14 मार्च 2019
होली का त्यौहार पूरे देश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है । यह पर्व मूल में बड़ा ही स्वास्थ्यप्रद एवं मन की प्रसन्नता बढ़ाने वाला है, लेकिन दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इस पवित्र उत्सव में नशा, वीभत्स गालियाँ और केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग करके कुछ लोगों ने ऋषियों की हितभावना, समाज की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और प्राकृतिक उन्नति की भावनाओं का लाभ लेने से समाज को वंचित कर दिया है ।
प्राकृतिक रंगों से होली खेलें बिना जो लोग ग्रीष्म ऋतु बिताते हैं, उन्हें गर्मीजन्य उत्तेजना, चिड़चिड़ापन, खिन्नता, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), तनाव, अनिद्रा इत्यादि तकलीफों का सामना करना पड़ता है ।
मीडिया सूखे रंगों से होली खेलने की सलाह देती है, लेकिन सूखे केमिकल रंगों से होली खेलने की सलाह देनेवाले लोग वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ हैं । क्योंकि डॉक्टरों का कहना है कि सूखे रासायनिक रंगों से होली खेलने से शुष्कता, एलर्जी एवं रोमकूपों में रसायन अधिक समय तक पड़े रहने से भयंकर त्वचा रोगों का सामना करना पड़ता है । गुर्दे की बीमारी, आँखों की जलन, कैंसर जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है ।
रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...
1 - काले रंग में लेड ऑक्साइड
पड़ता है जो गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी करता है ।
2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व
लाता है ।
3 - सिल्वर रंग में एल्यूमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर करता है ।
4- नीले रंग में प्रूशियन ब्लू (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) से भयंकर त्वचारोग होता है ।
5 - लाल रंग जिसमें मरक्युरी सल्फाइड
होता है जिससे त्वचा का कैंसर होता है ।
6- बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड
होता है जिससे दमा, एलर्जी
होती है ।
पलाश रंग से धुलेंडी खेलें..
पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें । यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है । शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है । इसमें औषधीय गुण होते हैं । आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है ।
रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामुहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. पानी लगता है ।
इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।
पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।
(यह लेख संत आसारामजी आश्रम से प्रकाशित ऋषि प्रसाद से लिया गया है)
त्वचा विशेषज्ञ डॉ. आनंद कृष्णा कहते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सारा साल हम जो त्वचा और बालों का ध्यान रखते हैं वह होली के अवसर पर भूल जाते हैं और केमिकल रंगों से इनको भारी नुकसान पहुँचाते हैं ।
दैनिक भास्कर अखबार की तो मुर्खानी की हद हो गई जो कई सालों से केवल तिलक होली खेलने का प्रचलन कर रहा है ।
भास्कर को पता नहीं है कि जिन ऋषि मुनियों ने होली त्यौहार बनाया है वो हमारे उत्तम स्वास्थ्य और शरीर में छुपे हुए रोगों को मिटाने के लिए बनाया है ।
केमिकल रंगों से होली खेलने के बाद भी बहुत अधिक पानी खर्च करना पड़ता है । एक-दो बार खूब पानी से नहाना पड़ता है क्योंकि रासायनिक रंग जल्दी नहीं धुलते । प्राकृतिक रंग जल्दी ही धुल जाते हैं ।
प्राकृतिक रंगो से होली खेलने से पानी की अधिक खपत का प्रलाप करने वाली मीडिया को शराब, कोल्डड्रिंक्स, गौहत्या के लिए हररोज बरबाद किया जा रहा करोड़ों लीटर पानी क्यों नही दिखता...???
पूर्व में महाराष्ट्र के नेता विनोद तावडे ने सबूतों के साथ पानी के आँकड़े पेश किये जिसमें शराब बनाने वाली कम्पनियां अरबों लीटर पानी की बर्बादी करती हैं ।
‘डीएनए न्यूज’ की रिपोर्ट के अनुसार 1 लीटर कोल्डड्रिंक बनाने में 55 लीटर पानी बरबाद होता है ।
कत्लखाने में 1 किलो गोमांस के लिए 15,000 लीटर पानी बर्बाद होता है । कोल्डड्रिंक्स और शराब के कारखानों में मशीनरी और बोतलें धोने में तथा बनाने की प्रक्रिया में करोड़ों लीटर पानी बरबाद होता है ।
बड़े-बड़े होटलों में आलीशान स्विमिंग टैंक्स के लिए लाखों लीटर पानी की सप्लाई बेहिचक की जाती है ।
हकीकत यह होते हुए भी मीडिया द्वारा कभी इसका विरोध नहीं किया गया ।
'प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ के अनुसार #रासायनिक रंगों से होली खेलना अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है ।
डॉ. फ्रांसिन पिंटो के अनुसार रासायनिक रंगों से होली खेलने के बाद उन्हें धोने के लिए प्रति व्यक्ति 35 से 500 लीटर तक पानी खर्च करता है ।
यह केमिकल युक्त पानी पर्यावरण के लिए घातक है। घर भी रंगों से खराब हो जाते हैं । उन्हें धोने में कम-से-कम 100 लीटर पानी बरबाद हो जाता है ।
अतः आप इस बार वैदिक होली मनाकर स्वयं को स्वस्थ रखें । प्राकृतिक रंगों से होली खेलें, केमिकल रंगों से बचें । ऋषि-मुनियों द्वारा बनाया गया यह त्यौहार जरूर मनायें, जिससे आपका स्वास्थ्य भी बढ़िया रहे और गर्मी में आने वाले रोगों से भी रक्षा हो ।
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