11 अप्रैल 2019
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देश में कांग्रेस सरकार ने पहले सरकारी खजाना खाली कर दिया और उसके बाद उनकी वक्रदृष्टि हिन्दू मंदिरों में श्रद्धालुआें के धन पर पड़ी । इस धन को हड़पने के लिए उन्होंने हिन्दुआें के मंदिरों का सरकारीकरण आरंभ किया । इसके द्वारा मंदिर के श्रद्धालुआें के करोड़ों रुपए लूटे तथा हज यात्रा एवं चर्च के विकास के लिए उस धन का उपयोग किया ।
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कर्नाटक में हुए चुनावों के समय भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में हिन्दुआें के सरकारीकरण हुए मंदिर हिन्दुआें को वापस करेंगे, ऐसी एक प्रमुख घोषणा की थी, परंतु महाराष्ट्र में यही भाजपा सरकार हिन्दुआें से मंदिर छीनकर उनका सरकारीकरण कर रही है । सरकार कोई भी आए, लेकिन हिन्दुओं के हित का कार्य कोई भी जल्दी नहीं करता है ।
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सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार धर्मनिरपेक्ष सरकार को हिन्दुआें के मंदिर चलाने का अधिकार नहीं है । न्यायालय ने केवल प्रबंधन कि त्रुटियां दूर कर मंदिर पुनः उस समाज को लौटाने के निर्देश दिए हैं । ऐसा होते हुए भी सरकार ने कई मंदिरों का सरकारीकरण किया है, और अभी भी लगातार कर रहे हैं ।
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‘सरकार की ओर से मंदिरों का होनेवाला सरकारीकरण और सरकार अधिगृहीत मंदिरों की कुव्यवस्था पर तीव्र अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मंदिरों का नियंत्रण भक्तों के हाथों में हो, यह काम सरकार का नहीं है ।’ यही बात हिन्दू जनजागृति समिति पिछले 13 वर्षों से कह रही है । यही बात देश के हिंदू कह रहे हैं । वर्ष 2006 से इस विषय में जन जागृति समिति आंदोलन भी कर रही है । मंदिरों का सरकारीकरण और वहां के भ्रष्ट सरकारी कामकाज के कारण हिन्दू समाज और श्रद्धालुआें में बहुत रोष है । इसलिए, सब राजनैतिक दल श्रीराममंदिर निर्माण की ही भांति मंदिर सरकारीकरण के विषय में अपनी नीति लोकसभा चुनाव से पहले स्पष्ट करें, यह मांग हिन्दू जनजागृति समिति ने की है ।
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प्राचीन काल में राज्यकर्ता मंदिरों को दान करते थे, परंतु इस देश में धर्मनिरपेक्ष शासनव्यवस्था लागू होने के पश्चात यह परंपरा टूट गई । अब इस शासन में हिन्दुआें के केवल धनी मंदिरों को लूटने का एकसूत्री कार्यक्रम आरंभ हुआ है । मंदिरों में पुजारियों को बदलना, धार्मिक कृत्य, प्रथा-परंपरा बंद करने का कार्य भी सरकार करने लगी है । इस अन्याय के विरुद्ध लड़ने का निश्चय हिन्दू जनजागृति समिति ने वर्ष 2006 में किया । उसके पश्चात, सरकार अधिग्रहित मंदिरों में श्री सिद्धिविनायक मंदिर (प्रभादेवी), श्री विठ्ठल-रुख्मिणी मंदिर(पंढरपुर), श्री साई संस्थान (शिर्डी), श्री तुलजापुर मंदिर आदि सब प्रमुख मंदिर तथा 3067 मंदिरों की व्यवस्था देखनेवाली ‘पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति’ में सरकारी भ्रष्टाचार तथा अनुचित कामकाज को हिन्दू जनजागृति समिति ने प्रमाण के साथ समय-समय पर उजागर किया है । उन भ्रष्टाचारों के विरुद्ध वैध मार्ग से अनेक आंदोलन और वैधानिक लड़ाई अभी भी जारी है । इस लड़ाई में समिति के साथ वारकरी संप्रदाय,हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन, मंदिरों के न्यासी, पुजारी मंडल और भक्त भी बड़ी संख्या में जुड़े हैं ।
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यदि मस्जिदों की व्यवस्था मुसलमानों के हाथ में है और चर्च की व्यवस्था ईसाई समाज के हाथ में है, तो मठों और मंदिरों की व्यवस्था हिन्दू समाज के हाथ में क्यों नहीं, उनपर सरकारी नियंत्रण क्यों होना चाहिए ? हमारे इस प्रश्न का उत्तर सरकार ने अभी तक नहीं दिया है ।
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हिन्दू मंदिरों की व्यवस्था नि:स्वार्थ भक्तों और धर्माचार्य के पास ही होनी चाहिए, यह मांग समिति बार-बार कर रही है । कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनाव के समय भाजपा सरकार ने मंदिरों को भक्तों को लौटाने का आश्वासन दिया था । अब देश में लोकसभा का चुनाव होनेवाला है । ऐसे समय सब राजनैतिक दल मंदिरों के सरकारीकरण के विषय में अपनी-अपनी नीति हिन्दू समाज के सामने स्पष्ट करें, यह आवाहन हिन्दू जनजागृति समिति करती है। - स्त्रोत : हिन्दू जनजागृति समिति
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सरकारी कामकाज में लगभग सभी जगह भ्रष्टाचार मिलता है अब वे हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक मंदिरों को भी सरकारीकरण करने लगे हैं तो फिर उसमें भ्रष्टाचार होना स्वाभाविक ही है ।
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हिन्दू कितना भी आर्थिक रूप से कमजोर हो, लेकिन फिर भी अपनी जिस देवस्थान में आस्था रखता है वहाँ कुछ न कुछ भेंट चढ़ाता ही है और इसलिए ताकि उन पैसों का सहीं इस्तेमाल होगा और सत्कर्म में लगेगा जिससे उसका और उसके परिवार का उद्धार होगा और ऐसे भी हिन्दू धर्म मे कमाई का दसवां हिस्सा दान करने का शास्त्र का नियम है तो लगभग सभी हिन्दू मंदिरों या आश्रमों में जाकर दान करते हैं और उन दान के पैसे से धर्म, राष्ट्र और समाज के उत्थान के लिये कार्य होते हैं ।
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सरकार अगर इन मंदिरों का सरकारी करण कर लेती है तो धर्म और राष्ट्र के हित के कार्य रुक जाएंगे और भ्रष्टाचार में पैसे चले जाएँगे इसलिए सरकार को मंदिरों को सरकारी तंत्र से मुक्त कर देना चाहिए ।
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सरकार कभी चर्च या मस्जिद को नियंत्रण में लेने के लिए विचार करती है ? अगर नहीं तो फिर मन्दिरों को ही नियंत्रण में क्यों लेना चाहती है ? जबकि चर्चों और मस्जिदों में धर्मिक उन्माद बढ़ाया जाता है जो देश के लिए हानिकारक है और मंदिरों में शांति का पाठ पढ़ाया जाता है जो देश के लिए हितकारी है अतः अभी सरकार को शीघ्रातिशीघ्र मंदिरों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त कर देना चाहिए ।
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