Tuesday, January 26, 2021

जानिए भारत में वेलेंटाइन डे क्यो लाया गया? हमें क्या करना होगा?

26 जनवरी 2020


भारत देश को तोड़ने के लिए विदेशी ताकतें अलग-अलग प्रकार से हथकंडे अपना रही हैं, कभी स्कूलों में गलत इतिहास पढ़ाया जाना तो कभी मीडिया द्वारा भारतीय संस्कृति विरोधी एजेंडे चलना, कभी जातिवाद के नाम पर तोड़ना तो कभी विदेशी त्यौहारों को मनाकर भारतीय संस्कृति को तोड़ने का प्रयास करना ।




हाल ही में गए विदेशी त्यौहार क्रिसमस में केवल दिल्ली में दिसंबर में दारू की 1,000 करोड़ रुपये की खपत हुई। उत्पाद शुल्क में राजस्व विभाग के पास इस साल दिसंबर में अधिक राजस्व था। रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 से 31 दिसंबर के बीच सबसे बड़ी शराब की बिक्री हुई।

इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि देशभर में हुई मात्र शराब की खपत से  विदेशी कंपनियों ने कितने अरबों रुपये कमा लिये होंगे । मीडिया ने भी खूब जमकर प्रचार-प्रसार किया, जिसके कारण बलात्कार की घटनाएं बढ़ी, प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा और युवावर्ग का चारित्रिक पतन हुआ ।

इसी तरह अभी एक और बड़ा विदेशी त्यौहार आने वाला है वैलेंटाइन-डे । जिसमें युवक-युवतियां एक दूसरे को फूल देंगे, महंगे गिफ्ट देंगे, ग्रीटिंग कार्ड देंगे, शराब पीएंगे, मांस खाएंगे, व्यभिचार करेंगे, पार्टियां करेंगे । जिससे देश के युवावर्ग की तबाही होगी और देश के अरबों-खबरों रुपये फिर पहुँच जाएंगे विदेशी कम्पनियों के पास ।

पाश्चात्य संस्कृति के इस त्यौहार वैलेंटाइन-डे को रोकने के लिए पिछले साल से झारखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है जिसमें सभी सरकारी स्कूलों में 14 फरवरी को वैलेंटाइन-डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाएगा ।

पिछले साल झारखंड राज्य के लगभग 50 हजार सरकारी स्कूलों में मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।


आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ सरकार ने तो पिछले कई सालों से पूरे राज्य के स्कूलों में 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन लागू कर दिया है और हर साल 14 फरवरी को माता-पिता का पूजन किया जाता है ।

गौरतलब है कि पाश्चात्य सभ्यता की गन्दगी से युवावर्ग का चारित्रिक पतन होते देखकर हिन्दू संत आसारामजी बापू ने वर्ष 2006 से 14 फरवरी को वैलेंटाइन-डे की जगह "मातृ-पितृ पूजन दिवस" की अनूठी पहल की । जिसे उनके करोड़ो समर्थकों द्वारा देशभर में बड़े धूमधाम से स्कूलों, कॉलेजों, घरों, मंदिरों, पूजा स्थलों आदि पर मनाया जाने लगा । धीरे-धीरे इसमें कई हिन्दू संगठन व आम जनता जुड़ती चली गई और आज ये विश्वव्यापी अभियान के रूप में देखने को मिल रहा है ।

भारत में ही नहीं अमेरिका, दुबई, केनेडा आदि अनेक देशों में भी 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाने लगा है ।  इस विश्वव्यापी अभियान से लाखों युवावर्ग पतन से बचे हैं एवं उनके जीवन में संयम व सदाचार के पुष्प खिले हैं ।

आज हम सभी का कर्तव्य बनता है कि पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण न करके अपनी महान संस्कृति की महानता समझे और दूसरों तक भी अपनी संस्कृति की सुवास पहुचाएं तथा उन्हें भी वैंलेंटाइन डे के दिन ‘मातृ-पितृ दिवस’ मनाने की सलाह दें। जिससे हमारी संस्कृति व युवापीढ़ी सुरक्षित रहें।

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Monday, January 25, 2021

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को क्यों मनाते हैं ये कईयों को पता नहीं होता है, आप जान लीजिए


25 जनवरी 2021


 गणतन्त्र दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है । 26 जनवरी और 15 अगस्त दो ऐसे राष्ट्रीय पर्व हैं जिन्हें हर भारतीय खुशी और उत्साह के साथ मनाता है ।




हमारी मातृभूमि भारत लंबे समय तक ब्रिटिश शासन की गुलाम रही जिसके दौरान भारतीय लोग ब्रिटिश शासन द्वारा बनाये गये कानूनों को मानने के लिये मजबूर थे, भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा लंबे संघर्ष के बाद अंतत: 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली ।

सन 1929 के दिसंबर में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ उसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को स्वायत्त उपनिवेश (डोमीनियन) का पद नहीं प्रदान करेगी, जिसके तहत भारत ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वशासित इकाई बन जाता, तो भारत अपने को पूर्णतः स्वतंत्र घोषित कर देगा ।
  
26 जनवरी 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस भारतीय राष्ट्रीय ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया । उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा । तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया ।

26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए विधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा लगभग ढाई साल बाद भारत ने अपना संविधान लागू किया और खुद को लोकतांत्रिक गणराज्य के रुप में घोषित किया । लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिनों के बाद 26 जनवरी 1950 को हमारी संसद द्वारा भारतीय संविधान को पास किया गया । खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी "गणतंत्र दिवस" के रुप में मनाया जाने लगा ।

देश को गौरवशाली गणतंत्र राष्ट्र बनाने में जिन देशभक्तों ने अपना बलिदान दिया उन्हें 26 जनवरी दिन याद किया जाता और उन्हें श्रद्धाजंलि दी जाती है ।

गणतंत्र दिवस से जुड़े कुछ तथ्य:

1- पूर्ण स्वराज दिवस (26 जनवरी 1930) को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान 26 जनवरी को लागू किया गया था ।

2- 26 जनवरी 1950 को 10:18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया था।

3- गणतंत्र दिवस की पहली परेड 1955 को दिल्ली के राजपथ पर हुई थी ।

4- भारतीय संविधान की दो प्रतियां जो हिन्दी और अंग्रेजी में हाथ से लिखी गई ।

5- भारतीय संविधान की हाथ से लिखी मूल प्रतियां संसद भवन के पुस्तकालय में सुरक्षित रखी हुई हैं ।

6- भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाऊस में 26 जनवरी 1950 को शपथ ली थी ।

7- गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं ।

8-  26 जनवरी को हर साल 21 तोपों की सलामी दी जाती है ।

9- 29 जनवरी को विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन किया जाता है जिसमें भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना के बैंड हिस्सा लेते हैं । यह दिन गणतंत्र दिवस के समारोह के समापन के रूप में मनाया जाता है ।

राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रगीत का सम्मान करें  !

 राष्ट्रप्रतीकों का सम्मान करें, राष्ट्राभिमान बढाएं !

1. राष्ट्रध्वज को ऊंचे स्थान पर फहराएं ।

2. प्लास्टिक के राष्ट्रध्वजों का उपयोग न करें ।

3. ध्यान रखें कि राष्ट्रध्वज नीचे अथवा कूड़े में न गिरे ।

4. राष्ट्रध्वज का उपयोग शोभावस्तु के रूप में अथवा पताका एवं खिलौने के रूप में न करें ।

5. जिन वस्त्रों पर राष्ट्रध्वज छपा हुआ है, ऐसे वस्त्र न पहनें अथवा अपने मुख पर भी ध्वज चित्रित न करवाएं ।

6. राष्ट्रगीत के समय बातें न करें, सावधान मुद्रा में खड़े रहें ।

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Sunday, January 24, 2021

वामपंथी सुभाषचंद्र बोस को गाली गलौच करने लगे और 'तोजो का कुत्ता' बताते थे।

24 जनवरी 2021


लगभग आरंभ से ही कम्युनिस्टों को अपनी वैज्ञानिक विचारधारा और प्रगतिशील दृष्टि का घोर अहंकार रहा है। लेकिन अनोखी बात यह है कि इतिहास व भविष्य ही नहीं, ठीक वर्तमान यानी आंखों के सामने की घटना-परिघटना पर भी उनके मूल्यांकन, टीका-टिप्पणी, नीति, प्रस्ताव आदि प्राय: मूढ़ता की पराकाष्ठा साबित होते रहे हैं। यह न तो एक बार की घटना है, न एक देश की। सारी दुनिया में कम्युनिस्टों का यही रिकॉर्ड है। इसके निहितार्थ समझने से पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कम्युनिस्ट मूल्यांकन को उदाहरण के लिए देखें।




1940 में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तिका 'बेनकाब दल व राजनीति' में नेताजी को 'अंधा मसीहा' कहा गया। फिर उनके कामों को कहा गया, 'सिद्धांतहीन अवसरवाद, जिसकी मिसाल मिलनी कठिन है। यह सब तो नरम मूल्यांकन था। धीरे-धीरे नेताजी के प्रति कम्युनिस्ट शब्दावली हिंसक और गाली-गलौज से भरती गई। जैसे, 'काला गिरोह', 'गद्दार बोस', 'दुश्मन के जरखरीद एजेंट', 'तोजो (जापानी तानाशाह) और हिटलर के अगुआ दस्ते', 'राजनीतिक कीड़े', 'सड़ा हुआ अंग जिसे काटकर फेंकना है',आदि। ये सब विशेषण सुभाष बोस और उनकी सेना आई़ एऩ ए़ (इंडियन नेशनल आर्मी) के लिए थे। तब कम्युनिस्ट मुखपत्रों, पत्रिकाओं में नेताजी के कई कार्टून छपे थे, जिससे कम्युनिस्टों की घोर अंधविश्वासी मानसिकता की झलक मिलती है (उन पर सधी नजर रखने वाले इतिहासकार स्व़ सीताराम गोयल के सौजन्य से वे कार्टून उपलब्ध हैं)। अधिकांश कार्टूनों में सुभाष बाबू को 'जापानी, जर्मन फासिस्टों का कुत्ते या बिल्ली' जैसा दिखाया गया है, जिससे उसका मालिक जैसे चाहे खेलता है।
एक कार्टून में बोस को तोजो का मुखौटा, तो अन्य में भारतवासियों पर जापानी बम गिराने वाला दिखाया गया है। एक में बोस को 'गांधीजी की बकरी छीनने वाला' दिखाया गया। एक कार्टून में तोजो एक गधे के गले में रस्सी डाले सवारी कर रहा है, उस गधे का मुंह बोस जैसा बना था। दूसरे में बोस को 'तोजो का पालतू क्षुद्र बौना' दिखाया, आदि।

कम्युनिस्ट अखबार पीपुल्स डेली (10 जनवरी 1943) में तब कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च नेता रणदिवे ने अपने लेख में बोस को 'जापानी साम्राज्यवाद का गुंडा' तथा उनकी सेना को 'भारतीय भूमि पर लूट, डाका, विध्वंस मचाने वाला भड़ैत' बताया। लेकिन रोचक बात यह है कि यह सब कहने के बाद, समय बदलते ही, जब आई़ एऩ ए. की लोकप्रियता देशभर में बढ़ने लगी, तो कम्युनिस्टों ने उसके बंदी सिपाहियों के पक्ष में लफ्फाजी शुरू कर दी!

उपर्युक्त इतिहास के संदर्भ में स्मरण रखने की पहली बात है कि यह सब न अपवाद था, न अनायास। दूसरी बात, जो बुद्धि अपने सामने हो रही घटना, व्यक्तित्व का ऐसा मूढ़ मूल्याकंन करती रही, वह दूसरे लोगों, घटनाओं, सत्ताओं का मूल्यांकन भी वैसे ही करती है। यानी जड़-विश्वास, घोर मतिहीन। सभी मूल्यांकनों का स्रोत एक बनी-बनाई विचारधारा में अंधविश्वास ही था और है, जो तथ्यों को यथावत देखने की बजाए एक, और खास एक ही तरह से देखने को मजबूर करता था। यह बंदी मानसिकता देश और समाज के लिए कितनी घातक रही है, हमें इसे ठीक से समझना चाहिए। अतएव तीसरी बात यह है कि नेताजी सुभाष, जय प्रकाश नारायण, गांधीजी आदि के अपमानजनक और जड़मति मूल्यांकनों की क्षमा मांग लेने के बाद भी इस देश में कम्युनिस्ट वही काम बार-बार करते रहे हैं। उनकी देश-समाज-विरोधी प्रवृत्ति नहीं बदली है। 

आज भी अयोध्या, कश्मीर, गोधरा, इस्लामी आतंकवाद आदि गंभीर मुद्दों और अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी या नरेन्द्र मोदी जैसे शीर्ष नेताओं के मूल्यांकन और तद्नुरूप कम्युनिस्ट अभियान चलाने में ठीक उसी मूढ़ता और देशघाती जिद की अक्षुण्ण परंपरा है। यह काम कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ-साथ तमाम मार्क्सवादी प्रोफेसर, लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी भी करते रहे हैं। चूंकि ये लोग कम्युनिस्ट पार्टी से सीधे जुड़े हुए नहीं हैं तथा बड़े-बड़े अकादमिक या मीडिया पदों पर रहे हैं, इससे इनका वास्तविक चरित्र पहचानने में गलती नहीं करनी चाहिए।

इस प्रकार, नेताजी व आई़ एऩ ए. को 'तोजो का कुत्ता' और राष्ट्रीय स्वयंयेवक संघ को 'तालिबान, अल कायदा सा आतंकवादी' बताने में एक सी भयंकर मूढ़ता और हानिकारक क्षमता है, यह हमें देखना, समझना चाहिए। कभी भगवाकरण, तो कभी असहिष्णुता के बहाने चलते अभियान उसी घातक अंधविश्वास व हिन्दू-विरोध से परिचालित हैं। इस से देश-समाज बंटता है, जो कम्युनिस्ट 1947 में एक बार सफलतापूर्वक करवा चुके हैं। आज भी प्रगतिशील, सेक्युलर, लिबरल आदि विशेषणों की आड़ में वही भारत-विरोधी और हिन्दू-द्वेषी राजनीति थोपी जाती है। क्योंकि घटनाओं, स्थितियों, व्यक्तियों, समुदायों की माप-तौल के पैमाने, बाट, इंच-टेप वही हैं।

लंबे नेहरूवादी-कम्युनिस्ट गठजोड़ के कारण वही पैमाने हमारे बुद्धिजीवियों की मानसिकता में अनायास जमा दिए गए हैं। तभी जन-समर्थन के बावजूद मोदी सरकार को अपदस्थ, लांछित करने में हर हथकंडा आसानी से चलता है। इससे जो हानि होती है, उससे युवाओं को पूरी तरह अवगत होना चाहिए। नेताजी के कम्युनिस्ट मूल्यांकन का यही जरूरी सबक है।
लेखक : डॉ. शंकर शरण

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Saturday, January 23, 2021

जनता ने अभी से 14 फरवरी निमित्त मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाना किया प्रारंभ

23 जनवरी 2021


भारत में वैलेंटाइन डे की गंदगी अपने व्यापार का स्तर बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कम्पनियां लेकर आई हैं और वो ही कम्पनियां मीडिया में पैसा देकर वैलेंटाइन डे का खूब प्रचार प्रसार करवाती हैं । जिसके कारण उनका व्यापार लाखों नहीं, करोड़ों नहीं, अरबों नहीं लेकिन खरबों में हो जाता है, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया जनवरी से ही वैलेंटाइन डे यानि पश्चिमी संस्कृति का प्रचार करने लगता है, जिसके कारण विदेशी कम्पनियों के गिफ्ट, गर्भनिरोधक सामग्री, नशीले पदार्थ आदि 10 गुना बिकते हैं और उन्हें खरबों रुपये का फायदा होता है ।




वैलेंटाइन डे से युवाओं का अत्यधिक पतन हो रहा है इसलिए अब तो ऐसा समय आ गया है कि वैलेंटाइन डे की जगह लोगों ने अभी से 14 फरवरी के दिन "मातृ-पितृ पूजन दिवस" निमित्त मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम और सोशल मीडिया पर केम्पेन शुरू कर दिया है ।

गौरतलब है कि पिछले 50 वर्षों से सनातन संस्कृति के सेवाकार्यों में रत रहने वाले तथा सनातन संस्कृति की महिमा से विश्व के जन-मानस को परिचित करवाने वाले हिन्दू संत बापू आसारामजी ने जब अपने देश के युवावर्ग को पाश्चत्य अंधानुकरण से चरित्रहीन होते देखा तो उनका हृदय व्यथित हो उठा और उन्होंने साल 2006 से 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस शुरू किया। वर्षों से एक नयी दिशा की ओर युवावर्ग को अग्रसर करते हुए एक विश्वव्यापी अभियान चलाया 14 फरवरी मातृ पितृ पूजन दिवस जो आज विश्वव्यापी बन चुका है और करोड़ों लोगों के द्वारा मनाया जा रहा है ।

भारत के युवक-युवतियां अगर पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर हुए तो परिणाम भयंकर आने वाला है ।

अब युवक-युवतियों का यह कहना होगा कि “क्या हम प्यार न करें, तो उनको एक सलाह है कि दुनिया में आपको सबसे पहले प्यार किया था आपके माँ-बाप ने । आप दुनिया में आने वाले थे, तबसे लेकर आज तक आपको वो प्यार करते रहे लेकिन उनका प्यार तो आप भूल गये उनको ठुकरा दिया । जब आप बोलना भी नहीं जानते थे तब उन्होंने आपका भरण पोषण किया । आपको ऊंचे से ऊँचे स्थान पर पहुँचाने के लिए खुद भूखे रहकर भी आपको उच्च शिक्षा दिलाई । उनका केवल एक ही सपना रहा कि मेरा बेटा या बेटी सबसे अधिक तेजस्वी, ओजस्वी और महान बने । ऐसा अनमोल उनका प्यार आप भुलाकर किसी लड़के-लड़की के चक्कर में आकर अपने माँ-बाप को कितना दुःख दे रहे हैं, उसका अंदाजा भी आप नहीं लगा सकते इसलिए आप यदि स्वयं को बर्बादी से बचाना चाहते हैं, माँ-बाप के प्यार का बदला चुकाना चाहते हैं, तो आपको एक ही सलाह है कि आप मीडिया, टीवी, अखबार पढ़कर वैलेंटाइन डे न मनाकर उस दिन अपने माता-पिता का पूजन करें ।

भारतवासी आइए एक नयी दिशा की ओर कदम बढ़ाएं। आओ एक सच्ची दिशा की ओर कदम बढ़ाएं। 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे नहीं माता-पिता की पूजा करके उनका शुभ आशीष पाएं ।

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Friday, January 22, 2021

कई लड़कियों को शिकार बना चुका मौलाना नाबालिग छात्रा को लेकर फरार

22 जनवरी 2021


मदरसों को मयखाने में तब्दील करते मौलाना, ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मदरसों में बच्चों के साथ बलात्कार, शोषण, भगा ले जाने की खबरें अब आम होती जा रहीं हैं। कुछ मदरसों में मौलाना शिक्षा से ज्यादा अपने शौक पूरे कर रहें हैं और मासूम बच्चें इनका शिकार हो रहें हैं। ऐसी ही एक खबर बिहार से सामने आयी है जहां मस्जिद में पढ़ाने वाला एक मौलाना नाबालिग छात्रा को लेकर फरार हो गया है।




पवित्र हिंदू साधु-संतों पर कोई साजिश के तहत झूठे आरोप भी लगा दे तो मीडिया 24 घण्टे चिल्लाने लगती है पर मौलवी और ईसाई पादरियों के दुष्कर्मों पर मौन धारण कर लेती हैं।

दरअसल बिहार के बक्सर के धनसोई में मस्जिद में पढ़ाने वाला एक मौलाना अपनी ही नाबालिग छात्रा को लेकर फरार हो गया। यह शातिर मौलाना कई लड़कियों के साथ गंदा काम कर चुका है। नाबालिग को भगा ले जाने वाले मौलाना का नाम शाहीद अंसारी है और वो दो बच्चों का पिता है। पुलिस ने छापेमारी कर मौलाना को गिरफ्तार कर लिया है।

45 साल का है मौलाना,14 की नाबालिग

बता दें कि मौलाना की उम्र 45 साल है और दो बच्चों का पिता भी है फिर भी कुकर्म करने में पीछे नहीं है क्यो कि जिस नबालिग को भगा के ले गया उसकी उम्र 14 वर्ष है जो कि उसके बच्चों से भी छोटी है। बता दें कि मौलाना इटाढ़ी का रहने वाला है और वहीं की मस्जिद में उर्दू पढ़ाता था, इस दौरान गांव की कई लड़कियां उसके पास पढ़ाई करने के लिए जाती थी। वह कई लड़कियों के साथ भी गंदा काम कर चुका है, लेकिन किसी ने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कराई थी।

छापेमारी के दौरान गिरफ्तार हुआ मौलाना
 
बता दें कि छात्रा मस्जिद में पढ़ाई करने गई थी पर पढ़ने के बाद वापस नहीं लौटी तो परिजन परेशान हो गए। बता दें कि मौलाना पर लोग पहले से ही शक करते थे, क्योंकि उसकी हरकतों से बच्चे परेशान रहते थे। जिसके बाद छात्रा के पिता ने धनसोई थाना में मौलाना शाहिद अंसारी के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराया था जिसके बाद पुलिस ने छापेमारी कर मौलाना को गिरफ्तार कर लिया है।

देश में आये दिन मदरसों से ऐसी घटनाओं का आना कहीं न कहीं मदरसों में बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है । अब सरकार को ऐसे मदरसों और मौलानाओं पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है। या तो छात्रों को स्कूलों की ओर ले जाये या मदरसों को अपने अधीन ले लें।

भारत में साधु-संत देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं उनको साजिश के तहत बदनाम किया जाता है, झूठे केस में जेल भेजा जाता है और मीडिया द्वारा तथा "आश्रम" जैसी फिल्में बनाकर उनको बदनाम किया जाता है। वहीं दूसरी ओर जो मौलवी व ईसाई पादरी मासूम बच्चे-बच्चियों और ननों के साथ रेप करते हैं उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं फिर भी मीडिया, प्रकाश झा जैसे बिकाऊ निर्देशक इसको देखकर आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं क्योंकि इनको पवित्र हिन्दू साधु-संतो को बदनाम करने के पैसे मिलते है और हिंदू सहिष्णु हैं।

कुछ सेक्युलर हिंदू भी बिकाऊ मीडिया की बात में आकर अपने ही धर्मगुरुओं को बदनाम करने लग जाते है जैस उन्होंने खुद गलत करते देखा हो, मीडिया की बात को सच मानेंगे लेकिन उनके मठ-मंदिर-आश्रम में जाकर वास्तविकता नहीं जानेंगे कि उन साधु-संतों ने कितनी मेहनत करके सनातन संस्कृति को जीवित रखने का कार्य किया है और कर रहे हैं, अब समय आ गया है अपने साधु-संतों पर हो रहे षड्यंत्र का पर्दाफाश करके उनको सहयोग करें।

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Thursday, January 21, 2021

ईसाई धर्म प्रचारक पॉल दिनाकरन के 28 ठिकानों पर छापेमारी

21 जनवरी 2021


भारत मे ईसाई मिशनरी जोरो से धर्मांतरण में लगे हैं, हिंदू आदिवासियों व गरीबों को लालच देकर अथवा प्रलोभन देकर धर्म बदलने का कार्य पुरजोर से चल रहा है, आतंकवाद से इतना खतरा नहीं है जितना इन धर्मांतरण कराने वाले मिशनरियों से है, ये लोग जनता का ब्रेनवाश करके अपनी वोटबैंक बढ़ाकर राष्ट्र पर सत्ता हासिल करना चाहते हैं इसके लिए उनको भारी फडिंग भी मिलती है।




आपको बता दें की तमिलनाडु के चेन्नई में आयकर विभाग की कई इलाको में छापेमारी चल रही है। यह छापेमारी चेन्नई, कोयम्बटूर सहित ‘जीसस कॉल्स’ के नाम से ईसाई मिशनरी चलाने वाले विवादास्पद ईसाई धर्म प्रचारक पॉल दिनाकरन के 28 ठिकानों पर हुई है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, आयकर विभाग ने बुधवार को ईसाई धर्म प्रचारक पॉल दिनाकरण के 28 ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापेमारी की है। जिन परिसरों में आयकर विभाग ने छापेमारी की है, उनमें करुणा प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान और जीसस कॉल्स भी शामिल हैं।

बता दें जीसस कॉल्स, पॉल दिनकरन द्वारा संचालित एक संगठन है, जो पूरे तमिलनाडु में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करता है। आईटी अधिकारियों ने बुधवार (20 जनवरी, 2021) की सुबह चेन्नई के कोयम्बटूर और तमिलनाडु के विभिन्न अन्य स्थानों पर दिनाकरन की संपत्तियों की तलाशी ली। आयकर विभाग ने ईसाई संगठन द्वारा संचालित करुण्या क्रिश्चियन स्कूल पर भी छापा मारा है।

दरअसल, आयकर विभाग को दिनाकरन और जीसस कॉल्स के खिलाफ टैक्स चोरी और विदेशी फंडिंग में अनियमितता की शिकायत मिली थी, जिसके बाद आयकर विभाग ने यह छापेमारी शुरू की है। गौरतलब है कि पॉल दिनाकरन, टीवी पर लगातार ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने और उसके जरिए फंड इकट्ठा करने वाले डीजीएस दिनाकरन के बेटे हैं। पॉल तमिलनाडु में ईसाई धर्म प्रचारक के रूप में जाने जाते है। उनके काफी फॉलोवर्स हैं और वे ईसाई प्रचार-प्रसार के लिए कई संगठन भी चलाते हैं।

बताया जा रहा है कि मदर टेरेसा के बाद सबसे ज्यादा धर्मांतरण कराने में पॉल दिनाकरन का हाथ है, बताया गया है कि उसके लिए उनको विदेश से भारी फडिंग भी मिलती होगी।

महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। उन्होंने कहा कि "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।

ईसाई मिशनरियों का उद्देश्य भी धर्मांतरण के साथ-साथ राष्ट्रान्तरण का है, वे अपना भारत में शासन चलाना चाहते हैं, इसलिए कोई हिंदुनिष्ठ अगर धर्मांतरण का विरोध करें तो उसकी हत्या कर दी जाती है अथवा झूठे केस में जेल भिजवाया जाता है जैसे ओडिशा में स्वामी लक्ष्मणानन्दजी की हत्या करवा दी, शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती व हिंदू संत आशाराम बापू को जेल भिजवाया गया।

भारतवासी मिशनरियों के षड़यंत्र को समझे और उनपर कड़ी कानूनी कार्यवाही करें। सरकार भी इनपर प्रतिबंध लगाए ऐसी जनता की मांग है।

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Wednesday, January 20, 2021

गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को जो पत्र लिखा था आज भारतीयों के लिए प्रेरणादायी है

 20 जनवरी 2021


गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे। वह ब्रज भाषा, पंजाबी, संस्कृत और फारसी भी जानते थे और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे। जब औरंगजेब के अत्याचार सीमा से बढ़ गए तो गुरूजी ने मार्च 1705 को एक पत्र भाई दयाल सिंह के हाथों औरंगजेब को भेजा। इसमे उसे सुधरने की नसीहत दी गयी थी। यह पत्र फारसी भाषा के छंद शेरों के रूप में लिखा गया है। इसमे कुल 134 शेर हैं। इस पत्र को "ज़फरनामा" कहा जाता है।




यद्यपि यह पत्र औरंगजेब के लिए था। लेकिन इसमे जो उपदेश दिए गए है वह आज हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसमे औरंगजेब के आलावा मुसलमानों के बारे में जो लिखा गया है, वह हमारी आँखें खोलने के लिए काफी हैं। इसीलिए ज़फरनामा को धार्मिक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रन्थ में शामिल किया गया है।

जफरनामा से विषयानुसार कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं। ताकि लोगों को इस्लाम की हकीकत पता चल सके ---

1 - शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना --

बनामे खुदावंद तेगो तबर, खुदावंद तीरों सिनानो सिपर।
खुदावंद मर्दाने जंग आजमा, ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा। 2 -3.

अर्थ : उस ईश्वर की वंदना करता हूँ, जो तलवार, छुरा, बाण, बरछा और ढाल का स्वामी है और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है, जिनके पास पवन वेग से दौड़ने वाले घोड़े हैं।

2 - औरंगजेब के कुकर्म :-

तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त, खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त
वजा खानए खाम करदी बिना, बराए दरे दौलते खेश रा

अर्थ :- तूने अपने बाप की  मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँधा, और उस खून से सनी मिटटी से अपने राज्य की नींव रखी। और अपना आलीशान महल तैयार किया।

3 - अल्लाह के नाम पर छल --

न दीगर गिरायम बनामे खुदात, कि दीदम खुदाओ व् कलामे खुदात
ब सौगंदे तो एतबारे न मांद, मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद.

अर्थ : तेरे खु-दा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा, क्योंकि तेरा खु-दा और उसका कलाम झूठे हैं। मुझे उनपर यकीन नहीं है। इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा।

4 - छोटे बच्चों की हत्या --

चि शुद शिगाले ब मकरो रिया, हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा.
चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार, कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार.

अर्थ : यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हुआ। अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है। जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा।

5 - मु-सलमानों पर विश्वास नहीं --

मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त, कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त.
न कतरा मरा एतबारे बरूस्त, कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त.
कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार, हमा रोजे आखिर शवद खारो जार.
अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम, मारा एतबारे न यक जर्रे दम.

अर्थ : मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक है। तेरी किताब (कु-रान) और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं। जो भी कु-रान पर विश्वास करेगा, वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा। अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए, तो उस पर यकीन नहीं करना चाहिए।

6 - दुष्टों का अंजाम --

कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह, कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह.
कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त, हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त.

अर्थ : सिकंदर कहाँ है, और शेरशाह कहाँ है, सब जिन्दा नहीं रहे। कोई भी अमर नहीं हैं, तैमूर, बाबर, हुमायूँ और अकबर कहाँ गए। सब का एकसा अंजाम हुआ।

7 - गुरूजी की प्रतिज्ञा --

कि हरगिज अजां चार दीवार शूम, निशानी न मानद बरीं पाक बूम.
चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें, जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें.
चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त, हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त.

अर्थ : हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे। मेरे शेर जब तक जिन्दा रहेंगे, बदला लेते रहेंगे। जब हरेक उपाय निष्फल हो जाएँ तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है।

8 - ईश्वर सत्य के साथ है --

इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद, अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद.
उदू दुश्मनी गर हजार आवरद, न यक मूए ऊरा न जरा आवरद.

अर्थ : यदि ईश्वर मित्र हो, तो दुश्मन क्या क़र सकेगा, चाहे वह सौ शरीर धारण क़र ले। यदि हजारों शत्रु हों, तो भी वह बल बांका नहीं क़र सकते है। सदा ही धर्म की विजय होती है।

गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी इसी प्रकार की ओजस्वी वाणियों से लोगों को इतना निर्भय और महान योद्धा बना दिया कि अब भी शांतिप्रिय -- सिखों से उलझाने से कतराते हैं। वह जानते हैं कि सिख अपना बदला लिए बिना नहीं रह सकते। इसलिए उनसे दूर ही रहो।

इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है कि आप लोग गुरु गोविन्द साहिब कि वाणी को आदर पूर्वक पढ़ें, और श्री गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह जी के बच्चों के महान बलिदानों को हमेशा स्मरण रखें। और उनको अपना आदर्श मनाकर देश धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाएँ। वरना यह सेकुलर और जिहा दी एक दिन हिन्दुओं को विलुप्त प्राणी बनाकर मानेंगे।

गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान सर्वोपरि और अद्वितीय है।

सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, बढे धर्म हिन्दू सकल भंड भागे...।
Source-Vedic Sikhism.

गुरु गोविन्द सिंह के महान संकल्प से खालसा की स्थापना हुई। हिन्दू समाज अत्याचार का सामना करने हेतु संगठित हुआ। पंच प्यारों में सभी जातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसका अर्थ यही था कि अत्याचार का सामना करने के लिए हिन्दू समाज को जात-पात मिटाकर संगठित होना होगा। तभी अपने से बलवान शत्रु का सामना किया जा सकेगा...

खेद है की हिन्दुओं ने गुरु गोविन्द सिंह के सन्देश पर अमल नहीं किया। जात-पात के नाम पर बटें हुए हिन्दू समाज में संगठन भावना शुन्य हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने स्पष्ट सन्देश दिया कि कायरता भूलकर, स्वबलिदान देना जब तक हम नहीं सीखेंगे तब तक देश, धर्म और जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे।

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