29 अप्रैल 2019
हाल ही में एक नेता ने पाकिस्तान के जन्में मोहम्मद अली जिन्ना को क्रांतिकारी और देश के लिए संघर्ष करने वाला बताया । हालाँकि बाद में वह अपने बयान से पलट गए । पूर्व में एक वरिष्ठ नेता ने जिन्ना को महान बता दिया था । मेरे विचार से जिन्ना के गुणगान करने वाला हर नेता उन हिन्दुओं का अपमान कर रहा है । जिन्होंने 1947 में अपना सब कुछ धर्मरक्षा के लिए लुटा दिया । यह अपमान हमारे पूर्वजों का है । जिन्होंने अपने पूर्वजों की धरती को त्याग दिया मगर अपना धर्म नहीं छोड़ा । चाहे उसके लिए उन्होंने अपना घर, परिवार, खेत-खलिहान सब कुछ त्यागना पड़ा । उन महान आत्माओं ने धर्मरक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया । आज के नेता अपनी बयानबाजी कर उनके त्याग का अपमान कर रहे हैं ।
इस लेख में 1947 में जिन्ना के ईशारों पर जो अत्याचार पाकिस्तान में बलूच रेजिमेंट ने हिन्दुओं पर किया । उसका उल्लेख किया गया है । हर हिन्दू को यह इतिहास ज्ञात होना चाहिए । ताकि कोई आगे से जिन्ना के गुणगान करें तो उसे यथोचित प्रतिउत्तर दिया जा सके ।
विभाजन पश्चात भारत सरकार ने एक तथ्यान्वेषी संगठन बनाया जिसका कार्य था पाकिस्तान छोड़ भारत आये लोगों से उनकी जुबानी अत्याचारों का लेखा जोखा बनाना । इसी लेखा जोखा के आधार पर गांधी हत्याकांड की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के जज जी डी खोसला लिखित, 1949 में प्रकाशित , पुस्तक ' स्टर्न रियलिटी' विभाजन के समय दंगों , कत्लेआम,हताहतों की संख्या और राजनैतिक घटनाओं को दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है । हिंदी में इसका अनुवाद और समीक्षा ' देश विभाजन का खूनी इतिहास (1946-47 की क्रूरतम घठनाओं का संकलन)' नाम से सच्चिदानंद चतुर्वेदी ने किया है । नीचे दी हुई चंद घटनायें इसी पुस्तक से ली गई हैं जो ऊंट के मुंह में जीरा समान हैं ।
11 अगस्त 1947 को सिंध से लाहौर स्टेशन पह़ुंचने वाली हिंदुओं से भरी गाड़ियां खून का कुंड बन चुकी थीं। अगले दिन गैर मुसलमानों का रेलवे स्टेशन पहुंचना भी असंभव हो गया । उन्हें रास्ते में ही पकड़कर उनका कत्ल किया जाने लगा । इस नरहत्या में बलूच रेजिमेंट ने प्रमुख भूमिका निभाई । 14 और 15 अगस्त को रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध नरमेध का दृश्य था । एक गवाह के अनुसार स्टेशन पर गोलियों की लगातार वर्षा हो रही थी । मिलिट्री ने गैर मुसलमानों को स्वतंत्रता पूर्वक गोली मारी और लूटा ।
19 अगस्त तक लाहौर शहर के तीन लाख गैर मुसलमान घटकर मात्र दस हजार रह गये थे । ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी ही बुरी थी । पट्टोकी में 20 अगस्त को धावा बोला गया जिसमें ढाई सौ गैर मुसलमानों की हत्या कर दी गई । गैर मुसलमानों की दुकानों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई । इस आक्रमण में बलूच मिलिट्री ने भाग लिया था ।
25 अगस्त की रात के दो बजे शेखपुरा शहर जल रहा था । मुख्य बाजार के हिंदू और सिख दुकानों को आग लगा दी गई थी । सेना और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची । आग बुझाने के लिये अपने घर से बाहर निकलने वालों को, गोली मारी जाने लगी । उपायुक्त घटनास्थल पर बाद में पहुंचा । उसने तुरंत कर्फ्यू हटाने का निर्णय लिया और उसने और पुलिस ने यह निर्णय घोषित भी किया । लोग आग बुझाने के लिये दौड़े ।पंजाब सीमा बल के बलूच सैनिक, जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया गया था, लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगे ।एक घटनास्थल पर ही मर गया, दूसरे हकीम लक्ष्मण सिंह को रात में ढाई बजे मुख्य गली में जहाँ आग जल रही थी, गोली लगी । अगले दिन सुबह सात बजे तक उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दिया गया । कुछ घंटों में उनकी मौत हो गई ।
गुरुनानक पुरा में 26 अगस्त को हिंदू और सिखों की सर्वाधिक व्यवस्थित वध की कार्यवाही हुई । मिलिट्री द्वारा अस्पताल में लाये जाने सभी घायलों ने बताया कि उन्हें बलूच सैनिकों द्वारा गोली मारी गयी या 25 या 26 अगस्त को उनकी उपस्थिति में मुस्लिम झुंड द्वारा छूरा या भाला मारा गया । घायलों ने यह भी बताया कि बलूच सैनिकों ने सुरक्षा के बहाने हिंदू और सिखों को चावल मिलों में इकट्ठा किया । इन लोगों को इन स्थानों में जमा करने के बाद बलूच सैनिकों ने पहले उन्हें अपने कीमती सामान देने को कहा और फिर निर्दयता से उनकी हत्या कर दी । घायलों की संख्या चार सौ भर्ती वाले और लगभग दो सौ चलंत रोगियों की हो गई । इसके अलावा औरतें और सयानी लड़कियाँ भी थीं जो सभी प्रकार से नंगी थीं । सर्वाधिक प्रतिष्ठित घरों की महिलाएं भी इस भयंकर दु:खद अनुभव से गुजरी थीं । एक अधिवक्ता की पत्नी जब अस्पताल में आई तब वस्तुतः उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था । पुरुष और महिला हताहतों की संख्या बराबर थी । हताहतों में एक सौ घायल बच्चे थे ।
शेखपुरा में 26 अगस्त की सुबह सरदार आत्मा सिंह की मिल में करीब सात आठ हजार गैर मुस्लिम शरणार्थी शहर के विभिन्न भागों से भागकर जमा हुये थे । करीब आठ बजे मुस्लिम बलूच मिलिट्री ने मिल को घेर लिया । उनके फायर में मिल के अंदर की एक औरत की मौत हो गयी । उसके बाद कांग्रेस समिति के अध्यक्ष आनंद सिंह मिलिट्री वालों के पास हरा झंडा लेकर गये और पूछा आप क्या चाहते हैं । मिलिट्री वालों ने दो हजार छ: सौ रुपये की मांग की जो उन्हें दे दिया गया ।इसके बाद एक और फायर हुआ ओर एक आदमी की मौत हो गई । पुन: आनंद सिंह द्वारा अनुरोध करने पर बारह सौ रुपये की मांग हुयी जो उन्हें दे दिया गया । फिर तलाशी लेने के बहाने सबको बाहर निकाला गया।सभी सात-आठ हजार शरणार्थी बाहर निकल आये । सबसे अपने कीमती सामान एक जगह रखने को कहा गया । थोड़ी ही देर में सात-आठ मन सोने का ढेर और करीब तीस-चालीस लाख जमा हो गये । मिलिट्री द्वारा ये सारी रकम उठा ली गई । फिर वो सुंदर लड़कियों की छंटाई करने लगे । विरोध करने पर आनंद सिंह को गोली मार दी गयी । तभी एक बलूच सैनिक द्वारा सभी के सामने एक लड़की को छेड़ने पर एक शरणार्थी ने सैनिक पर वार किया । इसके बाद सभी बलूच सैनिक शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाने लगे । अगली प्रांत के शरणार्थी उठकर अपनी ही लड़कियों की इज्जत बचाने के लिये उनकी हत्या करने लगे ।
1 अक्टूबर की सुबह सरगोधा से पैदल आने वाला गैर मुसलमानों का एक बड़ा काफिला लायलपुर पार कर रहा था । जब इसका कुछ भाग रेलवे फाटक पार कर रहा था अचानक फाटक बंद कर दिया गया । हथियारबंद मुसलमानों का एक झुंड पीछे रह गये काफिले पर टूट पड़ा और बेरहमी से उनका कत्ल करने लगा । रक्षक दल के बलूच सैनिकों ने भी उनपर फायरिंग शुरु कर दी । बैलगाड़ियों पर रखा उनका सारा धन लूट लिया गया। चूंकि आक्रमण दिन में हुआ था , जमीन लाशों से पट गई । उसी रात खालसा कालेज के शरणार्थी शिविर पर हमला किया गया । शिविर की रक्षा में लगी सेना ने खुलकर लूट और हत्या में भाग लिया । गैर मुसलमान भारी संख्या में मारे गये और अनेक युवा लड़कियों को उठा लिया गया ।
अगली रात इसी प्रकार आर्य स्कूल शरणार्थी शिविर पर हमला हुआ । इस शिविर के प्रभार वाले बलूच सैनिक अनेक दिनों से शरणार्थियों को अपमानित और उत्पीड़ित कर रहे थे । नगदी और अन्य कीमती सामानों के लिये वो बार बार तलाशी लेते थे । रात में महिलाओं को उठा ले जाते और बलात्कार करते थे । 2 अक्टूबर की रात को विध्वंश अपने असली रूप में प्रकट हुआ । शिविर पर चारों ओर से बार-बार हमले हुये । सेना ने शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाईं । शिविर की सारी संपत्ति लूट ली गई । मारे गये लोगों की सहीं संख्या का आंकलन संभव नहीं था क्योंकि ट्रकों में बड़ी संख्या में लादकर शवों को रात में चेनाब में फेंक दिया गया था ।
करोर में गैर मुसलमानों का भयानक नरसंहार हुआ । 7 सितंबर को जिला के डेढ़ेलाल गांव पर मुसलमानों के एक बड़े झुंड ने आक्रमण किया । गैर मुसलमानों ने गांव के लंबरदार के घर शरण ले ली । प्रशासन ने मदद के लिये दस बलूच सैनिक भेजे । सैनिकों ने सबको बाहर निकलने के लिये कहा । वो औरतों को पुरूषों से अलग रखना चाहते थे । परंतु दो सौ रूपये घूस लेने के बाद औरतों को पुरूषों के साथ रहने की अनुमति दे दी । रात मे सैनिकों ने औरतों से बलात्कार किया । 9 सितंबर को सबसे इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया । लोगों ने एक घर में शरण ले ली । बलूच सैनिकों की मदद से मुसलमानों ने घर की छत में छेद कर अंदर किरोसिन डाल आग लगा दी । पैंसठ लोग जिंदा जल गये ।
यह लेख हमने संक्षिप्त रूप में दिया है। विभाजन से सम्बंधित अनेक पुस्तकें हमें उस काल में हिन्दुओं पर जो अत्याचार हुआ, उससे अवगत करवाती है, हर हिन्दू को इन पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। क्योंकि "जो जाति अपने इतिहास से कुछ सबक नहीं लेती उसका भविष्य निश्चित रूप से अंधकारमय होता है। " -डॉ विवेक आर्य
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