Wednesday, July 19, 2023

हिंदू परम्पराओं में विज्ञान कैसे जुड़ा है ??? जानिए


19 July 2023

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🚩एक दिन डिस्कवरी पर जेनेटिक बीमारियों से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम चल रहा था। उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की जेनेटिक बीमारी न हो इसका एक ही इलाज है और वो है "सेपरेशन ऑफ़ जींस".. मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए ..क्योकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की 100% चांस होती है।


🚩फिर उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया कि आखिर हिन्दूधर्म में हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में कैसे लिखा गया है?


🚩हिंदुत्व में कुल सात गोत्र होते है और एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही कर सकते ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे.. उस वैज्ञानिक ने कहा की आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा की हिन्दूधर्म ही विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो "विज्ञान पर आधारित" है !


🚩हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क:


🚩1- कान छिदवाने की परम्परा:


🚩भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क-

दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।


🚩2-: माथे पर कुमकुम/तिलक


🚩महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता


🚩3- : जमीन पर बैठकर भोजन


🚩भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पाल्थी मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।


🚩4- : हाथ जोड़कर नमस्ते करना


🚩जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।


🚩5-: भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से


🚩जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।


🚩6-: पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।


🚩7-: दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना


🚩दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।


🚩8-सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।


🚩9-सिर पर चोटी


🚩हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।


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Tuesday, July 18, 2023

परमाणु बम के जनक को अंततः हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण..

18 July 2023

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🚩क्या आपने 'रॉबर्ट ओपेनहाइमर' का नाम सुना है? वही रॉबर्ट ओपेनहाइमर,जिन पर हॉलीवुड के दिग्गज 'निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन' फिल्म लेकर आए हैं। ‘Oppenheimer’ नाम की ये फिल्म रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जीवन पर ही आधारित है।असल में ये वही शख्स थे, जिन्हें ‘परमाणु बम का जनक’ कहा जाता है। अमेरिका के फिजिसिस्ट रॉबर्ट ओपेनहाइमर परमाणु बम बनाने के लिए बनाई गई ‘लॉस एलामोस लेबोरेटरी’ के डायरेक्टर थे। उन्होंने हारवर्ड, कैम्ब्रिज, गोटेंगेन और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी।


🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के समय उक्त लैब को ‘मैनहटन प्रोजेक्ट’ के तहत विकसित किया गया था। पहले न्यूक्लियर टेस्ट को ‘ट्रिनिटी’ नाम दिया गया था। वो 16 जुलाई, 1945 का दिन था जब ये कराया गया था।

बताया जाता है कि इस परियोजना, जिसे ‘Project Y’ नाम दिया गया था, पर काम करने के दौरान रॉबर्ट का वजन काफी घट गया था और वो पतले हो गए थे।इस प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने 3 साल लगातार जो मेहनत की थी, उस कारण ऐसा हुआ था। टेस्ट वाले दिन वो ठीक से सो भी नहीं पाए थे।



🚩J. Robert Oppenheimer, परमाणु परीक्षण और भगवद्गीता का एक श्लोक


🚩 जब ये टेस्ट हुआ, उस समय रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक बंकर में बैठे हुए थे। जबकि वहाँ से 10 किलोमीटर दूर न्यू मैक्सिको स्थित जोर्नाडा डेल मुर्टो के रेगिस्तान में ये परीक्षण हुआ था।

बताया जाता है कि जब पहला परमाणु ब्लास्ट हुआ, तब उसने सूरज की रोशनी को भी फीका कर दिया। 21 किलोटन TNT के साथ किया गया ये ब्लास्ट उस समय तक कहीं देखा-सुना नहीं गया था।ब्लास्ट के बाद मशरूम के आकर का घना धुआँ आकाश में उठा । 160 किलोमीटर दूर तक ब्लास्ट का कंपन सुनाई दिया। रॉबर्ट ने इसकी तुलना दोपहर के सूर्य से की थी ।


🚩इस परिक्षण के बाद उनके एक दोस्त इसीडोर रबी ने बताया था, कि उसके बाद उन्होंने कुछ दूरी से रॉबर्ट ओपेनहाइमर को देखा था, उनके शब्दों में कहें , तो "वो जब कार से निकले तो उनकी चाल कुछ अकड़ वाली थी, उसमें एक एहसास था...कि उन्होंने कर दिखाया।"

"हालांकि बाद में वो अपने इसी आविष्कार को लेकर गहन अवसाद में डूब गए थे।"



🚩 क्या आपको पता है , कि इस पहले परमाणु बम ब्लास्ट के बाद रॉबर्ट ओपेनहाइमर के दिमाग में क्या गूँजा था। 1960 के दशक में उन्होंने इसका खुलासा किया था। वो भगवद्गीता से प्रेरित थे। उन्हें इस हिन्दू धर्मग्रन्थ से प्रेम था।  उन्होंने कहा था , कि जब दुनिया का पहला परमाणु ब्लास्ट सफल रहा, तब उनके मन में "भगवान श्रीकृष्ण" के ये शब्द गूँजे – “अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसारों का विध्वंस करने वाला।” 



🚩भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय भक्त अर्जुन की शंकाओं का समाधान करके , उन्हें धर्म रक्षार्थ युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं और कर्तव्यनिष्ठा की शिक्षा देते हैं । वो अपना विराट रूप प्रकट करते हैं और विश्वरूप में प्रकट होकर बताते हैं , कि वो कौन हैं।

उक्त श्लोक इस प्रकार है:


🚩कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥॥ (11.32)


🚩इसका हिंदी अर्थ कुछ इस प्रकार होगा,

“मैं प्रलय का मूल कारण और महाकाल हूँ , जो इस क्षण में जगत का संहार करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ। तुम्हारे युद्ध में भाग लिए बिना भी युद्ध की व्यूह रचना में खड़े विरोधी पक्ष के योद्धा मारे जाएँगे।”

और इसी अर्थ को रॉबर्ट ने गलत अर्थ घटन कर लिया था।


🚩श्रीकृष्ण ने इसमें खुद को काल बताया है। साधारणतया तो जो गीताजी के इन ज्ञान सम्पन्न वचनों से अनभिज्ञ हैं , वो लोग इस श्लोक का मर्म नहीं समझ सकते और भ्रमित हो जाएंगे। असल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को इसके माध्यम से समझाते हैं, कि नष्ट हुआ सा दिखता हुआ भी कुछ नष्ट नहीं होता ... क्योंकि सबकुछ मुझमें और मैं सबमें भरपूर हूँ। इसलिए तू शोक न कर , युद्ध कर... धर्म के लिए युद्ध कर...


🚩यहाँ श्रीकृष्ण ने परमेश्वर का वो रूप दिखाया है, जो सज्जनों की रक्षा हेतु दुष्टों का संहार करने वाला है और... जो हर एक जीव और वस्तु को नष्ट करने में सक्षम है,क्योंकि अंततः प्रकृति में बनी हुई सभी रचनाएं उसी में (परमात्मा ) में ही विलीन हो जाती हैं।


🚩भगवद्गीता का यही श्लोक रॉबर्ट ओपेनहाइमर को याद आया था, जब उनका परमाणु परीक्षण सफल रहा। बड़ी बात ये , कि इस परीक्षण के बाद काफी दिनों तक वो अवसादग्रस्त रहे थे। उन्हें पता था , कि आगे इस परमाणु बम का क्या इस्तेमाल होने वाला है। एक दिन तो वो जापानी लोगों को लेकर चिंतित भी थे। उन्होंने कहा था, “ये बेचारे लोग…”🚩आपके मन में एक सवाल ज़रूर आ रहा होगा कि रॉबर्ट ओपेनहाइमर को भगवद्गीता से इतना लगाव क्यों था। ये सब शुरू हुआ 1930 के दशक में, जब वो Humanities के क्षेत्र में भी थोड़ा-बहुत अलग से काम कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों से लगाव हुआ और इनसे वो खासे प्रभावित हुए।


🚩परमाणु बम से होती तबाही देख बदला मन ! हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण...


🚩इस दौरान उन्होंने निश्चय किया कि वो भगवद्गीता को उनके मूल स्वरूप में मतलब अनुवाद किए बिना इसे पढ़ेंगे। चूँकि मूल स्वरूप में ये ग्रन्थ संस्कृत में है, इसलिए उन्होंने संस्कृत सीखनी शुरू कर दी। रॉबर्ट ओपेनहाइमर के भीतर मनोविज्ञान की समझ भगवद्गीता पढ़ने के बाद ही अच्छी तरह से विकसित हुई। यही कारण है कि ‘प्रोजेक्ट वाई’ के दौरान वो नैतिकता को सोच-विचार कर जिस कश्मकश में रहे, उससे उन्हें बहुत अधिक आत्मग्लानि हुई।



🚩उनकी आत्मग्लानि का कारण था ,कि उन्होंने गीताजी के इस श्लोक को पहली बार में पूरी तरह समझा नहीं और गलत अर्थ घटन किया , कि... कर्तव्य, नियति और फल की परवाह किए बिना कर्म करना ... यहां तक तो ठीक था पर उन्हों दुष्परिणामों के बारे में सोचना बंद कर दिया। हालाँकि, भगवद्गीता का ये सन्देश बिलकुल भी नहीं है कि निर्दोषों की हत्या की जाए या इतने बड़े-बड़े नरसंहार किये जाएं ।


🚩 रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने उस दौरान कहा था , कि युद्ध ऐसी परिस्थिति है, जिसमें इस दर्शन को लागू किया जा सकता है। लेकिन, युद्ध के बाद उनमें बदलाव आया और वो परमाणु हथियारों को आक्रामकता, अप्रत्याशित आक्रमण और आतंक के औजार बताने लगे। उन्होंने हथियारों की इंडस्ट्री को ही शैतानी करार दिया। उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से कहा , कि मेरे हाथ पर खून लगे हैं।


🚩उन्हें ढाँढस बँधाने के लिए ट्रूमैन ने कह दिया कि खून आपके नहीं, मेरे हाथों में लगे हैं।

एक बार इस कश्मकश से पल्ला झाड़ते हुए रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने वैज्ञानिकों से कहा था , वैज्ञानिक तो सिर्फ अपना कर्तव्य कर रहे हैं, हत्याओं की जिम्मेदारी तो राजनेताओं की होगी।

एक तरह से ऐसा भी हो सकता है कि परमाणु बम बनाने और इसके दुष्परिणामों के बारे में सोच कर उन्होंने भगवद्गीता की शरण ली और अपने काम को सही ठहराने का प्रयास किया, लेकिन अंत में उन्हें समझ आया कि उन्होंने क्या कर दिया है।


🚩वो सन् 1933 का समय था, जब प्रत्येक गुरुवार को रॉबर्ट ओपेनहाइमर भगवद्गीता पढ़ने जाते थे। बर्कली में उन दिनों आर्थर राइडर नाम के एक संस्कृत शिक्षक हुआ करते थे, जिनसे वो पढ़ने जाते थे। उनका कहना था , कि राइडर से ही उन्हें नीतिशास्त्र का ज्ञान मिला । उन्होंने सीखा कि जो लोग कठिन कार्य करते हैं , उन्हें सम्मान प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म से उन्होंने दुनियादारी से खुद को अलग कर के देखने की भावना सीखी। एक बार उन्होंने अपने एक मित्र से कहा था, “मैंने ग्रीक को भी पढ़ा है। लेकिन हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थों में गहराई है। ”


             - अनुपम कुमार सिंह


🚩इंग्लैंड के एफ.एच.मोलेम ने लिखा कि बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन गई हैं। यह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अनमोल खजाना है।


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Monday, July 17, 2023

हिंदू अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में क्यों भेजते है ? जहाँ बिंदी लगाने पर करनी पड़ती है, आत्महत्या

17 July 2023

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🚩भारत में जितने भी मिशनरी स्कूल मैकाले की शिक्षा पद्धति से चल रहे हैं, उन स्कूलों में बच्चे न तो तिलक और न ही मेंहदी लगा सकते हैं, हिन्दू त्यौहार नहीं मना सकते और यहां तक कि हिंदी भी नहीं बोल सकते- मतलब कि बच्चो को कोई स्वतंत्रता नहीं है। ऊपर से धर्मपरिवर्तन करने का दबाव बनाया जाता है।


🚩बिंदी लगाकर सेंट जेवियर्स में पढ़ने गई छात्रा को टॉर्चर करने पर ,छात्रा ने की आत्महत्या 


🚩झारखंड के धनबाद के तेतुलमारी का सेंट जेवियर्स स्कूल विवादों में घिर गया है। बिंदी लगाकर आने पर एक छात्रा को शिक्षिका ने सरेआम थप्पड़ मारे। कथित तौर पर उसकी माँ को भी बेइज्जत कर स्कूल से निकाल दिया। इससे आहत छात्रा ने 10 जुलाई 2023 को घर लौटने के बाद फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके पास से सुसाइड नोट भी मिला है।


🚩आत्महत्या करने वाली दलित छात्रा की पहचान उषा कुमारी के तौर पर हुई है। वह 10वीं की छात्रा थी। घटना से नाराज लोगों ने स्कूल के बाहर धरना दिया। इसके बाद 11 जुलाई को स्कूल के प्रिंसिपल और महिला टीचर को गिरफ्तार कर लिया गया। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी मामले का संज्ञान लिया है।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मृत छात्र के पिता की काफी समय पहले मौत हो गई थी। 3 भाई-बहनों को उनकी माँ पढ़ा रही थी। मृतका की माँ ने बताया कि उनकी बेटी को सिर्फ बिंदी लगाने के चलते सबके सामने पीटा गया, जबकि उसने मिस (टीचर सिंधु) को देख कर बिंदी उतार भी दी थी। जब छात्रा ने इसकी शिकायत प्रिंसिपल से की तो उन्होंने भी इसे अनदेखा कर दिया। आरोप है कि प्रिंसिपल ने छात्रा को डाँटते हुए कहा, “तुम स्कूल का बैग लो और निकलो यहाँ से।”


🚩मृतका की माँ ने बताया कि उनकी बेटी रोते हुए घर आई तो वह उसके साथ स्कूल गई। प्रिंसिपल से माफी माँगी। लेकिन प्रिंसिपल पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने माँ-बेटी को बाहर निकाल दिया। इसके बाद छात्रा घर लौटी और फाँसी लगा ली। पीड़ित माँ के मुताबिक उनकी बेटी ने सुसाइड नोट लिखकर छोड़ा है, जिसके आधार पर थाने में शिकायत दर्ज करवाई गई है। छात्रा के सुसाइड की खबर मिलते ही स्कूल बंद कर दिया गया। आरोपितों पर कार्रवाई और पीड़ितों को मुआवजा की माँग करते अन्य स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किया।


🚩प्रिंसिपल और महिला टीचर गिरफ्तार


🚩पुलिस ने आरोपित प्रिंसिपल आर के सिंह और महिला टीचर सिंधु को गिरफ्तार कर लिया है। मामले में आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है।


🚩स्कूल की मान्यता रद्द करने की माँग


🚩झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने स्कूल की मान्यता रद्द करने की माँग की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है, “पता नहीं ऐसे विद्यालयों को सनातन प्रतीकों से चिढ़ क्यों है? मुख्यमंत्री जी, इस मामले पर संज्ञान लीजिए और स्कूल की मान्यता रद्द करने हेतु संबंधित विभाग को पत्र लिखिए।”


🚩छात्रों को तिलक लगाने पर एंट्री नहीं: चेहरा धुलवाया


🚩मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले में स्थित एक स्कूल में तिलक लगा कर आने वाले छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इन छात्रों को कहा गया कि उन्हें स्कूल में एंट्री तभी मिलेगी, जब वो अपना चेहरा धो कर आएँगे। इसकी जानकारी मिलते ही कई छात्र-छात्राओं के अभिभावक और हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने वहाँ पहुँच कर विरोध जताया। बड़ी बात ये है कि ये स्कूल सुसनेर के पूर्व विधायक एवं कांग्रेस  नेता वल्लभ भाई अंबावतिया का है।


🚩बताया जा रहा है कि सुबह जब 9वीं से 12वीं कक्षा के छात्रों की प्रार्थना सभा चल रही थी, उस समय शिक्षकों ने तिलक लगाए छात्रों को कक्षा में जाने से रोक दिया। कहा गया कि चेहरा धो कर आओ। जिन्होंने तिलक मिटाया, उन्हें ही प्रवेश दिया गया। एक छात्र ने बताया कि उसने जब ऐसा करने से मना कर दिया तो उसे अंदर नहीं जाने दिया गया, फिर घर आकर उसने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया। एक अन्य लड़के ने भी बताया कि खुद प्रिंसिपल मैडम ने तिलक मिटा दिया।


🚩घटनास्थल पर विहिप और ‘बजरंग दल’ के कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लग गया। स्कूल प्रबंधन से उन्होंने बातचीत की। अंत में लिखित में मिलने के बाद वो माने। किसी पक्ष ने कोई शिकायत अभी दर्ज नहीं कराई है। राहुल गाँधी इसी स्कूल में सभा करने के लिए राजस्थान के लिए रवाना हुए थे। मध्य प्रदेश के इंदौर से भी हाल ही में ऐसा मामला सामने आया है। धार रोड स्थित ‘बाल विज्ञान शिशु विहार हायर सेकेंडरी स्कूल’ में तिलक लगाने पर छात्र को पीट-पीट कर भगा दिया गया।


🚩गौरतलब है कि इसी तरह की घटना 2019 में त्रिपुरा में हुई थी जब ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरण का विरोध करने के लिए एक हॉस्टल वार्डन द्वारा बेरहमी से प्रताड़ित किए जाने के बाद एक 15 वर्षीय छात्र की मौत हो गई थी।🚩इस तरह की सैंकड़ों घटनाएं होगी जो खबरे बाहर नही आ रही है।


🚩भारत में आजकल बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने का प्रचलन बहुत चल रहा है; सभी का कहना है कि बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में भेजो, लेकिन वास्तव में उनके माता-पिता कॉन्वेंट स्कूल का सच नहीं जानते है, इसलिए अपने बच्चों को भेजते हैं। कान्वेंट स्कूलों के मामले में एक बात तो साफ तौर पर कही जा सकती है कि “दूर के ढोल सुहावने”।


🚩सभी हिन्दू अभिभावकों से नम्र निवेदन है कि कॉन्वेंट स्कूल में छात्रों पर पड़ने वाले गलत संस्कारों तथा उनके साथ हो रही प्रताड़ना को देखते हुए अपने बच्चों को वहां नहीं भेजना चाहिए। वैदिक गुरुकुलों में अपने बच्चों को भेजना चाहिए।


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Sunday, July 16, 2023

कांवड़ यात्रा से अरबों रुपए का होगा फायदा, समझिए इकोनोमिक्स

16 July 2023

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🚩भगवान शिव की भक्ति का श्रावण महीना चल रहा है, रिमझिम बारिश के साथ ही सावन ने दस्तक दे दी है। सावन आने के साथ ही काँवड़ यात्रा भी शुरू हो गई है। गंगा सहित विभिन्न पवित्र नदियों से जल लेकर लोग भगवान भोलेनाथ को अर्पित करने निकल पड़े हैं। झारखंड स्थित वैद्यनाथ धाम हो या फिर हरिद्वार, काँवड़ यात्रा की चहल-पहल से आध्यात्मिक स्थल व्यस्त हो गए हैं। लेकिन, इसके साथ ही शुरू हो गया है हिन्दू विरोधियों द्वारा अलग-अलग तरह का प्रोपेगंडा कर के काँवड़ यात्रा को बदनाम करने का प्रयास।



🚩आपके सामने कई ऐसे लोग आएँगे जो कहेंगे कि भगवान शिव को जल चढ़ाना पानी की बर्बादी है। कोई ट्वीट कर के कह रहा है कि बच्चों के हाथों में काँवड़ की जगह किताब देनी चाहिए तो कोई काँवड़ियों पर गुंडागर्दी का आरोप लगा रहा है। अब कोई काँवड़ यात्रा की वैज्ञानिकता पर सवाल उठाएगा तो कोई पूछेगा कि इससे क्या फायदा होता है? कुछ इसे अंधविश्वास भी बताएँगे। हर साल ऐसा होता है, इस साल भी होगा, लेकिन इस बार हिन्दुओं को जवाबों से लैस रहना चाहिए।


🚩सबसे पहले समझिए कि काँवड़ यात्रा से ये चिढ़ने क्यों? चिढ़ने वाले हैं वामपंथी, इस्लामी कट्टरपंथी और खुद को दलितों के ठेकेदार बताने वाले। असल में ये लोग काँवड़ यात्रा की भीड़ देख कर डरते हैं कि हिन्दुओं में भक्ति भावना आखिर बढ़ क्यों रही है। काँवड़ यात्रा में सभी जातियों के लोग साथ में कदम मिला कर चलते हैं, ये उन्हें बर्दाश्त नहीं होता। साथ ही काँवड़ यात्रियों को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा जो सुविधाएँ मिलती हैं, उसने जले पर नमक का काम किया है।


🚩काँवड़ बनाने वाले बढ़ई समाज को मिलता है रोजगार, करोड़ों काँवड़ बनते हैं हर साल


🚩इस पर तो बात होती ही है कि कैसे काँवड़ यात्रा में जल चढ़ाने के लिए किसी गाँव या क़स्बा से पूरा समूह निकलता है तो उसमें सभी जाति के लोग शामिल होते हैं और सभी एक-दूसरे को ‘भोले’ (बिहार-झारखंड में ‘बम’) कह कर पुकारते हैं। कोई ‘बच्चा बम’ होता है तो कोई ‘महिला बम’। ध्यान दीजिए, ये Bomb वाला बम नहीं है, वो तो जिहादी बनते हैं। ये ‘बम-बम भोले’ वाला बम है। कोई ‘डॉक्टर बम’ होता है तो कोई ‘इंजीनियर बम’। ‘चाचा बम’ और ‘बाबा बम’ भी मिल जाएँगे आपको।


🚩अब थोड़ा इस यात्रा की जड़ में चलते हैं। यात्रा के लिए सबसे पहली ज़रूरत क्या है – काँवड़। दूसरी ज़रूरत – भगवा कपड़े। तीसरी ज़रूरत – गंगाजल या अन्य पवित्र नदियों का जल। सबसे पहले काँवड़ पर आते हैं। ये काँवड़ बनती किस चीज से है? लकड़ी से। लकड़ियों का काम कौन करता है? बढ़ई, जिसे अंग्रेजी में Carpenter भी कहते हैं। यानी, सावन के एक महीने में (इस बार 2 महीना, क्योंकि ये ‘दोमास है’) बढ़ई समाज की इतनी आमदनी हो जाती है कि साल भर उनकी रोजी-रोटी चल सकती है।


🚩एक नजर आँकड़ों पर डालते हैं। अगर आप मेरठ का उदाहरण लेंगे तो अकेले इस शहर में काँवड़ यात्रा से 500 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। इस बार 5 करोड़ तीर्थयात्री काँवड़ लेकर हरिद्वार आ सकते हैं। सोचिए, 5 करोड़ लोगों के पास 5 करोड़ काँवड़ भी तो होंगे। यानी, 5 करोड़ काँवड़ किसी न किसी ने बनाए होंगे? है न? किसी एक आदमी के बस का तो ये है नहीं। यानी, हजारों बढ़इयों को काँवड़ यात्रा में काम मिलता है, रोजगार मिलता है।


🚩अगर हम कम से कम 300 रुपए भी रखें तो 5 करोड़ काँवड़ का दाम 1500 करोड़ रुपए बैठ जाता है। कई काँवड़ तो बहुत महँगे भी होते हैं, ऐसे में ये संख्या 2000 करोड़ रुपए के पार भी जा सकती है। ये भी हो सकता है कि कई काँवड़िए पिछले साल वाला काँवड़ ही इस्तेमाल करें, लेकिन आधे भी नए काँवड़ खरीदते हैं तो केवल काँवड़ का बिजनेस हजार करोड़ रुपए का बैठता है। ध्यान दीजिए, ये तो सिर्फ हरिद्वार जाने वाले काँवड़ियों का आँकड़ा है। कई अन्य भी धाम हैं, जहाँ ये यात्रा चलती है।


🚩उदाहरण के लिए, अब झारखंड में स्थित वैद्यनाथ धाम को ले लीजिए। बिहार-झारखंड के अधिकतर लोग यहीं जल चढ़ाने आते हैं, कई तो हर साल। सामान्यतः भागलपुर के सुल्तानगंज में गंगा नदी से जल लिया जाता है और से शुरू होती है काँवड़ यात्रा। बिहार से हर साल 40 लाख के करीब लोग काँवड़ लेकर जाते हैं। दिल्ली NCR में ये आँकड़ा 30 लाख का है। सोचिए, वैद्यनाथ धाम में सावन में पहुँचने वाले इन 30 लाख काँवड़ियों से अर्थव्यवस्था को कितना लाभ पहुँचता होगा?


🚩काँवड़ यात्रा की अर्थव्यवस्था फाइव स्टार होटलों या फिर विमानों वाली नहीं है। ये पैसा आम लोगों की जेब से निकलता है और आम लोगों की जेब में जाता है, खासकर गरीब तबके की, व्यापारियों की। जैसे, सड़क पर स्थित ढाबों, छोटे होटलों, धर्मशालाओं और रेस्टॉरेंट्स में कारोबार बढ़ जाता है। बिहार जैसे गरीब राज्य में भी केवल भागलपुर में इस साल इससे 500 करोड़ रुपयों का कारोबार अनुमानित है। मधेपुरा और कटिहार

🚩अगर पूरे बिहार की बात करें तो वहाँ 2000 करोड़ रुपए का कारोबार अपेक्षित है। सोचिए, एक राज्य की अर्थव्यवस्था में इस तरह के कारोबार से फायदा होगा या नहीं होगा? जमुई और मुंगेर जैसे जिलों में भी 30-35 करोड़ रुपए के कारोबार की संभावना है इस काँवड़ यात्रा के दौरान। फलाहार बेचने वाले कौन लोग होते हैं? फुटकर दुकानदार ही होते हैं न? पूजा सामग्रियाँ बेचने वाला सामान्य कारोबारी ही होते हैं न? सावन के अंत में रक्षाबंधन और फिर उसके बाद दशहरा, दीवाली और छठ के बारे में तो पता ही है।


🚩अकेले अलीगढ़ में घुँघरू-घंटी की 1000 फैक्ट्रियाँ, मजदूरों को मिलता है काम


🚩हम बात कर रहे थे काँवड़ की। काँवड़ बनाने के लिए चाहिए बाँस, लकड़ी, रंगीन कागज, कपड़ा और घंटी या घुँघरू। अगर आप उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ या एटा में जाएँगे तो पाएँगे वहाँ सैकड़ों परिवारों की आमदनी केवल घंटी और घुँघरू बनाने पर ही निर्भर होती है और वो इस सीजन में अच्छी कमाई करते हैं। अलीगढ़ को ताला उद्योग के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन ये घुँघरू-घंटी उद्योग के लिए भी लोकप्रिय है। काँवड़िए पाँवों में घुँघरू बाँधते हैं, घंटी काँवड़ में लगा दी जाती है।


🚩इनका अपना एक महत्व है, क्योंकि कहा जाता है कि ये तीर्थयात्रियों को साँप-बिच्छू जैसे खतरनाक जीवों से बचाए रखते हैं। सोचिए, अकेले अलीगढ़ में ऐसे 1000 कारखाने हैं जहाँ हजारों मजदूरों को रोजगार मिलता है काँवड़ यात्रा के मौसम में और इससे पहले। सामान्यतः घंटी-घुँघरू पीतल के होते हैं। कच्चे माल की गलाई के बाद ढलाई, घिसाई, पॉलिश, पैकिंग इत्यादि का काम किया जाता है। बड़ी बात तो ये है कि यहाँ कई मुस्लिम मजदूर भी हैं, अर्थात काँवड़ यात्रा मुस्लिमों को भी रोजगार देती है।


🚩जिस तरह काँवड़ बनाने वाले बढ़ई लोगों और घुँघरू-घंटी बनाने वाले मजदूरों को रोजगार मिलता है, ठीक उसी तरह से कपड़ों का कारोबार भी सावन के महीने में खूब परवान चढ़ता है। टेंट हाउस, डीजे संचालक, हलवाइयों और जेनेरेटर मालिकों की बुकिंग बढ़ जाती है। ये बहुत अमीर लोग नहीं होते, बल्कि गाँव-समाज और शहर के ही लोग होते हैं जिनका स्थानीय कारोबार होता है। शिवभक्त भंडारा करते हैं, ऐसे में प्रसाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री भी बढ़ जाती है।


🚩टीशर्ट, निक्कर, पटका, तौलिया या फिर बटुआ – ये सब की बिक्री भी छोटे दुकानदार ही करते हैं। ‘महाकाल’ लिखे टीशर्ट्स हों या फिर भगवान शिव की तस्वीर वाले, इनकी माँग बढ़ जाती है और बिक्री भी। सबसे बड़ी बात, मंदिर के आसपास फल और बेलपत्र बेचने वाले बहस ही गरीब लोग होते हैं और केवल इन दोनों का कारोबार करोड़ों का होता है। सावन के महीने में जल के साथ बेलपत्र चढ़ाया ही चढ़ाया जाता है। प्रसाद में फल लोग लेते ही हैं। महिलाओं की श्रृंगार की वस्तुएँ भी खूब बिकती हैं।


🚩इनमें सिंदूर सबसे प्रमुख होता है, क्योंकि सुहागिनें इसे एक-दूसरे को लगाती हैं और माँ पार्वती को भी अर्पित करती हैं। कोरोना काल में काँवड़ यात्रा नहीं निकल पाई थी तो कई कारोबारी और ऐसे फुटकर दुकानदार मायूस हो गए थे, उन पर आर्थिक संकट आ गया था। दिल्ली-मेरठ रोड से हरिद्वार जाने वाले काँवड़िए जाते हैं, ऐसे में सबसे ज्यादा कमाई यहीं होती है। इसीलिए, अगर कोई काँवड़ यात्रा का विरोध कर रहा है तो वो अप्रत्यक्ष रूप से गरीबों का विरोध कर रहा है।


🚩काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब महीने भर फूल-बेलपत्र बेचने वाली मंदिर के पास बैठी गरीब महिलाओं का विरोध। काँवड़ मतलब हर साल 5 करोड़ से भी अधिक काँवड़ियों के लिए काँवड़ बनाने वाली बढ़इयों का विरोध। काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब भगवा कपड़े बेचने वाले छोटे कारोबारियों का विरोध। काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब प्रसाद सामग्री या पूजा सामग्री बेचने वाले फुटकर दुकानदारों का विरोध। काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब घुँघरू-घंटी की हजारों फ़ैक्ट्रियों में काम करने वाले गरीबों का विरोध।


🚩ऐसे समय में, जब हमारे देश के अधिकतर मंदिरों पर सरकार का कब्ज़ा है और उनसे प्राप्त हुए पैसों का इस्तेमाल सरकार विभिन्न कार्यों में करती है, इसके बावजूद ये मंदिर विपत्ति के काल में स्वेच्छा से गरीबों की मदद करने का निर्णय लेते हैं – तब भी हिन्दू धर्म के खिलाफ इस तरह की अपमानजनक बातें करना अपराध नहीं तो और क्या है? काँवड़ यात्रा श्रद्धा का प्रतीक है, हिन्दू परंपरा है – विरोध न करने के लिए एक यही वजह काफी होनी चाहिए थी, अर्थव्यवस्था वगैरह की बात तो बाद में आती है।


🚩भारत की भूमि पर भारतीय संस्कृति की परंपरा का इतना विरोध क्यों?🚩आप सोचिए, इस भारत भूमि पर भारत में उपजी संस्कृति की परंपरा का विरोध होता है। भगवान परशुराम या भगवान श्रीराम को प्रथम काँवड़ियों के रूप में मान्यता मिली है, साधु-संत सदियों से काँवड़ यात्रा निकालते रहे हैं, ऐसे में भला कैसे किसी को अधिकार मिल जाता है कि प्राचीन भारतीय इतिहास में जिस परंपरा की जड़ हो उस पर बिना सिर-पैर की बातें कर के कुठाराघात करने का? भगवान के दरबार में सभी भक्त एक होते हैं, जात-पात या धन मायने नहीं रखता – हिन्दू विरोधियों को काँवड़ यात्रा से इसीलिए चिढ़ होती है।


🚩जो लोग सड़क पर नमाज के विरोध में चूँ तै नहीं करते, वही काँवड़ यात्रा के विरोध में शिक्षा और विज्ञान जैसी बातें करने लगते हैं। नमाजियों द्वारा तो सड़क घेर कर घंटों ट्रैफिक रोक लिया जाता है, इससे तो कोई कारोबार भी जेनरेट नहीं होता, फिर क्यों ऐसा किया जाता है? कई बार मस्जिदों से निकली भीड़ दंगे करती है, पत्थरबाजी करती है – इसके विरोध में क्यों कोई कुछ नहीं बोलता? जुमे के दिन सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी पड़ती है, इसके कारण पर चर्चा हुई आज तक कभी?


🚩जहाँ तक शिक्षा की बात है, सनातन में अध्यात्म और विज्ञान तो एक-दूसरे के पूरक हैं, दुश्मन नहीं। यहाँ धरती को चपटी नहीं बताया गया है, बल्कि हजारों वर्ष पूर्व ग्रहों-नक्षत्रों के बारे में सटीक जानकारी दी गई है। यहाँ दिन-मास-पहर सभी की गणना के तौर-तरीके वैदिक युग से ही उपलब्ध हैं। गणित और खगोल के सिद्धांत हिन्दू धर्म के प्राचीन साहित्य में मिलते हैं। फिर हिन्दू धर्म के सामने विज्ञान कैसे खड़ा हो गया? दोनों तो साथ में चलते हैं न। योग या ध्यान प्रक्रिया विज्ञान नहीं तो क्या है। - स्त्रोत: ओप इंडिया


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Saturday, July 15, 2023

अमेरिकी पादरी का दावा : भारत में 1 सप्ताह में बनाए 1 लाख ईसाई

15 July 2023

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🚩रोमन कैथोलिक चर्च एक छोटे से राज्य में है, जिसे वेटिकन सिटी बोलते है । वो ईसाई धर्म का मुख्यालय है जिसमे हजारो ईसाई धर्मगुरु पादरी रहते हैं।  वही से उनका पूरी दुनिया में राज करने का प्लान बनते हैं,कि कैसे पूरी दुनिया में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार बढ़ाया जाये । इसके लिए अरबों-खबरों रुपये भी अलग-अलग देशों में भेजे जाते हैं।


🚩वेटिकन सीटी के पास दुनिया में सबसे ज्यादा संपत्ति है। उनके कितने बिजनेस चल रहे हैं , यह किसी को पता नही है। शेयर बाजार मुख्य रूप से उनके अधीन है । पुराने आंकड़े के अनुसार 17 हजार करोड़ डॉलर हर साल ईसाई धर्मांतरण पर खर्च करते है ।


🚩वेटिकन सिटी द्वारा भारत देश में हिंदुत्व को मिटाकर ईसाई देश बनाने के लिए पुरे जोर-शोर से कार्य चल रहा है ।


🚩एक अमेरिकी पादरी ने दावा किया है कि मात्र 1सप्ताह में भारत में मिशनरियों ने 1लाख हिन्दुओं का इसाई धर्मांतरण कराया है। YouTube पर 10 महीने पहले अपलोड किए गए उक्त वीडियो में उस पादरी को ये कहते हुए सुना जा सकता है। क्रिस हॉजेज नाम का उक्त पादरी ‘चर्च ऑफ हाइलैंड्स’ से जुड़ा हुआ है जिसकी शाखाएँ अल्बामा और पश्चिमी जॉर्जिया में हैं।


🚩वो अपने परिवार के साथ बर्मिंघम में रहता है। उसने वीडियो में कहा कि मिशनरीज ने बताया है, कि दुनिया का वो हिस्सा जहाँ लोग सबसे ज्यादा दिग्भ्रमित हैं वो उत्तर भारत है। उसने दावा किया, कि भारत में दक्षिणी हिस्सों में बड़े स्तर पर इसाईकरण हुआ है। उसने कहा कि ईसाई धर्मांतरण के मामले में पिछले 10 वर्षों में भारत में बहुत दिक्कतें आ रही हैं। साथ ही उसने कई NGO की विदेशी फंडिंग के लाइसेंस रद्द किए जाने का रोना रोते हुए कहा, कि भारत ने कई मिशनरी संस्थाओं को भगा दिया है।


🚩साथ ही उसने इससे भी नाराज़गी जताई कि भारत में पूरा का पूरा संगठन 100% लोगों को हिन्दू बनाने में लगा हुआ है। पादरी इस वीडियो में कहता है , कि हमें भारत के और दुनिया भर के ईसाइयों को लेकर प्रार्थना करने की ज़रूरत है, क्योंकि उन पर अत्याचार हो रहे हैं और रोज कोई न कोई ईसाई मर रहा है। उसने दावा किया कि मिशनरियों की 3931 टीमें 15 उत्तर भारतीय राज्यों में सक्रिय हैं।



🚩उक्त पादरी ने इस दौरान इसका भी खुलासा कर दिया, कि कैसे शैतान का डर दिखा कर, इसे धर्मांतरण के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल में लाया जा रहा है। किसी व्यक्ति पर से शैतान को भगाने पर पूरा गाँव खुश होता है, इन तिकड़मों का भी उसने बखान किया। उसके खुलासों की मानें तो असल में ये ‘जिन व्यक्तियों पर शैतान सवार होता है’, उन्हें गाँवों में मिशनरियों द्वारा भेजा जाता है और फिर आतंकित गाँव वालों को उस से छुटकारा दिला कर पादरी ‘मसीहा’ बन जाते हैं, फिर धर्मांतरण कराते हैं।


🚩उसने उदाहरण दिया कि, एक महिला के ऊपर से ‘शैतान को हटाने’ के बाद 150 परिवार इतने खुश हुए कि उन्होंने ईसाई मजहब अपना लिया। साथ ही उसने बाइबिल का जिक्र भी किया कि गॉड अपने लोगों को मुसीबत में मदद करता है। इसी दौरान उसने भारत में 1 सप्ताह में 1,12,224 लोगों के धर्मांतरण की बात कही।

बता दें कि पादरियों के कार्यक्रमों में ‘आरारारा’ और ‘मेरा येशु-येशु’ कह कर नाचते हुए लोगों के फनी वीडियोज अक्सर सामने आते हैं। एक महिला को तो इस तरह से किडनी ठीक किए जाने का दावा तक किया गया था।


🚩याद दिलाते चलें , कि बाइबिल का हर भाषा में अनुवाद करने के मिशन पर काम कर रही संस्था ‘अनफोल्डिंग वर्ल्ड’ के CEO डेविड रीव्स ने कहा था , कि भारत में कोरोना महामारी के दौरान उतने चर्चों का निर्माण हुआ, जितने पिछले 25 सालों में हुआ था। रीव्स ने इसके बाद बड़ा दावा किया था , कि महामारी के दौरान 1लाख लोगों का ईसाई धर्मांतरण किया गया। उन्होंने बताया कि हर चर्च को 10 गाँवों में प्रार्थना आयोजित करने को कहा गया। उसने बताया कि इस दौरान 50,000 गाँवों तक पहुँच बनाई गई है। स्त्रोत : ओप इंडिया 


🚩नियोगी समिति ने अवैध, राष्ट्र-विरोधी, समाज-विरोधी मिशनरी गतिविधियों को रोकने के लिए जो अनुशंसाएं दी थीं, उन का आज भी उतना ही मूल्य है। वे अनुशंसाएं यह थीं – 


🚩(1) जिन विदेशी मिशनों का प्राथमिक कार्य मात्र धर्मांतरण कराना है, उन्हें देश से चले जाने के लिए कह देना चाहिए।


🚩(2) चिकित्सा और अन्य सेवाओं के माध्यम से धर्मांतरण बंद करने के लिए कानून बनाए जाने चाहिए।


🚩(3) किसी की विवशता, बुद्धिहीनता, अक्षमता, असहायता आदि का लाभ उठाते हुए धोखे या दबाव से धर्मांतरण को पूर्णतः प्रतिबंधित करना चाहिए।


🚩(4) विदेशियों द्वारा तथा छल-प्रपंच से धर्मांतरण रोकने के लिए संविधान में उपयुक्त संशोधन होना चाहिए।


🚩(5) अवैध तरीकों से धर्मांतरण बंद करने के लिए नए कानून बनने चाहिए।🚩(6) अस्पतालों में नियुक्त डॉक्टरों, नर्सों और अन्य अधिकारियों के रजिस्ट्रेशन में ऐसे संशोधन करने चाहिए जिस से उनके द्वारा किसी मरीज के इलाज और सेवा के कार्यों के दौरान उस का धर्मांतरण न होने की शर्त हो।


🚩(7) बिना केंद्र सरकार की अनुमति के धार्मिक प्रचार वाले साहित्य के वितरण पर प्रतिबंध हो।


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Friday, July 14, 2023

आखिर बॉलीवुड ने आपका कितना नुकसान किया हैं ???

14 July 2023

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🚩साल 2012 में एक फिल्म आई थी – ‘OMG: Oh My God!’ नाम की, जिसमें परेश रावल ने एक नास्तिक व्यक्ति का किरदार निभाया था और अक्षय कुमार भगवान श्रीकृष्ण के रूप में दिखे थे। अब हिन्दू पुनर्जागरण का काल आया है और जिस तरह से एक-एक कर के एजेंडाधारी बेनकाब हुए हैं, आज की तारीख़ में बहुत आवश्यक है कि इस फिल्म की पुनः समीक्षा हो। उस समय इस फिल्म ने भारत में 100 करोड़ रुपए से भी अधिक का नेट कारोबार किया था और IMDb पर भी इसकी रेटिंग 8 से ज्यादा है।


🚩अब ‘OMG 2’ का टीजर भी आया है, इसीलिए भी इस फिल्म के बारे में फिर से बात किया जाना चाहिए। क्या फिल्म में भगवान का इस्तेमाल कर के नास्तिकवाद को बढ़ावा दिया गया? क्या हिन्दू धर्म के प्रतीकों का अपमान किया गया? एक खास सन्देश देने के चक्कर में सीमाएँ लाँघ दी गईं? आइए, समझते हैं। अब हिन्दुओं का सामूहिक बौद्धिक विकास भी हुआ है और उन्हें बॉलीवुड का हर प्रपंच समझ में आने लगा है, एक-एक बिंदु में तोड़ कर इस फिल्म पर फिर से चर्चा की जानी आवश्यक है।


🚩धार्मिक यात्रा में शराब, गंगाजल और उपवास का अपमान


🚩भारत में गंगाजल का अपना एक महत्व है, गंगा को सबसे पवित्र नदी का दर्जा दिया गया है। ऐसे में फिल्म की शुरुआत में ही एक दृश्य में दिखाया गया है कि कैसे ‘कांजीभाई’ (परेश रावल) एक महिला की मृत्यु के बाद हो रही एक धार्मिक यात्रा में सभी को शराब पिला देते हैं, सारे लोग शराब पी लेते हैं धोखे से। क्या यहाँ गंगाजल से शराब की तुलना उचित थी? इस तरह की तुलना जमजम के पानी को लेकर कभी की जा सकती है? हिन्दू धर्म में इस तरह की अपमानजनक चीजों को इतना हल्का-फुल्का बना दिया गया है कि हम इस पर हँसते हैं।


🚩जिस तरह से हमें अपने ही ऊपर अत्याचार करने वाले आक्रांताओं का अपमान करना सिलसिलेवार तरीके से सिखाया गया, कुछ इसी तरह से हमारे भीतर ये भी व्यवस्थागत रूप से बिठा दिया गया कि अपने ही धर्म के अपमान पर हम हँसें, आपत्ति जताना तो दूर की बात है। इसी के बाद वाले दृश्य में उपवास का मजाक भी बनाया गया है। उपवास के पीछे का वैज्ञानिक महत्व आयुर्वेद में वर्णित है और मेडिकल विज्ञान भी इसे मानता है। शराब पिला कर किसी मुस्लिम का रोजा तुड़वाने वाला दृश्य बॉलीवुड कभी दिखा सकता है?


🚩मूर्ति का मतलब खिलौना


🚩फिल्म के एक दृश्य में कांजीभाई को भगवान की मूर्तियों को एक बड़ी दुकान से खरीदते हुए दिखाया गया है। इसमें वो हनुमान जी को ‘बॉडी बिल्डर’ कहते हैं और इसी तरह हर देवी-देवताओं का मजाक बनाते हैं। सुधारवाद के नाम पर हिन्दू प्रतिमाओं को खिलौना कहना कहाँ तक उचित है? यानी, पूरी की पूरी मूर्तिपूजा ही बेकार है? फिर तो हिन्दू धर्म के प्राचीन साहित्य भी बेकार हो गए? मंदिर बनवाने वाले राजा-महाराजा और उन मंदिरों में पूजा-पाठ करने वाले साधु-संत भी मूर्ख थे?


🚩मूर्तिपूजा का विरोध तो इस्लाम में किया जाता है और इस्लामी आक्रांता प्रतिमाओं को ‘बूत’ बता कर इसे तोड़ते थे। क्या हिन्दू धर्म में सुधारवाद का यही अर्थ है कि वो इस्लाम के हिसाब से काम करने लगे? माना कि आर्य समाज भी मूर्तिपूजा के खिलाफ है, लेकिन श्रीराम या श्रीकृष्ण में आस्था इसके अनुयायियों की भी है। इसी तरह एक दृश्य में भगवान शिव को ‘काला पत्थर’ कह दिया गया है। अर्थात, करोड़ों लोगों की जिनमें आस्था है उन महादेव के लिए इस तरह के शब्द पर तो फिल्म को रिलीज ही नहीं होने देना चाहिए था।


🚩मूर्तिपूजा के विरोध में इस फिल्म में कभी तर्क दिया जाता है कि हिन्दू धर्म में 35 करोड़ देवी-देवता हैं तो कभी दिखाया जाता है कि कैसे मूर्तियों में श्रद्धा रखने वाले लोग बेवकूफ होते हैं और इसके चक्कर में मूर्ख बन कर मूर्तियाँ खरीद देते हैं। यानी, बहुदेववाद ढकोसला है – इस फिल्म में ये बताने की कोशिश की गई है। अब्राहमिक मजहबों का इससे अच्छा प्रचार क्या होगा भला? इस्लाम की शुरुआत ही अरब में मूर्तियों को तोड़े जाने के साथ हुई थी, फिल्म इस थ्योरी को बड़े सॉफ्ट तरीके से आगे बढ़ाती है।


🚩मुस्लिमों की एरिया में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की दुकान


🚩कांजीभाई की जो दुकान होती है, वो मुस्लिमों वाले एरिया में होती है। आप देखिएगा बॉलीवुड की चालाकी। जब-जब उस दुकान को दिखाया जाता है तब-तब वहाँ आसपास मुस्लिमों को चहलकदमी करते हुए दिखाया गया है। वास्तविकता इससे परे होती है, ये किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों में चुन-चुन कर हिन्दुओं की दुकानों को जलाया गया था। शिव विहार में 2 स्कूल अगल-बगल थे, मुस्लिमों का स्कूल दंगाइयों का पनाहगाह बना जबकि हिन्दुओं के स्कूल को फूँक दिया गया।

🚩बॉलीवुड इसी तरह हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का सन्देश देता है, जहाँ हिन्दू हमेशा गुंडा होता है और मुस्लिम ‘मासूम’। हज को लेकर मजाक किए जाने पर मुस्लिम सुन कर रह जाता है, जबकि थोड़ा सा गुस्सा आने पर मंदिर का पुजारी पीटने के लिए कांजीभाई को दबोच लेता है – इस तरह के नैरेटिव ‘शोले (1975)’ के समय से ही चले आ रहे हैं जब गाँव में सबसे अच्छा और सच्चा मौलवी साहब ही हुआ करते थे।


🚩जिसने धोती पहन रखी है, शिखा रखी है – उसका मजाक बनाओ


🚩आप पूरी OMG: Oh My God!’ फिल्म में ‘सिद्धेश्वर महाराज’ के किरदार पर गौर कीजिए। बॉलीवुड के लिए शुरू से जोकर का अर्थ रहा है धोती-शिखा वाला ब्राह्मण। शक्ति कपूर को इस तरह से कई फिल्मों में कास्ट किया गया है। क्या आपने बॉलीवुड में जोकर के रोल में कभी ऊँचे पायजामे वाले मौलवी को देखा है? फिल्म की शुरुआत में ही भूकंप आता है और सिद्धेश्वर महाराज गिरने लगते हैं। कभी तो टाँगें फैला कर कुर्सी पर बैठ कर कुछ खाते रहते हैं तो कभी कोर्ट में उन्हें अजीबोगरीब हरकत करते हुए दिखाया गया है। पंडितों के IQ पर टिप्पणी की जाती है, ‘इंटरेस्टिंग आइटम’ बताया जाता है।


🚩इसी तरह एक दृश्य में साधु-संतों को अनपढ़ बताते हुए कांजीभाई कह देते हैं कि अधिकारी तो पढ़े-लिखे होते हैं, उनसे इनकी तुलना नहीं हो सकती। ऐसे डायलॉग्स और दृश्यों से युवावर्ग में इस तरह का सन्देश जाता है कि साधु-संत अनपढ़ होते हैं। वेद-पुराणों का अध्ययन करने वाले को पढ़ा-लिखा नहीं कहा जा सकता। पढ़ा-लिखा दिखने की पहली शर्त है कि व्यक्ति भारतीय परिधान न पहने। पहनेगा तो वो जोकर है। एक दृश्य में एक लड़के को यज्ञ करा रहे पंडित का मजाक बनाते हुए दिखाया गया है। इससे क्या सन्देश गया होगा?


🚩आरती फूँकना, तिलक मिटाना:


🚩नास्तिक द्वारा धृष्टता एक नास्तिक आरती की थाली में फूँक कर दीया बुझा देता है। एक दृश्य में वो अपना और अपने सहयोगी का तिलक पोंछ देता है। हाल ही में खबर आई कि मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित एक स्कूल में तिलक लगा कर जाने पर बच्चे को पीट-पीट कर भगा दिया गया। इस करतूत का समर्थन करने वाला स्कूल का प्रिंसिपल हिन्दू है, इस करतूत को अंजाम देने वाली शिक्षिका हिन्दू हैं। भला इस तरह की मानसिकता ऐसी फिल्मों से ही आती है न? ये सिखाते हैं कि तिलक हटा दो, आरती मत करो – तभी तुम आधुनिक कहलाओगे।


🚩बॉलीवुड में किसी भी निर्देशक की हिम्मत है तो वो मस्जिद में जाकर इस तरह की हरकतें करने वाला दृश्य दिखा दे। यहाँ तो जो बातें लिखी हुई हैं उन्हें बोल देने पर एक महिला को साल भर अपने ही घर में कैद रहना पड़ता है और उनका समर्थन करने वालों का गला रेत दिया जाता है। ये नास्तिकवाद की बीमारी हिन्दुओं में ही क्यों धकेली जा रही है? अजान और नमाज के प्रति सम्मान की भावना दिखाने वाला ये बॉलीवुड, जिसके सितारे दरगाहों पर चादर चढ़ाने जाते रहे हैं, उन्हें विलेन के रूप में साधु-संत ही क्यों चाहिए?


🚩अच्छा मुस्लिम वकील, हिजाबी बेटी: इस्लाम पर बच कर चलती है ‘OMG: Oh My God!’


🚩जहाँ एक तरफ हिन्दू धर्म और देवी-देवताओं को लेकर ऐसी-ऐसी टिप्पणियाँ हैं, इस्लाम मजहब का नाम आते ही फिल्म के निर्माता-निर्देशक की हवा निकल जाती है। एक मुस्लिम वकील है, जो इतना अच्छा है कि पूछिए मत। उसकी हिजाब पहनी हुई बेटी है, जो बहुत अच्छी है व्यवहार में। हाल ही में हिजाब के समर्थन में कर्नाटक में दंगे हुए, हमने देखा। ईरान में महिलाओं ने सड़क पर निकल कर अपने हिजाब जलाए। ऐसे में किसी फिल्म में हिजाब को सकारात्मक और धोती-शिखा को नकारात्मक दिखाने से क्या सन्देश जा सकता है? एक जगह सिर्फ ‘पैगंबर’ कहा जाता है, पूरा नाम लेने की हिम्मत भी नहीं होती और हिन्दू देवी-देवताओं के समय जबान कैंची की तरह खुलने लगती है।


🚩एक मुस्लिम जब उपरवाले पर केस करने आता है तो उसे सिखाया जाता है कि वो अल्लाह मियाँ के खिलाफ नहीं जा रहा। देखिए, यहाँ कितने संभल-संभल कर डायलॉग लिखे गए हैं। यहाँ आरती फूँकना, तिलक मिटाना, शिवलिंग को काला पत्थर कहना – ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल नहीं किया गया है। फिल्म में सारे मुस्लिम किरदार बहुत अच्छे मिलेंगे आपको। एक से हज पर मजाक किया जाता है लेकिन वो सहिष्णु है, एक फ्री में कांजीभाई की मदद करता है, उसकी बेटी भी मदद करती है, मौलवी साहब भी संतों की तरह ‘बिगड़े हुए’ नहीं हैं।


🚩मिथुन चक्रवर्ती का चित्रण आपको क्यों डिस्टर्ब करना चाहिए


🚩इस फिल्म में एक और खास बात है – ‘लीलाधर स्वामी’ के किरदार में मिथुन चक्रवर्ती। लीलाधर स्वामी पुरुष हैं, लेकिन महिलाओं की तरह उनका चाल-चलन है। वो हमेशा अपना एक हाथ अपने मुँह के पास रखे रहते हैं। वो ज्ञानी हैं, लेकिन फिल्म में मुख्य विलेन भी। वो भी धोती पहनते हैं, स्पष्ट है कि उनका रोल सकारात्मक नहीं ही रहना चाहिए। बॉलीवुड में ये चीज एक तरह से नॉर्मल रही है, ‘सिंघम 2’ का हीरो साधु को थप्पड़ मार कर घसीटते हुए जेल लेजाता है, लेकिन दरगाह के सामने सर झुकाने के लिए दूसरों को भी मजबूर करता है।


🚩लीलाधर स्वामी के बोलचाल के अंदाज़ को भी ऐसा रखा गया है। ये एक तरह से ट्रांसजेंडर समाज का भी अपमान है, सिर्फ साधु-संतों का ही नहीं। हमने साधु-संतों के इस चित्रण के खिलाफ आवाज उठाई होती तो न तो ‘सिंघम 2’ में कुछ वैसा दिखाया जाता और न ही ‘आश्रम’ जैसी वेब सीरीज में धर्म के साथ सेक्स जैसी चीजें परोसी जातीं। अगर एकाध ऐसी घटनाएँ वास्तविक भी हैं, फिर बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर फिल्म बनेगी? मदरसों में यौन शोषण करने वाले मौलवियों पर आज तक फिल्म बनी है?


🚩लोकतंत्र में ‘भगवान’ भी कटघरे में


🚩ईश्वर तो तब भी विद्यमान थे जब लोकतंत्र नहीं था, संविधान नहीं था और पुलिस-कोर्ट नहीं हुआ करती थी। तब इन सबका कुछ और रूप हुआ करता था। उससे पहले कुछ और रूप। लेकिन, ईश्वर में आस्था इस संस्कृति की पहचान रही है। फिल्म के एक दृश्य में कहा जाता है कि ये लोकतंत्र और और यहाँ भगवान को भी न्यायालय में पेश होना पड़ेगा। लोकतंत्र का ये अर्थ तो बिलकुल भी नहीं है। उलटे सत्ता में, न्यायपालिका में और ब्यूरोक्रेसी में जो लोग हैं उन्हें ईश्वर का भय होना चाहिए कि उनसे गलती हुई तो उन्हें सज़ा मिलेगी।


🚩हजारों वर्ष पुरानी इस संस्कृति में ईश्वर को सिर्फ इसीलिए नीचा नहीं दिखाया जा सकता, क्योंकि यहाँ 74 वर्षों से एक संविधान है और एक लोकतंत्र है। अक्सर आपने आजकल खबरों में पढ़ा होगा कि कभी हनुमान जी को कोर्ट द्वारा समन भेज दिया जाता है तो कभी किसी और देवी-देवता को। हो सकता है इस तरह की फ़िल्में देख कर कुर्सी पर बैठे लोग खुद को भगवान से ऊपर समझने लगें। ऐसी स्थिति न आए, इस स्थिति से हमें डरना चाहिए, क्योंकि ईश्वर और उसमें आस्था हजार वर्ष बाद भी होगी जब शायद सत्ता और न्यायपालिका का स्वरूप अलग हो।


🚩मंदिरों को बदनाम करने के लिए अदालत में भाषण

कांजीभाई मंदिरों को गाली देने के लिए कोर्ट में पूरा का पूरा भाषण देते हैं और बड़ी बात ये कि कार्यवाही देख रहे ‘भगवान श्रीकृष्ण’ भी उनसे सहमत दिखते हैं। इसीलिए, इसे ये कह कर ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि ये किरदार बोल रहा होता है। कांजीभाई तर्क देते हैं कि फूल, चंदन लड्डू वगैरह खरीदने होते हैं जो मंदिर बेचता है और पैसे कमाता है। नहीं कांजीभाई, मंदिर के बाहर ये चीजें बेचने वाले गरीब लोग ही होते हैं, जिनकी उस मंदिर के कारण आमदनी होती है।


🚩महाशिवरात्रि के समय आप जो बेलपत्र खरीदते हैं वो मंदिर नहीं बेच रहा होता है बल्कि गरीब लोग ही बेच रहे होते हैं। पूजा सामग्रियों की दुकानें छोटे कारोबारियों की ही होती हैं। बड़ी आसानी से मंदिरों के पैसे को ब्लैक मनी बता दिया जाता है। जबकि मंदिरों पर सरकार का कब्ज़ा है और उनके पैसे सरकार की झोली में जाते हैं। अगर मंदिर सरकार कब्जे से मुक्त होते, तब इस तर्क पर बहस भी हो सकती थी। मंदिर में भिखारियों की एंट्री नहीं होती – ये नैरेटिव भी इसमें फैलाया गया है।


🚩अगर कोई व्यक्ति कहीं बैठ कर भीख माँग रहा है तो ये सरकार और समाज की नाकामी है या धर्म और मंदिरों की? इसमें मंदिरों के पैसों से चलने वाले अस्पतालों और स्कूलों को एक लाइन में ये कह कर नकार दिया गया है कि ये ऐसा ही है जैसे गुटखा बेचने वाले कैंसर की दवा भी बेचें। क्या मंदिर जाना कैंसर है? कई गरीबों की कमाई एक मंदिर के कारण हो जाती है। ये तर्क नास्तिकवाद नहीं, हिन्दू विरोध है। भगवान की सह कर भला कोई कैसे इस तरह के तर्क दे सकता है? कहाँ, किस वेद-पुराण में लिखा है ऐसा?


🚩आजकल आपने खबरों में देखा होगा कि कैसे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अवैध मजारों को तोड़ा जा रहा है। जबकि ‘OMG: Oh My God!’ फिल्म में कोई अवैध मजार नहीं होता, बल्कि खेल के मैदान में अवैध मंदिर बना दिया जाता है। इसमें बार-बार प्रतिमाओं के लिए पत्थर शब्द का इस्तेमाल किया गया है। क्या मक्का-मदीना में क्या है, इस पर मजाक उड़ाने की हिम्मत है? अब तो अवैध मजार तोड़े भी जा रहे हैं, 2012 के समय में तो अवैध मजार को अवैध बताना भी महापाप था।


🚩बाल अर्पण करने का भी बनाया गया है मजाक, दावा – इसका धंधा होता है


🚩श्राद्ध, यज्ञोपवीत और मुंडन में बाल अर्पण करने की परंपरा रही है। फिल्म में एक टीवी इंटरव्यू में कांजीभाई दवा करते हैं कि बाल अर्पण करने के पीछे एक बहुत बड़ा धंधा चलता है। किसी के घर में बाल ही बाल हो जाएँ तो कैसा लगेगा, भगवान को भी अच्छा नहीं लगेगा – ये तर्क दिया गया है। हिन्दू धर्म में बाल अर्पण करना अपने अहंकार के त्याग का प्रतीक है। मुंडन एक संस्कार है। अगर बालों का इस तरह का धंधा होता तो हर कोई अपने बाल बेच कर कमाई कर लेता। सैलून वाला कटे हुए बालों को बुहार कर फेंकता ही नहीं न?🚩ये अलग बात है कि लोग अपनी किसी खास मन्नत के पूरे होने पर भी बाल अर्पण करते हैं, लेकिन ये तो अपनी आस्था है न? मुंडन संस्कार का उल्लेख यजुर्वेद में भी मिलता है। शिशु के विकास के लिए इसे आवश्यक माना गया है। ऐसे तो हर एक परंपरा का विरोध किया जा सकता है? कोई इस फिल्म को बनाने वालों से ये पूछ सकता है कि सिनेमाघर और मॉल के बाहर भी भिखारी होते हैं, फिर तो फ़िल्में बननी ही नहीं चाहिए और बॉलीवुड को ही खत्म हो जाना चाहिए।


🚩शिवजी को दूध नहीं चढ़ाना चाहिए, गरीब को देना चाहिए


🚩अगर कोई बॉलीवुड वालों से पूछे कि जब देश में इतनी गरीबी है तो फिल्मों पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करने की क्या ज़रूरत गई, क्योंकि न ये पैसे गरीबों में बाँट दिए जाएँ? युवा वर्ग में हिन्दू धर्म के खिलाफ भावना भरने के लिए अक्सर गरीबों का इस्तेमाल किया जाता है। फिल्म में कांजीभाई कहते हैं कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से वो बर्बाद हो जाता है, गरीब प्यासा रह जाता है। सवाल ये है कि लोग दूध खुद की कमाई से खरीदते हैं, आस्था उनकी होती है, किसी का नुकसान नहीं करते – फिर दिक्कत क्या है?


🚩फिर तो बॉलीवुड की हस्तियों को बड़े-बड़े घर भी नहीं बनाने चाहिए क्योंकि कई गरीब फुटपाथ पर सोते हैं। उन्हें अपने घरों में गरीबों को जगह देना चाहिए? आखिर हिन्दू परंपरा को तोड़ कर ही समाजसेवा क्यों? शिवलिंग पर जल चढ़ाने वाले तो गरीबों को भी कुछ पैसे दे देते हैं, ये बॉलीवुड वाले क्या करते हैं? मालदीव के ट्रिप? शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा भी हजारों वर्ष पुरानी है और हमारे प्राचीन साहित्य में इसका जिक्र है, एक फिल्म में एक लाइन में गरीबों की बात कर के बड़ी चालाकी से इसे दोषी ठहरा दिया गया है।


🚩भगवान श्रीकृष्ण कुरान और बाइबिल पढ़ने के लिए देते हैं


🚩बॉलीवुड में अक्सर ये कह कर भाईचारे का सन्देश दिया जाता है कि जो भगवद्गीता में लिखा है, वही कुरान और बाइबिल में भी लिखा है। मतलब कुछ भी? कहाँ हैं समानताएँ? गीता में न तो ये लिखा है कि जो तुम्हारे धर्म में न माने उसे मार डालो और न ही ये लिखा है कि दूसरों का धर्मांतरण कराओ। 


🚩भगवान श्रीकृष्ण भला किसी को कुरान और बाइबिल पढ़ने को क्यों देंगे? पता नहीं ‘OMG: Oh My God!’ में ये दृश्य क्यों डाला गया है। वही बात हो गई कि मंदिरों में बजते हैं ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’, क्या किसी मस्जिद में सुना ‘रघुपति राघव राजा राम’?


🚩कुरान और बाइबिल की तुलना भगवद्गीता से नहीं होनी चाहिए, किसी भी पुस्तक की नहीं होनी चाहिए। न तो बॉलीवुड में कोई ऐसा विद्वान बैठा है जिसने साबित किया हो कि तीनों के कंटेंट एक हैं, न ही वहाँ कुछ ऐसा रिसर्च किया जाता है। फिर ये सब क्यों? कोई मौलवी भी नहीं मानेगा कि गीता में वही सब लिखा है जो कुरान में है। रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, संहिता, उपनिषद – कहाँ लिखा है कि गीता और कुरान-बाइबिल एक हैं? वेदों में तो पृथ्वी को चपटी नहीं बताया गया है।


🚩अब आप कहिए, पहली नजर में कोई भी व्यक्ति इस फिल्म को देखेगा तो उसे अपने ही धर्म से घृणा हो जाए। खुद अक्षय कुमार ने कहा था कि इस फिल्म को करने के बाद उन्होंने परिवार सहित वैष्णो देवी की यात्रा की योजना रद्द कर दी थी। फिर दर्शकों पर इसका क्या असर पड़ा होगा, सोचिए। आज कुछ हिन्दू ही कभी काँवड़ यात्रा का विरोध करते हैं तो कभी होली पर पानी की बर्बादी और दीवाली पर प्रदूषण की बात करते हैं, वो यूँ ही नहीं है। ‘OMG: Oh My God!’ जैसी फिल्मों ने चरणबद्ध तरीके से इसके लिए माहौल बनाया है।


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Thursday, July 13, 2023

मणिपुर हिंसा का मुख्य कारण क्या है ? कर्नल हनी बक्सी ने समझाया....जानिए


13 July 2023

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🚩मणिपुर 3 मई से हिंसा की आग में जल रहा है। 50 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोड़कर रिलीफ कैम्प में रहने को मजबूर हैं। अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में जानते हैं, कि इस हिंसा का कारण क्या है? और ये कैसे शांत हो सकती है?


🚩रिटायर्ड कर्नल हनी बक्शी ने ‘वाद’ नामक YouTube चैनल पर मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर बातचीत की है। इस दौरान उन्होंने कहा , कि नागा समुदाय भी ST में आते हैं, लेकिन उन्होंने हिंसा में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज के बीच टकराव आज से नहीं है, बल्कि ये उस इलाके की सभ्यतागत लड़ाइयाँ हैं। नागा-कुकी की लड़ाइयाँ होती थीं। 90 के दशक में एक पूरा गाँव जला दिया गया था। नागा समाज के भीतर भी कई समुदाय आपस में लड़ते रहते हैं।


🚩उन्होंने बताया कि ,... " जब तक भारतीय सेना उधर थी, ये लड़ाइयाँ नियंत्रण में रहीं। मणिपुर का सभ्य समाज, जो लोग केंद्र के विरोध में बोलते थे और AFSPA हटाने के लिए दबाव बनाया गया – वो अब चुप हैं। उन्होंने समझाया कि इस कानून के तहत किसी को भी गोली मारने की इजाजत नहीं थी, कोई किसी को ऐसे ही गोली नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि एनकाउंटर्स के समय एक खास परिस्थिति में गोली चलाने की अनुमति है।"


🚩‘AFSPA हटाए जाने के कारण हुआ नुकसान’

उन्होंने बताया कि भारतीय सेना के भीतर नियम इतने कड़े हैं , कि किसी ने गलत किया तो सज़ा मिलती ही मिलती है। कर्नल हनी बक्शी ने ‘संवाद’ कार्यक्रम में जानकारी दी , कि आफ्स्पा से सिर्फ एक लीगल प्रोटेक्शन मिलता है, लेकिन 2022 में मणिपुर में 15 पुलिस थानों से आफ्स्पा हटा दिया गया । अगले साल मार्च आते-आते 19 पुलिस थाना क्षेत्रों से ये नियम हट गए। जिसके बाद राष्ट्रहित में काम करने के लिए वहाँ सुरक्षा बलों को प्रोटेक्शन नहीं मिली।


🚩उन्होंने बताया कि सिविल सोसाइटी के दबाव में ऐसा किया गया। क्योंकि इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया था।अब भारतीय सेना तो चाहिए, लेकिन वो किस कानून के तहत संचालित हो? साथ ही उन्होंने बड़ी जानकारी दी कि भारतीय सेना के पास गोली चलाने की भी अनुमति नहीं है, बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के सेना फायर नहीं कर सकती।


🚩उन्होंने साफ कहा , कि ये लोकतांत्रिक राष्ट्र की सेना है । कानूनी बंधन हैं कुछ, सेना आएगी लेकिन लीगल प्रोटेक्शन तो चाहिए?


🚩उन्होंने कहा कि अगर किसी जवान ने गोली चला दी तो जीवन भर कोर्ट का चक्कर लग जाएगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक ‘शौर्य चक्र’ विजेता कई वर्षों तक अदालत के चक्कर लगाता रहा, ये सब आफ्स्पा के बावजूद हुआ। ऐसा इसीलिए हुआ, क्योंकि सिविल सोसाइटी से कुछ लोगों ने केस कर दिया था। उन्होंने बताया कि कई बार अपराधी उस क्षेत्र में भाग जाते हैं, जहाँ AFSPA लागू नहीं है और वहाँ गोली लगने पर केस हो जाता है।



🚩गौरतलब बात ये कि आफ्स्पा हटाने के फैसलों के पीछे कुछ NGO भी थे, जिनमें से कइयों की विदेशी फंडिंग अब रोकी गई है।


🚩मणिपुर की मौजूदा स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने बताया , कि अपराधियों को पकड़ने के बाद महिलाएँ आकर घेर लेती हैं।ऐसी स्थिति में महिलाओं पर गोली चलाने की बजाए अपराधियों को जाने दिया जाता है। 

उन्होंने कहा कि अब आफ्स्पा तभी आएगा, जब खुद लोग इसे माँगेंगे। उन्होंने बताया कि ‘नागा नेशनल काउंसिल (NNC)’ जैसी संगठनों के साथ डील के बाद मणिपुर शांत था और वहाँ विकास हो रहा था। उन्होंने बताया कि ऐसे कुछ ग्रुप्स को स्पेशल ट्रीटमेंट मिल गई, जिसके बाद कोई भी समूह बनाकर खुद को अलगाववादी बताने लगा।


🚩‘चीन भी कर रहा भारत में अशांति के लिए निवेश, दे रहा हथियार’


🚩उन्होंने बताया कि केवल मणिपुर में ही 55-56 अलगाववादी संगठन हैं, जिन्हें निसंदेह आतंकवादी कह लीजिए। वो सभी हथियारबंद हैं। उन्होंने बताया , कि पड़ोस से वहाँ हथियार आ रहा है, चीन ने इसमें भारी निवेश किया है। क्योंकि सब जानते हैं वो भारत में अशांति चाहता है।


🚩उन्होंने बताया कि जिन जज ने मेइती हिन्दुओं को ST में शामिल करने की सलाह दी, वो नॉन-मणिपुर थे, कोई मेइती नहीं थे। उन्होंने बताया कि खुद पहाड़ी कुकी समाज ने विदेशी घुसपैठियों को डिटेंशन सेंटरों में डालने के लिए कहा था।


🚩मणिपुर में मजहब कहाँ से आ गया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा... कि अगर एक ट्राइब इसाई बैनर के नीचे बात करती है, तो साफ तौर पर कहीं गड़बड़ जरूर है।

अमेरिकी राजदूत द्वारा मदद के ऑफर पर उन्होंने कहा कि ‘चर्च ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ का यहाँ बहुत प्रभाव है, लेकिन उन्हें नहीं लगता ये हो पाएगा क्योंकि ये हमारा आंतरिक मामला है।🚩UCC पर उन्होंने कहा कि शिक्षा और आवागमन के कारण नॉर्थ ईस्ट के लोगों में भारतीयता का भाव आया। उन्होंने कहा , कि उन्हें इसका खेद है , कि हमारे ही लोगों ने इन्हें स्वीकार नहीं किया।


🚩उन्होंने नॉर्थ ईस्ट के लोगों को ‘चिंकी’ कहे जाने वाले ट्रेंड का विरोध किया। उन्होंने कहा कि चर्च ने मणिपुर में बहुत विभाजन कर दिया है। इसाइयों में भी अलग-अलग संप्रदाय हैं।


🚩उन्होंने समझाया कि अंग्रेजों के आने से पहले ये लोग काफी अलग-थलग थे। ऐसे में 150 वर्षों में यहाँ तक आ पाए हैं। उन्होंने इसकी वकालत की कि नागा समाज को मीडिएटर बन कर सामने आना चाहिए और बातचीत करानी चाहिए। उन्होंने मणिपुर के भूगोल की बात करते हुए कहा कि घने जंगल और पहाड़ियों में काम करना मुश्किल होता है।


🚩उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया , कि सुरक्षा बल जब जाते हैं , तो ये लोग घंटी बजा कर सूचना दे देते हैं और सब इकट्ठे हो जाते हैं। 


🚩उन्होंने इसमें ड्रग्स एंगल की भी बात की। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा , कि अफगानिस्तान के बाद नॉर्थ ईस्ट के ‘माल’ की चर्चा होती है। उन्होंने कहा कि जहाँ आतंकवाद होगा, वहाँ ड्रग्स होगा ही। कर्नल हनी बक्शी ने बताया , कि जिन आतंकी संगठनों का जहाँ प्रभाव है वहाँ के व्यापारियों से वो रंगदारी लेते हैं। इस दौरान रिटायर्ड कर्नल ने मणिपुर में हिन्दू बनाम इसाई एंगल को भी नकार दिया।

https://youtu.be/pM3Zi7Idujw


🚩कर्नल हनी बक्शी ने कहा कि म्यांमार से कई समूह हथियारों के साथ मणिपुर में आए हैं। नागा समाज के भीतर भी 150 से अधिक ट्राइब्स हैं। इनके अधिकतर गाँव पहाड़ों के ऊपर हैं, जबकि सामान्यतः पानी के लिए नदी के किनारे घर बनाए जाते हैं । लेकिन पहाड़ पर से उन्हें सब पर नजर रखने में सहूलियत होती है। उन्होंने नॉर्थ ईस्ट में हत्याओं को बंद कराने में चर्च के रोल को स्वीकार किया।


🚩उन्होंने कहा कि आज की तारीख़ में जब हम ग्लोबल विलेज हैं, हर ट्राइब को अलग राज्य देना संभव नहीं है क्योंकि उनके भीतर भी कई समूह हैं।


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