Tuesday, April 11, 2023

इंडोनेशिया का कंडी सुकुह मंदिर!! क्यों मशहूर है ?

11-APRIL-2023


इंडोनेशिया में प्राचीन क्रिस्टल शिवलिंग का चमत्कार जिसका पानी आज तक नहीं सुखा लोग इसे अमृत बता रहे

मुस्लिम देश इंडोनेशिया में हुआ शिवजी का चमत्कार से आस्था का सैलाब उमड़ा

इंडोनेशिया में चमत्कार हुआ है लेकिन वहां के लोग इसे अमृत बता रहे हैं.(चमत्कारिक शिवलिंग)

चमत्कार हमारी आस्था और विश्वास का आधार हैं साथ ही ईश्वर में हमारी श्रद्धा को भी बढ़ाते हैं. इंडोनेशिया मे सदियों पुराने एक हिन्दू मंदिर में प्राचीन क्रिस्टल शिवलिंग मिला है. इस शिवलिंग की ख़ास बात यह है कि इसके अंदर भरा हुआ पानी सदियां बीत जाने पर भी नहीं सूखा है. ये कोई चमत्कार है या नहीं, ये कोई नहीं जानता लेकिन वहां के लोग इसे अमृत बता रहे हैं।



मुस्लिम प्रधान देश इंडोनेशिया में क्रिस्टल का ऐसा शिवलिंग मिला है जिसे लेकर दुनियाभर के शिव भक्तों के मन में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है. अगर इतिहास की बात करें तो 13वीं से 16वीं शताब्दी के बीच इंडोनेशिया में हिन्दू धर्म का लंबा इतिहास रहा है. वहां पर अभी भी पूरे देश में इससे जुड़े ढेरों उदाहरण हैं. इन उदाहरणों में बहुत सारे मंदिर भी शामिल हैं. लेकिन इस्लाम के बढ़ते प्रभाव के बाद वहां मंदिरों का बनना कम हो गया था.

पर यहा के मुस्लिम में एक गुण है इनको जबर्दस्ती इस्लाम वनाया तो गया पर वे अपने अतीत नही भुल पाए। वे मानते है के उनके पूर्वज हिन्दू थे। इसलिए यहा हर मुसलमान छोटे उम्र से हइस्लाम यहा भी अपने जिहाद का झंडा फैलाये। इसके साथ ही मध्य इस्लामिक काल में कई मंदिर क्षतिग्रस्त भी हो गए. इन्हीं मंदिरों में से एक है कंडी सुकोह, जिसका काफी हिस्सा ध्वस्त हो चुका है. यह मंदिर मुख्य जावा आइलैंड के बीच में स्थित है. ये इस्लाम के प्रभाव से पूर्व बना अंतिम मंदिर है. इसमें भगवान शिव और महाभारत काल से जुड़ी कई कलाकृतियां मौजूद हैं. भीम, अर्जुन और शिव की पूजा करती श्रीगणेश की कलाकृतियां होने के कारण ये मंदिर काफी महत्वपूर्ण है.यहां मौजूद अधिकतर बेसकीमती कलाकृतियों को इंडोनेशिया के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है, इनमें से एक 1.82 मीटर ऊँचा शिवलिंग भी है. यहां की सरकार ने सभी कलाकृतियों के संरक्षण और पर्यटकों के लिए उपलब्ध कराने के आदेश दिए, जिसके बाद कुछ नई कलाकृतियां दुनिया के सामने आईं. इनमें से एक है ये बेहद ही सुन्दर क्रिस्टल शिवलिंग, जो एक पीतल के बर्तन के भीतर सुरक्षित रखा गया था. अचरज की बात ये है कि इस बर्तन में जो पानी भरा हुआ था, वो इतनी सदियां बीत जाने के बाद भी सूखा नहीं है ।जिस बर्तन में ये शिवलिंग पाया गया है, वो उन कई जारों में से एक है, जो मंदिर के अंदर बने एक स्मारक के नीचे छुपाकर रखे गए थे.इस बर्तन में न सूखने वाले पानी के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी हो सकता है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ये अमृत है. कुछ भी हो, लेकिन इस प्राचीन शिवलिंग ने फिर एक चमत्कार किया है और लोगों  की ईश्वर पर आस्था और बढ़ा दी है

  न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोयमग्निः।

तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति॥

व्यक्तिगत आत्मा या आत्मा और कुछ नहीं बल्कि स्वयं शिव हैं। लेकिन उस सर्वव्यापी सर्वोच्च चेतना प्रकाश रूपी शिव को उनके वास्तविक स्वरूप को उनकी अपनी ही शक्ति माया शक्ति द्वारा एक पर्दे के रूप में छुपाया गया है।

समझने के लिए इसे ऐसे समझिए कि माया शक्ति की तुलना सूर्य को ढकने वाले काले बादलों से की जा सकती है और प्रकाश शिव की तुलना उज्ज्वल सूर्य से की जा सकती है। जब सूर्य के चारों ओर काले बादल हट जाते हैं, तो सूर्य का वास्तविक स्वरूप प्रकट हो जाता है।

इसी तरह, जब साधना (मंत्र जप ध्यान) के माध्यम से माया का अंधेरा दूर हो जाता है, तो प्रकाशमय शिव स्वयं को प्रकट करते हैं। यही दिव्य अवस्था ही आत्म-साक्षात्कार है ।आज से शिवमास श्रावण मास का शुभारंभ है , बस हर एक क्षण स्वयं (मन, बुद्धि, वासना, अहंकार, अंधकार) को प्रेममय शिव भक्ति की तरफ प्रेरित करते रहे । निश्चित ही मिलन होगा आपका अपने ही विराट अस्तित्व से ! ऐसी मेरी शुभेच्छा है ।

स्मरण रहे की प्रेम में बहुत बल है, यह प्रेम तत्व अविनाशी है, प्रेम तत्व ही शक्ति रहस्य है, बिना शक्ति के सानिध्य के शिव से पुनर्मिलन, आत्म-साक्षात्कार असंभव है । प्रेममय भक्ति में ही समस्त शक्तियां मातृत्व और वात्सल्य से भर उठती हैं ।

बहुत ही सहज है शिवमय हो जाना, क्योंकि आप सब शिव ही हैं बस संकुचित हो स्वयं के अस्तित्व को भूल बैठे हैं ।

विक्रांत भैरव इच्छा से बहुत ही सीमित शब्दों में मैंने बहुत कुछ प्रकट कर दिया है । हर एक जीवात्मा में शिवत्व (धर्म) के जागरण में ही इस अस्तित्व का उद्धार अंतर्निहित है ।

इंडोनेशिया में आज भी अनेक हिन्दू मंदिर ऐसे हैं, जिनका रहस्य दुनिया को नहीं पता है। ऐसे ही सदियों पुराने एक हिन्दू मंदिर में हाल में कुछ विस्मयकारी अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिसमें शताब्दियों पुराना एक शिवलिंग मिला है। यह मंदिर इस देश के जावा द्वीप में स्थित है।

 

सदियों बाद भी सूखा नहीं है द्रव...

यह शिवलिंग स्‍फटिक (क्रिस्टल) से बना है, जिसमें पानी की तरह का कोई तरल पदार्थ भरा हुआ है। घोर आश्चर्य की बात यह है कि इसके अंदर भरा हुआ यह तरल सदियां बीत जाने पर भी सूखा नहीं है।

 

क्या पवित्र दैवी द्रव है यह तरल पदार्थ...

कंडी सुकुह नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर में प्राप्त शिवलिंग के इस तरल पदार्थ को लेकर इंडोनेशिया के जावा द्वीप के स्थानीय लोगों की मानना है कि यह तरल पदार्थ एक पवित्र दैवी द्रव है। जबकि पुरातत्वशास्त्रियों का मानना है इस शिवलिंग में न सूखने वाले इस तरल या पानी के पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक कारण हो सकता है, जो अभी ज्ञात नहीं हो पाया है।

 

स्थानीय लोग बता रहे हैं इसे अमृत...

लेकिन यहां के स्थानीय लोग पुरातत्वविदों से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि यह तरल कुछ और नहीं बल्कि अमृत है, कई लोग इसे समुद्र में किए अमृत मंथन से निकला अमृत बता रहे हैं।

 

ऐसे चला पता इस शिवलिंग का...

इस शिवलिंग का पता तब चला जब इस मंदिर के उत्खनन से प्राप्त बेशकीमती कलाकृतियों को इंडोनेशिया के राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थानांतरित किया जा रहा था। जिसमें से एक यह बेहद सुन्दर क्रिस्टल शिवलिंग, जो एक पीतल के बर्तन के भीतर सुरक्षित रखा गया था, प्राप्त हुआ। आश्चर्यजनक यह कि इस बर्तन में जो द्रव भरा हुआ था, वो कई सदियां बीत जाने के बाद भी सूखा नहीं है।


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Monday, April 10, 2023

आशाराम बापू कौन हैं, और वे कैसे बने संत ? एवं उनकी संस्था क्या कार्य करती है ? जानिए

10  Apirl 2023

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🚩बापू आशारामजी के बचपन का नाम आसुमल था । उनका जन्म अखंड भारत के सिंध प्रांत के बेराणी गाँव में चैत्र कृष्ण षष्ठी विक्रम संवत् 1994 के दिन हुआ था। उनकी माता महँगीबा व पिताजी थाऊमल नगरसेठ थे ।


🚩बालक आसुमल को देखते ही उनके कुलगुरु ने भविष्यवाणी की थी, “आगे चलकर यह बालक एक महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा।”


🚩बापू आशारामजी का बाल्यकाल संघर्षों की एक लंबी कहानी है । 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण अथाह सम्पत्ति को छोड़कर बालक आसुमल का परिवार गुजरात, अहमदाबाद शहर में आ बसा । उनके पिताजी द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा । तत्पश्चात् उनका शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया।





🚩माता-पिता के अतिरिक्त बालक आसुमल के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थीं ।


🚩बालक आसुमल को बचपन से ही प्रगाढ़ भक्ति प्राप्त थी। प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना उनका नित्य नियम था।


🚩दस वर्ष की नन्हीं आयु में बालक आसुमल के पिताजी थाऊमलजी देहत्याग कर स्वधाम चले गये।


🚩पिता के देहत्यागोपरांत आसुमल को पढ़ाई (तीसरी कक्षा) छोड़कर छोटी-सी उम्र में ही कुटुम्ब को सहारा देने के लिये सिद्धपुर में एक परिजन के यहाँ नौकरी करनी पड़ी । 3 साल तक नौकरी के साथ-साथ साधना में भी प्रगति करते रहे । 3 साल बाद वे वापिस अहमदाबाद आ गए और भाई के साथ शक्कर की दुकान पर बैठने लगे ,वे शक्कर होलसेल में बेचने लगे और उनको शक्कर के व्यवसाय में करोड़ों का लाभ होने लगा ।


🚩लेकिन उनका मन सांसारिक कार्यों में नहीं लगता था, वे ज्यादातर जप-ध्यान में ही समय निकालते थे । 21 साल की उम्र में घर वाले आसुमल जी की शादी करना चाहते थे,लेकिन उनका मन संसार से विरक्त और भगवान में तल्लीन रहता था। इसलिए वे घर छोड़कर भरुच के अशोक आश्रम चले गए, पर घरवालों ने उन्हें ढूंढकर जबरदस्ती उनकी शादी करवा दी ।


🚩लेकिन मोह-ममता का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति की लगन मन में लिए शादी के बाद भी उन्होंने तुरंत पुनः घर छोड़ दिया और आत्म-पद की प्राप्ति हेतु जंगलों-बीहड़ों में घूमते और साधना करते हुए ईश्वर प्राप्ति के लिए तड़पते रहे। नैनीताल के जंगल में योगी ब्रह्मनिष्ठ संत साईं लीलाशाहजी बापू को उन्होंने सद्गुरु के रूप में स्वीकार किया।


🚩ईश्वरप्राप्ति की तीव्र तड़प देखकर सद्गुरु लीलाशाहजी बापू का हृदय छलक उठा और उन्हें 23 वर्ष की उम्र में सद्गुरु की कृपा से आत्म-साक्षात्कार हो गया। तब सद्गुरु लीलाशाहजी ने उनका नाम आसुमल से आशारामजी रखा ।


🚩अपने गुरु लीलाशाहजी बापू की आज्ञा शिरोधार्य कर संत आसारामजी बापू समाधि-अवस्था का सुख छोड़कर,संसारी लोगों के हृदय में शांति का संचार करने हेतु समाज के बीच आ गये।


🚩सन् 1972 में अहमदाबाद में साबरमती के तट पर आश्रम स्थापित किया।

उसके बाद देश-विदेश में बढ़ते गए आश्रम । आज उनके आश्रम लगभग  450 से अधिक हैं और समितियां 1400 से अधिक हैं, जो देश-समाज और संस्कृति के उत्थान कार्य कर रही हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और विश्व शांति के लिए हिन्दू संत आशारामजी बापू ने राष्ट्र के कल्याणार्थ अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।


🚩आशारामजी बापू द्वारा किए गए कार्य:


🚩1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर धर्म के संस्कार, मकान, जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया ।


🚩2). कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।


🚩3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।


🚩4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।


🚩5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया ।


🚩6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया ।


🚩7). वैलेंटाइन डे का कुप्रभाव रोकने हेतु “मातृ-पितृ पूजन दिवस” का प्रारम्भ करवाया।


🚩8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।


🚩9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।


🚩10). नशामुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसनमुक्त कराया।


🚩11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए।

🚩12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के “शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी” बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।


🚩13. बच्चों के लिए “बाल संस्कार केंद्र”, युवाओं के लिए “युवा सेवा संघ”, महिलाओं के लिए “महिला उत्थान मंडल” खोलकर उनका जीवन धर्ममय व उन्नत बनाया।


🚩हजारों कत्लखाने जाने वाली गायों को बचाकर गोशालए खुलवाई, जहाँ गौसेवा को सबसे अधिक महत्व दिया गया।


🚩कहा जाता है कि हिन्दू संत आशारामजी बापू का बहुत बड़ा साधक-समुदाय है। लगभग करीब 8 करोड़ साधक देश-विदेश में हैं और इतने सालों से जेल में होते हुए भी उनके अनुयायियों की श्रद्धा टस से मस नहीं हुई है और उन करोड़ों भक्तों का एक ही कहना है कि हमारे गुरुदेव (संत आशारामजी बापू) निर्दोष हैं उन्हें षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है। वे जल्द से जल्द निर्दोष छूटकर हमारे बीच शीघ्र ही आयेंगे।

http://ashram.org/Pujya-Bapuji


🚩गौरतलब है- संत आशारामजी बापू का जन्म दिवस 11 अप्रैल को हैं। अभी उनका 86वाँ साल चल रहा है, पिछले 10 साल से जेल में बन्द होने पर भी उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा देश-विदेश में “विश्व सेवा दिवस” के रूप में मनाया जाता हैं ।


🚩वैसे तो हर साल इस दिन देशभर में जगह-जगह पर निकाली जाती हैं- भगवन्नाम संकीर्तन यात्रायें और वृद्धाश्रमों,अनाथालयों व अस्पतालों में निशुल्क औषधि, फल व मिठाई वितरित की जाती है। गरीब व अभावग्रस्त क्षेत्रों में होता है- विशाल भंडारा जिसमें वस्त्र,अनाज व जीवन उपयोगी वस्तुओं का वितरण किया जाता है। उस दिन जगह जगह पर छाछ, पलाश व गुलाब के शरबत के प्याऊ लगाये जाते हैं एवं सत्साहित्य आदि का वितरण किया जाता है।


🚩मीडिया ने दिन-रात हिन्दू संत आशारामजी बापू के खिलाफ समाज को भ्रमित करने और उनकी छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास किया, लेकिन उनको मानने वाले करोड़ों अनुयायियों की आज भी अटल श्रद्धा उनमें हैं। जनता भी प्रश्न कर रही है कि बापू निर्दोष हैं तो उनकी रिहाई क्यों नहीं की जा रही है ? सरकार को उसपर ध्यान देना ही  चाहिए।


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Sunday, April 9, 2023

क्यों खाएं सूर्यास्त से पूर्व: रात्रिभोज

09-04-20223 

आयुर्वेदानुसार सूर्यास्त से पहले खाना खा लेना चाहिए। जैन धर्म में इस नियम की अत्यधिक महत्ता है। सभी धर्मों में भोजन करने से संबंधित अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार नियम निर्धारित किए गए हैं जैसे खाने से पहले पानी पीना सर्वोत्तम, बीच में मध्य और भोजन उपरांत निम्न माना जाता है। भोजन से पहले आधा घंटा पूर्व, मध्य में एक बार और खाने के बाद लगभग पौने घंटे पूर्व पानी पीना चाहिए। सुबह से शाम तक के लिए विभिन्न नियम और सिद्धांत बनाए गए हैं। जिनके वैज्ञानिक कारण भी हैं।



कहते हैं की कुछ पशु या पक्षी भी सूर्यास्त के पश्चात भोजन नहीं करते। प्राचीन समय में मनुष्य भी सूर्यास्त से पहले खाना खा लते थे परंतु आग के अविष्कार के बाद भोजन करने की आदत में थोड़ा बदलाव हुआ लेकिन बिजली के अविष्कार के पश्चात आदतें पूर्ण रुप से परिवर्तित हो गई। सूर्यास्त के पश्चात भोजन करने वाले को निशाचर कहते हैं परंतु मानव निशाचर प्राणी नहीं है। बहुत से इंसानों को यह ज्ञात नहीं है कि सूर्यास्त से पहले भोजन करने का क्या कारण हैै। व्यक्ति स्वस्थ रहे इसके लिए नियम बनाया गया है। जिसके निम्न कारण हैं-


- पहला कारण :  सूर्यास्त से पूर्व खाना खाने से भोजन को पचने के लिए सुबह तक उचित समय मिल जाता है। जिससे पाचन तंत्र तंदुरुस्त रहता है।


- दूसरा कारण : इस समय भोजन करने से कई प्रकार के रोगों से बचाव हो जाता है। रात के समय भोजन में बैक्टीरिया और अन्य जीव चिपक जाते हैं या स्वयं उत्पन्न हो जाते हैं।


- तीसरा कारण : सूर्य ढलने के पश्चात मौसम में नमी की मात्रा बढ़ने के कारण सूक्ष्म जीव और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं। दिन के समय सूर्य की तपश के कारण ये पनपते नहीं लेकिन सूर्यास्त के बाद नमी बढ़ने से ये सक्रिय हो जाते हैं।


- चौथा कारण :  सूर्यास्त के पश्चात पेड़-पौधे, पशु-पक्षी अपने-अपने घरौंदे में चले जाते  हैं। भोजन की प्रकृति में भी परिवर्तन आता है और खाने में मौजूद गुण या पोषक तत्व नष्ट होने लगते हैंं। सूरज ढलने के बाद खाना बासी और दूषित होना शुरु हो जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

Saturday, April 8, 2023

रामनवमी शोभयात्रा में हिंदुओं को बनाया निशाना, आखिर मस्जिदों के पास ही क्यों बरसते पत्थर ?

8 Apirl 2023

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🚩रामनवमी हिंदुओं के लिए हर्षोल्लास का पर्व है। माहौल लेकिन इसके उलट रहा इस साल। देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा की गई, हर जगह निशाने पर थे हिंदू। पत्थरबाजी से एक कदम आगे बढ़ बमबाजी और आगजनी करके हिंदुओं को खौफ में रखने का षड्यंत्र किया गया। दो कदम आगे बढ़ प्रोपेगेंडा फैलाया गया कि हिंसा हिंदुओं ने ही की, वो मुस्लिमों को सता रहे। ‘शांतिप्रिय’ इस्लामी इकोसिस्टम के कट्टर मुस्लिम सिपाहियों ने इस प्रोपेगेंडा की पटकथा लिखी। इसे दूर-दूर तक फैलाने का काम किया वामपंथी इकोसिस्टम ने।

बॉलीवुड के हीरो से लेकर पाकिस्तानी हिरोइन तक, पत्रकार, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंशर, प्रोफेसर, नेता, राजनीतिक दल, हिंदुस्तानी-पाकिस्तानी-विदेशी… हिंदू-घृणा से सने हर क्षेत्र के लोगों ने रामनवमी पर हिंदुओं को कलंकित करने का कार्य किया। यह किया गया बहुत ही सुनियोजित ढंग से। 


🚩वर्ष 2023 की रामनवमी में देश के अलग-अलग इलाकों में हिंसा हुई। इस हिंसा से खास तौर पर बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, झारखंड, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा और उत्तर प्रदेश प्रभावित हुए हैं। इन घटनाओं में कुछ लोगों की मौत भी हुई हैं और कहीं-कहीं पर तो पुलिस को भी निशाना बनाया गया है। अलग-अलग हिस्सों में पुलिस केस दर्ज कर आरोपितों की धर-पकड़ कर रही है। कुछ स्थानों पर पुलिस पर एकतरफा कार्रवाई के भी आरोप लगे हैं।



🚩नालंदा (बिहार)


🚩बिहार के नालंदा जिले का बिहार शरीफ। 31 मार्च को रामनवमी की शोभा यात्रा निकाली गई। जब यात्रा बिहारशरीफ के दीवानगंज इलाके की एक मस्जिद के पास पहुँची, तब इस पर पथराव कर दिया गया। आसपास के घरों और दुकानों में आगजनी और जमकर फायरिंग भी की गई। इस फायरिंग में चार लोगों को गोली लगी है। हमले में शोभायात्रा में शामिल छह युवक घायल हुए, जिनमें दो की हालत गंभीर है। यहाँ 4 अप्रैल 2023 तक स्कूल और इंटरनेट सेवा बंद कर दिए गए हैं।


🚩रोहतास (बिहार)

बिहार के रोहतास जिले का सासाराम। 31 मार्च 2023 को यहाँ रामनवमी शोभा यात्रा निकाली गई। यह शोभायात्रा खत्म होने के बाद सहजलाल, बस्ती मोर, चौखंडी, आदमखानी और सोना पट्टी जैसे इलाकों में हिंसा भड़क गई। यहाँ पथराव के साथ लाठी-डंडे भी चले। हालात काबू करने के लिए दूसरे जिलों से फ़ोर्स मँगाई गई। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए धारा 144 लागू कर दी गई। जिले के मदरसों को 4 अप्रैल 2023 तक बंद रखने के आदेश हुए हैं।


🚩संभाजी नगर (महाराष्ट्र)

महाराष्ट्र का संभाजी नगर। यहाँ 29-30 मार्च 2023 को किराड़पुरा के एक मंदिर के आगे हिंसा भड़क गई थी। हिंसा की शुरुआत 2 लोगों के कहासुनी से हुई थी। दंगाइयों ने पथराव किया और बम फेंके थे। पुलिस के वाहनों में भी आग लगा दी गई थी।



🚩इस मामले में दर्ज FIR में शौकत, अरबा, रिज़वान, शेख मुनीरुद्दीन, अल्ताफ और हाशमी इतरवाले को नामजद करते हुए 400 से 500 अज्ञात की भीड़ पर FIR दर्ज हुई है। FIR में भीड़ द्वारा नारा-ए-तकबीर और अल्लाह-हु-अकबर के नारे लगाने का जिक्र है। पुलिस ने हिंसा में लगभग चार दर्जन आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि बाकियों की तलाश की जा रही है।


🚩जलगाँव (महाराष्ट्र)

महाराष्ट्र के जलगाँव में साम्प्रदायिक हिंसा की 2 अलग-अलग घटनाएँ हुईं हैं। पहली घटना मंगलवार (28 मार्च 2023) को पालधी गाँव की है। यहाँ रामनवमी का जुलूस लेकर एक मस्जिद के आगे जुटी भीड़ ने बज रहे DJ पर आपत्ति जताई तो विवाद शुरू हो गया। आरोप है कि हिंसक भीड़ ने जुलूस में शामिल लोगों पर पत्थरबाजी की जिसमें लगभग 4 लोग घायल हो गए।


🚩पुलिस ने इस मामले में हिन्दू और मुस्लिम पक्ष की तहरीरों पर 2 अलग-अलग FIR दर्ज की है। एक केस में हिन्दू पक्ष के 9 लोगों को आरोपित किया गया है। वहीं दूसरी FIR में मुस्लिम पक्ष के 63 लोग नामजद हुए हैं। अब तक कुल 45 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी की जा चुकी है।


🚩जलगाँव की ही एक अन्य घटना शनिवार (1 अप्रैल 2023) की है। यहाँ के अतरवाल गाँव में किसी अज्ञात व्यक्ति ने गाँव में लगी एक मूर्ति को तोड़ दिया। इस बात से गाँव के 2 पक्ष आमने-सामने आ गए। कुछ ही देर में हालात तनावपूर्व हो गए और दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर हमला कर दिया। मामले में कुल 12 संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है।


🚩मलाड (महाराष्ट्र)


🚩महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के मलाड में भी रामनवमी की शोभायात्रा पर कट्टरपंथियों द्वारा हमला किया गया था। यहाँ रामनवमी की शोभायात्रा निकाल रहे हिंदुओं पर जामा मस्जिद और अली हजरत मस्जिद इलाके में पत्थरों और चप्पलों से हमला किया गया। हमले के दौरान दंगाइयों ने अल्लाह-हु-अकबर के नारे लगाए। पुलिस ने कुल 400 आरोपितों पर केस दर्ज करते हुए 21 हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया है।

🚩हावड़ा (पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल का हावड़ा के शिबपुर में भी रामनवमी के दिन 31 मार्च 2023 साम्प्रदायिक हिंसा हुई। इस दौरान कट्टरपंथियों की भीड़ ने सड़कों पर उतर कर पत्थरबाजी की थी। हिंसा रामनवमी का जुलूस खत्म होने के बाद भी जारी रही।


🚩ममता बनर्जी ने इसका ठीकरा भाजपा के सिर फोड़ा था और हिन्दू संगठनों पर ही जुलूस मुस्लिम बहुल इलाकों से ले जाने का आरोप लगाया था। भाजपा नेताओं ने मामले की जाँच NIA से करवाने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया है। इस हिंसा में अब तक पुलिस ने 36 लोगों को गिरफ्तार किया है।


🚩डालखोला (पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल में उत्तर दिनाजपुर के इस्लामपुर शहर के दालखोला इलाके में 31 मार्च को रामनवमी के जुलूस के दौरान दो समुदायों के बीच झड़प हो गई। मुस्लिम बहुल इलाके में हुई इस झड़प में एक शख्स की मौत हो गई, जबकि 5-6 पुलिसकर्मी जख्मी हो गए। हालाँकि, बंगाल पुलिस युवक के मौत की वजह हार्ट अटैक बता रही है। बंगाल भाजपा का आरोप है कि इस मामले में पुलिस बेकसूर लोगों को गिरफ्तार करके उन पर अत्याचार कर रही है।


🚩हुगली (पश्चिम बंगाल)


🚩पश्चिम बंगाल के हुगली में भी 31 मार्च को रामनवमी पर हिंसा भड़क उठी थी। इस दौरान यहाँ के रिसड़ा क्षेत्र में एक भीड़ पर रामनवमी की शोभायात्रा पर हमले का आरोप है। रविवार (2 अप्रैल) को एक बार फिर से यहाँ हिंसा भड़क उठी थी। इस घटना के बाद हुगली के कई हिस्सों में इंटरनेट बंद कर के धारा 144 लागू कर दी गई थी। पुलिस ने अब तक कुल 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। कई अन्य लोगों को भी हिरासत में लेकर पूछताछ चल रही है।


🚩साहिबगंज (झारखंड)

झारखंड का जिला साहिबगंज में शनिवार (1 अप्रैल 2023) की शाम मूर्ति विसर्जन के जुलूस पर कृष्णानगर में कुलीपाड़ा रेलवे लाइन के पास पथराव हुआ। पत्थरबाजी छतों से की गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान भड़की हिंसा में 1 बाइक को आग लगा दी गई थी।


🚩जुलूस में शामिल 6 श्रद्धालुओं के साथ पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे। पुलिस इस मामले में जाँच कर रही है। वहीं 3 अप्रैल 2023 को एक बार फिर से साहिबगंज में हनुमान प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करने पर हिन्दू संगठन विरोध प्रदर्शन करने लगे जिसके बाद पुलिस ने हिन्दू संगठनों पर ही लाठीचार्ज कर दिया।


🚩लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भी रामनवमी की शोभायात्रा पर हमला हुआ था। यहाँ के जानकीपुरम विस्तार इलाके में जब रामनवमी का जुलूस शाही मस्जिद के सामने से गुजरा, तब उस पर छतों से पत्थर फेंके जाने लगे थे। इस पथराव में कुछ श्रद्धालुओं को चोटें आईं और शोभायात्रा में शामिल वाहन क्षतिग्रस्त हो गए थे। पुलिस कार्रवाई से नाराज हिन्दू संगठनों ने घटना के विरोध में थाने पर धरना दिया था। फिलहाल इस मामले में पुलिस द्वारा किसी की गिरफ्तारी की जानकारी नहीं दी गई है।


🚩वडोदरा (गुजरात)

गुजरात के वडोदरा जिले में गुरुवार (30 मार्च 2023) को रामनवमी की शोभा यात्रा पर पत्थरबाजी की गई थी। जुलूस के फतेहपुरा गराना पुलिस चौकी क्षेत्र में एक मस्जिद के सामने से गुजरने के बाद उस पर पत्थर बरसाए गए थे। पुलिस ने हालत को को फ़ौरन संभाला और हमलावरों को तितर-बितर किया था।



🚩पुलिस ने इस मामले में SIT गठित करते हुए 500 उपद्रवियों पर केस दर्ज किया था। इस मामले में कुल 23 लोग गिरफ्तार किए गए हैं, जिनमें 6 महिलाएँ भी शामिल हैं। पुलिस को इन सभी आरोपितों की 5 दिनों की कस्टडी रिमांड मिली है।


🚩हासन (कर्नाटक)

कर्नाटक के हासन में गुरुवार (30 मार्च 2023) को रामनवमी के जुलूस पर कट्टरपंथियों ने हमला किया था। जब यह जुलूस चन्नारायणपटना इलाके की एक मस्जिद के सामने से गुजरा, तब उसके विरोध में भीड़ ने हंगामा किया।


🚩 पत्थरबाजी के साथ हमलावरों ने चाकूबाजी भी की। इस चाकूबाजी में मुरली और हर्ष नाम के 2 लोग घायल हो गए थे। पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर के जाँच शुरू कर दी है।


🚩हिंदुओं को अपना वजूद बचाने के लिए हिंदू विरोधी सिस्टम से कानून के दायरे में रहकर लड़ना होगा। जय श्रीराम का उद्घोष तेज और तेज होता जाए, इसके लिए हिंदू को बिना बँटे, बिना टूटे… कानून में रहकर लड़ना होगा, यही एकमात्र रास्ता है।


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Friday, April 7, 2023

तात्या टोपे के जीते जी कभी चैन से नहीं बैठ पाए थे अंग्रेज

7 Apirl 2023

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🚩भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गांव येवला में हुआ था। ये गांव नासिक के निकट पटौदा जिले में स्थित है। वहीं इनका असली नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग येवलकर’ था और ये एक ब्राह्मण परिवार से थे,इनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट बताया जाता है। जो कि महान राजा पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां पर कार्य करते थे। इतिहास के अनुसार उनके पिता बाजीराव द्वितीय के गृह-सभा के कार्यों को संभालते थे। भट्ट पेशवा बाजीराव द्वितीय के काफी खास लोगों में से एक थे। वहीं तात्या की माता का नाम रुक्मिणी बाई था और वो एक गृहणी थी। 


🚩अंग्रेजों ने भारत में अपना साम्राज्य फैलाने के मकसद से उस समय के कई राजाओं से उनके राज्य छीन लिए थे। अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय से भी उनका राज्य छीनने की कोशिश की। लेकिन पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेकने की जगह उनसे युद्ध लड़ना उचित समझा। लेकिन इस युद्ध में पेशवा की हार हुई और अंग्रेंजों ने उनसे उनका राज्य छीन लिया। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय को उनके राज्य से निकाल दिया और उन्हें कानपुर के बिठूर गांव में भेज दिया। वहीं तात्या के पिता भी अपने पूरे परिवार सहित बाजीराव द्वितीय के साथ बिठूर में जाकर रहने लगे। जिस वक्त तात्या के पिता उनको बिठूर लेकर गए थे, उस वक्त तात्या की आयु मात्र 4 वर्ष की थी।



🚩बिठूर गांव में ही तात्या टोपे ने युद्ध करने का प्रशिक्षण ग्रहण किया था, तात्या के संबंध बाजीराव द्वितीय के गोद लिए पुत्र नाना साहब के साथ काफी अच्छे थे और इन दोनों ने एक साथ शिक्षा भी ग्रहण की थी।


🚩साल 1857 के विद्रोह में तात्या टोपे की भूमिका 


🚩अंग्रेजों द्वारा हर साल पेशवा को 8 लाख रुपये पेंशन के रूप में दिए जाते थे। लेकिन जब उनकी मृत्यु हो गई तो अंग्रेजों ने उनके परिवार को ये पेंशन देना बंद कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने उनके गोद लिए पुत्र नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी मानने से भी इंकार कर दिया। वहीं अंग्रेजों द्वारा लिए गए इस निर्णय से नाना साहब और तात्या काफी नाराज थे और यहां से ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाना शुरू कर दिया। वहीं साल 1857 में जब देश में स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने लगा तो इन दोनों ने इस संग्राम में हिस्सा लिया। नाना साहब ने तात्या टोपे को अपनी सेना की जिम्मेदारी देते हुए उनको अपनी सेना का सलाहकार मानोनित किया। वहीं अंग्रेजों ने साल 1857 में कानुपर पर हमला कर दिया और ये हमला ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की अगुवाई में किया गया था। नाना ज्यादा समय तक अंग्रेजों से सामना नहीं कर पाए और उनकी हार हो गई। हालांकि इस हमले के बाद भी नाना साहब और अंग्रेजों की बीच और कई युद्ध हुए। लेकिन उन सभी युद्ध में नाना की हार ही हुई। वहीं नाना ने कुछ समय बाद कानपुर को छोड़ दिया और वो अपने परिवार के साथ नेपाल जाकर रहने लगे। कहा जाता है कि नेपाल में ही उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली थी।


🚩वहीं अंग्रेजों के साथ हुए युद्ध में पराजय मिलने के बाद भी तात्या टोपे ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपनी खुद की एक सेना का गठन किया। तात्या ने अपनी सेना की मदद से कानपुर को अंग्रेजों के कब्जे से छुड़ाने के लिए रणनीति तैयार की थी। लेकिन हैवलॉक ने बिठूर पर भी अपनी सेना की मदद से धावा बोल दिया और इस जगह पर ही तात्या अपनी सेना के साथ थे। इस हमले में एक बार फिर तात्या की हार हुई थी। लेकिन तात्या अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे और वहां से भागने में कामयाब हुए।


🚩तात्या और रानी लक्ष्मी बाई


🚩जिस तरह से अंग्रेजों ने नाना साहब को बाजीराव पेशवा का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया था। वैसे ही अंग्रेजों ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के गोद दिए पुत्र को भी उनकी संपत्ति का वारिस नहीं माना। वहीं अंग्रेजों के इस निर्णय से तात्या काफी गुस्से में थे और उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की मदद करने का फैसला किया। कहा जाता है कि तात्या पहले से ही रानी लक्ष्मीबाई को जानते थे और ये दोनों मित्र थे।


🚩साल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई ने भी बढ़-चढ कर हिस्सा लिया था और ब्रिटिश इस विद्रोह से जुड़े हर व्यक्ति को चुप करवाना चाहते थे । साल 1857 में सर ह्यूरोज की आगुवाई में ब्रिटिश सेना ने झांसी पर हमला कर दिया था। वहीं जब तात्या टोपे को इस बात का पता चला तो उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की मदद करने का फैसला लिया। तात्या ने अपनी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना का मुकाबला किया और लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों के शिकंजे से बचा लिया। इस युद्ध पर विजय प्राप्त करने के बाद रानी और तात्या टोपे कालपी चले गए। जहां पर जाकर इन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिए अपने आगे की रणनीति तैयार की।

तात्या जानते थे, की अंग्रेजों को हराने के लिए उनको अपनी सेना को और मजबूत करना होगा। अंग्रेजों का सामना करने के लिए तात्या ने एक नई रणनीति बनाते हुए महाराजा जयाजी राव सिंधिया के साथ हाथ मिला लिया। जिसके बाद इन दोनों ने साथ मिलकर ग्वालियर के प्रसिद्ध किले पर अपना आधिकार कायम कर लिया। तात्या के इस कदम से अंग्रेजों को काफी धक्का लगा और उन्होंने तात्या को पकड़ने की अपनी कोशिशों को और तेज कर दिया। वहीं 18 जून, 1858 में ग्वालियर में हुए अंग्रेजों के खिलाफ एक युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई हार गई और उन्होंने अंग्रेजों से बचने के लिए खुद को आग के हवाले कर दिया।


🚩तात्या टोपे का संघर्ष


🚩अंग्रेजों ने अपने खिलाफ शुरू हुए हर विद्रोह को लगभग खत्म कर दिया था। लेकिन अंग्रेजों के हाथ तात्या टोपे अभी तक नहीं लगे थे। ब्रिटिश इंडिया तात्या को पकड़ने की काफी कोशिशें करती रही, लेकिन तात्या अपना ठिकाना समय-समय पर बदलते रहे।


🚩तात्या टोपे की मृत्यु


🚩कहा जाता है कि तात्या कभी भी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे थे और उन्होंने अपनी अंतिम सांस गुजरात राज्य में साल 1909 में ली थी। तात्या ने राजा मानसिंह के साथ मिलकर एक रणनीति तैयार की थी जिसके चलते अंग्रेजों ने किसी दूसरे व्यक्ति को तात्या समझकर पकड़ लिया था और उसको फांसी दे दी थी। तात्या के जिंदा होने के सबूत समय-समय पर मिलते रहे हैं और तात्या टोपे के भतीजे ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि तात्या को कभी भी फांसी नहीं दी गई थी।


🚩तात्या टोपे से जुड़ी अन्य जानकारी-


🚩तात्या टोपे ने अंग्रेजों के खिलाफ लगभग 150 युद्ध लड़े हैं, जिसके चलते अंग्रेजों को काफी नुकसान हुए था और उनके करीब 10 ,000 सैनिकों की मृत्यु इन युद्धों के दौरान हुई थी।


🚩तात्या टोपे ने कानपुर को ब्रिटिश सेना से छुड़वाने के लिए कई युद्ध किए। लेकिन उनको कामयाबी मई, 1857 में मिली और उन्होंने कानपूर पर कब्जा कर लिया। हालांकि ये जीत कुछ दिनों तक ही थी और अंग्रेजों ने वापस से कानपुर पर कब्जा कर लिया था।


🚩भारत सरकार द्वारा दिया गया सम्मान

तात्या टोपे द्वारा किए गए संघर्ष को भारत सरकार द्वारा भी याद रखा गया और उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया था। इस डाक टिकट के ऊपर तात्या टोपे की फोटो बनाई गई थी। इसके अलावा मध्य प्रेदश में तात्या टोपे मेमोरियल पार्क भी बनवाया गया है। जहां पर इनकी एक मूर्ती लगाई गई है। ताकि हमारे देश की आने वाले पीढ़ी को इनका बलिदान   याद रहे।


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Thursday, April 6, 2023

इटली में इंग्लिश बोलने पर लगेगा 89 लाख तक का जुर्माना, भारत में इंग्लिश पर कब लगेगा बेन ?

6  Apirl 2023

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🚩भारतीयों को आजादी मिले 75 साल हो गए लेकिन आभितक मानसिक गुलामी नही गई है। जापानी जब अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं और भारतवासी! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि राष्ट्र व मातृ भाषाओं में अंग्रेजी के शब्द बोलने लगते हैं । 


🚩राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है। इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है । यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है। इटली की सरकार की साहस सरहानीय है जो अपनी राष्ट्रीय भाषा को बढ़ावा देने के लिए विदेशी भाषा को बेन करने जा रही हैं।



🚩इटली में English पर बैन को लेकर कानून पेश


🚩प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी की पार्टी द्वारा पेश किए गए इस बिल पर संसद में बहस होनी है, अगर यह वहां से पारित हो जाता है तो इटली में अंग्रेजी सहित अन्य विदेशी भाषाओं के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लग जाएगा।


🚩इटली की सरकार ने विदेशी भाषा को लेकर एक बड़ा फैसला किया है। इसके लिए उसने देश में एक अलग कानून पेश किया है. इसके तहत इटली के लोग अपने देश में इंग्लिश व किसी अन्य भाषा का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. ऐसा करने पर उन्हें भारी जुर्माना लगेगा. बता दें कि इस कानून को प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी ने पेश किया है।



🚩सीएनएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कोई भी इतालवी नागरिक अपने ऑफिशियल कम्युनिकेशन के दौरान अंग्रेजी या किसी अन्य विदेशी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी द्वारा पेश किए गए नए कानून के तहत 100,000 यूरो (89,33,458 लाख रुपये) का जुर्माना देना होगा.


🚩बैन के पीछे दिया गया ये तर्क

इस कानून को इटालियन चैंबर ऑफ डेप्युटीज (लोअर हाउस) में फैबियो रामपेली ने कानून पेश किया था. प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने इसका समर्थन किया था. कानून पेश करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी विदेश भाषा खासकर ‘एंग्लोमेनिया’ या अंग्रेजी शब्दों के इस्तेमाल पर आधारित है, जो इटालियन भाषा को अपमानित महसूस कराता है. उन्होंने कहा कि यह और भी बुरा है क्योंकि ब्रिटेन अब यूरोपीय यूनियन का हिस्सा नहीं है।


🚩संसद में बिल पर बहस होना बाकी


🚩हालांकि, इस बिल को लेकर अभी इटली की संसद में बहस होगी। समर्थन मिलने के बाद इसके बाद इसको पारित किया जाएगा. इस बिल में ऑफिशियल डॉक्यूमेंट अंग्रेजी के इस्तेमाल पर बैन लगाने की बात की गई है. कानून के मसौदे के मुताबिक, विदेशी संस्थाओं के पास सभी आंतरिक नियमों और रोजगार अनुबंधों के इतालवी भाषा संस्करण होने चाहिए।


🚩इटली सरकार से भारत की सरकार को सिख लेनी चाहिए और भारत में भी विदेशी भाषा पर बेन लगा देना चाहिए।


🚩लोकमान्य तिलकजी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया ।

वे कहते थे : ‘‘अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है । जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते । ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है । ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती ।’’


🚩जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है ।


🚩हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए ।


🚩एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है । हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए ।


🚩राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए ।


🚩जब कमाल पाशा अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की कुछ दिन की मोहलत ठुकराकर रातोंरात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए क्या यह असम्भव है  ?


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Wednesday, April 5, 2023

कौन से भगवान हनुमानजी के रूप में अवतार लिए थे ? और कितनी सिद्धियां थीं ?

5 Apirl 2023

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🚩हनुमान जी का जन्म त्रेतायुग में चैत्र पूर्णिमा की पावन तिथि पर हुआ । तब से हनुमान जयंती का उत्सव मनाया जाता है । इस दिन हनुमान जी का तारक एवं मारक तत्त्व अत्याधिक मात्रा में अर्थात अन्य दिनों की तुलना में 1 सहस्र गुना अधिक कार्यरत होता है । इससे वातावरण की सात्त्विकता बढती है एवं रज-तम कणों का विघटन होता है । विघटन का अर्थ है, ‘रज-तम की मात्रा अल्प होना।’ इस दिन हनुमान जी की उपासना करने वाले भक्तों को हनुमान जी के तत्त्व का अधिक लाभ होता है।



🚩ज्योतिषियों की गणना अनुसार हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6:03 बजे हुआ था । हनुमान जी भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान हैं।


🚩हनुमान जी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी तथा माता अंजना हैं । हनुमान जी को पवनपुत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पवन देवता ने हनुमान जी को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


🚩हनुमानजी को बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि हनुमान जी का शरीर वज्र की तरह है।


🚩पृथ्वी पर सात मनीषियों को अमरत्व (चिरंजीवी) का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं । हनुमानजी आज भी पृथ्वी पर विचरण करते हैं।


🚩हनुमानजी को एक दिन अंजनी माता फल लाने के लिये आश्रम में छोड़कर चली गई। जब शिशु हनुमानजी को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे । उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया । जिस समय हनुमान जी सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था । हनुमान जी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया । उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की “देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे । आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।”


🚩राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े । राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे । राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्र से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई।


🚩हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया । उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दी । जिससे संसार का कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे । तब सारे सुर,असुर, यक्ष,  किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये । ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये । वे मूर्छित हनुमान जी को गोद में लिये उदास बैठे थे । जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की । फिर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान दिया कि कोई भी शस्त्र इनके अंग को हानि नहीं कर सकता । इन्द्र ने भी वरदान दिया कि इनका  शरीर वज्र से भी कठोर होगा । सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा कि मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा । यमदेव ने अवध्य और  निरोग रहने का आशीर्वाद दिया । यक्षराज कुबेर,विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।


🚩इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत मे हनु) टूट गई थी । इसलिये उनको “हनुमान” नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, बालाजी महाराज आदि । इस प्रकार हनुमान जी के 108 नाम हैं और हर नाम का मतलब उनके जीवन के अध्यायों का सार बताता है।


🚩एक बार माता सीता ने प्रेम वश हनुमान जी को एक बहुत ही कीमती सोने का हार भेंट में देने की सोची लेकिन हनुमान जी ने इसे लेने से मना कर दिया । इस बात से माता सीता गुस्सा हो गई तब हनुमानजी ने अपनी छाती चीर का उन्हें उसे बसी उनकी प्रभु राम की छव‍ि दिखाई और कहा क‍ि उनके लिए इससे ज्यादा कुछ अनमोल नहीं।


🚩हनुमानजी के पराक्रम अवर्णनीय है । आज के आधुनिक युग में ईसाई मिशनरियां अपने स्कूलों में पढ़ाती है कि हनुमानजी भगवान नही थे एक बंदर थे । बन्दर कहने वाले पहले अपनी बुद्धि का इलाज कराओ। हनुुमान जी शिवजी का अवतार हैं। भगवान श्री राम के कार्य में साथ देने (राक्षसों का नाश और धर्म की स्थापना करने ) के लिए भगवान शिवजी ने हनुमानजी का अवतार धारण किया था।


🚩मनोजवं मारुततुल्य वेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।

वातात्मजं वानरयूथ मुख्य, श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये।

🚩‘मन और वायु के समान जिनकी गति है, जो जितेन्द्रिय है, बुद्धिमानों में जो अग्रगण्य हैं, पवनपुत्र हैं, वानरों के नायक हैं, ऐसे श्रीराम भक्त हनुमान की शरण में मैं हूँ।


🚩जिसको घर में कलह, क्लेश मिटाना हो, रोग या शारीरिक दुर्बलता मिटानी हो, वह नीचे की चौपाई की पुनरावृत्ति किया करे..।

 

🚩बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन - कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई–अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन्ह जानकी माता।।


🚩यह हनुमान चालीसा की एक चौपाई जिसमें तुलसीदास जी लिखते हैं कि हनुमानजी अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ऐसा सीता माता ने उन्हें वरदान दिया। यह अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती है जिसकी बदौलत हनुमान जी ने असंभव से लगने वाले काम आसानी से सम्पन किये थे। आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों, नौ निधियों और भगवत पुराण में वर्णित दस गौण सिद्धियों के बारे में विस्तार से बताते हैं।


🚩आठ सिद्धयाँ :

हनुमानजी को जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-


🚩1.अणिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं।


🚩इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।


🚩2. महिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।


🚩जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।

इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।


🚩3. गरिमा:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।


🚩गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया। पवनपुत्र हनुमान के भाई थे भीम क्योंक‍ि वह भी पवनपुत्र के बेटे थे ।


🚩4. लघिमा:  इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं।


🚩जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।


🚩5. प्राप्ति:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं।


🚩रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।


🚩6. प्राकाम्य:  इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को प्राप्त कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।


🚩इस सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल तक प्राप्त कर लिया है।


🚩7. ईशित्व:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।

ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।


🚩8. वशित्व:  इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं।

🚩वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।


🚩नौ निधियां  :

हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो नव निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार हैं :-


🚩1. पद्म निधि : पद्मनिधि लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है।


🚩2. महापद्म निधि : महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है।


🚩3. नील निधि : नील निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेज से संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढ़ी तक रहती है।


🚩4. मुकुंद निधि : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।


🚩5. नन्द निधि : नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है।


🚩6. मकर निधि : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है।


🚩7. कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है।


🚩8. शंख निधि : शंख निधि एक पीढ़ी के लिए होती है।


🚩9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं ।


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