05 अगस्त 2020
अयोध्या का सबसे पहला वर्णन अथर्ववेद में मिलता है। अथर्ववेद में अयोध्या को 'देवताओं का नगर' बताया गया है, 'अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या'।
भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र और सबसे प्राचीन सप्त पुरियों में प्रथम माना गया है। सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका को शामिल किया गया है।
★ कौशल राज्य की राजधानी है अयोध्या
राम के काल में भारत 16 महा जनपदों में बंटा था। महाभारत काल में 18 महाजनपदों में बंटा था। इन महाजनपदों के अंतर्गत कई जनपद होते थे। उन्हीं में से एक था कौशल महाजनपद इसकी राजधानी थी अवध जिसके साकेत और श्रावस्ती दो हिस्से बाद में हुए। अस अवध को ही अयोध्या कहा गया। दोनों का अर्थ एक ही होता है। रामायण और रामचरित मानस के अनुसार राजा दशरथ के राज्य कौशल की राजधानी अयोध्या थी।
★ सरयू के पास है अयोध्या
वाल्मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है। जिसमें बताया गया है कि सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। सभी शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलेगा कि अयोध्या नगरी सरयु नदी के तट पर बसी थीं जिसके बाद नंदीग्राम नामक एक गांव था। अयोध्या से 16 मील दूर नंदिग्राम हैं जहां रहकर भरत ने राज किया था। यहां पर भरतकुंड सरोवर और भरतजी का मंदिर हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा तथा मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्यता है कि वशिष्ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां विश्वकर्मा ने नगर का निर्माण किया।
★ रघुवंशों की राजधानी थी अयोध्या
अयोध्या रघुवंशी राजाओं की कौशल जनपद की बहुत पुरानी राजधानी थी। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के वंशजों ने इस नगर पर राज किया था। इस वंश में आगे चलकर राजा हरिशचंद्र, भगिरथ, सगर आदि के बाद राजा दशरथ 63वें शासक थे। इसी वंश के राजा भारत के बाद श्रीराम ने शासन किया था। उनके बाद कुश ने एक इस नगर का पुनर्निर्माण कराया था। कुश के बाद बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इस पर रघुवंश का ही शासन रहा। फिर महाभारत काल में इसी वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों महाभारत के युद्ध में मारा गया था। बृहद्रथ के कई काल बाद तक यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की और उसके बाद से ही अयोध्या के लिए लड़ाइयां शुरु हो गई। उसके बाद तैमूर, तैमूर के महमूद शाह और फिर बाबर ने इस नगर को लूटकर इसे ध्वस्त कर दिया था।
★ अयोध्या का अन्य उल्लेख
वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' संबोधित किया है। उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी 'ली' बराबर है 1/6 मील के) थी। संभवतः उसने बौद्ध अनुयायियों के हिस्से को ही इस आयाम में सम्मिलित किया हो। आईन-ए-अकबरी के अनुसार इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस मानी गई है। नगर की लंबाई, चौड़ाई और सड़कों के बारे में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं- 'यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं।' -(1/5/7)
★ अवध क्यों कहते हैं ?
स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द 'अ' कार ब्रह्मा, 'य' कार विष्णु है तथा 'ध' कार रुद्र का स्वरूप है। इसका शाब्दिक अर्थ है जहां पर युद्ध न हो। यह अवध का हिस्सा है। अवध अर्थात जहां किसी का वध न होता हो। अयोध्या का अर्थ -जिसे कोई युद्ध से जीत न सके। राम के समय यह नगर अवध नाम की राजधानी से जाना जाता था। बौद्ध ग्रन्थों में इन नगरों के पहले अयोध्या और बाद में साकेत कहा जाने लगा। कालिदास ने उत्तरकोसल की राजधानी साकेत और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है।
★ राम के जन्म स्थान पर सबसे पहले किसने बनाया था मंदिर
महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा। पौराणिख उल्लेख के अनुसार यहां जन्मभूमि पर सबसे पहले राम के पुत्र कुश ने एक मंदिर बनवाया था।
★ विक्रमादित्य ने पुन: निर्माण कराया
इसके बाद यह उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने इसे राम जन्मभूमि जानकर यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए थे। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी।
★ पुष्यपित्र शुंग ने कराया पुन: निर्माण
विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे।
★ किसने तोड़ा था अयोध्या में राम मंदिर?
विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां भव्य मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही श्री राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए। अंतत: 1528 में इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के सेनापति मीर बांकी ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।
★ सप्तपुरियों में से एक अयोध्या
प्राचीन उल्लेखों के अनुसार प्रभु श्रीराम का जन्म सप्तपुरियों में से एक अयोध्या में हुआ था। वर्तमान में सरयू तट पर स्थिति जो अयोध्या है वही सप्तपुरियों में से एक है। यदि अयोध्या कहीं ओर होती तो उसका सप्तपुरियों के वर्णन में कहीं ओर बसे होने का उल्लेख होता और वर्तमान की अयोध्या एक तीर्थ स्थल नहीं बनता जो कि महाभारत काल से ही विद्यमान है। भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका में शामिल किया गया है।
★ मिथिला कहां है?
रामायण काल में मिथिला के राजा जनक थे। उनकी राजधानी का नाम जनकपुर है। जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूरब में बसा है। यह शहर भगवान राम की ससुराल के रूप में विख्यात है। इस नगर में ही माता सीता ने अपना बचपन बिताया था। कहते हैं कि यहीं पर उनका विवाह भी हुआ। कहते हैं कि भगवान राम ने इसी जगह पर शिव धनुष तोड़ा था। यहां मौजूद एक पत्थर के टुकड़े को उसी धनुष का अवशेष कहा जाता है। यहां धनुषा नाम से विवाह मंडप स्थित है इसी में विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। यहां से 14 किलोमीटर 'उत्तर धनुषा' नाम का स्थान है। राजा जनक विदेही और श्रमणधर्मी थे। विश्वामित्र का आश्रम वाराणसी के आसपास ही कहीं था। वहीं से श्रीराम जनकपुर गए थे। अयोध्या से जनकपुर लगभग 522 किलोमीटर है।
श्रीराम के काल में अयोध्या की विश्व के प्रमुख व्यापारिक केंद्र में गिनती होती थी। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यहां विभिन्न देशों के कारबारी आया जाया करते थे। यहां महत्वपूर्ण प्रकार के शिल्प और अस्त्र शस्त्र बनते थे। यह हाथी घोड़े के कारोबार का भी केंद्र था। कम्बोज और बाहित जनपद के सबसे बेहतर नस्ल के घोड़े का यहां कारोबार होता था। यहां विंध्याचल और हिमाचल के गजराज भी होते थे। यह भी कहा जाता है कि यहां हाथियों की हाइब्रिड नस्ल का कारोबार भी होता था।
★ अयोध्या था देश का सबसे संपन्न और वैभवशाली नगर
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वह पुरी चारों ओर फैली हुई बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित थी। सड़कों पर नित्य जल छिड़का जाता था और फूल बिछाए जाते थे। अर्थात इन्द्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। इस पुरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार, सुंदर बाजार और नगरी की रक्षा के लिए चतुर शिल्पियों द्वारा बनाए हुए सब प्रकार के यंत्र और शस्त्र रखे हुए थे। वहां के निवासी अतुल धन संपन्न थे, उसमें बड़ी-बड़ी ऊंची अटारियों वाले मकान जो ध्वजा-पताकाओं से शोभित थे और परकोटे की दीवालों पर सैकड़ों तोपें चढ़ी हुई थीं। 'स्त्रियों की नाट्य समितियों की भी यहां कमी नहीं है और सर्वत्र जगह-जगह उद्यान निर्मित थे। आम के बाग नगरी की शोभा बढ़ाते थे। नगर के चारों ओर साखुओं के लंबे-लंबे वृक्ष लगे हुए थे। यह नगरी दुर्गम किले और खाई से युक्त थी तथा उसे किसी प्रकार भी शत्रुजन अपने हाथ नहीं लगा सकते थे। -अनिरुद्ध जोशी
अयोध्या का इतिहास प्राचीन है, और आज करोड़ो भक्तों की पुकार प्रभु श्री राम ने सुन ली और आज भूमि पूजन हुआ और अब मंदिर निर्माण शूर होगा यह रामभक्तो के लिए अत्यंत हर्ष की घड़ी है।
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