Monday, May 24, 2021

महाशिवरात्रि का ऐसा है #, इसदिन शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न

 09 मार्च 2021

azaadbharat.org

तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि है ।महाशिवरात्रि भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम से मनाई जाती है ।



‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में शिवरात्रि के उपवास तथा जागरण की महिमा का वर्णन है : ‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है । लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है ।


शिवलिंग का प्रागट्य!


पुराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन?’ इस बात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी।


भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए। दोनों ने उस शिवलिंग की पूजा की। यह विराट शिवलिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को  शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया।


बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"।


1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थापित है।


2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है।


3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।


4. ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने हेतु यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।


5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।


6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।


7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।


8. त्र्यंम्बकेश्वर (महाराष्ट्र) नासिक से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।


9. घुश्मेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग।


10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मील दूरी पर स्थित है।


11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।


12. रामेश्वरम्‌ त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।


दूसरी पुराणों में ये कथा आती है कि सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही सारा विषपान कर लिया था। विष पीने से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से पुकारे जाने लगे। पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।


कई जगहों पर ऐसा भी वर्णन आता है कि शिव पार्वती का उस दिन विवाह हुआ था इसलिए भी इस दिन को शिवरात्रि  के रूप में मनाने की परंपरा रही है।


पुराणों अनुसार ये भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।


शिवरात्रि वैसे तो प्रत्येक मास की चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष) को होती है परन्तु फाल्गुन (कृष्ण पक्ष) की शिवरात्रि (महाशिवरात्रि) नाम से ही प्रसिद्ध है।


महाशिवरात्रि से संबधित पौराणिक कथा!!


एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?


उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था  । पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'


शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।


पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरी। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।


कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।


शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।


मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।


थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।


परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिससे मानव प्रणाली में ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है इसलिए इस रात जागरण की सलाह भी दी गयी है ।


शिवरात्रि व्रत की महिमा!!


इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है ।


महाशिवरात्रि व्रत की विधि!!


इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में "ॐ नम: शिवाय" का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है । चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जपों से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।*


फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात् महाशिवरात्रि पृथ्वी पर शिवलिंग के प्राकट्य का दिवस है और प्राकृतिक नियम के अनुसार जीव-शिव के एकत्व में मदद करनेवाले ग्रह-नक्षत्रों के योग का दिवस है ।  इस दिन रात्रि-जागरण कर ईश्वर की आराधना-उपासना की जाती है । ‘शिव से तात्पर्य है ‘कल्याणङ्क अर्थात् यह रात्रि बडी कल्याणकारी रात्रि है ।

महाशिवरात्रि का पर्व अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है । आत्मकल्याण के लिए पांडवों ने भी शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन किया था, जिसमें सम्मिलित होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका से हस्तिनापुर आये थे । जिन्हें संसार से सुख-वैभव लेने की इच्छा होती है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं और जिन्हें सद्गति प्राप्त करनी होती है अथवा आत्मकल्याण में रुचि है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं ।


शिवपूजा में वस्तु का मूल्य नहीं, भाव का मूल्य है । भावो हि विद्यते देवः । आराधना का एक तरीका यह है कि उपवास रखकर पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्रादि से चार प्रहर पूजा की जाये । दूसरा तरीका यह है कि मानसिक पूजा की जाये ।


 हम मन-ही-मन भावना करें :

                 

ज्योतिर्मात्रस्वरूपाय  निर्मलज्ञानचक्षुषे । नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिंगमूर्तये ।।

‘ज्योतिमात्र (ज्ञानज्योति अर्थात् सच्चिदानंद, साक्षी) जिनका स्वरूप है, निर्मल ज्ञान ही जिनके नेत्र है, जो लिंगस्वरूप ब्रह्म हैं, उन परम शांत कल्याणमय भगवान शिव को नमस्कार है ।


‘ईशान संहिता में भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं : फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी । तस्या या तामसी रात्रि सोच्यते शिवरात्रिका ।।तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां ध्रुवम् । न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया । तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः ।।


‘फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय करके जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है, उसीको ‘शिवरात्रि' कहते हैं । उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है । उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान कराने से तथा वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता ।


शिवरात्रि व्रत सभी पापों का नाश करनेवाला है और यह योग एवं मोक्ष की प्रधानतावाला व्रत है ।


महाशिवरात्रि बड़ी कल्याणकारी रात्रि है । इस रात्रि में किये जानेवाले जप, तप और व्रत हजारों गुणा पुण्य प्रदान करते हैं ।


स्कंद पुराण में आता है : ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढकर श्रेष्ठ कुछ नहीं है । जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है ।


यदि महाशिवरात्रि के दिन ‘बं' बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोड़ों के दर्द एवं वायु-सम्बंधी रोगों में विशेष लाभ होता है ।


व्रत में श्रद्धा, उपवास एवं प्रार्थना की प्रधानता होती है । व्रत नास्तिक को आस्तिक, भोगी को योगी, स्वार्थी को परमार्थी, कृपण को उदार, अधीर को धीर, असहिष्णु को सहिष्णु बनाता है । जिनके जीवन में व्रत और नियमनिष्ठा है, उनके जीवन में निखार आ जाता है ।* स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित "ऋषि प्रसाद पत्रिका"


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महिला दिवस पर देशभर में क्यों रैलियां निकाली गई और क्यों ज्ञापन दिए गए

 08 मार्च 2021

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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जगह-जगह पर महिलाओं के सम्मान में समारोह हो रहा था लेकिन नारी उत्तम संस्कार देनेवाले संगठन "महिला उत्थान मंडल" ने आज कुछ अलग ही अंदाज में महिला दिवस मनाया ।



आज ट्वीटर, फेसबुक, वेबसाइट आदि पर देखा गया तो महिला उत्थान मंडल द्वारा देशभर में बापू आशारामजी की शीघ्र रिहाई की मांग करते हुए विभिन्न स्थानों पर रैलियां निकाली गई, धरने दिए गए तथा कलेक्टर को राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम से ज्ञापन दिए गए ।

महिला मंडल के सदस्यों ने बातचीत के दौरान बताया कि निर्भया कांड के बाद नारियों की सुरक्षा हेतु बलात्कार-निरोधक नये कानून बनाये गये । परंतु दहेज विरोधी कानून की तरह इनका भी भयंकर दुरुपयोग हो रहा है ।

जैसे दहेज विरोधी अधिनियम में संशोधन किया गया ऐसे ही POCSO कानून में भी संशोधन की सख्त आवश्यकता है।

कलेक्टर को ज्ञापन देते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दू संत आशारामजी बापू सदा हर वर्ग, हर प्राणी को ईश्वरीय सुख-शांति, आत्मिक निर्विकारी आनंद पहुँचाने का अथक प्रयास करते रहे हैं । समाज, संस्कृति और विश्वसेवा के दैवीकार्य में बापू आशारामजी का योगदान अद्वितीय रहा है ।


बापू आसारामजी के ओजस्वी जीवन एवं उपदेशों से असंख्य लोगों ने व्यसन, मांस आदि बड़ी सहजता से छोड़कर संयम-सदाचार का रास्ता अपनाया है ।


85 वर्षीय वयोवृद्ध संत, जिनको करोड़ों लोगों के जीवन में संयम-सदाचार लाने व उन्हें सत्मार्ग के रास्ते चलाने तथा करोड़ों दुःखियों के चेहरों पर मुस्कान लाने का श्रेय जाता है, उनको सह-सम्मान रिहा किया जाना चाहिये ।


सम्पादक, राजनेता, फिल्म स्टार, आतंकवादी आदि को भी न्यायालय द्वारा जमानत मिल जाती है लेकिन संत आशारामजी बापू को न आजतक एक दिन की भी पैरोल दी गई न जमानत जबकि उनके जोधपुर केस में आये जजमेंट में साफ लिखा है कि बापू के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य ( Direct Evidence) नहीं है और POCSO कानून के अंतर्गत चल रहे इस केस में लड़की के उम्र संबंधी अलग-अलग सरकारी दस्तावेजों में भी विवधता पाई गई है।

एक आतंकवादी के साथ भी उदारता का व्यवहार करने वाला हमारा कानून सिर्फ आरोप के आधार पर एक सच्चे संत को कबतक जेल में रखेगा ??

आज महिला दिवस पर महिला उत्थान मंडल की करोडों महिलाओं न्यायालय एवं सरकार से निवेदन करती है कि विश्व में भारतीय संस्कृति की ध्वजा फहरानेवाले, आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता, संयममूर्ति संत आसारामजी बापू की समाज को अत्यंत आवश्यकता है । उनको जल्द रिहा किया जाए ।

मंडल ने आगे बताया कि आज भी देश की असंख्य महिलाएँ उनकी निर्दोषता के समर्थन में सड़कों पर आकर उनकी रिहाई की माँग कर रही हैं तो आपको इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि आरोप लगानेवाली दो महिलाएँ सच्ची हैं या हम करोड़ों महिलाओं का अनेक वर्षों का अनुभव सच्चा है ।

उन्होंने आगे कहा कि हिन्दू संत आसाराम बापू केस में आज तक न कोई ठोस सबूत मिला है और न ही कोई मेडिकल आधार है...!! बल्कि उन्हें षड़यंत्र करके फंसाने के सैकड़ों प्रमाण सामने आये हैं ।

आरोप लगानेवाली लड़की की मेडिकल जाँच करनेवाली डॉ. शैलजा वर्मा ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि “लड़की के शरीर पर जरा सा भी खरोंच का निशान नहीं था और न ही प्रतिरोध के कोई निशान थे ।”

प्रसिद्ध न्यायविद् डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने केस अध्ययन कर बताया कि ‘‘लड़की के फोन रिकॉर्ड्स से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं और बापू आसारामजी भी उस समय अपनी कुटिया में न होकर अपने भक्तों के बीच सत्संग कर रहे थे।


 ‘अखिल भारतीय नारी रक्षा मंच’ की अध्यक्षा श्रीमती रुपाली दुबे ने कहा : ‘‘ हिन्दू संत आसाराम बापू से लाभान्वित हुए लोगों में महिलाओं की संख्या भी करोड़ों में है लेकिन विडम्बना है कि जिन बापू आसारामजी ने नारी सशक्तिकरण एवं महिला जागृति के लिए महिला उत्थान मंडलों की स्थापना की, गर्भपात रोको अभियान चलवाया, नारियों के शोषण के खिलाफ हमेशा आवाज उठायी, उन्हीं साजिशकर्ताओं का मोहरा बनी एक-दो महिलाओं के झूठे आरोपों के आधार पर सालों से एक निर्दोष संत को जेल में रखा गया है ।


हिन्दू संत आसारामजी बापू पर लगे आरोपों में से एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ और न ही किसी जाँच में ऐसा कुछ सामने आया कि जिसके आधार पर 83 वर्ष की उम्र में ‘ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया’ की भयंकर बीमारी होने के बावजूद उनको जेल में रखा जाये। पिछले सात वर्षों से उन्हें जमानत और पैरोल ना देना उनके संवैधानिक मौलिक अधिकारों का हनन है, जोकि बड़ा अपवाद और आपत्तिकारक है ।

गौरतलब है कि जब से हिन्दू संत आसाराम बापू जेल में गए हैं तबसे उनके करोड़ों भक्त समय-समय पर न्यायालय और सरकार से उनकी रिहाई की माँग कर रहे हैं । कभी POCSO  कानून के विरुद्ध रैली निकाल कर तो कभी सोशल मीडिया का सहारा लेकर ट्विटर पर ट्रेंड चलाकर।

अब देखना ये है कि एक लड़की के कहने पर विश्वविख्यात् हिन्दू संत आसारामजी बापू को जेल में रखने वाली सरकार इन लाखों लड़कियों की गुहार कब सुनेगी ?


जिनकी सिर्फ एक ही मांग है कि.. ‘निर्दोष हिन्दू संत आसारामजी बापू की शीघ्र रिहाई हो स-सम्मान।'


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जानिए विश्व महिला दिवस का इतिहास,महिला उत्थान मंडल क्या करेगा

07 मार्च 2021

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अंतराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं की उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है ।



अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) 28 फरवरी 1909 को पहली बार अमेरिका में सेलिब्रेट किया गया था । सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने न्यूयॉर्क में 1908 में गारमेंट वर्कर्स की हड़ताल को सम्मान देने के लिए इस दिन का चयन किया ताकि इस दिन महिलाएं काम के कम घंटे और बेहतर वेतनमान के लिए अपना विरोध और मांग दर्ज करवा सकें ।

1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया । उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था ।

1913-14 में महिला दिवस युद्ध का विरोध करने का प्रतीक बन कर उभरा । रुसी महिलाओं ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस फरवरी माह के आखिरी दिन पर मनाया और पहले विश्व युद्ध का विरोध दर्ज किया । यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को पीस ऐक्टिविस्ट्स को सपोर्ट करने के लिए रैलियां कीं ।

1917 में रूस की महिलाओं ने, 8 मार्च महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया । यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी । जार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया । उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर । इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है । जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखरी इतवार 23 फरवरी को था जबकि ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी । इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है । इसी लिये 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा ।

1975 में यूनाइटेड नेशन्स ने 8 मार्च का दिन सेलिब्रेट करना शुरू किया । 1975 वह पहला साल था जब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया ।

2011 में अमेरिका के पूर्व प्रेजिडेंट बराक ओबामा ने 8 मार्च को महिलाओं का ऐतिहासिक मास कहकर पुकारा । उन्होंने यह महीना पूरी तरह से महिलाओं की मेहनत, उनके सम्मान और देश के इतिहास को महत्वपूर्ण आकार प्रकार देने के लिए उनके प्रति समर्पित किया ।


महिला उत्थान मंडल द्वारा देशभर में सौंपें जायेंगें ज्ञापन:-


महिला उत्थान मंडल महिला कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी का दर्जा प्रदान किया गया है ।


“यस्य  नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता”

अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां पर ईश्वर स्वयं निवास करते हैं ।


एक समय था जब हमारे देश में भारतीय नारी को देवी और लक्ष्मी का रूप मानकर देश की महिलाओं को पूजा जाता था, लेकिन पश्चात्य संस्कृति का अंधानुसरण करके टीवी, फिल्मों, मीडिया, अश्लील उपन्यास आदि के कारण इन्सान अपने चरित्र से इस कदर नीचे गिर गया है कि उसके लिए स्त्री एक पूजनीय और देवी का रूप न होकर केवल उपभोग की वस्तु समझी जाने लगी है ।


उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं को लेकर अनेक प्रकार की कुरीतियों का भी जन्म हुआ है जैसे दहेज, कन्या भ्रूण हत्या, उपभोग की वस्तु समझना ऐसी तमाम बुराईयाँ जन्म ले चुकी हैं, इसे रोकने के लिए हिंदू संत आशारामजी बापू ने महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कार्य किये हैं । कॉल सेंटरों, ऑफिसों में हो रहे महिला शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की तथा महिलाओं में आत्मबल, आत्मविश्वास, साहस, संयम-सदाचार के गुणों को विकसित करने के लिए महिला उत्थान मंडलों का गठन किया है जिससे जुड़कर कई महिलाएँ उन्नत हो रही हैं ।


उन्होंने आगे कहा कि बापू आशारामजी द्वारा बनाये गए महिला उत्थान मंडल द्वारा महिलाओं के लिए महिला सर्वांगीण विकास शिविर व सेवा-साधना शिविरों का आयोजन, गर्भपात रोको अभियान, तेजस्विनी अभियान, युवती एवं महिला संस्कार सभाएं, दिव्य शिशु संस्कार अभियान, मुफ्त चिकित्सा सेवा, मातृ-पितृ पूजन दिवस, कैदी उत्थान कार्यक्रम, घर-घर तुलसी लगाओ अभियान, गौ रक्षा  अभियान व दरिद्रनारायण सेवा आदि समाजोत्थान के कार्य किये जाते हैं । बापूजी ने नारियों का आत्मबल जगाकर उनका वास्तविक उत्थान किया है । उनकी अनुपस्थिति के कारण उपरोक्त विश्वव्यापी सेवाकार्यों में अपूर्णीय क्षति हो रही है । उन्होंने महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए भोगवादी सभ्यता से लोहा लिया एवं अथकरूप से अनेक प्रयास किये, इसलिए उन्हें शीघ्र रिहा किया जाये ।


महिला जागृति, नारी सशक्तिकरण व महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में महिला उत्थान मंडलों का गठन किया गया है, जिनके अंतर्गत नारी उत्थान के अनेक प्रकल्प चलाये जा रहे हैं ।


*🚩उन्होंने कहा कि महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरूपयोग हो रहा है । कानून की आड़ में कई निर्दोष पुरुषों को फँसाया जा रहा है जिसके कारण उस पूरे परिवार को सजा भुगतनी पड़ती है । इसका विरोध करना बहुत जरूरी है ।*


विश्व की 4 प्राचीन संस्कृतियों में से केवल भारतीय संस्कृति ही अब तक जीवित रह पायी है और इसका मूल कारण है कि संस्कृति के आधारस्तम्भ संत-महापुरुष समय-समय पर भारत-भूमि पर अवतरित होते रहे हैं, लेकिन आज निर्दोष संस्कृति रक्षक संतों को अंधे कानूनों के तहत फँसाया जा रहा है ।


निर्दोष संतों पर हो रहे षड्यंत्र की भर्त्सना करते हुए महिला कार्यकर्ताओं ने कहा कि ' बापू आशारामजी ने संस्कृति-रक्षा एवं संयम-सदाचार के प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया । मातृ-पितृ पूजन दिवस व वसुधैव कुटुम्बकम् की लुप्त हो रही परम्पराओं की पुनः शुरूआत कर भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को पुनर्जीवित किया है । दो महिलाओं के बेबुनियाद आरोपों को मुद्दा बनाकर ऐसे महान संत को सालो से जेल में रखा गया है, क्या यही न्याय है ? हम करोड़ो बहनें जो उनके समर्थन में खड़ी हैं हमारी आवाज को क्यों नहीं सुना जा रहा है ?


मंडल की सदस्याओं का कहना है कि बढ़ रहे पाश्चात्य कल्चर के अंधानुकरण के कारण आज महिला वर्ग के जीवन में संस्काररूपी जड़ें खोखली होती नजर आ रही हैं । ऐसे में अब हमें पुनः अपने मूल की ओर लौटने की आवश्यकता है । इतिहास साक्षी है कि यह कार्य सदा संतों-महापुरुषों के द्वारा ही सम्पन्न होता रहा है । अपनी ही संस्कृति एवं देश के हित के लिए, बालकों, महिलाओं एवं युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए, समस्त देशवासियों की भलाई के लिए अपना जीवन होम देनेवाले पूज्य संत आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा 8 मार्च विश्व महिला दिवस के निमित मंडल के महत्वपूर्ण मुदों पर ध्यान केंद्रित करने व बापू आशारामजी की रिहाई की मांग करते हुए और महिलाओं की पवित्रता के लिए देशभर में मुख्य मंत्री , राज्यपाल ,कलेक्टर या अन्य उच्च अधिकारी को ज्ञापन सौंपा जाएगा ।


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भगवान के नाम पर कार्टून, पैगंबर के नाम पर माफी : BBC की दोहरी मानसिकता

06 मार्च 2021

azaadbharat.org

असहिष्णुता, अभिव्यक्ति की आजादी और फासीवाद, इस देश के वामपंथी मीडिया से लेकर उदारवादी गिरोह के बीच ये जुमले अक्सर लोकप्रिय विषय रहे हैं और वो भी सिर्फ भारत के संदर्भ में। इस बीच, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ध्वजवाहक होने का दावा करने वाले वामपंथी मीडिया संस्थान अक्सर दक्षिणपंथी सत्ता और हिन्दुओं पर असहिष्णुता बढ़ाने का भी आरोप लगाते आए हैं। ये और बात है कि इसी बहाने हिन्दुओं के खिलाफ जिसने भी, जब और जिस तरह से चाहा, उसी तरह से नफरत फैलाई गई।



कभी त्रिशूल और शिवलिंग पर कंडोम चढ़ाकर हिन्दू-घृणा को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर परोसा गया, तो कभी हिन्दुओं की आराध्य देवी दुर्गा को अपमानित किया जाता रहा। ऐसा सिर्फ खबरों में ही हिन्दू-घृणा परोसकर नहीं, बल्कि कार्टून और विषैले लेखों, यूट्यूब वीडियो से लेकर टीवी चैनल्स और फिल्मों के माध्यम से भी हिन्दू धर्म को निशाना बनाया जाता रहा। मगर कभी शायद ही इन बातों को लेकर किसी ने कोई आपत्ति व्यक्त की हो।

लेकिन इस बार इन्हीं वामपंथी संगठनों में से एक, प्रोपेगेंडा मशीन बीबीसी को मुस्लिम संगठनों ने निशाने पर लिया है। मजहबी संगठन राजा अकादमी की आपत्ति के बाद बीबीसी हिंदी ने अपने चैनल से एक ऐसे वीडियो को डिलीट कर दिया है, जिसमें बीबीसी द्वारा कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद का चित्र दिखाया गया था। बीबीसी ने अपनी इस ‘भूल’ के लिए इस मजहबी संगठन से बाकायदा माफ़ी भी माँगी है। बीबीसी के इस वीडियो का शीर्षक था- “पाकिस्तान के इस कदम से अहमदिया मुस्लिमों में डर किसलिए है?”


लेकिन इसी बीबीसी ने हिन्दुओं की आस्था को एक नहीं बल्कि अनेकों बार निशाना बनाया है और इसके पीछे आधार ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ को बनाया गया। ऐसे ही कुछ उदाहरण, जब-जब बीबीसी ने अपने हिन्दू विरोधी अजेंडे को हवा देने का काम किया...।

बीबीसी ने एक ऐसे ‘कार्टून’ का समर्थन किया था, जिसमें श्रीराम से सीता को यह कहते दिखाया गया था कि वो इस बात से खुश हैं कि उन्हें रावण ने कैद किया था, ना कि रामभक्तों ने। इस कार्टून का मकसद ये साबित करना था कि रामभक्त बलात्कारी होते हैं। और ‘जय श्री राम’ को बीबीसी ने बताया था ‘मर्डर क्राई’, मॉब लिंचिंग में भी बीबीसी और उसके ‘कार्टूनिस्ट्स’ का  ‘जय श्री राम’ वाला नैरेटिव छापा था।

इन खबरों/कार्टून्स/वीडियो की ख़ास बात और हिन्दू धर्म की खूबसूरती यही है कि ये सभी आज भी बीबीसी की वेबसाइट पर मौजूद हैं। संदर्भ : OpIndia

हिंदु सहिष्णु के नाम पर पलायनवादी हो गए है इसके कारण आज वामपंथी और मीडिया वाले हिंदू धर्म के देवी-देवताओं, साधु-संतों और संस्कृति के विकृत करके दिखाते है पर कोई हिंदू उनके खिलाफ आवाज नही उठाता है इसके कारण इनके हौसले बुलंद होते है, हिंदुओं को संगठित होकर ऐसे षडयंत्र का विरोध करना चाहिए।


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Friday, March 5, 2021

चर्चों में 10000 बच्चों का हुआ शोषण, मीडिया इसपर कुछ नही बोलेगी

06 मार्च 2021


कन्नूर (कैरल) के कैथोलिक चर्च की एक नन सिस्टर मैरी चांडी ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी ।




 कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता का पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मों की  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है ।
 फ्रांसीसी चर्चों में शोषण के शिकार हुए बच्चों की संख्या 10 हजार के करीब हो सकती है। यह आशंका चर्चों में बाल शोषण के मामलों की जाँच के लिए गठित स्वतंत्र आयोग के अध्यक्ष जीन मार्क सेवे (Jean-Marc Sauve) ने जताई है। इस जाँच आयोग का गठन कैथोलिक चर्च की ओर से किया गया था। सेवे ने मंगलवार को कहा कि 1950 से अब तक कम से कम 10 हजार बच्चे चर्च में शोषण का शिकार हो सकते हैं।

 रिपोर्टों के अनुसार सेवे ने कहा कि पिछले साल जून में तीन हजार बच्चों के पीड़ित होने का अनुमान लगाया गया था। यकीनी तौर पर असल पीड़ितों के मुकाबले यह संख्या काफी कम है। आयोग के कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “आशंका है कि यह संख्या कम से कम 10 हजार हो सकती है।”

 जून 2019 में एक हॉटलाइन शुरू की गई थी ताकि पीड़ित और चश्मदीद मामलों की जानकारी दे सकें। बताया जा रहा है कि शुरू होने के बाद 17 महीनों में इस नंबर पर 6,500 कॉल आए। सेवे ने कहा कि आयोग के समक्ष सवाल यह था कि कितनी संख्या में पीड़ित आगे आएँगे और अपने साथ हुए शोषण के बारे में बताएँगे।

उन्होंने कहा, “हमारे सामने बड़ा सवाल यह है कि कितने पीड़ित आगे आएँगे? क्या यह 25 फीसदी होगा? 10 फीसदी? 5 फीसदी या उससे भी कम?”

 2018 में चर्चों में बच्चों के शोषण के लगातार मामले सामने आने के बाद उसी साल नवंबर में इस स्वतंत्र जाँच आयोग का गठन किया गया था। बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ फ्रांस की सहमित से इसका गठन किया गया। इस फैसले को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली थी। कुछ लोगों ने इसका समर्थन करते हुए पीड़ितों से आगे आकर आपबीती बताने की अपील की थी। वहीं, कुछ लोग इसकी सफलता को लेकर सशंकित थे।20 सदस्यीय आयोग के सदस्य कानूनी, शैक्षणिक, चिकित्सकीय सहित अन्य पृष्ठभूमि से चुने गए थे। आयोग को 2020 के अंत तक अपनी अंतिम रिपोर्ट देनी थी। लेकिन, अब इसकी नई मियाद सितंबर 2021 तय की गई है।

 दुनियाभर में पादरी बच्चों का शोषण करते है लेकिन सेक्युलर, बुद्धजीवी और मीडिया हिन्दू धर्म के पवित्र मंदिर, आश्रमों व साधु-संतों पर षड्यंत्र के तहत कोई आरोप भी लगा दे तो खूब बदनाम करते हैं, परंतु इन ईसाई पादरीयों के दुष्कर्मो पर चुप रहते हैं क्या उन्हें वेटिकन सिटी से भारी फंडिंग मिलती है ?


आइये जानें इस बारे में विदेशी सुप्रसिद्ध हस्तियों के उद्गार-

मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमें आंतरिक विकृति की पराकाष्ठा है । वह द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है । इस भयंकर विष का कोई मारण नहीं । ईसाईत गुलाम, क्षुद्र और चांडाल का पंथ है । - फिलॉसफर नित्शे

दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है रोमन कैथोलिक चर्च ।  - एच.जी.वेल्स

मैंने पचास और साठ वर्षों के बीच बाईबल का अध्ययन किया तो तब मैंने यह समझा कि यह किसी पागल का प्रलाप मात्र है । - थामस जैफरसन (अमेरिका के तीसरे राष्ट्र पति)

बाईबल पुराने और दकियानूसी अंधविश्वासों का एक बंडल है । बाईबल को धरती में गाड़ देना चाहिए और प्रार्थना पुस्तक को जला देना चाहिए । - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ

मैंने 40 वर्षों तक विश्व के सभी बड़े धर्मो का अध्ययन करके पाया कि हिन्दू धर्म के समान पूर्ण, महान और वैज्ञानिक धर्म कोई नहीं है । - डॉ. एनी बेसेन्ट

हिंदुस्तानी ऐसे ईसाई पादरियों और उनका बचाव करने वाली मीडिया और सेक्युलर, बुद्धजीवियों से सावधान रहें  ।

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Thursday, March 4, 2021

लंदन व न्यूजीलैंड के शिक्षकों ने स्वीकारा, संस्कृत पढ़ने से बच्चे बनते हैं महान

04 मार्च 2021


आज अपनी मातृभूमि पर उपेक्षा का दंश झेल रही ‘संस्कृत’ विश्व में एक सम्माननीय भाषा और सीखने के महत्वपूर्ण पड़ाव का दर्जा प्राप्त कर रही है। जहां भारत के सार्वजनिक पाठशालाओं में फ्रेंच, जर्मन और अन्य विदेशी भाषा सीखने पर जोर दिया जा रहा है वहीं विश्व की बहुत सी पाठशालाएं, ‘संस्कृत’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं !




ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) : प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा भारत की सभ्यता और संस्कृति का सबसे मुख्य भाग रही है। फिर भी आज हमारे देश में संस्कृत को पाठशाली शिक्षा में अनिवार्य करने की बात कहने पर इसका विरोध शुरू हो जाता है। हम भारतवासियों ने अपने देश की गौरवमयी संस्कृत भाषा को महत्व नही दिया। आज हमारे देश के विद्यालयों में संस्कृत बहुत कम पढ़ाई और सिखाई जाती है। किंतु आज अपनी मातृभूमि पर उपेक्षा का दंश झेल रही संस्कृत विश्व में एक सम्माननीय भाषा और सीखने के महत्वपूर्ण पड़ाव का दर्जा हासिल कर रही है। जहाँ भारत के तमाम पब्लिक पाठशालों में फ्रेंच, जर्मन और अन्य विदेशी भाषा सीखने पर जोर दिया जा रहा है वहीं विश्व की बहुत सी पाठशालाएं संस्कृत को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं।

न्यूजीलैंड की एक पाठशाला में संसार की विशेषतः भारत की इस महान भाषा को सम्मान मिल रहा है। न्यूजीलैंड के इस पाठशाला में बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए संस्कृत पढाई जा रही है। फिकिनो नामक इस पाठशाला का कहना है कि, संस्कृत से बच्चों में सीखने की क्षमता बहुत बढ जाती है। न्यूजीलैंड के शहर अॉकलैंड के माउंट इडेन क्षेत्र में स्थित इस पाठशाला में लड़के और लड़कियां दोनों को शिक्षा दी जाती है। 16 वर्ष तक की आयु तक यहाँ बच्चों को शिक्षा दी जाती है ।

इस पाठशाला का कहना है कि, इसकी पढ़ाई मानव मूल्यों, मानवता और आदर्शों पर आधारित है। अमेरिका के हिंदू नेता राजन झेद ने पाठ्यक्रम में संस्कृत को सम्मिलित करने पर फिकिनो की प्रशंसा की है। फिकिनो में अत्याधुनिक साउंड सिस्टम लगाया गया है। जिससे बच्चों को कुछ भी सीखने में आसानी रहती है। पाठशाला के प्रिंसिपल पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, 1997 में स्थापित इस पाठशाला में नए तरह के विषय रखे गए हैं। जैसे दिमाग के लिए भोजन, शरीर के लिए भोजन, अध्यात्म के लिए भोजन।

इस पाठशाला में अंग्रेजी, इतिहास, गणित और प्रकृति के विषयों की भी पढ़ाई कराई जाती है। पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि संस्कृत ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो व्याकरण और उच्चारण के लिए सबसे श्रेष्ठ है। उनके अनुसार संस्कृत के जरिए बच्चों में अच्छी अंग्रेजी सीखने का आधार मिल जाता है। संस्कृत से बच्चों में अच्छी अंग्रेजी बोलने, समझने की क्षमता विकसित होती है।

पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, दुनिया की कोई भी भाषा सीखने के लिए संस्कृत भाषा आधार का काम करती है। इस पाठशाला के बच्चे भी संस्कृत पढकर बहुत खुश हैं। इस पाठशाला में दो चरणों में शिक्षा दी जाती है। पहले चरण में दस वर्ष की आयु तक के बच्चे और दूसरे चरण 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शिक्षा दी जाती है। इस पाठशाला में बच्चों को दाखिला दिलाने वाले हर अभिभावक का यह प्रश्न अवश्य होता है कि, आप संस्कृत क्यों पढ़ाते हैं? हम उन्हें बताते हैं कि यह भाषा श्रेष्ठ है। विश्व की महानतम रचनाएं इसी भाषा में लिखी गई हैं।

अमेरिका के हिंदू नेता राजन झेद ने कहा है कि, संस्कृत को सही स्थान दिलाने की आवश्यकता है। एक ओर तो सम्पूर्ण विश्व में संस्कृत भाषा का महत्व बढ रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत में संस्कृत भाषा के विस्तार हेतु ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं जिसके कारण भारत में ही संस्कृत का विस्तार नहीं हो पा रहा है और संस्कृत भाषा के महत्व से लोग अज्ञात हैं । हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन धर्म के तमाम ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं।

स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति

संस्कृत भाषा की विशेषताएँ-

(1) संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।

(2) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।

(3) सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है।

(4) इसे देवभाषा माना जाता है।

(5) संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है अतः इसका नाम संस्कृत है। 
केवल संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। 
इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है।

(6) शब्द-रूप - विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 27 रूप होते हैं।

(7) द्विवचन - सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में
द्विवचन अतिरिक्त होता है।

(8) सन्धि - संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है।

(9) इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।

(10) शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

(11) संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। 
ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे - अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं।

(12) संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (perfect) एवं तर्कसम्मत भाषा है।

(13) संस्कृत ही एक मात्र साधन है जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।

(14) संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती आ रही है। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं।
 पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी दूरी तक व्याप्त, इतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है। दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी 3 करोड़ से अधिक संस्कृत पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। यह संख्या ग्रीक और लैटिन की पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से भी 100 गुना अधिक है। 
निःसंदेह ही यह सम्पदा छापाखाने के आविष्कार के पहले किसी भी संस्कृति द्वारा सृजित सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत है।

(15) संस्कृत केवल एकमात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है।


अब केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को सभी स्कूलों, कॉलेजों में संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए जिससे बच्चों की बुद्धिशक्ति का विकास के साथ साथ बच्चे सुसंस्कारी बने ।

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Wednesday, March 3, 2021

जानिए वैदिक गुरुकुलों की पुनः स्थापना से हमारा और राष्ट्र की कैसे उन्नति होगी?

03 मार्च 2021


English Education Act, 1835 के तहत जब से भारत में ‘मैकाले शिक्षा पद्धति’ शुरु हुई है तब से अब तक की शिक्षा पद्धति को ‘आधुनिक शिक्षा पद्धति’ कहते हैं । इस शिक्षा पद्धति को भारत में शुरु करने का एकमात्र कारण यह था कि दुनिया के अन्य सभी हिस्सों में रहनेवाले लोग अंग्रेज साम्राज्य के गुलाम बन गए थे यानि उन्होंने अंग्रेजों की अधिनता आसानी से स्वीकार कर ली थी, परन्तु एक भारत ही था जहाँ उन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ रही थी क्योंकि यहाँ के गुरुकुलों के आचार्य विद्यार्थियों के स्वास्थ्यबल, प्राणबल, चारित्र्यबल एवं विवेचना-शक्ति को इतना प्रबल बना देते थे कि भारत का विद्यार्थी स्वावलंबी बन जाता था, वह अपने आचार्य के सिवाय किसी की आधिनता स्वीकार नहीं करता था । उसका जीवन उसके आचार्य द्वारा दिये गये उच्च आदर्शों एवं चारित्र्य के संस्कारों से ओतप्रोत होता था । तब मैकाले ने भारत में जगह-जगह घूमकर देखा और पाया कि इनकी तो जीवन शैली बहुत ऊँची है और यहाँ के लोग दृढ़ चरित्रबल वाले हैं । इन्हें आसानी से अपना गुलाम बनाना बहुत मुश्किल है । उसने इन सब बातों पर गहन विचार किया तो निष्कर्ष निकाला कि इनकी जो शिक्षा पद्धति है वो उच्च आदर्शों से सम्पन्न है । इसलिए हमें इनकी शिक्षा पद्धति पर ही कुठाराघात करना चाहिए, ताकि ये भी हमारे गुलाम बन सकें । तब सन् 1835 में मैकाले ने एक रिपोर्ट तैयार करके इंग्लेंड की सरकार को भेजी जिसमें उसने कहा –





"I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country unless we break the very backbone of this nation which is her spiritual and cultural heritage and therefore I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation."

अर्थात्
“मैं पूरा भारत घूमा, वहाँ पर ना ही मुझे कोई भिखारी दिखा और ना ही मुझे कोई चोर मिला, मुझे किसी भी तरह से ना ही कोई धन की कमी दिखाई दी । वहाँ पर लोगों की मोरल वैल्यूज बहुत ऊँची हैं, लोग बहुत इंटेलीजेंट हैं व उनका कैलिबर इतना ज्यादा है कि हम उन्हें नहीं जीत सकते; जब तक कि हम उनकी रीढ़ की हड्डी, उनके एजुकेशन सिस्टम को न तोड़ दें यानि उनकी आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत को खत्म न कर दें, भारत को जीतना मुश्किल ही नहीं असंभव है । इसलिए मेरा (लार्ड मैकाले) प्रस्ताव है कि उनके पुराने एजुकेशन सिस्टम व उनकी सांस्कृतिक विरासत को पहले खत्म किया जाए और उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि ये सिस्टम सही नहीं है । उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि इंग्लिश अच्छी है और उनके पुराने एजुकेशन सिस्टम से बेहतर है ताकि उनका स्वाभिमान (आत्म-सम्मान) खत्म हो जाये और वे अपनी मूल संस्कृति से भटक जाएँ । तभी जो हम चाहते हैं वो हो सकता है, यानि तभी हम उन पर हावी हो सकते हैं; अन्यथा नहीं ।”
तब English Education Act, 1835 के तहत कोंवेंट स्कूलों एवं कॉलेजों को खोला गया और उनका खूब प्रचार-प्रसार किया गया ताकि ‘भारत के लोग शरीर से तो भारतीय रहें परंतु सोच-विचार से अंग्रेजों के गुलाम हो जाएँ यानि अंग्रेजों को ही अपना आदर्श मानकर उनका अनुसरण करें’ । तो यह अंग्रेजों की आधुनिक शिक्षा पद्धति की ही देन है जो आजकल के युवा भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को भूलकर अंग्रेजों का ही अनुकरण कर रहे हैं, अपने माता-पिता व गुरुजनों का अनादर कर रहे हैं, लिव इन रिलेशन, गे-सेक्स आदि कुरीतियों को अपना रहे हैं, ज्योइन्ट फैमिली (संयुक्त परिवार) न्यूक्लियर फैमिली (एकाकी परिवार) में परिणत हो रहे हैं, हृदय की जो व्यापकता होनी चाहिए जिस पर एक आदर्श समाज टिका है, उस व्यापकता के स्थान पर लोगों के मन-बुद्धि में संकीर्णता बढ़ रही है, यानि मानव जाति कुल मिलाकर पशुता की ओर अग्रसर हो रही है जिससे जीवन में तनाव, खिंचाव, आपसी वैर-वैमनस्य, कलह, अशांति, बिमारियाँ दिन पर दिन बढ़ रहे हैं ।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में अक्षर-ज्ञान तो दिया जाता है परन्तु वो व्यक्ति को एक संपूर्ण मानव बनाने की जिम्मेदारी नहीं लेती । वो उसे एक चलती-फिरती मशीन जरुर बना देगी या फिर अक्षरस्थ एक पशु जरुर तैयार हो जायेगा, परन्तु एक आदर्श मनुष्य की कल्पना आधुनिक शिक्षा पद्धति नहीं कर सकती ।

आधुनिक शिक्षा पद्धति व्यक्ति को परावलंबी बना देती है । ऐसा व्यक्ति अपने जीवन की निजी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी पूरा जीवन मल्टीनेशनल कंपनियों का नौकर बना रहता है और बाद में कंपनीवाले उसे कहीं जॉब से निकाल न दें, कहीं कंपनी बंद न हो जाए आदि-आदि चिंताएँ उसके मन में बनी रहती है यानि कुल मिलाकर वह व्यक्ति एक स्वावलंबी जीवन व्यतीत कभी नहीं कर सकेगा ।

आधुनिक शिक्षा पद्धति व्यक्ति के चरित्र निर्माण पर जोर नहीं देती तो क्या वह एक उच्च आदर्शवादी समाज का निर्माण कर पायेगी ? मित्रों ! भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसमें परिवार व्यवस्था देखी जाती है । बाकी विदेशों में परिवार व्यवस्था की कोई अहमियत नहीं है, क्यों ? क्योंकि एक उत्तम परिवार निर्माण के लिए जीवन में संयम, सदाचार, चरित्र बल, नैतिक बल आदि उन्नत आदर्शों की आवश्यकता होती है और कई उन्नत परिवार मिलकर ही एक उन्नत समाज की रचना करते हैं और कई उन्नत समाज मिलकर एक उन्नत राष्ट्र की परिकल्पना कर सकते हैं जो आधुनिक शिक्षा पद्धति से कदापि संभव नहीं है ।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी अपने माता-पिता और गुरुजनों का आदर नहीं करता, वह उन्हें तुच्छ और अपने आपको बुद्धिमान समझता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी भारतीय संस्कृति को गौण और पाश्चात्य संस्कृति को महान समझता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति विद्यार्थी को अपने मन पर अनुशासन करने की कला नहीं सिखाती; अपितु मन का गुलाम बना देती है । इसलिए मनमाना निर्णय करके अपने को सुखी करने के चक्कर में व्यक्ति उल्टा दुःखी ही होता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़े हुए विद्यार्थी के जीवन में संयम का कोई स्थान नहीं होता जो उसे चरित्रहीन एवं विलासी बना देता है । इसलिए ऐसे लोग कई ला-इलाज एडस् जैसी बिमारियों एवं अन्य मानसिक रोगों के शिकार हो जाते हैं ।

‘आज का विद्यार्थी पड़ोस की बहन को बहन नहीं कह सकता, विद्यार्थिनी पड़ोस के भाई को अपने भाई के नजरों से नहीं देख सकती’ ऐसा बुरा हाल आधुनिक शिक्षा पद्धति ने बना दिया है तो उत्तम समाज का निर्माण कैसे संभव है ? आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़े हुए विद्यार्थी के मन में उसे पढ़ानेवाले आचार्यों के प्रति कोई सद्भाव नहीं होता क्योंकि वह शिक्षा उन्होंने अपने ही शिक्षकों की निंदा करते-करते पाई होती है । वे अपने आपको तीसमारखा समझते हैं, अपने सामने किसी को कुछ नहीं गिनते । इसलिए उनका हाल – “Jack of all, Master of None” जैसा हो जाता है ।
संक्षेप में कहा जाए तो आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी एक आदर्श मानव नहीं; अपितु एक जीवित, पढ़ा-लिखा पशु अवश्य बन जाता है । और तो और जो वह अपने पूर्वजों को बंदर समझता है और अपने को सुधरा हुआ मानव मानता है, तो आखिर ऐसी आधुनिक शिक्षा पद्धति से अपेक्षा ही क्या की जा सकती है ?…

जनता की मांग है कि सरकार फिर से वैदिक गुरुकुल खोले और उसमे वैदिक शिक्षा पढ़ाई जानी चाहिए तभी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति हो पायेगी।

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