24 October 2018
राज्यसभा सदस्य शिव सेना के प्रवक्ता संजय राउत ने अखबार सामना में एक लेख लिखा है, जिसे पढ़कर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे ।
संजय राउत जी ने लिखा है कि अपने देश की न्याय व्यवस्था कितनी जर्जर नींव पर खड़ी है, इसका नज़रा आए दिन देखने को मिलता है । फिलहाल घट रही विनयभंग और छेड़छाड़ की घटनाएं इसका बेहतरीन उदाहरण है । एक ही अपराध के लिए दो संदिग्ध आरोपियों को किस तरह से अलग-अलग न्याय दिया जाता है । यह केरल के बिशप के मामले में देखने को मिला ।
Someone who has pushed the clergy out and kept the saint inside - Sanjay Raut |
हिन्दू संत आसाराम बापू व केरल के बिशप का मामला एक जैसा ही है । रोमन के कैथलिक पादरी फ्रैंको मुल्लकल ने एक नन के साथ कई बार बलात्कार किया । उक्त नन ने आरोप लगाया है कि मुल्लकल ने वर्ष 2014 में कुरविलांगड स्थित गेस्ट हाउस में उसके साथ बलात्कार किया । नन ने पहले चर्च के अधिकारियों से बलात्कारी पादरी की शिकायत की । वहां कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो नन सीधे पुलिस थाने पहुंच गई । पुलिस ने भी कोई प्रतिसाद नहीं दिया । बाद में वह मीडिया के पास गई । आखिरकार बिशप को गिरफ्तार किया गया तथा 7-8 दिनों में वह जमानत पर रिहा हो गया । बिशप को ऐसे आनन-फानन में जमानत मिल जाएगी, ऐसा लगा नहीं था लेकिन बिशप के पीछे चर्च का शक्तिशाली साम्राज्य खड़ा हो गया और बिशप महज 7-8 दिन में ही रिहा हो गया ।
इन बातों को कहने का अभिप्राय यह है कि बापू आसारामजी भी बिशप की तरह ही विनयभंग के मामले में जेल में है । सात साल बाद भी बापू आसारामजी को जमानत नहीं मिल रही है । बापू आसारामजी जेल में रह रहे हैं लेकिन बिशप आज़ाद । बिशप के बलात्कार का दर्जा प्रतिष्ठित, धार्मिक व अधिष्ठान के समान था क्या ?
बापू आसाराम अंदर ही..
बापू आसारामजी प्रवचनकारी व हिंदू धर्म के प्रचारक थे । उनके गुनाह की सजा उनको मिलनी चाहिए । फिर भी दोष साबित होने तक जमानत हासिल करने का अधिकार उन्हें है ही, लेकिन कोई तो है जो बिशप को छुड़ाना चाहता था और बापू आसारामजी को जेल में ही सड़ाकर मारना चाहता हैं ।
फिलहाल Me Too का जो बवंडर उठा है उसमें अच्छे - अच्छे हिचकोले खा रहे हैं, लेकिन असली गुनहगार अभी भी गिरफ्त से बाहर हैं । कांग्रेस से शशि थरूर दिवालिया मानसिकता का विद्वान हैं । उस पर पत्नी सुनंदा थरूर को मारने का, आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप हैं लेकिन पुलिस ने एक बार भी उसका गिरेबान पकड़ कर उसे 'अंदर' नहीं डाला । राम मंदिर के मामले में उसने एक विवादास्पद बयान दिया था कि "किसी भी अच्छे हिंदु को अयोध्या स्थित विवादित जमीन पर राम मंदिर का निर्माण पसंद नही आएगा ।" इसी थरूर ने बापू आसारामजी की भी आलोचना की थी लेकिन केरल के बलात्कारी बिशप के खिलाफ इन महाशय ने एक शब्द भी नहीं कहा । जिस प्रकार से ' गुड हिंदु ' और ' बैड हिंदु ' हैं उसी तरह ' गुड-बैड ' मुसलमान, इसाई भी हैं । थरूर को यह समझना चाहिए ।
अकबर की वकालत...
बापू आसारामजी के लिए एक न्याय और उसी अपराध के लिए केरल के बिशप को अलग न्याय, यह थोड़ा दिलचस्प है । केंद्रीय मंत्री,'एम.जे. अकबर' पर एक ही समय 20 महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप था ।
अब अकबर ने उन महिलाओं के खिलाफ वकीलों की फौज खड़ी कर दी है तथा भाजपा के सभी प्रवक्ता अकबर के इर्द-गिर्द उसके कवच-कुंडल बनकर खड़े हो गए हैं ।
विनयभंग के मामले में महाराष्ट्र के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री रामराव आदिक को पद छोड़कर लंबे समय तक वनवास जाना पड़ा था, लेकिन एम जे अकबर को मंत्री पद से इस्तीफा देने में 1 सप्ताह लग गया । वह भी उनकी काफी छीछालेदर होने के बाद।
सरकारी पदों पर बैठे लोगों को ऐसे आरोपों की माला पहन कर कुर्सी का उपभोग करना उचित नहीं है । फिर सवाल वही है। केरल के बिशप, भाजपा के मंत्री अकबर को विनयभंग, बलात्कार करके भी आजाद रहने का अधिकार है, लेकिन बापू आसारामजी का अधिकार नकार दिया जाता है। यह संदेहास्पद है। यहां बापू आसारामजी का मुद्दा प्रतीकात्मक है। कानून को अमल में लाने में दोहरेपन का यही मुद्दा है। बापू आसारामजी, एम जे अकबर और बिशप सहित कई लोगों पर ऐसे आरोप लगे। ये तमाम लोग लोकसाहित्य, कला और सामाजिक क्षेत्र से हैं । बड़े लोगों का वरदहस्त उन्हें प्राप्त है।
न्यायालय
आसपास की मोहिनी दुनिया अपने लिए ही निर्माण हुई है, ऐसा कई लोगों को लगता है। पद का दुरुपयोग करके उपभोग करने वाले इससे निर्माण हुए। राजनीति, फिल्म उद्योग में ही ऐसी घटनाएं घटती हैं, ऐसा नहीं है बल्कि समाज के हर स्तर में यह हो रहा है और इसके लिए हमारी कानून और न्याय-व्यवस्था भी जिम्मेदार है । समलैंगिक संबंध, व्यभिचार को कानूनी मान्यता इसके दो उदाहरण है । लिव इन रिलेशनशिप नामक मौका संस्कृति व विवाह की प्रथा को पंगु बना रही है, जो हमारे देश की संस्कृति के स्तम्भ हैं लेकिन जैसे चाहो वैसे स्वच्छंद जियो, कानून भी तुम्हारे लिए स्वच्छंद बना है, ऐसा कुल मिलाकर न्यायालय का बर्ताव लगता है । ऐसे प्रकरण में बापू आसारामजी फंसते हैं । एम.जे. अकबर को मंत्रीपद से इस्तीफा देने में कुछ दिन लगते हैं और केरल का बिशप बलात्कार करके जमानत पर छूट जाता है ।
लता मंगेशकर से किरण राव तक, अक्षय कुमार से आमिर खान तक सभी लोग तनुश्री दत्त के समर्थन में खड़े हो गए लेकिन बिशप ने जिसका बलात्कार किया उस नन के पक्ष में इनमें से एक भी व्यक्ति ने भूमिका नहीं अपनाई । एकदम से 'Me Too' की मुहिम का हिस्सा बनकर खुद पर हुए अत्याचार का पर्दाफाश करनेवाली पीड़ितों में से भी किसी ने इस नन के पक्ष में एक साधारण "ट्वीट" तक नहीं किया । नन जैसी कई सामान्य स्त्रियों का क्रंदन इसी तरह अनसुना कर दिया जाता है। रम , रमा और रमी के अधीन जाने की प्रवृत्ति सभी में बढ़ी है । हर व्यक्ति का निजी जीवन अलग है। उसने पर्दे के पीछे क्या किया? इसकी जाँच न करें , ऐसा आप स्वीकार कर लेंगे । आप देश के , राज्य के पदाधिकारी हैं , सामाजिक मंच से भाषण देते हैं । आप "पब्लिक फिगर" बन जाते हो तो आप ऐसा बर्ताव नहीं कर सकते। तनुश्री पर कैमरे की चमक है। केरल की पीड़िता नन अँधेरे में गुम हो गई।
इस को लेख पढ़ने से साफ पता चलता है कि हमारी न्यायप्रणाली कहीं न कहीं दबाव में कार्य कर रही है जिसका उदाहरण साफ देखने को मिलता है कि किस प्रकार ईसाई पादरी को तुरंत जमानत दे दी जाती है और हिन्दू संतों को सालों तक जेल में बंद रखा जाता है ।
इस विषय में जनता को भी सोचना चाहिए कि क्या कानून केवल हिन्दू त्यौहार, हिन्दू मंदिर, हिंदुनिष्ठ लोगों के लिए ही बना है? क्या अन्य धर्म के लिए कोई कानून नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि हिंदुत्व को खत्म करने की साजिश हो । अगर ऐसा है तो सभी को मिलकर इस साजिश को खत्म करना चाहिए ।
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