15 अगस्त 1947 को भारत गुलामी की बेडि़यों से आजाद हो गया । सबका त्याग, तपस्या, लगन और आजादी से साँस लेने की ललक ने, वह तूफान खड़ा किया, जिनके समक्ष #अंग्रेजी_शासन का #झंडा हिल गया और #देश आजाद हो गया ।
लोगों ने सोचा अब शोषक #सरकार (#विदेशी_सरकार) चली गयी तो अब हमलोग सुखी होंगे, बेकारी मिटेगी, गरीबी हटेगी, भेदभाव की खाईं पटेगी, समानता आयेगी, सामाजिक समानता मिलेगी । लेकिन70 साल बाद भी जो सपने आजादीके दिवानों ने देखे थे वह साकार हुए क्या ?
INDEPENDENCE DAY |
#आजादी के समय जहाँ एक
रुपए के बराबएक #डॉलर होता था, आज एक डॉलर कीकीमत लगभग 67 रुपए है।
रुपए के बराबएक #डॉलर होता था, आज एक डॉलर कीकीमत लगभग 67 रुपए है।
15 अगस्त 1947 को भारत न सिर्फ #विदेशी कर्जों से मुक्त था,बल्कि उल्टे #ब्रिटेन पर भारत का 16.62 करोड़रुपए का कर्ज था। आज देश पर 480.2 अरब डॉलर (करीब 317 खरब रुपये) से भी ज्यादा विदेशी कर्ज है। भारत में किसी नवजात के पैदा होते ही उस पर अप्रत्यक्ष रूप से करीब तीन हजार रुपये का विदेशी कर्ज चढ़ जाता है। भारत का #स्विस_बैंकों में जमा विदेशी धन करीब 8,392 करोड़ रुपये है ।
1947 से 2016 तक कई #घोटाले हो चुके हैं जिससे देश को लगभग 91,06,03,23,43,00,000 यानि इक्यानबे सौ #खरब का नुकसान हुआ है । देश में घोटाले की बीज आजादी के बाद ही बो दी गई थी । इसकी शुरुआत जीप घोटाले से हुई थी । 1947 से अबतक हुए घोटाले की एक लंम्बी सूची है - जीप खरीद घोटाला (1948), साइकिल आयात घोटाला (1951), बीएचयू फंड घोटाला (1956), हरिदास मुंध्रा स्कैंडल (1958), तेजा लोन स्कैम (1960), प्रताप सिंह कैरों स्कैम (1963), पटनायक 'कलिंग ट्यूब्स' मामला (1965), मारुति घोटाला (1974), कुआँ ऑयल डील (1976), अंतुले ट्रस्ट प्रकरण (1981), एचडीडब्ल्यू दलाली मामला (1987), बोफोर्स घोटाला (1987),सेंट किट्स मामला (1989), हर्षद मेहता स्कैम (1992), इंडियन बैंक (1992), चारा घोटाला (1996), लक्खू भाई पाठक स्कैल, टेलीकॉम स्कैम, यूरिया घोटाला, हवाला #घोटाला,झारखंड मुक्ति मोर्चा मामला (1993), चीनी घोटाला (1994), जूता घोटाला (1995),तहलका कांड, मैच फिक्सिंग (2000), बराक मिसाइल रक्षा सौदे, यूटीआई घोटाला, तेल के बदले अनाज, ताज कॉरिडोर, मनी लांडरिंग,आदर्श घोटाला, ताबूत घोटाला (1999), केतन पारेख स्टॉक मार्केट घोटाला, आईपीएल घोटाला, सत्यम घोटाला, स्टांप घोटाले, हसन अली टैस्क चोरी मामला, कोयला घोटाला, स्पेक्ट्रम घोटाला, नेशनल हैराल्ड, अगस्ता आदि कितने घोटाले हुए है। यदि जनता नहीं जागी तो और पता नहीं कितने होंगे । प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल के दौरान खुद इस बात को स्वीकार किया था कि केन्द्र से भेजे गए एक रुपये में से 15 पैसा ही अंतिम व्यक्ति यानि भारत तक पहुंचता है। स्पष्ट है कि सारा धन भ्रष्टाचार के नाले में जाता हैं।
यह है #स्वतंत्र_भारत की आर्थिक स्थिति । #अरबों-खरबों के घोटाले के अलावा देश क्षेत्रीयता, जातिवाद और कट्टरपंथी धार्मिक #राजनीतिक के हथकंडे, सांप्रदायिक दंगे, दलित उत्पीड़न, #आतंकवाद के हिंसा से जूझ रहा है । गरीब और गरीब हो रहा है और अमीर और भी अमीर।
आज 99 प्रतिशत के पास मात्र 30 प्रतिशत संपत्ति है और यह संपत्ति भी साल-दर-साल अमीरों के पास एकत्रित होती जा रही है ।
आज 99 प्रतिशत के पास मात्र 30 प्रतिशत संपत्ति है और यह संपत्ति भी साल-दर-साल अमीरों के पास एकत्रित होती जा रही है ।
श्रम और #रोजगार #मंत्रालय की रिपोर्ट (2011) उठाकर देखें तो लगभग 12 करोड़ बच्चों का बचपन होटलों, उद्योगों और सड़कों पर बीत रहा है । 33 फीसदी वयस्क और तीन वर्ष से कम उम्र के 46 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं ।
देश में हर 35 मिनट पर एक #किसान #खुदकुशी कर रहा है । एक रिपोर्ट के अनुसार 10.8 करोड़ नवयुवक आज भी बेरोजगार है । विदेशी #कम्पनियाँ #व्यापार के नाम पर 20 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष विदेश धन ले जा रहा है । आजादी का झंडा बुलंद करनेवाले #राजनेताओं की बातों पर भरोसा करें तो विदेशी पूँजी निवेश के बिना न तो देश का विकास संभव है और न ही देश में रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। सच्चाई यह है कि यह एक प्रायोजित झूठ है। हकीकत यह है कि देश की पूँजी, अगर #भ्रष्टाचार में बर्बाद नहीं हो तो देश का एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं रहेगा और यदि बेईमान लोगों के पास पूँजी जमा न होकर जब देश के ढाँचागत विकास एवं व्यवसाय में लगे तो देश में इतनी समृद्धि आ जाएगी कि हम दूसरे देशों को पैसा ब्याज पर देने की स्थिति में होंगे। लेकिन हम सुधरना नहीं चाहते है ।
लगता है हमें गुलामी ही भा रहा है । क्याआजाद भारत वास्तव में आजाद हो गया है ? अंग्रेजों के चले जाने से हमें सिर्फ #संवैधानिक आजादी मिली है । लेकिन क्या हम #सांस्कृतिक, #सामाजिक और #राजनीतिक दृष्टि से आजाद हुए हैं? संविधान कहता है कि ‘हां’ आजाद हैं, लेकिन वास्तविकता क्या कहती है?वास्तविकता यह है कि हम गुलाम हैं। आज भी संसद में काम ब्रिटेन की भाषा में होता है । संसद के कई महत्वपूर्ण भाषण और कानून ऐसी भाषा में होते हैं, जिसे आम जनता द्वारा नहीं समझा जा सकता।
#गांधीजी ने कहा था कि संसद में जो अंग्रेजी बोलेगा, उसे मैं गिरफ्तार करवा दूँगा। लेकिन आज अंग्रेजी बोलनेवाले को सम्मानित किया जाता है मातृभाषा में बोलनेवाले को लोग निम्न दृष्टि से देखते है ?
सारे #कानून #अंग्रेजी भाषा में बनते हैं। अदालत में वकील क्या बहस कर रहा है और #न्यायाधीश क्या फैसला दे रहा है, यह बेचारे मुवक्किल को सीधे पता भी नहीं चलता । क्या यह न्याय का मजाक नहीं ? वकील और न्यायाधीश काला कोट और चोगा पहनकर अंग्रेजों के पुराने घिसे-पिटे कानूनों के आधार पर ही फैसला कर रहे हैं । आजादी के 70 साल, न्याय व्यवस्था भी बेहाल है अदालत में 2.18 करोड़ केस लंबित है । उन करोड़ों लोगों के लिए इसआजादी के कोई मायने नहीं जो सालों से न्याय मांगने केलिए अदालतों के दरवाजे खटखटा रहे हैं । एक कहावत हैः देर से मिला न्याय भी अपने आप में अन्याय है ।
पढ़े-लिखे गुलाम मानसिकतावाले लोग दीक्षांत समारोह के अवसर पर चोगा और टोपा पहनते हैं, माँ-बाप बच्चों को गले में टाई का फंदा लटका देते हैं, जन्मदिन पर केक काटते हैं, हस्ताक्षर अपनी भाषा में नहीं करते । बच्चे भी अपनी मां को ‘मम्मी’ और पिता को ‘डैडी’ कहते हैं,‘वेलेंटाइन डे’ मनाते हैं।
अंग्रेजों को भारत छोड़े तकरीबन 69 साल हो गए लेकिन आज भी अमरावती से मुर्तजापुर का रेलवे ट्रैक ब्रिटेन के कब्जे में है। इंडियन रेलवे हर साल एक करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी ब्रिटेन की एक प्राइवेट कंपनी को देता है ।
यह #देश का दुर्भाग्य है कि
अभी तक हमलोग गुलामी की जंजीरों को विरासत के रूप में संजोकर रखे हुए है । पता नहीं देश में इसके खिलाफ जागरुकता कब आयेगी ?अंग्रेजों के उत्तराधिकारी से देश को मुक्ति कब मिलेगी ? मानसिक गुलामी और नकल से हमलोग कब आजाद होंगे? इसकी पहल तो जागरुक जनता को ही करनी होगी । यदि जनता दृढ़ संकल्प करें तो कार्यपालिका, विधायिका और #न्यायपालिका सभी गुलामी के जंजीर से मुक्त हो सकते हैं । तो आइये हम सब मिलकर भगवान व संत-महापुरुषों के आशीर्वाद को शिरोधार्य कर देश को मानसिक गुलामी से मुक्त करने का संकल्प करें ।
अभी तक हमलोग गुलामी की जंजीरों को विरासत के रूप में संजोकर रखे हुए है । पता नहीं देश में इसके खिलाफ जागरुकता कब आयेगी ?अंग्रेजों के उत्तराधिकारी से देश को मुक्ति कब मिलेगी ? मानसिक गुलामी और नकल से हमलोग कब आजाद होंगे? इसकी पहल तो जागरुक जनता को ही करनी होगी । यदि जनता दृढ़ संकल्प करें तो कार्यपालिका, विधायिका और #न्यायपालिका सभी गुलामी के जंजीर से मुक्त हो सकते हैं । तो आइये हम सब मिलकर भगवान व संत-महापुरुषों के आशीर्वाद को शिरोधार्य कर देश को मानसिक गुलामी से मुक्त करने का संकल्प करें ।
जय हिन्द, जय भारत ।
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