Saturday, June 10, 2023

जनसंख्या विस्फोट : जापान, स्पेन, यूरोप, नेपाल और भारत में भी कई गुणा बढ़ गई हैं, मुस्लिमों की आबादी....

 जनसंख्या विस्फोट : जापान, स्पेन, यूरोप, नेपाल और भारत में भी कई गुणा बढ़ गई हैं, मुस्लिमों की आबादी....

10 June 2023

🚩समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद 2005 में इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’ के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है । जो तथ्य निकल कर आए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं ।


🚩किसी देश में जब मुसलमान आबादी का हिस्सा 80% हो जाती हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है । अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100%  तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बांग्लादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

🚩स्पेन में मुस्लिम जनसंख्या 10 गुणा बढ़े




🚩पिछले 30 वर्षों में स्पेन में मुस्लिमों की जनसंख्या 10 गुणा बढ़ गई है। ये जानकारी खुद स्पेन के ही ‘सेक्रेटरी ऑफ द इस्लामिक कमीशन’ ने अपनी एक रिपोर्ट में दी है। इसके साथ ही दक्षिण-पश्चिम यूरोप के इस देश में मुस्लिमों की जनसंख्या 25 लाख के पार चली गई है। मोहम्मद अजाना ने ‘Anadolu’ मीडिया संस्थान को बताया कि अनाधिकारिक आँकड़ों की मानें तो स्पेन में मुस्लिमों की जनसंख्या 30 लाख के भी पार चली गई है।


🚩ये जानकारी भी दी गई है कि स्पेन में फ़िलहाल 53 मुस्लिम संगठन हैं और मस्जिदों की संख्या 2000 के पार चली गई है। साथ ही 40 कब्रिस्तान भी हैं।


🚩जापान में 10 गुणा बढ़ गई मुस्लिम आबादी, मस्जिद 15 से बढ़कर हुए 113


🚩जापान में पिछले 2 दशक में अचानक से मुस्लिमों की संख्या में बढ़ौतरी हुई है। वहाँ मस्जिद जो पहले गिने-चुने होते थे वो भी अब गिनती में काफी बढ़ गए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस डेमोग्राफिक चेंज के पीछे कारण जापान में आकर बसने वाले प्रवासी मुस्लिम हैं। 


🚩हैरान करने वाली बात है कि सन् 2000 में जापान में मुस्लिमों की संख्या सिर्फ 10 से 20 हजार थी लेकिन अब इनकी गिनती 2 लाख पार है। यानी एक ही पीढ़ी में ये लोग जापान में 10 गुना बढ़े हैं। वहीं 2010 तक जापान में मुस्लिम 110,000 हुए थे और अब ये 230,000 पहुँच गए।


🚩इसी तरह जापान में मस्जिद दिखना पहले आसान नहीं था। 1999 में केवल 15 मस्जिद थे। मगर अब वहाँ 113 मस्जिद हैं। बताया जा रहा है जो जगह कभी एक फैक्ट्री हुआ करती थी वहाँ भी मस्जिद खोल लिया गया जिसे इंडोनेशिया फंड देता है।


🚩इसके साथ ही दक्षिण-पश्चिम यूरोप के इस देश में मुस्लिमों की जनसंख्या 25 लाख के पार चली गई है। मोहम्मद अजाना ने ‘Anadolu’ मीडिया संस्थान को बताया कि अनाधिकारिक आँकड़ों की मानें तो स्पेन में मुस्लिमों की जनसंख्या 30 लाख के भी पार चली गई है।


🚩भारत में 1951 में मुसलमानों की आबादी 3.5 करोड़ थी जो कि 2022 में 17.2 करोड़ हो गई। ईसाइयों की जनसंख्‍या 80 लाख से बढ़कर 2.8 करोड़ पहुंच गई।


🚩नेपाल में मुस्लिम, ईसाई जनसंख्या बढ़ गई


🚩नेपाल में जातियों और विभिन्न जनजातियों की संख्या 142 के पार चली गई है। 2021 में हुई जनगणना के विवरण अब सामने आए हैं, जिसमें ये पता चला है। 2011 में हुई जनगणना में जातियों एवं जनजातियों की संख्या 125 थी। नेपाल के ‘National Statistics Office’ ने ये आँकड़े जारी किए हैं। इसे पहले ‘सेन्ट्रल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स’ के नाम से जाना जाता था। नेपाल की जातियों, भाषा और धर्मों को लेकर सवालों का भी संस्था ने जवाब दिया है। नेपाल में 2.367 करोड़ हिन्दू हैं, जबकि मुस्लिम 23.945 लाख।


🚩2011 में हिन्दुओं की जनसंख्या 81.3% थी, अर्थात हिन्दुओं की जनसंख्या 0.19% कम हुई है। वहीं बौद्ध समाज जनसंख्या का 9% हिस्सा था, इस हिसाब से बौद्धों की संख्या भी 0.79% कम हुई है। वहीं मुस्लिमों की जनसंख्या 0.69% बढ़ गई है, क्योंकि वो 2011 में 4.4% हुआ करते थे। ईसाई पहले 0.5% ही थे, जो अब 1.26% ज़्यादा हो गए हैं। स्त्रोत:ओप इंडिया 


🚩जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है । मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरन मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है । जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।


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Friday, June 9, 2023

समस्त देशवासियों को बंदा बैरागी के महान बलिदान से प्रेरणा लेना चाहिए

9 June 2023

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🚩आज बन्दा बैरागी जी का बलिदान दिवस है।  कितने हिन्दू युवाओं ने उनके अमर बलिदान की गाथा सुनी है? बहुत कम। क्यूंकि वामपंथियों द्वारा लिखे गए पाठयक्रम में कहीं भी बंदा बैरागी का भूल से भी नाम लेना उनके लिए अपराध के समान है। फिर क्या वीर बन्दा वैरागी का बलिदान व्यर्थ जाएगा ? क्या हिन्दू समय रहते जाग पाएगा ?क्या आर्य हिन्दू जाति अपने पुर्वजों का ऋण उतारने के लिये संकल्पित होगी ?


🚩इस लेख के माध्यम से जाने बंदा बैरागी के अमर बलिदान की गाथा।



🚩बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।


🚩इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त मुस्लिम आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।


🚩बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।


🚩उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।


🚩काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा - तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ?

बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया - मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है।


🚩बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पाँच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया।

बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का माँस बन्दा के मुँह में ठूँस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी। फिर 9 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिये।


🚩बंदा बैरागी जैसे महान वीरों ने हमारे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। खेदजनक बात यह है कि उनकी बलिदान से आज की हमारी युवा पीढ़ी अनभिज्ञ है। यह एक सुनियोजित षड़यंत्र है कि जिन जिन महापुरुषों से हम प्रेरणा ले सके उनके नाम तक विस्मृत कर दिए जाये। इस लेख को इतना शेयर कीजिये कि भारत का बच्चा बच्चा बंदा बैरागी के महान बलिदान से प्रेरणा ले सके।


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बिरसा मुंडा कौन थे, देश और हिन्दू धर्म के लिए उन्होंने क्या किया था,जानिए

9 June 2023

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🚩हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में सही इतिहास को स्थान ही नहीं दिया गया है। हमारे भारत में ऐसे महान क्रांतिकारी वीर हुए कि आपको भी अपने पूर्वजों पर गर्व होने लगेगा।


🚩बिरसा मुंडा का परिचय…….



🚩सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड प्रदेश में रांची के उलीहातू गांव में हुआ था। वे ‘बिरसा भगवान’ के नाम से लोकप्रिय थे। बिरसा का जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था, इसलिए मुंडा जनजातियों की परंपरा के अनुसार उनका नाम ‘बिरसा मुंडा’ रखा गया। इनके पिता एक खेतिहर मजदूर थे। वे बांस से बनी एक छोटी-सी झोंपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे।


🚩बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। बिरसा का परिवार अत्यंत गरीबी में जीवन-यापन कर रहा था। गरीबी के कारण ही बिरसा को उनके मामा के पास भेज दिया गया, जहां वे एक विद्यालय में जाने लगे। विद्यालय के संचालक बिरसा की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बिरसा को जर्मन मिशन पाठशाला में पढ़ने की सलाह दी। वहां पढ़ने के लिए ईसाई धर्म स्वीकार करना अनिवार्य था। अतः बिरसा और उनके सभी परिवार वालों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।


🚩हिंदुत्व की प्रेरणा……


🚩सन् 1886 से 1890 तक का समय बिरसा ने जर्मन मिशन में बिताया। इसके बाद उन्होंने जर्मन मिशनरी की सदस्यता त्याग दी , और ईसाई धर्म छोड़ दिया था और फिर वे भगवान विष्णु के भक्त आनंद पांडे के संपर्क में आये। 1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की। बिरसा ने आनंद पांडेजी से हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण की। आनंद पांडेजी के सत्संग से उनकी रुचि भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के रहस्यों को जानने की ओर हो गयी। धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ उन्होंने रामायण, महाभारत, हितोपदेश,भगवद्गीता आदि धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया। इसके बाद वे सत्य की खोज के लिए एकांत स्थान पर कठोर साधना करने लगे। लगभग 4 वर्ष के एकांतवास के बाद जब बिरसा प्रकट हुए तो, वे एक हिंदु महात्मा की तरह पीला वस्त्र, लकड़ी की खड़ाऊं और यज्ञोपवीत धारण करने लगे थे।


🚩ईसाई मिशनरियों का विरोध……


🚩बिरसा ने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार करना शुरू कर दियाऔर ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले वनवासी बंधुओं को उन्होंने समझाया कि ‘ईसाई धर्म हमारा अपना धर्म नहीं है। यह अंग्रेजों का धर्म है। वे हमारे देश पर शासन करते हैं, इसलिए ईसाई हमारे हिंदू धर्म का विरोध और ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं। ईसाई धर्म अपनाने से हम अपने पूर्वजों की श्रेष्ठ परंपरा से विमुख होते जा रहे हैं। अब हमें जागना चाहिए।’


🚩उनके विचारों से प्रभावित होकर बहुत-से वनवासी उनके पास आने लगे और उनके शिष्य बन गए



🚩वन अधिकारी, वनवासियों के साथ ऐसा व्यवहार करते थे, जैसे उनके सभी अधिकार समाप्त कर दिए गए हों। वनवासियों ने इसका विरोध किया और अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपने पुराने पैतृक अधिकारों को बहाल करने की मांग की। इस याचिका पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। बिरसा मुंडा ने वनवासी किसानों को साथ लेकर स्थानीय अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध याचिका दायर की। इस याचिका का भी कोई परिणाम नहीं निकला।


🚩वनवासियों का संगठन……


🚩बिरसा के विचारों का वनवासी बंधुओं पर गहरा प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बनते गए। बिरसा उन्हें प्रवचन सुनाते और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देते। इस प्रकार उन्होंने वनवासियों का संगठन बना लिया। बिरसा के बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता को देखकर अंग्रेज मिशनरी चिंतित हो उठे। उन्हें डर था कि बिरसा द्वारा बनाया गया वनवासियों का यह संगठन आगे चलकर ईसाई मिशनरियों और अंग्रेजी शासन के लिए संकट बन सकता है। अतः बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया।


🚩अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प…


🚩बिरसा की चमत्कारी शक्ति और उनकी सेवाभावना के कारण वनवासी उन्हें भगवान का अवतार मानने लगे थे। अतः उनकी गिरफ्तारी से सारे वनांचल में असंतोष फैल गया।


🚩 वनवासियों ने हजारों की संख्या में एकत्रित होकर पुलिस थाने का घेराव किया और उनको निर्दोष बताते हुए उन्हें छोड़ने की मांग की। अंग्रेजी सरकार ने वनवासी मुंडाओं पर भी राजद्रोह का आरोप लगाकर उन पर मुकदमा चला दिया। बिरसा को 2 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गयी और फिर हजारीबाग की जेल में भेज दिया गया। बिरसा का अपराध यह था कि उन्होंने वनवासियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने हेतु संगठित किया था। जेल जाने के बाद बिरसा के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और बढ़ गयी और उन्होंने अंग्रेजी शासन को उखाड फेंकने का संकल्प लिया।🚩दो वर्ष की सजा पूरी करने के बाद बिरसा को जेल से मुक्त कर दिया गया। उनकी मुक्ति का समाचार पाकर हजारों की संख्या में वनवासी उनके पास आये। बिरसा ने उनके साथ गुप्त सभाएं कीं और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष के लिए उन्हें संगठित किया। अपने साथियों को उन्होंने शस्त्र संग्रह करने, तीर कमान बनाने और कुल्हाड़ी की धार तेज करने जैसे कार्यों में लगाकर उन्हें सशस्त्र क्रान्ति की तैयारी करने का निर्देश दिया। सन 1899 में इस क्रांति का श्रीगणेश किया गया। बिरसा के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने रांची से लेकर चाईबासा तक की पुलिस चौकियों को घेर लिया और ईसाई मिशनरियों तथा अंग्रेज अधिकारियों पर तीरों की बौछार शुरू कर दी। रांची में कई दिनों तक कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी रही। घबराकर अंग्रेजों ने हजारीबाग और कलकत्ता से सेना बुलवा ली।


🚩राष्ट्र हेतु सर्वस्व अर्पण…


🚩अब बिरसा के नेतृत्व में वनवासियों ने अंग्रेज सेना से सीधी लड़ाई छेड़ दी। अंग्रेजों के पास बंदूक, बम आदि आधुनिक हथियार थे, जबकि वनवासी क्रांतिकारियों के पास उनके साधारण हथियार तीर-कमान आदि ही थे। बिरसा और उनके अनुयायियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेज सेना का मुकाबला किया। अंत में बिरसा के लगभग चार सौ अनुयायी मारे गए। इस घटना के कुछ दिन बाद अंग्रेजों ने मौका पाकर बिरसा को जंगल से गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जंजीरों में जकड़कर रांची जेल भेज दिया गया, जहां उन्हें कठोर यातनाएं दी गयीं। बिरसा हंसते-हंसते सब कुछ सहते रहे और अंत में 9 जून 1900 को कारावास में उनका देहावसान हो गया।


🚩इस तरह बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को नयी दिशा देकर भारतीयों, विशेषकर वनवासियों में हिन्दू धर्म के प्रति भक्ति, स्वदेश के प्रति प्रेम की भावना जाग्रत की।


🚩बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है। उन्होंने वनवासियों को संगठित कर उन्हें अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए तैयार किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए धर्मांतरण करने वाले ईसाई मिशनरियों का विरोध किया। ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले हिन्दुओं को उन्होंने अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की जानकारी दी और अंग्रेजों के षड्यन्त्र के प्रति सचेत किया। आज भी झारखण्ड, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के वनवासी लोग बिरसा को भगवान के रूप में पूजते हैं। अपने पच्चीस वर्ष के अल्प जीवनकाल में ही उन्होंने वनवासियों में स्वदेशी तथा भारतीय संस्कृति के प्रति जो प्रेरणा जगाई वह अतुलनीय है। धर्मांतरण, शोषण और अन्याय के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का संचालन करने वाले महान सेनानायक थे- ‘बिरसा मुंडा’।


🚩आज भी भारत में वेटिकन सिटी के इशारे पर भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा पुरजोश से धर्मान्तरण किया जा रहा है, लेकिन जनता को बिरसा मुंडा के पथ पर चलना चाहिए। हिन्दू संस्कृति को तोड़ने के लिए ईसाई मिशनरियों ने भारत में धर्मान्तरण रूपी जो जाल बिछाया है,इसमें भोले-भाले हिन्दू फंस जाते हैं और कोई हिन्दूनिष्ठ , संत उनका विरोध करते है,तो उनकी हत्या करवा दी जाती है या मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस बनाकर जेल में भिजवाया जाता है।


🚩हिन्दुस्तानियों को इन षड्यंत्रों को समझने और बिरसा मुंडा के पथ पर चलने की बहुत जरूरत है।


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Thursday, June 8, 2023

यह है भारत का न्यायतंत्र : राष्ट्रहित कार्य करने पर रखा है सालों से जेल में....

 यह है भारत का न्यायतंत्र : राष्ट्रहित  कार्य करने पर रखा है सालों से जेल में....

8 June 2023

🚩भारत मे इस कहावत का सबसे बड़ा मजाक बनाकर रख दिया है “कानून सबके लिए समान है” लेकिन जब न्याय की बात आती है, तो न्यायालय द्वारा ही पक्षपात किया जाता है, ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं पर अभी एक ताजा उदाहरण आपके सामने पेश कर रहे हैं।


🚩जालंधर के ईसाई पादरी बिशप फ्रैंको मलक्कल पर केरल की नन के साथ 2014 से 2016 के बीच कई बार बलात्कार करने का आरोप हैं। नन ने मलक्कल पर आरोप लगाया था कि मई 2014 में कुरविलांगड़ के एक गेस्ट हाउस में उनसे बलात्कार किया गया और बाद में कई मौकों पर उनका यौन शोषण किया । नन ने कहा कि चर्च के अधिकारियों ने जब पादरी के खिलाफ उनकी शिकायत पर कोई कदम नहीं उठाया तो उन्होंने पुलिस का रुख किया।

 जब जनता का प्रेशर हुआ तब मलक्कल को गिरफ्तार भी किया लेकिन 21 दिन में मलक्कल को जमानत मिल गई थी।



🚩समान कानून की बात करने वाली इसी न्यायालय ने एक लड़की के षड्यंत्र के तहत 87 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू को जेल करा दी और पिछले 10 सालों  से बापूजी को 1 दिन की  भी जमानत नही दी,जबकि उनके केस में ट्रायल 5 साल तक चला था, ट्रायल के समय भी उनको जमानत नही दी, जबकि बीच मे उनके बहन-भांजे आदि की मौत भी हुई और उनकी धर्मपत्नी और उनकी स्वयं की तबियत भी बहुत ज्यादा खराब हुई थी , फिर भी उन्हें जमानत नही दी गई।

 

🚩बिशप फ्रेंको मलक्कल और हिंदू संत आशाराम बापू में इतना ही फर्क था कि मलक्कल वेटिकन सिटी के फंड लेकर भारत में धर्मान्तरण करवा रहा था और बापू आशारामजी धर्मान्तरण को रोक रहे थे, बापूजी ने मानव उत्थान के कई  अभियान चलाये, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म की महिमा बताई, लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनको घर व जीवनोपयोगी सामग्री दी, पैसे दिए इसके कारण धर्मान्तरण का धंधा कम होने लगा जिसके कारण उनको जेल में जाना पड़ा और न्यायालय ने 1 दिन भी जमानत नही दी, अगर बापू आशारामजी धर्मान्तरण रोकने का गुनाह नही करते तो वे भी आज बाहर होते।

 

🚩कानून को देखो राहूल गांधी, नेता सोनिया गांधी, अभिनेता सलमान खान, पत्रकार तरुण तेजपाल, टुकड़े टुकड़े गैंग के कन्हैया कुमार, उमर खालिद दिल्ली दंगा भड़काने में मुख्य साजिशकर्ता सफूरा जरगर, कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को तुंरत जमानत हासिल हो जाती है, लेकिन धर्मान्तरण पर रोक लगाने वाले दारा सिंह 22 साल से ओडिशा की जेल में बंद हैं। 87 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू 10 साल से जोधपुर जेल में बंद है जबकि उनको षडयंत्र तहत फसाने के कई प्रमाण भी हैं फिर भी उनको आज तक जमानत हासिल नही हुई क्या हिंदुस्तान में हिंदू हित की बात करना भी अपराध हो गया है???

 https://www.youtube.com/watch?v=zTBJJ1lbf4I

🚩आपको बता दें कि जिस केस में हिंदू संत आशारामजी बापू को सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई है, लेकिन जब उनके केस पढ़ते है तो उसमें साफ है कि जिस समय आरोप लगाने वाली लड़की ने तथाकथित घटना बताई है उससे तो साफ होता है कि वे उस समय वह अपने मित्र से फोन पर बात कर थी, उसकी कॉल डिटेल भी है और आशारामजी बापू एक कार्यक्रम में थे वहां पर 60-70  लोग भी मौजूद थे, उन्होंने भी गवाही दी है और मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की को एक खरोच तक नही आई है और सबसे बड़ी बात FIR (एफआईआर) में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नही है, केवल छेड़छाड़ का आरोप है।

 

🚩आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी आश्रम में एक फेक्स भी आया था, उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि 50 करोड़ दो नही तो लड़की के केस में जेल जाने के लिए तैयार रहो।

https://twitter.com/SanganiUday/status/1053870700585377792?s=19

 

🚩बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी के 100 साल बाद शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व हिंदू संत आसाराम बापू ने किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश मे 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोलें, करोड़ो लोगों को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण आज वे जेल में हैं और जमानत हासिल नही हो रही है अब हिन्दू समाज को जागरूक होकर उनकी रिहाई करवानी चाहिए।


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Wednesday, June 7, 2023

देशी गाय के गौमूत्र पीने से हजारों बीमारियों से रक्षा होती है और भी गाय से क्या-क्या लाभ होते है जानिए.....


7 June 2023

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🚩हिन्दू शास्त्रों  के अनुसार ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय हैं।'

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवद्भीता में कहा है- ‘धेनुनामस्मि कामधेनु’ अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं।  ऋग्वेद ने गाय को अघन्या कहा है। यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है। अथर्ववेद में गाय को संपतियों का घर कहा गया है।


🚩स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है।



🚩गाय का दूध, मूत्र, गोबर के अलावा दूध से निकला घी, दही, छाछ, मक्खन सभी  बहुत ही उपयोगी है एवं हजारों बीमारियों से रक्षा भी करते हैं।


🚩महर्षि अरविंद ने कहा था कि गौ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है। इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है।


🚩 बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि ‘चाहे मुझे मार डालो, पर गाय पर हाथ न उठाओ’।



🚩देश की जनता की मांग गौहत्या पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगे ।


🚩सनातन में गौ माता का विशेष स्थान है। चर अचर के स्वामी श्री कृष्ण भी जिन गौ माता की वंदना करते हैं, उन गायों से जुड़ी कुछ विशेष आध्यात्मिक और वैज्ञानिक जानकारी...


🚩1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।


🚩2. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।


🚩3. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।


🚩4. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।


🚩5. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।


🚩6. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।


🚩7. गौ माता कि एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है ।


🚩8. गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है।


🚩9. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।


🚩10. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है , उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है ।


🚩11. एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है ।


🚩12. गौ माता के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।


🚩13. जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है ।


🚩14. गौ माता के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है ।


🚩15. गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे।


🚩16. गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं ।


🚩17. जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है ।


🚩18. स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।


🚩19. गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है । 


🚩20. काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है ।


🚩21. गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवता है ,

हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं ।


🚩22. कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा।


🚩23. देशी गाय के गौमूत्र का सेवन करने से  सर्दी,एलर्जी, चमड़ी के रोग, लीवर,किडनी, टी.बी,अस्थमा,ह्रदय रोग,हाय बीपी,लो बीपी, केंसर आदि रोगों से बचा जा सकता हैं।


🚩24. गौ माता सर्व सुखों की दाता है। हे मां आप अनंत ! आपके गुण अनंत, इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूं । 

जय गाय माता


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Tuesday, June 6, 2023

केवल इन 2 हिन्दू युवतियों की कहानी सुन लिया तो कोई हिन्दू युवती लव जिहाद में कभी नही फसेगी....

 केवल इन 2 हिन्दू  युवतियों की कहानी सुन लिया तो कोई हिन्दू  युवती लव जिहाद में कभी नही फसेगी....

6 June 2023

🚩अमृता प्रीतम ने विभाजन के समय बेटियों के दर्द को लेकर के जो कविता लिखी है उसकी पंक्तियों याद आ रही है.........

"इक रोई सी धी पंजाब दी तू लिख-लिख मारे वैन

अज्ज लक्खां धीयाँ रोंदियाँ तैनू वारिस शाह नु कैन "

🚩आज लाखों बेटियां इन जिहादी दरिंदों के चुंगल में फंसी हुई हैं। कौन मुक्त कराएगा उनको इन पैशाचिक दरिन्दों से । कुछ राजनीतिक पार्टियां, लिबरल कांग्रेसी कम्युनिस्टों आपियों का वह सेकुलर गैंग जो फर्जी सेकुलरिज्म के नाम पर भारत की बेटियों को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। शुतुरमुर्ग बनकर अपनी गर्दन को रेत में घुसा करके कुछ नहीं देखना चाहते हैं ।

🚩हिंदू संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की बात करते हैं।

द केरला स्टोरी फिल्म को बैन करते हैं। और इस्लामिक जिहादियों को पोषित करते हैं।

🚩साक्षी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट 

🚩दिल्ली के शाहाबाद डेयरी इलाके में 28 मई, 2023 को हुए साक्षी हत्याकांड में पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है। यह रिपोर्ट आरोपित साहिल सरफराज की निर्ममता को बयाँ करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, साहिल के हमले से साक्षी के पेट से कई अंग निकल कर बाहर आ गए थे। हमलावर द्वारा छुरे को 16 बार पेट में घोंपा गया था। मृतका की कई हड्डियाँ भी टूटी मिली हैं। अस्पताल द्वारा साक्षी को दिए गए घावों की 16 से 17 पन्नों की रिपोर्ट बनाई गई है।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साक्षी के पेट और सिर को मिला कर कुल 70 हड्डियाँ टूटी पाई गईं हैं। साहिल ने चाकुओं के कुल 16 वार साक्षी के शरीर के अलग-अलग हिस्सों में किए थे। अधिकतर वार कंधे से कमर के बीच हुए थे। साहिल के हमलों से साक्षी के कई आंतरिक अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। मौत की वजह अधिक रक्त बहना बताया गया है। बताया जा रहा है कि चाकुओं के घाव से मृतका की आँतें पेट से बाहर निकल कर लटक चुकीं थीं।


🚩दिल्ली पुलिस ने इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट को अपनी जाँच में शामिल कर लिया है। साक्षी की इतनी गलती थी जो अपने हिंदी युवक मित्र से बात करती थी।


🚩पुणे की बेटी की घटना आखें खोलने वाली 


🚩4 साल पहले पुणे के पास मंचर की एक 16 साल की लड़की लापता हो गई थी। माता-पिता ने 6 महीने तक पुलिस की मदद से पूरे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में खोजा लेकिन लड़की का कहीं पता नहीं चला।


🚩हाल ही में जारी केरल स्टोरी की तस्वीर देखने के बाद, माता-पिता शहर के हिंदू संगठनों के पास पहुंचे और इस उम्मीद में मदद मांगी कि लड़की कहां मिल सकती है। 


🚩हिंदू संगठनों ने 15 दिन के अंदर लड़की को ढूंढ निकाला।


🚩प्रारंभिक जानकारी में यह पता चला है कि लड़की कि एक मुस्लिम क्लास फ्रेंड थी, मुस्लिम लड़की ने अपने भाई को इस लड़की से मिलवाया था। कुछ दिनों बाद जान पहचान प्यार में बदल गई। माता-पिता के घर से लड़की को बहला-फुसलाकर रातोंरात गायब कर दिया।


🚩16 साल की लड़की 4 साल बाद मिली


🚩4 साल तक एक मुस्लिम परिवार ने उसे शहर से बाहर एक फ्लैट में बंद रखा। उसका सारा जिस्म सिगरेट बट्स से दागा हुआ है। फ्लैट में बेहोशी और नशे की गोलियां मिली । पड़ताल में पता चला कि 4 साल तक 2-3 अलग-अलग आदमी रोज आते थे और हर दिन लड़की के साथ रेप किया जाता था। मुस्लिम लड़के की मां, बहन, भाई सभी ने लड़की को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया।


🚩गौर करने वाली बात है मुस्लिम औरतों की मानसिकता कितनी विकृत है अपने पति से अपने बेटे से अपने भाई से प्रतिदिन उस लड़की का रेप करवाती थी ।

आज हिन्दू संगठनो (बजरंग दल) के सहयोग से हिन्दू लड़की अपने माता पिता के घर सुरक्षा के साथ पहुँचा दी गयी 

लेकिन वह इतनी डरी सहमी हुई है कि अपने सामने किसी भी पुरुष को देखते ही डर के मारे सहम जाती है, 

भले ही वह पुरुष उसका पिता और सगा भाई ही क्यों न हो। 

केरल की कहानी को प्रोपेगंडा कहने वालों ये लव जिहाद नहीं तो क्या है? स्त्रोत : आर्य समाज पेज


🚩यहां केवल 2 युवतीयों की ही बात बताई गई लेकिन लाखों हिंदू युवतियां है जो लव जिहाद से पीड़ित है, सैंकड़ों युवतियों ने तो अपनी जान भी गंवा दी है, आज समय है की माता पिता अपने बच्चों को सनातन संस्कृति के अनुसार संस्कार ज़रूर दे नही तो मासूम बेटियां इन दरिंदो के हाथ में जायेगी तो क्या बेहाल होगा वे ऊपर की कहानी के माध्यम से जान ले।


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Monday, June 5, 2023

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर पुण्यतिथी 5 जून ( दिनांक अनुसार )

 संघ के द्वितीय सरसंघचालक 

श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी के बारे में जानिए कुछ रहस्यमय बातें.....


5 June 2023

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🚩श्री गोलवलकर गुरूजी का जन्म माघ कृष्ण 11 संवत 1963 तदनुसार 19 फरवरी 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था। वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। उनके पिता का नाम श्री सदाशिव राव उपाख्य ‘भाऊ जी’ तथा माता का श्रीमती लक्ष्मीबाई उपाख्य ‘ताई’ था। उनका बचपन में नाम माधव रखा गया पर परिवार में वे मधु के नाम से ही पुकारे जाते थे। पिताश्री सदाशिव राव प्रारम्भ में डाक-तार विभाग में कार्यरत थे, परन्तु बाद में सन् 1908 में उनकी नियुक्ति शिक्षा विभाग में अध्यापक पद पर हो गयी।


🚩शिक्षा के साथ अन्य अभिरुचियाँ!!


🚩मधु जब मात्र दो वर्ष के थे तभी से उनकी शिक्षा प्रारम्भ हो गयी थी। पिताश्री भाऊजी जो भी उन्हें पढ़ाते थे, उसे वे सहज ही कंठस्थ कर लेते थे। बालक मधु में कुशाग्र बुध्दि, ज्ञान की लालसा, असामान्य स्मरण शक्ति जैसे गुणों का समुच्चय विकास बचपन से ही हो रहा था। सन् 1919 में उन्होंने ‘हाई स्कूल की प्रवेश परीक्षा’ में विशेष योग्यता दिखाकर छात्रवृत्ति प्राप्त की। सन् 1922 में 16 वर्ष की आयु में माधव ने मैट्रिक की परीक्षा चाँदा (अब चन्द्रपुर) के ‘जुबली हाई स्कूल’ से उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् सन् 1924 में उन्होंने नागपुर की ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित ‘हिस्लाप कॉलेज’ से विज्ञान विषय में इण्टरमीडिएट की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। अंग्रेजी विषय में उन्हें प्रथम पारितोषिक मिला। वे भरपूर हॉकी तो खेलते ही थे, कभी-कभी टेनिस भी खेल लिया करते थे। इसके अतिरिक्त व्यायाम का भी उन्हें शौक था। मलखम्ब के करतब, पकड़ एवं कूद आदि में वे काफी निपुण थे। विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने बाँसुरी एवं सितार वादन में भी अच्छी प्रवीणता हासिल कर ली थी।


🚩विश्वविद्यालय में ही आध्यात्मिक रुझान


🚩इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद माधवराव के जीवन में एक नये दूरगामी परिणाम वाले अध्याय का प्रारम्भ सन् 1924 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश के साथ हुआ। सन् 1926 में उन्होंने बी.एससी. और सन् 1928 में एम.एससी. की परीक्षायें भी प्राणि-शास्त्र विषय में प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण की। इस तरह उनका विद्यार्थी जीवन अत्यन्त यशस्वी रहा। विश्वविद्यालय में बिताये चार वर्षों के कालखण्ड में उन्होंने विषय के अध्ययन के अलावा “संस्कृत महाकाव्यों, पाश्चात्य दर्शन, श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द की ओजपूर्ण एवं प्रेरक ‘विचार सम्पदा’, भिन्न-भिन्न उपासना-पंथों के प्रमुख ग्रंथों तथा शास्त्रीय विषयों के अनेक ग्रंथों का आस्थापूर्वक पठन किया” । इसी बीच उनकी रुचि आध्यात्मिक जीवन की ओर जागृत हुई। एम.एससी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् वे प्राणि-शास्त्र विषय में ‘मत्स्य जीवन’ पर शोध कार्य हेतु मद्रास (चेन्नई) के मत्स्यालय से जुड़ गये। एक वर्ष के दौरान ही उनके पिता श्री भाऊजी सेवानिवृत्त हो गये, जिसके कारण वह श्री गुरूजी को पैसा भेजने में असमर्थ हो गये। इसी मद्रास-प्रवास के दौरान वे गम्भीर रूप से बीमार पड़ गये। चिकित्सक का विचार था कि यदि सावधानी नहीं बरती तो रोग गम्भीर रूप धारण कर सकता है। दो माह के इलाज के बाद वे रोगमुक्त तो हुए परन्तु उनका स्वास्थ्य पूर्णरूपेण से पूर्ववत् नहीं रहा। मद्रास प्रवास के दौरान जब वे शोध में कार्यरत थे तो एक बार हैदराबाद का निजाम मत्स्यालय देखने आया। नियमानुसार प्रवेश-शुल्क दिये बिना उसे प्रवेश देने से श्री गुरूजी ने इन्कार कर दिया। आर्थिक तंगी के कारण श्री गुरूजी को अपना शोध-कार्य अधूरा छोड़ कर अप्रैल 1929 में नागपुर वापस लौटना पड़ा। उनमें अद्भुत क्षमता थी, लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की।


🚩प्राध्यापक के रूप में श्रीगुरूजी


🚩नागपुर आकर भी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहा। इसके साथ ही उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी अत्यन्त खराब हो गयी थी। इसी बीच बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्हें निर्देशक पद पर सेवा करने का प्रस्ताव मिला। 16 अगस्त सन् 1931 को श्री गुरूजी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राणि-शास्त्र विभाग में निर्देशक का पद संभाल लिया। चूँकि यह अस्थायी नियुक्ति थी। इस कारण वे प्राय: चिन्तित भी रहा करते थे।


🚩अपने विद्यार्थी जीवन में भी माधव राव अपने मित्रों के अध्ययन में उनका मार्गदर्शन किया करते थे और अब तो अध्यापन उनकी आजीविका का साधन ही बन गया था। उनके अध्यापन का विषय यद्यपि प्राणि-विज्ञान था, विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी प्रतिभा पहचान कर उन्हें बी.ए.की कक्षा के छात्रों को अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र भी पढ़ाने का अवसर दिया। अध्यापक के नाते माधव राव अपनी विलक्षण प्रतिभा और योग्यता से छात्रों में इतने अधिक लोकप्रिय हो गये कि उनके छात्र उनको गुरुजी के नाम से सम्बोधित करने लगे। इसी नाम से वे आगे चलकर जीवन भर जाने गये। माधव राव यद्यपि विज्ञान के परास्नातक थे, फिर भी आवश्यकता पड़ने पर अपने छात्रों तथा मित्रों को अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, गणित तथा दर्शन जैसे अन्य विषय भी पढ़ाने को सदैव तत्पर रहते थे। यदि उन्हें पुस्तकालय में पुस्तकें नहीं मिलती थी, तो वे उन्हें खरीद कर और पढ़कर जिज्ञासी छात्रों एवं मित्रों की सहायता करते रहते थे। उनके वेतन का बहुतांश अपने होनहार छात्र-मित्रों की फीस भर देने अथवा उनकी पुस्तकें खरीद देने में ही व्यय हो जाया करता था।


🚩संघ प्रवेश


🚩सबसे पहले “डॉ॰ हेडगेवार” के द्वारा काशी विश्वविद्यालय भेजे गए नागपुर के स्वयंसेवक भैयाजी दाणी के द्वारा श्री गुरूजी संघ के सम्पर्क में आये और उस शाखा के संघचालक भी बने। 1937 में वो नागपुर वापस आ गए। नागपुर में श्री गुरूजी के जीवन में एक दम नए मोड़ का आरम्भ हो गया। “डॉ हेडगेवार” के सानिध्य में उन्होंने एक अत्यंत प्रेरणा दायक राष्ट्र समर्पित व्यक्तित्व को देखा। किसी आप्त व्यक्ति के द्वारा इस विषय पर पूछने पर उन्होंने कहा- “मेरा रुझान राष्ट्र संगठन कार्य की ओर प्रारम्भ से है। यह कार्य संघ में रहकर अधिक परिणामकारिता से मैं कर सकूँगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इसलिए मैंने संघ कार्य में ही स्वयं को समर्पित कर दिया। मुझे लगता है, स्वामी विवेकानंद के तत्वज्ञान और कार्यपद्धति से मेरा यह आचरण सर्वथा सुसंगत है।” 1938 के पश्चात संघ कार्य को ही उन्होंने अपना जीवन कार्य मान लिया। डॉ हेडगेवार के साथ निरंतर रहते हुये अपना सारा ध्यान संघ कार्य पर ही केंद्रित किया। इससे डॉ हेडगेवार जी का ध्येय पूर्ण हुआ।


🚩द्वितीय संघचालक हेतु नियुक्ति


🚩राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक “डॉ हेडगेवार” के प्रति सम्पूर्ण समर्पण भाव और प्रबल आत्म संयम होने की वजह से 1939 में माधव सदाशिव गोलवलकर को संघ का सरकार्यवाह नियुक्त किया गया। 1940 में “हेडगेवार” का ज्वर बढ़ता ही गया और अपना अंत समय जानकर उन्होंने उपस्थित कार्यकर्ताओं के सामने माधव को अपने पास बुलाया और कहा “अब आप ही संघ का कार्य सम्भालें”। 21 जून 1940 को हेडगेवार अनंत में विलीन हो गए।


🚩भारत छोड़ो- श्री गुरूजी का दृष्टिकोण


🚩9 अगस्त 1942 को बिना शक्ति के ही कांग्रेस ने अंग्रेजों के खिलाफ “भारत छोड़ो” आंदोलन छेड़ दिया। देश भर में बड़ा आंदोलन शुरू तो हो गया, परन्तु असंगठित दिशाहीन होने से जनता की तरफ से कई प्रकार की तोड़ फोड़ होने लगी। सत्ताधारियों ने बड़ी क्रूरता से दमन नीतियाँ अपनाई। 2-3 महीने होते-होते आंदोलन की चिंगारी शांत हो गई। देश के सभी नेता कारागार में थे और उनकी रिहाई की कोई आशा दिखाई नहीं दे रही थी। श्री गुरूजी ने निर्णय किया था कि संघ प्रत्यक्ष रूप से तो आंदोलन में भाग नहीं लेगा किन्तु स्वयंसेवकों को व्यक्तिशः प्रेरित किया जाएगा।


🚩विभाजन संकट में अद्वितीय नेतृत्व


🚩16 अगस्त 1946 को मुहम्मद अली जिन्नाह ने सीधी कार्यवाही का दिन घोषित कर के हिन्दू हत्या का तांडव मचा दिया। उन्ही दिनों में श्री गुरूजी देश भर के अपने प्रत्येक भाषण में देश विभाजन के खिलाफ डट कर खड़े होने के लिए जनता का आह्वान करते रहे किन्तु कांग्रेसी नेतागण अखण्ड भारत के लिए लड़ने की मनः स्थिति में नहीं थे। पण्डित नेहरू ने भी स्पष्ट शब्दों में विभाजन को स्वीकार कर लिया था और 3 जून 1947 को इसकी घोषणा कर दी गई। एकाएक देश की स्थिति बदल गई। इस कठिन समय में स्वयंसेवकों ने पाकिस्तान वाले भाग से हिंदुओं को सुरक्षित भारत भेजना शुरू किया। संघ का आदेश था कि जब तक आखिरी हिन्दू सुरक्षित ना आ जाए तब तक डटे रहना है। भीषण दिनों में स्वयंसेवकों का अतुलनीय पराक्रम, रणकुशलता, त्याग और बलिदान की गाथा भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखने लायक है। श्री गुरूजी भी इस कठिन घड़ी में पाकिस्तान के भाग में प्रवास करते रहे।


🚩संघ पर प्रतिबन्ध


🚩30 जनवरी 1948 को गांधी हत्या के मिथ्या आरोप में 4 फरवरी को संघ पर प्रतिबन्ध लगाया गया। श्री गुरूजी को गिरफ्तार किया गया। देश भर में स्वयंसेवको की गिरफ्तारियां हुई। जेल में रहते हुए उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं का विस्तृत व्यक्तव्य भेजा जिसमें सरकार को मुहतोड़ जवाब दिया गया था। आह्वान किया गया था कि संघ पर आरोप सिद्ध करो या प्रतिबन्ध हटाओ। देश भर में यह स्वर गूंज उठा था। 26 फरवरी 1948 को देश के प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल ने अपने पत्र में लिखा था “गांधी हत्या के काण्ड में मैंने स्वयं अपना ध्यान लगाकर पूरी जानकारी प्राप्त की है। उस से जुड़े हुये सभी अपराधी लोग पकड़ में आगए हैं। उनमें एक भी व्यक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नहीं है।”


🚩9 दिसम्बर 1948 को सत्याग्रह नाम के इस आंदोलन की शुरुआत होते ही कुछ 4-5 हजार बच्चों का यह आंदोलन है ऐसा मानकर नेतागण ने इसका मजाक उड़ाया। लेकिन उसके उलट किसी भी कांग्रेसी आंदोलन में इतनी संख्या नहीं थी। 77,0,90 स्वयंसेवकों ने विभिन्न जेलों को भर दिया। आखिरकार संघ को लिखित संविधान बनाने का आदेश दे कर प्रतिबन्ध हटा लिया गया और अब गांधी हत्या का इसमें जिक्र तक नहीं हुआ।


🚩तब सरदार वल्लभभाई पटेल ने गुरूजी को भेजे हुए अपने सन्देश में लिखा कि “संघ पर से पाबन्दी उठाने पर मुझे जितनी खुशी हुई इसका प्रमाण तो उस समय जो लोग मेरे निकट थे वे ही बता सकते हैं… मैं आपको अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ।”


🚩चीन आक्रमण के दौरान श्री गुरूजी का मार्गदर्शन


🚩श्री गुरूजी ने चीनी आक्रमण शुरू होते ही जो मार्ग दर्शन दिया उसके परिप्रेक्ष्य में स्वयंसेवक युद्ध प्रयत्नों में जनता का समर्थन जुटाने तथा उनका मनोबल दृढ करने में जुट गए। उनके सामयिक सहयोग का महत्व पण्डित नेहरू को भी स्वीकार करना पड़ा और उन्होंने सन् 1963 में गणतंत्र दिवस के पथ संचलन में कुछ कांग्रेसियों की आपत्ति के बाद भी संघ के स्वयंसेवकों को भाग लेने हेतु आमंत्रण भिजवाया। कहना न होगा कि संघ के तीन हजार गणवेषधारी स्वयंसेवकों के घोष की ताल पर कदम मिलाकर चलना उस दिन के कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण था।


🚩सन् 1940 से 1973 इन 33 वर्षों में श्रीगुरुजी नें संघ को अखिल भारतीय स्वरुप प्रदान किया। इस कार्यकाल में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारप्रणाली को सूत्रबध्द किया। श्रीगुरुजी, अपनी विचार शक्ति व कार्यशक्ति से विभिन्न क्षेत्रों एवम् संघटनाओं के कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणास्रोत बनें। श्रीगुरुजी का जीवन अलौकिक था, राष्ट्रजीवन के विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने मूलभूत एवम् क्रियाशील मार्गदर्शन किया ।


🚩कैसे वीर हो गए इस देश में, जब धर्म की बात आयी तो शास्त्र उठाया और जब कर्म की बात आयी तो शस्त्र उठाने में भी पीछे नही हटे….!


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