26 फरवरी 2019
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हमारे भारत की मीडिया इतनी महान है कि यदि ईसाई धर्मान्तरण करवाने वाली मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी जाती है तो मीडिया उसका लाइव दिखाती है, लेकिन जैसे ही ईसाई पादरियों पर बलात्कार के आरोप लगते हैं या साबित हो जाते हैं तब मीडिया मौन हो जाती है जिन बच्चे-बच्चियों का यौन शोषण हुआ है उनके प्रति कोई भी सहानभूति मीडिया नहीं दर्शाती है ।
क्या आपको बॉलीवुड की वे फिल्मे याद हैं जिनमें फादर को दया और प्रेम का मूर्तिमान स्वरूप दिखाया जाता था तो वहीं हिन्दू सन्यासियों को अपराधी । जो मीडिया हिंदू संत आशारामजी बापू पर झूठा आरोप लगने पर पागल हो गई और एक से बढ़कर एक मनगढ़ंत कहानियां बना दिखाने लगी, वही मीडिया आज चुप है, पता है क्यों ? क्योंकि यौन शोषण करने वाले पादरियों के काले कारनामे सामने आए हैं और अफसोस तो इस बात का है कि उनपर कोई कार्यवाही नहीं की जायेगी ।
आपको बता दें कि वेटिकन में कैथोलिक पोप के नेतृत्व में 2 दिन की मीटिंग हुई जिसका मुख्य एजेंडा था चर्च के पादरियों द्वारा किए गए बाल शोषण के विरुद्ध निर्णय लेना ।
इस मीटिंग के अन्त में पोप ने अपराधियों को दण्डित करने या करवाने की कोई बात नहीं की । आश्चर्य यह है कि भारतीय मीडिया ने इसपर अधिक ध्यान नहीं दिया या जान बूझ कर अनदेखा कर दिया । अगर निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो यह केवल मामले को दबाने की कोशिश है ।
क्या है मामला ?
सन् 2009 में आयरलैंड में, विशेष सरकारी आयोगों द्वारा वर्षों के कार्यों के बाद, डबलिन महाधर्मप्रांत में स्कूल प्रणाली में रयान रिर्पोट एवं बाल दुराचार पर मर्फी रिपोर्ट प्रकाशित किया गया था ।
मई में आई पहली रिपोर्ट के अनुसार 1930 से 1990 के दशक तक कैथोलिक गिरजाघरों के कर्मचारियों द्वारा हज़ारों बच्चों को पीटा गया, सर मुंडवाया गया, आग या पानी से यातना दी गई और बलात्कार किया गया । उन्हें नाम के बदले नम्बर दिया गया था । कभी-कभी तो वे इतने भूखे होते थे कि कूड़ा खाते थे ।
नवम्बर में आई मर्फ़ी रिपोर्ट में सामने आया कि किस तरह चर्च ने दशकों तक बर्बर कारनामों को व्यवस्थित रूप से दबाए रखा । चर्च नेतृत्व बदनामी के डर से चुप रहा तो सरकारी दफ़्तरों ने नज़रें फेर लीं । जनमत के बारी दबाव के कारण चार बिशपों को इस्तीफ़ा देना पड़ा । तीन इस्तीफों पर पोप को अभी फ़ैसला लेना बाकी है । रिपोर्ट के अनुसार आर्कडियोसेज़ डब्लिन में 1975 से 2004 के बीच 300 बच्चों के साथ दुर्व्यवहार हुआ । इस बीच कम से कम 170 धर्माधिकारी संदेह के घेरे में हैं ।
5 फरवरी 2014 ज़ारी अपनी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार समिति (सीआरसी) ने कहा कि वैटिकन को उन पादरियों की फ़ाइलें फिर से खोलनी चाहिए जिन्होंने बाल शोषण के अपराधों को छुपाया है ताकि उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया जा सके । रिपोर्ट में कहा गया है कि वेटिकन ने अपराधों की गंभीरता को स्वीकार नहीं किया है और इसे लेकर समिति बहुत चिंतित हैं ।
सितम्बर 2018 में जर्मनी में छपी जर्मनी में एक रिपोर्ट के अनुसार कैथोलिक चर्च में 1946 से 2014 के बीच 3,677 बच्चों का यौन शोषण हुआ । जर्मन बिशप कॉन्फ्रेंस के प्रमुख कार्डिनल मार्क्स ने पीड़ितों से माफी मांगी है ।
जर्मन बिशप कॉन्फ्रेंस में रिपोर्ट पेश करते हुए कार्डिनल मार्क्स ने पीड़ितों से माफी मांगते हुए कहा, "लंबे समय तक चर्च ने यौन शोषण के मामलों को झुठलाया, नजरअंदाज किया और दबाया । इस विफलता और उसकी वजह से पहुंची तकलीफ के लिए मैं माफी मांगता हूं ।" रिपोर्ट में कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा बच्चों और किशोरों के यौन शोषण के मामले दर्ज किए गए हैं । मार्क्स ने कहा, "मैं नष्ट हुए भरोसे के लिए, चर्च के अधिकारियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए शर्मसार हूं ।"
रिपोर्ट के अनुसार 1946 से 2014 के बीच कैथोलिक चर्च के 1,670 अधिकारियों ने 3,677 नाबालिगों का यौन शोषण किया । रिपोर्ट के लेखकों ने जर्मनी के 27 डियोसेजे में 38,156 फाइलों का विश्लेषण किया जिसमें 1,670 अधिकारियों के मामले में नाबालिगों का यौन शोषण किए जाने के आरोपों का पता चला । इस अध्ययन का आदेश जर्मन बिशप कॉन्फ्रेंस ने ही दिया था । टीम का नेतृत्व मनहाइम के मनोचिकित्सक हाराल्ड द्राइसिंग की टीम कर रही थी ।
रिपोर्ट के अनुसार आरोपियों में 1429 डियोसेजे के पादरी थे, 159 धार्मिक पादरी थे और 24 डियाकोन अधिकारी थे । 54 फीसदी लोगों के मामले में सिर्फ एक का यौन शोषण का आरोप था जबकि 42 प्रतिशत कई मामलों के आरोपी थे । यौन शोषण के पीड़ितों में 63 फीसदी लड़के थे और 35 फीसदी लड़कियां थीं । पीड़ितों में तीन चौथाई का चर्च और आरोपियों के साथ धार्मिक रिश्ता था । वे या तो प्रार्थना सभाओं में सेवा देने वाले थे या धार्मिक कक्षाओं के छात्र ।
रिपोर्ट के अनुसार आरोपियों में 1429 डियोसेजे के पादरी थे, 159 धार्मिक पादरी थे और 24 डियाकोन अधिकारी थे । 54 फीसदी लोगों के मामले में सिर्फ एक का यौन शोषण का आरोप था जबकि 42 प्रतिशत कई मामलों के आरोपी थे । यौन शोषण के पीड़ितों में 63 फीसदी लड़के थे और 35 फीसदी लड़कियां थीं । पीड़ितों में तीन चौथाई का चर्च और आरोपियों के साथ धार्मिक रिश्ता था । वे या तो प्रार्थना सभाओं में सेवा देने वाले थे या धार्मिक कक्षाओं के छात्र ।
कैथोलिक गिरजे में यौन शोषण के पीड़ितों के संघ एकिगे टिश ने इस अध्ययन की आलोचना करते हुए उसे सतही बताया है । संगठन के प्रवक्ता मथियास काच ने कहा है कि पीड़ितों की असली संख्या अध्ययन में बताई गई संख्या से कहीं ज्यादा है । काच ने इस बात की भी आलोचना की है कि अध्ययन के जरिए न तो अपराधियों के नाम बताए गए हैं और न ही इन मामलों को दबाने वाले बिशपों के नाम सामने आए हैं । उन्होंने कहा, "इस समाजशास्त्री अध्ययन को मामले की जांच नहीं समझा जाना चाहिए ।" संगठन ने मामलों की स्वतंत्र जांच कराने और कैथोलिक गिरजे से अपना आर्काइव खोलने की मांग की है ।
जर्मनी की परिवार कल्याण मंत्री फ्रांसिस्का गिफाई ने भी मामले की दृढ़ता से जांच की मांग की है, उन्होंने कहा, "अध्ययन के नतीजे परेशान करने वाले हैं और साथ ही साफ है कि यह बस शुरुआत भर है।" परिवार कल्याण मंत्री ने कहा कि ये सोचना बर्दाश्त से बाहर है कि कैथोलिक चर्च में अब भी ऐसे लोग जिम्मेदार पदों पर हैं जिन्होंने बच्चों का यौन शोषण किया है । फ्रांसिस्का गिफाई ने बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा को सामाजिक समस्या बताया । पिछले साल जर्मनी में बच्चों के यौन शोषण के 11,500 मामले दर्ज किए गए हैं । असली संख्या और ज्यादा होने का अनुमान है।
पुरी दुनिया में पादरी बाल यौन शोषण के लिए बदनाम हैं परन्तु हमारी भारतीय मीडिया ने मानो मौन धारण कर लिया है ।
चर्च के अंदर सब कुछ गुप्त और रहस्यमय रखा जाता है । इससे इसके बारे में कई किताबें लिखी जाने के बावजूद भी परनाला (बड़ी नाली) वहाँ-का-वहाँ है । पश्चिम के मीडिया में चर्च की डार्क साइड (अंधकारमय पहलू) की चर्चा हो रही है । पवित्र हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने वाली भारतीय मीडिया इस पर चुप क्यों है ये बड़ा सवाल है ?
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