Thursday, June 11, 2020

उत्तर प्रदेश में गोवंश तस्करी करने पर 10 साल की सजा, अभी एक ओर कार्य बाकी है...

11 जून 2020 

🚩 उत्तर प्रदेश में जबसे योगी सरकार आई है तबसे लोग उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश कहने लगे है। योगी जी कोई भी कार्य को जनता सरहाये बिना नही रहती है अभी तो नेताओं में पसंदी में भी नंबर 1 पर योगीजी आ गए है, उनका लक्ष्य है रामराज्य आये जिससे जनता सुखी जीवन जी सके। हिंदुत्व की रक्षा में सबसे आगे रहते है अब खबर आ रही है कि योगी जी ने यूपी में गोकशी पर कानून सख्त किये है इसपर 10 साल तक की जेल, दोबारा दोषी पाए जाने पर सजा भी दोगुनी होगी।

🚩 श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने कहा था कि यदि हम संसार में हिन्दू कहलाकर जीवित रहना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें प्राणपन से गौरक्षा करनी होगी।

🚩 उत्तर प्रदेश में गोकशी या गोवंश की तस्करी के अपराधों में सजा अब और कड़ी होगी। सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में यूपी गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 को मंजूरी दे दी गई। इसके तहत गोवंश की तस्करी पर 10 साल तक की जेल हो सकेगी। इस अधिनियम के तहत दोबारा दोषी पाए जाने पर दोगुनी सजा होगी।

🚩 अभियुक्तों के पोस्टर भी लगेंगे। अध्यादेश राज्यपाल की मंजूरी के बाद लागू हो सकेगा। अध्यादेश के जरिए यूपी गोवध निवारण अधिनियम में बदलाव कर इसे और सख्त बनाया जा रहा है। मौजूदा कानून में गोवंश के वध या इस नीयत से तस्करी पर न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है। अब गोकशी पर न्यूनतम 3 साल की सजा और न्यूनतम 3 लाख जुर्माना तय हो गया है। वहीं, गोवंश को अंगभंग करने पर भी कम से कम 1 साल की सजा और 1 लाख का न्यूनतम जुर्माना होगा।

🚩 अभियुक्त से वसूलेंगे भरण-पोषण का खर्च 

🚩 प्रस्तावित कानून के अनुसार अगर तस्करी के लिए ले जाया जा रहा गोवंश जब्त किया जाता है तो एक साल तक उसके भरण-पोषण के खर्च की वसूली भी अभियुक्त से ही की जाएगी। मौजूदा कानून में गोवंश या उसके मांस को ढोने वाले वाहनों, उनके मालिकों या चालकों पर कारवाई को लेकर तस्वीर साफ नहीं थी। अब जब तक वाहन मालिक साबित नहीं कर देंगे कि उन्हें वाहन में प्रतिबंधित मांस की जानकारी नहीं थी, वे भी दोषी माने जाएंगे। वाहन सीज कर दिया जाएगा। इस अधिनियम के तहत सभी अपराध गैरजमानती होंगे।

🚩 मोहल्ले-चौराहे पर लगेगी फोटो 

🚩 सरकार गोकशी या गोतस्करी के अभियुक्त की सार्वजनिक फोटो भी लगाएगी। अभियुक्त की तस्वीर जिसे मोहल्ले में वह सामान्यता निवास करता हो वहां किसी महत्वपूर्ण स्थान पर लगवा दी जाएगी। ऐसे किसी सार्वजनिक स्थल पर भी लगाई जा सकती है जहां वहां नियामक संस्थाओं और अधिकारियों से खुद को छिपाता फिरता हो। सरकार का कहना है कि कुल जिलों में गोकशी की बढ़ती घटनाओं और जमानत पर छूटे लोगों द्वारा फिर गोकशी करने की घटनाओं को देखते हुए कानून को सख्त किया गया है। इससे गोवंशीय पशुओं के संरक्षण में मदद मिलेगी।

🚩 अपराध/ मौजूदा सजा/ प्रस्तावित सजा 

🚩 गोकशी या गोवंश के लिए तस्करी 7 साल तक जेल, 10 हजार जुर्माना 10 साल तक जेल 5 लाख तक जुर्माना गोवंश को अंगभंग या जानलेवा चोट पर उपरोक्त सजा का आधा तक 7 साल तक जेल 3 लाख रुपये तक जुर्माना 


🚩 योगी सरकार को धन्यवाद हैं जो गौमाता को बचाने के लिए इतने कड़े कानून बनाये जिसके कारण गौहत्या काफी हद तक रुकेगी लेकिन हमने अक्सर देखा है कि कड़े कानून अन्य विषयों पर भी बने है लेकिन उससे 100 प्रतिशत कहि सफलता नही मिलती है अब योगी सरकार और केंद्र सरकार को चाहिए कि वे अब गौमाता को राष्ट्र माता तरीके के घोषित करे और उसकी उपयोगिता लोगों को बताए और उसके द्वारा दूध, दही, घी, गौमूत्र और गोबर की भी उपयोगीता बताई जाए इसमे से पंचगव्य, लकड़ी, कंडे, धूपबत्ती आदि जो बनती है उसका व्यापर को बड़े स्तर पर लाया जाए जैसे ही गौमाता को राष्ट्रीय माता घोषीत करेंगे और उसकी उपयोगिता लोगो को समझ मे आएगी उससे आमदनी मिलने लगेंगे वैसे ही गौहत्या पूर्णरूप से बंद हो सकेगी। 

🚩 राजस्थान में प्रमुख गौशालाओं का गौमूत्र 135 से 140 रूपए प्रति लीटर बिक रहा है, जबकि दूध की कीमत 45 से 52 रूपए प्रति किलो है। गौमूत्र के सेवन में लोगों की दिलचस्पी इतनी बढ़ी है कि राज्य के बड़े शहरों में गौ उत्पादों में दुकानें बड़े शौरूम की तरह खुल गई हैं। इनमें सबसे अधिक मांग गौमूत्र की है। ये भी कहा गया है कि पथमेड़ा गौशाला, जयपुर की दुर्गापुरा गौशाला और नागौर की श्रीकृष्ण गोपाल गौशाला से तो गौमूत्र विदेशों में भी भेजा जा रहा है।

🚩 आपको बता दे कि मध्यप्रदेश में दूध नहीं दे पाने की स्थिति में जिन गायों को किसानों और गौपालकों ने अनुपयोगी समझकर लावारिस भूखा-प्यासा भटकने के लिए छोड दिया था । अब उन्हीं गायों के गोबर और गोमूत्र से नगर निगम की लालटिपारा गौशाला में कैचुआ खाद, नैसर्गिक खाद और धूपबत्ती बनाई जा रही है । वहीं गोमूत्र से कैमिकल रहित गोनाइल और कीटनाशक दवाईयां व मच्छर भगाने की धूपबत्ती तैयार की जा रही है । कीटनाशक दवाईयां खेती और बागवानी के लिए बेहद उपयोगी हैं । इससे मध्यप्रदेश ग्वालियर नगर निगम को भी अभी तक लगभग 3 लाख रुपये का आर्थिक लाभ हो चुका है । 

🚩 इसी तरह केंद्र सरकार को कुछ प्रोजेक्ट बनाना चाहिए जिससे लोग गाय की महत्ता समझेगे ओर गौहत्या बंद होगी। 

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Wednesday, June 10, 2020

राजा सुहेल देव ने चीर दी थी भारत को हिन्दू विहीन करने आये आक्रान्ता “सालार गाजी” की छाती!

10 जून 2020

🚩इस्लामिक आक्रान्ता सालार मसूद को बहराइच (उत्तर प्रदेश) में उसकी एक लाख बीस हजार सेना सहित वहीं दफन कर देने वाले महान हिन्दू योद्धा राजा सुहेलदेव का जन्म श्रावस्ती के राजा त्रिलोकचंद के वंशज पासी मंगलध्वज (मोरध्वज) के घर में माघ कृष्ण 4, विक्रम संवत 1053 (संकट चतुर्थी) को हुआ था। अत्यन्त तेजस्वी होने के कारण इनका नाम सुहेलदेव (चमकदार सितारा) रखा गया। जैसा कि पहले भी कई बार कहा जा चुका है कि चाटुकार इतिहासकारों ने भारत के गौरवशाली हिन्दू इतिहास को शर्मनाक बताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। क्रूर, अत्याचारी और अनाचारी मुगल शासकों के गुणगान करने में इन लोगों को आत्मिक सुख की अनुभूति होती है।

🚩लेकिन यह मामला उससे भी बढ़कर है, एक मुगल आक्रांता, जो कि समूचे भारत को हिन्दू विहीन बनाने का सपना देखता था।

🚩विक्रम संवत 1078 में राजा सुहेल का विवाह हुआ तथा पिता के देहांत के बाद वसंत पंचमी विक्रम संवत 1084 को ये राजा बने। इनके राज्य में आज के बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, बाराबंकी, फैजाबाद तथा श्रावस्ती के अधिकांश भाग आते थे। बहराइच में बालार्क (बाल+अर्क = बाल सूर्य) मंदिर था, जिस पर सूर्य की प्रातःकालीन किरणें पड़ती थी। मंदिर में स्थित तालाब का जल गंधकयुक्त होने के कारण कुष्ठ व चर्म रोग में लाभ करता था, अतः दूर-दूर से लोग उस कुंड में स्नान करने आते थे। महमूद गजनवी ने भारत में अनेक राज्य को लूटा तथा सोमनाथ सहित अनेक मंदिरों का विध्वंस किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका बहनोई सालार साहू अपने पुत्र सालार मसूद, सैयद हुसेन गाजी, सैयद हुसेन खातिम, सैयद हुसेन हातिम, सुल्तानुल सलाहीन महमी, बढ़वानिया, सालार, सैफुद्दीन, मीर इजाउद्दीन उर्फ मीर सैयद दौलतशाह, मियां रज्जब उर्फ हठीले, सैयद इब्राहिम बारह हजारी तथा मलिक फैसल जैसे क्रूर साथियों को लेकर भारत आया। बाराबंकी के सतरिख (सप्तऋषि आश्रम) पर कब्जा कर उसने अपनी छावनी बनायी।

🚩यहां से पिता सेना का एक भाग लेकर काशी की ओर चला, पर हिन्दू वीरों ने उसे प्रारम्भ में ही मार गिराया। पुत्र मसूद अनेक क्षेत्रों को रौंदते हुए बहराइच पहुंचा। उसका इरादा बालार्क मंदिर को तोड़ना था, पर राजा सुहेलदेव भी पहले से तैयार थे। उन्होंने निकट के अनेक राजाओं के साथ उससे लोहा लिया। कुटिला नदी के तट पर हुए राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हुए इस धर्मयुद्ध में उनका साथ देने वाले राजाओं में प्रमुख थे रायब, रायसायब, अर्जुन, भग्गन, गंग, मकरन, शंकर, वीरबल, अजयपाल, श्रीपाल, हरकरन, हरपाल, हर, नरहर, भाखमर, रजुन्धारी, नरायन, दल्ला, नरसिंह, कल्यान आदि। वि. संवत 1091 के ज्येष्ठ मास के पहले गुरुवार के बाद पड़ने वाले रविवार आज ही के दिन (10.6.1034 ई.) को राजा सुहेलदेव ने उस आततायी का सिर धड़ से अलग कर दिया।

🚩भारतवासीयों का टीवी, फिल्में, सीरियल, अखबार, पढ़ाई, झूठे इतिहास आदि द्वारा ऐसा ब्रेनवॉश कर दिया है कि जिन मुग़लो ने देशवासियों को प्रताड़ित किया, देश की संपत्ति लूटकर ले गये उनका इतिहास पढ़ाया जाता है। लेकिन जिन हिंदू योद्धाओं ने इन मुग़लों को भगाने में और मुगलों की नींव समाप्त करने में अपने प्राणों की बलि दे दी तथा आज जिनके कारण हम इस देश में स्वतंत्र घूम रहे हैं ऐसे योद्धाओं को भुला दिया।

🚩सरकार इन योद्धाओं का इतिहास शामिल करें तो अच्छा रहेगा जिससे भारतीय लोगो को सच्चे इतिहास का पता चलेगा।


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Tuesday, June 9, 2020

बंदा बैरागी से मुगल सल्तन बुरी तरह घबरा गई थी, आखिर अपने लोगो ने ही धोखा दिया

09 जून 2020

भारतवासी आज जो चैन कि श्वास ले रहे हैं और स्वतंत्रता में जी रहे हैं वे हमारे देश के वीर सपूतों, महापुरुषों के बलिदान के कारण ही संभव हुआ है उनमें से एक महापुरुष थे बन्दा बैरागी, जिहोंने अनेक अत्याचार सहकर भी संस्कृति को जीवित रखा पर हम उनके बलिदान दिवस ही भूल गये हैं ।

बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13 को हुआ था। वह राजपूतों के (मिन्हास) भारद्वाज गोत्र से सम्बन्धित थे और उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था। इनके पिता का नाम रामदेव मिन्हास था।

लक्ष्मणदास युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।

इसी दौरान गुरु गोविन्द सिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे । उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त इस्लामिक आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा। बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब कि ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।

बन्दासिंह को पंजाब पहुँचने में लगभग चार माह लग गये। बन्दा सिंह महाराष्ट्र से राजस्थान होते हुए नारनौल,हिसार और पानीपत पहुंचे,और पत्र भेजकर पंजाब के सभी सिक्खों से सहयोग माँगा। सभी शिक्खो में यह प्रचार हो गया कि गुरु जी ने बन्दा को उनका जत्थेदार यानी सेनानायक बनाकर भेजा है। बंदा के नेतृत्व में वीर राजपूतो ने पंजाब के किसानो विशेषकर जाटों को अस्त्र शस्त्र चलाना सिखाया,उससे पहले जाट खेती बाड़ी किया करते थे और मुस्लिम जमींदार इनका खूब शोषण करते थे देखते ही देखते सेना गठित हो गयी।

इसके बाद बंदा सिंह का मुगल सत्ता और पंजाब हरियाणा के मुस्लिम जमींदारों पर जोरदार हमला शुरू हो गया। सबसे पहले कैथल के पास मुगल कोषागार लूटकर सेना में बाँट दिया गया,उसके बाद समाना, कुंजुपुरा,सढ़ौरा के मुस्लिम जमींदारों को धूल में मिला दिया।

बन्दा ने पहला फरमान यह जारी किये कि जागीरदारी व्यवस्था का खात्मा करके सारी भूमि का मालिक खेतिहर किसानों को बना दिया जाए।

लगातार बंदा सिंह कि विजय यात्रा से मुगल सत्ता कांप उठी और लगने लगा कि भारत से मुस्लिम शासन को बंदा सिंह उखाड़ फेकेंगे। अब मुगलों ने सिखों के बीच ही फूट डालने कि नीति पर काम किया जैसे गद्दारी अपने लोग ही करते है उस अनुसार मुग़लो ने कार्य किया। उनके विरुद्ध अफवाह उड़ाई गई कि बंदा सिंह गुरु बनना चाहता है और वो सिख पंथ कि शिक्षाओं का पालन नहीं करता। खुद गुरु गोविन्द सिंह जी कि दूसरी पत्नी माता सुंदरी जो कि मुगलो के संरक्षण/नजरबन्दी में दिल्ली में ही रह रही थी, से भी बंदा सिंह के विरुद्ध शिकायते कि गई । माता सुंदरी ने बन्दा सिंह से रक्तपात बन्द करने को कहा जिसे बन्दा सिंह ने ठुकरा दिया।

जिसका परिणाम यह हुआ कि ज्यादातर सिख सेना ने उनका साथ छोड़ दिया जिससे उनकी ताकत कमजोर हो गयी तब बंदा सिंह ने मुगलों का सामना करने के लिए छोटी जातियों और ब्राह्मणों को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया।

1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फर्रुखसियर की शाही फौज ने अब्दुल समद खाँ के नेतृत्व में उसे गुरुदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे रखा। पर मुगल सेना अभी भी बन्दा सिंह से डरी हुई थी।

अब माता सुंदरी के प्रभाव में बाबा विनोद सिंह ने बन्दा सिंह का विरोध किया और अपने सैंकड़ो समर्थको के साथ किला छोड़कर चले गए, मुगलो से समझोते और षड्यंत्र के कारण विनोद सिंह और उसके 500 समर्थको को निकल जाने का सुरक्षित रास्ता दिया गया। अब किले में विनोद सिंह के पुत्र बाबा कहन सिंह किसी रणनीति से रुक गए इससे बन्दा सिंह कि सिक्ख सेना कि शक्ति अत्यधिक कम हो गयी।

खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उसने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। कुछ साक्ष्य दावा करते हैं कि गुरु गोविन्द सिंह जी कि माता गूजरी और दो साहबजादो को धोखे से पकड़वाने वाले गंगू कश्मीरी ब्राह्मण रसोइये के पुत्र राज कौल ने बन्दा सिंह को धोखे से किले से बाहर आने को राजी किया।

मुगलों ने गुरदास नंगल के किले में रहने वाले 40 हजार से अधिक बेगुनाह मर्द, औरतों और बच्चों की निर्मम हत्या कर दी।

मुगल सम्राट के आदेश पर पंजाब के गर्वनर अब्दुल समन्द खां ने अपने पुत्र जाकरिया खां और 21 हजार सशस्त्र सैनिकों कि निगरानी में बाबा बन्दा बहादुर को दिल्ली भेजा। बन्दा को एक पिंजरे में बंद किया गया था और उनके गले और हाथ-पांव कि जंजीरों को इस पिंजरे के चारो ओर नंगी तलवारें लिए मुगल सेनापतियों ने थाम रखा था। इस जुलुस में 101 बैलगाड़ियों पर सात हजार सिखों के कटे हुए सिर रखे हुए थे जबकि 11 सौ सिख बन्दा के सैनिक कैदियों के रुप में इस जुलूस में शामिल थे।

युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले कि नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।

मुगल इतिहासकार मिर्जा मोहम्मद हर्सी ने अपनी पुस्तक इबरतनामा में लिखा है कि हर शुक्रवार को नमाज के बाद 101 कैदियों को जत्थों के रुप में दिल्ली कि कोतवाली के बाहर कत्लगाह के मैदान में लाया जाता था। काजी उन्हें इस्लाम कबूल करने या हत्या का फतवा सुनाते। इसके बाद उन्हें जल्लाद तलवारों से निर्ममतापूर्वक कत्ल कर देते। यह सिलसिला डेढ़ महीने तक चलता रहा। अपने सहयोगियों कि हत्याओं को देखने के लिए बन्दा को एक पिंजरे में बंद करके कत्लगाह तक लाया जाता ताकि वह अपनी आंखों से इस दर्दनाक दृश्य को देख सकें।

बादशाह के आदेश पर तीन महीने तक बंदा और उसके 27 सेनापतियों को लालकिला में कैद रखा गया। इस्लाम कबूल करवाने के लिए कई हथकंडे का इस्तेमाल किया गया। जब सभी प्रयास विफल रहे तो जून माह में बन्दा कि आंखों के सामने उसके एक-एक सेनापति कि हत्या की जाने लगी। जब यह प्रयास भी विफल रहा तो बन्दा बहादुर को पिंजरे में बंद करके महरौली ले जाया गया। काजी ने इस्लाम कबूल करने का फतवा जारी किया जिसे बन्दा ने ठुकरा दिया।

बन्दा के मनोबल को तोड़ने के लिए उनके चार वर्षीय अबोध पुत्र अजय सिंह को उसके पास लाया गया और काजी ने बन्दा को निर्देश दिया कि वह अपने पुत्र को अपने हाथों से हत्या करे। जब बन्दा इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो जल्लादों ने इस अबोध बालक का एक-एक अंग निर्ममतापूर्वक बन्दा कि आंखों के सामने काट डाला। इस मासूम के धड़कते हुए दिल को सीना चीरकर बाहर निकाला गया और बन्दा के मुंह में जबरन ठूंस दिया गया। वीर बन्दा तब भी निर्विकार और शांत बने रहे।

अगले दिन जल्लाद ने उनकी दोनों आंखों को तलवार से बाहर निकाल दिया। जब बन्दा टस से मस न हुआ तो उनका एक-एक अंग हर रोज काटा जाने लगा। अंत में उनका सिर काट कर उनकी हत्या कर दी गई। बन्दा न तो गिड़गिड़ाये और न उन्होंने चीख पुकार मचाई। मुगलों कि हर प्रताड़ना और जुल्म का उसने शांति से सामना किया और धर्म कि रक्षा के लिए बलिदान हो गया।

देश और धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने और इतनी यातनाएं सहन करने के बाद प्राणों की आहुति दे दी लेकिन न धर्म बदला और ना ही अन्याय के सामने कभी झुके। इन वीर महापुरुषों को आज हिंदुस्तानी भूल रहे हैं और देश को तोड़ने में सहायक हीरो-हीरोइन, क्रिकेटरों का जन्म दिन याद होता है, लेकिन आज हम जिनकी वजह से स्वतंत्र है उनका बलिदान दिवस याद नही कितने दुर्भाग्य की बात है ।

इतिहास से हिन्दू आज सबक नहीं लेगा, संघटित होकर कार्य नहीं करेगा और हिंदू राष्ट्र की स्थापना नहीं होगी तो फिर से विदेशी ताकतें हावी होंगी और हमें प्रताड़ित करेंगी ।

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Monday, June 8, 2020

हलाल प्रमाणन प्रोडक्ट लेते है तो सावधान, पहले सच्चाई जान लीजिए

08 मई 2020 

🚩 हाल ही में हलाल प्रमाणन के मामले पर बहुत कुछ कहा गया है। एक कथित विज्ञापन को लेकर हुए बवाल के बाद जिसमें ये क्लेम था कि जैन बेकरी में किसी भी मुस्लिम को काम पर नहीं रखा गया है। जिसके बाद चेन्नई में जैन बेकरी के मालिक की गिरफ्तारी भी हुई। इस गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वो विज्ञापन ही फोटोशॉप करके दुर्भावना के कारण वायरल किया गया था। गूगल पर सर्च करने पर दुकान बंद करने की भी नौबत आ गई। इसी की प्रतिक्रिया परिणाम स्वरूप सोशल मीडिया पर हलाल उत्पादों का बहिष्कार करने की माँग बढ़ गई है। 

 इस्लामिक मीडिया पोर्टल मिल्ली गज़ेट ने दावा किया कि इस तरह की माँगें ‘इस्लामोफोबिया’ और ‘कट्टरपन’ को दर्शाती हैं, हालाँकि इस की निंदा का कोई असर इस बहिष्कार की माँग पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। 

🚩 ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। क्या हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कट्टरता है? क्या इस तरह की माँगें इस्लामोफोबिया हैं? क्या चेन्नई पुलिस द्वारा जैन बेकरी के मालिक को गिरफ्तार करना ठीक था? क्या इस तरह कथित विज्ञापन निकालना अवैध या असंवैधानिक है? क्या हलाल प्रमाणीकरण का बहिष्कार करना अनैतिक है? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर बात होनी चाहिए। 

🚩 जैसा कि हम पहले भी कई बार बता चुके हैं कि हलाल प्रमाणन एक तरह का भेदभाव है। यह मांस उद्योग पर मुसलमानों के लिए एकाधिकार स्थापित करता है। जब मुसलमान इस बात पर जोर देते हैं कि हलाल मीट ही खाना चाहिए, इसके साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करते हैं कि जहाँ से आप मांस खरीद रहे हैं। उस प्रतिष्ठान पर केवल मुस्लिम कर्मचारी ही कार्य करते हैं, क्यों कि उनका मानना है कि हलाल केवल मुसलमान ही इसे तैयार कर सकता है। इस तरह हलाल मीट सिर्फ भोजन सामग्री ही नहीं रह जाता बल्कि यह एक ही समुदाय के लोगों को रोजगार सुनिश्चित करने का तरीका भी है। 

🚩 जो जानवर इस्लामी नियमों के अनुसार कत्ल किए जाते हैं सिर्फ उन्ही को हलाल माना जा सकता है, क्योंकि उसे कत्ल करने से पहले कुरान की आयत पढ़ी जाती है और हलाल का मतलब होता है "गला रेतकर तड़पा तड़पा कर मारना" वहीं गैर-मुस्लिम द्वारा किया गया कोई भी कत्ल इसकी परिभाषा के अनुसार हलाल नहीं माना जाता। इस तरह हलाल मीट को ही खाने योग्य बताना दुर्भावनापूर्ण और गुमराह करने वाली मानसिकता को दर्शाता है। हलाल प्रमाणन मीट उद्योग में मुसलमानों के लिए एकाधिकार भी स्थापित करता है। 

🚩 हालाँकि, शाकाहारी उत्पादों के प्रमाणन प्रक्रिया हलाल प्रमाणन से थोड़ी सी भिन्न है, जबकि मूल प्रक्रिया समान है। प्रमाणन के लिए एक प्रतिष्ठान को हलाल प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए एक इस्लामी प्रमाणन प्राधिकरण को एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है। इस प्रकार यदि कोई व्यावसायिक संस्थान मुस्लिमों के साथ व्यापार करना चाहता है, तो उन्हें पहले मुस्लिम समुदाय के ‘ठेकेदारों’ को ‘हफ्ता’ देना होगा। 

🚩 वास्तव में इस तरह के प्रमाण पत्र प्राप्त करने की लागत को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों तरह के ग्राहकों से वसूल किया जाता है। इस प्रकार गैर-मुस्लिम ग्राहक मुस्लिम समुदाय के ‘ठेकेदारों’ की आजीविका का माध्यम हैं। 

🚩 इन स्थितियों को देखते हुए यह समझना आसान है कि गैर-मुस्लिम इस तरह की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं होंगे। गैर मुस्लिम मुसलमानों की मजहबी मान्यताओं के कारण भुगतान के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि हलाल प्रमाणीकरण साफ तौर पर एक आर्थिक गतिविधि है, इसलिए विरोध भी आर्थिक क्षेत्र में होगा। इस प्रकार, हमारे तीन सवालों का जवाब दिया जा चुका है। 

🚩 अब आगे बात करे तो, अगले सवाल का जवाब है कि हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कोई गलत बात नहीं है और यह निश्चित रूप से ‘इस्लामोफोबिया’ नहीं है और ये अनैतिक भी नहीं है। इसलिए हर एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सभी प्रकार के भेदभावों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए। 

🚩 अब हम अन्य दो प्रश्नों की ओर आते हैं जो मुस्लिम कर्मचारियों को न रखने वाले कथित विज्ञापन की संवैधानिकता व वैधता की बात करते हैं और चेन्नई पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी पर सवाल खड़ा करते हैं। हलाल मीट पर जोर देना आर्थिक बहिष्कार का ही एक रूप है। मुस्लिम उपभोक्ता मीट उद्योग में केवल मुसलमानों की भर्ती के लिए मुसलमानों को ही प्रोत्साहित करते हैं। 

🚩 इससे यह प्रभाव पड़ेगा कि मीट इंडस्ट्री हलाल मीट का उत्पादन बढ़ाने पर जोर देगी, क्योंकि ज्यादातर उपभोक्ताओं को हलाल मीट खाने में कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन मुसलमान कभी गैर-हलाल मीट नहीं खाएगा। इस प्रकार हलाल मीट कारोबार का दायरा ज्यादा बढ़ जाता है। इसी प्रकार की व्यवस्था को नसीम निकोलस तालेब के शब्दों में ‘अल्पसंख्यकों की तानाशाही’ कहा गया है। 

🚩 इस प्रकार, मुसलमानों की हलाल मीट की माँग के कारण मीट इंडस्ट्री का झुकाव सिर्फ हलाल मीट के उत्पादन की तरफ है। इस तरह मुस्लिम समुदाय को मांसाहार में गैर-मुस्लिमों के साथ भारी भेदभाव करके रोजगार में एकाधिकार देता है। जितनी कि यह व्यवस्था खतरनाक है उनता ही देश का संविधान इस पर मौन है। 

🚩 इस तरह के मामलों में आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, जबकि तथ्य यह है कि मीट उत्पादों पर हलाल प्रमाणीकरण का नियम यह घोषणा करता है कि मीट उत्पाद बनाने में किसी गैर-मुस्लिम को काम पर नहीं रखा गया था। इसलिए यदि व्यावसायिक प्रतिष्ठान बिना किसी कानूनी भय और संविधान की सहमति से गैर-मुस्लिमों को रोजगार से वंचित करने की खुली घोषणा कर सकते हैं, तो किसी गैर मुस्लिम प्रतिष्ठान के द्वारा इसी तरह की घोषणा करने पर कार्रवाई क्यों की जानी चाहिए? 

🚩 अगर हलाल प्रमाणीकरण कानूनी है, तो अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी यह अधिकार है कि वह भी अपने प्रतिष्ठान में धर्म के आधार पर मुसलमानों को रोजगार देने से इनकार कर सकता है। यदि मुस्लिम समुदाय मीट उद्योग में मुसलमानों के रोजगार को प्रोत्साहित कर सकता है, जो हलाल मीट अनिवार्य रूप से जोर देता है, तो गैर-मुस्लिमों को भी अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में विशेष धर्म के लोगों को नौकरी पर रखने के लिए प्रोत्साहित करने का अधिकार है। 

🚩 यदि हलाल कानूनी और संवैधानिक है तो, उदाहरण के तौर पर अगर कोई हिंदू ज़ोमैटो या अमेज़ॅन या किसी ई-कॉमर्स सेवा पर मुस्लिम डिलीवरी वाले व्यक्ति से डिलीवरी नहीं लेता है, तो ऐसा करना एक ग्राहक के रूप में उनका अधिकार है। 

🚩 गैर-मुस्लिम अन्य मोर्चों पर भी इस तरह विचार कर सकता है, यदि वे अपने स्वयं के धर्म वाले विक्रेताओं से किराने का सामान और सब्जी खरीदना चाहते हैं, तो ऐसा करना उनका अधिकार है। यदि हलाल कानूनी और संवैधानिक है, तो ऐसा व्यवहार कानूनी रूप से या नैतिक रूप से गलत नहीं है। जब तक हलाल की भेदभावपूर्ण प्रथा के खिलाफ विरोध केवल आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित है, तब तक यह पूरी तरह से उचित है। 

🚩 भारतीय संविधान में समानता को परिभाषित किया गया है और समानता के सिद्धांत निर्धारित करते हैं कि प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समान होना चाहिए। हालाँकि, पुलिस कभी-कभी यह भूल जाती है कि जैन बेकर्स के मालिक की गिरफ्तारी और झारखंड में हिंदू विक्रेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कहीं न कहीं एकतरफा प्रतिक्रिया है। 

🚩 यह उल्लेख करना भी उचित है कि इन दोनों अवसरों पर कुछ मुसलमानों द्वारा सोशल मीडिया पर आपत्ति दर्ज कराने पर पुलिस ने कार्रवाई की है। मुस्लिम समुदाय को यह अहसास होना चाहिए कि यदि वे आर्थिक मोर्चे पर गैर-मुस्लिमों के खिलाफ सक्रिय रूप से भेदभाव करते हैं, तो दूसरा पक्ष भी समान रूप से जवाबी कार्रवाई का अधिकार रखता है। 

🚩 यह इस्लामोफोबिया नहीं है, यह प्रतिक्रिया का स्वाभाविक नियम है। मुस्लिम समुदाय को यह भी अहसास होना चाहिए कि गैर-मुस्लिम उनके धार्मिक विश्वासों को सब्सिडी देने के लिए बाध्य नहीं हैं और उन्हें उम्मीद करना भी बंद कर देना चाहिए। 

🚩 दुर्भाग्यवश मुस्लिम समुदाय ने पीड़ितों की तरह रोने की आदत बना ली है, जबकि वो हर तरफ हावी हैं। भारतीय कानून एजेंसियों को इस तरह की आपत्तियों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, क्योंकि इस तरह की कार्रवाई निश्चित रूप से समुदायों के बीच भेदभाव व कड़वाहट पैदा करती है।

🚩 मुस्लिम समुदाय यदि तर्क में यकीन रखता है तो उम्मीद है कि मुस्लिम समुदाय को अपने भेदभाव पूर्ण व्यवहार एहसास होगा और वे भेदभावपूर्ण प्रथाओं को या तो छोड़ देंगे या दूसरे को भी वैसा ही अधिकार देने पर सहमत होंगे। अंत में इतना ही कि इन सभी बातों पर विचार किया जाना चाहिए, जिसमें कि पूरे देश की भलाई है।

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