07 अप्रैल 2019
गणगौर का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । यह पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है इस साल 8 अप्रैल 2019 को यह पर्व मनाया जाएगा ।
भारत देश की संस्कृति इतनी महान, व्यापक और दिव्य है कि हर व्यक्ति की रगों में परोपकार, परहित आदि के लिए स्वार्थरहित होकर कार्य करना जन्म से ही है ।
भारतीय संस्कृति उच्छ्रंखलता को निषिद्ध करके सुसंस्कारिता को प्राथमाकिता देती है । दूसरे देशों में प्रायः ऐसा नहीं है । यूरोप, अमेरिका आदि में तो स्वतन्त्रता के नाम पर पशुता का तांडव हो रहा है । एक दिन में तीन पति बदलने वाली औरतें भी अमेरिका जैसे देश में मिल जाती हैं ।
यूरोप के कई देशों में तो शादी को मुसीबत माना गया है तथा यौन स्वैच्छाचार को वैध माना जाता है जबकि भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के साथ शास्त्रानुकूल शारीरिक संबंध ही वैध माना जाता है ।
गृहस्थाश्रमरूपी रथ के दो पहिये हैं – पति और पत्नी । अगर एक भी पहिये में कमजोरी रहती है तो रथ की गति अवरूद्ध होती है । विदेशों में पति-पत्नी जैसा कोई संबंध रहा नहीं, लेकिन यहाँ भारत में अब भी पति को देवता माना जाता है और पत्नी को देवी कहा गया है इसलिए समाज में इतनी उच्छ्रंखलता, मनमुखता एवं पशुता का खुला प्रचार होते हुए भी दुनिया के 250 देशों का सर्वेक्षण करने वालों ने पाया कि हिन्दुस्तान का दाम्पत्य जीवन सर्वश्रेष्ठ एवं संतुष्ट जीवन है । यह भारतीय संस्कृति के दिव्य ज्ञान एवं ऋषि-मुनियों के पवित्र मनोविज्ञान का प्रभाव है ।
भारत मे महिलाएं पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य उत्तम रहे है इसलिए कई व्रत रखती हैं, उनमें से एक है गणगौर व्रत ।
गणगौर पर्व:-
होली के दूसरे दिन से महिलाएं और नवविवाहिताएं गणगौर की पूजा करनी शुरू कर देती हैं और गणगौर वाले दिन इसका समापन होता है । गणगौर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलने वाला त्योहार है । यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव ) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं और चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है ।
विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और प्यार पाने के लिए गणगौर पूजती हैं, वहीं कुंवारी लड़कियां अच्छा वर पाने के लिए ईशर-गणगौर की पूजा करती हैं । होली के दूसरे दिन से ही युवतियां 16 दिनों तक सुबह जल्दी उठकर बगीचे में जाती हैं और दूबा, फूल लाती हैं । उस दूबा से दूध के छींटे मिट्टी की बनी गणगौर माता चढ़ाती हैं । थाल में पानी, दही, सुपारी और चांदी का छल्ला अर्पित किया जाता है ।
प्राचीनकाल में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या, व्रत आदि किया था । भगवान शिव माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और माता पार्वती की मनोकामना पूरी की । तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए और सुहागने अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए ईशरजी और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं ।
गणगौर वाले दिन महिलाएं सज-धज कर सोलह श्रृंगार करती हैं और माता गौरी की विधि-विधान से पूजा करके उन्हें श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करती हैं । इस दिन मिट्टी से ईशर और गणगौर की मूर्ति बनाई जाती है और इन्हें बड़े ही सुंदर ढंग से सजाया जाता है । गणगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं और गणगौर माता को गुने, चूरमे का भोग लगाया जाता है ।
शादी के बाद लड़की पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है और गुनों तथा सास के कपड़ों का बायना निकालकर ससुराल में भेजती है । यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गणगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है । ससुराल में भी वह गणगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है ।
साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिणा दी जाती है । दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है, यानि कि विसर्जित किया जाता है । विसर्जन कुएं या तालाब में किया जाता है ।
कुछ समय पहले मनोवैज्ञानिकों ने ʹप्लेनेट प्रोजेक्टʹ के अऩ्तर्गत इंटरनेट के माध्यम से विश्व भर के दम्पत्तियों के वैवाहिक जीवन का सर्वेक्षण किया । सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य था ʹकिस देश के पती-पत्नी एक-दूसरे से संतुष्ट हैं ?ʹ
लम्बी जाँच के बाद जब निष्कर्ष निकाला गया तो विश्लेषक यह देखकर चकित रह गए कि विश्व के 250 देशों में से भारतीय दम्पत्ति एक-दूसरे से सर्वाधिक सुखी व संतुष्ट हैं । अन्य देशों में ऐसा देखने को नहीं मिला ʹवहाँ के दम्पत्ति अपने जीवनसाथी में कुछ-न-कुछ बदलाव अवश्य लाना चाहते हैं ।
भारत के ऋषि-मुनियों ने सत्शास्त्रों के रूप में अपने भावी संतानों के लिए दिव्य ज्ञान धरोहर के रूप में छोड़ा है तथा इस कलियुग में भी साधु-संत, नगर-नगर जाकर समाज में चरित्र, पवित्रता, अध्यात्मिकता एवं कर्तव्यपरायणता के सुसंस्कार सींच रहे हैं ।
इसी का यह शुभ परिणाम है कि पाश्चात्य अपसंस्कृति के आक्रमण के बावजूद भी ऋषि-मुनियों का ज्ञान भारतवासियों के चरित्र एवं संस्कारों की रक्षा कर रहा है तथा इन्हीं संस्कारों के कारण वे सुखी एवं संतुष्ट जीवन जी रहे हैं ।
रामायण, महाभारत एवं मनुस्मृति व मानवता का प्रभाव ही तो है कि आज भी सर्वेक्षण करने वाले प्लेनेट प्रोजेक्टरों को 250 देशों में केवल भारतीय दम्पत्तियों को ही परस्पर सुखी, संतुष्ट एवं श्रेष्ठ कहना पड़ा । धन्य है भारत की संस्कृति !
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