Friday, February 11, 2022

कोरोना जैसा वैश्‍विक महासंकट क्यों आता है? क्या हम इससे बच सकते हैं?

16 अप्रैल 2021

azaadbharat.org


कोरोना जैसी महामारी हो अथवा अन्य नैसर्गिक आपदा, हर कोई अपने ढंग से उसका कारण ढूंढता है। जैसे वैज्ञानिक हों, तो वे अपना तर्क बताते हैं कि यह आपदा क्यों आई और इसका परिणाम क्या होगा? जबकि पत्रकार अपना तर्क लगाते हैं। पर हमें आपदा का आध्यात्मिक परिपेक्ष्य देखना है। इसलिए कि बिना आध्यात्मिक परिपेक्ष्य समझे हम आपदाओं को समझ नहीं पाएंगे।



▪️आध्यात्मिक परिपेक्ष्य की विशेषता!


कयोंकि सृष्टि का संचालन किसी सरकार या आर्थिक महासत्ता द्वारा नहीं होता। सृष्टि का संचालन परमात्मा द्वारा होता है। इस संचालन का विज्ञान यदि हम नहीं समझेंगे, तो वैश्‍विक संकट को और उसके समाधान को कैसे समझ पाएंगे? हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे धर्मग्रंथों में सृष्टि तथा उसके संचालन के विषय में स्थूल अध्ययन के साथ-साथ सूक्ष्म की भी स्पष्ट जानकारी दी गयी है।


कौशिकपद्धति नामक ग्रंथ में आपातकाल के कारण का वर्णन है।


अतिवृष्टिः अनावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः।

स्वचक्रं परचक्रं च सप्तैता ईतयः स्मृताः॥

इस श्‍लोक का अर्थ इस प्रकार है: राज्यकर्ता तथा प्रजा के धर्मपालन न करने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि (अकाल), टिड्डियों का आक्रमण, चूहों अथवा तोतों (पोपट) का उपद्रव, एक-दूसरे में लड़ाइयां और शत्रु का आक्रमण- इस प्रकार के सात संकट राष्ट्र पर आते हैं।


तात्पर्य : प्रजा एवं राजा- दोनों के लिए धर्मपालन एवं साधना करणीय है। तब ही आपातकाल की तीव्रता अल्प होकर आपातकाल सुसह्य होगा।


आध्यात्मिक परिपेक्ष्य के कुछ पहलू समझ लेते हैं।


▪️यगों का कालचक्र


हमारे शास्त्रों में सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग- ऐसे चार युगों का स्पष्ट उल्लेख है। वर्तमान में कलियुग के अंतर्गत चल रहे पांचवें कलियुग के अंत का समय है। इसके बाद कलियुग के अंतर्गत एक छोटा सा सतयुग आएगा। अभी का समय छोटे कलियुग के अंत का है। कल्कि अवतार के समय के कलियुग का नहीं । वैसे कलियुग 432000 हजार वर्ष का होता है अभी करीब 5500 वर्ष हुए हैं, इसलिए अभी चल रहे कलयुग में परिवर्तन आएगा और फिर से सतयुग जैसा दिखाई देगा।


▪️उत्पत्ति, स्थिति एवं लय- यह कालचक्र का नियम


यगपरिवर्तन- यह ईश्‍वरनिर्मित प्रकृति का एक नियम है। जो भी वस्तु उत्पन्न होती है, वह कुछ समय तक रहकर अंत में नष्ट हो जाती है। इसे उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का नियम कहते हैं। उदाहरण के रूप में- हिमालय पर्वत श्रृंखला की उत्पत्ति हुई, वह कुछ काल तक रहेगी और अंत में नष्ट हो जाएगी। इस का अर्थ यह है कि जब इस विश्‍व में किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है, कुछ काल तक रहने के पश्‍चात वह अवश्य नष्ट होगी। केवल निर्माता अर्थात् ईश्‍वर ही चिरंतन एवं अपरिवर्तनीय है।


इस नियम के अनुसार अभी का समय कालचक्र में एक परिवर्तन का समय है। अर्थात् दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आपत्तियों से प्रकृति अपना संतुलन बना रही है।


इसमें समझना होगा कि आपत्तियों से जो नष्ट हो रहा है उसके अनेक मार्ग हैं; इसमें एक मार्ग है प्राकृतिक आपदाएं। नाश की इस प्रक्रिया में मानवजाति भी व्यवहार एवं आचरण द्वारा अपना योगदान देती है, जो युद्ध के रूप में सर्वनाश लाता है। इसकी मात्रा 70% होती है।


इसमें उत्पत्ति-स्थिति-लय (विनाश)- इस कालचक्र के नियमानुसार रजोगुणी और तमोगुणी (पापी) लोगों की सबसे अधिक प्राणहानि होगी। इससे, वातावरण की एक प्रकार से शुद्धि ही होती है। इस काल का उल्लेख अनेक भविष्यवेत्ताओं ने भी अपनी भविष्यवाणियों में किया है।


▪️मनुष्य के कर्म तथा समष्टि प्रारब्ध!


वर्तमान कलियुग में मनुष्य का 65 प्रतिशत जीवन प्रारब्ध के अनुसार और 35 प्रतिशत क्रियमाण कर्म के अनुसार होता है। 35 प्रतिशत क्रियमाण द्वारा हुए अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रारब्ध (भाग्य) के रूप में उसे भोगना पडता है। वर्तमान में धर्मशिक्षा और धर्माचरण के अभाव में समाज के अधिकांश लोगों में स्वार्थ या बढ़ते तमोगुण के कारण समाज, राष्ट्र और धर्म की हानि हो रही है। यह गलत कर्म संपूर्ण समाज को भुगतने पड़ते हैं, क्योंकि समाज उसकी अनदेखी करता है। इसी प्रकार, समष्टि के बुरे कर्मों का फल भी उसे प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सहना पड़ता है। जिस प्रकार आग में सूखे के साथ गीला भी जल जाता है, उसी प्रकार यह है।


इसके साथ ही समाज, धर्म और राष्ट्र का भी समष्टि प्रारब्ध होता है। 2023 तक के कालखंड में मनुष्यजाति को कठिन समष्टि प्रारब्ध भोगना पड़ सकता है।


▪️परकृति कैसे कार्य करती है?


जिस प्रकार धूल तथा धुएं से स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, उसी प्रकार बुद्धि अगम्य सूक्ष्म स्तर पर रज-तम का प्रदूषण होता है। समाज में सर्वत्र फैले अधर्म एवं साधना के अभाव के कारण मानव में रज-तम बढ़ जाने से वातावरण में भी रज-तम बढ़ गया है। इससे प्रकृति का ध्यान भी नहीं रखा जा है।


रज-तम बढने का अर्थ है- सूक्ष्म स्तर पर पूरे विश्‍व में बुद्धि अगम्य आध्यात्मिक प्रदूषण होना। जिस प्रकार हम जिस घर में रहते हैं, वहां की धूल-गंदगी समय-समय पर स्थूलरूप में निकालते रहते हैं, उसी प्रकार प्रकृति भी सूक्ष्म स्तर पर वातावरण में रज-तम के प्रदूषण को हटाने एवं स्वच्छ करने के लिए प्रतिसाद देती है।


वास्तविकता यह है कि जब वातावरण में रज-तम का पलड़ा भारी होता है, तब यह अतिरिक्त रज-तम मूलभूत पांच वैश्‍विक तत्त्वों के माध्यम से (पंचमहाभूत) प्रभाव डालता है। इन पंचमहाभूतों के माध्यम से यह भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करता है।


मलभूत पृथ्वीतत्त्व प्रभावित होने से उसकी परिणति भूकंप में होती है। मूलभूत आपतत्त्व प्रभावित होने से पानी में वृद्धि (बाढ़ आना अथवा अतिरिक्त हिमवर्षा होकर हिमयुग आना) अथवा न्यूनता (उदा. अकाल) होती है।

https://www.sanatan.org/hindi/how-to-deal-with-coronavirus-spiritually


महाभारत के युद्ध समय भी देखा गया था कि कौरवों की लाखों सेना मर गई थी, पर 5 पांडव और धर्म का साथ देने वाले जीवित रहे थे; इससे साफ होता है कि सनातन धर्म के अनुसार और साधु-संतों के बताए अनुसार अपना जीवन बनाया जाए और जीवन में सत्वगुण बढ़ाया जाए तो इन आपदाओं से हमारी रक्षा होगी।


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बैसाखी के अवसर पर हिन्दू समाज के लिए खास संदेश...

15 अप्रैल 2021

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मुगल शासनकाल के दौरान बादशाह औरंगज़ेब का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। चारों ओर औरंगज़ेब की दमनकारी नीति के कारण हिन्दू जनता त्रस्त थी। सदियों से मुस्लिम आक्रांताओं के झुंड पर झुंड का सामना करते हुए हिंदू समाज अपना आत्मविश्वास खो बैठा था। मगर अत्याचारी थमने का नाम भी नहीं ले रहे थे। जनता पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सिख पंथ के गुरु गोविन्द सिंह ने बैसाखी पर्व पर आनन्दपुर साहिब के विशाल मैदान में अपनी  संगत को आमंत्रित किया। जहां गुरुजी के लिए एक तख्त बिछाया गया और तख्त के पीछे एक तम्बू लगाया गया।  गुरु गोविन्द सिंह के दायें हाथ में नंगी तलवार चमक रही थी। गोविन्द सिंह नंगी तलवार लिए मंच पर पहुंचे और उन्होंने ऐलान किया- मुझे एक आदमी का सिर चाहिए। क्या आप में से कोई अपना सिर दे सकता है? यह सुनते ही वहां मौजूद सभी शिष्य आश्चर्यचकित रह गए और सन्नाटा छा गया। उसी समय  दयाराम नामक एक खत्री आगे आये जो लाहौर निवासी थे और बोले- आप मेरा सिर ले सकते हैं। गुरुदेव उसे पास ही बनाए गए तम्बू में ले गए। कुछ देर बाद तम्बू से खून की धारा निकलती दिखाई दी। तंबू से निकलते खून को देखकर पंडाल में सन्नाटा छा गया। गुरु गोविन्द सिंह तंबू से बाहर आए, नंगी तलवार से ताजा खून टपक रहा था। उन्होंने फिर ऐलान किया- मुझे एक और सिर चाहिए। मेरी तलवार अभी भी प्यासी है। इस बार धर्मदास नामक जाट आगे आये जो सहारनपुर के जटवाडा गांव के निवासी थे। गुरुदेव उन्हें भी तम्बू में ले गए और पहले की तरह इस बार भी थोड़ी देर में खून की धारा बाहर निकलने लगी। बाहर आकर गोविन्द सिंह ने अपनी तलवार की प्यास बुझाने के लिए एक और व्यक्ति के सिर की मांग की। इस बार जगन्नाथ पुरी के हिम्मत राय झींवर (पानी भरने वाले) खड़े हुए। गुरुजी उन्हें भी तम्बू में ले गए और फिर से तम्बू से खून की धारा बाहर आने लगी। गुरुदेव पुनः बाहर आए और एक और सिर की मांग की, तब द्वारका के युवक मोहकम चन्द दर्जी आगे आए। इसी तरह पांचवी बार फिर गुरुदेव द्वारा सिर मांगने पर बीदर निवासी साहिब चन्द नाई सिर देने के लिए आगे आये। मैदान में इतने लोगों के होने के बाद भी वहां सन्नाटा पसर गया, सभी एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी तम्बू से गुरु गोविन्द सिंह केसरिया बाना पहने पांचों  नौजवानों के साथ बाहर आए। पांचों नौजवान वही थे जिनके सिर काटने के लिए गुरु गोविन्द सिंह तम्बू में ले गए थे। गुरुदेव और पांचों नौजवान मंच पर आए, गुरुदेव तख्त पर बैठ गए। पांचों नौजवानों ने कहा- गुरुदेव हमारे सिर काटने के लिए हमें तम्बू में नहीं ले गए थे, बल्कि वह हमारी परीक्षा थी। तब गुरुदेव ने वहां उपस्थित सिक्खों से कहा- आज से ये पांचों मेरे पंज प्यारे हैं। गुरु गोविन्द सिंह के महान संकल्प से खालसा की स्थापना हुई। हिन्दू समाज अत्याचार का सामना करने हेतु संगठित हुआ। यह घटना एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग था। गुरु साहिबान ने अपनी योग्यता के अनुसार यह प्रयोग कर हिन्दुओं को संगठित करने का प्रयास किया। 



पञ्च प्यारों में सभी जातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसका अर्थ यही था कि अत्याचार का सामना करने के लिए हिन्दू समाज को जात-पांत मिटाकर संगठित होना होगा। तभी अपने से बलवान शत्रु का सामना किया जा सकेगा। खेद है कि हिन्दुओं ने गुरु गोविन्द सिंह के सन्देश पर अमल नहीं किया। जात-पांत के नाम पर बंटे हुए हिन्दू समाज में संगठन भावना शून्य है। गुरु गोविन्द सिंह ने स्पष्ट सन्देश दिया कि कायरता भूलकर, स्व-बलिदान देना जब तक हम नहीं सीखेंगे, तब तक देश, धर्म और जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे। अपने आपको समर्थ बनाना ही एक मात्र विकल्प है। धर्मानुकूल व्यवहार, सदाचारी जीवन,आध्यात्मिकता, वेदादि शास्त्रों का ज्ञान जीवन को सफल बनाने के एकमात्र विकल्प हैं।


1. आज हमारे देश में सेक्युलरवाद के नाम पर, अल्पसंख्यकों के नाम पर तुष्टिकरण का सहारा लेकर अवैध बांग्लादेशियों को बसाया जा रहा है।


 2. हज सब्सिडी दी जा रही है, मदरसों को अनुदान और मौलवियों को मासिक खर्च दिया जा रहा है, आगे आरक्षण देने की तैयारी है।


3. वेद, दर्शन, गीता के स्थान पर क़ुरान और बाइबिल को आज के लिए धर्म ग्रन्थ बताया जा रहा है।


4. हमारे अनुसरणीय राम-कृष्ण के स्थान  ग़रीब नवाज, मदर टेरेसा को बढ़ावा दिया जा रहा है।


5. ईसाईयों द्वारा हिन्दुओं के धर्मान्तरण को सही और उसका प्रतिरोध करने वालों को कट्टर बताया जा रहा है।


6. गौरी-ग़जनी को महान और शिवाजी और प्रताप को भगोड़ा बताया जाता रहा है।


7.1200 वर्षों के भयानक और निर्मम अत्याचारों की अनदेखी कर बाबरी और गुजरात दंगों को चिल्ला-चिल्ला कर भ्रमित किया जा रहा है।


8. हिन्दुओं के दाह संस्कार को प्रदूषणकारक और जमीन में गाड़ने को सही ठहराया जा रहा है।


9. दीवाली-होली को प्रदूषण वाला और बकरीद को त्योहार बताया जा रहा है।


10. वन्दे मातरम, भारत माता की जय बोलने पर आपत्ति और कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताया जा रहा है।


11. विश्व इतिहास में किसी भी देश पर हमला कर अत्याचार न करनेवाले हिन्दू समाज को अत्याचारी और समस्त विश्व में इस्लाम के नाम पर लड़कियों को गुलाम बनाकर बेचनेवालों को शांतिप्रिय बताया जा रहा है। 


12. संस्कृत भाषा को मृत और उसके स्थान पर उर्दू, अरबी, हिब्रू और जर्मन जैसी भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।


13. देश, धर्म व संस्कृति के हित में कार्य करनेवाले हिंदूनिष्ठों व साधु-संतों को जेल भेजा जा रहा अथवा उनकी हत्या कर दी जा रही है।


हमारे देश, हमारी आध्यात्मिकता, हमारी आस्था, हमारी श्रेष्ठता, हमारी विरासत, हमारी महानता, हमारे स्वर्णिम इतिहास- सभी को मिटाने के लिए सुनियोजित षड़यंत्र चलाया जा रहा है। गुरु गोविन्द सिंह के पावन सन्देश का पालन करते हुए जातिवाद और कायरता का त्याग कर संगठित होने मात्र से हिन्दू समाज का हित संभव है।


आईये, बैसाखी पर एक बार फिर से देश, धर्म और जाति की रक्षा का संकल्प लें। - डॉ. विवेक आर्य


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डॉ. आबेडकर ने हिंदू-मुस्लिम के लिए क्या बताया था?

14 अप्रैल 2021

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भारतीय राजनीति अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जैसे अपने क्रांतिकारियों को जाति के आधार पर विभाजित कर लेती है वैसे ही महान व्यक्तित्वों को भी हमने जाति भेद के आधार पर विभाजित कर लेती है। भीमराव रामजी आम्बेडकर । यह नाम सुनते ही पाठकों के मन में एक दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता उजागर होगी। मगर डॉ अम्बेडकर के जीवन के एक ऐसा पक्ष भी हैं जिसमें राष्ट्रवादी चिंतन के महान नेता के रूप में उनके दर्शन होते हैं। डॉ अम्बेडकर के नाम पर दलित राजनीति करने वाले लोग जिन्हें हम छदम अम्बेडकरवादी कह सकते हैं, विदेशी ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर डॉ अम्बेडकर के सिद्धांतों की हत्या करने में लगे हुए हैं। अम्बेडकरवाद के नाम पर याकूब मेनन की फांसी की हत्या का विरोध, यूनिवर्सिटी में बीफ फेस्टिवल बनाना, कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताने, वन्दे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगाने का विरोध, दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कवायद, अलगाववादी कश्मीरी नेताओं की प्रशंसा जैसे कार्यों में लिप्त होना डॉ अम्बेडकर की मान्यताओं का स्पष्ट विरोध हैं। अम्बेडकरवादियों के क्रियाकलापों से सामान्य जन कि डॉ अम्बेडकर के विषय में धारणा भी विकृत हो जाति हैं। इस लेख का उद्देश्य यही सिद्ध करना है की अम्बेडकरवादी डॉ अम्बेडकर के सिद्धांतों के हत्यारे हैं।



1. मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कुछ बातों को लेकर सवर्ण हिन्दुओं के साथ मेरा विवाद है, परन्तु मैं आपके समक्ष यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। - (राष्ट्र पुरुष बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर, कृष्ण गोपाल एवं श्री प्रकाश, फरवरी 1940, पृष्ठ 50)


2. शुद्र राजाओं और ब्राह्मणों में बराबर झगड़ा रहा जिसके कारण ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार हुआ। शूद्रों के अत्याचारों के कारण ब्राह्मण लोग उनसे घृणा करने लगे और उनका उपनयन करना बंद कर दिया। उपनयन न होने के कारण उनका पतन हुआ। (डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 13, पृष्ठ 3)


3. आर्यों के मूलस्थान (भारत के बाहर) का सिद्धांत वैदिक सहित्य से मेल नहीं खाता। वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदियों के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नहीं कर सकता। (डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 7, पृष्ठ 70 )


4. हिन्दू समाज ने अपने धर्म से बाहर जाने के मार्ग तो खुला रखा है, किन्तु बाहर से अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। यह स्थिति पानी की उस टंकी के समान है जिसमें पानी के अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। किन्तु निकास की टोटीं सदैव खुली है। अंत: हिन्दू समाज को आने वाले अनर्थ से बचाने के लिए इस व्यवस्था में परिवर्तन होना आवश्यक है। (बाबा साहेब बांची भाषणे- खण्ड 5, पृष्ठ 16)


5. हिन्दू अपनी मानवतावादी भावनाओं के लिए प्रसिद्द हैं और प्राणी जीवन के प्रति तो उनकी आस्था अद्भुत है। कुछ लोग तो विषैले सांपों को भी नहीं मारते। हिन्दू दर्शन सर्वव्यापी आत्मा का सिद्धांत सिखाता है और गीता उपदेश देती है कि ब्राह्मण और चांडाल में भेद न करो। प्रश्न उठता है कि जिन हिन्दुओं में उदारता और मानवतावाद की इतनी अच्छी परम्परा है और जिनका अच्छा दर्शन है वे मनुष्यों के प्रति इतना अनुचित तथा निर्दयता पूर्ण व्यवहार क्यों करते हैं? (Source: Material editor B.G.Kunte Vol 1 page 14-15)


6. डॉ अम्बेडकर का मत था कि प्रत्येक हिन्दू वैदिक रीति से यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार रखता है और इसके लिए अम्बेडकर जी ने बम्बई में "समाज समता संघ" की स्थापना की जिसका मुख्य कार्य अछूतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना तथा उनको अपने अधिकारों के प्रति सचेत करना था। यह संघ बड़ा सक्रिय था। इसी समाज के तत्वाधान में 500 महारों को जनेउ धारण करवाया गया ताकि सामाजिक समता स्थापित की जा सके। यह सभा बम्बई में मार्च 1928 में संपन्न हुई जिसमें डॉ अम्बेडकर भी मौजूद थे। (डॉ बी आर अम्बेडकर- व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृष्ठ 116-117)


7. तरुणों की धर्म विरोधी प्रवृत्ति देखकर मुझे दुःख होता है। कुछ लोग कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। परन्तु यह सही नहीं है। मेरे अंदर जो भी अच्छे गुण हैं अथवा मेरी शिक्षा के कारण समाज हित के काम जो मैंने किये हैं वे मुझ में विद्यमान धार्मिक भावना के कारण ही हैं। मुझे धर्म चाहिए लेकिन धर्म के नाम पर चलने वाला पाखण्ड नहीं चाहिए। (हमारे डॉ अम्बेडकर जी, पृष्ठ 9 श्री आश्चर्य लाल नरूला)


8. मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से हीा व मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वास है। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।” (बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्‌मय, खंड १५-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, २०००)


9. Conversion to Islam or Christianity will denationalize the Depressed classes.If they go over to Islam, the number of Muslims would be doubled; and the danger of Muslim domination also become real.If they go over to Christianity, the numerical strength of the Christians becomes five to six crores. It will help to strengthen the political hold of Britain on the country. (Dr Ambedkar Life and Mission. 2nd Edition pp.278-279)


10. You wish India should protect your border, she should build roads on your area, she should supply you food grains, and Kashmir should get equal status as India.But Government of India should have only limited powers and Indian people should have no rights in Kashmir.To give consent to this proposal, would be a treacherous thing against the interests of India and I, as law minister of India will never do it. (Dr B R Ambedkar to Sheikh Abdullah on Article 370)

shorturl.at/kmzD8


🚩इस प्रकार से डॉ अम्बेड़कर के वांग्मय में अनेक ऐसे उदहारण मिलते है जिससे यह सिद्ध होता है कि डॉ अम्बेडकर सच्चे राष्ट्रभक्त थे। अपने राजनीतिक हितों साधने के लिए अम्बेडकरवादियों ने डॉ अम्बेडकर के साथ विश्वासघात किया। आइए डॉ अम्बेडकर कि जयन्ती पर उनके राष्ट्रवादी चिंतन से विश्व को अवगत करवायें।

- डॉ. विवेक आर्य 


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मरख बादशाह के आतंक से हिन्दू झुके नहीं पर डटकर जवाब दिया

13 अप्रैल 2021

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सनातनी हिन्दू आक्रमणकारियों से हमेंशा प्रताड़ित किया गया है पर समय समय पर उनको करारा जवाब भी दिया है, आज भी हिंदुओं के खिलाफ अनेक षडयंत्र रचे जा रहे हैं पर हिंदुओं को जैसे उत्तर देना चाहिए वे सिंधी भाइयों ने युक्ति बताई है, यहाँ आपको भी बता रहे है।



सिंध समाज पर भी एक ऐसी विकट आपदा आ पड़ी थी


आपको बता दें कि सिंध स्थित हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने हेतु वहाँ के नवाब मरखशाह ने फरमान जारी किया । उसका जवाब देने के लिए हिन्दुओं ने आठ दिन की मोहलत माँगी । अपने धर्म की रक्षा हेतु हिन्दुओं ने सृष्टिकर्त्ता भगवान की शरण ग्रहण की तथा 'कार्यं साधयामि वा देहं पातयामि...' अर्थात् ‘या तो अपना कार्य सिद्ध करेंगे अथवा मर जायेंगे’ के निश्चय के साथ हिन्दुओं का अपार जनसमूह सागर तट पर उमड़ पड़ा । सब तीन दिन तक भूख-प्यास सहते हुए प्रार्थना करते रहे।


आये हुए सभी लोग किनारे पर एकटक देखते-देखते पुकारते- ‘हे सर्वेश्वर ! तुम अब रक्षा करो। मरख बादशाह तो धर्मांध है और उसका मूर्ख वजीर ‘आहा’, दोनों तुले हैं कि हिन्दू धर्म को नष्ट करना है। लेकिन प्रभु ! हिन्दू धर्म नष्ट हो जायेगा तो अवतार बंद हो जायेंगे। मानवता की महानता उजागर करने वाले रीति रिवाज सब चले जायेंगे। आप ही धर्म की रक्षा के लिए युग-युग में अवतरित होते हो। किसी भी रूप में अवतरित होकर प्रभु हमारी रक्षा करो। रक्षमाम् ! रक्षमाम् !! तब अथाह सागर में से प्रकाशपुंज प्रगट हुआ । उस प्रकाशपुंज में निराकार परमात्मा अपना साकार रूप प्रगट करते हुए बोले : ‘‘हिन्दू भक्तजनों ! तुम सभी अब अपने घर लौट जाओ । तुम्हारा संकट दूर हो इसके लिए मैं शीघ्र ही नसरपुर में अवतरित हो रहा हूँ । फिर मैं सभी को धर्म की सच्ची राह दिखाऊँगा ।’’


सप्ताह भर के अंदर ही संवत् 1117 के चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया को नसरपुर में ठक्कर रत्नराय के यहाँ माता देवकी के गर्भ से भगवान झूलेलाल ने अवतार लिया और हिन्दू जनता को दुष्ट मरख के आतंक से मुक्त किया । उन्हीं भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस ‘चेटीचंड’ के रूप में मनाया जाता है ।


परार्थना से सबकुछ संभव है। सिंधी भाइयों की सामुहिक पुकार पर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए झूलेलाल जी का अवतरण, मद्रास के भीषण अकाल में श्री राजगोपालाचार्य द्वारा करायी गयी सामूहिक प्रार्थना के फलस्वरूप मूसलधार वर्षा होने लगी।


किसी ने सही कहा है.... " जब और सहारे छिन जाते, न किनारा मिलता है । तूफान में टूटी किश्ती का, भगवान सहारा होता है ।"

 

झलेलाल जी का वरुण अवतार यह खबर देता है कि कोई तुम्हारे को धनबल, सत्ताबल अथवा डंडे के बल से अपने धर्म से गिराना चाहता हो तो आप ‘धड़ दीजिये धर्म न छोड़िये।’ सिर देना लेकिन धर्म नहीं छोड़ना।


चटीचंड महोत्सव मानव - जाति को संदेश देता है कि क्रूर व्यक्तियों से दबो नहीं , डरो नहीं , अपने अंतरात्मा परमात्मा की सत्ता को जागृत करो । 


सिंधी भाई जुल्मी आतताईयों के आगे झुके नहीं वरन धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने अपनी अंतर चेतना का भगवान झूलेलालजी के रूप में अवतरण करा दिया । इसलिए यह उत्सव हमें पुरुषार्थी और साहसी बनकर अपने धर्म में अडीग रहने रहने की प्रेरणा देता हैं।


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अपने घर 13 अप्रैल को ध्वजा फहराने से मिलेगा यश, कीर्ति और विजय

12 अप्रैल 2021

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चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा ही वर्षारंभ दिवस है; क्योंकि यह सृष्टि की उत्पत्ति का पहला दिन है । इस दिन प्रजापति देवता की तरंगें पृथ्वी पर अधिक आती हैं । इसी दिन से काल गणना शुरू हुई थी ।



भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।


इस दिन भूलोक के वातावरण में रजकणों का प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवों का क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव भी कम रहता है ।


नतनवर्षारंभ पर ध्वजा खड़ी करने का शास्त्रीय महत्व...


दवासुर संग्राम में भगवान श्री विष्णु ने देव सैनिकों को युद्ध के प्रत्येक स्तर पर लाभान्वित करने के लिए युद्ध में जाने से पूर्व, युद्ध के समय एवं युद्ध समाप्ति पर विविध प्रकार की ध्वजा ले जाने की सलाह दी । देवताओं के विजयी होने पर देव सैनिकों ने सोने की लाठी पर रेशमी वस्त्र लगाकर उस पर सोने का कलश रखा । इस प्रकार ध्वजा खड़ी करने से ध्वजा द्वारा संपूर्ण वातावरण में चैतन्य प्रक्षेपित होता है । इस चैतन्य का उस वातावरण में विद्यमान जीवों पर भी प्रभाव पड़ता है । स्वर्ग लोक का वातावरण सात्त्विक एवं चैतन्यमय होता है । इस कारण धर्मध्वजा पर केवल वस्त्र लगाने से ही धर्मध्वजा में उच्च लोकों से प्रक्षेपित तरंगें आकृष्ट होती हैं । इनसे देवताओं को लाभ होता है । धर्मध्वजा में विद्यमान देवतातत्त्व का सम्मान करने के लिए कभी-कभी उसे पुष्पमाला अर्पण करते हैं ।


पथ्वी का वातावरण रज-तमात्मक होता है । साथ ही पृथ्वीवासियों में ईश्वर के प्रति भाव भी अल्प होता है । उन्हें धर्मध्वजा का लाभ मिले, इसलिए धर्मध्वजा को नीम के पत्ते एवं शक्कर के पदकों की माला लगाई जाती हैं । स्वर्गलोक की धर्मध्वजा में पृथ्वी की गुड़ी की अपेक्षा 20 प्रतिशत अधिक मात्रा में चैतन्य ग्रहण होता है । उसके प्रक्षेपण की मात्रा भी 10 से 15 प्रतिशत अधिक होती है ।


सकड़ों वर्षों के विदेशी आक्रमणों के बावजूद भी अपनी सनातन संस्कृति आज भी विश्व के लिए आदर्श बनी है । परंतु पश्चिमी कल्चर के प्रभाव से भारतीय पर्वों का विकृतिकरण होते देखा जा रहा है । भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के लिए भारतीय पर्वों को बड़ी विशालता से जरूर मनाएं ।


घर के ऊपर झंडा या ध्वज पताका अवश्य लगाएं:


हमारे शास्त्रों में झंडा या पताका लगाने का विधान है । पताका यश, कीर्ति, विजय , घर में सुख समृद्धि , शान्ति एवं पराक्रम का प्रतीक है । जिस जगह पताका या झंडा फहरता है उसके वेग से नकारात्मक उर्जा दूर चली जाती है ।


हिन्दू समाज में अगर सभी घरों में चैत्री नूतनवर्ष के दिन भगवा स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा फहरेगा तो हिन्दू समाज का यश, कीर्ति, विजय एवं पराक्रम दूर दूर तक फैलेगा ।


पहले के जमाने में जब युद्ध में या किसी अन्य कार्य में विजय प्राप्त होती थी तो ध्वजा फहराई जाती थी। ध्वजा का जहां सनातन धर्म में विशेष महत्व एवं आस्था रही है वहीं ध्वज की छत्र छाया में हो रहे पर्यावरण की शुद्धिकरण से सभी को लाभ मिलेगा ।


शास्त्रों में भी ध्वजारोहण का विशेष महत्व बताया गया है झंडे या पताका आयताकार या त्रिकोना होता है ।  जो भवनों, मंदिरों, आदि पर फहराया जाता है ।


घर पर ध्वजा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ ही घर को बुरी नजर से भी बचाव होता है। घर पर किसी भी प्रकार की बाहरी हवा नहीं लगती है। घर में भूत, प्रेत आदि का प्रवेश नहीं होता । ध्वजा पर हनुमान जी का स्थान होता है, स्वयं हनुमान जी सम्पूर्ण प्रकार से घर की, घर के सम्पूर्ण सदस्यों की रक्षा करते हैं । सभी प्रकार के अनिष्टों से बचा जा सकता है ।


सभी हिन्दू घरों में वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में झंडा या ध्वजा जरूर लगाना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण यानि वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है। ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है।


सभी हिन्दू अपने घरों में पीले, सिंदूरी, लाल या केसरिया रंग के कपड़े पर स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा अवश्य लगाएं। मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति मंदिर के ऊपर लहराता हुआ झंडा देखे तो कई प्रकार के रोग का शमन हो जाता है ।


अतः भारतीय नववर्ष मंगलवार 13 अप्रैल को अपने घर पर ध्वज पताका अवश्य लगाए ।


‘नववर्षारंभ’ त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाये और अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे ऐसा प्रण करें।


आप सभी भारतवासी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.!!


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आ रहा है आपका नूतन वर्ष, कैसे मनाएं ? जानिए अत्यंत उपयोगी बातें

11 अप्रैल 2021

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चैत्र नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती है । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं । भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है । इस साल 13 अप्रैल 2021 को नूतनवर्ष प्रारंभ होगा ।



अग्रेजी नूतन वर्ष में शराब-कबाब, व्यसन, दुराचार करते हैं लेकिन भारतीय नूतन वर्ष संयम, हर्षोल्लास से मनाया जाता है । जिससे देश में सुख, सौहार्द्र, स्वास्थ्य, शांति से जन-समाज का जीवन मंगलमय हो जाता है ।


इस साल 13 अप्रैल को नूतन वर्ष मनाना है, भारतीय संस्कृति की दिव्यता को घर-घर पहुँचाना है ।


हम भारतीय नूतन वर्ष व्यक्तिगतरूप और सामूहिक रूप से भी मना सकते हैं ।


कसे मनाएं नववर्ष ?


1 - भारतीय नूतनवर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें । संभव हो तो चर्मरोगों से बचने के लिए तिल का तेल लगाकर स्नान करें ।


2 - नववर्षारंभ पर पुरुष धोती-कुर्ता / पजामा, तथा स्त्रियां नौ गज/छह गज की साड़ी पहनें ।


3 - मस्तक पर तिलक करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


4 - सूर्योदय के समय भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


5 - सुबह सूर्योदय के समय शंखध्वनि करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


6 - हिन्दू नववर्षारंभ दिन की शुभकामनाएं हस्तांदोलन (हैंडशेक) कर नहीं, नमस्कार कर स्वभाषा में दें ।


7 -  भारतीय नूतनवर्ष के प्रथम दिन ऋतु संबंधित रोगों से बचने के लिए नीम, कालीमिर्च, मिश्री या नमक से युक्त चटनी बनाकर खुद खाएं और दूसरों को खिलाएं ।


8 - मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कॉलेज, सोसायटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर भगवा ध्वजा फहराकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें  और बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है कि बंदनवार के नीचे से जो व्यक्ति गुजरता है उसकी  ऋतु-परिवर्तन से होनेवाले संबंधित रोगों से रक्षा होती है ।  पहले राजा लोग अपनी प्रजाओं के साथ सामूहिक रूप से गुजरते थे ।


9 - भारतीय नूतन वर्ष के दिन सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें ।


10 - भारतीय संस्कृति तथा गुरु-ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभी का जीवन उन्नत हो ।’ – इस प्रकार एक-दूसरे को बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें । एस.एम.एस. भी भेजें ।


11 - अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए आप बधाई-पत्र भेज सकते हैं । दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहराएं ।


12 - ई-मेल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया के माध्यम से भी बधाई देकर लोगों को प्रोत्साहित करें ।


13 - नूतन वर्ष से जुड़े एतिहासिक प्रसंगों की झाकियाँ, फ्लैक्स लगाकर भी प्रचार कर सकते हैं ।


14  - सभी तरह के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संगठनों से संपर्क करके सामूहिक रुप से सभा आदि के द्वारा भी नववर्ष का स्वागत कर सकते हैं । इस साल कोरोना वायरस का कहर देखकर सामुहिक रूप से न मनायें।


15 - नववर्ष संबंधित पेम्पलेट बाँटकर, न्यूज पेपरों में डालकर भी समाज तक संदेश पहुँचा सकते हैं ।


सभी भारतवासियों से प्रार्थना हैं कि कलेक्टर, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को भी भारतीय नववर्ष को सरकार के द्वारा सामूहिक रूप में मनाने हेतु ज्ञापन दें और व्यक्तिगत रूप में भी पत्र लिखें ।


सकड़ों वर्षों के विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी सनातन संस्कृति आज भी विश्व के लिए आदर्श बनी है । परंतु पश्चिमी कल्चर के प्रभाव से भारतीय पर्वों का विकृतिकरण होते देखा जा रहा है । भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के लिए भारतीय पर्वों को बड़ी विशालता से जरूर मनाएँ।


चत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि । -ब्रम्हपुराण

अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है ।


मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, वरुणावतार संत झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी ।


यश, कीर्ति ,विजय, सुख समृद्धि हेतु घर के ऊपर झंडा या ध्वज पताका लगाएं ।


हमारे शास्त्रों में झंडा या पताका लगाने का विधान है । पताका यश, कीर्ति, विजय , घर में सुख समृद्धि , शान्ति एवं पराक्रम का प्रतीक है । जिस जगह पताका या झंडा फहरता है उसके वेग से नकरात्मक उर्जा दूर चली जाती है ।


हिन्दू समाज में अगर सभी घरों में स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा फहरेगा तो हिन्दू समाज का यश, कीर्ति, विजय एवं पराक्रम दूर-दूर तक फैलेगा ।


सभी हिन्दू घरों में वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में झंडा या ध्वजा जरूर लगाना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण यानि वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है । ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है।


अतः सभी हिन्दू घरों में पीले, सिंदूरी, लाल या केसरिया रंग के कपड़े पर स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा अवश्य लगाना चाहिए । मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति मंदिर के ऊपर लहराता हुआ झंडा देखे तो कई प्रकार के रोग का शमन हो जाता है ।


‘नववर्षारंभ’ त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाएँ और अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे ऐसा प्रण करें।


आप सभी भारतवासियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.!!


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दिनभर ट्वीटर पर टॉप ट्रेड रहा '13 अप्रैल नववर्ष' जानिए लोगो ने क्या कहा?

10 अप्रैल 2021

azaadbharat.org


बरह्म पुराण में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र सुदी प्रतिपदा रविवार था । 



चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है । इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है । हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है ।

इस वर्ष में 13 अप्रैल 2021 से हिंदू नुतन वर्ष प्रारंभ होगा इसको लेकर शनिवार को टॉप ट्रेड चल रहा था हैशटैग था "#13अप्रैल_नववर्ष" इस हैशटैग को लेकर लाखों ट्वीट भी हुई, आइए आज आपको बताते हैं क्या बता रही थी जनता...।


1◆ इंदिरा भार्गव लिखती है कि चैत्र माह न शीत न ग्रीष्म ! ये माह पूरा पावन काल माना गया है ऐसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए।

हिन्दु धर्म पृथ्वी के उद्गम से ही है 

और सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म है

#13अप्रैल_नववर्ष https://t.co/fZdmAtcaPE


2◆ महेश ने लिखा कि हिन्दू धर्म का नूतन वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है क्योंकि

(१)उस दिन ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना हुई

(२)सतयुग का प्रारंभ

(३)भगवान श्री राम का राज्याभिषेक

(४)नवरात्र का शुभारंभ

(५)युधिष्ठिर संवत का प्रारंभ

#13अप्रैल_नववर्ष

https://twitter.com/maheshsahni35/status/1380837889085382659?s=19


3◆ मीनू लिखती है कि

#13अप्रैल_नववर्ष

हमारा नववर्ष आने वाला है ,हिंदू राष्ट्र की जय ,सभी हिंदुओं संगठित हो देश की रक्षा करें https://t.co/ciD4o84cPa


4◆ संत श्री आशारामजी बापू हैन्डल से लिखा गया कि "चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना हुई, भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस,  झुलेलालजी का अवतरण दिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयीं"

#13अप्रैल_नववर्ष

 https://t.co/v2WSF4GW5u


5◆ अमित सोनी ने लिखा कि 

'इस साल सभी भारतीयों को चैत्री शुक्ल प्रतिपदा को अपने घर पर भगवा ध्वज फहराये, सूर्य भगवान को अर्घ्य दें, शंख ध्वनि और भजन-कीर्तन करें।'

#13अप्रैल_नववर्ष https://t.co/Y8oRKtZenn


6◆ संत श्री आशारामजी आश्रम हैन्डल से ट्वीट करके बताया कि 'जिस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ किया था वह था चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिन । जहाँ देशी संवत् का स्वागत सात्त्विक भावना , व्रत , पूजन आदि से होता है। चैत्री नूतन वर्ष के दिन कोई भी शुभ कार्य करने हेतु मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती ।'

#13अप्रैल_नववर्ष https://t.co/8Ci448tY4w


7◆ मुकेश ने लिखा कि चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को सृष्टि का आरंभ हुआ था॥

हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुरु होता है।

इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है।

जिसमें हिन्दू उपवास एवं पवित्र रहकर नववर्ष की शुरूआत करते हैं॥

#13अप्रैल_नववर्ष

https://twitter.com/MuskanChhutlan1/status/1380837555856412674?s=19



8◆ सुरेश डाभी ने लिखा कि

जी हाँ, विश्व वंदनीय पूज्य Sant Shri Asharamji Bapu बताते हैं कि "हिंदू संस्कृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष मनाने से मन प्रसन्न व शरीर स्वस्थ रहता है।" आओ मिलकर हिंदू संस्कृति की रक्षा हेतु #13अप्रैल_नववर्ष मनाए। https://t.co/XN1Q59itok


इस तरीके से लाखों ट्वीट हुई थी 13अप्रैल_नववर्ष हैशटेग को लेकर, सभी ने एक ही अपील की कि इस वर्ष 13 अप्रैल 2021 को अपना चैत्री हिंदू नववर्ष जरुर मनाएं।


हिन्दू धर्म पृथ्वी के उद्गम से ही है और सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म है; परंतु दुर्भाग्य की बात है कि हिन्दू ही इसे समझ नहीं पाते । पाश्चात्य कल्चर को योग्य और अधर्मी कृत्यों का अंधानुकरण करने में ही अपने आप को धन्य समझते हैं । 31 दिसंबर की रात में नववर्ष का स्वागत और 1 जनवरी को नववर्षारंभ दिन मनाने लगे हैं ।


सभी हिन्दू चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने का संकल्प लें | इस वर्ष 13 अप्रैल 2021 को हिन्दू नववर्ष आ रहा है । सभी हिन्दू तैयारी शुरू कर दें । 


आज से ही अपने सभी सगे-संबंधी, परिचित और मित्रों को पत्र एवं सोशल मीडिया आदि द्वारा शुभ संदेश भेजना शुरू करें । 


सस्कृति रक्षा के लिए गांव-शहरों में नववर्ष निमित्त प्रभात फेरियां, झांकियों की सजावट वाली यात्राएं, पोस्टर लगाकर, स्थानिक केबल पर प्रसारण करवाकर नववर्ष का प्रचार-प्रसार जरूर करें ।


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