Monday, April 29, 2019

जिन्ना की तारीफ़, लेकिन यह इतिहास आपके कलेजों को फाड़ देगा

29 अप्रैल 2019 

🚩हाल ही में एक नेता ने पाकिस्तान के जन्में मोहम्मद अली जिन्ना को क्रांतिकारी और देश के लिए संघर्ष करने वाला बताया । हालाँकि बाद में वह अपने बयान से पलट गए । पूर्व में एक वरिष्ठ नेता ने जिन्ना को महान बता दिया था । मेरे विचार से जिन्ना के गुणगान करने वाला हर नेता उन हिन्दुओं का अपमान कर रहा है ।  जिन्होंने 1947 में अपना सब कुछ धर्मरक्षा के लिए लुटा दिया । यह अपमान हमारे पूर्वजों का है । जिन्होंने अपने पूर्वजों की धरती को त्याग दिया मगर अपना धर्म नहीं छोड़ा । चाहे उसके लिए उन्होंने अपना घर, परिवार, खेत-खलिहान सब कुछ त्यागना पड़ा । उन महान आत्माओं ने धर्मरक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया । आज के नेता अपनी बयानबाजी कर उनके त्याग का अपमान कर रहे हैं ।   

🚩इस लेख में 1947 में जिन्ना के ईशारों पर जो अत्याचार पाकिस्तान में बलूच रेजिमेंट ने हिन्दुओं पर किया । उसका उल्लेख किया गया है । हर हिन्दू को यह इतिहास ज्ञात होना चाहिए । ताकि कोई आगे से जिन्ना के गुणगान करें तो उसे यथोचित प्रतिउत्तर दिया जा सके । 
🚩विभाजन पश्चात भारत सरकार ने एक तथ्यान्वेषी संगठन बनाया जिसका कार्य था पाकिस्तान छोड़ भारत आये लोगों से उनकी जुबानी अत्याचारों का लेखा जोखा बनाना । इसी लेखा जोखा के आधार पर गांधी हत्याकांड की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के जज जी डी खोसला लिखित, 1949 में प्रकाशित , पुस्तक ' स्टर्न रियलिटी'  विभाजन के समय दंगों , कत्लेआम,हताहतों की संख्या और राजनैतिक घटनाओं को दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है । हिंदी में इसका  अनुवाद और समीक्षा ' देश विभाजन का खूनी इतिहास (1946-47 की क्रूरतम घठनाओं का संकलन)' नाम से सच्चिदानंद चतुर्वेदी ने किया है । नीचे दी हुई चंद घटनायें इसी पुस्तक से ली गई हैं जो ऊंट के मुंह में जीरा समान हैं ।

🚩11 अगस्त 1947 को सिंध से लाहौर स्टेशन पह़ुंचने वाली हिंदुओं से भरी गाड़ियां खून का कुंड बन चुकी थीं। अगले दिन गैर मुसलमानों का रेलवे स्टेशन पहुंचना भी असंभव हो गया । उन्हें रास्ते में ही पकड़कर उनका कत्ल किया जाने लगा । इस नरहत्या में बलूच रेजिमेंट ने प्रमुख भूमिका निभाई । 14 और 15 अगस्त को रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध नरमेध का दृश्य था । एक गवाह के अनुसार स्टेशन पर गोलियों की लगातार वर्षा हो रही थी । मिलिट्री ने गैर मुसलमानों को स्वतंत्रता पूर्वक गोली मारी और लूटा ।

🚩19 अगस्त तक लाहौर शहर के तीन लाख गैर मुसलमान घटकर मात्र दस हजार रह गये थे । ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी ही बुरी थी । पट्टोकी में 20 अगस्त को धावा बोला गया जिसमें ढाई सौ गैर मुसलमानों की हत्या कर दी गई । गैर मुसलमानों की दुकानों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई । इस आक्रमण में बलूच मिलिट्री ने भाग लिया था ।

🚩25 अगस्त की रात के दो बजे शेखपुरा शहर जल रहा था । मुख्य बाजार के हिंदू और सिख दुकानों को आग लगा दी गई थी । सेना और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची । आग बुझाने के लिये अपने घर से बाहर निकलने वालों को, गोली मारी जाने लगी । उपायुक्त घटनास्थल पर बाद में पहुंचा । उसने तुरंत कर्फ्यू हटाने का निर्णय लिया और उसने और पुलिस ने यह निर्णय घोषित भी किया । लोग आग बुझाने के लिये दौड़े ।पंजाब सीमा बल के बलूच सैनिक, जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया गया था, लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगे ।एक घटनास्थल पर ही मर गया, दूसरे हकीम लक्ष्मण सिंह को रात में ढाई बजे मुख्य गली में जहाँ आग जल रही थी, गोली लगी । अगले दिन सुबह सात बजे तक उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दिया गया । कुछ घंटों में उनकी मौत हो गई ।

🚩गुरुनानक पुरा में 26 अगस्त को हिंदू और सिखों की सर्वाधिक व्यवस्थित वध की कार्यवाही हुई । मिलिट्री द्वारा अस्पताल में लाये जाने सभी घायलों ने बताया कि उन्हें बलूच सैनिकों द्वारा गोली मारी गयी या 25 या 26 अगस्त को उनकी उपस्थिति में मुस्लिम झुंड द्वारा छूरा या भाला मारा गया । घायलों ने यह भी बताया कि बलूच सैनिकों ने सुरक्षा के बहाने हिंदू और सिखों को चावल मिलों में इकट्ठा किया । इन लोगों को इन स्थानों में जमा करने के बाद बलूच सैनिकों ने पहले उन्हें अपने कीमती सामान देने को कहा और फिर निर्दयता से उनकी हत्या कर दी । घायलों की संख्या चार सौ भर्ती वाले और लगभग दो सौ चलंत रोगियों की हो गई । इसके अलावा औरतें और सयानी लड़कियाँ भी थीं जो सभी प्रकार से नंगी थीं । सर्वाधिक प्रतिष्ठित घरों की महिलाएं भी इस भयंकर दु:खद अनुभव से गुजरी थीं । एक अधिवक्ता की पत्नी जब अस्पताल में आई तब वस्तुतः उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था । पुरुष और महिला हताहतों की संख्या बराबर थी । हताहतों में एक सौ घायल बच्चे थे ।

🚩शेखपुरा में 26 अगस्त की सुबह सरदार आत्मा सिंह की मिल में करीब सात आठ हजार गैर मुस्लिम शरणार्थी शहर के विभिन्न भागों से भागकर जमा हुये थे । करीब आठ बजे मुस्लिम बलूच मिलिट्री ने मिल को घेर लिया । उनके फायर में मिल के अंदर की एक औरत की मौत हो गयी । उसके बाद कांग्रेस समिति के अध्यक्ष आनंद सिंह मिलिट्री वालों के पास हरा झंडा लेकर गये और पूछा आप क्या चाहते हैं । मिलिट्री वालों ने दो हजार छ: सौ रुपये की मांग की जो उन्हें दे दिया गया ।इसके बाद एक और फायर हुआ ओर एक आदमी की मौत हो गई । पुन: आनंद सिंह द्वारा अनुरोध करने पर बारह  सौ रुपये की मांग हुयी जो उन्हें दे दिया गया । फिर तलाशी लेने के बहाने सबको बाहर निकाला गया।सभी सात-आठ हजार शरणार्थी बाहर निकल आये । सबसे अपने कीमती सामान एक जगह रखने को कहा गया । थोड़ी ही देर में सात-आठ मन सोने का ढेर और करीब तीस-चालीस लाख जमा हो गये । मिलिट्री द्वारा ये सारी रकम उठा ली गई । फिर वो सुंदर लड़कियों की छंटाई करने लगे । विरोध करने पर आनंद सिंह को गोली मार दी गयी । तभी एक बलूच सैनिक द्वारा सभी के सामने एक लड़की को छेड़ने पर एक शरणार्थी ने सैनिक पर वार किया । इसके बाद सभी बलूच सैनिक शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाने लगे । अगली प्रांत के शरणार्थी उठकर अपनी ही लड़कियों की इज्जत बचाने के लिये उनकी हत्या करने लगे ।

🚩1 अक्टूबर की सुबह सरगोधा से पैदल आने वाला गैर मुसलमानों का एक बड़ा काफिला लायलपुर पार कर रहा था । जब इसका कुछ भाग रेलवे फाटक पार कर रहा था अचानक फाटक बंद कर दिया गया । हथियारबंद मुसलमानों का एक झुंड पीछे रह गये काफिले पर टूट पड़ा और बेरहमी से उनका कत्ल करने लगा । रक्षक दल के बलूच सैनिकों ने भी उनपर फायरिंग शुरु कर दी । बैलगाड़ियों पर रखा उनका सारा धन लूट लिया गया। चूंकि आक्रमण दिन में हुआ था , जमीन लाशों से पट गई । उसी रात खालसा कालेज के शरणार्थी शिविर पर हमला किया गया । शिविर की रक्षा में लगी सेना ने खुलकर लूट और हत्या में भाग लिया । गैर मुसलमान भारी संख्या में मारे गये और अनेक युवा लड़कियों को उठा लिया गया ।

🚩अगली रात इसी प्रकार आर्य स्कूल शरणार्थी शिविर पर हमला हुआ । इस शिविर के प्रभार वाले बलूच सैनिक अनेक दिनों से शरणार्थियों को अपमानित और उत्पीड़ित कर रहे थे । नगदी और अन्य कीमती सामानों के लिये वो बार बार तलाशी लेते थे । रात में महिलाओं को उठा ले जाते और बलात्कार करते थे । 2 अक्टूबर की रात को विध्वंश अपने असली रूप में प्रकट हुआ । शिविर पर चारों ओर से बार-बार हमले हुये । सेना ने शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाईं । शिविर की सारी संपत्ति लूट ली गई । मारे गये लोगों की सहीं संख्या का आंकलन संभव नहीं था क्योंकि ट्रकों में बड़ी संख्या में लादकर शवों को रात में चेनाब में फेंक दिया गया था ।

🚩करोर में गैर मुसलमानों का भयानक नरसंहार हुआ । 7 सितंबर को जिला के डेढ़ेलाल गांव पर मुसलमानों के एक बड़े झुंड ने आक्रमण किया । गैर मुसलमानों ने गांव के लंबरदार के घर शरण ले ली । प्रशासन ने मदद के लिये दस बलूच सैनिक भेजे । सैनिकों ने सबको बाहर निकलने के लिये कहा । वो औरतों को पुरूषों से अलग रखना चाहते थे । परंतु दो सौ रूपये घूस लेने के बाद औरतों को पुरूषों के साथ रहने की अनुमति दे दी । रात मे सैनिकों ने औरतों से बलात्कार किया । 9 सितंबर को सबसे इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया । लोगों ने एक घर में शरण ले ली । बलूच सैनिकों की मदद से मुसलमानों ने घर की छत में छेद कर अंदर किरोसिन डाल आग लगा दी । पैंसठ लोग जिंदा जल गये ।

🚩यह लेख हमने संक्षिप्त रूप में दिया है।  विभाजन से सम्बंधित अनेक पुस्तकें हमें उस काल में हिन्दुओं पर जो अत्याचार हुआ, उससे अवगत करवाती है, हर हिन्दू को इन पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। क्योंकि "जो जाति अपने इतिहास से कुछ सबक नहीं लेती उसका भविष्य निश्चित रूप से अंधकारमय होता है। " -डॉ विवेक आर्य 

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Sunday, April 28, 2019

वीर हरिसिंह नलवा ने अफगानिस्तान तक लहरा दिया था भग्वाराज

28 अप्रैल 2019 

🚩 *भारतवर्ष विश्व के उन समृद्ध राष्ट्रों में सबसे ऊपर हैं जिनका इतिहास वीरों की गाथाओ से भरा हुआ हैं किन्तु दुर्भाग्य से वर्तमान इतिहास लेखन में ऐसे लोगो की छाप रही हैं जिन्हें भारत से कभी प्रेम नहीं रहा और जिनकी रूचि हमेशा भारत के इतिहास के प्रति वामपंथ के पूर्वाग्रह से ग्रसित रही हैं। भारत के पिछले 250 वर्ष के इतिहास में जब भी वीर योद्धाओ का नाम लिया जायेगा, वीर शिरोमणि हरी सिंहजी नलवा के नाम के उल्लेख के बिना अधुरा ही माना जायेगा।*
🚩 *भगवान् कृष्ण ने गीता में कहा हैं जब-जब पृथ्वी पर अधर्म का साम्राज्य बढ़ता हैं तब-तब ईश्वर किसी न किसी रूप में जन्म लेते हैं, और धर्म की स्थापना करते हैं। ऐसे ही समय में जब भारत वर्ष में मुस्लिम आक्रांताओ के जुल्म से जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही थी, उस समयवीर शिरोमणि नलवाजी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित गुजरांवाला में 28 अप्रैल, 1791 को सिख पंथ मानने वाले क्षत्रिय परिवार में हुआ था| उनके पिताजी का नाम गुरदयाल उप्पल और माताजी का नाम धर्मा कौर था| उनको बचपन में सभी प्रेमवश “हरिया” के नाम से पुकारते थे। 7 वर्ष की उम्र में आपके पिताजी का देहावसान हो गया था। आपका नाम हरिसिंह था और नलवा (राजा नल के समान वीरता दिखाने वाला) उपनाम महाराजा रणजीत सिंहजी द्वारा उनको दिया गया था। महाराजा रणजीतसिंहजी ने सन 1805 में वसंतोत्सव के समय एक प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए तीरंदाजी, तलवार और भाला चलाने में सबसे अद्भुत प्रदर्शन किया।*

🚩 *इस अद्भुत प्रदर्शन के बाद महाराजा रणजीत सिंहजी ने उनको अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। अपने रणकौशल और सुझबुझ के चलते हरिसिंहजी जल्द ही महाराजा के विश्वासपात्र हो गए। एक बार शिकार पर जाते समय महाराजा ने हरिसिंहजी को अपने विश्वासपात्र के रूप में साथ ले लिया। शिकार की तलाश में घने जंगल की ओर जाते समय अचानक एक आदमखोर शेर ने महाराजा रणजीतसिंहजी पर हमला कर दिया। इस आकस्मिक हमले में कोई भी कुछ समझ पाता शेर ने महाराजा रणजीत सिंह जी को जमीन पर गिरा दिया। जैसे ही शेर हमला करता हरिसिंहजी ने दुगनी फुर्ती दिखाते हुए निहत्थे ही शेर के मुँह को दबोच लिया और उसे दूर फेंक दिया इसके बाद तलवार से उसका शिरच्छेद कर दिया। हरिसिंह के इस अद्भुत शौर्य और साहस को देखते हुए महाराजा रणजीत सिंह जी ने हरिसिंह जी को कहा अरे तुम तो नलवा (राजा नल के समान वीरता दिखाने वाला) हो| इसके बाद उन्हें नलवा के उपनाम से ही पुकारा जाने लगा और आगे जाकर सरदार की उपाधि भी मिली।*

🚩 *इस घटना के बाद हरिसिंह जी नलवा ने कभी मुड़कर नहीं देखा और न केवल महाराजा रणजीत सिंह जी के सबसे प्रमुख सेना नायको में आपने अग्रणी स्थान प्राप्त किया वरन विश्व के महानतम सेना नायको में उनका नाम आता हैं। उनने जीवन में कठिन परिस्थितियों में कई युद्ध लडे और उनमें विजय प्राप्त की। उनके द्वारा लडे गए प्रमुख युद्धों में मुल्तान युद्ध, जमरूद युद्ध और नोशेरा के लिए किये गए युद्ध हैं। 1813 से लेकर 1823 तक दस साल तक किये गए युद्धों में उन्होंने कश्मीर, अटक, मुल्तान और पेशावर को जितने में महत्वूर्ण योगदान दिया और विजय अभियान को सफलतापूर्वक संपन्न किया। सन 1824 तक नलवाजी के नेतृत्व में महाराजा रणजीत सिंह जी का अधिपत्य कश्मीर, मुल्तान, और पेशावर तक हो गया और जालिम मुस्लिम आक्रमणकारियों से जनता को मुक्त करवाया। मुल्तान के युद्ध में नलवाजी ने महाराजा रंजीतसिंह जी के कहने पर आत्मबलिदानी दस्ते का नेतृत्व करके विजय सुनिश्चित करवाई।*

🚩 *आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान उस समय कई स्वतंत्र प्रदेशो में बटे हुए थे और इन जगहों पर खूंखार कबीलों और निर्दयी मुस्लिम बादशाहों का राज था। महाराजा रंजीतसिंह जी ने हरिसिंह नलवाजी की काबिलियत को देखते हुए उन्हें अपना सबसे बड़ा सेना नायक बनाया और इन प्रदेशो को जितने की कमान सौंपी। नलवाजी ने अद्भुत शौर्य और रणकौशल का प्रदर्शन करते हुए इन सभी विखंडित प्रदेशो को कुछ ही वर्षो में खालसा साम्राज्य में मिला दिया। इसके लिए उन्हें कई भयंकर युद्ध करने पड़े किन्तु उनके रणकौशल और शक्ति के आगे कोई टिक न सका। वे शत्रुओ पर बिलकुल भी रहम नहीं करते थे और उनकी इसी खासियत के चलते शत्रु उनसे डरकर भागते थे। अफगानिस्तान के बादशाह के भाई सुल्तान मुहम्मद का शासन पेशावर पर था। महाराजा रंजीतसिंह जी के आदेश पर जब हरिसिंह नलवा ने पेशावर पर आक्रमण किया तो इसकी सुचना पाते ही सुल्तान मुहम्मद थर-थर कांपने लगा और युद्ध किये बिना ही भाग खड़ा हुआ। इच्छाशक्ति और दृढ़ता हरिसिंह नलवाजी के गहने थे। ऐसा कहा जाता हैं एक बार बारिश के समय पेशावर के किले से नलवाजी ने देखा की बारिश के कारण घरो की छत की मिट्टी बह रही थी तो लोग अपने घरो की छत को ठोकते-पिटते जिससे मिट्टी का बहना रुक जाता। ये देखकर नलवाजी ने गौर किया की अफगान की मिट्टी का मिजाज ही ऐसा हैं की ठोकने और पीटने से ही ये ठीक रहती हैं उसके बाद से उन्होंने खूंखार और लड़ाकू कबीलों को उन्ही की भाषा में ठोक-पीटकर नियंत्रण में रखा और सफलतापूर्वक राज्य चलाया।*

🚩 *उत्तर भारत का क्षेत्र मुस्लिमों और मुगलों के द्वारा मचाई गयी 800 साल की तबाही, बलात्कार, जबरन धर्मान्तरण और लूटमार से त्रस्त था। ऐसे समय में महाराजा रंजीतसिंहजी के सफल नेतृत्व में सिक्ख साम्राज्य की स्थापना हुई और नलवाजी जैसे सफलतम सेना नायक के कुशल नेतृत्व में अफगानिस्तान जैसे दुर्गम प्रदेश जो खूंखार और लड़ाकू कबीलों से पटा हुआ था पर विजय प्राप्त कर धर्म की स्थापना हुई। हरिसिंह नलवाजी अपने जीवनकाल में इन खूंखार कबीलों में आतंक का पर्याय बन गए थे, ये क्रूर कबीले भी नलवाजी के नाम से थर-थर कांपते थे। ऐसा कहा जाता हैं की जब इन कबीलों में जब कोई बच्चा सोता नहीं था तो माँ अपने बच्चे को सुलाने के लिए कहती थी सो जा वरना नलवा आ जायेगा।*

🚩 *बढ़ते हुए मुस्लिम और अफगानी कबीलों के हमलो को रोकने के लिय नलवाजी के नेतृत्व में जमरूद में एक अभेद किलेका निर्माण करवाया। यद्यपि यहाँ सिक्ख साम्राज्य स्थापित हो चूका था किन्तु यदा-कदा मुस्लिम और अफगानी कबीले रुक-रूककर आक्रमण किया करते थे किन्तु इस किले के निर्माण के बाद यह मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए कब्रगाह सिद्ध हुआ। ऐसे ही 30 अप्रैल 1837 में एक अफगानों ने पूरी शक्ति के साथ जमरूद पर आक्रमण किया, उस समय हरिसिंह नलवा बीमार थे। इस बीमारी की अवस्था में भी नलवाजी ने अपनी तलवार और युद्ध कौशल से अफगानी आक्रमणकारियों के दांत खट्टे कर दिए और 14 तोपों को छीन लिया किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। शत्रु पक्ष से दो गोली नलवाजी के सीने में लगी और प्राणघातक सिद्ध हुई, नलवाजी वीर गति को प्राप्त हुए। इतना होने पर भी यह नलवाजी का कुशल नेतृत्व ही था की इस युद्ध में भी अफगानों को हार का ही सामना करना पड़ा।*

🚩 *पूजनीय गुरु गोविन्दसिंहजी द्वारा 1699 में स्थापित “खालसा” पंथ जो पञ्च तत्व (केश, कंघा, कदा, कच्चा और किरपाण) धारण करने वाली संत सैनिको की संघठित फ़ौज थी जिसमें शामिल होने वाला व्यक्ति “खालसा” या “अमृतधारी” कहलाता था। नवलाजी उसी महान “खालसा” परंपरा के श्रेष्ठतम संवाहको में से एक थे। उनके रण कौशल और साहस के कारण ही दुर्जेय और दुर्गम अफगानिस्तान पर महाराजा रंजीतसिंहजी के नेतृत्व में धर्म प्रणित सिक्ख साम्राज्य को आपने सफलतापूर्वक स्थापित किया। यह वह प्रदेश था जिसे ब्रिटिश, रशियन और अमेरिकन भी जीत न सके थे। यही वह कारण है की उनकी गिनती भारत ही नहीं विश्व के महानतम सेना नायको में की जाती हैं।*

🚩 *उनकी उपलब्धियों के कारण ही सर हेनरी ग्रिफिन ने हरिसिंह नलवा को “खालसा जी का चैंपियन” के नाम से संबोधित किया था| ब्रिटिश इतिहासकारों ने भी उनकी तुलना नेपोलियन के प्रसिद्ध सेना नायको से की थी किन्तु दुर्भाग्य से स्वतन्त्र भारत के इतिहास में आपको यथोचित स्थान न मिल सका जिसके वे अधिकारी थे। भारतीय समाज उनके इस अतुलनीय योगदान के लिए हमेशा आपको याद करता रहेगा।* - पुष्यमित्र जोशी

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Saturday, April 27, 2019

आज की नारी को कैसी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए ?

27 अप्रैल 2019 

🚩फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण द्वारा नारी अधिकारों के समर्थन में एक बयान जारी किया गया है कि नारी को यह अधिकार होना चाहिए कि वह विवाह पूर्व किसी से भी शारीरिक सम्बन्ध बना सके । नारी अधिकारों को लेकर अनेक अंग्रेजी अख़बारों में कुछ लेख प्रकाशित हुए जिनका विषय भी महिला अधिकारों की बात करना है ।
🚩नारी अधिकारों की आड़ में महिलाओं को क्या सन्देश दिया जा रहा है यह जानना अत्यंत आवश्यक है । 16 दिसंबर के निर्भया कांड पर एक विदेशी पत्रकार द्वारा चलचित्र बनाने पर विवाद खड़ा हो गया है क्योंकि बलात्कार के दोषी ड्राइवर मुकेश की विकृत सोच को सभी भारतीय पुरुषों की सोच के रूप में प्रचारित कर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा हैं जबकि यह सोच का विषय हैं कि ISIS द्वारा इराक में यजीदी लड़कियों को गुलाम बनाकर बेचने, बोको हराम द्वारा अफ्रीका में सैकड़ों स्कूल की लड़कियों का अपहरण कर उनके जबरन धर्म परिवर्तन कर उनका मुस्लिम आतंकवादियों से विवाह करने, अनेक मुस्लिम मुल्कों में आदि को एक से अधिक विवाह करने, पाकिस्तान में बलात्कार की शिकार महिला को बलात्कार सिद्ध करने के लिए दो पुरुषों की गवाही प्रस्तुत करने, खाड़ी मुस्लिम देश में सामूहिक बलात्कार की शिकार महिला को गर्भावस्था में बलात्कार के लिए कोड़े लगाने जैसे घटनाओं में विदेशी पत्रकार मौन रहना दोहरे मापदंड को सिद्ध करता है ।

🚩8 मार्च, 2015 के हिंदुस्तान टाइम्स  अख़बार में महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को आज़ादी के नाम पर कुछ अधिकार दिए जाने की वकालत की गई है । इन कुछ अधिकारों को पढ़कर आप यह सोचिये की इन कुछ अधिकारों को देने से नारी जाति का उत्थान होगा या पतन होगा । यह अधिकार है उन्मुक्त सम्बन्ध बनाने का अधिकार, विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध बनाने का अधिकार, समलैंगिकता का अधिकार, शराब आदि नशा करने का अधिकार, पुरुषों से दोस्ती करने का अधिकार, कम से कम कपड़े पहनने का अधिकार, सन्नी लियॉन बनने का अधिकार, वेश्या बनने का अधिकार, अश्लील फिल्में देखने का, अनेक पुरुषों से सम्बन्ध बनाने का अधिकार, लिव इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार आदि । इस सब के साथ एक सन्देश यह भी दिया गया कि आज की नारी सती सावित्री नहीं है, न केवल एक आदमी के साथ वह अपना पूरा जीवन बिताने वाली हैं, उसे अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए अथवा अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं हैं, उसे खुले में सांस लेने का पूरा अधिकार हैं, अब उसे चरित्रवान बनने की कोई आवश्यकता नहीं हैं ।

🚩अब पाठक दूसरे पक्ष को समझें । सर्वप्रथम तो पश्चिमी सोच का अन्धानुसरण करने वाले लोग जिन बातों को नारी का अधिकार बताकर प्रचारित कर रहे हैं वह अधिकार नहीं अपितु मीठा जहर हैं जिसका सेवन करने वाला भोग की अंधी गलियों में सदा-सदा के लिए भटकता है । जब निर्भया जैसे कांड होते हैं तो आप उसका दोष फिल्मों आदि के द्वारा बढ़ावा दिए गए नंगपने से होने वाले मानसिक प्रदुषण को क्यों नहीं ठहराते ? यह कहने में आपको शर्म क्यों आती हैं कि निर्भया कांड को अंजाम देने वाले बलात्कारी नियमित रूप से अश्लील फिल्में देखते थे, शराबी और मांसाहारी थे अर्थात सदाचार से कोसो दूर थे ।

🚩जब कोई सदाचार की बात करता है जो पुरुष और नारी दोनों के लिए समान रूप से अनिवार्य नियम हैं तब आप उसे पुरानी, दकियानूसी, आज के ज़माने के लिए नहीं आदि बातें करते हैं एवं खजुराओ की नग्न मूर्तियां एवं वात्सायन के कामसूत्र का बहाना बनाते हैं । इसलिए स्पष्ट रूप से अश्लीलता फैलाने के आप भी दोषी हैं क्योंकि आप सदाचार का सन्देश देने वाली शिक्षा के स्थान पर व्यभिचार को बढ़ावा देने वाली बातों को प्रचारित हैं । एक और व्यभिचार को बढ़ावा देना दूसरी और उससे होने वाले निर्भया जैसे कांड होने पर छाती पीट-पीट कर रोना और अंत में इस सब पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर फ़िल्म बनाकर पश्चिमी देशों में हमारी छवि ख़राब करना आपकी विकृत मानसिकता को प्रकट करता है ।

🚩नारी के अधिकारों को अगर जानना भी हो तो वेदों से जानो। वेद कहते हैं - मेरे पुत्र शत्रु हन्ता हों और पुत्री तेजस्वनी हो (ऋग्वेद 10/159/3) ,राष्ट्र में विजयशील सभ्य वीर युवक पैदा हो, वहां साथ ही बुद्धिमती नारियों उत्पन्न हो (यजुर्वेद 22/22)। वेदों में पत्नी को उषा के सामान प्रकाशवती, वीरांगना, वीर प्रसवा, विद्या अलंकृता, स्नेहमयी माँ, पतिव्रता, अन्नपूर्णा, सदगृहणी, सम्राज्ञी आदि से संबोधित किया गया है, जो निश्चित रूप से नारी जाति को उचित सम्मान प्रदान करते हैं ।

🚩वेदों में दहेज शब्द का सहीं अर्थ बताया गया है । दहेज़ गुणों का नाम हैं और वेद कहते है कि पिता ज्ञान, विद्या, उत्तम संस्कार आदि गुणों के साथ वधु को वर को भेंट करे और अंत में हमें यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि वेदादि शास्त्रों में नारी को पुरुष से बढ़ कर अधिकार दिया गया है । मनु स्मृति कहती हैं "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा, अर्थात सत्कार होता है, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है । नारी के अधिकार उसके उच्च विचार एवं महान गुणों से सुशोभित होना है नाकि व्यभिचारी बनना है ।

🚩इसलिए महिला अधिकारों की आड़ में समाज को व्यभिचार का नहीं अपितु सदाचार का सन्देश देना चाहिए । नारी का सम्मान तभी होगा जब विचारों में पवित्रता होगी एवं सदाचारी जीवन होगा । निर्भया को सच्ची श्रद्धांजलि समाज को सदाचारी बनाना होगा जिससे हर नारी अपने आपको सुरक्षित समझे एवं हर पुरुष अपने आपको नारी का रक्षक समझे । महिला अधिकारों की आड़ में पश्चिमी पाखंड के स्थान पर वैदिक सदाचार को अपनाये । -डॉ विवेक आर्य

🚩हे भारत की माताओं, बेटियों ! अपनी महिमा में जागो । हिम्मत करो । सिनेमा (चलचित्र) देखकर या 'डिस्को' नृत्य करके अपनी जीवनशक्ति नष्ट करने वालों को वह भले मुबारक हो, किंतु आप तो भारत की शान हो । हे माताओं-बहनों-बेटियों ! तुम फिर से अपनी आध्यात्मिक शक्ति जगाओ । यहाँ तक कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी माँ अनसूया के द्वार पर भिक्षा माँगने पधारे थे । जो महानता अनसूया में थी वही महानता बीजरूप में आपके अंदर भी छुपी है ।

🚩हे भारत की नारी ! तू अपनी शान को फिर से बुलंद कर ! फिल्मों की, पाश्चात्य जगत के तुच्छ नाच-गान और फैशन की गुलाम मत हो वरन् अपनी महिमा को पहचान ।

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Friday, April 26, 2019

देश-विदेश में मनाया गया बापू आसारामजी का जन्मदिवस एक अनोखे अंदाज में

25 Apr 2019

🚩आप जानकर हैरान हो जायेंगे कि कैसे संत आसारामजी बापू के अनुयायी उनका जन्मदिन दिवस (अवतरण दिवस ) “विश्व सेवा दिवस” के रूप में मनाते हैं !!

🚩 67  महीनों से बिना सबूत जेल में बन्द हिन्दू संत आसारामजी बापू, लेकिन देश-विदेश में फैले उनके अनुयायियों ने उनका अवतरण दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया ।


🚩किसी का जन्मदिवस होता है तो हम केक काटते हैं । मोमबत्ती जलाते हैं, बड़ी बड़ी पार्टियां करते हैं, लेकिन संत आसारामजी बापू के अनुयायियों ने उनका अवतरण दिन कुछ अनोखे ही अंदाज में मनाया ।

🚩आइये जाने कि कैसे मनाते हैं संत आसारामजी बापू के अनुयायी उनका अवतरण दिवस...

🚩इस दिन देशभर में जगह-जगह पर इनके अनुयायी  विशाल भगवन्नाम संकीर्तन यात्राएं निकालते हैं और वृद्धाश्रमों, अनाथालयों व अस्पतालों में निःशुल्क औषधि, फल व मिठाई वितरित करते हैं ।

🚩गरीब व अभावग्रस्त क्षेत्रों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है जिसमें वस्त्र,अनाज व जीवन उपयोगी वस्तुएं वितरित की जाती हैं ।

🚩इस दिन विभिन्न स्थानों पर छाछ,पलाश व गुलाब के शरबत के प्याऊ लगाये जाते हैं ।

🚩सत्साहित्य का वितरण,गरीब विद्यार्थियों में नोटबुक व उनकी जीवनोपयोगी सामग्री के साथ-साथ गौ माता को चारा खिलाना, हवन,जाहिर सत्संग कार्यक्रम आदि किए जाते हैं ।

 🚩जब हमने उनके अनुयायियों से ये जानने की कोशिश की कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ?

🚩तो उन सबका कहना था कि हमारे गुरूजी संत आसारामजी बापू ने हमें खुद का जन्मदिवस मनाने की हमेशा मनाही की है और कहा है कि अगर आपको मनाना ही है तो "मानव सेवा" करके ही मनाएं क्योंकि मानव सेवा ही महेश्वर सेवा है ।

🚩पब्लिक जो मीडिया दिखाती हैं उसको ही सच मान लेती है । पर सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर नहीं करती । अगर कोई संत झूठे आरोप में फंस जाते हैं तो बाकी सब चुप बैठ जाते हैं या मीडिया के अंधे भक्त बनकर उनके विरुद्ध बिना सच्चाई जाने कुछ का कुछ बोलने लगते हैं ।

🚩लेकिन मीडिया की झूठी खबरों तथा जाहिर न करने वाली खबरों को सोशल मीडिया भी सामने रखता है, आज ट्विटर पर #विश्व_सेवा_दिवस यह टैग भी टॉप टेन में तीसरे नंबर पर ट्रेंड कर रहा था, उसे जब ओपन किया तो सारे ट्वीट्स संत आसारामजी बापू द्वारा अपने साधकों को दिए “जन-सेवा” के संस्कारों को प्रगट कर रहे थे ।

🚩और हमने हमारे पाठकों को हमारे हिन्दू संतों के साथ हो रहे अन्याय से कभी अंजान नहीं रखा ।

🚩संत संस्कृति का प्रचार करते हैं, जगह-जगह जाकर प्रवचन के द्वारा लोगों में हिन्दू संस्कृति का ज्ञान देना ये बहुत बड़ा कार्य है जो हिन्दू संतों द्वारा किया जा रहा है इसलिए उन्हें टारगेट किया जा रहा है जिससे हिंदुत्व खत्म किया जा सके, लेकिन हम सबको इसके विरुद्ध आगे आना पड़ेगा, अपने संतों के लिए प्रयास करना पड़ेगा,उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी होगी ।

🚩आज जिस परिस्थिति में 83 वर्षीय हिन्दू संत आसारामजी बापू बिना किसी सबूत के 67 महीनों से जेल में हैं वो अपने आप में बहुत बड़े दुःख का विषय है।

🚩क्या हर हिन्दू का कर्तव्य नहीं बनता कि राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा हिन्दू संतों को फंसाकर जिस तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है उसके विरुद्ध आवाज उठाएँ ?

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