29 October 2018
कई बार मुहावरा सुनने में आता है कि "अंग्रेज तो चले गए लेकिन आने वंशज यहीं छोड़ गए" । यही बात आज पूर्णतः लागू होती है क्योंकि हमारे भारत देश में से अंग्रेज तो चले गए लेकिन मैकाले की शिक्षा पद्धति आज भी चल रही है, उनका एक ही लक्ष्य था कि भले हम चले जाएं लेकिन भारतीय दिमाग से हमारे गुलाम बने रहे ।
हमारे भारत में जितने भी कॉन्वेंट स्कूल में मैकाले की शिक्षा पद्धति से चल रहे हैं, उन स्कूलों में बच्चे न तो
तिलक और न ही मेंहदी लगा सकते हैं, हिन्दू त्यौहार नही मना सकते और यहां तक कि हिंदी भी नहीं बोल सकते, मतलब कि बच्चो को कोई स्वतंत्रता नहीं है।
कितने दुःख की बात है कि जहां कभी महात्मा चाणक्य तथा महाबली योद्धा चन्द्रगुप्त ने हिंदुत्व का परचम लहराया, वहां एक छात्र ने मातृभाषा हिन्दी में बात की तो मानो उसने गुनाह कर दिया जिसकी उसे सजा दी गयी है और सजा भी ऐसी कि इंसानियत भी शर्मसार हो जाए । मामला बिहार के नालंदा जिले का है जहाँ के एक ईसाई स्कूल में हिन्दी बोलने पर प्रिंसिपल ने छात्र का सिर मुंडवा दिया । इसके बाद से छात्र ने स्कूल जाना बंद कर दिया । घटना की जानकारी परिजनों को मिलने के बाद उन्होंने थाने में मामला दर्ज करवाया ।
If you talked to a Christian school in Hindi, then the condemned punishment ... |
एक वक्त था जब नालंदा में दुनियाभर से लोग पढ़ने-पढ़ाने के लिए आया करते थे, वहां के हाल अब इतने बेहाल हैं कि हिन्दी बोलने पर सजा दी जाती है । बिहार थाना क्षेत्र के खंदकपर में छात्र के साथ घटना मामला इसका जीवंत उदाहरण है । यहां संत जोसेफ अकादमी में हिंदी बोलने पर एक छात्र का मुंडन करा देने का मामला सामने आया है । नवमीं के छात्र सन्नी राज के अनुसार स्कूल में अंग्रेजी में ही बात करने का नियम है । इसका पालन न करने पर बच्चों को फाइन देना होता है और पैसे न भर पाने की स्थिति में सिर मुंडवा दिया जाता है ।
गुरुवार को जब छात्र स्कूल पहुंचा तो साथियों से हिंदी में बात कर रहा था, ये देखकर प्रिंसिपल बाबू टी थॉमस काफी नाराज हो गए । उन्होंने छात्र को जबानी सजा देने के बजाए उसे स्कूल के गार्ड के साथ जबर्दस्ती सैलून भेजकर उसका सिर मुंडवा दिया । इस घटना से सकते में आया छात्र अगले दिन स्कूल नहीं गया । उसका मुंडा हुआ सिर और गुमसुम व्यवहार देखकर परिजनों ने जब पूछताछ की तो ये मामला सामने आया । गुस्साए परिजनों ने इस मामले को लेकर एसडीओ सदर, डीईओ समेत अन्य वरीय अधिकारियों को लिखित शिकायत दर्ज कराते हुए कार्यवाही की मांग की है । स्त्रोत : सुदर्शन न्यूज़
भारत में आजकल बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने का प्रचलन बहुत चल रहा है सभी का कहना है कि बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में भेजो, लेकिन वास्तव में उनके माता-पिता कॉन्वेंट स्कूल का सच नहीं जानते है इसलिए अपने बच्चों को भेजते हैं । कान्वेंट स्कूलों के मामले में एक बात तो साफ तौर पर कही जा सकती है कि "दूर के ढोल सुहावने" ।
भारत मे कॉन्वेंट स्कूलों की स्थापना...
भारत से लॉर्ड मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी : “ मैंने जो कॉन्वेंट स्कूलों की स्थापना की है, इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में, संस्कृति के बारे में, परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, जब ऐसे बच्चे भारत में होंगे तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ लेकिन इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”
उसने कहा था कि ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे, साधु-संतों से नफरत करेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!'
उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ-साफ दिखाई दे रही है, आज कॉन्वेंट स्कूल की शिक्षा पद्धति के कारण JNU जैसी यूनवर्सिटी में छात्र हिन्दू देवी-देवताओं को ही गालियां दे रहे हैं, दारू पी रहे हैं, मांस खा रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं, बॉलीवुड, मीडिया ,टीवी सीरियलों में लोग हिन्दू तो दिखते हैं लेकिन दिलोदिमाग से अंग्रेज होते जा रहे हैं इसलिए हिन्दू देवी-देवताओं, साधु-संतों, हिन्दू त्यौहारों के खिलाफ हो गए हैं ।
भारत ने वेद-पुराण, उपनिषदों से पूरे विश्व को सही जीवन जीने की ढंग सिखाया है । इससे भारतीय बच्चे ही क्यों वंचित रहे ?
जब मदरसों में कुरान पढ़ाई जाती है, मिशनरी के स्कूलों में बाइबल तो हमारे स्कूल-कॉलेजों में रामायण, महाभारत व गीता क्यों नहीं पढ़ाई जाए ?
जबकि मदरसों व मिशनरियों में शिक्षा के माध्यम से धार्मिक उन्माद बढ़ाया जाता है और हिन्दू धर्म की शिक्षा देश, दुनिया के हित में है ।
सभी हिन्दू अभिभावकों को भी #कॉन्वेंट #स्कूल में हिन्दू छात्रों पर पड़ने वाले #गलत #संस्कारों तथा उनके साथ हो रही प्रताड़ना को देखते हुए अपने बच्चों को वहां नहीं भेजना चाहिए । #कॉन्वेंट #स्कूल का संपूर्ण #बहिष्कार #करना #चाहिए ।
एक दो घटनाएं ऐसी भी सामने आई हैं कि जिसमें छात्रा ने कॉन्वेंट स्कूल प्रशासन के ‘टाॅर्चर’ के कारण आत्महत्या कर ली और एक विद्यार्थी कूद गया । कर्इ घटनाआें में यह सामने आया है कि किसी भी अपयश, ब्लू व्हेल जैसे गेम्स या किसी प्रकार की ‘टॉर्चर’ की कारण बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं ।
इसका मूल कारण है उनमें सुसंस्कारों का अभाव । यदि आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कारी बनाना चाहते हैं तो कॉन्वेंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना बन्द करें और गुरुकुलों में पढ़ाना शुरू करदें।
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