26 October 2018
भारतीय संस्कृति का यह महानतम आदर्श है कि, जीवन का प्रत्येक क्षण व्रत, पर्व और उत्सवों के आनंद एवं उल्हास से परिपूर्ण हो । इनमें हमारी संस्कृति की विचारधारा के बीज छिपे हुए हैं ।
यदि भारतीय नारी के समूचे व्यक्तित्व को शब्दों में मापना हो तो उसकी छवि को प्रस्तुत करने के लिए सिर्फ ये दो शब्द ही काफी होंगे- तप एवं करुणा । हम उन महान ऋषि-मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञता पूर्वक नमन करते है कि उन्होंने हमें व्रत, पर्व तथा उत्सव का महत्त्व बताकर मोक्षमार्ग की सुलभता दिखाई ।हिन्दू धर्म की सम्पूर्ण मान्यताएं लोगों को हंसते-खेलते मुक्ति की ओर ले जाता है। हिंदु नारियों के लिए ‘करवाचौथ’का व्रत अखंड सौभाग्य देनेवाला माना जाता है ।
Know why women do Karva Chauth's fast? What is the law of fasting? |
विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्य की मंगलकामना करके भगवान रजनीनाथ को (चंद्रमा) अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करती हैं । स्त्रियों में इस दिन के प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्व से ही इस व्रत की सिद्धता का प्रारंभ करती हैं । यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है, यदि वह दो दिन चंद्रोदयव्यापिनी हो अथवा दोनों ही दिन न हो तो पूर्वविद्धा लेनी चाहिए । करक चतुर्थी को ही ‘करवाचौथ’ भी कहा जाता है ।
व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ।।
अर्थ : व्रत धारण करने से मनुष्य दीक्षित होता है । दीक्षा से उसे दाक्षिण्य (दक्षता, निपुनता) प्राप्त होता है । दक्षता की प्राप्ति से श्रद्धाका भाव जाग्रत होता है और श्रद्धा से ही सत्यस्वरूप ब्रह्म की प्राप्ति होती है । (यजुर्वेद 19 । 30)
वास्तव में करवाचौथ का व्रत हिंदु संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है, जो पति-पत्नीके बीच होता है । सनातन संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है । करवाचौथ पति एवं पत्नी दोनों के लिए नवप्रणय निवेदन तथा एक-दुसरे के लिए अपार प्रेम, त्याग, एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है । इस दिन स्त्रियां पूर्ण सुहागिन का रूप धारण कर, वस्त्राभूषणों को पहनकर भगवान रजनीनाथ से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं । स्त्रियां सुहागचिन्हों से युक्त श्रृंगार करके ईश्वर के समक्ष दिनभर के व्रत के उपरांत यह प्रण लेती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी ।
कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की चौथ को (चतुर्थी) केवल रजनीनाथ की पूजा नहीं होती; अपितु शिव-पार्वती एवं स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा होती है । शिव-पार्वती की पूजा का विधान इस निमित किया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही उन्हें भी मिले । वैसे भी गौरी- पूजन का कुंआरी और विवाहित स्त्रियोंके लिए विशेष महात्म्य है । संदर्भ : ‘कल्याण’ गीता प्रेस गोरखपुर
मुहूर्त
इस साल यह व्रत 27 अक्टूबर को किया जाएगा।
ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली के अनुसार पूजा मुहूर्त- सायंकाल 6:35- रात 8:00 तक पूजन करें परंतु अर्घ्य 8 बजे के बाद देवें ।
चंद्रोदय- सायंकाल 7:38 बजे के बाद
चतुर्थी तिथि आरंभ- 27 अक्टूबर को रात में 07:38 बजे
करवा चौथ कैसे मनाया जाता है ?
महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर सर्गी खाती हैं । यह खाना आमतौर पर उनकी सास बनाती हैं । इसे खाने के बाद महिलाएं पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती हैं । दिन में शिव,पार्वती और कार्तिक की पूजा की जाती है । शाम को देवी की पूजा होती है, जिसमें पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है। चंद्रमा दिखने पर महिलाएं चलनी से पति और चंद्रमा की छवि देखती हैं । पति इसके बाद पत्नी को पानी पिलाकर व्रत का पारण करवाता है।
करवा चौथ व्रत विधान :-
उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली ने बताया कि व्रत रखने वाली स्त्री सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान और संध्या की आरती करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहें कि मैं अपने सौभाग्य एंव पुत्र-पौत्रादि तथा अखंड सौभाग्य की ,अक्षय संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी । यह व्रत निराहार ही नहीं अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है।
करवा चौथ व्रत पूजन:
चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां, शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर उम्र में किसी बड़ी सुहागिन महिला या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए । सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें, दान-दक्षिणा दें । तत्पश्चात रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ्य दें । आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें । इससे पति की उम्र लंबी होती है । उसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें ।
कुछ मीडिया , सेक्युलर, बुद्धिजीवी कहलाने वाले लोग करवा चौथ को अंधश्रद्धा कहते हैं, लेकिन मुस्लिम में हलाला प्रथा को उत्तम कहते हैं । यही दुर्भाग्य है कि कोई हिन्दू स्त्री अपने पति के लिए व्रत करे वे अंधश्रद्धा और यदि पति को छोड़कर दूसरे के पास जाना पड़े तो उसके लिए चुप रहते है, सभी शादीशुदा महिलाओं को करवा चौथ का व्रत अवश्य करना चाहिए और पति की लंबी आयुष्य की कामना करनी चाहिए जिससे आपस में प्रेम की भवाना बनी रहे ।
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