सुदर्शन न्यूज़ के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाणके ने बताया कि हिंदुत्ववादी मीडिया का परिचय देने से हिंदुस्तान के कई पत्रकारों को बड़ी मिर्ची लगती है। हम हिंदू भी हिंदू ही सेक्युलरिस्ट होता है। हिंदुस्तान में करीब 732 चैनल है, और उसमें अब इसको आप योगानुयोग कहे या कुछ भी कहे न्यूज चैनलों की संख्या 420 है। और केवल यही नहीं है रावण का मंदिर जिस नोएडा में है वहीं पर सारे चैनलों का हेड क्वार्टर है, तो आप ऐसेे मीडिया से क्या अपेक्षा कर सकते हैं..!!
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गांधी जी ने हरिजन अखबार शुरू किया था भारत में आने के बाद, जब भारत में नहीं थे तो दक्षिण अफ्रीका में भी उन्होंने भारत ओपिनियन नाम का अखबार चलाया था जो 3 भाषा में चलता था हिंदी इंग्लिश और मलयालम। भगत सिंह, लोकमान्य तिलक सावरकर आदि तमाम कोई भी नाम ले लीजिए, किसी भी क्रांतिकारी का नाम लेंगे तो आपको पता चलेगा कि वो पत्रकार था।
आजादी के आंदोलन में हिंदुस्तान को जगाने में पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है इस कारण हिंदुस्तान में पत्रकारों के प्रति एक आस्था है एक विश्वास है, इसलिए जनता को ऐसा लगता है कि जो भी TV वाला बोलेगा, दिखायेगा वो सच है, पेपर वाला जो छापेगा वो सच है, इस विश्वास का गलत फायदा विदेशी शक्तियों ने उठाया।
दुनिया में 100 से ज्यादा देश ऐसे हैं जिनमें विदेशी चैनलों को अनुमति नहीं है। करीब इतने ही देशों से ज्यादा ऐसे देश है जिन देशों में मीडिया में एक भी रुपया विदेशी निवेश अलाउड नहीं है, लेकिन हमारे यहां पर धीरे धीरे-धीरे पॉलिटिकल लॉबिंग में हमारी सरकारें वीक (कमजोर) होती गयी और देश में नॉन न्यूज चैनल और न्यूज चैनल ये दो कैटेगरी हिंदुस्तान में हो गई।
कैसे हैं? मैं प्रूफ के साथ इस बात को आप के सामने रखता हूं।
हिंदुस्तान को इसलिए बतानी है क्योंकि हिंदुस्तान मीडिया पर आंख बंद करके भरोसा करता है और इसलिए हमको उसको समझाना है कि तू जो भी देख रहा है वो सच ही होगा ऐसा नहीं है, बल्कि गलत होने की संभावना ज्यादा है और इसलिए हमको ये समझना चाहिए, विदेशों और भारत में फर्क क्या है? पैसा कैसे आता है?
जैसे भारत में तिरुपति देवस्थान है उसके पास अतिरिक्त जब पैसा हो जाता है तब बैंक में रख सकता है FD कर सकता है शिर्डी साईं बाबा संस्था है सिद्धिविनायक है इनके पास जब पैसा अतिरिक्त होता है तो FD कर सकते हैं,लेकिन यही बात यूरोप अमेरिका जैसे देशों में जो चैरिटी ऑर्गनाइजेशन होती है उनके पास अगर अतिरिक्त पैसा हो जाए तो वो बैंकों के सिवा आगे बढ़कर शेयर मार्केट में भी लगा सकती हैं और जो कैथोलिक चर्च जैसा अपना चर्च है, जो इस्लामिक बड़े-बड़े आर्गेनाईजेशन हैं, उन लोगों ने ऐसा पैसा शेयर मार्केट में लगाया है। अब चैरिटी आर्गेनाईजेशन शेयर मार्केट में लगाए तो बहुत बड़ी चिंता का विषय नहीं है लेकिन चिंता तब ज्यादा होती है जब यह पैसा मीडिया फंड में ही लगता है। क्यों लगता है? क्योंकि मीडिया के द्वारा उनको एक माहौल बनाना होता है । विदेश में खासकर के पश्चिमी देशों में क्रिश्चियन देशों में धर्म और वहां का व्यवसाय एक दूसरे को पूरक काम करता है।
जो आज भारत में भी हम एक सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तौर पर एक फंड जो आजकल सब दे रहे हैं वहां पर भी यह फंड बहुत पहले से है, वो सब चर्च को जाता है। और फिर चर्च उसके लिए और वो चर्च के लिए एक दूसरे का पूरक माहौल बनाता है और माहौल कैसा बनता है, तो मानो की कोई अमेरिकन कंपनी भारत में आ रही है, और अमेरिकन चर्च को यहां पर धर्म का प्रचार करना है और उसको अपने यहां पर प्रोडक्ट का प्रचार करना है। तो यहां पर एक मीडिया हाउस चाहिए तो उस मीडिया हाउस में वो पैसा लगता है क्योंकि धार्मिक संस्था भारत की डायरेक्ट मीडिया में पैसा नहीं लगा सकती तो किसी फंड के द्वारा उसमें आता है।
उसमें भी लिमिट होने के कारण बाकी का जो पैसा है वो पैसा जो एडवर्टाइजमेंट दिया जाता है। कोई भी फिल्म लीजिए और कोई भी TV सीरियल लीजिए, आपको ये ध्यान में आएगा कि उसमें सेक्युलरिज्म परोसा जाएगा। उसके बाद उसको शांतिप्रिय समाज के लोगों को अच्छा दिखाया जाएगा। और प्रयास करके कोई हिंदू इमेज का व्यक्ति और आजकल तो बड़ा आसान है एक पटका डाल दो गले में टीका लगा दो तो समझ में आता है कि ये कोई हिंदूवादी एक्टिविस्ट होगा,उसको बदनाम किया जाता है।
जमीन पर ऐसा चित्र है क्या?? ऐसा चित्र है क्या?? उल्टा चित्र है। लेकिन ये चित्र TV सीरियल में दिखाया जाता है जानबूझकर। कई लोग Tv सीरियल जरूर देखते होंगे, नहीं तो आप Google पर जाकर टाइप करिए,आपको ज्यादातर जो लड़का लड़की के प्रेम प्रकरण दिखाई देंगे उसमें अगर दो धर्म के लोग है तो लड़का मुसलमान होगा।और फिल्म ले लीजिए तमाम नाम लिए जा सकते है, कई में तो पाकिस्तानी दिखाए जाते हैं जानबूझकर। क्यों ?? ये सबकुछ फंडेड होता है आप लोगों को ये भी हिंदुस्तान को समझाने की आवश्यकता है।
ये सबकुछ आप भी अपनी जगह पर कर सकते हैं, क्योंकि मीडिया का स्वरूप आने वाले दिनों में और बदलने वाला है, अब जैसे जैसे सोशल मीडिया हालांकि बहुत कम प्रतिशत है लेकिन सोशल मीडिया एटलिस्ट कहीं ना कहीं डूबते हुए व्यक्ति को पानी के ऊपर हाथ निकालने का तो कम से कम चांस देता है। अपनी आवाज़ , विसुअल वॉर ऑब्सर्वे का तो काम कम से कम कर सकता है जो वो कर रहा है, उसको भी आपको बढ़ाना चाहिए। साथ साथ में लोकल केबल टीवी चैनल ये कंसेप्ट अभी आजकल बढ़ रही है लेकिन लोग उसको नहीं ले रहे आप कोई और ले चर्च किया मिशनरी की एक्टिविटीज इसमें ज्यादा होती है तो आप लोग शुरू करते हैं उसको बहुत ज्यादा कमर्शियल बाइबल नहीं बनाया जा सकता लेकिन उसका लॉसेस भी बहुत कम है और आजकल FM का क्रेज भी तुलना में काफी बड़ा है ।
आपने सुरेश चव्हाणके की बात को पढ़ा, जिसमे आप समज गये होंगे की मीडिया में ईसाई व मुस्लिम धर्म-संस्थाएं भारत में अपने धर्म का प्रचार करने के लिए अपना पैसा विदेश से आने वाली कम्पनियों में लगाती हैं । वही विदेशी कम्पनियां मीडिया में पैसा लगाकर हिन्दू विरोधी एवं उनके धर्म को अच्छा दिखाने वाली खबरें दिखाती हैं।
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