Thursday, February 10, 2022

कमिकल रंग से होती है भयंकर हानि, घर में प्राकृतिक रंग ऐसे बनायें

28 मार्च 2021

azaadbharat.org

होली रंगों का त्यौहार है, हँसी-खुशी का त्यौहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन.... इस आधुनिक रूप से होली मनाने से बहुत नुकसान होता है ।



आपको हम रासायनिक रंगों से होने वाली हानियां और अपने घर में ही सस्ते में प्राकृतिक रंग किस प्रकार बना सकते हैं, उसके बारे में बताते है।

रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...

1 - काले रंग में लेड ऑक्साइड

पड़ता है जो गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी करता है ।

2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व लाता है ।

3 - सिल्वर रंग में एल्युमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर का कारक होता है ।

4- नीले रंग में प्रूशियन ब्लू (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) होता है जिससे भयंकर त्वचारोग होता है ।

5 - लाल रंग में मरक्युरी सल्फाइड होता है जिससे त्वचा का कैंसर होता है ।

6- बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड होता है जिससे दमा, एलर्जी होती है ।

अब आपको घर में ही प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ बता रहे हैं जो आसानी से बनाकर उपयोग कर सकते हैं और मना सकते हैं एक स्वस्थ होली ।

https://youtu.be/2cvVkK5Lspc

कसरिया रंग - पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लाएं अथवा उबालकर होली का आनंद उठायें ।

यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है । इसमें औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है ।

सखा हरा रंग - मेंहदी का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें । आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है ।

सखा पीला रंग - हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छांव में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।

गीला पीला रंग - एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं । अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें ।

लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं । यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है । दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें ।

पीला गुलाल : (१) ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें | (२) अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें ।

पीला रंग : (1) 2 चम्मच हल्दी चूर्ण 2 लीटर पानी में उबालें | (2) अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें ।

जामुनी रंग : चुकंदर उबालकर पीस के पानी में मिला लें।

काला रंग : आँवले के चूर्ण को लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें ।

लाल रंग : (1) आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चूना  मिलाकर 10 लीटर पानी में डाल दें | (2) 2 चम्मच लाल चंदन चूर्ण 1 लीटर पानी में उबालें ।

लाल गुलाल : सूखे लाल गुड़हल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें ।

हरा रंग : (1) पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी में भिगोकर उपयोग करें । (2) गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें ।

हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें ।

भरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें ।  स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम से प्रकाशित ऋषि प्रसाद

आपको बता दें कि यदि पलाश का रंग आपको कहीं न मिलता हो तो अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम में संपर्क कर सकते हैं, उनके आश्रम में ये रंग  मात्र 05 रुपये में ही मिल जाता है। 079 61210730 पर संपर्क भी कर सकते हैं। यहाँ से ऑनलाइन भी मंगवा सकते हैं । http://www.ashramestore.com/single.php?id=767

रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं। चंदन, गुलाबजल, टेसू (पलाश) के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए है । आप भी केमिकल रंगों को त्यागकर घर में ही प्राकृतिक रंग बनाकर होली खेले और स्वथ्य रहें ।

सभी देशवासियों से अनुरोध है कि आप

रंगों से होली न खेलें और न ही जानवरों जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैस आदि पर कोई रंग डाले क्योंकि रंग में केमिकल होता है। वो अपने आप को साफ़ करने के लिए अपने को जीभ से चाटते हैं और वो केमिकल उनके पेट में जाता है और बीमार पड़ जाते हैं या मर जाते हैं ।

होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी, वैदिक गानों से ही करनी चाहिए । फिल्मो के गानों से करने से हानि होती है । उससे भी बचें ।


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जानिए होली का प्राचीन इतिहास और साल भर स्वथ्य रहने के उपाय

27 मार्च 2021

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होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता है । वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव भी कहा गया है। इस साल 28 मार्च को होली है और 29 मार्च को धुलेंडी है ।



वदिक, प्राचीन एवं विश्वप्रिय उत्सव

यह होलिकोत्सव प्राकृतिक, प्राचीन व वैदिक उत्सव है । साथ ही यह आरोग्य, आनंद और आह्लाद प्रदायक उत्सव भी है, जो प्राणिमात्र के राग-द्वेष मिटाकर, दूरी मिटाकर हमें संदेश देता है कि हो... ली... अर्थात् जो हो गया सो हो गया ।

यह वैदिक उत्सव है । लाखों वर्ष पहले भगवान रामजी हो गये । उनसे पहले उनके पिता, पितामह, पितामह के पितामह दिलीप राजा और उनके बाद रघु राजा... रघु राजा के राज्य में भी यह महोत्सव मनाया जाता था ।

होली का प्राचीन इतिहास...

पृथ्वी, अप, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वों की सहायतावल से देवता के तत्त्व को पृथ्वी पर प्रकट करने के लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वी पर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समय के प्रथम त्रेतायुग में पंचतत्त्वों में विष्णुतत्त्व प्रकट होने का समय आया । तब परमेश्वर द्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियोंको स्वप्नदृष्टांत में यज्ञ के बारे में ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञ की सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारदमुनि के मार्गदर्शनानुसार यज्ञ का आरंभ हुआ । मंत्रघोष के साथ सबने विष्णुतत्त्व का आवाहन किया । यज्ञ की ज्वालाओं के साथ यज्ञकुंड में विष्णुतत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वी पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होने लगा । उनमें भगदड़ मच गई । उन्हें अपने कष्ट का कारण समझ में नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूप से प्रकट हुए । ऋषि-मुनियों के साथ वहां उपस्थित सभी भक्तों को श्रीविष्णुजीके दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुग के प्रथम यज्ञ के स्मरणमें होली मनाई जाती है । होली के संदर्भ में शास्त्रों एवं पुराणों में अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।

परह्लाद की भक्ति के कारण होली परम्परा शुरू हुई:

पराचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यपु ने तपस्या करके भगवान ब्रह्माजीसे वरदान पा लिया कि, संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके । न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर । यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए ।

ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा । हिरण्यकश्यपु के यहां प्रह्लाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ । प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी ।

हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे । प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यपु ने उसे जान से मारने का निश्चय किया । उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन प्रभु-कृपा से वह बचता रहा ।

हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था । हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई ।

होलिका बालक प्रह्लाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी । लेकिन परिणाम उल्टा ही हुआ । होलिका ही अग्नि में जलकर वहीं भस्म हो गई और भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया । तभी से होली का त्यौहार मनाया जाने लगा ।

तत्पश्चात् हिरण्यकश्यपु को मारने के लिए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से प्रगटे और संधिकाल में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यपु को मार डाला ।

रासायनिक रंगों से बचें...

पलाश के फूलों का रंग एक-दूसरे पर छिड़क के अपने चित्त को आनंदित व उल्लासित करना । सभी रासायनिक रंगों में कोई-न-कोई खतरनाक बीमारी को जन्म देने का दुष्प्रभाव है । लेकिन पलाश की अपनी एक सात्त्विकता है । पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश में है । पलाश के फूलों से जो होली खेली जाती है, उसमें पानी की बचत भी होती है ।

पलाश के रंग नहीं मिले तो अपने घर पर भी प्राकृतिक रंग बना सकते है नीचे लिंक पर देखें  https://youtu.be/fK9axxRpXWA


https://goo.gl/A5jYna

होली पर गौशालाओं को बनायें स्वावलंबी...

होली को लकड़ी से जलाने पर कार्बनडाई आक्साईड निकलता है जो वातावरण को अशुद्ध करता है और जनता का स्वास्थ्य खराब होता है लेकिन गाय के गोबर के कंडे जलाने पर ऑक्सीजन निकलता है जो वातावरण में शुद्धि लाता है जिससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है । वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के एक कंडे में 2 बूंद गाय का घी डालकर करे तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के कंडे से होली जलाने से वातावरण की शुद्धि होगी, जनता का स्वास्थ्य सुधरेगा, साथ-साथ में गाय माता और कंडे बनाने वाले गरीबों का भी पालन-पोषण होगा, पेड़ भी बच जायेंगे इसलिए आप अपने गांव शहरों में होली गाय के कंडे से ही जलाएं ।


परे साल स्वस्थ्य रहने के लिए क्या करें होली पर..??

1- होली के बाद 15-20 दिन तक बिना नमक का अथवा कम नमकवाला भोजन करना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ।

2- इन दिनों में भुने हुए चने - ‘होला का सेवन शरीर से वात, कफ आदि दोषों का शमन करता है ।

3- एक महीना इन दिनों सुबह नीम के 20-25 कोमल पत्ते और एक काली मिर्च चबा के खाने से व्यक्ति वर्षभर निरोग रहता है ।

4- होली के दिन चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ था । इन दिनों में हरिनाम कीर्तन करना-कराना चाहिए । नाचना, कूदना-फाँदना चाहिए जिससे जमे हुए कफ की छोटी-मोटी गाँठें भी पिघल जायें और वे ट्यूमर कैंसर का रूप न ले पाएं और कोई दिमाग या कमर का ट्यूमर भी न हो । होली पर नाचने, कूदने-फाँदने से मनुष्य स्वस्थ रहता है।

5 - लट्ठी-खेंच कार्यक्रम करना चाहिए, यह बलवर्धक है ।

6 - होली जले उसकी गर्मी का भी थोड़ा फायदा लेना, लावा का फायदा लेना ।

7 - मंत्र सिद्धि के लिए होली की रात्रि को (इसबार 28 मार्च की रात्रि को) भगवान नाम का जप अवश्य करें ।

हमारे ऋषि-मुनियों ने विविध त्यौहारों द्वारा ऐसी सुंदर व्यवस्था की जिससे हमारे जीवन में आनंद व उत्साह बना रहे । ( स्त्रोत्र : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका से)


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होलिका दहन कहा हुआ था? और आज उस स्थान की कैसी स्थिति है?

26 मार्च 2021

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होली नज़दीक है तो होलिका दहन की बात भी होगी। प्रह्लाद की याद भी लोगों को आएगी, जिन्हें नहीं याद आया उन्हें इस कहानी में छुपे किसी तथाकथित नारीविरोधी मानसिकता की याद दिला दी जायेगी। कभी-कभी होलिका को उत्तर प्रदेश का घोषित कर के इसमें दलित विरोध और आर्यों के हमले का मिथक भी गढ़ा जाता है। ऐसे में सवाल है कि प्रह्लाद को किस क्षेत्र का माना जाता है? आखिर किस इलाक़े को पौराणिक रूप से हिरण्याक्ष-हिरण्यकश्यप का क्षेत्र समझा जाता था?



वो इलाक़ा होता था कश्यप-पुर जिसे आज मुल्तान (पाकिस्तान का एक शहर) नाम से जाना जाता है। ये कभी प्रह्लाद की राजधानी थी। यहीं कभी प्रहलादपुरी का मंदिर हुआ करता था जिसे नरसिंह के लिए बनवाया गया था। कथित रूप से ये एक चबूतरे पर बना कई खंभों वाला मंदिर था। अन्य कई मंदिरों की तरह इसे भी इस्लामिक हमलावरों ने तोड़ दिया था। जैसी कि इस्लामिक परंपरा है, इसके अवशेष और इस से जुड़ी यादें मिटाने के लिए इसके पास भी हज़रत बहाउल हक़ ज़कारिया का मकबरा बना दिया गया। डॉ. ए.एन. खान के हिसाब से जब ये इलाक़ा दोबारा सिक्खों के अधिकार में आया तो 1810 के दशक में यहाँ फिर से मंदिर बना।

मगर जब एलेग्जेंडर बर्निस इस इलाक़े में 1831 में आए तो उन्होंने वर्णन किया कि ये मंदिर फिर से टूटे-फूटे हाल में है और इसकी छत नहीं है। कुछ साल बाद जब 1849 में अंग्रेजों ने मूल राज पर आक्रमण किया तो ब्रिटिश गोला किले के बारूद के भण्डार पर जा गिरा और पूरा किला बुरी तरह नष्ट हो गया था। बहाउद्दीन ज़कारिया और उसके बेटों के मकबरे और मंदिर के अलावा लगभग सब जल गया था। इन दोनों को एक साथ देखने पर आप ये भी समझ सकते हैं कि कैसे पहले एक इलाक़े का सर्वे किया जाता है, फिर बाद में कभी दस साल बाद हमला होता है। डॉक्यूमेंटेशन, यानि लिखित में होना आगे के लिए मदद करता है।

एलेग्जेंडर कन्निंगहम ने 1853 में इस मंदिर के बारे में लिखा था कि ये एक ईंटों के चबूतरे पर काफी नक्काशीदार लकड़ी के खम्भों वाला मंदिर था। इसके बाद महंत बावलराम दास ने जनता से जुटाए 11,000 रुपए से इसे 1861 में फिर से बनवाया। उसके बाद 1872 में प्रहलादपुरी के महंत ने ठाकुर फ़तेह चंद टकसालिया और मुल्तान के अन्य हिन्दुओं की मदद से फिर से बनवाया। सन 1881 में इसके गुम्बद और बगल के मस्जिद के गुम्बद की ऊँचाई को लेकर दो समुदायों में विवाद हुआ जिसके बाद दंगे भड़क उठे।

दंगे रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कुछ नहीं किया। इस तरह इलाके के 22 मंदिर उस दंगे की भेंट चढ़ गए। मगर मुल्तान के हिन्दुओं ने ये मंदिर फिर से बनवा दिया। ऐसा ही 1947 तक चलता रहा जब इस्लाम के नाम पर बँटवारे में पाकिस्तान हथियाए जाने के बाद ज्यादातर हिन्दुओं को वहाँ से भागना पड़ा। बाबा नारायण दास बत्रा वहाँ से आते समय भगवान नरसिंह का विग्रह ले आए। अब वो विग्रह हरिद्वार में है। 

टटी-फूटी, जीर्णावस्था में मंदिर वहाँ बचा रहा। सन 1992 के दंगे में ये मंदिर पूरी तरह तोड़ दिया गया। अब वहाँ मंदिर का सिर्फ अवशेष बचा है।

सन् 2006 में बहाउद्दीन ज़कारिया के उर्स के मौके पर सरकारी मंत्रियों ने इस मंदिर के अवशेष में वजू की जगह बनाने की इजाजत दे दी। वजू मतलब जहाँ नमाज पढ़ने से पहले नमाज़ी हाथ-पाँव धो कर कुल्ला कर सकें। इसपर कुछ एन.जी.ओ. ने आपत्ति दर्ज करवाई और कोर्ट से वहाँ वजू की जगह बनाने पर स्टे ले लिया। अदालती मामला होने के कारण यहाँ फ़िलहाल कोई कुल्ला नहीं करता, पाँव नहीं धोता, वजू नहीं कर रहा। वो सब करने के लिए बल्कि उस से ज्यादा करने के लिए तो पूरा हिन्दुओं का धर्म ही है ना! इतनी छोटी जगह क्यों ली जाए उसके लिए भला?

बाकी, जब गर्व से कहना हो कि हम सदियों में नहीं हारे, हज़ारों साल से नष्ट नहीं हुए तो अब क्या होंगे ? या ऐसा ही कोई और मुंगेरीलाल का सपना आये, तो ये मंदिर जरूर देखिएगा। हो सकता है सेकुलर नींद से जागने का मन कर जाए।

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1373103249079734273?s=19


इस्लामिक आक्रमणकारीयों ने भारत मे आकर हजारों-लाखों मदिरों तोड़े, उसकी जगह  मस्जिदें बनवा लिया और आज बड़े-बड़े मन्दिर सरकारी नियंत्रण में है वे अपनी मनमानी से उसमें से धन खर्च करते हैं, ऑफिसर भ्रष्टाचार करते हैं, हिंदुओं के पैसे से हिंदुओं के विकास के लिए उन पैसे का उपयोग नहीं हो रहा है बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए किया जाता है पहले भी हिंदू समाज सो रहा था आज भी वही हाल है इसलिए हर जगह लुटा जा रहा है अब समय है जगने का नहीं तो देरी हो जाएगी फिर कुछ हाथ नहीं आएगा।


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होली के लिए अभी तक ये काम नहीं किया हो तो शीघ्र करें

25 मार्च 2021

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होली का नाम आते ही दो बातें तुरंत ध्यान में आती हैं... एक तो रात में होलिका दहन करना और दूसरा धुलेंडी खेलना ..।



इसके पीछे बड़ा वैज्ञानिक महत्व छुपा है, हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे ही कोई त्यौहार नहीं बनाया है।

होली राष्ट्रीय, सामाजिक और आध्यात्मिक पर्व है पर कुछ नासमझ लोग इस पवित्र त्यौहार को विकृत करने लगे और होलिका दहन लकड़ियों से करने लगे जिससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने लगा दूसरा कि धुलेंडी खेलते समय केमिकल रंगों का उपयोग करने लगे जिसके कारण होली में स्वास्थ्य लाभ होने की बजाय बीमारियां होने लगी।

होली पर पर्यावरण को शुद्ध करने एवं आपका स्वास्थ्य बढ़िया रहे इसलिए हम आपको दो अच्छे उपाय बता रहे है उसके लिए अभी आप तैयारी करें।

1. देशी गाय के गोबर के कंडो से होलिका दहन

एक गाय करीब रोज 10 किलो गोबर देती है । 10.. किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं ।

एक कंडे की कीमत करीब 10 रुपए रख सकते हैं । इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिल सकते है । यदि किसी एक शहर में होली पर 10 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 1 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं । औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के करीब 60 लाख रुपए तक आ जाएंगे । लकड़ी की तुलना में हमें कंडे सस्ते भी पड़ेंगे ।

कवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते हैं तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के गोबर के कण्डों से होली जलाने पर गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है, जिससे गौहत्या कम हो सकती है, कंडे बनाने वाले गरीबों को रोजी-रोटी मिलेगी, और वतावरण में शुद्धि होने से हर व्यक्ति स्वस्थ रहेगा ।

दसरा कि वृक्षों को काटना नही पड़ेगा जिससे वातावरण में संतुलन बना रहेगा।

वातावरण अशुद्ध होने पर कोरोना जैसे भयंकर वायरस आ जाते हैं, अगर देशी गाय के गोबर के कंडे से होली जलाई जाएं तो कोरोना जैसे एक भी वायरस वातावरण में नही रहेगा और हमारा स्वास्थ्य उत्तम हो जायेगा जिससे देश के करोड़ो रूपये बच जाएंगे।

2. पलाश के रंग से खेलें होली

पलाश को हिंदी में ढाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसूड़ा कहते हैं ।

कमिकल रंगों से होली खेलने से उसके पैसे चीन देश मे जायेंगे और बीमारियां भी होगी लेकिन पलाश के फूलों से होली खेलने से कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश होता है। साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।

रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।

इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

इतना ही नहीं, पलाश के फूलों का रंग रक्त-संचार में वृद्धि करता है, मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति को बढ़ाता है । शरीर की सप्तधातुओं एवं सप्तरंगों का संतुलन करता है ।  (स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका)

आपने देशी गाय के गोबर के कंडो से होलिका दहन और पलाश के रंगों से होली खेलने का फायदे देखे। अब आप गाय के गोबर के कंडे के लिए नजदीकी गौशाला में संपर्क करें एवं पलाश के फूलों के लिए नजदीकी में कोई आदिवासी भाई हो उनसे संपर्क जरूर करें।


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झूठे केस में फंसाए लोगों को मुआवजा की याचिका पर सुप्रीम ने मांगा केंद्र से जवाब

 

24 मार्च 2021

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महिलाओं की सुरक्षा के लिये दहेज और बलात्कार निरोधक में सख्ती बनाकर कानून बने हैं पर कुछ लड़कियों द्वारा उस कानून का पैसा ऐठने, बदला लेने की भावना अथवा साजिस के तहत इस कानून का अंधाधुंध दुरुपयोग किया जा रहा है। वैसे ही SC/ST एक्ट आदि कानूनों में भी निर्दोषों को फंसाने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है।



आपको बता दे कि गलत तरीके से कानूनी मामलों में फंसाए गए लोगों के लिए मुआवजे की गाइडलाइन बनाने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने एग्जामिन करने का फैसला किया है। बीजेपी के एक अन्य नेता कपिल मिश्रा की ओर से भी अर्जी दाखिल की गई थी,जिसे अश्विनी उपाध्याय की याचिका के साथ टैग कर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को एग्जामिन करने का फैसला किया है, जिसमें गलत तरीके से केस में फंसाए गए लोगों को मुआवजा के लिए गाइडलाइंस बनाए जाने का निर्देश की मांग की गई है। अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।

इस मामले में बीजेपी के एक अन्य नेता कपिल मिश्रा की ओर से भी अर्जी दाखिल की गई थी,जिसे अश्विनी उपाध्याय की पेंडिंग याचिका के साथ टैग कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की ओर से 11 मार्च को अर्जी दाखिल कर फर्जी केस में फंसाने के मामले में ऐसे विक्टिम को मुआवजा दिए जाने के लिए गाइडलाइंस के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में यूपी के विष्णु तिवारी केस का हवाला दिया गया जिन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी करते हुए कहा कि उन्हें आपसी झगड़े के कारण रेप और एससीएसटी केस में फंसाया गया वह 20 साल जेल में रहा था। सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वह ऐसे विक्टिम को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइंस तैयार करें और इस बाबत लॉ कमिशन की रिपोर्ट को लागू करें।

हाई कोर्ट की डबल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि विष्णु तिवारी को जमीन विवाद के कारण रेप और जातिसूचक शब्द कहने के मामले में फंसाया गया था। अपनी अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा कि विष्णु तिवारी जैसे विक्टिम को मुआवजा दिए जाने के लिए गाइडलाइंस की जरूरत है। इसके लिए लॉ कमिशन की 277 रिपोर्ट को लागू किया जाए। ऐसे विक्टिम जिन्हें फर्जी केस में फंसाया जाता है ,उनको मुआवजा देने के लिए गाइडलाइंस बनाए जाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए और राज्यों को निर्देश दिया जाए कि वह गाइडलाइंस का पालन करें। बाद में कपिल मिश्रा ने भी अर्जी दाखिल की है दोनों याचिका को साथ में जोड़ दिया गया है। स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

आपको बता दे कि केवल विष्णु तिवारी को ही फर्जी केस में फंसाकर सालों से जेल में रखा गया था ऐसा नही है ऐसे तो हजारों केस होंगे हो निर्दोष होते हुए भी उनको निचली अदालत से सजा हुई और ऊपरी कोर्ट ने निर्दोष बरी किया लेकिन उनको इतने साल प्रताड़ना जेलनि पड़ी, परिवार बिखर गया, उनका पैसे, समय व इज्जत गई उसकी भरपाई कौन करेगा?

आपको बता दे कि आम जनता की तरह हिंदू धर्म के मुख्य साधु-संतों को बदनाम करने के लिए भी झूठे आरोप लगाए जाते हैं जैसे कि सौराष्ट्र (गुजरात) के श्री केशवानन्द स्वामी ऊपर यौन शोषण का झूठा आरोप थोप कर बारह साल की जेल की सजा दी। सात साल जेल भोगने के बाद ऊपरी कोर्ट से निर्दोष साबित हुए।

शंकराचार्य अमृतानन्द को झूठे केस में जेल भेज दिया और भयंकर यातनाएं दी और 9 साल तक जेल में रखा गया। स्वामी असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर आदि को सालों तक जेल में रखने के बाद बरी किया गया।

ऐसे ही 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू पर बलात्कार के झूठे आरोप लगाकर जेल भेजा गया है क्योंकि उन्होंने धर्मांतरण विरोध में कार्य किया, देश समाज और संस्कृति की सेवा 50 साल तक सेवा की जो राष्ट्र विरोधी ताकतों को सहन नही हुआ और उनके खिलाफ षडयंत्र करके मीडिया में बदनाम करवाया और जेल भिजवाया और 7 साल में एक दिन भी जमानत नही दी गई।

बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी ब्लैकमेल कर झूठे बलात्कार के आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं । फर्जी केस करने वालों पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए, निर्दोष को मुआवजा मिलना चाहिए और इन कानूनों में संशोधन होना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।


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टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था भगत सिंह का वामपंथ

23 मार्च 2021

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अमर क्रांतिकारी भगत सिंह को वामपंथी अक्सर अपने गुट का दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्हें ऐसे चित्रित किया जाता है, जैसे वो वामपंथ के अनुयायी रहे हों और वो वही वामपंथ है, जो आज जेएनयू में कुछ ‘छात्रों’ द्वारा और देश के कई हिस्सों में नक्सलियों द्वारा फॉलो किया जाता है। देश के लिए बलिदान देने वाले एक राष्ट्रवादी को इस तरह से एक संकीर्ण विचारधारा के भीतर बाँधना वामपंथियों की एक चाल है।



जैसा कि हम जानते हैं, भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शूली पर चढ़ गए थे। इतने कम उम्र में क्रांतिकारी, विद्वान और चिंतक होने का अर्थ है कि उन्होंने काफी कम समय में देश-दुनिया की कई विचारधाराओं को पढ़ा और कई क्रांतिकारियों का अध्ययन किया।

भगत सिंह के नास्तिक होने की बात को ऐसे प्रचारित किया जाता है, जैसे वे हिन्दू धर्म से और देवी-देवताओं से घृणा करते हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। वामपंथी स्वतंत्रता सेनानियों में भी विचाधारा के हिसाब से बँटवारा करते हैं। वीर सावरकर उनके लिए मजाक का विषय हैं और उन्हें ‘माफ़ी माँगने वाला’ बताया जाता है। यहाँ हम इस प्रपंच पर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछेक घटनाओं को देखते हैं।

शुरुआत उसी संगठन के मैनिफेस्टो से क्यों न करें, जिसके भगत सिंह अहम सदस्य थे? हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मैनिफेस्टो में ही लिखा हुआ था कि वे भारत के समृद्ध इतिहास के महान ऋषियों के नक्शेकदम पर चलेंगे। इसमें कहा गया था कि कमजोर, डरपोक और शक्तिहीन व्यक्ति न तो अपने लिए और न ही देश के लिए कुछ कर सकता है। क्या वामपंथी इस संगठन को भी गाली देंगे, जिसके तहत भगत सिंह काम करते थे?


वीर सावरकर से काफी प्रभावित थे भगत सिंह

अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘सिपाही विद्रोह’ साबित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक के जरिए इस धारणा को तोड़ दिया। क्या आपको पता है कि इस पुस्तक का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने भी प्रकाशित किया था?

उनके सहयोगी राजाराम शास्त्री ने कहा था कि वीर सावरकर की इस पुस्तक ने भगत सिंह को काफी प्रभावित किया था। उन्होंने राजाराम शास्त्री को भी ये पुस्तक पढ़ने के लिए दी और फिर प्रकाशन के लिए योजना बनाई। उन्होंने ही प्रेस का प्रबंध किया और रात को प्रूफ रीडिंग के लिए शास्त्री के पास वो पन्ने भेजते और सुबह ले जाते। सुखदेव ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया था। राजर्षि टंडन ने इसकी पहली प्रति खरीदी।

यहाँ तक कि 1929-30 में भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ़्तारी के समय भी अंग्रेजों को उनके पास से वीर सावरकर की पुस्तक की काफी प्रतियाँ मिलीं। लेकिन, आज के वामपंथी भगत सिंह को तो गले लगाते हैं, लेकिन वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें भारत रत्न देने का वादा किया तो सीपीआई इसका विरोध करने वाली पहली पार्टी थी।

सीपीआई ने कहा था कि एक मिथक बना दिया गया है कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और राष्ट्रवादी थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत सावरकर जैसे ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ को आइकॉन बनाया जा रहा है। उन्हें ‘डरपोक’ लिखा गया। कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब सावरकर के योगदानों पर चर्चा की तो सीपीआई ने उन पर भी निशाना साधा। अब जब यही वामपंथी भगत सिंह को गले लगाने का नाटक करें तो इसे क्या कहा जाए?

अर्थात, वामपंथी कहते हैं कि सावरकर ‘सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी’ हैं, लेकिन भगत सिंह ने वीर सावरकर की पुस्तकों को न सिर्फ छपवाया बल्कि वो इससे काफी प्रभावित भी थे- इस पर वो कन्नी काट जाते हैं। ड्रामेबाज वामपंथियों का ये दोहरा रवैया बताता है कि भगत सिंह को ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का हिस्सा बताने के लिए वो पागल हो रहे हैं। जिनकी श्रद्धा भारत से ज्यादा चीन के लिए है, वो देश के बलिदानियों पर भला क्यों गर्व करें?

लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं वामपंथी?

भगत सिंह ने ब्रिटिश एएसपी जॉन सॉन्डर्स का वध क्यों किया था? भारत की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए लंदन से साइमन कमीशन को भेजा गया। भारत में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने इसका प्रचंड विरोध किया। लाहौर में इसके विरोध के दौरान उन्हें लाठी लगी। इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसने भगत सिंह सहित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सभी क्रांतिकारियों को आक्रोशित कर दिया।

लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी जान को दाँव पर लगाया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद भगत सिंह ने अपना बदला पूरा किया और आर्य समाज के नेता रहे लालाजी को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने

पुस्तक ‘शहीद भगत सिंह- क्रांति में एक प्रयोग’ में लिखा है कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय के समर्पण और देशसेवा के सामने अपना सिर झुकाते थे।

उन्होंने लिखा है कि कैसे जब भगत सिंह ने उस प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय को अंग्रेजों की लाठी खा कर जमीन पर गिरता हुआ देखा तो उनके अंदर जालियाँवाला बाग़ नरसंहार के बाद जो गुस्सा भर गया था वो और धधक उठा। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि गोरे एक भलेमानुष के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इन क्रांतिकारियों की जो बैठक हुई, उसमें ऐसा गम का माहौल था जैसे उनके घर के किसी बुजुर्ग की हत्या कर दी गई हो।

अब वापस उन वामपंथियों पर आते हैं, जो भगत सिंह को तो अपना मानने का नाटक करते हैं, लेकिन उन्होंने किसके लिए बलिदान दिया- इससे वो अनजान बन कर रहना चाहते हैं और लोगों को भी अनजान रखना चाहते हैं। लेकिन, वो लोग लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं, जरा वो देखिए। इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी पुस्तक ‘India’s Struggle for Independence, 1857-1947‘ में उन्हें लिबरल और मॉडरेट कम्युनिस्ट साबित करने का प्रयास किया है।

लाला लाजपत राय एक राष्ट्रवादी थे और हिंदुत्व को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। वो आर्य समाजी थे। भारत में हिंदुत्व भावना को पुनर्जीवित कर लोगों में अपने प्राचीन इतिहास के प्रति गौरव जगाने वालों में तिलक और लाला लाजपत राय का नाम आता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और छत्रपति शिवाजी का चरित्र लिखा। लाला लाजपत राय वेदों को हिन्दू धर्म की रीढ़ मानते थे। वो कहते थे कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है।

जबकि आज के वामपंथी असहिष्णुता की ढपली बजाते हैं। भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय जिस हिन्दू धर्म को विश्व को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते थे, वामपंथी उसे गाली देते हैं। जिन वेदों को भी हिंदू धर्म की रीढ़ मानते थे, उन्हें वामपंथी ब्राह्मणों का ‘प्रोपेगेंडा’ कहते हैं। जब गुरु के लिए वामपंथियों के मन में कोई सम्मान नहीं है तो उसके शिष्य के लिए कैसे हो सकता है? क्यों न इसे ड्रामा माना जाए?

जनेऊधारी आजाद और भगत सिंह

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों में आपने उन्हें नंगे बदन मूँछों पर ताव देते हुए और जनेऊ व धोती पहने हुए देखा होगा। वो ब्राह्मण थे। वो वाराणसी में संस्कृत के छात्र थे और उन्होंने इस भाषा के ज्ञान के कारण हिन्दू ग्रंथों का भी अध्ययन किया। भगत सिंह का उनके साथ अच्छा सम्बन्ध था। देश के लिए दोनों ने साथ मिल कर काम भी किया। लेकिन कभी भगत सिंह को इससे दिक्कत नहीं हुई।

वहीं आज के वामपंथी जनेऊ के बारे में क्या सोचते हैं? आज यही वामपंथी यज्ञोपवीत को अत्याचार का प्रतीक मानते हैं। वो कहते हैं कि ये ब्राह्मणों के खुद को श्रेष्ठ दिखाने की निशानी है। क्या भगत सिंह ने कभी चंद्रशेखर आजाद से ऐसा कहा होगा? बिलकुल नहीं। फिर किस मुँह से ये वामपंथी खुद की विचारधारा के भीतर भगत सिंह को बाँधने की कोशिश करते हैं? वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और चंद्रशेखर आजाद के विचारों का ये सम्मान क्यों नहीं करते?

जबकि इन तीनों के प्रति ही भगत सिंह की अपार श्रद्धा थी। भगत सिंह के पार्थिव शरीर को जलाने की अंग्रेजों ने कोशिश की थी, गुपचुप तरीके थे। लेकिन, बाद में परिवार ने पूरे वैदिक तौर-तरीके से रावी नदी के किनारे उनके शरीर को मुखाग्नि दी। क्या ये वामपंथी भगत सिंह के परिवार को भी कोसेंगे? उनका परिवार को स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज आंदोलन से काफी ज्यादा प्रभावित था।

आज वाले वामपंथी नहीं थे भगत सिंह, उनके कुछ सवाल थे

भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने दयानन्द सरस्वती को सुना था और वो उनसे खासे प्रभावित थे। वो माँस-शराब का सेवन नहीं करते थे, संध्या वंदन करते थे और यज्ञोपवीत धारण करते थे। उन्होंने एक पुस्तक लिख कर दिखाया कि कैसे सिख गुरु भी वेदों की शिक्षाओं को मानते थे। ‘ईश्वर की उपस्थिति’ और भारत के बड़े-बड़े संतों ने चर्चा की है और इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि वे सारे वामपंथी हैं।

भगत सिंह का वामपंथ टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था। 1962 के युद्ध में चीन का समर्थन करने वाले और हालिया भारत-चीन तनाव के दौरान चीन की निंदा तो दूर, अपनी ही सरकार के स्टैंड का विरोध करने वाले वामपंथियों को समझना चाहिए कि भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर चिंतन किया था और अपने अध्ययन और विचारों के हिसाब से लेख लिखे, जिनके आधार पर उन्हें वामपंथी ठहराना सही नहीं है।

भगत सिंह ने कभी ऐसा नहीं लिखा कि वो हिन्दू धर्म को नहीं मानते या फिर वो हिन्दू देवी-देवताओं से घृणा करते हैं। उनके पास बस कुछ सवाल थे, जो उनके लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ में सामने आता है। उनके विचार था कि फाँसी के बाद उनकी ज़िंदगी जब समाप्त होगी, उसके बाद कुछ नहीं है। वो पूर्ण विराम होगा। वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे। वो प्राचीन काल में ईश्वर पर उठाने वाले चार्वाक की भी चर्चा करते थे। उन्होंने लिखा है:

“मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ।”

ऊपर की पंक्तियों को देख कर और भगत सिंह के इस लेख को पढ़ कर स्पष्ट होता है कि कुछ रूढ़िवादी चीजें थीं, जिनसे उन्हें दिक्कतें थीं। वो ये मानने को तैयार नहीं थे कि मनुष्य अपने पुनर्जन्म के पापों की सज़ा इस जन्म में भोग रहा है। उनके सवाल थे कि राजा के विरुद्ध जाना हर धर्म में पाप क्यों है? उनके सारे धर्मों के बारे में एक ही विचार थे। वे दो समुदाय के लोगों के बीच धर्म को लेकर होने वाले तनाव के खिलाफ थे।


आज का वामपंथ, आज के वामपंथी, और भगत सिंह

स्वतंत्रता सेनानियों में सिर्फ बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ही नहीं थे, जो हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में विश्व रखते हुए धर्म और राष्ट्र को एक साथ देखते थे, बल्कि क्रांतिकारियों में भी कई ऐसे थे जो कर्मकांड करते थे, प्रखर हिंदूवादी थे। ‘बिस्मिल’ खुद आर्यसमाजी थे। बटुकेश्वर दत्त पूजन-वंदन किया करते थे। पंडित मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म की शिक्षा को महत्ता देते थे। इन सबके बारे में भगत सिंह के क्या ख्याल हैं?

असल में आज का वामपंथ देश को खंडित करने वाला, चिकेन्स नेक को काट कर चीन को भारत पर हमला करने का मौके देने वाला और ‘नरेंद्र मोदी भ@वा है’ का नारा लगाने वाला है। जबकि भगत सिंह की विचारधारा क्रांति की थी। वो रूस के क्रांतिकारियों से इसीलिए प्रभावित थे, क्योंकि उन्हें उनलोगों से क्रान्ति के तौर-तरीकों की सीख मिलती थी। वो उन्हें अध्ययन कर के भारत के परिप्रेक्ष्य में आजमाने के तरीके ढूँढ़ते थे।

आज वामपंथियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे अपने देश की सेना का सम्मान कर सकें, तो फिर वो देश के लिए बलिदान देने वाले को अपनी विचारधारा का व्यक्ति कैसे बता सकते हैं? अरुंधति रॉय जैसे लोग तो विदेश में जाकर भारतीय सेना को अपने ही लोगों पर ‘अत्याचार करने वाला’ बताते हैं, क्या भगत सिंह किसी भी कीमत पर इस चीज को बर्दाश्त करते? देश के खिलाफ बोलने वालों के लिए क्रांति सिर्फ अपने ही देश के लोगों को मारना है।

आज नक्सली झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक सरकारी कर्मचारियों को मारते हैं, अपने ही देश के लोगों का खून बहाते हैं और संविधान को नहीं मानते हैं। क्या भगत सिंह को अपना बनाने का नाटक करने वाले वामपंथी वामपंथ के इस हिस्से की निंदा करने का भी साहस जुटा पाते हैं? नहीं। आज का वामपंथ चीनपरस्ती का वामपंथ है, जो अपने ही देश के इतिहास और संस्कृति से घृणा करता है, भगत सिंह का नाम भी लेने का इन्हें कोई अधिकार नहीं।

और हाँ, यज्ञोपवीत को ब्राह्मणों का आडम्बर और अत्याचार का प्रतीक बताने वाले वामपंथियों को ये बात भी पसंद नहीं आएगी कि भगत सिंह का भी यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। एक पत्र में उन्होंने अपने पिता को याद दिलाया है कि वे जब बहुत छोटे थे, तभी बापू जी (दादाजी) ने उनके जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि उन्हें वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है।

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आज के वामपंथी ये जान कर अच्छा महसूस नहीं करेंगे कि भगत सिंह ने देशसेवा का जो वचन निभाया, वो उनके यज्ञोपवीत संस्कार से उनके ही पूर्वजों ने दिया था। वामपंथ ने नहीं। किसी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी का नाम अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कर उसके प्रेरकों को गाली देना, ये भगत सिंह का अपमान नहीं तो और क्या है? अखंड भारत के लिए लड़ने वाला ‘टुकड़े-टुकड़े’ के नारे लगाने वालों का आइडल कैसे हो सकता है?


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माता-पिता सावधान : ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चे ने बहन से कर दिया रेप

 

22 मार्च 2021

azaadbharat.org

मोबाइल और इंटरनेट मनुष्य को बहुत नुकसान पहुँचाती है। फिर बच्चों को मोबाइल देना तो ओर भयंकर हानि करता है। मोबाइल फोन से निकलने वाले विकिरण आपकी सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंचाने में सक्षम है । इतना ही नहीं यह आपको कई तरह की बीमारियों को शि‍कार बना सकता है ।



जानी-मानी एिडक्शन थैरेपिस्ट मैंडी सालगिरी ने बताया कि बच्चों को मोबाइल देना एक ग्राम कोकेन देने के बराबर हैं।

बात दे कि कोरोना का सबसे ज्यादा बुरा असर बच्‍चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन ही एक मात्र विकल्प बचा है। मोबाइल पर चल रहीं क्लासेस कई तरह का खतरा भी हैं। राजस्थान से एक ऐसी ही चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जो माता पिता को बड़ी चिंता में डालने वाली वाली है। यहाँ एक 12 साल के बच्चे ने पोर्न वीडियो देखकर अपनी 6 साल की बहन का रेप कर दिया। इस घटना के बाद लाखों पेरेंट्स के लिए सावधान हो जाना चाहिए।

पढ़ाई के बाद अश्लील वीडियो देखने लगा

दरअसल, हैरान कर देने वाला यह मामला श्रीगंगानगर जिले का है, जहाँ रायसिंह नगर में रहने वाले बच्चे ने इस घटना को 4 दिन पहले अंजाम दिया है। माता-पिता ने बच्चे की पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन खरीद कर उसे दिया था। लेकिन वह पढ़ाई के बाद अश्लील वीडियो देखने लगा। वह ना तो बाहर खेलने जाता और ना ही अपने दोस्तों से बात करता था। जब माता-पिता कुछ कहते तो जवाब देता कि मैं पढ़ाई कर रहा हूँ।

आधी रात को देखता था पोर्न वीडियो

ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान पोर्न वीडियो देखने के बाद उसके दिमाग में निगेटिविटी आती गईं। इतना ही नहीं वह घरवालों के सोने के बाद नींद से जागकर चुपके से देर रात तक अश्लील वीडियो देखा करता था। जिसका परिणाम यह हुआ है कि उसने इस छोटी से उम्र में अपनी ही 6 साल की बहन का रेप कर दिया।

ऐसे गंदी वीडियो का आदी बना बच्चा

पुलिस ने बच्चे को गिरफ्तार कर बाल सुधार केंद्र भेज दिया है। जाँच के दौरान सामने आया है कि आरोपित बच्चा 6ठी क्लास में पढ़ता है। वह पिछले एक साल से स्कूल नहीं जा रहा है। पूछताछ में बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई करने के दौरान उसे पोर्न वीडियो की लिंक आई थी। जिसे उसने गलती से क्लिक कर दिया। इसके बाद वह इसे रोज देखने लगा और इस शर्मनाक घटना को अंजाम दे दिया।


माता-पिता रहें ऐसे सावाधान


पेरेंट्स जो भी मोबाइल बच्चे को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए दें रहे हैं उसमें सारे ऐप डिलीट कर दें। जूम समेत किसी भी ऐप में जब तक जरूरत न हो तब तक कैमरा ऑन न करें। बच्चा जिस भी डिवाइस में ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं उसमें एंटीवायरस जरूर एक्टिव रखें। बच्चों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान माता-पिता उनके साथ रहें।

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1373763852270067713?s=19


बता दें कि दुनिया का एक सबसे अमीर शख्स, पर बच्चों के लिए मोबाइल नहीं खरीदा । और दूसरा वो व्यक्ति जिसने दुनिया को आईफोन दिया, लेकिन कभी अपने बच्चों को हाथ तक भी नहीं लगाने दिया ।

दनिया के सबसे अमीर शख्सियतों में शुमार बिल गेट्स ने अपने बच्चों को 14 साल की उम्र तक मोबाइल नहीं दिया था ।

इसी तरह ऐप्पल कम्पनी के मालिक स्टीव जॉब्स ने 2011 में न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने अपने बच्चों को कभी भी आईपैड इस्तेमाल नहीं करने दिया था ।

य दो उदाहरण सिर्फ इसलिए हैं ताकि आप यह जान सकें कि मोबाइल बच्चों को देने जैसी चीज नही हैं । दुनिया में मोबाइल के इस्तेमाल को लेकर भी कई रिसर्च  हुए हैं, जिनके परिणाम चौंकाने वाले हैं । जो बच्चे स्मार्टफोन किसी भी रूप में इस्तेमाल करते हैं (वीडियो देखने-गाना सुनने।) वे अन्य बच्चों की तुलना में देर से बोलना शुरू करते हैं । छह माह से दो साल तक 900 बच्चों पर किए गए सर्वे में यह चौंकाने वाली स्थिति सामने आई है । हर 30 मिनट के स्क्रीन टाइम (मोबाइल इस्तेमाल) से ही 49% आसार बढ़ जाते हैं कि बच्चा देरी से बोलना शुरू करेगा। वहीं दुनिया की जानी-मानी एडिक्शन थैरेपिस्ट मैंडी सालगिरी ने तो यहां तक कहा है कि बच्चों को स्मार्टफोन देना उन्हें एक ग्राम कोकेन देने के बराबर है।

मोबाइल के उपयोग से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है, अतः मोबाइल का कम से कम उपयोग करें और बच्चों को भूलकर भी न दें ।


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