंह कूका के शिष्य थे । अंग्रेज जिलाधीश कोवन ने इनके मुह पर काला कपड़ा बाँधकर पीठ पर गोली मारने का आदेश दिया; पर इन वीरों ने साफ कह दिया कि वे न तो कपड़ा बँधवाएंगे और न ही पीठ पर गोली खायेंगे । तब मैदान में एक बड़ी तोप लायी गयी । अनेक समूहों में इन वीरों को तोप के सामने खड़ा कर गोला दाग दिया जाता । गोले के दगते ही गरम मानव खून के छींटे और मांस के लोथड़े हवा में उड़ते । जनता में अंग्रेज शासन की दहशत बैठ रही थी । कोवन का उद्देश्य पूरा हो रहा था । उसकी पत्नी भी इस दृश्य का आनन्द उठा रही थी ।

इस प्रकार 49 वीरों ने मृत्यु का वरण किया; पर 50 वें को देखकर जनता चीख पड़ी । वह तो केवल 12 वर्ष का एक छोटा बालक बिशनसिंह था । अभी तो उसके चेहरे पर मूँछें भी नहीं आयी थीं । उसे देखकर कोवन की पत्नी का दिल भी पसीज गया । उसने अपने पति से उसे माफ कर देने को कहा । कोवन ने बिशनसिंह के सामने रामसिंह को गाली देते हुए कहा कि यदि तुम उस धूर्त का साथ छोड़ दो, तो तुम्हें माफ किया जा सकता है । यह सुनकर बिशनसिंह क्रोध से जल उठा । उसने उछलकर कोवन की दाढ़ी को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे बुरी तरह खींचने लगा । कोवन ने बहुत प्रयत्न किया; पर वह उस तेजस्वी बालक की पकड़ से अपनी दाढ़ी नहीं छुड़ा सका । इसके बाद बालक ने उसे धरती पर गिरा दिया और उसका गला दबाने लगा । यह देखकर सैनिक दौड़े और उन्होंने तलवार से उसके दोनों हाथ काट दिये । इसके बाद उसे वहीं गोली मार दी गयी । इस प्रकार 50 कूका वीर उस दिन बलिपथ पर चल दिये ।

गुरु रामसिंह कूका का जन्म 1816 ई0 की वसन्त पंचमी को लुधियाना के भैणी ग्राम में जस्सासिंह बढ़ई के घर में हुआ था । वे शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे । कुछ वर्ष वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे । फिर अपने गाँव में खेती करने लगे । वे सबसे अंग्रेजों का विरोध करने तथा समाज की कुरीतियों को मिटाने को कहते थे । उन्होंने सामूहिक, अन्तरजातीय और विधवा विवाह की प्रथा चलाई । उनके शिष्य ही ‘कूका’ कहलाते थे ।  कूका आन्दोलन का प्रारम्भ 1857 में पंजाब के विख्यात बैसाखी पर्व (13 अप्रैल) पर भैणी साहब में हुआ । गुरु रामसिंह जी गोसंरक्षण तथा स्वदेशी के उपयोग पर बहुत बल देते थे । उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतन्त्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी ।

मकर संक्रान्ति मेले में मलेरकोटला से भैणी आ रहे गुरुमुख सिंह नामक एक कूका के सामने मुसलमानों ने जानबूझ कर गौहत्या की । यह जानकर कूका वीर बदला लेने को चल पड़े । उन्होंने उन गौहत्यारों पर हमला बोल दिया; पर उनकी शक्ति बहुत कम थी । दूसरी ओर से अंग्रेज पुलिस एवं फौज भी आ गयी । अनेक कूका मारे गये और 68 पकड़े गये । इनमें से 50 को 17 जनवरी को तथा शेष को अगले दिन मृत्युदण्ड दिया गया ।

अंग्रेज जानते थे कि इन सबके पीछे गुरु रामसिंह कूका की ही प्रेरणा है । अतः उन्हें भी गिरफ्तार कर बर्मा की जेल में भेज दिया । 14 साल तक वहाँ काल कोठरी में कठोर अत्याचार सहकर 1885 में सदगुरु रामसिंह कूका ने अपना शरीर त्याग दिया । आज उन सभी गौ भक्तों को उनके बलिदान दिवस पर नमन...

भारतीय इतिहास में गौ हत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं । लेकिन अभी तक गौहत्या पर प्रतिबन्ध नहीं लग सका है । इसका सबसे बड़ा कारण रराजनैतिक इच्छा शक्ति कि कमी होना है । आप कल्पना कीजिये हर रोज जब आप सोकर उठते है तब तक हज़ारों गौओं के गलों पर छूरी चल चुकी होती है । गौ हत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है । इनके दबाव के कारण ही सरकार गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे हट रही है । वरना जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो वहां सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है । आज हमारे देश कि जनता ने नरेन्द्र मोदी जी को सरकार चुनी है । सेक्युलरवाद और अल्पसंख्यकवाद के नाम पर पिछले अनेक दशकों से बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का दमन होता आया है । उसी के प्रतिरोध में हिन्दू प्रजा ने संगठित होकर जात-पात से ऊपर उठकर एक सशक्त सरकार को चुना है । इसलिए यह इस सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह बदले में हिन्दुओं की शताब्दियों से चली आ रही गौरक्षा कि मांग को पूरा करें और गौ हत्या पर पूर्णत प्रतिबन्ध लगाए ।

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Friday, January 15, 2021

हलाल का आर्थिक चक्रव्यूह, राष्ट्र पर संकट?

15 जनवरी 2021


मुसलमानों द्वारा प्रत्‍येक पदार्थ अथवा वस्‍तु इस्‍लाम के अनुसार वैध अर्थात ‘हलाल’ होने की मांग की जा रही है । उसके लिए ‘हलाल सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र)’ लेना अनिवार्य किया गया । इसके द्वारा इस्‍लामी अर्थव्‍यवस्‍था अर्थात ‘हलाल इकॉनॉमी’ को धर्म का आधार होते हुए भी बहुत ही चतुराई के साथ निधर्मी भारत में लागू किया गया। अब तो यह हलाल प्रमाणपत्र केवल मांसाहार तक सीमित न रहकर खाद्यपदार्थ, सौंदर्य प्रसाधन, औषधियां, चिकित्‍सालय, गृह से संबंधित आस्‍थापन और मॉल के लिए भी आरंभ हो गया है । भविष्‍य में स्‍थानीय व्‍यापारी, पारंपरिक उद्यमी, साथ ही अंततः राष्‍ट्र के लिए क्‍या संकट खडा हो सकता है, इस पर विचार करना आवश्‍यक है ।




■ हलाल और हराम क्या है ?

हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है 'अनुमेय या वैध'। दूसरी ओर, हराम एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है 'निषिद्ध या अवैध'।

■ कुरान में वर्णित हलाल प्रक्रिया...

केवल एक मुस्लिम व्यक्ति ही जानवर को मार सकता है। कई जगहों पर यह भी उल्लेख किया गया है कि अगर यहूदी और ईसाई हलाल प्रक्रिया का पालन कर जानवरों को मारते हैं, तो यह मांस इस्लामिक नियमों के अनुसार हलाल है। तेज चाकू की मदद से जानवर की नस, गर्दन और सांस की नली इस तरह से काटें कि जानवर का सर धड़ से अलग न हो। जानवर को मारते समय कुरान की आयत अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। भारत में, लगभग दर्जन भर कंपनियाँ हलाल सर्टिफिकेशन देती हैं जो इस्लाम के अनुयायियों के लिए खाद्य या उत्पादों के इस्तेमाल की अनुमति देता है। 

भारत में महत्वपूर्ण हलाल सर्टिफिकेशन कंपनियां हैं:

1- हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड।

2- हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड।

3- जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र- जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई।

4- जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट।

हलाल सर्टिफिकेशन के बाद उत्पादों की कीमत बढ़ जाती है क्योंकि पूरी प्रक्रिया में पैसे लगते हैं जो कंपनियां ग्राहकों से वसूलती हैं। हलाल सर्टिफिकेशन के लिए कई प्रक्रियाओं में गैर-मुस्लिमों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं, जैसे हलाल स्लॉटरहाउस।
भारत सरकार के ‘कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority)’ या APEDA ने अपने रेड मीट मैन्युअल में से ‘हलाल’ शब्द को ही हटा दिया है और इसके बिना ही दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

भारत में हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर ली गई राशि को जमीअत उलेमा-इ-हिन्द कहाँ खर्च करती है, इसके बारे में बताते हैं स्वराज्य के वरिष्ठ संपादक अरिहंत पवरिया जी। 19 दिसम्बर 2019 को प्रकाशित हुए अपने लेख में वो बताते हैं कि किस प्रकार जमीअत उलेमा-इ-हिन्द आतंकवाद के मामलों में आरोपी एक समुदाय विशेष के लोगों को लगातार कानूनी समर्थन प्रदान करता है और इस बात की पुष्टि वह स्वयं अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित की गई सूची से करते हैं। 


जिन कंपनियों के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स इस्लामिक कन्ट्रीज में मौजूद हैं, उन्हें हलाल सर्टफिकेशन लेने के लिए एक निश्चित राशि दान करनी पड़ती है । किसी चैरिटेबल संगठन को, लेकिन अपनी पसंद की नहीं। यहाँ भी हलाल समितियों द्वारा दी गई चैरिटेबल संगठनों की सूची को ही इस्तेमाल में लाया जाता है। मज़े की बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र ने इनमें से कुछ चैरिटेबल संगठनों को आतंकवादी समूह घोषित किया हुआ है।

जनता द्वारा हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कोई गलत बात नहीं है और यह निश्चित रूप से ‘इस्लामोफोबिया’ नहीं है और ये अनैतिक भी नहीं है। इसलिए हर एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सभी प्रकार के भेदभावों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए।

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Thursday, January 14, 2021

जानिये कुंभ की उत्पत्ति कैसे हुई और कहाँ-कहाँ कुंभ मेला लगता है ?

14 जनवरी  2021


कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं । इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है ।




खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और बृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं । मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है । यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है ।

कुंभ पर्व का अर्थ

प्रत्येक 12 वर्ष के उपरांत प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक में आनेवाला पुण्ययोग ।

कुंभपर्व की उत्पत्ति की कथा:-

अमृतकुंभ प्राप्ति हेतु देवों एवं दानवों ने (राक्षसों ने) एकत्र होकर क्षीरसागर का मंथन करने का निश्चय किया । समुद्रमंथन हेतु मेरु (मंदार) पर्वत को बिलोने के लिए सर्पराज वासुकी को रस्सी बनने की विनती की गई । वासुकी नाग ने रस्सी बनकर मेरु पर्वत को लपेटा । उसके मुख की ओर दानव एवं पूंछ की ओर देवता थे । इस प्रकार समुद्रमंथन किया गया । इस समय समुद्रमंथन से क्रमशः हलाहल विष, कामधेनु (गाय), उच्चैःश्रवा (श्वेत घोडा), ऐरावत (चार दांतवाला हाथी), कौस्तुभमणि, पारिजात कल्पवृक्ष, रंभा आदि देवांगना (अप्सरा), श्री लक्ष्मीदेवी (श्रीविष्णुपत्नी), सुरा (मद्य), सोम (चंद्र), हरिधनु (धनुष), शंख, धन्वंतरि (देवताओं के वैद्य) एवं अमृतकलश (कुंभ) आदि चौदह रत्न बाहर आए । धन्वंतरि देवता हाथ में अमृतकुंभ लेकर जिस क्षण समुद्रसे बाहर आए, उसी क्षण देवताओं के मनमें आया कि दानव अमृत पीकर अमर हो गए तो वे उत्पात मचाएंगे । इसलिए उन्होंने इंद्रपुत्र जयंत को संकेत दिया तथा वे उसी समय धन्वंतरि के हाथों से वह अमृतकुंभ लेकर स्वर्ग की दिशा में चले गए । इस अमृतकुंभ को प्राप्त करने के लिए देव-दानवों में 12 दिन एवं 12 रातों तक युद्ध हुआ । इस युद्ध में 12 बार अमृतकुंभ नीचे गिरा । इस समय सूर्यदेव ने अमृतकलश की रक्षा की एवं चंद्र ने कलश का अमृत न उड़े इस हेतु सावधानी रखी एवं गुरु ने राक्षसों का प्रतिकार कर कलश की रक्षा की । उस समय जिन 12 स्थानों पर अमृतकुंभ से बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर उपरोक्त ग्रहों के विशिष्ट योग से कुंभपर्व मनाया जाता है । इन 12 स्थानोंमें से भूलोक में प्रयाग (इलाहाबाद), हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक समाविष्ट हैं ।
(संदर्भ – सनातन का ग्रंथ – कुंभमेले की महिमा एवं पवित्रता की रक्षा )

इतिहासकार एस बी रॉय ने अनुष्ठानिक नदी स्नान को 10,000 ईसापूर्व (ईपू) स्वसिद्ध किया । जब इतिहासकार मानते है कि यीशु से 10, 000 साल पहले से कुंभ है तो सनातन संस्कृति तो जब से सृष्टि उत्पन्न हुई है तब से है, फिर भी कुछ मुर्ख लोगों द्वारा 2021 साल पुराना धर्म को लेकर नया साल मनाने लगे ।

ज्योतिषीय महत्व:-

ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेषराशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है । ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है । यही कारण है ‍कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है । हालाँकि सभी हिंदू त्यौहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं, पर यहाँ अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है ।

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Wednesday, January 13, 2021

मकर संक्रांति और सूर्य उपासना द्वारा अपना जीवन तेजस्वी बना सकते है

13 जनवरी 2021


 मकर संक्रांति नैसर्गिक पर्व है । किसी व्यक्ति के आने-जाने से या किसी के अवतार के द्वारा इस पर्व की शुरुआत नहीं हुई है । प्रकृति में होने वाले मूलभूत परिवर्तन से यह पर्व संबंधित है और प्रकृति की हर चेष्टा व्यक्ति के तन और मन से संबंध रखती है । इस काल में भगवान भास्कर की गति उत्तर की तरफ होती है । अंधकार वाली रात्रि छोटी होती जाती है और प्रकाश वाला दिन बड़ा होता जाता है ।




पुराणों का कहना है कि इन दिनों देवता लोग जागृत होते हैं । मानवीय 6 महीने दक्षिणायन के बीतते हैं, तब देवताओं की एक रात होती है । उत्तरायण के दिन से देवताओं की सुबह मानी जाती है ।

ऋग्वेद में आता है कि सूर्य न केवल सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक, प्रवर्त्तक एवं प्रेरक हैं वरन् उनकी किरणों में आरोग्य वर्धन, दोष-निवारण की अभूतपूर्व क्षमता विद्यमान है । सूर्य की उपासना करने एवं सूर्य की किरणों का सेवन करने से कई प्रकार के शारीरिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

जितने भी सामाजिक एवं नैतिक अपराध हैं वे विशेषरूप से सूर्यास्त के पश्चात अर्थात् रात्रि में ही होते हैं । सूर्य की उपस्थिति मात्र से ही दुष्प्रवृत्तियां नियंत्रित हो जाती हैं । सूर्य के उदय होने से समस्त विश्व में मानव, पशु-पक्षी आदि क्रियाशील होते हैं । यदि सूर्य को विश्व-समुदाय का प्रत्यक्ष देव अथवा विश्व-परिवार का मुखिया कहें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

वैसे तो सूर्य की रोशनी सभी के लिए समान होती है परन्तु उपासना करके उनकी विशेष कृपा प्राप्त कर व्यक्ति सामान्य लोगों की अपेक्षा अधिक उन्नत हो सकता है तथा समाज में अपना विशिष्ट स्थान बना सकता है ।

सूर्य एक शक्ति है । भारत में तो सदियों से सूर्य की पूजा होती आ रही है । सूर्य तेज और स्वास्थ्य के दाता माने जाते हैं । यही कारण है कि विभिन्न जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के लोग दैवी शक्ति के रूप में सूर्य की उपासना करते हैं ।

सूर्य की किरणों में समस्त रोगों को नष्ट करने की क्षमता विद्यमान है । सूर्य की प्रकाश – रश्मियों के द्वारा हृदय की दुर्बलता एवं हृदय रोग मिटते हैं । स्वास्थ्य, बलिष्ठता, रोगमुक्ति एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए सूर्योपासना करनी ही चाहिए ।

सूर्य नियमितता, तेज एवं प्रकाश के प्रतीक हैं । उनकी किरणें समस्त विश्व में जीवन का संचार करती हैं । भगवान सूर्य नारायण सतत् प्रकाशित रहते हैं । वे अपने कर्त्तव्य पालन में एक क्षण के लिए भी प्रमाद नहीं करते, कभी अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होते । प्रत्येक मनुष्य में भी इन सदगुणों का विकास होना चाहिए । नियमितता, लगन, परिश्रम एवं दृढ़ निश्चय द्वारा ही मनुष्य जीवन में सफल हो सकता है तथा कठिन परिस्थितियों के बीच भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है ।

सूर्य बुद्धि के अधिष्ठाता देव हैं । सभी मनुष्यों को प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक लोटा जल सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए । अर्घ्य देते समय इस बीजमंत्र का उच्चारण करना चाहिएः ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः । इस प्रकार मंत्रोच्चारण के साथ जल देने से तेज एवं बौद्धिक बल की प्राप्ति होती है ।

सूर्योदय के बाद जब सूर्य की लालिमा निवृत्त हो जाय तब सूर्याभिमुख होकर कंबल अथवा किसी विद्युत कुचालक आसन् पर पद्मासन अथवा सुखासन में इस प्रकार बैठें ताकि सूर्य की किरणें नाभि पर पड़े । अब नाभि पर अर्थात् मणिपुर चक्र में सूर्य नारायण का ध्यान करें ।

यह बात अकाट्य सत्य है कि हम जिसका ध्यान, चिन्तन व मनन करते हैं, हमारा जीवन भी वैसा ही हो जाता है । उनके गुण हमारे जीवन में प्रकट होने लगते हैं ।

नाभि पर सूर्यदेव का ध्यान करते हुए यह दृढ़ भावना करें कि उनकी किरणों द्वारा उनके दैवी गुण आप में प्रविष्ट हो रहे हैं । अब बायें नथुने से गहरा श्वास लेते हुए यह भावना करें कि सूर्य किरणों एवं शुद्ध वायु द्वारा दैवीगुण मेरे भीतर प्रविष्ट हो रहे हैं । यथासामर्थ्य श्वास को भीतर ही रोककर रखें । तत्पश्चात् दायें नथुने से श्वास बाहर छोड़ते हुए यह भावना करें कि मेरी श्वास के साथ मेरे भीतर के रोग, विकार एवं दोष बाहर निकल रहे हैं । यहाँ भी यथासामर्थ्य श्वास को बाहर ही रोककर रखें तथा इस बार दायें नथुने से श्वास लेकर बायें नथुने से छोड़ें । इस प्रकार इस प्रयोग को प्रतिदिन दस बार करने से आप स्वयं में चमत्कारिक परिवर्तन महसूस करेंगे । कुछ ही दिनो के सतत् प्रयोग से आपको इसका लाभ दिखने लगेगा । अनेक लोगों को इस प्रयोग से चमत्कारिक लाभ हुआ है ।

सूर्य की रश्मियों में अद्भुत रोगप्रतिकारक शक्ति है । दुनिया का कोई वैद्य अथवा कोई मानवी इलाज उतना दिव्य स्वास्थ्य और बुद्धि की दृढ़ता नहीं दे सकता है, जितना सुबह की कोमल सूर्य-रश्मियों में छुपे ओज-तेज से मिलता है ।

भगवान सूर्य तेजस्वी एवं प्रकाशवान हैं । उनके दर्शन व उपासना करके तेजस्वी व प्रकाशमान बनने का प्रयत्न करें । ऐसे निराशावादी और उत्साहहीन लोग जिनकी आशाएँ, भावनाएँ व आस्थाएँ मर गयी हैं, जिन्हें भविष्य में प्रकाश नहीं, केवल अंधकार एवं निराशा ही दिखती है ऐसे लोग भी सूर्योपासना द्वारा अपनी जीवन में नवचेतन का संचार कर सकते हैं ।

क्या करें मकर संक्रांति को..???

मकर संक्रांति या उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।

तिल का महत्व :-

विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है ।

★ तिल के तेल से स्नान करना ।
★ तिल का उबटन लगाना ।
★ पितरों को तिलयुक्त तेल अर्पण करना।
★ तिल की आहुति देना ।
★ तिल का दान करना ।
★ तिल का सेवन करना।

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