Sunday, October 28, 2018

महिलाआें को क्यों नहीं है श्मशान जाने की अनुमति..?

28 October 2018

🚩भारतीय संस्कृति की परम्पराओं को कुछ बुद्धिजीवी अंधविश्वास बोलते हैं पर हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद की विधि भी किनती कल्याणकारी और वैज्ञानिक ढंग से सही है वे जानिए ।

🚩मृत्युपरान्त की जाने वाली हिन्दू विधियों के विषय में उठाए गए कुछ बहुत ही प्रचलित प्रश्न एवं शंकाओं को नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं ।

🚩1. मृत व्यक्ति के मुख में गंगाजल डाल कर तुलसीपत्र क्यों रखते हैं ?
Why do women not be allowed to go to crematorium?

जब प्राण निकलते हैं तब कई बार व्यक्ति का मुख खुल जाता है तथा शरीर से बाहर निष्कासन-योग्य तरंगों का वातावरण में प्रक्षेपण होता है । मुख में गंगाजल डालने से एवं तुलसीपत्र रखने से, उनकी ओर आकर्षित ब्रह्मांड की सात्त्विक तरंगों की सहायता से, मुख से वातावरण में प्रक्षेपित दूषित तरंगों का विघटन होता है । इस कारण वायुमंडल निरंतर शुद्ध रखा जाता है । उसी प्रकार, गंगाजल एवं तुलसीपत्र के कारण मृतदेह के आंतरिक कोषों की शुद्धि होती है एवं मुख से प्रवेश करने का प्रयत्न करने वाली अनिष्ट शक्तियों को भी रोका जाता है ।

🚩2. मृतदेह के कान एवं नाक में तुलसीदल क्यों रखते हैं ?

मृतदेह के कान एवं नाक में कपास रखने के स्थान पर तुलसीदल रखें । तुलसीदल के कारण कान तथा नाक द्वारा सूक्ष्म वायु को तुलसी के कारण वातावरण में फैलने से रोका जा सकता है, साथ ही वातावरण की शुद्धि भी होती है ।

🚩3. महिलाआें को क्यों नही है श्मशान जाने की अनुमति ?

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, महिलाएं कोमल ह्रदयी होती है। किसी भी बात पर वह सहज ही भावनात्मक हो जाती है। अंतिम संस्कार करते समय मृत शरीर कई बार अकड़ने की आवाजें करता हुआ जलने लगता है, जिससे उनके मन पर इसका गहरा प्रभाव पड सकता है। इसके अतिरिक्त वहां पर मृतक का कपाल फोड़ने की क्रिया की जाती है, जो किसी को भी डरा सकती है ।

साथ ही श्मशान में अतृप्त मृत आत्माएं घूमती रहती हैं। ये आत्माएं जीवित प्राणियों के शरीर पर कब्जा करने का अवसर ढूंढती रहती है । इनके लिए छोटे बच्चे तथा रजस्वला स्त्रियां सहज शिकार होती हैं । इनसे बचाने के लिए भी महिलाओं तथा छोटे बच्चों को श्मशान जाने की अनुमती नहीं होती है ।

🚩4. व्यक्ति की मृत्यु पर घर में दीप किस दिशा में व क्यों लगाना चाहिए ?

प्राणत्याग के समय व्यक्ति की देह से उपप्राण तथा अन्य निष्कासन योग्य सूक्ष्म-वायु वातावरण में छोड़े जाते हैं और मृत्युस्थल पर बद्ध होते हैं । तत्पश्चात व्यक्ति की देह निष्प्राण हो जाती है । इसलिए व्यक्ति के वासनामयकोष से संबंधित रज-तमात्मक तरंगों का गोलाकार वेगवान भ्रमण, व्यक्ति के मृत्युस्थान पर आरंभ हो जाता है और इस भ्रमणकक्षा में प्रवेश करने वाले अन्य जीवों को कष्ट की संभावना अधिक होती है । इस प्रकार के कष्ट से बचने हेतु, व्यक्ति के मृत्यु स्थान पर दीप जलाना चाहिए । दीप की ज्योति का मुख दक्षिण दिशा की ओर, अर्थात यम दिशा की ओर रखकर जलाएं; क्योंकि इस दिशा में मृत्यु के देवता ‘यम’ वास करते हैं । दीया जलाने के उपरांत यमदेवता से प्रार्थना करें, ‘आप से आने वाली तेज तत्त्वात्मक तरंगें इस दीप की ज्योति की ओर आकर्षित हों व उससे प्रक्षेपित तरंगों से वास्तु में मृत देह की रजतमात्मक तरंगों के संचार पर अंकुश लगे और उन का विघटन हो ।’ प्रार्थना से दीप की ज्योति कार्यरत होती है व उस स्थान पर गोलाकार भ्रमण करने वाली रज-तमात्मक तरंगों का समूल उच्चाटन करती है । इस कारण पहले पांच दिन ज्योति में हलचल अधिक होती है । इस से ज्योति की कार्यमान अवस्था का बोध होता है । तत्पश्चात लगभग सातवें दिन के उपरांत ज्योति शांति से जलती है । ज्योति का शांति से जलना, रज-तमात्मक तरंगों की मात्रा के अल्प होने एवं उनके विघटन का प्रतीक है ।

🚩5. गेहूं के आटे पर दीप क्यों जलाते हैं ?

गेहूं के आटे के गोले पर दीप जला कर रखते हैं । आटे के कारण ज्योति की ओर आकर्षित तेज तत्त्वात्मक तरंगें दीर्घकाल तक दीप में टिकी रहती हैं एवं धीरे-धीरे आवश्यकतानुसार उन का दूर तक प्रक्षेपण होता है । इससे तेजतत्त्वात्मक तरंगों का भूमि पर सूक्ष्म-आच्छादन बनता है और रज-तमात्मक तरंगों का विघटन होता है, जिससे पाताल की अनिष्ट शक्तियों द्वारा बाधाएं न्यून होती हैं और यह प्रक्रिया निर्विघ्न संपन्न होती है । रज-तमात्मक तरंगों के समूल उच्चाटन के कारण मृत व्यक्ति के भूलोक में अटकने की संभावना न्यून होती है ।

🚩6. दीप में एक ही बाती क्यों लगाते हैं ?

व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसका पंच महाभौतिक शरीर अचेतन हो जाता है; केवल आत्मज्योति ही प्रज्वलित रहती है । इसके प्रतीक स्वरूप एक ही बाती लगाते हैं ।

🚩7. मृत व्यक्ति को नहलाकर नए वस्त्र क्यों पहनाए जाते हैं ?

‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ के नामजप का उच्चारण ऊंची अवाज में करते हुए मृत व्यक्ति को नहलाएं । नामजप का उच्चारण करते हुए नहलाने वाले जीव के हाथों से संक्रमित सात्त्विक तरंगों से जल अभिमंत्रित होता है और वातावरण भी शुद्ध हो जाता है । ऐसे वातावरण में सात्त्विक तरंगों से युक्त जल द्वारा मृतदेह को नहलाने पर, उसकी देह के रज-तम कणों का आवरण नष्ट होता है और देह में शेष निष्कासन योग्य सूक्ष्म वायु के निकलने में सहायता मिलती है । मृतदेह को ऐसे नहलाने का अर्थ है, एक प्रकार से उसकी आंतर्-बाह्य शुद्धि करना । नहलाने के उपरांत मृतक को नए कपड़े पहनाएं । इन कपड़ों को धूप (सुगंधित द्रव्य) दिखाकर अथवा उन पर गौमूत्र या तीर्थ का जल छिड़क कर उन्हें शुद्ध करें । ऐसा करने से नए कपड़ों के माध्यम से मृतक की चारों ओर सुरक्षा-कवच निर्माण होता है ।

🚩8. मृतदेह का दहन अधिकतर दिन के समय क्यों करना चाहिए ?

मृतदेह का दहन अधिकतर दिन के समय करना चाहिए; क्योंकि दहनकर्म एक तमोगुणी प्रक्रिया है । रात तमोगुण से संबंधित होती है । इस कारण इस समय तमोगुणी अनिष्ट शक्तियों की मात्रा अधिक होती है । यह समय अनिष्ट शक्तियों के तमोगुणी आक्रमणों को गति देने वाला होता है; इसलिए इस समय दहन प्रक्रिया करने से लिंगदेह को मृत्युपरांत गति प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है तथा लिंगदेह पर होने वाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण बढने के कारण वह अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में जा सकती है; इसलिए संभवतः रात्रि के समय मृतदेह के दहन की प्रक्रिया को अयोग्य समझा जाता है ।

🚩9. अर्थी के लिए केवल बांस का ही उपयोग क्यों करते हैं ?

बांस के खोखल में गोलाकार घूमती नादशक्ति से प्रक्षेपित नादतरंगों के प्रभाव से वायुमंडल में सूक्ष्म अग्नि की ज्वाला निर्माण होती है । इन तरंगों से अभिमंत्रित वायुमंडल की कक्षा में, अर्थात अर्थी पर मृतदेह रखने से उसकी चारों ओर सुरक्षाकवच निर्माण होता है । भूमि पर उक्त तरंगों का सूक्ष्म-आच्छादन निर्माण होने से, अर्थी पर अधिकांश समय तक रखी मृतदेह पाताल से प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनों से सुरक्षित रहती है । इससे मृतदेह के पास आने वाली अनिष्ट शक्तियों पर अंकुश लगाना संभव हो जाता है ।

🚩10. दहनविधि के लिए जाने से पूर्व मृत देह को पीठ के बल लिटाकर उसके दोनों पैर के अंगूठों को एक-दूसरे से बांधने का अध्यात्मशास्त्र क्या है ?

दहनविधि के लिए ले जाने से पूर्व मृतदेह को पीठ के बल लिटा कर उसके पैरों के अंगूठों को बांधने से उसके शरीर की दाहिनी व बार्इं नाड़ी का संयोग होता है और शरीर की तरंगों का शरीर में ही गोलाकार भ्रमण आरंभ होता है । इससे मृत्यु के समय शरीर में शेष सूक्ष्म-ऊर्जा के बल पर हो रहे तरंगों के प्रक्षेपण पर पूर्णतः अंकुश लगता है व संक्रमण प्रक्रिया गति पकड़ लेती है । इस अवस्था में मृतदेह के दोनों भागों से तरंगों का संक्रमण समान मात्रा में आरंभ होता है व शरीर के केंद्रबिंदु पर, अर्थात नाभिचक्र पर दबाव पडता है । इससे आकर आंतर्-खोखल में शेष निष्कासन योग्य सूक्ष्म वायु जोर से ऊर्ध्व दिशा में धकेली जाती है; वह मुख अथवा नाक से निकलती है अथवा मस्तिष्क खोखल में स्थिर हो कर दहन विधि के समय कपाल फूटने की प्रक्रिया में निकलती है ।

🚩11. श्मशान जाते समय मृतदेह के साथ मटकी क्यों ले जाते हैं ?

‘मटकी में घनीभूत नाद शक्ति द्वारा प्रक्षेपित नाद तरंगों के स्त्रोत के कारण, मृतदेह के आस पास निर्मित रज-तमात्मक तरंगों का निरंतर उच्चाटन होता है । इस कारण अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से मृत देह का निरंतर रक्षण होता है । मटकी की अग्नि के अंगारों से प्रक्षेपित तेजतत्त्वात्मक तरंगों के कारण मटकी में निर्मित नादतरंगें कार्यरत हो जाती हैं और वातावरण में उनका वेगवान प्रक्षेपण आरंभ हो जाता है । मटकी की अग्नि से प्रक्षेपित तेज संबंधी तरंगों के कारण, वायुमंडल में रज तम तरंगों का निरंतर विघटन होता है एवं प्रक्षेपित नाद तरंगों के कारण, रज-तमात्मक तरंगों के घर्षण से उत्पन्न तप्त सूक्ष्म वायु के संचार पर भी अंकुश लगाने में सहायता मिलती है । इस कारण मृत देह के आसपास के वायुमंडल की निरंतर शुद्धि होती है और मृतदेह के साथ चलने वाले व्यक्तियों को अनिष्ट शक्तियों द्वारा कष्ट की संभावना बहुत अल्प हो जाती है ।

🚩12. मृतदेह को श्मशान ले जाते समय उस की अंतिम यात्रा में सम्मिलित होने वाले ऊंची आवाज में ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ का नामजप क्यों करें ?

पूर्वजों को गति देना’ दत्त तत्त्व का कार्य ही है, इसलिए दत्तात्रेय देवता के नामजप से अल्प कालावधि में लिंगदेह को व वातावरण-कक्षा में अटके हुए उसके अन्य पूर्वजों को गति प्राप्त होती है ।

🚩13. मृत व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं का क्या करें ?

जब व्यक्ति मर जाता है, तब उसके जीवनकाल में पहने हुए उसके सभी कपड़े, वस्तु आदि का उपयोग घर के अन्य सदस्य करें अथवा किसी बाहरी व्यक्ति को दान कर दें, इस संबंधी स्पष्ट जानकारी धर्मशास्त्रों में नहीं मिलती । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार साधारण व्यक्ति के नित्य
उपयोग की वस्तुओं में उसकी आसक्ति रह सकती है । यदि ऐसा हुआ, तो मृत व्यक्ति का लिंगदेह उन वस्तुओं में फंसा रहेगा, जिससे उसे मृत्यु के पश्चात गति नहीं मिलेगी । अतः मृत व्यक्ति के परिजनों को आगे दिए अनुसार आचरण करना चाहिए ।

🚩अ. मृत व्यक्ति ने अंतिम दिन जो कपड़े पहने थे अथवा जो ओढा-बिछाया था, उसे अंतिम यात्रा के साथ ले जाकर चिता में रख देना चाहिए । मृत व्यक्ति ने जो कपड़े पहले कभी पहने थे अथवा जो ओढ़ना-बिछौना पहले कभी ओढ़ा-बिछाया था, वह सब एकत्र कर अंतिम यात्रा में ले
जाना बहुधा नहीं हो पाता । ऐसी वस्तुओं को कुछ दिन पश्चात अग्नि में जला देना चाहिए ।

🚩आ. मृत व्यक्ति ने जिन कपड़ों को कभी नहीं पहना था, वे (कोरे) कपडे उसके परिजन अथवा अन्य व्यक्ति पहन सकते हैं ।

🚩इ. ‘व्यक्ति की मृत्यु जिस खाट पर हुई हो, वह खाट अथवा पलंग ब्राह्मण को दान करना चाहिए’, ऐसा धर्मशास्त्र कहता है । यदि वह पलंग दान नहीं कर सकते, तब मृत व्यक्ति के परिजन अपनी आर्थिक क्षमतानुसार नया पलंग बनाने का लागत मूल्य ब्राह्मण को दान कर सकते हैं ।

🚩ई. मृत व्यक्ति की घड़ी, भ्रमणभाषी (मोबाइल), लेखन-सामग्री, पुस्तकें, ‘झोले (बैग)’ आदि वस्तुओं को गोमूत्र से अथवा तीर्थ से शुद्ध कर लें । इनपर यज्ञ की विभूति की अथवा सात्त्विक अगरबत्ती की विभूति की फूंक मारें । पश्चात इन वस्तुओं पर दत्तात्रेय भगवान के सात्त्विक चित्र चिपकाएं, इनके चारों ओर दत्तात्रेय के सात्त्विक नामजप-पट्टियों का मंडल अथवा चौखटा बनाएं । (सनातन-निर्मित ‘दत्तात्रेयके चित्र और नामजप-पट्टियां’ बहुत सात्त्विक होते हैं ।) परिजन यदि इन वस्तुओं का उपयोग करना चाहें, तो मृत्य के 6 सप्ताह पश्चात दत्तात्रेय भगवान से प्रार्थना कर, ऐसा कर सकते हैं ।

🚩उ. संतों का शरीर चैतन्यमय होता है । इसलिए उनकी वस्तुओं में देहत्याग के पश्चात भी चैतन्य रहता है । इस चैतन्य का लाभ सबको मिले, इसके लिए उन्हें धरोहर की भांति संभालकर रखना चाहिए ।

🚩14. पिंडदान कर्म नदी के तट पर अथवा घाट पर क्यों किया जाता है ?

‘मृत्यु के उपरांत स्थूल देहत्याग के कारण लिंगदेह के आसपास विद्यमान कोष में पृथ्वीतत्त्व अर्थात जड़ता की मात्रा घटती है और आपतत्त्व की मात्रा बढ़ जाती है । लिंग देह की चारों ओर विद्यमान कोष में सूक्ष्म आद्रता की मात्रा सर्वाधिक होती है । पिंडदान कर्म लिंगदेह से संबंधित होता है, इस कारण लिंगदेह के लिए पृथ्वी की वातावरण-कक्षा में प्रवेश करना सरल बनाने हेतु, अधिकतर ऐसी विधियां नदी के तट पर अथवा घाट पर की जाती हैं । ऐसे स्थानों में आपतत्त्व के कणों की प्रबलता होती है और वातावरण आद्रता (नमी) दर्शक होता है । अन्य जड़तादर्शक वातावरण की अपेक्षा उक्त प्रकार का वातावरण लिंगदेह को निकट का एवं परिचित का लगता है और उसकी ओर वह तुरंत आकर्षित होता है । इसलिए पिंडदान जैसी विधि को नदी के तट पर अथवा घाट पर ही किया जाता है ।

🚩14 अ. पिंडदान कर्म नदी के तट पर अथवा घाट पर शिवजी के अथवा कनिष्ठ देवताओं के मंदिरों में क्यों किया जाता है ?

सामान्यतः नदी के तट पर अथवा घाट पर बने मंदिरों में पिंडदान कर्म किया जाता है । इस के लिए अधिकांशतः शिवजी के अथवा कनिष्ठ देवता के मंदिरों का उपयोग किया जाता है; क्योंकि उस स्थान की अनिष्ट शक्तियां इन देवताओं के वश में होती हैं । इससे पिंडदान में किए आवाहनानुसार पृथ्वी की वातावरण कक्षा में प्रवेश करने वाले लिंगदेह की यात्रा में बाधाएं निर्माण नहीं होती हैं । अन्यथा पिंडदान कर्म के समय अनिष्ट शक्तियां वातावरण-कक्षा में प्रवेश करने वाले लिंगदेह पर आक्रमण कर उसे अपने वश में कर सकती हैं । इसलिए पिंडदान कर्म से पहले उस मंदिर के देवता से अनुमति लेकर व उनसे प्रार्थना करके ही यह विधि की जाती है ।

🚩15. अंत्यसंस्कार उपरांत तीसरे दिन ही अस्थिसंचय क्यों करते हैं ?

मंत्रोच्चार की सहायता से मृतदेह को दी गई अग्नि की धधक अर्थात अस्थियों में आकाश एवं तेज तत्त्वों की संयुक्त तरंगों का संक्रमण । यह तीन दिन के उपरांत न्यून होने लगता है । इस कारण अस्थियों की चारों ओर निर्मित सुरक्षा कवच की क्षमता भी अल्प होने लगती है । ऐसे में अस्थियों पर विधि कर, अनिष्ट शक्तियां उस जीव के लिंगदेह को कष्ट दे सकती हैं और उसके माध्यम से परिजनों को भी कष्ट दे सकती हैं । इस कारण परिजन तीसरे दिन ही श्मशान जैसे रज-तमात्मक वातावरण में से अस्थियों को इकट्ठा कर वापस ले आते हैं ।

🚩16. दसवें दिन पिंड को कौवे द्वारा छुआ जान महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है ?

‘काकगति’ पिंडदान में किए गए आवाहनानुसार पृथ्वी की वातावरण-कक्षा में प्रवेश करने वाले लिंगदेह की गति से साधम्र्य दर्शाता है । कौवे का काला रंग रज-तम का दर्शक है, इसलिए वह ‘पिंडदान’ के रज-तमात्मक कार्य की विधि से साधम्र्यदर्शाता है । कौवे के आसपास सूक्ष्मकोष में भी लिंगदेह के कोष समान ही ‘आप’ कणों की प्रबलता होती है, इसलिए लिंगदेह के लिए कौवे की देह में प्रवेश करना बहुत सरल हो जाता है । वासना में अटके लिंगदेह भूलोक, मर्त्यलोक (भूलोक व भुवलोक के बीच का लोक), भुवलोक व स्वर्गलोक में अटके होते हैं । ऐसे लिंगदेह पृथ्वी की वातावरण-कक्षा में प्रवेश करने के उपरांत कौवे की देह में प्रवेश कर पिंड के अन्न का भक्षण करते हैं । बीच का पिंड मुख्य लिंगदेह से संबंधित होता है, इस कारण इस पिंड को कौवे द्वारा छुआ जाना महत्त्वपूर्ण माना जाता है । प्रत्यक्ष में कौवे के माध्यम से पिंड के अन्न का भक्षण कर (स्थूल स्तर पर) तथा अन्न से प्रक्षेपित सूक्ष्म-वायु ग्रहण कर (सूक्ष्म स्तर पर), ऐसे दोनों माध्यमों से लिंगदेह की तृप्ति होती है व इस अन्न से पृथ्वी की कक्षा को भेद कर आगे जाने की उसे स्थूल व सूक्ष्म स्तरों पर ऊर्जा प्राप्त होती है । स्थूल ऊर्जा लिंगदेह के बाहर के वासनात्मक कोष का पोषण करती है व सूक्ष्म-वायुरूपी ऊर्जा लिंगदेह को आगे जाने के लिए आंतरिक बल प्राप्त करवाती है ।’
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘मृत्युपरांत के शास्त्रोक्त क्रियाकर्म’

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Saturday, October 27, 2018

मी टू की तरह अब पुरुषों द्वारा मैन टू आंदोलन की शुरुआत

27 October 2018

🚩कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर मी टू कैम्पियन चल रहा था उसमे काफी महिलाएं सामने आई थीं और उनके साथ हुए दुष्कर्मों के बारे में बताया था, इसमें कुछ ऐसी महिलाएं भी थीं जिनके साथ कई सालो पहले उनके साथ दुष्कर्म हुआ है । ये अच्छी बात है कि किसी महिला के साथ ऐसा वास्तविकता में हुआ हो और पहले नहीं बता सकीं हो तो इस कैम्पियन में बताने का अच्छा मौका था और किसी महिला के साथ ऐसा होना भी नहीं चाहिए क्योंकि  हमारे शास्त्रों में महिलाओं को "नारी तू नारायणी" कहा गया है, नारियों की पूजा होनी चाहिए ऐसे में उनके साथ कोई गलत कार्य करता है तो सजा मिलनी ही चाहिए ।
🚩किसी महिला के साथ कोई दुष्कर्म करता है तो उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए, लेकिन अगर वास्तविकता में किसी के साथ ऐसा नहीं हुआ है और पैसे के लालच में अथवा बदला लेने की भावना से निर्दोष पुरूषों पर झूठा मुकदमा करती है तो उस महिला को भी कड़ी सजा मिलनी चाहिए क्योंकि अगर वे जेल चला गया तो उसका कैरियर, पैसे, इज्जत, समय सब बर्बाद हो जाएगा और उसके परिवार की आजीविका चलनी मुश्किल हो जाएगी इसलिए झूठा मुकदमा करने वाली महिलाओं के खिलाफ, पुरूष मी टू की तरह अब मैन टू आंदोलन की शुरुआत कर रहे हैं ।

🚩आपको बता दे कि मी टू की तर्ज पर 15 लोगों के एक समूह ने मैन टू आंदोलन की शुरुआत करते हुए पुरुषों से कहा कि वे महिलाओं के हाथों अपने यौन शोषण के बारे में खुलकर बोलें । इन लोगों में फ्रांस के एक पूर्व राजनयिक भी शामिल हैं जिन्हें 2017 में यौन उत्पीडऩ के एक मामले में अदालत ने बरी कर दिया था । मैन टू आंदोलन की शुरुआत शनिवार को गैर सरकारी संगठन चिल्ड्रंस राइट्स इनिशिएटिव फॉर शेयर्ड पेरेंटिंग (क्रिस्प) ने की ।

🚩क्रिस्प के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमार वी ने कहा कि समूह लैंगिक तटस्थ कानूनों के लिए लड़ेगा । उन्होंने मांग की कि मी टू अभियान के तहत झूठे मामले दायर करने वालों को सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने उल्लेख करते हुए कि मी टू एक अच्छा आंदोलन है लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि झूठे आरोप लगाकर किसी को फंसाने के लिए इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा, ‘इस आंदोलन का परिणाम समाज में बड़ी मेहनत से अर्जित लोगों के सम्मान को धूमिल करने के रूप में निकला है।’

🚩पत्रकारों से बात करते हुए बाद में उन्होंने कहा कि मी टू में जहां पीड़िताएं दशकों पहले हुए यौन उत्पीड़न की बात बता रही हैं, वहीं इसके विपरीत मैन टू आंदोलन में हाल ही में हुई घटनाओं को उठाया जाएगा । मी टू आंदोलन के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यदि यौन उत्पीड़न का मामला सच्चा है तो पीड़िताओं को सोशल मीडिया पर आने की जगह कानूनी कार्यवाही का सहारा लेना चाहिए । इस अवसर पर फ्रांस के पूर्व राजनयिक पास्कल मजूरियर भी मौजूद थे जिन पर अपनी बेटी के यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था, लेकिन 2017 में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था।

🚩उन्होंने यह भी कहा कि मैन टू आंदोलन मी टू आंदोलन का जवाब देने के लिए नहीं है, बल्कि यह पुरुषों की समस्याओं का समाधान करेगा जो महिलाओं के अत्याचारों के खिलाफ नहीं बोलते हैं । पास्कल ने कहा, ‘पुरुषों के पास असली दुख है वे भी पीड़ित हैं, लेकिन वे महिलाओं और अपने दुराचारियों के खिलाफ खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं।’

🚩उन्होंने कहा, ‘हम महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाते हैं। यह अच्छा है, लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि मानवता का आधा हिस्सा पुरुष हैं। स्त्रोत : पंजाब केसरी

🚩निर्भया कांड के बाद नारियों की सुरक्षा हेतु बलात्कार-निरोधक नये और काफी कड़क कानून बनाए गए परंतु दहेजरोधी कानून की तरह इनका भी भयंकर दुरुपयोग हो रहा है ।

🚩विभिन्न कानूनविदों, न्यायधीशों व बुद्धिजीवियों ने भी इस कानून के बड़े स्तर पर दुरुपयोग के संदर्भ में चिंता जताई है ।

🚩निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के नये कानूनों का व्यापक स्तर पर हो रहा इस्तेमाल आज समाज के लिए एक चिंतनीय विषय बन गया है । राष्ट्रहित में क्रांतिकारी पहल करनेवाली सुप्रतिष्ठित हस्तियों, संतों-महापुरुषों एवं समाज के आगेवानों के खिलाफ इन कानूनों का राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी ताकतों व्दारा कूटनीतिपूर्वक अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है ।

🚩दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसे कई मामले दर्ज किये जा रहे हैं जिनमें महिलाओं द्वारा बदला लेने के लिए तथा निजी प्रतिशोध की भावना से, डरा-धमकाकर पैसों के लिए कानून को हथियार के तौर पर उपयोग किया जाता है । ऐसे मामलों के चलते बलात्कार के आँकडे बढ़े हुए नजर आते हैं, जिससे हमारे ही समाज को नीचा देखना पड़ता है । 

🚩बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी #ब्लैकमेल कर झूठे #बलात्कार आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं ।

🚩बलात्कार निरोधक #कानूनों की खामियों को दूर करना होगा। तभी समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सजा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे ।

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Friday, October 26, 2018

जानिए महिलाएं क्यों करती हैं करवा चौथ का व्रत? क्या है व्रत की विधि..?

26 October 2018

🚩भारतीय संस्कृति का यह महानतम आदर्श है कि, जीवन का प्रत्येक क्षण व्रत, पर्व और उत्सवों के आनंद एवं उल्हास से परिपूर्ण हो । इनमें हमारी संस्कृति की विचारधारा के बीज छिपे हुए हैं । 

🚩यदि भारतीय नारी के समूचे व्यक्तित्व को शब्दों में मापना हो तो उसकी छवि को प्रस्तुत करने के लिए सिर्फ ये दो शब्द ही काफी होंगे- तप एवं करुणा । हम उन महान ऋषि-मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञता पूर्वक नमन करते है कि उन्होंने हमें व्रत, पर्व तथा उत्सव का महत्त्व बताकर मोक्षमार्ग की सुलभता दिखाई ।हिन्दू धर्म की सम्पूर्ण मान्यताएं लोगों को हंसते-खेलते मुक्ति की ओर ले जाता है। हिंदु नारियों के लिए ‘करवाचौथ’का व्रत अखंड सौभाग्य देनेवाला माना जाता है ।
Know why women do Karva Chauth's fast? What is the law of fasting?

🚩विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्य की मंगलकामना करके भगवान रजनीनाथ को (चंद्रमा) अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करती हैं । स्त्रियों में इस दिन के प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्व से ही इस व्रत की सिद्धता का प्रारंभ करती हैं । यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है, यदि वह दो दिन चंद्रोदयव्यापिनी हो अथवा दोनों ही दिन न हो तो पूर्वविद्धा लेनी चाहिए । करक चतुर्थी को ही ‘करवाचौथ’ भी कहा जाता है ।

🚩व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ।।

अर्थ : व्रत धारण करने से मनुष्य दीक्षित होता है । दीक्षा से उसे दाक्षिण्य (दक्षता, निपुनता) प्राप्त होता है । दक्षता की प्राप्ति से श्रद्धाका भाव जाग्रत होता है और श्रद्धा से ही सत्यस्वरूप ब्रह्म की प्राप्ति होती है । (यजुर्वेद 19 । 30)

🚩वास्तव में करवाचौथ का व्रत हिंदु संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है, जो पति-पत्नीके बीच होता है । सनातन संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है । करवाचौथ पति एवं पत्नी दोनों के लिए नवप्रणय निवेदन तथा एक-दुसरे के लिए अपार प्रेम, त्याग, एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है । इस दिन स्त्रियां पूर्ण सुहागिन का रूप धारण कर, वस्त्राभूषणों को पहनकर भगवान रजनीनाथ से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं । स्त्रियां सुहागचिन्हों से युक्त श्रृंगार करके ईश्वर के समक्ष दिनभर के व्रत के उपरांत यह प्रण लेती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी ।

🚩कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की चौथ को (चतुर्थी) केवल रजनीनाथ की पूजा नहीं होती; अपितु शिव-पार्वती एवं स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा होती है । शिव-पार्वती की पूजा का विधान इस निमित किया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही उन्हें भी मिले । वैसे भी गौरी- पूजन का कुंआरी और विवाहित स्त्रियोंके लिए विशेष महात्म्य है । संदर्भ : ‘कल्याण’ गीता प्रेस गोरखपुर

🚩मुहूर्त

इस साल यह व्रत 27 अक्टूबर को किया जाएगा।

ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली के अनुसार पूजा मुहूर्त- सायंकाल 6:35- रात 8:00 तक पूजन करें परंतु अर्घ्य 8 बजे के बाद देवें ।
 चंद्रोदय- सायंकाल 7:38 बजे के बाद
चतुर्थी तिथि आरंभ- 27 अक्टूबर को रात में 07:38 बजे

🚩करवा चौथ कैसे मनाया जाता है ?

महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर सर्गी खाती हैं । यह खाना आमतौर पर उनकी सास बनाती हैं । इसे खाने के बाद महिलाएं पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती हैं । दिन में शिव,पार्वती और कार्तिक की पूजा की जाती है । शाम को देवी की पूजा होती है, जिसमें पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है। चंद्रमा दिखने पर महिलाएं चलनी से पति और चंद्रमा की छवि देखती हैं । पति इसके बाद पत्नी को पानी पिलाकर व्रत का पारण करवाता है।

🚩करवा चौथ व्रत विधान :-

उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली ने बताया कि व्रत रखने वाली स्त्री सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान और संध्या की आरती करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहें कि मैं अपने सौभाग्य एंव पुत्र-पौत्रादि तथा अखंड सौभाग्य की ,अक्षय संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी । यह व्रत निराहार ही नहीं अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है।

🚩करवा चौथ व्रत पूजन: 

चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां, शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर उम्र में किसी बड़ी सुहागिन महिला या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए । सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें, दान-दक्षिणा दें । तत्पश्चात रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ्य दें । आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें । इससे पति की उम्र लंबी होती है । उसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें ।

🚩कुछ मीडिया , सेक्युलर, बुद्धिजीवी कहलाने वाले लोग करवा चौथ को अंधश्रद्धा कहते हैं, लेकिन मुस्लिम में हलाला प्रथा को उत्तम कहते हैं । यही दुर्भाग्य है कि कोई हिन्दू स्त्री अपने पति के लिए व्रत करे वे अंधश्रद्धा और यदि पति को छोड़कर दूसरे के पास जाना पड़े तो उसके लिए चुप रहते है, सभी शादीशुदा महिलाओं को करवा चौथ का व्रत अवश्य करना चाहिए और पति की लंबी आयुष्य की कामना करनी चाहिए जिससे आपस में प्रेम की भवाना बनी रहे ।

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