December 23, 2017
हिंदुस्तान में तुलसीदास भी प्रसिद्ध है और तुलसी का पौधा भी, बल्कि अगर यों कहें कि यहां जन जीवन में तुलसी का पौधा बहुत महत्वपूर्ण है । अधिकांश हिंदू घरों में तुलसी का पौधा पाया जाता है, जिसकी सभी पूजा भी करते हैं । ग्रामीण या आम भाषा में लोग इसे तुलसा भी कहते हैं ।
इसी तुलसी के संबंध में विशेष बात यह है कि हिंदू धर्म में ही नहीं ईसाई धर्म में भी बहुत पवित्र माना गया है। अंग्रेजी में इसे "बेसिल" या "सेक्रेड बेसिल" यानी पवित्र तुलसी कहते हैं। और इसीलिए पवित्रता का बोध कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक नामकरण में जो कि लैटिन भाषा में होता है इसे "ओसीमम स्पेक्टम" कहा गया है।अंग्रेजी का बेसिल शब्द ग्रीक भाषा के "बेसीलि कोन" शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है राजसी। से फ्रांस वाले इसीलिए इसे 'ल प्लांती रॉयली' अर्थात रॉयल पौधा कहते हैं ईसाइयों में इसके पवित्र माने जाने का कारण यह है कि यही वह पौधा है जो ईसा मसीह यानी क्राइस्ट की कब्र पर ऊगा था तब से ईसाई द्वारा इसे पवित्र कहा जाने लगा।
The Tulsi plant was grown on the grave of Jesus, why should the Tulsi worship day be celebrated on December 25? |
इटली और ग्रीस के लोगों को भी बहुत पहले इसके गुप्त लक्षण यानी औषधीय गुणों का पता था। इसीलिए संत बेसिल दिवस को स्त्रियों द्वारा तुलसी की टहनियों को गिरजाघर में ले जाने और घर लौटने पर उन टहनियों को फर्श पर बिखरा देने की प्रथा रही है कि आने वाला वर्ष शुभकारी हो। इन टहनियों की कुछ पत्तियों को खा लेने और कुछ को अपने कबर्ड में चूहे व कीड़े भगाने के लिए प्रयुक्त करने की प्रथा भी है।
भारत में तुलसी की पत्ती व मंजरी को औषधी रूप में प्रयुक्त किया जाता है। छोटे बच्चे या शिशुओं को हिचकी आते समय इसकी पत्ती की एक बिंदी बच्चे के माथे पर लगा देते हैं। गंदे स्थानों या कीटाणुओं वाली जगहों से लौटने के बाद लोग तुलसी की पत्ती मुंह में रखकर चबा लिया करते हैं। चरणामृत के द्रव्यों में तुलसी की पत्ती एक प्रमुख अंश है। घरों में पूजा के जलपात्र में पानी के साथ तुलसीदल भी देवताओं को चढ़ाया जाता है हिंदू लोगों द्वारा अभी भी जनेऊ चूड़ी वगैरा टूटने पर पवित्र जगह यानि तुलसी के पास रख दिए जाते हैं। मरते समय आदमी के मुख में तुलसी की पत्ती रखे बिना संस्कार पूरा नहीं होता यह विधि वैज्ञानिक इसीलिए भी है कि मरते समय आदमी की साँस के किटाणु तुलसी से नष्ट हो जाए फैले नहीं और उधर कहते हैं कि तब तक प्राण पखेरू शांति से नहीं निकलते जब तक कि तुलसीदल न रखा जाए।
बहुत पहले से ही भारतीय लोग इसके औषधीय महत्व को जानते रहे हैं। यह वातावरण की वायु शुद्ध रखती है और मच्छर कीट पतंगों आदि को दूर भगाती हैं। इसकी तेज सुगंध अनेक रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देती है। खांसी,जुकाम,गले की बीमारियां,मलेरिया आदि में उबले पानी या चाय के साथ इसका सेवन लाभकारी होता हैं। इसीलिए स्त्रियों द्वारा इसकी पूजा का आरंभ हुआ होगा।इसके औषधीय और लाभकारी महत्व के कारण स्त्रियां इसे कठड़े, कनस्तर,गमले, बगीचा या घर आंगन के कोने में उगाने लगी होंगी। सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर इसका सिंचन और देखभाल करना ही शनै-शनै पूजा बन गई। फिर लाभकारी वस्तु की पूजा तो भारत की परंपरा रही है।
स्त्रियां चूंकि धार्मिक अधिक होती है इसलिए धीरे-धीरे तुलसी के बिरवा की पूजा परिक्रमा करना,धूप दीप नैवेद्य रोली व अक्षत चढ़ाना तुलसी की शादी रचाना आदि अनेक बातें पूजा के अंतर्गत हो गई। कुछ लोग, जिनकी लड़कियां नहीं होती, तुलसी का विवाह रचाकर ही कन्यादान का पुण्य प्राप्त करते हैं। यदि माना कि इससे और कुछ न मिलता हो तो व्यस्त रहने के लिए धार्मिक और सामाजिक कर्म तो है ही यह। जो चीज मन को शांति दे, कितनी महान है वह चीज।
हिन्दू क्रिस्तानी या यूनानी लोगों के तुलसी वाले औषधि विश्वास को वैज्ञानिकों ने सच सिद्ध कर दिया है। इसकी एरोमा या सुगंध सचमुच रोगाणुनाशक संक्रमणहारी होती है। तुलसी के विभिन्न रासायनिक घटक और तत्व विभिन्न रोगों पर विविध प्रकार से प्रभाव डालते हैं। कुछ वर्ष पहले दिल्ली के अनुसंधान संस्थान ने इस बात को खोज निकाला कि तुलसी से जो तैलीय पदार्थ निकलता है वह टी.बी. या यक्षमा जैसे रोग का नाश कर डालता है। अभी इस क्षेत्र में अधिक अनुसंधान नहीं हुए हैं और उसके अनेक गुणों पर पर्दा पड़ा हुआ है, लेकिन आशा है कि वैज्ञानिक शीध्र ही संबदध रहस्यों का पर्दाफाश करेंगे कि उनसे उत्तरोत्तर लाभान्वित हो सके।
(स्रोत्र : 10 वीं कक्षा, कक्षा इंग्लिश मीडियम, महाराष्ट्र)
गौरतलब है कि हिन्दू संत आसारामजी बापू ने वर्ष 2014 से 25 दिसम्बर को ‘तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया। करोड़ो की तादाद में जनता ने बापू आसारामजी के इस अभियान को अपनाया है ।इस पर्व की लोकप्रियता विश्वस्तर पर देखी गयी ।
25 दिसम्बर को क्यों मनायें 'तुलसी पूजन दिवस'?
इन दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में यह पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।
धनुर्मास में सभी सकाम कर्म वर्जित होते हैं परंतु भगवत्प्रीतिर्थ कर्म विशेष फलदायी व प्रसन्नता देने वाले होते हैं। 25 दिसम्बर धनुर्मास के बीच का समय होता है।
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