Friday, July 14, 2023

आखिर बॉलीवुड ने आपका कितना नुकसान किया हैं ???

14 July 2023

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🚩साल 2012 में एक फिल्म आई थी – ‘OMG: Oh My God!’ नाम की, जिसमें परेश रावल ने एक नास्तिक व्यक्ति का किरदार निभाया था और अक्षय कुमार भगवान श्रीकृष्ण के रूप में दिखे थे। अब हिन्दू पुनर्जागरण का काल आया है और जिस तरह से एक-एक कर के एजेंडाधारी बेनकाब हुए हैं, आज की तारीख़ में बहुत आवश्यक है कि इस फिल्म की पुनः समीक्षा हो। उस समय इस फिल्म ने भारत में 100 करोड़ रुपए से भी अधिक का नेट कारोबार किया था और IMDb पर भी इसकी रेटिंग 8 से ज्यादा है।


🚩अब ‘OMG 2’ का टीजर भी आया है, इसीलिए भी इस फिल्म के बारे में फिर से बात किया जाना चाहिए। क्या फिल्म में भगवान का इस्तेमाल कर के नास्तिकवाद को बढ़ावा दिया गया? क्या हिन्दू धर्म के प्रतीकों का अपमान किया गया? एक खास सन्देश देने के चक्कर में सीमाएँ लाँघ दी गईं? आइए, समझते हैं। अब हिन्दुओं का सामूहिक बौद्धिक विकास भी हुआ है और उन्हें बॉलीवुड का हर प्रपंच समझ में आने लगा है, एक-एक बिंदु में तोड़ कर इस फिल्म पर फिर से चर्चा की जानी आवश्यक है।


🚩धार्मिक यात्रा में शराब, गंगाजल और उपवास का अपमान


🚩भारत में गंगाजल का अपना एक महत्व है, गंगा को सबसे पवित्र नदी का दर्जा दिया गया है। ऐसे में फिल्म की शुरुआत में ही एक दृश्य में दिखाया गया है कि कैसे ‘कांजीभाई’ (परेश रावल) एक महिला की मृत्यु के बाद हो रही एक धार्मिक यात्रा में सभी को शराब पिला देते हैं, सारे लोग शराब पी लेते हैं धोखे से। क्या यहाँ गंगाजल से शराब की तुलना उचित थी? इस तरह की तुलना जमजम के पानी को लेकर कभी की जा सकती है? हिन्दू धर्म में इस तरह की अपमानजनक चीजों को इतना हल्का-फुल्का बना दिया गया है कि हम इस पर हँसते हैं।


🚩जिस तरह से हमें अपने ही ऊपर अत्याचार करने वाले आक्रांताओं का अपमान करना सिलसिलेवार तरीके से सिखाया गया, कुछ इसी तरह से हमारे भीतर ये भी व्यवस्थागत रूप से बिठा दिया गया कि अपने ही धर्म के अपमान पर हम हँसें, आपत्ति जताना तो दूर की बात है। इसी के बाद वाले दृश्य में उपवास का मजाक भी बनाया गया है। उपवास के पीछे का वैज्ञानिक महत्व आयुर्वेद में वर्णित है और मेडिकल विज्ञान भी इसे मानता है। शराब पिला कर किसी मुस्लिम का रोजा तुड़वाने वाला दृश्य बॉलीवुड कभी दिखा सकता है?


🚩मूर्ति का मतलब खिलौना


🚩फिल्म के एक दृश्य में कांजीभाई को भगवान की मूर्तियों को एक बड़ी दुकान से खरीदते हुए दिखाया गया है। इसमें वो हनुमान जी को ‘बॉडी बिल्डर’ कहते हैं और इसी तरह हर देवी-देवताओं का मजाक बनाते हैं। सुधारवाद के नाम पर हिन्दू प्रतिमाओं को खिलौना कहना कहाँ तक उचित है? यानी, पूरी की पूरी मूर्तिपूजा ही बेकार है? फिर तो हिन्दू धर्म के प्राचीन साहित्य भी बेकार हो गए? मंदिर बनवाने वाले राजा-महाराजा और उन मंदिरों में पूजा-पाठ करने वाले साधु-संत भी मूर्ख थे?


🚩मूर्तिपूजा का विरोध तो इस्लाम में किया जाता है और इस्लामी आक्रांता प्रतिमाओं को ‘बूत’ बता कर इसे तोड़ते थे। क्या हिन्दू धर्म में सुधारवाद का यही अर्थ है कि वो इस्लाम के हिसाब से काम करने लगे? माना कि आर्य समाज भी मूर्तिपूजा के खिलाफ है, लेकिन श्रीराम या श्रीकृष्ण में आस्था इसके अनुयायियों की भी है। इसी तरह एक दृश्य में भगवान शिव को ‘काला पत्थर’ कह दिया गया है। अर्थात, करोड़ों लोगों की जिनमें आस्था है उन महादेव के लिए इस तरह के शब्द पर तो फिल्म को रिलीज ही नहीं होने देना चाहिए था।


🚩मूर्तिपूजा के विरोध में इस फिल्म में कभी तर्क दिया जाता है कि हिन्दू धर्म में 35 करोड़ देवी-देवता हैं तो कभी दिखाया जाता है कि कैसे मूर्तियों में श्रद्धा रखने वाले लोग बेवकूफ होते हैं और इसके चक्कर में मूर्ख बन कर मूर्तियाँ खरीद देते हैं। यानी, बहुदेववाद ढकोसला है – इस फिल्म में ये बताने की कोशिश की गई है। अब्राहमिक मजहबों का इससे अच्छा प्रचार क्या होगा भला? इस्लाम की शुरुआत ही अरब में मूर्तियों को तोड़े जाने के साथ हुई थी, फिल्म इस थ्योरी को बड़े सॉफ्ट तरीके से आगे बढ़ाती है।


🚩मुस्लिमों की एरिया में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की दुकान


🚩कांजीभाई की जो दुकान होती है, वो मुस्लिमों वाले एरिया में होती है। आप देखिएगा बॉलीवुड की चालाकी। जब-जब उस दुकान को दिखाया जाता है तब-तब वहाँ आसपास मुस्लिमों को चहलकदमी करते हुए दिखाया गया है। वास्तविकता इससे परे होती है, ये किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों में चुन-चुन कर हिन्दुओं की दुकानों को जलाया गया था। शिव विहार में 2 स्कूल अगल-बगल थे, मुस्लिमों का स्कूल दंगाइयों का पनाहगाह बना जबकि हिन्दुओं के स्कूल को फूँक दिया गया।

🚩बॉलीवुड इसी तरह हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का सन्देश देता है, जहाँ हिन्दू हमेशा गुंडा होता है और मुस्लिम ‘मासूम’। हज को लेकर मजाक किए जाने पर मुस्लिम सुन कर रह जाता है, जबकि थोड़ा सा गुस्सा आने पर मंदिर का पुजारी पीटने के लिए कांजीभाई को दबोच लेता है – इस तरह के नैरेटिव ‘शोले (1975)’ के समय से ही चले आ रहे हैं जब गाँव में सबसे अच्छा और सच्चा मौलवी साहब ही हुआ करते थे।


🚩जिसने धोती पहन रखी है, शिखा रखी है – उसका मजाक बनाओ


🚩आप पूरी OMG: Oh My God!’ फिल्म में ‘सिद्धेश्वर महाराज’ के किरदार पर गौर कीजिए। बॉलीवुड के लिए शुरू से जोकर का अर्थ रहा है धोती-शिखा वाला ब्राह्मण। शक्ति कपूर को इस तरह से कई फिल्मों में कास्ट किया गया है। क्या आपने बॉलीवुड में जोकर के रोल में कभी ऊँचे पायजामे वाले मौलवी को देखा है? फिल्म की शुरुआत में ही भूकंप आता है और सिद्धेश्वर महाराज गिरने लगते हैं। कभी तो टाँगें फैला कर कुर्सी पर बैठ कर कुछ खाते रहते हैं तो कभी कोर्ट में उन्हें अजीबोगरीब हरकत करते हुए दिखाया गया है। पंडितों के IQ पर टिप्पणी की जाती है, ‘इंटरेस्टिंग आइटम’ बताया जाता है।


🚩इसी तरह एक दृश्य में साधु-संतों को अनपढ़ बताते हुए कांजीभाई कह देते हैं कि अधिकारी तो पढ़े-लिखे होते हैं, उनसे इनकी तुलना नहीं हो सकती। ऐसे डायलॉग्स और दृश्यों से युवावर्ग में इस तरह का सन्देश जाता है कि साधु-संत अनपढ़ होते हैं। वेद-पुराणों का अध्ययन करने वाले को पढ़ा-लिखा नहीं कहा जा सकता। पढ़ा-लिखा दिखने की पहली शर्त है कि व्यक्ति भारतीय परिधान न पहने। पहनेगा तो वो जोकर है। एक दृश्य में एक लड़के को यज्ञ करा रहे पंडित का मजाक बनाते हुए दिखाया गया है। इससे क्या सन्देश गया होगा?


🚩आरती फूँकना, तिलक मिटाना:


🚩नास्तिक द्वारा धृष्टता एक नास्तिक आरती की थाली में फूँक कर दीया बुझा देता है। एक दृश्य में वो अपना और अपने सहयोगी का तिलक पोंछ देता है। हाल ही में खबर आई कि मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित एक स्कूल में तिलक लगा कर जाने पर बच्चे को पीट-पीट कर भगा दिया गया। इस करतूत का समर्थन करने वाला स्कूल का प्रिंसिपल हिन्दू है, इस करतूत को अंजाम देने वाली शिक्षिका हिन्दू हैं। भला इस तरह की मानसिकता ऐसी फिल्मों से ही आती है न? ये सिखाते हैं कि तिलक हटा दो, आरती मत करो – तभी तुम आधुनिक कहलाओगे।


🚩बॉलीवुड में किसी भी निर्देशक की हिम्मत है तो वो मस्जिद में जाकर इस तरह की हरकतें करने वाला दृश्य दिखा दे। यहाँ तो जो बातें लिखी हुई हैं उन्हें बोल देने पर एक महिला को साल भर अपने ही घर में कैद रहना पड़ता है और उनका समर्थन करने वालों का गला रेत दिया जाता है। ये नास्तिकवाद की बीमारी हिन्दुओं में ही क्यों धकेली जा रही है? अजान और नमाज के प्रति सम्मान की भावना दिखाने वाला ये बॉलीवुड, जिसके सितारे दरगाहों पर चादर चढ़ाने जाते रहे हैं, उन्हें विलेन के रूप में साधु-संत ही क्यों चाहिए?


🚩अच्छा मुस्लिम वकील, हिजाबी बेटी: इस्लाम पर बच कर चलती है ‘OMG: Oh My God!’


🚩जहाँ एक तरफ हिन्दू धर्म और देवी-देवताओं को लेकर ऐसी-ऐसी टिप्पणियाँ हैं, इस्लाम मजहब का नाम आते ही फिल्म के निर्माता-निर्देशक की हवा निकल जाती है। एक मुस्लिम वकील है, जो इतना अच्छा है कि पूछिए मत। उसकी हिजाब पहनी हुई बेटी है, जो बहुत अच्छी है व्यवहार में। हाल ही में हिजाब के समर्थन में कर्नाटक में दंगे हुए, हमने देखा। ईरान में महिलाओं ने सड़क पर निकल कर अपने हिजाब जलाए। ऐसे में किसी फिल्म में हिजाब को सकारात्मक और धोती-शिखा को नकारात्मक दिखाने से क्या सन्देश जा सकता है? एक जगह सिर्फ ‘पैगंबर’ कहा जाता है, पूरा नाम लेने की हिम्मत भी नहीं होती और हिन्दू देवी-देवताओं के समय जबान कैंची की तरह खुलने लगती है।


🚩एक मुस्लिम जब उपरवाले पर केस करने आता है तो उसे सिखाया जाता है कि वो अल्लाह मियाँ के खिलाफ नहीं जा रहा। देखिए, यहाँ कितने संभल-संभल कर डायलॉग लिखे गए हैं। यहाँ आरती फूँकना, तिलक मिटाना, शिवलिंग को काला पत्थर कहना – ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल नहीं किया गया है। फिल्म में सारे मुस्लिम किरदार बहुत अच्छे मिलेंगे आपको। एक से हज पर मजाक किया जाता है लेकिन वो सहिष्णु है, एक फ्री में कांजीभाई की मदद करता है, उसकी बेटी भी मदद करती है, मौलवी साहब भी संतों की तरह ‘बिगड़े हुए’ नहीं हैं।


🚩मिथुन चक्रवर्ती का चित्रण आपको क्यों डिस्टर्ब करना चाहिए


🚩इस फिल्म में एक और खास बात है – ‘लीलाधर स्वामी’ के किरदार में मिथुन चक्रवर्ती। लीलाधर स्वामी पुरुष हैं, लेकिन महिलाओं की तरह उनका चाल-चलन है। वो हमेशा अपना एक हाथ अपने मुँह के पास रखे रहते हैं। वो ज्ञानी हैं, लेकिन फिल्म में मुख्य विलेन भी। वो भी धोती पहनते हैं, स्पष्ट है कि उनका रोल सकारात्मक नहीं ही रहना चाहिए। बॉलीवुड में ये चीज एक तरह से नॉर्मल रही है, ‘सिंघम 2’ का हीरो साधु को थप्पड़ मार कर घसीटते हुए जेल लेजाता है, लेकिन दरगाह के सामने सर झुकाने के लिए दूसरों को भी मजबूर करता है।


🚩लीलाधर स्वामी के बोलचाल के अंदाज़ को भी ऐसा रखा गया है। ये एक तरह से ट्रांसजेंडर समाज का भी अपमान है, सिर्फ साधु-संतों का ही नहीं। हमने साधु-संतों के इस चित्रण के खिलाफ आवाज उठाई होती तो न तो ‘सिंघम 2’ में कुछ वैसा दिखाया जाता और न ही ‘आश्रम’ जैसी वेब सीरीज में धर्म के साथ सेक्स जैसी चीजें परोसी जातीं। अगर एकाध ऐसी घटनाएँ वास्तविक भी हैं, फिर बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर फिल्म बनेगी? मदरसों में यौन शोषण करने वाले मौलवियों पर आज तक फिल्म बनी है?


🚩लोकतंत्र में ‘भगवान’ भी कटघरे में


🚩ईश्वर तो तब भी विद्यमान थे जब लोकतंत्र नहीं था, संविधान नहीं था और पुलिस-कोर्ट नहीं हुआ करती थी। तब इन सबका कुछ और रूप हुआ करता था। उससे पहले कुछ और रूप। लेकिन, ईश्वर में आस्था इस संस्कृति की पहचान रही है। फिल्म के एक दृश्य में कहा जाता है कि ये लोकतंत्र और और यहाँ भगवान को भी न्यायालय में पेश होना पड़ेगा। लोकतंत्र का ये अर्थ तो बिलकुल भी नहीं है। उलटे सत्ता में, न्यायपालिका में और ब्यूरोक्रेसी में जो लोग हैं उन्हें ईश्वर का भय होना चाहिए कि उनसे गलती हुई तो उन्हें सज़ा मिलेगी।


🚩हजारों वर्ष पुरानी इस संस्कृति में ईश्वर को सिर्फ इसीलिए नीचा नहीं दिखाया जा सकता, क्योंकि यहाँ 74 वर्षों से एक संविधान है और एक लोकतंत्र है। अक्सर आपने आजकल खबरों में पढ़ा होगा कि कभी हनुमान जी को कोर्ट द्वारा समन भेज दिया जाता है तो कभी किसी और देवी-देवता को। हो सकता है इस तरह की फ़िल्में देख कर कुर्सी पर बैठे लोग खुद को भगवान से ऊपर समझने लगें। ऐसी स्थिति न आए, इस स्थिति से हमें डरना चाहिए, क्योंकि ईश्वर और उसमें आस्था हजार वर्ष बाद भी होगी जब शायद सत्ता और न्यायपालिका का स्वरूप अलग हो।


🚩मंदिरों को बदनाम करने के लिए अदालत में भाषण

कांजीभाई मंदिरों को गाली देने के लिए कोर्ट में पूरा का पूरा भाषण देते हैं और बड़ी बात ये कि कार्यवाही देख रहे ‘भगवान श्रीकृष्ण’ भी उनसे सहमत दिखते हैं। इसीलिए, इसे ये कह कर ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि ये किरदार बोल रहा होता है। कांजीभाई तर्क देते हैं कि फूल, चंदन लड्डू वगैरह खरीदने होते हैं जो मंदिर बेचता है और पैसे कमाता है। नहीं कांजीभाई, मंदिर के बाहर ये चीजें बेचने वाले गरीब लोग ही होते हैं, जिनकी उस मंदिर के कारण आमदनी होती है।


🚩महाशिवरात्रि के समय आप जो बेलपत्र खरीदते हैं वो मंदिर नहीं बेच रहा होता है बल्कि गरीब लोग ही बेच रहे होते हैं। पूजा सामग्रियों की दुकानें छोटे कारोबारियों की ही होती हैं। बड़ी आसानी से मंदिरों के पैसे को ब्लैक मनी बता दिया जाता है। जबकि मंदिरों पर सरकार का कब्ज़ा है और उनके पैसे सरकार की झोली में जाते हैं। अगर मंदिर सरकार कब्जे से मुक्त होते, तब इस तर्क पर बहस भी हो सकती थी। मंदिर में भिखारियों की एंट्री नहीं होती – ये नैरेटिव भी इसमें फैलाया गया है।


🚩अगर कोई व्यक्ति कहीं बैठ कर भीख माँग रहा है तो ये सरकार और समाज की नाकामी है या धर्म और मंदिरों की? इसमें मंदिरों के पैसों से चलने वाले अस्पतालों और स्कूलों को एक लाइन में ये कह कर नकार दिया गया है कि ये ऐसा ही है जैसे गुटखा बेचने वाले कैंसर की दवा भी बेचें। क्या मंदिर जाना कैंसर है? कई गरीबों की कमाई एक मंदिर के कारण हो जाती है। ये तर्क नास्तिकवाद नहीं, हिन्दू विरोध है। भगवान की सह कर भला कोई कैसे इस तरह के तर्क दे सकता है? कहाँ, किस वेद-पुराण में लिखा है ऐसा?


🚩आजकल आपने खबरों में देखा होगा कि कैसे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अवैध मजारों को तोड़ा जा रहा है। जबकि ‘OMG: Oh My God!’ फिल्म में कोई अवैध मजार नहीं होता, बल्कि खेल के मैदान में अवैध मंदिर बना दिया जाता है। इसमें बार-बार प्रतिमाओं के लिए पत्थर शब्द का इस्तेमाल किया गया है। क्या मक्का-मदीना में क्या है, इस पर मजाक उड़ाने की हिम्मत है? अब तो अवैध मजार तोड़े भी जा रहे हैं, 2012 के समय में तो अवैध मजार को अवैध बताना भी महापाप था।


🚩बाल अर्पण करने का भी बनाया गया है मजाक, दावा – इसका धंधा होता है


🚩श्राद्ध, यज्ञोपवीत और मुंडन में बाल अर्पण करने की परंपरा रही है। फिल्म में एक टीवी इंटरव्यू में कांजीभाई दवा करते हैं कि बाल अर्पण करने के पीछे एक बहुत बड़ा धंधा चलता है। किसी के घर में बाल ही बाल हो जाएँ तो कैसा लगेगा, भगवान को भी अच्छा नहीं लगेगा – ये तर्क दिया गया है। हिन्दू धर्म में बाल अर्पण करना अपने अहंकार के त्याग का प्रतीक है। मुंडन एक संस्कार है। अगर बालों का इस तरह का धंधा होता तो हर कोई अपने बाल बेच कर कमाई कर लेता। सैलून वाला कटे हुए बालों को बुहार कर फेंकता ही नहीं न?🚩ये अलग बात है कि लोग अपनी किसी खास मन्नत के पूरे होने पर भी बाल अर्पण करते हैं, लेकिन ये तो अपनी आस्था है न? मुंडन संस्कार का उल्लेख यजुर्वेद में भी मिलता है। शिशु के विकास के लिए इसे आवश्यक माना गया है। ऐसे तो हर एक परंपरा का विरोध किया जा सकता है? कोई इस फिल्म को बनाने वालों से ये पूछ सकता है कि सिनेमाघर और मॉल के बाहर भी भिखारी होते हैं, फिर तो फ़िल्में बननी ही नहीं चाहिए और बॉलीवुड को ही खत्म हो जाना चाहिए।


🚩शिवजी को दूध नहीं चढ़ाना चाहिए, गरीब को देना चाहिए


🚩अगर कोई बॉलीवुड वालों से पूछे कि जब देश में इतनी गरीबी है तो फिल्मों पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करने की क्या ज़रूरत गई, क्योंकि न ये पैसे गरीबों में बाँट दिए जाएँ? युवा वर्ग में हिन्दू धर्म के खिलाफ भावना भरने के लिए अक्सर गरीबों का इस्तेमाल किया जाता है। फिल्म में कांजीभाई कहते हैं कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से वो बर्बाद हो जाता है, गरीब प्यासा रह जाता है। सवाल ये है कि लोग दूध खुद की कमाई से खरीदते हैं, आस्था उनकी होती है, किसी का नुकसान नहीं करते – फिर दिक्कत क्या है?


🚩फिर तो बॉलीवुड की हस्तियों को बड़े-बड़े घर भी नहीं बनाने चाहिए क्योंकि कई गरीब फुटपाथ पर सोते हैं। उन्हें अपने घरों में गरीबों को जगह देना चाहिए? आखिर हिन्दू परंपरा को तोड़ कर ही समाजसेवा क्यों? शिवलिंग पर जल चढ़ाने वाले तो गरीबों को भी कुछ पैसे दे देते हैं, ये बॉलीवुड वाले क्या करते हैं? मालदीव के ट्रिप? शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा भी हजारों वर्ष पुरानी है और हमारे प्राचीन साहित्य में इसका जिक्र है, एक फिल्म में एक लाइन में गरीबों की बात कर के बड़ी चालाकी से इसे दोषी ठहरा दिया गया है।


🚩भगवान श्रीकृष्ण कुरान और बाइबिल पढ़ने के लिए देते हैं


🚩बॉलीवुड में अक्सर ये कह कर भाईचारे का सन्देश दिया जाता है कि जो भगवद्गीता में लिखा है, वही कुरान और बाइबिल में भी लिखा है। मतलब कुछ भी? कहाँ हैं समानताएँ? गीता में न तो ये लिखा है कि जो तुम्हारे धर्म में न माने उसे मार डालो और न ही ये लिखा है कि दूसरों का धर्मांतरण कराओ। 


🚩भगवान श्रीकृष्ण भला किसी को कुरान और बाइबिल पढ़ने को क्यों देंगे? पता नहीं ‘OMG: Oh My God!’ में ये दृश्य क्यों डाला गया है। वही बात हो गई कि मंदिरों में बजते हैं ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’, क्या किसी मस्जिद में सुना ‘रघुपति राघव राजा राम’?


🚩कुरान और बाइबिल की तुलना भगवद्गीता से नहीं होनी चाहिए, किसी भी पुस्तक की नहीं होनी चाहिए। न तो बॉलीवुड में कोई ऐसा विद्वान बैठा है जिसने साबित किया हो कि तीनों के कंटेंट एक हैं, न ही वहाँ कुछ ऐसा रिसर्च किया जाता है। फिर ये सब क्यों? कोई मौलवी भी नहीं मानेगा कि गीता में वही सब लिखा है जो कुरान में है। रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, संहिता, उपनिषद – कहाँ लिखा है कि गीता और कुरान-बाइबिल एक हैं? वेदों में तो पृथ्वी को चपटी नहीं बताया गया है।


🚩अब आप कहिए, पहली नजर में कोई भी व्यक्ति इस फिल्म को देखेगा तो उसे अपने ही धर्म से घृणा हो जाए। खुद अक्षय कुमार ने कहा था कि इस फिल्म को करने के बाद उन्होंने परिवार सहित वैष्णो देवी की यात्रा की योजना रद्द कर दी थी। फिर दर्शकों पर इसका क्या असर पड़ा होगा, सोचिए। आज कुछ हिन्दू ही कभी काँवड़ यात्रा का विरोध करते हैं तो कभी होली पर पानी की बर्बादी और दीवाली पर प्रदूषण की बात करते हैं, वो यूँ ही नहीं है। ‘OMG: Oh My God!’ जैसी फिल्मों ने चरणबद्ध तरीके से इसके लिए माहौल बनाया है।


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Thursday, July 13, 2023

मणिपुर हिंसा का मुख्य कारण क्या है ? कर्नल हनी बक्सी ने समझाया....जानिए


13 July 2023

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🚩मणिपुर 3 मई से हिंसा की आग में जल रहा है। 50 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोड़कर रिलीफ कैम्प में रहने को मजबूर हैं। अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में जानते हैं, कि इस हिंसा का कारण क्या है? और ये कैसे शांत हो सकती है?


🚩रिटायर्ड कर्नल हनी बक्शी ने ‘वाद’ नामक YouTube चैनल पर मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर बातचीत की है। इस दौरान उन्होंने कहा , कि नागा समुदाय भी ST में आते हैं, लेकिन उन्होंने हिंसा में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज के बीच टकराव आज से नहीं है, बल्कि ये उस इलाके की सभ्यतागत लड़ाइयाँ हैं। नागा-कुकी की लड़ाइयाँ होती थीं। 90 के दशक में एक पूरा गाँव जला दिया गया था। नागा समाज के भीतर भी कई समुदाय आपस में लड़ते रहते हैं।


🚩उन्होंने बताया कि ,... " जब तक भारतीय सेना उधर थी, ये लड़ाइयाँ नियंत्रण में रहीं। मणिपुर का सभ्य समाज, जो लोग केंद्र के विरोध में बोलते थे और AFSPA हटाने के लिए दबाव बनाया गया – वो अब चुप हैं। उन्होंने समझाया कि इस कानून के तहत किसी को भी गोली मारने की इजाजत नहीं थी, कोई किसी को ऐसे ही गोली नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि एनकाउंटर्स के समय एक खास परिस्थिति में गोली चलाने की अनुमति है।"


🚩‘AFSPA हटाए जाने के कारण हुआ नुकसान’

उन्होंने बताया कि भारतीय सेना के भीतर नियम इतने कड़े हैं , कि किसी ने गलत किया तो सज़ा मिलती ही मिलती है। कर्नल हनी बक्शी ने ‘संवाद’ कार्यक्रम में जानकारी दी , कि आफ्स्पा से सिर्फ एक लीगल प्रोटेक्शन मिलता है, लेकिन 2022 में मणिपुर में 15 पुलिस थानों से आफ्स्पा हटा दिया गया । अगले साल मार्च आते-आते 19 पुलिस थाना क्षेत्रों से ये नियम हट गए। जिसके बाद राष्ट्रहित में काम करने के लिए वहाँ सुरक्षा बलों को प्रोटेक्शन नहीं मिली।


🚩उन्होंने बताया कि सिविल सोसाइटी के दबाव में ऐसा किया गया। क्योंकि इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया था।अब भारतीय सेना तो चाहिए, लेकिन वो किस कानून के तहत संचालित हो? साथ ही उन्होंने बड़ी जानकारी दी कि भारतीय सेना के पास गोली चलाने की भी अनुमति नहीं है, बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के सेना फायर नहीं कर सकती।


🚩उन्होंने साफ कहा , कि ये लोकतांत्रिक राष्ट्र की सेना है । कानूनी बंधन हैं कुछ, सेना आएगी लेकिन लीगल प्रोटेक्शन तो चाहिए?


🚩उन्होंने कहा कि अगर किसी जवान ने गोली चला दी तो जीवन भर कोर्ट का चक्कर लग जाएगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक ‘शौर्य चक्र’ विजेता कई वर्षों तक अदालत के चक्कर लगाता रहा, ये सब आफ्स्पा के बावजूद हुआ। ऐसा इसीलिए हुआ, क्योंकि सिविल सोसाइटी से कुछ लोगों ने केस कर दिया था। उन्होंने बताया कि कई बार अपराधी उस क्षेत्र में भाग जाते हैं, जहाँ AFSPA लागू नहीं है और वहाँ गोली लगने पर केस हो जाता है।



🚩गौरतलब बात ये कि आफ्स्पा हटाने के फैसलों के पीछे कुछ NGO भी थे, जिनमें से कइयों की विदेशी फंडिंग अब रोकी गई है।


🚩मणिपुर की मौजूदा स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने बताया , कि अपराधियों को पकड़ने के बाद महिलाएँ आकर घेर लेती हैं।ऐसी स्थिति में महिलाओं पर गोली चलाने की बजाए अपराधियों को जाने दिया जाता है। 

उन्होंने कहा कि अब आफ्स्पा तभी आएगा, जब खुद लोग इसे माँगेंगे। उन्होंने बताया कि ‘नागा नेशनल काउंसिल (NNC)’ जैसी संगठनों के साथ डील के बाद मणिपुर शांत था और वहाँ विकास हो रहा था। उन्होंने बताया कि ऐसे कुछ ग्रुप्स को स्पेशल ट्रीटमेंट मिल गई, जिसके बाद कोई भी समूह बनाकर खुद को अलगाववादी बताने लगा।


🚩‘चीन भी कर रहा भारत में अशांति के लिए निवेश, दे रहा हथियार’


🚩उन्होंने बताया कि केवल मणिपुर में ही 55-56 अलगाववादी संगठन हैं, जिन्हें निसंदेह आतंकवादी कह लीजिए। वो सभी हथियारबंद हैं। उन्होंने बताया , कि पड़ोस से वहाँ हथियार आ रहा है, चीन ने इसमें भारी निवेश किया है। क्योंकि सब जानते हैं वो भारत में अशांति चाहता है।


🚩उन्होंने बताया कि जिन जज ने मेइती हिन्दुओं को ST में शामिल करने की सलाह दी, वो नॉन-मणिपुर थे, कोई मेइती नहीं थे। उन्होंने बताया कि खुद पहाड़ी कुकी समाज ने विदेशी घुसपैठियों को डिटेंशन सेंटरों में डालने के लिए कहा था।


🚩मणिपुर में मजहब कहाँ से आ गया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा... कि अगर एक ट्राइब इसाई बैनर के नीचे बात करती है, तो साफ तौर पर कहीं गड़बड़ जरूर है।

अमेरिकी राजदूत द्वारा मदद के ऑफर पर उन्होंने कहा कि ‘चर्च ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ का यहाँ बहुत प्रभाव है, लेकिन उन्हें नहीं लगता ये हो पाएगा क्योंकि ये हमारा आंतरिक मामला है।🚩UCC पर उन्होंने कहा कि शिक्षा और आवागमन के कारण नॉर्थ ईस्ट के लोगों में भारतीयता का भाव आया। उन्होंने कहा , कि उन्हें इसका खेद है , कि हमारे ही लोगों ने इन्हें स्वीकार नहीं किया।


🚩उन्होंने नॉर्थ ईस्ट के लोगों को ‘चिंकी’ कहे जाने वाले ट्रेंड का विरोध किया। उन्होंने कहा कि चर्च ने मणिपुर में बहुत विभाजन कर दिया है। इसाइयों में भी अलग-अलग संप्रदाय हैं।


🚩उन्होंने समझाया कि अंग्रेजों के आने से पहले ये लोग काफी अलग-थलग थे। ऐसे में 150 वर्षों में यहाँ तक आ पाए हैं। उन्होंने इसकी वकालत की कि नागा समाज को मीडिएटर बन कर सामने आना चाहिए और बातचीत करानी चाहिए। उन्होंने मणिपुर के भूगोल की बात करते हुए कहा कि घने जंगल और पहाड़ियों में काम करना मुश्किल होता है।


🚩उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया , कि सुरक्षा बल जब जाते हैं , तो ये लोग घंटी बजा कर सूचना दे देते हैं और सब इकट्ठे हो जाते हैं। 


🚩उन्होंने इसमें ड्रग्स एंगल की भी बात की। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा , कि अफगानिस्तान के बाद नॉर्थ ईस्ट के ‘माल’ की चर्चा होती है। उन्होंने कहा कि जहाँ आतंकवाद होगा, वहाँ ड्रग्स होगा ही। कर्नल हनी बक्शी ने बताया , कि जिन आतंकी संगठनों का जहाँ प्रभाव है वहाँ के व्यापारियों से वो रंगदारी लेते हैं। इस दौरान रिटायर्ड कर्नल ने मणिपुर में हिन्दू बनाम इसाई एंगल को भी नकार दिया।

https://youtu.be/pM3Zi7Idujw


🚩कर्नल हनी बक्शी ने कहा कि म्यांमार से कई समूह हथियारों के साथ मणिपुर में आए हैं। नागा समाज के भीतर भी 150 से अधिक ट्राइब्स हैं। इनके अधिकतर गाँव पहाड़ों के ऊपर हैं, जबकि सामान्यतः पानी के लिए नदी के किनारे घर बनाए जाते हैं । लेकिन पहाड़ पर से उन्हें सब पर नजर रखने में सहूलियत होती है। उन्होंने नॉर्थ ईस्ट में हत्याओं को बंद कराने में चर्च के रोल को स्वीकार किया।


🚩उन्होंने कहा कि आज की तारीख़ में जब हम ग्लोबल विलेज हैं, हर ट्राइब को अलग राज्य देना संभव नहीं है क्योंकि उनके भीतर भी कई समूह हैं।


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Wednesday, July 12, 2023

पादरी एक लड़की के कमर में हाथ डालकर कर रहा था डांस, उसकी विडियो पोस्ट करने वाले व्यक्ति को तमिलनाडु पुलिस ने किया गिरफ्तार...

12 July 2023

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🚩हिन्दुस्तान हिन्दू बाहुल्य देश है। अगर प्राचीनकाल की बात करें, तो भारत हिन्दुओं का ही देश है। क्योंकि मुगल और अंग्रेज भारत को लूटने आए उसके बाद ही भारत में मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोग बसे और जब भारत का विभाजन किया उस समय भी जाति के आधार पर ही किया गया था। फिर भी आज हिन्दू अपने ही देश में प्रताड़ित किया जा रहा है।


🚩उदहारण के तौर पर ज्यादा पुरानी नहीं अभी हाल ही की घटना है। दरअसल एक ईसाई पादरी, एक लड़की के साथ डांस कर रहा था, उसका वीडियो कनाल कन्नन ने ट्वीटर पर पोस्ट किया तो उनको गिरफ्तार किया गया।

प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बात करें, तो पादरी के वीडियो को मीडिया चैनल्स नही दिखा रहे हैं... क्योंकि ईसाई पंथ से पादरी है।वही दूसरी ओर कोई हिन्दू साधु-संत के खिलाफ साजिश के तहत कोई आरोप भी लगा दे, तो मीडिया 24 घंटे वही न्यूज दिखाती है।

इसलिए लगता है, " हिंदू अपने ही देश में दूसरे दर्जे का हो गया है क्या? "


🚩कनाल कन्नन (Kanal Kannan) दक्षिण भारतीय फिल्मों के प्रसिद्ध स्टंट मास्टर हैं। उन्हें तमिलनाडु पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वजह उन्होंने सोशल मीडिया में एक ऐसा वीडियो शेयर किया था, जिसमें एक लड़की के साथ एक पादरी नाचते हुए नजर आ रहा था। वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने तमिल में लिखा था कि विदेशी धर्मों की यही वास्तविक स्थिति है। धर्मांतरित हिंदुओं को इसके बारे में सोचना चाहिए और पाश्चाताप करना चाहिए।


🚩इस पोस्ट को लेकर कन्नन को 10 जुलाई को गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ सत्ताधारी डीएमके के एक नेता ने शिकायत दर्ज कराई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मामला नागरकोइल जिले का है। 18 जून 2023 को स्टंट मास्टर ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया था। इस वीडियो में एक पादरी खुद से काफी छोटी उम्र की लड़की के कमर में हाथ डालकर डांस कर रहा था। वीडियो के बैकग्राउंड में तमिल गाना बज रहा था।


🚩इस ट्वीट को लेकर कन्याकुमारी के रहने वाले ऑस्टिन बेनेट ने कन्नन के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। ऑस्टिन बेनेट DMK पार्टी से जुड़े व्यक्ति हैं और आईटी टीम के सदस्य हैं।


🚩ऑस्टिन की शिकायत पर कनाल कन्नन के खिलाफ नागरकोइल साइबर थाने में 2 धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। इसी मामले में पुलिस ने कन्नन को सोमवार को पूछताछ के लिए बुलाया। सवाल-जवाब के बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया।


🚩तमिलनाडु के संगठन हिन्दू मुन्नानी ने तमिलनाडु पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध किया है। गिरफ्तारी के विरोध में संगठन ने पुलिस स्टेशन के आगे प्रदर्शन किया। मीडिया से बात करते हुए हिन्दू मुन्नानी के प्रदेश राज्य प्रवक्ता एलंगोवन ने इसे फर्जी केस करार दिया है। उन्होंने कहा कि जिस वीडियो को शेयर करने की वजह से कन्नन को गिरफ्तार किया गया है, वह पहले से ही वायरल है। हिन्दू मुन्नानी ने इस कार्रवाई को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताते हुए कहा कि DMK इस पर राजनीति कर रही है।


🚩एलंगोवन ने तमिलनाडु सरकार की हिन्दू विरोधी मामलों में शिकायतों पर ख़ामोशी को लेकर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि , एक सीमित विचारधारा से अलग सोच रखने वाला हर व्यक्ति तमिलनाडु सरकार द्वारा परेशान किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल कन्नन को पेरियार विरोधी बयानबाजी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सितंबर 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले में उन्हें सशर्त जमानत प्रदान की थी।


🚩इस घटना को हल्के में नही लेना चाहिए । भले घटना छोटी दिख रही हो... लेकिन इसको गंभीरता से लेना चाहिए । क्योंकि ये अप्रत्यक्ष रूप से मिशनरीज की ही धमकी है, कि हम कुछ भी गलत कार्य करें... लेकिन तुम लोग ( भारतीय हिन्दू ) हमारे खिलाफ नहीं बोल सकते । अगर किसी ने कुछ बोला तो हम उसको जेल भिजवा देंगे !!


🚩कोई हिन्दू साधु-संत अगर धर्मान्तरण रोकते हैं, तो उनकी हत्या करवा दी जाती है या फ़िर उन्हें  झूठे केस लगाकर, मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर जेल भिजवा दिया जाता है। मिशनरीज़ भारत में धर्मांतरण द्वारा इसाइयत को बढ़ावा दे रही हैं। इनका तो बाद में वोटबैंक बनाकर भारत देश में अपनी सत्ता स्थापना का मिशन चल ही रहा है , इसलिए इनसे सावधान रहना होगा।


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Tuesday, July 11, 2023

बॉलीवुड की हर फिल्म एक ही मसाला... " भारतीय सनातन संस्कृति का तिरस्कार और पाश्चात्य छिछोरेपन का प्रचार-प्रसार "

11  July 2023

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🚩लोगों को ज्ञान देने के मामले में भारत की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, जिसे बॉलीवुड भी कहा जाता है – वो सबसे आगे हैं। लेकिन, जब उदाहरण सेट करने की बात आती है तो वो इसके उलट काम करते हैं। जैसे, आपको आम तौर पर बॉलीवुड की अभिनेत्रियाँ महिलाओं के बारे में बात करती हुई मिल जाएँगी और फेमिनिज्म का बीड़ा उठाए कई फ़िल्मी हस्तियाँ मिल जाएँगी। लेकिन, ये वही लोग हैं जिनके गिरोह ने हमेशा से फिल्मों के जरिए महिला को एक उपभोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं दिखाया है।


🚩महिलाओं के बेहूदा चित्रण में बॉलीवुड सबसे आगे रहा है। आप बॉलीवुड के गानों को ही उठा लीजिए। आजकल गानों के बोल और संगीत से ज्यादा चर्चा इस बात की रहती है कि अभिनेत्री को इसमें कितने कम कपड़े पहने हुए दिखाया जाए !!

अभिनय और कला के ज़्यादा चर्चा इस बात की रहती है , कि किस अभिनेत्री ने बिकनी में इंस्टाग्राम पर तस्वीर अपलोड की है। ‘पठान’ फिल्म को ही ले लीजिए । जानबूझकर दीपिका पादुकोण को भगवा रंग की बिकनी में दिखाया गया और इस पर कंट्रोवर्सी पैदा की गई।


🚩बॉलीवुड में लंबे समय तक काम करने वाली अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के एक बयान को ही देख लीजिए। ‘मिस वर्ल्ड’ रह चुकीं प्रियंका चोपड़ा अमेरिका में गायक निक जोनास के शादी के बाद वहीं रहती हैं और हॉलीवुड में भी सक्रिय हैं। प्रियंका चोपड़ा का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसमें वो कहती दिख रही हैं , कि बॉलीवुड फ़िल्में केवल ‘हिप्स और बूब्स (जाँघों और स्तन)’ तक ही सिमटी हुई हैं। ये वीडियो एमी अवॉर्ड्स 2016 का है। वीडियो में प्रियंका चोपड़ा डांस करते हुए बताती हैं कि कैसे बॉलीवुड में सिर्फ ‘Hips & Boobs’ चलता है।


🚩इसके बाद कुछ बॉलीवुड के फैंस प्रियंका चोपड़ा की आलोचना करने लगे और कहने लगे कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के साथ कई दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसका मजाक बनाया जाए। कोई कुछ फिल्मों के नाम गिनाने लगा तो , किसी ने कह दिया कि प्रियंका चोपड़ा ने भारतीय क्लासिकल नृत्य के बारे में नहीं सुना है। कुछ ने प्रियंका चोपड़ा पर व्यक्तिगत हमला करते हुए उन्हें ही फेक बता दिया और उनके मेकअप और व्यवहार पर सवाल उठा दिए।


🚩जबकि ज़रूरत ये है कि बॉलीवुड को हम आत्ममंथन करने के लिए मजबूर करें। कितनी बॉलीवुड फिल्मों में आपने भारत के विभिन्न इलाकों के लोक-नृत्यों की प्रस्तुति देखी है? आंध्र प्रदेश की कुचिपुड़ी, असम का बीहू, बिहार का बिदेसिया, हरियाणा का झूमर, हिमचाल प्रदेश का झोरा, जम्मू कश्मीर का रउफ, कर्नाटक का यक्षगान, केरल की कथकली, महाराष्ट्र की लावणी, ओडिशा का गोतिपुआ, बंगाल का लाठी, राजस्थान का घूमर, तमिलनाडु का भरतनाट्यम, उत्तर प्रदेश की कजरी, उत्तराखंड का भोटिया, मध्य प्रदेश का जवारा, छत्तीसगढ़ का गौर मारिया, गोवा का देक्खनी, झारखंड का सरहुल, अरुणाचल प्रदेश का बुइया, मणिपुर का डोल चोलम, मिजोरम का छेरव, नागालैंड का रेंगमा, त्रिपुरा का होजागिरी, सिक्किम का छाम और लक्षद्वीप का लावा – कितनी फिल्मों में ऐसे नृत्य आपको देखने मिलते हैं..... ???


🚩बिहार के अलग-अलग प्रांतों में एक नहीं बल्कि दर्जन भर लोकनृत्य आपको मिल जाएँगे , लेकिन कभी बॉलीवुड ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की कोशिश !? नहीं की !!

भारत की सबसे बड़ी इंडस्ट्री--हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के तख्त पर लम्बे समय से काबिज रहने के बावजूद बॉलीवुड ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया। हाँ, गुजरात का गरबा और पंजाब का भांगड़ा ज़रूर दिख जाता है , लेकिन इसे भी गलत तरीके से पेश किया जाता रहा है। अगर बॉलीवुड ने इन परंपरागत लोकनृत्यों को गंभीरता से लिया होता तो इनमें से अधिकतर आज विप्लुत होने की कगार पर नहीं होते ।


🚩इसके उलट बॉलीवुड ने क्या चुना?

जो पश्चिमी फ़िल्में दिखा रही थीं, उसे ही बॉलीवुड ने आधुनिक मान कर उसकी नक़ल करनी शुरू कर दी।

...यानी, अमेरिका और यूरोप अपनी फिल्मों के जरिए अपनी स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देते रहे और भारत की मनोरंजन इंडस्ट्री ने भी उनकी ही संस्कृति को बढ़ावा देने का बीड़ा उठा लिया। भारतीय वाद्ययंत्रों का प्रयोग कम होता चला गया। विदेशों में गाने फिल्माए जाने लगे। कम कपड़ों में लड़कियों को उपभोग की वस्तु की तरह पेश किया जाने लगा। फिर यही सब चलता रहा।


🚩भारतीय पहनावे और पोशाकों को बॉलीवुड ने अपनी फिल्मों में जरा भी स्थान नहीं दिया। हाल ही में आई ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ को ही देख लीजिए। करण जौहर की फिल्म और प्रेम कहानी के अलावा फैमिली ड्रामा के नाम पर इसे खूब प्रचारित किया गया, लेकिन ट्रेलर में क्या दिखा? वही, अपनी छाती उघाड़ कर चलता हुआ एक लड़का, हीरो के सिक्स पैक एब्स पर फोकस और रेन डांस। अब तो स्थिति ये हो गई हैकि बॉलीवुड की हर वेब सीरीज गालियों और तथाकथित बोल्ड सीन्स के बिना पूरी ही नहीं होती।


🚩इस संबंध में कभी सलमान खान ने बड़ी-बड़ी बातें की थीं और कहा था , कि वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे , जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ हो। इसकी भी पोल खुल गई। TRP और व्यूज की चाहत में ‘बिग बॉस OTT’ लाया गया और फिर इसमें भी वही मसाला परोसा गया...

लिपलॉक और सेक्स सीन के नाम पर अब बॉलीवुड की फिल्मों का प्रमोशन होने लगा है। कोई छोटी-मोटी नौकरी करने वाले हीरो को लाखों की गाड़ियों में चलते हुए और एन्जॉय करते हुए दिखाया जाता है – क्या वास्तविकता में ऐसा संभव है !!?


🚩JioCinema पर आ रहे ‘बिग बॉस ओटीटी’ के दूसरे सीजन का एक वीडियो खूब वायरल हुआ। इसमें लेबनीज एक्टर जैद हदीद ने भारतीय अभिनेत्री आकांक्षा पुरी को जम कर किस किया।

...और बाद में औपचारिक रूप से सलमान खान ने ऑडिएंस से माफ़ी माँगते हुए कह दिया , कि वो इस तरह के कंटेंट को अपने शो में समर्थन नहीं करते। यहां तक की आकांक्षा पुरी को शो से निकाला भी गया। लेकिन, इसके नाम पर ‘बिग बॉस ओटीटी’ को बेचने की कितनी कोशिश की गई ये तो सभी ने देखा।


🚩आकांक्षा पुरी ने शो से निकलने के बाद कहा , कि वो तो बस अपना टास्क पूरा कर रही थीं और ये किस भी उसी टास्क का हिस्सा था, जिससे उनकी टीम को उस दिन जीत मिली।

उन्होंने कहा कि वो तो टास्क पूरा करने के लिए पूजा भट्ट और साइरस ब्रोचा को किस करने के लिए भी तैयार थीं। वैसे ये आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि आजकल कई वेब सीरीज में ये आम बात हो गई है। ‘उल्लू’ एप के कंटेंट्स हो या हॉटस्टार पर ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’, लेस्बियन रोमांस नया नॉर्मल है।


🚩आकांक्षा पुरी का कहना है , कि जैद हदीद के साथ उनका किस 30 सेकेंड्स चलना था । लेकिन बाद में वो बह गए और लगातार किस करने लगे। आकांक्षा पुरी ने सफाई दी है , कि उनके मन में जैद हदीद के लिए कोई फीलिंग्स नहीं थी । उन्होंने जैद पर दोष मढ़ते हुए कहा कि ये एक सिंपल सा टास्क था, लेकिन वो टास्क को टास्क तक सीमित न रख सके ।


🚩शो से बाहर निकलने के बाद आकांक्षा को शादी, किस और हुकअप के लिए अलग-अलग विकल्प दिए गए... और इंटरव्यू में उनकी राय माँगी गई । तो उन्होंने सलमान खान से शादी की इच्छा जता दी। हुकअप के संबंध में उन्होंने कहा , कि ये जितने ज्यादा लोगों से हो उतना अच्छा है।


🚩अब यहां एक बात तो बिल्कुल क्रिस्टल क्लियर है , कि बिग बॉस के उस विवादित सीन के बाद सलमान की माफी फिर आकांक्षा को शो से निकालना और फिर आकांक्षा की अपने फॉलोवर्स को सफाई देना... यह सब कुछ इन अभिनेताओं के गिरे हुए और घटिया मानसिकता को दर्शाता है।

...और फिर भी हम देखना समझना नहीं चाहते !!!


🚩क्या दुर्भाग्य है देश का कि , ऐसे ही लोग आज लाखों फॉलोवर्स लेकर इंस्टाग्राम आदि सोशल साइट्स पर भी युवाओं के आदर्श बनते हैं और आज के दिशा विहीन युवा वही करते हैं..., जो ये ढोंगी ऐक्टर्स करते और कहते हैं । तभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की एक नई ब्रीड खड़ी हो गई है जो आजकल ‘सक्सेस मन्त्र’ भी बाँटती नजर आती है।


🚩आजकल बॉलीवुड के विमर्श का वो समूह थोड़ा ऊपर आया है, जिसे अब तक दबा कर रखा गया था। इसी का परिणाम है कि हमें ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरल स्टोरी’ जैसी फ़िल्में देखने को मिलीं और ये ब्लॉकबस्टर हुईं। इन दोनों के अलावा भी इस्लामी धर्मांतरण और आतंकवाद की समस्या से लेकर भारतीय इतिहास और संस्कृति पर कई फ़िल्में बनीं। अंत में बॉलीवुड ने राष्ट्रवाद के युग के दोहन का भी निर्णय लिया और रामायण के नाम पर ‘आदिपुरुष’ परोस दी।


🚩इसमें हनुमान जी से ‘जलेगी तेरे बाप की’ जैसे डायलॉग्स बुलवाए गए, माँ सीता के कपड़ों का ध्यान नहीं रखा गया और भगवान श्रीराम के व्यवहार को ही बदल दिया गया। मनोज मुंतशिर, जिन्होंने फिल्म के डायलॉग्स लिखे थे, ऐसे सवालों पर निर्देशक से पूछने की सलाह देने लगे। फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई। सैफ अली खान को रावण के रूप में दिखाया गया। पुष्पक विमान की जगह चमगादड़ ने ले ली और सोने की लंका डरावनी और काली हो गई।

...ती ये है इन लोगों के रिसर्च का स्तर।



🚩ऐसे समय में जब हॉलीवुड में एक से बढ़ कर एक फ़िल्में बनती आई हैं, जिसने दुनिया भर की अलग-अलग समस्याओं को फिल्मों के जरिए उकेरा है – बॉलीवुड बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड पर ही अटका हुआ है। इनके लिए हर फिल्म लव स्टोरी है, लड़का-लड़की की कहानी है और सब कुछ इसी के इर्दगिर्द चलता है। एक लड़का और एक लड़की रोमांस करते हैं तो ब्रह्मास्त्र अपने नियम बदल लेता है – रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की फिल्म में यही दिखाया गया।🚩अगर उदाहरण देने की बात आए तो एक एक प्रोपेगंडा के बॉलीवुड में कई उदाहरण मिल जाएँगे। किस तरह ‘OMG’ फिल्म के जरिए हिन्दू धर्म को बदनाम किया गया, ये किसी से छिपा नहीं है। ‘पाताल लोक’ में एक पुजारी को गन्दी गालियाँ बकते हुए और मांस भक्षण करते हुए दिखाया गया। ‘तांडव’ में हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाया गया। ‘PK’ फिल्म में भगवान शिव का जो चित्रण हुआ, क्या दूसरे मजहबों के आराध्यों को उस तरह से प्रदर्शित करने की हिम्मत भी की जा सकती है !?



🚩आपको उस घटना के बारे में पढ़ना चाहिए, जब कैसे फिल्म निर्माता फराह खान, अभिनेत्री रबीना टंडन और कॉमेडियन भारती सिंह को सिर्फ इसीलिए वेटिकन सिटी के प्रतिनिधि बिशप के सामने उपस्थित होकर हस्तलिखित माफ़ी माँगनी पड़ी थी, क्योंकि उन्होंने बाइबिल के कुछ शब्दों का मजाक बना दिया था।

...यहाँ तो हर एक फिल्म में रामायण-महाभारत की कहानियों को ही आए दिन गलत तरीके से एक्सप्लेन किया जा रहा है और साथ ही उनका रेफरेंस भी गलत और उल्टा-सीधा दिया जा रहा है।


🚩आप सोचिए, आजकल के बच्चे रील्स बनाने के नाम पर कम से कम कपड़े पहन कर मोबाइल फोन के सामने अश्लील फ़िल्मी गानों पर ही नाच करते हुए क्यों दिखते हैं, वो स्थानीय लोकनृत्य या फिर लोकगीतों की प्रैक्टिस करते क्यों नहीं दिखते? क्योंकि बॉलीवुड ने उनके मन में बिठा दिया है कि कपड़े उतार कर अश्लील गानों पर डांस करना ही ‘कूल’ और ‘मॉडर्न’ है, बाकी सब तो पुरानी चीजें हैं जिन्हें हमें छोड़ देना है, वरना हम पुराने खयालातों के कहाएँगे।


🚩हॉलीवुड फिल्मों को देखिए, कैसे वो पश्चिमी संस्कृति को लेकर दुनिया भर में जाते हैं और दुनिया के कई फिल्म इंडस्ट्रीज पर उनका प्रभाव है। ‘Apollo 13’ (1995) फिल्म के जरिए चाँद पर जाने की अमेरिकी प्रयास को दिखाया गया। ‘Dances With Wolves (1990)’ में अमेरिका के मूलनिवासियों के जीवन को दिखाया गया। ‘Do The Right Thing (1989)’ में स्ट्रीट पर रहने वाले लोगों का जीवन दिखा। ऐसी अनगिनत फ़िल्में हैं। लेकिन, भारत में ऐसा कुछ नहीं होता।


🚩यहाँ अगर भारत की कहानी पर भी फिल्म बनाई जाती है तो प्रेरणा अमेरिका से ही लेकर आते हैं ये लोग। ‘आदिपुरुष’ में रामजी व हनुमान जी को फर और बेल्ट पहनाया जाता है। वानर सेना को चिम्पांजी बना दिया जाता है। रावण के किरदार को डरावना बना दिया जाता है। रावण भारतीय वाद्ययंत्र नहीं बल्कि गिटार बजाता है। जब सब कुछ यहाँ की किताबों में वर्णित है, गाँव-गाँव में रामलीला होती है, तो ऐसे में प्रेरणा लेने के लिए ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ और ‘लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ सीरीज में घुसना सही है क्या?


🚩कुल मिला कर गौरतलब बात ये है , कि बॉलीवुड फिल्मों की 2 ही रेसिपी होती है – अश्लीलता और हिन्दू धर्म का मजाक। कम कपड़ों में हीरोइनें और हिन्दू देवी-देवताओं का हास्यास्पद और अपमानजनक चित्रण। और जब इस पर आवाज उठाई जाएगी, तो आपको या तो महिला विरोधी बता दिया जाएगा या फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी का विरोधी।

माँ काली को सिगरेट फूंकते दिखाने और और भगवान शिव को त्रिशूल लेकर भागते हुए दिखाने वाले , भला भारतीय संस्कृति और परंपरा का सम्मान करना क्या जानें?


🚩बॉलीवुड जब हॉलीवुड से ही कंटेंट चुरा रहा है तो उसे ये भी सीखना पड़ेगा कि अपनी संस्कृति और परंपरा को बढ़ावा कैसे देते हैं। अपने देश की नीतियों, उपलब्धियों और सरकार के नैरेटिव को कैसे इस तरह आगे बढ़ाते हैं कि सामने वाले को पता तक नहीं चलता और वो उसका अनुसरण करने लगता है। ये ‘हिप्स-बूब्स’ की गुलामी और हिन्दू धर्म के अपमान करने के शौक से निकल कर,  बॉलीवुड को दिखाना पड़ेगा , कि भारतीय परिधान, नृत्य और कलाएँ भी ‘कूल’ और ‘मॉडर्न’ हैं।


लेखक : अनुपम कुमार सिंह


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Monday, July 10, 2023

काँवड़ यात्रा में न जाति का भेद, न धन का मोल… सारे शिव भक्तों की एक ही पहचान....

10 July 2023

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🚩श्रावण (सावन) के महीने में आपने सड़क पर शांति से काँवड़ लेकर जाते भक्तों को देखा होगा, जिन्हें काँवड़िया भी कहते हैं। नदी से जल भरने से लेकर शिवलिंग पर अर्पित करने तक, ये काँवड़िए रास्ते भर बाबा का ध्यान करते रहते हैं, उसी सोच में मगन रहते हैं। इनकी संख्या हजारों में हो, फिर भी ये बिना किसी को परेशान किए अपनी राह चलते जाते हैं। तभी इनके स्वागत में जगह-जगह लोग इनकी सेवा के लिए लगे रहते हैं। यही तो है हिन्दू धर्म की महानता!


🚩धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल या पवित्र नदियों का जल अर्पित करने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहते हैं।


🚩यह जल पवित्र नदियों से अपने कंधे पर लाकर भगवान शिव को सावन के महीने में अर्पित किया जाता है, काँवड़ यात्रा के दौरान हर भक्त बोल-बम के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं।


🚩मान्यता के अनुसार, काँवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेध यज्ञ जितना फल प्राप्त होता है।


🚩काँवड़, इसमें एक डंडे के सहारे दो पात्र दोनों तरफ लटके होते हैं, जिनमें जल होता है। डंडे वाले हिस्से को कंधे पर रखा जाता है। सजावट के लिए काँवड़ में फूल और रंगीन कपड़े भी लगे होते हैं। प्राचीन काल से ही काँवड़ यात्रा चली आ रही है।


🚩 भगवान शिव की जब से पूजा हो रही है, जब से उन्हें जल चढ़ाया जा रहा है, तभी से इस यात्रा का अस्तित्व है। 12 ज्योतिर्लिंगों ही नहीं, शिव के हजारों अन्य मंदिरों तक काँवड़ यात्रा निकाली जाती है। भगवान परशुराम को पहला काँवड़िया माना गया है।


🚩उदाहरण के लिए झारखंड के वैद्यनाथ धाम को ले लीजिए। बिहार और झारखंड के अधिकतर लोग यहीं जल चढाने आते हैं। आपको कई काँवड़िए तो ऐसे मिलेंगे, जो कई दशकों से लगातार जल चढ़ाने आ रहे हैं, किसी भी वर्ष गैप किए बिना। कोई कुछ प्रार्थना लेकर आता है, तो किसी की प्रार्थना पूरी हो जाती है तो बाबा के यहाँ हर वर्ष उपस्थिति दर्ज कराता है। कई निःस्वार्थ भाव से जाते हैं। कइयों के पास घूम-घूम कर तीर्थाटन के लिए धन या समय नहीं होता, वो भी एक बार काँवड़ यात्रा में समय देकर धन्य पाता है स्वयं को।


🚩बाबा वैद्यनाथ को जल अर्पित करने के लिए काँवड़िए सबसे पहले गंगा नदी के दक्षिण में स्थित और भागलपुर शहर से 25 किलोमीटर पश्चिम में स्थित सुल्तानगंज में पहुँचते हैं। इसके लिए वो बस, ट्रेन, कार या किसी भी माध्यम का इस्तेमाल कर सकते हैं। फिर यहाँ से वो 111 किलोमीटर की यात्रा पर पैदल निकलते हैं, देवघर के लिए। केवल सावन महीने में कम से कम 10-15 लाख काँवड़िए अकेले बाबाधाम पहुँचते हैं। बाकी ज्योतिर्लिंगों के लिए भी यात्री पहुँचते हैं। ये यात्रा धैर्य की है, अनुशासन की है, समता की है , साथ की है।


🚩श्रावणी मेला इस दौरान आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है। इनमें से अधिकतर बातें आपको पता हैं। लेकिन, क्या आपने गौर किया कि सावन महीने में काँवड़ यात्रा में कैसे जाति से लेकर लिंग और अमीर-गरीब तक का फर्क मिट जाता है और बाबा के सामने सब समान हो जाते हैं, एक-दूसरे से समान व्यवहार करते है। सब एक-दूसरे को यात्रा के दौरान ‘बम’ कह कर ही पुकारते हैं। ना किसी का कोई उपनाम होता है, ना कोई जाति।


🚩जब गाँव से काँवड़ियों का जत्था निकलता है, तो उसमें सभी जाति के लोग होते हैं। इस दौरान स्वतः ही सब एक-दूसरे के नाम मर ‘बम’ लगा कर पुकारते हैं। ‘अरे वो अभिषेक बम किधर गया?’, ‘फलाँ गाँव वाले बम कितने बजे निकले?’ – इस तरह के सवाल आपको भोजपुरी, मैथिलि और मगही में सुनाई देंगे। कौन नाई है, कौन धोबी है, कौन ब्राह्मण है, कौन चर्मकार है, कौन क्षत्रिय है, कौन वैश्य है – इस दौरान सब ये भूल जाते हैं।


🚩सबके कपड़े समान रहते हैं। अगर आपने काँवड़ियों के कपड़ों पर गौर किया तो पाएँगे तो सभी भगवा वस्त्र ही धारण किए होते हैं। कोई हाफ पैंट तो किसी ने धोती पहन रखी होती है। ऐसा नहीं कि कोई अमीर है तो वो सूट-बूट में चल रहा होता है और बेचारा गरीब है तो उसने धोती पहन रखी है। यहाँ बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए सबके तन पर उसी प्रकार का वस्त्र होते हैं। हाँ, थोड़ी-बहुत भिन्नता डिजाइन या प्रकार में हो सकती है, लेकिन वो नगण्य ही।


🚩इस दौरान बहुतेरे महिला-पुरुष का भी ऊँच-नीच वाला भेद नहीं रहता, महिलाएँ भी ‘बम’ ही होती हैं। अक्सर काँवड़ियों के किसी एक गाँव या रिश्तेदारी के समूह का नेतृत्व करने वाले को ‘सरदार बम’ कह दिया जाता है तो जो रुपए-पैसों के खर्च को देख रहा हो, वो ‘खजांची बम’ हो गया। बच्चे ‘बाल बम’ हो जाते हैं। इस दौरान बुजुर्ग ‘बमों’ का खास ध्यान रखा जाता है और गाँव में किसी से मतलब न रखने वाले लोग भी यहाँ आकर सामाजिक हो जाते हैं।

🚩किसी को नायक उसकी जाति या रुतबा देख कर नहीं बना दिया जाता, बल्कि उसके अनुभव और कितनी बार उसने काँवड़ यात्रा की है, ये मायने रखता है। नियम-कायदे किसी अमीर के लिए भी होते हैं, जो किसी गरीब के लिए। रास्ते में भोजन-पानी से लेकर सब कुछ समान होता है। सुल्तानगंज से बाबाधाम की दूसरी सबके लिए वही है, सबको साथ जाना है। एक ही प्रकार के वस्त्र में सभी जाति और सभी हैसियत वाले लोग एक-दूसरे की कदर करते हुए आगे बढ़ते हैं।


🚩तभी तो रास्ते में जगह-जगह उनके स्वागत के लिए लोगों ने टेंट लगाए होते हैं। उनके पाँव धोए जाते हैं। उन्हें खाने को थमाया जाता है। रास्ते के स्थानीय लोग खुद ये पहल करते हैं, जिसमें बच्चों से लेकर युवाओं तक हिस्सा लेते हैं। शीतल जल देकर काँवड़ियों का थकान मिटाया जाता है। ये यात्रा नहीं कर रहे होते हैं तो काँवड़ यात्रियों की सेवा कर के ही उस फल को प्राप्त कर लेते हैं। किसी की सेवा करते समय जाति या संपत्ति का ब्यौरा नहीं पूछा जाता, काँवड़ यात्री होना ही काफी है।


🚩कोई ज्योतिर्लिंग ही क्यों, छोटी-छोटी काँवड़ यात्राएँ भी होती हैं। पूरे भारत में ऐसे सैकड़ों शिवालय हैं और ज्योतिर्लिंगों तक न जा पाने वाले लोग यहाँ ख़ुशी से लेकर महादेव को जल अर्पित करते हैं।


🚩उज्जैन में त्रिवेणी घाट से महाकालेश्वर मंदिर तक काँवड़ यात्रा निकलती है। उत्तराखंड के हरिद्वार और फिर गोमुख और गंगोत्री तक भी काँवड़ यात्रा जाती है। इसी तरह हर मंदिर के लिए जल भरने का स्थान और यात्रा का रूट पहले से तय होता है। हाँ, रास्ते में असामाजिक तत्व कभी-कभी उन्हें ज़रूर परेशान करते हैं, लेकिन, जाति-धन के भेद को मिटाती ये काँवड़ यात्रा सनातन काल से जारी है, सतत चलती रहेगी।


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Sunday, July 9, 2023

देश भर में ईसाई मिशनरियां धर्मान्तरण फैला रही हैं, रोकना जरूरी हैं, नही तो होगी भयंकर हानियां...... जानिए...

9 July 2023

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🚩सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है।


🚩महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।


🚩ओडिशा में 11 नाबालिग हिंदुओं के धर्मांतरण पर NCPCR सख्त


🚩ओडिशा (Odisha) के जगतसिंहपुर क्षेत्र के काटेसिंहपुर गाँव में कनाडाई नागरिक द्वारा धर्मांतरण की कोशिश की जा रही थी। इस मामले में ऑपइंडिया की रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने संज्ञान लिया है। NCPCR ने आरोपित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जगतसिंहपुर प्रशासन को पत्र लिखा है।


🚩NCPCR ने जगतसिंगपुर के कलेक्टर पारुल पटवारी को लिखे पत्र में कहा है कि 11 नाबालिग हिंदू बच्चों को एक कार्यक्रम में अवैध रूप से धर्मांतरित किया जा रहा था। इस कार्यक्रम को कनाडाई नागरिक एपेन मोहन किडंगलील (Eapen Mohan Kidangalil) ने तिर्तोल की दो अन्य मिशनरियों के साथ मिलकर आयोजित किया था।


🚩राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पत्र में आगे कहा, “आयोग इस मामले की गहन जाँच और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध करता है। यह पत्र मिलने के 3 दिन के भीतर बच्चों की जानकारी और अन्य सभी आवश्यक दस्तावेज आयोग के सामने प्रस्तुत किए जाएँ।”


🚩एपेन मोहन किडंगलील पर ओडिशा पुलिस ने 24 जून 2023 को मामला दर्ज किया था। किडंगलील पर प्रार्थना सभा आयोजित करने के नाम पर अनुसूचित जनजाति (ST) समाज के गरीब लोगों को लालच देकर ईसाई बनाने की कोशिश का आरोप है। इन लोगों में बच्चे भी शामिल हैं। इसके बाद उसे पकड़कर VHP के कार्यकर्ताओं ने पुलिस को सौंप दिया।


🚩22 जून 2023 को VHP कार्यकर्ताओं को जगतसिंहपुर क्षेत्र के काटेसिंहपुर गाँव में धर्मांतरण कार्यक्रम की जानकारी मिली थी। जब वे मौके पर पहुँचे तो पाया कि कनाडा की नागरिकता रखने वाला एपेन मोहन करीब 33 स्थानीय निवासियों को ईसाई बनने के लिए उकसा रहा था। इनमें महिलाओं सहित 11 नाबालिग भी थे।


🚩ईसाई धर्मांतरण की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार 


🚩मध्य प्रदेश के इंदौर में गणेश और जॉनी पकड़ा गया है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर में बेदराम गुड़िया और राधे निषाद विरासत की गिरफ्तारी हुई है। दो अलग राज्यों के शहरों में हुई इस गिरफ्तारी में समानता यह है कि इन पर हिंदुओं को लालच देकर ईसाई बनाने की कोशिश का आरोप है।


🚩उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हिंदुओं को ईसाई बनाने की तैयारी बकायदा सभा लगाकर की जा रही थी। लेकिन बजरंग दल कार्यकर्ताओं के अचानक पहुँच जाने के कारण रंग में भंग पड़ गया। विरोध और हंगामे के बाद मौके पर पुलिस आई और दो लोगों की गिरफ्तारी हुई। यह मामला सीतापुर जिले में सकरन थाना क्षेत्र अंतर्गत पकरिया पुरवा गाँव का है। दैनिक भास्कर रिपोर्ट के अनुसार, गाँव के बेदराम गुड़िया के घर पर सभा लगाकर सैकड़ों हिंदुओं को इकट्ठा किया गया था। आरोप है कि पादरी राधे निषाद विरासत ईसाई मजहब की पुस्तकों और यीशु मसीह के नाम पर लोगों का धर्मांतरण कराने की कोशिश कर रहा था।


🚩स्थानीय ग्रामीणों ने इसकी सूचना बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को दी। उन्होंने मौके पर पहुँचकर धर्मांतरण की गतिविधि को रोकने की कोशिश की। लेकिन इससे सभा में मौजूद महिलाएँ भड़क गईं। कई महिलाओं ने लाठी-डंडे लेकर बजरंग दल कार्यकर्ताओं पर हमला कर दिया। इससे कुछ लोगों को चोट भी आई है। मौके पर पुलिस भी पहुँची तो आरोपितों के पास से ईसाइयत से जुड़ी किताबें व कुछ अन्य दस्तावेज भी मिले। इसके बाद पुलिस ने धर्मांतरण के लिए सभा का आयोजन करने वाले मकान मालिक बेदराम गुड़िया और पादरी राधे निषाद विरासत को गिरफ्तार कर लिया।


🚩इंदौर में भी लालच देकर धर्मांतरण की कोशिश


🚩धर्मांतरण का दूसरा मामला मध्य प्रदेश के इंदौर में बाणगंगा इलाके का है। रमा देवी कुर्मी नाम की महिला ने अपने पड़ोसी गणेश और जॉनी नामक एक व्यक्ति पर धर्मांतरण के लिए लालच देने का आरोप लगाया है। आरोप है कि गणेश के घर में हर सप्ताह प्रार्थना सभा होती है। इसमें शामिल होने वाले हिंदुओं को पैसों का लालच दिया जाता है।

🚩रमा देवी ने कहा है कि 30 जून 2023 को जॉनी और उसकी पत्नी शाली उनसे अपने घर में सभा रखने को कहा। इनकार करने पर जॉनी और उसकी पत्नी ने हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करना शुरू कर दिया। बहस के बाद रमा देवी ने दोनों को घर से भगा दिया। इसके बाद 3 जून को जॉनी और उसकी पत्नी शाली एक बार फिर रमा देवी के घर आ धमके। इस बार उनके साथ में गणेश भी था।


🚩आरोप है कि इन लोगों ने रमा देवी को लोन माफ कराने, बच्चों की पढ़ाई और शादी के लिए पैसे देने समेत कई तरह के प्रलोभन दिए। इसके बाद रमा देवी ने फोन कर अपने परिचितों और पुलिस को बुला लिया। पुलिस ने 295-A के तहत मामला दर्ज कर गणेश और जॉर्ज को गिरफ्तार कर लिया है।


🚩रमा देवी का कहना है कि गणेश जिस फैक्ट्री में काम करता था, वहाँ भी लोगों को धर्मांतरण के लिए लालच देता था। इसके चलते फैक्ट्री मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया था। कोरोना के समय जब उसकी पत्नी का निधन हो गया तो वह उसे दफनाने पर अड़ गया था। रमा देवी के अनुसार एक बार वह पूजा कर रहीं थी तो गणेश ने उनसे कहा कि इस तरह की पत्थर की मूर्ति भगवान नहीं हो सकती। यीशू को भगवान मानकर ईसाई बन जाओ।


🚩आप लोग अब समझ सकते हैं, कि किस तरह से ये ईसाई मिशनरी वाले ,भोले भाले लोगों को बेवकूफ बना कर धर्म परिवर्तन कराते  हैं,वैसे ये लोग धर्म परिवर्तन का काम एक वर्ग विशेष के साथ ही करते हैं। सभी हिन्दू ऐसे लोगों पर ध्यान दें और उनको मुँहतोड़ जवाब दे।


🚩भारत सरकार से देश के सभी हिन्दूओ की मांग है कि भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा हो रहे धर्मान्तरण के धंधे पर रोक लगाए।


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Saturday, July 8, 2023

मुंबई की मस्जिद के बाहर जुटी भीड़ के खतरे बड़े, क्योंकि स्वीडन में कुरान जली,पर भीड़ मुंबई में....

8 July 2023

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🚩लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण विरोध अधिकार है। इसलिए पहली नजर में मुंबई की मीनारा मस्जिद के बाहर 5 जुलाई 2023 को हुए इस जुटान की तस्वीर में कोई खतरा नहीं दिखता। लेकिन घंटी तब बजती है जब पता चलता है कि स्वीडन में कुरान जलाए जाने की घटना के विरोध में हुए इस प्रदर्शन के पीछे रजा अकादमी (Raza Academy) है।


🚩नाम से रजा अकादमी भले अकादमिक संस्था होने का आभास देता हो, पर यह कुख्यात अपने कट्टरपंथी इस्लामी विचारों को लेकर है।करतूतें इस संगठन की हिंसक मंशा की गवाह हैं। कई राज्यों में इस्लामी भीड़ की हिंसा के पीछे इस संगठन की भूमिका संदेहास्पद रही है। दुनिया के किसी भी कोने में हुई घटना पर मुस्लिमों को उकसाने के लिए यह कुख्यात रहा है।


🚩मुंबई के ही आजाद मैदान में अगस्त 2012 में हुआ दंगा देश अब तक भूला नहीं है। तब म्यामांर में रोहिंग्या मुस्लिमों पर कथित अत्याचार के विरोध के नाम पर भीड़ जुटा गई थी। सऊदी अरब में सिनेमा हॉल खुलने का विरोध हो या फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष के खिलाफ फतवा जारी करने की माँग, CAA और NRC का विरोध हो या COVID प्रोटोकॉल को लचीला बनाकर मस्जिद खोलने की माँग… रजा अकादमी की भूमिका आपको हर जगह दिख जाएगी। नवंबर 2021 में महाराष्ट्र के मालेगाँव, नांदेड़ और अमरावती जिलों में प्रदर्शन के नाम पर मुस्लिमों की भीड़ ने जो कुछ किया था, वह भी पूरे देश ने देखा है। उसके बाद रजा एकेडमी के दफ्तरों पर महाराष्ट्र पुलिस की छापेमारी और गिरफ्तारियों के बारे में भी हम जानते हैं।


🚩अतीत की ये तमाम घटनाएँ हमें बताती हैं कि बकरीद के दिन स्वीडन की एक मस्जिद के बाहर कुरान जलाए जाने की घटना के विरोध के नाम पर हुए इस छोटे जुटान को सामान्य विरोध प्रदर्शन मानकर नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी इस घटना के बाद वैश्विक स्तर पर जो इस्लामिक गुटबंदी दिख रही है, खुद को कुरान का सबसे बड़ा रखवाला साबित करने की जो होड़ लगी है, वह खतरे को और भी बढ़ा देता है। इसी घटना के विरोध के नाम पर इराक में स्वीडिश दूतावास पर हमला हो चुका है। 57 इस्लामी मुल्क सऊदी अरब में बैठक कर चुके हैं। तुर्की ने नाटो में स्वीडन के प्रवेश को रोकने के लिए एड़ी-चोट का जोर लगा रखा है। शिया मुस्लिमों के खिलाफ बर्बरता के लिए कुख्यात आतंकी संगठन लश्कर-ए-झांगवी पाकिस्तान में चर्चों और ईसाइयों पर हमला कर बदला लेने की धमकी दे रहा है। कंगाली पर खड़े पाकिस्तान का प्रधानमंत्री जुमे पर देशभर में प्रदर्शन का ऐलान कर रहा है। यह सब तब हो रहा है जब स्वीडन का राजनीतिक नेतृत्व से लेकर ईसाई नेता तक इस घटना की निंदा कर चुके हैं।


🚩अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीडन की मस्जिद के सामने एक इराकी के कुरान जलाने के बाद दुनियाभर के अलग अलग हिस्सों में हो रही इन तमाम गतिविधियों में एक ही चीज साझा है। वह है मजहब। वह मजहब जिसका हवाला देकर भीड़ हिंसा के लिए ही जुटाई जाती है। ऐसे में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर, लोकतांत्रिक अधिकार के नाम पर, स्वीडन में हुई घटना के विरोध में भारत के शहरों में जुटान करने, प्रदर्शन होने के भी खतरे बड़े है। खासकर तब जब इसके पीछे रजा अकादमी जैसा वह संगठन हो जिसका रिकॉर्ड भीड़ जमा कर उसे अनियंत्रित छोड़ने का पुराना और बदनाम रहा हो।


🚩जरूरी नहीं है कि हर बार हम हिंसा के बाद ही जगे। हर बार दंगों के बाद ही इन संगठनों के दफ्तरों पर छापे पड़े। मुस्लिमों को उकसाने और हिंसा की साजिश रचने वालों की गिरफ्तारी हो। आदर्श व्यवस्था तो वह है जो जुमे की पूर्वसंध्या पर ऐसी कहानियों की पटकथा लिखने का ही मौका न दे। उम्मीद की जानी चाहिए महाराष्ट्र में उफान मारती सियासत के बीच मुंबई पुलिस की नजर मीनारा मस्जिद के बाहर जुटी उस भीड़ पर भी रही होगी जिसने कुरान जलाने वाले को तुरंत फाँसी देने की माँग करते हुए उस देश में प्रदर्शन किया है, जिस देश में आतंकी अजमल कसाब को फाँसी भी कबाब खिलाने के बाद ही मिली थी।


🚩समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने 2005 में गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल करआए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।


🚩उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते।

🚩जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। 


🚩5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं।


🚩5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।


🚩10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं।


🚩20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं,असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। 


🚩शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।


🚩किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है।


🚩आप स्वयं इस शोध का आकलन कीजिये। क्योंकि समझदार को इशारा ही बहुत होता है।


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