Monday, August 24, 2020

विज्ञान ने माना सनातन धर्म की देन है गायत्री महामंत्र चमत्कारी !

24 अगस्त 2020


हमारे जो ऋषि मुनियों ने लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व खोजा, उसका आज विज्ञान अनुसंधान कर रहा है। हमारे जीवन में मंत्र की महिमा कितनी है, ये ऋषि मुनियों ने हमें पहले से ही बता दिया है।



आपको बता दें कि AIIMS ने अपने अनुसंधान में स्वीकार किया कि गायत्री महामंत्र जपने से बुद्धिमत्ता बढ़ती है। AIIMS (All India Institute of Medical Science) की एक डॉक्टर और IIT (Indian Institute of Technology) के एक वैज्ञानिक ने कई वर्षों के रिसर्च में पाया कि रोज गायत्री महामंत्र जपने से बुद्धिमत्ता का विकास होता है। AIIMS ने MRI (Magnetic Resonance Imaging) द्वारा दिमाग की सक्रियता की जांच करके इस बात की पुष्टि की है कि गायत्री महामंत्र पढ़ने से दिमाग का विस्तार होता है।

AIIMS 1998 से गायत्री महामंत्र पर रिसर्च कर रहा है। इसको जप करने वालों का दिमाग औरों की बजाय शांत और जागरूक भी पाया गया। इसके जप से बुद्धिमत्ता का अनन्त विस्तार किया जा सकता है। AIIMS का ये रिसर्च अभी भी जारी है और रिसर्च पूरा होने के बाद इस पर अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट भी जारी की जाएगी।

गायत्री महामंत्र की रचना त्रेतायुग में ब्रह्मऋषि विश्वामित्र जी ने की थी। यह महामंत्र यजुर्वेद के मंत्र "ॐ भूर्भुवः स्वः" और ऋगवेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है।

गायत्री महामंत्र 👇🏻
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।

बता दें कि वेदों पर रिसर्च करने वाले बहुत सारे विद्वानों ने गायत्री महामंत्र की ऋग्वेद के सबसे प्रभावशाली मंत्रों में से एक माना है। हमारे देश में सदियों से ये मान्यता है कि विद्यार्थियों को गायत्री महामंत्र का पाठ करना चाहिए क्योंकि इससे दिमाग तेज होता है। इस महामंत्र का हिन्दू धर्म की परंपराओं में भी विशेष स्थान है।

देवी भागवत के अनुसार एक माला गायत्री मंत्र का जाप करने से दिन भर के पाप कटते हैं। तीन माला गायत्री मंत्र जपने से नौ दिन के पाप कटते हैं। साथ ही नौ माला गायत्री मंत्र का जाप करने से नौ महीने पहले तक के पाप कटते हैं। इसके अलावा भागवत के दसवें स्कन्द में भगवान कृष्ण के दिनचर्या का वर्णन मिलता है।

अथर्ववेद में भी गायत्री मंत्र की महिमा का वर्णन किया गया है। इस मंत्र के बारे में एक श्लोक आया है कि ”स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्ताम्, पावमानी द्विजानाम्। आयु: प्राण प्रजाम् पशु कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यम् दत्वा ब्रजत् ब्रह्मलोकम्।।” यानि जो इस मंत्र का जाप करता है उसका दूसरा जन्म होता है, सबकुछ उसका बदल जाता है। साथ ही उसकी उम्र बढ़ती है। प्राण शक्ति भी उस मनुष्य की बढ़ जाती है। इसके अलावा वह ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। गायत्री मंत्र का जाप करने वाले की यश और कीर्ति बढ़ती है।

हिन्दू धर्म के मंत्रों में बड़ी शक्ति होती है मंत्र जप से मनुष्य स्वस्थ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जी सकता है। यहाँ तक कि मनुष्यता से ईश्वर तक कि यात्रा भी कर सकता है, आज वैज्ञानिक इसकी महत्ता समझ रहे हैं भारतवासियों को भी इसकी महत्ता समझकर लाभ उठाना चाहिए।

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Sunday, August 23, 2020

राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष से सबक लेना चाहिए कि आखिर मंदिरों का विध्वंस क्यों होता रहा ?

23 अगस्त 2020


अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के शुभारंभ का उत्सव मनाते हुए हमें यह भी विचार करना चाहिए कि आखिर मंदिरों का विध्वंस क्यों होता रहा? सही उत्तर पाए बिना मंदिरों की सुरक्षा संदिग्ध बनी रहेगी। आज भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया आदि देशों में मंदिरों, चर्चों के विध्वंस की घटनाएं घट रही हैं। पाकिस्तानी क्षेत्र में 1947 के बाद से सैकड़ों मंदिरों का विध्वंस हुआ।



कश्मीर में असंख्य मंदिर तोड़े गए, मंदिरों का विध्वंस कम्युनिज्म ने भी बड़े पैमाने पर किया।

बीते कुछ दशकों में कश्मीर में भी असंख्य मंदिर तोड़े गए। यह सब एक ही समस्या की विभिन्न अभिव्यक्तियां हैं। नोट करें कि चर्चों, मंदिरों का ध्वंस कम्युनिज्म ने भी बड़े पैमाने पर किया। चीन और तिब्बत में हजारों बौद्ध मठ-मंदिरों को तोड़ा गया। स्टालिन युग में रूस और पूर्वी यूरोप में असंख्य चर्चों को ध्वस्त कर वहां स्वीमिंग पूल आदि बना डाले गए थे। इसका कारण मतवादी दुराग्रह ही था। इसीलिए कम्युनिज्म के खात्मे पर उन्हीं स्थानों पर फिर चर्च बनाए गए।

इस्लामी हमलावरों ने जो काम सदियों पहले किया वही तालिबान, आइएस कर रहे हैं।

इस्लामी हमलावरों द्वारा भी दुनिया भर में चर्च, मंदिर आदि तोड़ने का कारण उनका यह मतवाद है कि इस्लाम के सिवा किसी मत को रहने नहीं देना है। इसीलिए गजनवी औरंगजेब जैसे तमाम हमलावरों एवं शासकों ने जो सदियों पहले किया वही तालिबान, जैसे मुहम्मद, आइएस आदि अभी भी कर रहे हैं। इसके पीछे मतांधता ही है। इसकी अनदेखी करने के दुष्परिणामों का अनुमान कठिन नहीं है। अभी तुर्की में इसी की झलक मिली।

ओटोमन सुल्तान मुहम्मद ने 1453 में हागिया सोफिया चर्च को जबरन मस्जिद में बदला।

चूंकि ईसाई देशों ने हागिया सोफिया को पुन: चर्च बनाने की फिक्र न की इसलिए उसे फिर मस्जिद में बदल डाला गया। इस्लाम के जन्म से भी पहले बना यह चर्च लगभग एक हजार साल तक विश्व का महत्वपूर्ण चर्च था। ओटोमन सुल्तान मुहम्मद ने 1453 में हागिया सोफिया को जबरन मस्जिद में बदला। महान तुर्क नेता मुस्तफा कमाल पाशा ने इस्लामी खलीफत खत्म करने के बाद 1935 में उसे संग्रहालय बना दिया। उसी को अभी फिर मस्जिद कर दिया गया। विस्मरण और स्मरण समानता से हो तभी विश्व में विभिन्न धर्मावलंबी साथ रह सकते हैं। किसी मतवाद को विशेषाधिकार देने पर ऐसे विध्वंस रुकने के बजाय बढ़ेंगे। यही समस्या की मूल गुत्थी है। इसे न छूने से ही भारत में मंदिरों की मुक्ति का प्रश्न लटका रह गया।

गांधी जी ने इस्लामी मतवाद पर चुप रहने की घातक परंपरा बनाई। इसलिए उसके कार्यों को रोकना कठिन हो गया। रूस में तोड़े गए चर्चों की पुर्नस्थापना इसीलिए हुई कि उससे पहले कम्युनिस्ट मतवाद पर प्रश्न उठाकर उसे पराजित किया गया। तुर्की में पाशा ने भी खलीफत, शरीयत खत्म करके ही हागिया सोफिया को संग्रहालय बनाया। इसलिए अन्य हिंदू मंदिरों की मुक्ति मुस्लिमों को राष्ट्रवाद या हिंदू भावनाओं को आदर देने जैसी बातों से नहीं हो सकती। ऐसी बचकानी दलीलें सदैव निष्प्रभावी रहेंगी।

वैश्विक साम्राज्य की चाह रखने वाले मतवादों को बचकानेपन से नहीं झुकाया जा सकता।

विश्व इतिहास से समझना चाहिए कि वैश्विक साम्राज्य की चाह रखने वाले मतवादों को बचकानेपन से नहीं झुकाया जा सकता। मानवीय समानता का यह नियम सामने रखना होगा कि दूसरों के विरुद्ध वह काम न करो जो तुम अपने विरुद्ध दूसरों से नहीं चाहते। इस समानता और सत्यनिष्ठा में ही उपाय है। राजनीतिक इस्लाम के एकमात्र सत्य होने के दावे को कसौटी पर कसकर उसकी असलियत दिखानी होगी।

अगर इस्लामी दावा असत्य है तो मुसलमानों को भी उसे छोड़कर सत्य अपनाना चाहिए।

अगर इस्लामी दावा और विशेषत: उसका मूल राजनीतिक भाग असत्य है तो मुसलमानों को भी उसे छोड़कर सत्य अपनाना चाहिए। यही समान और सत्यनिष्ठ समाधान है। आज नहीं तो कल बहस इसी पर आएगी। इस्लामी संगठन तो सदैव अपने बिंदु पर टिके रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से दूसरे ही इससे बचते हैं। मुस्लिम ब्रदरहुड, इस्लामिक स्टेट, तालिबानी, तब्लीगी आदि तमाम संगठन, शासक और उलेमा इस्लाम की सत्यता के दावे पर ही अपने सारे काम करते हैं। उनकी मार झेलने वाले उस दावे को चुनौती देना छोड़ बाकी सब कुछ करते रहे।

रामजन्मभूमि मंदिर: मुस्लिम पक्ष बार-बार पैंतरा बदलता रहा, हिंदुओं को स्थान न देने पर अड़ा रहा।

युद्ध, बमबारी, उदारतापूर्वक धन देना, अपीलें करना आदि, मगर जिस एक टेक पर राजनीतिक इस्लाम खड़ा है उसे खारिज नहीं करते। तब समाधान हो तो कैसे? हमें रामजन्मभूमि मंदिर के मुक्ति संघर्ष से शिक्षा लेनी चाहिए। मुस्लिम पक्ष बार-बार पैंतरा बदलता रहा, लेकिन हिंदुओं को वह स्थान न देने पर अड़ा रहा, जबकि उसका मुसलमानों के लिए कोई महत्व न था। इसकी तुलना में हिंदुओं के लिए रामजन्मभूमि और अयोध्या सदियों से पवित्र महान तीर्थों में अग्रगण्य है। इसे कुछ कथित सेक्युलर, लिबरल स्वीकार करने से अभी भी बच रहे हैं।

असल लड़ाई संपत्ति की नहीं, वरन साम्राज्यवादी मतवाद बनाम सत्य की है।

अनुभव बताता है कि अन्य हिंदू श्रद्धास्थलों की मुक्ति के लिए फिर वैसा अभियान चलाने के बजाय मूल बिंदु पर आना होगा। असल लड़ाई संपत्ति की नहीं, वरन साम्राज्यवादी मतवाद बनाम सत्य की है। समस्या यह नहीं कि कुछ मुसलमान दूसरों के तीर्थों पर कब्जा रखना चाहते हैं। समस्या वह मतवादी विश्वास है जो उन्हें इसके लिए प्रेरित करता है। जब तमाम इस्लामी संगठन दूसरों को मुसलमान बनाना अपना अधिकार समझते हैं तो उन्हें अधर्म से हटाकर सन्मार्ग पर लाना दूसरों का अधिकार है। इस्लाम को एकमात्र सत्य कहने का उत्तर उसे असत्य साबित करना है। मुसलमानों को राजनीतिक इस्लाम की गलती दिखाना एक शांतिपूर्ण कार्य है। कमाल पाशा ने ठीक यही किया था। उन्होंने इस्लामी मतवाद को पुराना एवं मृत कहकर तुर्की से निकाल बाहर किया था। यह प्रक्रिया अभी भी चल रही है।

वैचारिक चुनौती से ही चर्च की और कम्युनिज्म की तानाशाही पराजित हुई।

दुनिया भर में इस्लाम छोड़ने वाले मुसलमान यानी मुलहिद बढ़ रहे हैं। यह कम्युनिस्ट मतवाद और चर्च मतवाद के साथ पहले हो चुका है। वैचारिक चुनौती से ही मध्ययुग में चर्च की और हाल में कम्युनिज्म की तानाशाही पराजित हुई। कोई युद्ध नहीं हुआ। इस्लामी मतवाद के साथ यह और आसान है, क्योंकि आधुनिक सूचना संसाधनों के युग में सत्य-असत्य की परख करना सबके हाथ में हैं।

दुनिया में मुस्लिम आबादी का बाह्य विस्तार भले हो रहा हो, किंतु भीतर से सांस्कृतिक रिक्तता बढ़ रही है।

अब इस्लाम और शेष विश्व के इतिहास, दर्शन, साहित्य में योगदान को कोई मुस्लिम स्वयं परख सकता है। दुनिया में मुस्लिम आबादी, संस्थानों का बाह्य विस्तार भले हो रहा हो, किंतु भीतर से सांस्कृतिक रिक्तता बढ़ रही है। इमामों, अयातुल्लाओं की सेंसरशिप इंटरनेट ने बेकार कर दी है। विश्व के महान विद्वानों ने इस्लाम की समीक्षाएं की हैं। उनमें मुस्लिम भी हैं। अब वह इंटरनेट की बदौलत सुदूर गांवों तक सहज उपलब्ध है। उसे जानना और मुस्लिमों को जानने के लिए कहना चाहिए। अभी तक ऐसा न करने से ही कट्टरपंथियों ने मुसलमानों को अपनी मुट्ठी में कैद रखा है। यह कैद टूटनी चाहिए। - लेखक राजनीतिशास्त्र प्रोफेसर शंकर शरण

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Saturday, August 22, 2020

आप भी जानिए तमिल संस्कृति को कैसे वेद-संस्कृत विरोधी बनाई गई ?

22 अगस्त 2020


राजीव मल्होत्रा के पूछने पर डॉ. नागास्वामी ने विस्तार से बताया कि दक्षिण भारत की तमिल भाषा में ‘तिरुकुरल’ वैसा ही लोकप्रिय सनातनधर्मी-ग्रन्थ है, जैसा उत्तर भारत में रामायण, महाभारत अथवा गीता। इसकी रचना वहां के महान संत कवि तिरूवल्लुवर ने की है। 19 वीं सदी के मध्य में एक कैथोलिक ईसाई मिशनरी जार्ज युग्लो पोप ने अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया, जिसमें उसने प्रतिपादित किया कि यह ग्रन्थ ‘अ-भारतीय’ तथा ‘अ-हिन्दू’ है और ईसाइयत से जुडा हुआ है। उसकी इस स्थापना को मिशनरियों ने खूब प्रचारित किया। उनका यह प्रचार जब थोडा जम गया, तब उन्होंने उसी अनुवाद के हवाले से यह कहना शुरू कर दिया कि ‘तिरूकुरल’ ईसाई-शिक्षाओं का ग्रन्थ है और इसके रचयिता संत तिरूवल्लुवर ने ईसाइयत से प्रेरणा ग्रहण कर इसकी रचना की थी, ताकि अधिक से अधिक लोग ईसाइयत की शिक्षाओं का लाभ उठा सकें। इस दावे की पुष्टि के लिए उन्होंने उस अनुवादक द्वारा गढी गई उस कहानी का सहारा लिया, जिसमें यह कहा गया है कि ईसा के एक प्रमुख शिष्य सेण्ट टामस ने ईस्वी सन 52 में भारत आकर ईसाइयत का प्रचार किया, तब उसी दौरान तिरूवल्लुवर को उसने ईसाई धर्म की दीक्षा दी थी। हालांकि मिशनरियों के इस दुष्प्रचार का कतिपय निष्पक्ष पश्चिमी विद्वानों ने ही उसी दौर में खण्डन भी किया था, किन्तु उपनिवेशवादी ब्रिटिश सरकार समर्थित उस मिशनरी प्रचार की आंधी में उनकी बात यों ही उड गई । फिर तो कई मिशनरी संस्थाए इस झूठ को सच साबित करने के लिए ईसा-शिष्य सेन्ट टामस के भारत आने और हिन्द महासागर के किनारे ईसाइयत की शिक्षा फैलाने सम्बन्धी किस्म-किस्म की कहानियां गढ कर अपने-अपने स्कूलों में पढाने लगीं।



1969 में देइवनयगम ने एक शोध-पुस्तक प्रकाशित की- ‘वाज तिरूवल्लुवर ए क्रिश्चियन ?’, जिसमें उसने साफ शब्दों में लिखा है कि सन ५२ में ईसाइयत का प्रचार करने भारत आये सेन्ट टामस ने तमिल संत कवि- तिरूवल्लुवर का धर्मान्तरण करा कर उन्हें ईसाई बनाया था। अपने इस मिथ्या-प्रलाप की पुष्टि के लिए उसने संत-कवि की कालजयी कृति- ‘तिरूकुरल’ की कविताओं की तदनुसार प्रायोजित व्याख्या भी कर दी और उसकी सनातन-धर्मी अवधारणाओं को ईसाई- अवधारणाओं में तब्दील कर दिया । इस प्रकरण में सबसे खास बात यह है कि तमिलनाडू की ‘द्रमुक’-सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उस किताब की प्रशंसात्मक भूमिका लिखी है और उसके एक मंत्री ने उसका विमोचन किया ।

इस बौद्धिक अपहरण-अत्याचार को मिले उस राजनीतिक संरक्षण से प्रोत्साहित हो कर देइवनयगम दक्षिण भारतीय लोगों को ‘द्रविड’ और उनके धर्म को ‘ईसाइयत के निकट, किन्तु सनातन धर्म से पृथक’ प्रतिपादित करने के चर्च-प्रायोजित अभियान के तहत ‘ड्रेवेडियन रिलिजन’ नामक पत्रिका भी प्रकाशित करता है । उस पत्रिका में लगातार यह दावा किया जाता रहा है कि “सन- ५२ में भारत आये सेन्ट टामस द्वारा ईसाइयत का प्रचार करने के औजार के रूप में संस्कृत का उदय हुआ और वेदों की रचना भी ईसाई शिक्षाओं से ही दूसरी शताब्दी में हुई है, जिन्हें धूर्त ब्राह्मणों ने हथिया लिया” । वह यह भी प्रचारित करता है कि “ब्राह्मण, संस्कृत और वेदान्त बुरी शक्तियां हैं और इन्हें तमिल समाज के पुनर्शुद्धिकरण के लिए नष्ट कर दिये जाने की जरूरत है।

हिंदुस्तानियों को आपस में तोड़कर राष्ट्र विरोधी ताकते राज करना चाहती हैं इसलिए कभी जातिवाद तो कभी हिंदू विरोधी एजेंडे तो कभी धर्मान्तरण आदि का खेल खेला जा रहा है, ईसाई मिशनरियों की इसमे मुख्य भूमिका रहती हैं। वे मीठे जहर की तरह हैं, किसी को पता नही चलने देते हैं, हिंदुओं का ब्रेनवॉश करने में माहिर होते हैं, इसलिए हिंदुस्तानियों को सावधान रहने की आवश्यकता है।

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Friday, August 21, 2020

जानिए भगवान गणेश के अवतार का रहस्य और साल भर कलंक से बचने के उपाय

21 अगस्त 2020


जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर सर्वप्रथम श्री गणपति जी का पूजन अनिवार्य है ।



उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।

जिस दिन गणेश तरंगें प्रथम पृथ्वी पर आयी अर्थात जिस दिन गणेश जी अवतरित हुए, वह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन था । उसी दिन से गणपति का चतुर्थी से संबंध स्थापित हुआ ।

शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन आता है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपनी शक्ति से एक पुतला बनाकर उसमें प्राण भर दिए और उसका नाम 'गणेश' रखा।

पार्वती जी ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूँ, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।

भगवान शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका।

अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे माँ भगवती क्रुद्ध हो उठी और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।

शिवजी के निर्देश पर  उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।

माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया।

 भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तुम्हरा नाम सर्वोपरि होगा। तुम सबके पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों की अध्यक्षता करोगे ।

गणेश्वर! आप भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुये हैं । इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।

चंद्र दर्शन से कलंक

गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणपति का पूजन तो विशेष फलदायी है, किंतु उस दिन चंद्र दर्शन कलंक लगाने वाला होता है ।

 इस संदर्भ में पुराणों में एक कथा आती है कि - एक बार गणपति जी कहीं जा रहे थे तो उनके लम्बोदर को देखकर चंद्रमा के अधिष्ठाता चंद्रदेव हँस पड़े । उन्हें हँसते देखकर गणेशजी ने शाप दे दिया कि ‘दिखते तो सुंदर हो, किंतु मुझ पर कलंक लगाते हो ।

अतः आज के दिन जो तुम्हारा दर्शन करेगा उसे कलंक लग जायेगा ।’

यह बात आज भी प्रत्यक्ष दिखती है । विश्वास न हो तो गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करके देख लेना। भगवान श्रीकृष्ण को गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा दर्शन करने पर स्यमंतक मणि की चोरी का कलंक सहना पड़ा था । बलरामजी को भी श्रीकृष्ण पर संदेह हो गया था ।

सर्वेश्वर, लोकेश्वर श्रीकृष्ण पर भी जब चौथ के चंद्रमा दर्शन करने पर कलंक लग सकता है तो साधारण मानव की तो बात ही क्या ?

किंतु यदि भूल से भी चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो ‘श्रीमद् भागवत’ के 10वें स्कंध के 56-57वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करना चाहिए ।

भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी के चन्द्रमा का दर्शन करना चाहिए, इससे चौथ को दर्शन हो गया हो तो उसका ज्यादा दुष्प्रभाव नहीं होगा ।

निम्न मंत्र का 21, 54 या 108 बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पीने से कलंक का प्रभाव कम होता है ।

मंत्र इस प्रकार है :
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः । सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।

‘सुंदर, सलोने कुमार ! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रोओ मत । अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।

जहाँ तक हो सके भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा न दिखे, इसकी सावधानी रखें ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्याय : 78), (ऋषि प्रसाद :  अगस्त 2014)

लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजन का विधान इसी कारण रखा गया कि धन जीवन में अहंकार, व्यसन जैसी बुराइयां लेकर न आये अर्थात गलत तरीकों से धन न कमाएं । ईमानदारी से कमाया गया धन ही हमारे लिए सुखकारी होगा, अन्यथा धन पाकर भी कितने लोग हैं जो सुखी नहीं रह पाते हैं।

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश उपासना का विशेष महत्त्व है । इस दिन गणेशजी की प्रसन्नता के लिए इस ‘गणेश गायत्री’ मंत्र का जप करना चाहिए :
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।

श्रीगणेशजी का अन्य मंत्र, जो समस्त कामनापूर्ति करनेवाला एवं सर्व सिद्धिप्रद है :  ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे । सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः ।।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खंड : 13.34)

गणेशजी बुद्धि के देवता हैं । विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपना अध्ययन-कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान गणपति, माँ सरस्वती एवं सद्गुरुदेव का स्मरण करना चाहिए । इससे बुद्धि शुद्ध और निर्मल होती है ।

विघ्न निवारण हेतु...

गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः ’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।

गणेशाेत्सव की शुरुआत

गणेशाेत्सव को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने देश की स्वाधीनता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण साधन बना दिया । उन्होंने लोक जागरण व जन-मन में देशभक्ति जगाने के लिए गणेशोत्सवों की शुरुआत करायी । इसलिए यह जरूरी है कि देश भर में आज भी उल्लास के साथ मनाया जाने वाला गणेशोत्सव केवल तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये।

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Thursday, August 20, 2020

फ़िल्म में हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार हाजी बना हीरो, राष्ट्रवादी दिखाने की घोषणा

20 अगस्त 2020 


 हिंदुस्तान में सदियों से हिंदुओं पर अनगिनत अत्याचार हुए है फिर भी हिंदू प्रगाढ़ निद्रा में है इसके कारण आज भी सनातन धर्म विरोधी अपनी गतिविधियों द्वारा हिंदुओं पर हुए अत्याचार को मिटाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और हिंदुओं के खिलाफ़ धृणा पैदा करने वाली अनेक इतिहास लिखा जा चुका है और लिख रहे हैं और उसके ऊपर फिल्में बनाकर हिंदू धर्म को नीचा दिखाने व मिटाने की कोशिशें कर रहे हैं।



 आपको बता दे कि साल 1921 में केरल में हुए हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी (Variyam Kunnathu Kunjahammed Haji ) की जिंदगी पर आधारित फिल्म बनने वाली है। इस फिल्म को बनाने वाले का नाम आशिक अबु है। हाजी का किरदार निभाने वाले एक्टर पृथ्वीराज सुकुमारन हैं। और, फिल्म का टाइटल वरियमकुन्नन (Vaariyamkunnan) हैं। ये सब सूचना स्वयं अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन ने अपने फेसबुक पर दी है।

 उन्होंने अपनी नई फिल्म का ऐलान करते हुए हाजी को ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ लड़ने वाली शख्सियत बताया है। साथ ही हाजी को न केवल एक नेता के तौर पर दर्शाया, बल्कि उसे एक फौजी और राष्ट्रवादी भी कहा।

 इसके अलावा मालाबार में हुए हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को पृथ्वीराज ने मालाबार क्रांति का पहला चेहरा लिखा और जानकारी दी कि इसकी फिल्मिंग हाजी की 100वीं बरसी पर शुरू करेंगे।

 यहाँ बता दें, इस जानकारी के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर एक नया विवाद खड़ा हो गया। लोग पूछने लगे कि आखिर हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार व्यक्ति हीरो कैसे हो सकता है? या ये समझें कि ये फिल्म फिर से समुदाय विशेष के कुकर्मों को धोने का एक प्रयास है, जिसके जरिए सच्चाई को छिपाते हुए नया इतिहास समझाने की कोशिश हो रही है।

क्यों है विवाद?

 दरअसल, साल 2021 में रिलीज होने वाली यह फिल्म मोपला समुदाय के उस मुस्लिम नेता की जिंदगी पर आधारित है, जिसे साल 1921 में मालाबार में हजारों हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार बताया जाता है।

कौन था वरियम कुन्नथु हाजी कुंजाहम्मद हाजी?

 वरियमकुन्नथु या चक्कीपरांबन वरियामकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी (Variyam Kunnathu Kunjahammed Haji), वही शख्स है जो खुद को ‘अरनद का सुल्तान’ कहता था। उसी क्षेत्र का सुल्तान जहाँ सैंकड़ों मोपला हिंदुओं का नरसंहार हुआ। जहाँ इस्लामिक ताकतों ने मिलकर लूटपाट की और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह की आड़ में हिंदुओं का रक्तपात किया। मगर, फिर भी, उन आतताइयों के उस चेहरे को छिपाने के लिए इतिहास के पन्नों में उन्हें मोपला के विद्रोहियों का नाम दिया गया।

 बता दें, मोपला में हिंदुओं का नरसंहार वही घटना है, जब हिंदुओं पर मुस्लिम भीड़ ने न केवल हमला बोला। बल्कि आगे चलकर पॉलिटिकल नैरेटिव गढ़ने के लिए उस बर्बरता को इतिहास के पन्नों से ही गुम कर दिया या फिर काट-छाँटकर इसपर जानकारी दी गई।

 केरल के मालाबार में हिंदुओं पर अत्याचार के उन 4 महीनों ने सैंकड़ों हिंदुओं की जिंदगी तबाह की। बताया जाता है कि मालाबार में ये सब स्वतंत्रता संग्राम के तौर पर शुरू हुआ। लेकिन जब खत्म होने को आया तो उसका उद्देश्य साफ पता चला कि वरियमकुन्नथु जैसे लोग केवल उत्तरी केरल से हिंदुओं की जनसंख्या कम करना चाहते थे।

 खिलाफत आंदोलन का सक्रिय समर्थक वरियमकुन्नथु ने अपने दोस्त अली मुसलीयर के साथ मिलकर मोपला दंगों का नेतृत्व किया। जिसमें 10,000 हिंदुओं का केरल से सफाया हुआ। जबकि माना जाता है कि इसके बाद करीब 1 लाख हिंदुओं को केरल छोड़ने पर मजबूर किया गया। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है।

 बाबा साहेब अंबेडकर अपनी किताब में इस नरसंहार का जिक्र करते हैं। वे पाकिस्तान ऑर पार्टिशन ऑफ इंडिया नाम की अपनी किताब में लिखते हैं कि हिन्दुओं के खिलाफ मालाबार में मोपलाओं द्वारा किए गए खून-खराबे के अत्याचार अवर्णनीय थे। दक्षिणी भारत में हर जगह हिंदुओं के ख़िलाफ़ लहर थी। जिसे खिलाफत नेताओं ने भड़काया था।

 इसके अलावा एनी बेसेंट ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब में करते हुए बताया कि कैसे धर्म न त्यागने पर हिंदुओं पर अत्याचार हुए। उन्हें मारा-पीटा गया । उनके घरों में लूटपाट हुई। एनी बेंसेंट ने अपनी किताब में बताया कि करीब लाख से ज्यादा हिंदू लोगों को उस दौरान अपने घरों को तन पर बाकी एक जोड़ी कपड़े के साथ छोड़ना पड़ा था। उन्होंने लिखा, “मालाबार ने हमें सिखाया है कि इस्लामिक शासन का क्या मतलब है, और हम भारत में खिलाफत राज का एक और नमूना नहीं देखना चाहते हैं।”

आज मलयालम फिल्म को प्रोड्यूस करने वाले अधिकतर लोग मालाबार मुसलमान हैं। जिन्हें लगता है शायद इस तरह के प्रयासों से वह हिंदुओं पर हुई बर्बरता को लोगों की नजरों में धुँधला कर देंगे और अपनी कोशिशों से एक नया इतिहास नई पीढ़ी के सामने पेश करेंगे।

लेकिन, आपको बता दें, ये पहली बार नहीं है जब हाजी के आतताई चेहरे को नायक में तब्दील करने की कोशिश हुई। इससे पहले भी जामिया प्रदर्शन के समय सुर्खियों में आई बरखा दत्त की शीरो लदीदा ने हाजी का महिमामंडन किया था।

मोपला मुसलमानों के एक अलीम ने यह घोषणा कर दी कि उसे जन्नत के दरवाजे खुले नजर आ रहे हैं । जो आज के दिन, दीन की खिदमत में शहीद होगा वह सीधा जन्नत जाएगा । जो काफ़िर को हलाक करेगा वह गाज़ी कहलाएगा । एक गाज़ी को कभी दोज़ख का मुख नहीं देखना पड़ेगा । उसके आहवान पर मोपला भूखे भेड़ियों के समान हिन्दुओं की बस्तियों पर टूट पड़े । टीपू सुल्तान के समय किये गए अत्याचार फिर से दोहराए गए । अनेक मंदिरों को भ्रष्ट किया गया । हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाया गया, उनकी चोटियां काट दी गई । उनकी सुन्नत कर दी गई । मुस्लिम पोशाक पहना कर उन्हें कलमा जबरन पढ़वाया गया । जिसने इंकार किया उसकी गर्दन उतार दी गई । ध्यान दीजिये कि इस अत्याचार को इतिहासकारों ने अंग्रेजी राज के प्रति रोष के रूप में चित्रित किया हैं जबकि यह मज़हबी दंगा था । 2021 में इस दंगे के 100 वर्ष पूरे होंगे।

 हिंदुओं का नर संहार करने वाले लोगों को आज हीरो बनाया जा रहा है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रोल करने वाला भी हिंदू ही हैं, और देखने वाले भी अधिकतर हिंदू ही है, आज बॉलीवुड में अधिकतर फिल्में भी हिन्दू विरोधी ही बन रही है अभी "आश्रम" नाम की फ़िल्म बनाकर हिंदू धर्म को बदनाम ही किया जा रहा है। हिंदुओं को अब जागरूक होना चाहिए ऐसी फिल्मों का पुरजोर से विरोध करना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी को ये लोग गुमराह करके हिंदू धर्म को खत्म न कर सकें।

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Wednesday, August 19, 2020

वेब सीरीज वाले हिंदू धर्म के साथ-साथ राष्ट्र विरोधी भी बन गए, कर रहे हैं क्रांतिकारियों का अपमान !

19 अगस्त 2020


हिंदुत्व जिस प्रकार से पहले बॉलीवुड और अब वेब सीरीज ने निशाना बनाया है और जितना आघात सनातन धर्म को तथाकथित मनोरंजन ने दिया है संभवतः उतना आघात बड़े से बड़े और क्रूर से क्रूर मजहबी आक्रांता और विदेशी लुटेरे भी नहीं दे पाए होंगे।  लेकिन अब यह सिलसिला हिंदू देवी देवताओं, साधू-संतों से भी आगे चलकर देश की स्वतंत्रता के लिए प्राण देने वाले क्रांतिवीरों तक पहुंच चुका है।



ट्रायल के रूप में पहला निशाना लगाया गया है देश के लिए सबसे कम उम्र में फांसी चढ़े और हाथ में श्रीमद्भागवत गीता लेकर बलिदान देने वाले अमर बलिदानी खुदीराम बोस को, यह वही खुदीराम बोस थे जिन्होंने बलिदान होने से पहले कहा था कि- मैं बहुत ही गरीब हूं और मेरे पास मेरी भारत मां को देने के लिए मेरे प्राणों के अतिरिक्त कुछ नहीं था और आज मैं उसे दे रहा हूं। ना जाने कैसे हिम्मत हो गई उस अमर बलिदानी के अपमान की...।

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज अभय 2 वेब सीरीज में एक सीन में क्रिमिनल बोर्ड पर शहीद खुदीराम की फोटो दिख रही है। खुदीराम की फोटो शेयर करते हुए यूजर्स ने चैनल जी 5 को बायकॉट करने की मांग कर डाली है।

हालांकि सोशल मीडिया पर विरोध होने पर सीरीज के डायरेक्टर केन घोष की ओर से माफी मांगी गयी और बताया गया कि ऑड‍ियंस की ओर से मिले फीडबैक को याद में रखते हुए हमने अभय 2 के इस सीन में तस्वीर को ब्लर कर दिया है। लेकिन ये कैसी माफी ? ब्लर क्यों किया उसको हटाया क्यों नहीं ? इससे साफ पता चलता है कि इनका इरादा था क्रांतिकारी खुदीराम बोस को अपमानित करने का।

आपको बता दें कि बॉलीवुड का हिन्दूफोबिया थमता नहीं दिख रहा है। अभी महेश भट्ट की ‘सड़क-2’ को लेकर विवाद ख़त्म भी नहीं हुआ था कि प्रकाश झा अपनी नई सीरीज ‘आश्रम’ लेकर आ धमके हैं। इसमें वे एक बाबा को विलेन बना कर आस्था और अपराध के संयोग को दिखाने का दावा कर रहे हैं।

दिलचस्प बात ये है कि बाबा को दिखाया तो गया है सूफी वाले लुक्स में लेकिन आश्रम में यज्ञाग्नि, शुद्ध हिंदी और उसके अनुयायियों को देख कर स्पष्ट पता चलता है कि ये सीरीज हिन्दुओं और हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने के लिए बनाई गई है। इसके बाद बाबा को बलात्कारी और खूनी दिखाया जाता है।

बॉलीवुड में अक्सर पंडितों और साधु-संतों को धोखेबाज और बलात्कारी दिखाया जाता रहा है, जबकि मुस्लिम किरदारों को ईमानदार और देश के लिए मर-मिटने वाला प्रदर्शित किया जाता रहा है। इसी तरह ‘सड़क-2’ में भी महेश भट्ट एक ऐसी कहानी लेकर आ रहे हैं, जिसमें एक साधु को बुरा दिखाया जाएगा और उसके काले कृत्यों का खुलासा किया जाएगा। इसमें भी एक डरावने बाबा को विलेन दिखाया गया है। और "आश्रम" वेब सीरीज में भी साधु-संतों को बदनाम किया गया है।

यह सिलसिला अभी से नहीं चल रहा है अपितु जबसे बॉलीवुड बना है तबसे चल रहा है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हिंदू ही उनकी फ़िल्में देखकर हिट करवाते हैं अगर पहले से ही उनकी फ़िल्में देखने नहीं जाते तो इनकी अक्ल अभी तक ठिकाने आ जाती लेकिन सभी सोशल मीडिया के कारण काफी हिंदू जागरूक भी हुए हैं और उनकी फिल्मों का बहिष्कार कर रहे हैं लेकिन अभी इसका संपूर्ण बहिष्कार करना होगा और देश व सनातन धर्म विरोधी फिल्मों को यूट्यूब पर इसको रिपोर्ट और डिसलाइक जरूर करें साथ मे इनको करारा जवाब दें और फिल्मे देखे ही नहीं। ... इससे इनकी औकात पता चलेगी और राष्ट्र व सनातन धर्म विरोधी फिल्मे बनाना बंद कर देंगे।

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Tuesday, August 18, 2020

फिर से मारा गया हिंदू समाज पर कुल्हाड़ा, ये लोग अन्य धर्म पर चुप रहते हैं!

18 अगस्त 2020


चारों तरफ से यही साजिशें चली आ रही हैं कि कैसे भी करके सनातन हिंदू धर्म को खत्म कर दिया जाए उसके लिए अनेक प्रकार के षड़यंत्र रचे जा रहे हैं, हिंदू धर्म का अपमान व हिंदू धर्म के प्रति नफरत फैलाने व हिंदू धर्म को नीचा दिखानें में अगर सबसे बड़ा रोल है तो वो बॉलीवुड का रहा हैं। ये लोग ऐसी फिल्में बनाते हैं जिससे हिन्दू देवी देवताओं,  साधु-संतों, ब्राह्मणों, पर्व-त्योहारों और मंदिरों, आश्रमों आदि पर गलत फिल्में दिखाकर जनता को गुमराह करते हैं और बताते हैं कि सारी बुराइयां सनातन हिंदू धर्म में ही हैं लेकिन उससे उलट चर्चों में पादरी क्या करते हैं, मस्जिदों में मौलाना क्या करते हैं इस पर नहीं दिखाते हैं क्योंकि इनको पता है कि ऐसा करने पर कमलेश तिवारी की तरह हत्या हो जायेगी और हिंदू समाज सहिष्णु है तो सोशल मीडिया पर थोड़ा हल्ला करके चुप हो जायेंगे।



अभी कुछ हिंदुओं में जागरूकता आई है लेकिन सभी को जागना होगा और बॉलीवुड के इस हिंदू विरोधी रवैये को उखाड़ फेंकना होगा नहीं तो ये लोग दिमक की तरह हमारी संस्कृति को खा रहे हैं।

आपको बता दें कि एम एक्स प्लेयर पर निर्माता और निर्देशक प्रकाश झा द्वारा MX Original सीरीज "आश्रम" मूवी को 28 अगस्त 2020 को रिलीज की जा रही है। वेब सीरीज में बॉबी देओल लीड रोल में है। इसमें ये बताने का प्रयास किया है कि हिंदू साधु-संत भक्तों की आस्थाओं का दुरुपयोग करके कैसे राजनीति में दखल करते हैं और अय्याशी करते हैं।

वास्तविकता तो यह है कि कितने साधु-संतों ने घोर तपस्या की है फिर वे समाज में आकर उनको सही मार्ग दिखाते हैं, समाज को व्यसनमुक्त बनाने का प्रयास करते हैं, संयमी और सदाचारी समाज को बनाते हैं, गरीबों-आदिवासियों को सहायता करते हैं। गौ माता की रक्षा करते हैं। बच्चों, युवाओं व महिलाओं के उत्थान के लिए केंद्र खोलते हैं। धर्मान्तरण पर रोक लगाते हैं। चिंता ,टेंशन में रह रहे लोगों को शांति देते हैं, स्वदेशी का प्रचार करते हैं, सभी को स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाते हैं। राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।

बॉलीवुड वाले इस वास्तविकता पर फ़िल्म नहीं बनायेंगे, ये लोग हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए झूठी कहानियां बनाकर जनता में परोसेंगे जिससे सोचने समझने की शक्ति नहीं रखने वाले इन झूठी कहानियों पर विश्वास कर लेते हैं और अपने ही धर्म व धर्मगुरुओं पर शंका करने लगते हैं।

चर्च-पादरी का घिनौना चेहरा

आपको बता दें कि कन्नूर (केरल) के कैथोलिक चर्च की एक नन सिस्टर मैरी चांडी ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि "चर्च" के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी। एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार की कोशिश की थी। मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचायी थी। ’यहाँ गर्भ में ही बच्चों को मार देने की प्रवृत्ति होती है।'

सान डियेगो चर्च के अधिकारियों ने पादरियों के द्वारा किये गये बलात्कार, यौन-शोषण आदि के 140 से अधिक अपराधों के मामलों को निपटाने के लिए 9.5 करोड़ डॉलर चुकाने का ऑफर किया था। चर्च की आड़ में चल रहे यौन शोषण के हजारों मामले सामने आ चुके हैं। सन् 1950 से 2002 के काल में पादरियों के द्वारा किये गये यौन-शोषण के 10,667 अपराध दर्ज किये गये। उनमें से 3300 की जाँच पूरी होने के पहले ही वे मर गये। बाकी 7700 में से 6700 पादरियों को अपराधी घोषित किया गया। सन् 2002 में आयरलैंड के पादरियों के यौन-शोषण के अपराधों के कारण 12 करोड़ 80 लाख डॉलर का दंड चुकाना पड़ा। मई 2009 में प्रकाशित रायन रिपोर्ट के अनुसार 30,000 बच्चों को इन संस्थाओं में ईसाई ननों और पादरियों द्वारा प्रताड़ित और उनका शोषण किया जाता रहा।

मदरसों का हाल

उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने बताया था कि "मदरसों में बच्चों को बाकियों से अलग कर कट्टरपंथी सोच के तहत तैयार किया जाता है। यदि प्राथमिक मदरसे बंद ना हुए तो 15 साल में देश का आधे से ज्यादा मुसलमान आईएसआईएस का समर्थक हो जाएगा । ये देश के लिए भी खतरा है। उन्होंने कहा था कि 'कुछ मरदसों में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां हैं, जो बंद होनी चाहिए ।

आपको बता देते हैं कि जुलाई 2018 में पुणे के एक मदरसे के मौलवी को अपने ही मदरसे के बच्चों का यौन शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है । साथ ही 36 बच्चों को भी मुक्त कराया गया था । कुछ समय पहले दिल्ली में काफी लड़कियों को मदरसों में बंधक बनाकर रखा था उनको भी छुड़ाया था।

बॉलीबुड में इन चर्च व पादरी और मदरसे व मौलाना पर फ़िल्म क्यों नहीं बना रहे हैं? इनको सिर्फ साधु-संत में ही गलती क्यों दिखाई देती है?  हो सकता है कुछ दुष्ट लोग साधु का वेश पहनकर हिंदू धर्म को बदनाम करते होंगे लेकिन इसके कारण सबको खराब क्यों बताया जाता है? साधु-संतों की अच्छाई क्यों नहीं दिखाई जाती है? उनके ऊपर हो रहे षडयंत्र के ऊपर फ़िल्म क्यों नहीं बनाई जाती हैं, साधु-संतों की हत्या और झूठे केस बनाकर जेल भेजने के षड़यंत्र वाली फिल्में बॉलीवुड वाले क्यों नहीं बनाते हैं?

वास्तविकता यही है कि बॉलीवुड हमेशा हिंदू विरोधी रहा है और वो कभी भगवान तो कभी देवी-देवताओं तो कभी मंदिरों तो कभी साधु-संतों तो कभी ब्राह्मणों को नीचा दिखाने व अन्य मजहब के लोगों को अच्छा दिखाने वाली फिल्में इसलिए बनाते हैं कि उनका उद्देश्य यही है कि सनातन हिंदू धर्म को खत्म कर दिया जाए और साधु-संतों को तो खासकर इसलिए टारगेट करते हैं कि वे हिंदुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक करते हैं, व्यसन छुड़वाते हैं, धर्मान्तरण रोकते हैं इसके कारण ये लोग हिंदू धर्म के साधु-संतों की बदनामी करने के लिए धर्म विरोधी लोगों से फंड लेकर ऐसी फिल्में बनाते हैं।

सभी सनातनियों से निवेदन है कि "आश्रम" व अन्य हिंदू विरोधी फिल्मों को देखे ही नहीं। इससे अपने आप ये लोग ऐसी फ़िल्में बनाना बंद कर देंगे और यूट्यूब पर वीडियो को रिपोर्ट और डिसलाइक जरूर करें तभी सनातन धर्म विरोधी लोगों की आँखे खुलेगी।

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