17 अप्रैल 2019
भारत विभिन्नता वाला देश है, अर्थात यहां कई जाति, मजहब-पंथ को मानने वाले लोग रहते हैं । सबकी बोल-चाल, सबके रीति-रिवाजों में अंतर है, लेकिन फिर भी इस धरा की खासियत यह है कि लोग इसके बाद भी मिलजुल कर रहते हैं, लेकिन अब एक ऐसी चीज है जिसकी वजह से लोगों में फूट पड़ने की समस्या आ सकती है और वो है इस देश का "कानून" ।
जी हाँ, इस देश में कानून धर्म देखकर बदल जाया करते हैं । जोकि अक्सर आपसी मतभेद का कारण भी बन जाता है ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत सरकार का ये कर्तव्य है कि पूरे देश में Uniform Civil Code लागू करें, मतलब सभी नागरिक कानून के सामने समान हो और सबको एक जैसे अधिकार मिले ।
पर वास्तविकता कुछ और ही है । आज़ादी के 71 साल के बाद भी आज तक Uniform Civil Code लागू नहीं हुआ है । अगर ये अनुच्छेद 44 मौलिक अधिकारों में डाल दिया होता तो इसको लागू करने के लिए आम आदमी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता था । पर इस अनुच्छेद को जान बुझकर नीति निर्देशक तत्वों (Directive Principles of State Policy) में डाल दिया ताकि कोई अदालत में जाकर इसे लागू कराने के लिये फरियाद ना करें ।
वास्तव में ये अंग्रेज़ों की "फूट डालो और राज करो" की नीति का हिस्सा था । इसलिए Uniform Civil Code को मौलिक अधिकार नहीं बनाया ।
भारत देश में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून है । और ये भी अंग्रेज़ों की "फूट डालो और राज़ करो" की नीति का हिस्सा था जो अब तक चल रहा है ।
भारत में ऐसे कानून हैं जो धर्म के हिसाब से लागू हैं । मतलब अलग-अलग धर्म के लोगों के लिए अलग अलग कानून है ।
जैसे मुसलमानों के लिए लागू कानून
Muslim Shariat Law Act 1937
Dissolution of Muslim Marriage Act 1939
Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act 1986
Haj Committee Act 2002
ईसाइयों के लिए
The Indian Christian Marriage Act 1872
पारसियों के लिए
Parsi Marriage and Divorce Act 1936
हिंदुओं के लिए
Hindu Marriage Act 1955
Hindu Succession Act 1956
Hindu Minority and Guardianship Act 1956
Hindu Adoption and Maintenance Act 1956
इससे साफ पता चल रहा है कि हमारे देश में धर्म के हिसाब से कानून बदल जाते हैं । हमारे देश में मुस्लिमों के लिए अलग कानून है, हिन्दुओं के लिए अलग, ईसाईयों के लिए अलग कानून है । फिर कैसे देश में शांति और समन्वय कायम रह सकता है, जब अलग-अलग धर्म के लोग अपने अधिकारों में अंतर पाएंगे ! ये तो देश की एकता के लिए भी खतरा है ।
उदाहरण के लिए मुस्लिम एक समय में 4 शादी कर सकता है पर दूसरे धर्मों के लोग केवल एक, ऐसा क्यों ? मेहर कानूनी रूप से वैध है, दहेज कानूनी रूप से अवैध है, ईसाइयों में Gift के नाम पर सब चलता है, ऐसा क्यों ? ये सभी कानूनन अवैध क्यों नहीं ? हिन्दू मंदिरों की सम्पत्ति सरकार कानून बनाकर ले लेती है पर दूसरे धर्मों के स्थलों पर सरकार अपना हक कभी पेश नहीं करती, ऐसा क्यों ?
यही कारण है कि देश में लोगों के बीच भेदभाव बढ़ रहा है, लोगों में असंतोष बढ़ रहा है जो लोकतंत्र में किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ।
सबसे ज्यादा अन्याय अगर इस भिन्नता के कारण किसी के साथ हो रहा है तो वो है हिंदुओं के साथ । लोगों को धर्म के नाम पर विशेष छूट दी जाती है, लेकिम हिंदुओं के साथ सदैव अन्याय होता है । अगर हिन्दू अपनी धर्म के प्रति निष्ठा जाहिर कर तो उसे कट्टरता का नाम देते हैं, जबकि दूसरे धर्म वालों को धर्मनिष्ठ कहते हैं । यदि दो गुटों के बीच बहस हो रही हो तो सदैव हिन्दू को दोषी ठहराया जाता है । यहीं से आप समझ सकते हैं कि कानून में भिन्नता के कारण भी हिंदुओं के साथ कितना अन्याय हो रहा है ।
जब चीन में Uniform Civil Code लागू हो सकता है तो भारत मे क्यों नहीं ? भारत में Uniform Civil Code को मौलिक अधिकार बनाने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने और उचित कानून बनाने की आवश्यकता है ।
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