Monday, October 19, 2020

भारत में 4 लाख हिन्दू मंदिरों पर राजकीय कब्जा, चर्च व मस्जिद पर नहीं (भाग 1)

19 अक्टूबर 2020


डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता थे। यह उन्हीं का कथन है कि हमारा संविधान सेक्यूलर नहीं क्योंकि “यह विभिन्न समुदायों के बीच भेद-भाव करता है।” यह तब की बात है, जब संविधान की प्रस्तावना में छेड़-छाड़ नहीं हुई थी। बाद में तो संविधान में ‘सेक्यूलर’ शब्द जोड़ कर और भी घात किया गया, जिसे संविधान निर्माताओं ने विचार करके खारिज किया था। वे इस अवधारणा से बखूबी परिचित थे, इसलिए उसे यहाँ अनुचित समझा। मगर कैसी विडंबना कि 1976 ई. में एक नेहरूवादी-कम्युनिस्ट चौकड़ी ने इस शब्द को संविधान में प्रवेश करा दिया। फिर जो दूसरे जातिवादी-राष्ट्रवादी आए, उन्होंने भी 1978 ई. में इस की पुष्टि कर दी।




मगर दूसरी विडंबना उस से कम नहीं। जब संविधान को ‘सेक्यूलर’ घोषित कर दिया गया, उस के बाद से नीति-निर्माण को निरंतर हिन्दू-विरोधी रुझान दे दिया गया। अर्थात् सेक्यूलरिज्म अपने यूरोपीय अर्थ सभी धर्मों से दूरी या समानता नहीं, बल्कि एक हिन्दू-विरोधी प्रवृत्ति, नीति सी बन गई। चूँकि सभी दलों ने इसे समर्थन दे दिया, इसलिए वह बदस्तूर चल रहा है। यद्यपि कई नेता, बुद्धिजीवी, पत्रकार और न्यायविद् इस अन्याय को महसूस करते हैं। मगर कोई कुछ नहीं करते। यह एक तीसरी विडंबना है। क्योंकि यह सब मुख्यतः हिन्दू परिवारों में जन्मे कर्णधारों, विद्वानों और न्यायाधीशों द्वारा होता हैं।

इन सारी गड़बड़ियों में जो बातें सब से आश्चर्यजनक लगती है, उन में हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जा सब से ऊपर है। विशेषकर हिन्दूवादी कहलाने वाले संघ-परिवार के शासनों में भी यह जारी रहना! वह भी तब, जब सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ-साफ कहा है कि ‘‘मंदिरों का संचालन और व्यवस्था भक्तों का काम है, सरकार का नहीं।’’ (8 अप्रैल 2019)। सुप्रीम कोर्ट हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जे को कई बार अनुचित कह चुकी है। उस ने चिदंबरम के प्रसिद्ध नटराज मंदिर को सरकारी कब्जे से मुक्त करने का आदेश 2014 ई. में दिया था। इस के अलावा भी दो वैसे फैसले आ चुके हैं। फिर भी, जहाँ-तहाँ विभिन्न राज्य सरकारें हिन्दू मंदिरों पर कब्जा बनाए हुए हैं।

इस के विपरीत, किसी चर्च अथवा मस्जिद को सरकार कभी नहीं छूती। क्या इस से बड़ा धार्मिक अन्याय और संविधान में मौजूद ‘नागरिक समानता’ का मजाक संभव है? जो दलीलें हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जा रखने के पक्ष में दी जाती हैं, वह सब मस्जिदों, चर्चों पर भी लागू हैं। किन्तु केवल हिन्दू मंदिरों पर कब्जा है, शेष सभी समुदाय अपने-अपने धर्म-स्थान स्वयं चलाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं!

आश्चर्य का दूसरा पहलू यह है कि स्वयं भाजपा समर्थक बौद्धिक मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं!  स्वयं डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे महारथी एक भाजपा शासित राज्य में हाल में मंदिरों पर नया सरकारी कब्जा करने के विरुद्ध लड़ रहे हैं। मगर सत्ताधीशों द्वारा कोई सुनवाई नहीं। जब कि हिन्दू मंदिरों को मुक्त करने में न कोई कानून बनाना है, न कोई बजट प्रावधान करना है, न कोई विरोध-आंदोलन झेलने का डर है।

गत वर्ष पुरी के जगन्नाथ मंदिर मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बोबड़े ने कहा, “मैं नहीं समझ पाता कि सरकारी अफसरों को क्यों मंदिर का संचालन करना चाहिए?” उन्होंने तमिलनाडु का उदाहरण भी दिया कि सरकारी नियंत्रण के दौरान अनमोल देव-मूर्तियों की चोरी की अनेक घटनाएं भी होती रही हैं। कारण यही है कि भक्तों के पास देवमूर्तियों की रक्षा का अधिकार ही नहीं है! जिन्होंने वह अधिकार ले लिया है, वे उसी तरह बेपरवाह काम करते हैं जैसे सरकारी विभाग। यही नहीं, वे धार्मिक गतिविधियों, रीतियों में भी हस्तक्षेप करते हैं। कई बार अनजाने, तो कई बार जान-बूझ कर भी। सरकारी अफसरो को तो मात्र नागरिक शासन चलाने की ट्रेनिंग मिली है। इसलिए कोई अफसर अपने वैचारिक पूर्वग्रह, अज्ञान या मतवादी कारणों से हिन्दू रीतियों के प्रति उदासीनया या दुराग्रह भी दिखा सकता है।

अभी देश भर में 4 लाख से अधिक मंदिरों पर सरकारी कब्जा है। एक भी चर्च या मस्जिद पर नहीं। अकेले आंध्र प्रदेश में 34 हजार मंदिर सरकारी कब्जे में हैं। कम से कम 15 राज्य सरकारें उन लाखों मंदिरों पर नियंत्रण रखती हैं। मंदिरों के प्रशासक नियुक्त करती है। वे जैसे ठीक समझें व्यवस्था चलाते हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार अलग। इस बीच, जैसा सरकारी विभागों में प्रायः होता है, मंदिरों के कोष और संपत्ति के मनमाने उपयोग, दुरूपयोग के समाचार आते रहते हैं। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में सत्ताधारी बहुत पहले से मंदिरों की आय का उपयोग ‘अल्पसंख्यक’ समुदायों को विविध सहायता देने में करते रहे हैं। यह निस्संदेह हिन्दू-विरोधी कार्य भी है। सर्वविदित है कि कुछ बाहरी धर्म हिन्दू धर्म पर प्रहार करते रहे हैं, छल-बल से हिन्दुओं का धर्मांतरण कराते रहे हैं, अपने दबदबे के इलाकों में उन्हें मारते-भगाते रहे हैं। उन्हीं समुदायों को हिन्दू मंदिरों की आय से सहायता देना सीधे-सीधे हिन्दू धर्म को चोट पहुचाने के लिए ही सहायता देना है!

इस बीच, राजकीय कब्जे वाले हिन्दू मंदिरों के पुजारी मूक दर्शक बना दिए गए हैं। उन्हें अपने ही मंदिरों की देख-रख से वंचित या बाधित कर दिय़ा गया। वे मंदिरों के पारंपरिक शैक्षिक, कला, संस्कृति या सेवा संबंधी कार्य नहीं कर सकते जो अंग्रेजों के शासन से पहले तक होते रहे थे। जैसे, पाठशालाएं, वेदशालाएं, गौशालाएं, चिकित्सालय अथवा शास्त्रीय नृत्य आयोजन, आदि।

इस प्रकार, हिन्दू मंदिर के पुजारियों की तुलना में किसी मस्जिद के ईमाम या चर्च के बिशप की सामाजिक स्थिति और मजबूत होती है। वे अपने समुदाय को समर्थ, सबल बनाने के लिए मस्जिद और चर्च का बाकायदा इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र रहते हैं। यह भी तुलनात्मक रूप से हिन्दुओं की एक गंभीर हानि है, जिसे हिसाब में लेना चाहिए। विशेषकर भारत में यह हानि अब अधिक खतरनाक है।

अभी कुछ सत्ताधारी कोरोना-संकट में धन की कमी को मंदिरों में मौजूद सोना से पूरा करने की योजना बना रहे हैं या बना चुके हैं। हाल में वरिष्ठ कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस की खुली माँग की। कई बार मंदिरों में जमा सोने को सरकार दबाव देकर जबरन रूपयों में बदलवाती है, ताकि उस पैसे का उपयोग कर सके। इस बीच, सोने को रूपये में बदल लेने से आगे जो घाटा होगा वह अलग।

यह सब हिन्दू धर्म-समाज के विरुद्ध अनुचित, पक्षपाती जबरदस्ती है। जो इसीलिए चल रही है क्योंकि मंदिरों पर सरकारी कब्जा है। वे किसी मस्जिद या चर्च की संपत्ति से राजकीय कोष की जरूरत पूरी करने की नहीं सोचते। मंदिरों में भक्तों द्वारा चढ़ाया गया धन सरकार द्वारा लेना संविधान के अनुच्छेद 25-26 का भी उल्लंघन है। पर कौन क्या करे, जब बाड़ ही खेत को खाने लगे!

फिर, सरकारी कब्जे के कारण मंदिरों से 13-18 प्रतिशत अनिवार्य सर्विस-टैक्स वसूला जाता है। यह भी मस्जिदों या चर्चों से नहीं वसूला जाता। कई मंदिरों में ‘ऑडिट फीस’, ‘प्रशासन चलाने’ की फीस, इन्कम टैक्स, और दूसरे तरह के टैक्स भी लगाए जाते हैं! जबकि उन्हीं मंदिरों में वेद-पाठ करने वालों, अर्चकों, आदि को जो पारंपरिक दक्षिणा आदि मिलती थी, वह नहीं मिलती या नगण्य़ मिलती है। किसी-किसी मंदिर की आय का लगभग 65-70 प्रतिशत तक विविध मदो में सरकार हथिया लेती है। जैसे, पलानी (तमिलनाडु) के दंडयुतपाणि स्वामी मंदिर में।  (जारी...) - डॉ. शंकर शरण

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Sunday, October 18, 2020

इस्लाम मज़हब के 29 देश जहां महिलाएं दूसरे धर्म में शादियां नहीं कर सकती

18 अक्टूबर 2020


भारत में तनिष्क का विज्ञापन आने के बाद उसका काफी विरोध हुआ और वो हटा भी दिया लेकिन भारत में हमेशा यही चलता आया है, लव जिहाद को बढ़ाने के लिए सिनेमा, सीरियलो, विज्ञापनों में हमेशा हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़कों का प्यार दिखाया जाता है जिसके कारण हिंदू युवतियां लव जिहाद का जल्दी से शिकार हो जाएं और उसमें फंस कर अपना जीवन नारकीय बना लें, जब ऐसे सिनेमा, विज्ञापनों का विरोध किया जाता है तब सेक्युलर बोलते हैं कि प्यार को धर्म से नही जोड़ना चाहिए, प्यार किसी से भी किया जाता है आदि आदि अनेक उदाहरण देते हैं और तथाकथित बुद्धिजीवी बोलते हैं जब महिला हिंदू हो और लड़का मुस्लिम हो तो सब अच्छा होता है लेकिन महिला मुस्लिम हो और लड़का हिंदू हो तो उसकी हत्या कर दी जाती है फिर भी ये लोग चुप रहते हैं ओर तो ओर जब 29 मुस्लिम देशों में एक भी मुस्लिम महिला दूसरे किसी भी धर्म के साथ शादी नहीं कर सकती तब ये लोग मौन धारण करते हैं इसमें महिलाओं की स्वतंत्रता पर एक शब्द भी नही निकालते हैं।




अफगानिस्तान में मुस्लिम महिला किसी दूसरे मजहब से शादी नहीं कर सकती। इसी तरह से अल्जीरिया का भी कानून है। वैसे तो इस देश में लॉ ऑफ पर्सनल स्टेटस 1984 लागू है जो शादी के बारे में अलग से कोई बात नहीं कहता। हालांकि इसकी धारा 222 में इस्लामिक शरिया को मानने की बात है। बहरीन में भी यही नियम है।

अब बात करते हैं पड़ोसी देश बांग्लादेश की। यहां हनाफी मान्यता के मुताबिक मुस्लिम पुरुष, अपने मजहब की महिला के अलावा क्रिश्चियन या यहूदी महिलाओं से शादी कर सकता है। लेकिन मूर्ति पूजा करने वालों यानी हिंदुओं से शादी मना है। ये शादी अवैध होती है। दूसरी ओर महिलाएं केवल और केवल मुस्लिम युवक से ही शादी कर सकती हैं।

ब्रुनेई में वैसे तो गैर मजहबी शादी पर अलग से बात नहीं है। खासकर Islamic Family Law Act (16) ऐसी कोई बात नहीं करता, जिससे से अनुमान हो सके कि वहां दूसरे मजहब में शादी नहीं हो सकती। वहीं फैमली लॉ एक्ट की धारा 47 में साफ है कि अगर शादी में कोई भी एक पार्टी धर्म छोड़ देती है या मुस्लिम से अलग धार्मिक मान्यता ले लेती है तो भी उसकी शादी तब तक मान्य नहीं होगी, जब तक खुद कोर्ट न कह दे।

ब्रुनेई में शफी मान्यता के मानने वाले हैं। इसके तहत  मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम पुरुष के अलावा किसी दूसरे धर्म में शादी नहीं कर सकती हैं।

स्टेट डिपार्टमेंट 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक ब्रुनेई में मुस्लिम और नॉन-मुस्लिम के बीच शादी की इजाजत नहीं है। वहीं अगर कोई नॉन-मुस्लिम किसी मुसलमान से शादी करना चाहे तो इसे इस्लाम स्वीकारना होता है। अधिकारी इस नियम को किसी शादी को मान्यता न देकर पालन करवाते हैं। इस नियम की अलग से कोई कानूनी व्याख्या नहीं है।

इस्लामिक कानून मानने वाले ऐसे 29 मुल्क हैं, जो दो मजहबों के बीच शादी को मान्यता नहीं देते हैं। इनके साथ-साथ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी भी हैं, जिसमें मुस्लिमों को दूसरे मजहबों में शादी की मनाही है, खासकर अगर वे मूर्ति पूजा करने वाले हों। ईरान और इराक में ये नियम काफी सख्त हैं और अगर कपल में से एक की धार्मिक मान्यता मुस्लिम न हो, तो उन्हें अलग कर दिया जाता है।

सैर-सपाटे के लिए ख्यात देश मलेशिया में भी नियम काफी सख्त हैं। किसी भी मुस्लिम महिला अन्य धर्म के पुरूष के साथ शादी नही कर सकती।

भारत देश हिंदू बाहुल्य है हिंदू सहिष्णु होते है उसका फायदा वामपंथी, तथाकथित बुद्धिजीवी, सेक्युलर, बॉलीवुड और मीडिया वाले जमकर फायदा उठाते हैं। वें हमेशा हिंदू विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। वें दिन रात इसमे ही लगे रहते हैं कि कैसे भी करके हिंदू संस्कृति को कैसे मिटाया जाए, वे फिल्में, विज्ञापनों, वेब सिरजो, इंटरनेट, पुस्तके, मीडिया, टीवी आदि द्वारा हिंदुओं का ब्रेनवॉश करते हैं। इन षडयंत्र को भोले हिंदू समझते नहीं हैं। वें अपने बच्चों को महान सनातन हिंदू धर्म के संस्कार नही देते हैं। जिसके कारण बच्चे भी सेक्युलर बन जाते हैं और फिल्मे, सीरियल आदि देखकर अपने धर्म से ही नफरत करने लग जाते हैं और कुछ लड़कियां तो लव जिहाद में फंस जाती हैं फिर पूरी जिंदगी नारकीय जीवन जीती हैं फिर कुछ कर नही पाती हैं माँ-बाप भी दुखी हो जाते हैं।

अतः सभी मां-बाप अपने बच्चों को सनातन धर्म के दिव्य संस्कार जरूर दें और ऐसे षडयंत्र का विरोध जरूर करें।

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Saturday, October 17, 2020

जानिये नवरात्रि कब से और कैसे शुरू हुई? उसका महत्त्व एवं इतिहास..

17 अक्टूबर 2020


नवरात्रि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा का त्यौहार है । जिनकी स्तुति कुछ इस प्रकार की गई है,




_सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।_
_शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।_

अर्थ : सर्व मंगल वस्तुओं में मंगलरूप, कल्याणदायिनी, सर्व पुरुषार्थ साध्य करानेवाली, शरणागतों का रक्षण करनेवाली, हे त्रिनयने, गौरी, नारायणी ! आपको मेरा नमस्कार है ।

1. मंगलरूप त्रिनयना नारायणी अर्थात मां जगदंबा !

जिन्हें आदिशक्ति, पराशक्ति, महामाया, काली, त्रिपुरसुंदरी इत्यादि विविध नामों से सभी जानते हैं ।  जहां पर गति नहीं वहां सृष्टि की प्रक्रिया ही थम जाती है । ऐसा होते हुए भी अष्ट दिशाओं के अंतर्गत जगत की उत्पत्ति, लालन-पालन एवं संवर्धन के लिए एक प्रकार की शक्ति कार्यरत रहती है । इसी शक्ति को आद्याशक्ति कहते हैं । उत्पत्ति-स्थिति-लय यह शक्ति का गुणधर्म ही है । शक्ति का उद्गम स्पंदनों के रूप में होता है । उत्पत्ति-स्थिति-लय का चक्र निरंतर चलता ही रहता है ।

श्री दुर्गासप्तशतीके अनुसार श्री दुर्गा देवी के तीन प्रमुख रूप हैं,

. महासरस्वती, जो ‘गति’ तत्त्व का  प्रतीक हैं ।

2. महालक्ष्मी, जो ‘दिक’ अर्थात ‘दिशा’ तत्त्व का प्रतीक हैं ।

3. महाकाली जो ‘काल’ तत्त्व का प्रतीक हैं ।

जगत का पालन करने वाली जगदोद्धारिणी मां शक्ति की उपासना हिंदू धर्म में वर्ष में दो बार नवरात्रि के रूप में, विशेष रूप से की जाती है ।

वासंतिक नवरात्रि : यह उत्सव चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।

शारदीय नवरात्रि : यह उत्सव आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।

2. ‘नवरात्रि’ किसे कहते हैं ?

नव अर्थात प्रत्यक्षत: ईश्वरीय कार्य करनेवाला ब्रह्मांड में विद्यमान आदिशक्तिस्वरूप तत्त्व । स्थूल जगत की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, प्रत्यक्ष तेजतत्त्वात्मक प्रकाश का अभाव तथा ब्रह्मांड की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वरीय तेज का प्रक्षेपण करने वाले मूल पुरुषतत्त्व का अकार्यरत होने की कालावधि । जिस कालावधि में ब्रह्मांड में शिवतत्त्व की मात्रा एवं उसका कार्य घटता है एवं शिवतत्त्व के कार्यकारी स्वरूप की अर्थात शक्ति की मात्रा एवं उसका कार्य अधिक होता है, उस कालावधि को ‘नवरात्रि’ कहते हैं । मातृभाव एवं वात्सल्य भाव की अनुभूति देनेवाली, प्रीति एवं व्यापकता, इन गुणों के सर्वोच्च स्तर के दर्शन कराने वाली जगदोद्धारिणी, जगत का पालन करने वाली इस शक्ति की उपासना, व्रत एवं उत्सव के रूप में की जाती है ।

3. ‘नवरात्रि’ का इतिहास

- रामजी के हाथों रावण का वध हो, इस उद्देश्य से नारद ने राम से इस व्रत का अनुष्ठान करने का अनुरोध किया था । इस व्रत को पूर्ण करने के पश्चात रामजी ने लंका पर आक्रमण कर अंत में रावण का वध किया ।

- देवी ने महिषासुर नामक असुर के साथ नौ दिन अर्थात प्रतिपदा से नवमी तक युद्ध कर, नवमी की रात्रि को उसका वध किया । उस समय से देवी को ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नाम से जाना जाता है ।

4. नवरात्रि का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

- ‘जग में जब-जब तामसी, आसुरी एवं क्रूर लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदारात्मक एवं धर्मनिष्ठ सज्जनों को छलते हैं, तब देवी धर्मसंस्थापना हेतु पुनः-पुनः अवतार धारण करती हैं । उनके निमित्त से यह व्रत है ।
- नवरात्रि में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में 1000 गुना अधिक कार्यरत होता है । देवीतत्त्व का अत्यधिक लाभ लेने के लिए नवरात्रि की कालावधिमें ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ नाम जप अधिकाधिक करना चाहिए ।

नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन बढ़ते क्रम से आदिशक्ति का नया रूप सप्त पाताल से पृथ्वी पर आनेवाली कष्टदायक तरंगों का समूल उच्चाटन अर्थात समूल नाश करता है । नवरात्रि के नौ दिनों में ब्रह्मांड में अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगें एवं आदिशक्ति की मारक चैतन्यमय तरंगों में युद्ध होता है । इस समय ब्रह्मांड का वातावरण तप्त होता है । श्री दुर्गा देवी के शस्त्रों के तेज की ज्वालासमान चमक अति वेग से सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों पर आक्रमण करती है । पूरे वर्ष अर्थात इस नवरात्रि के नौवें दिन से अगले वर्ष की नवरात्रि के प्रथम दिन तक देवी का निर्गुण तारक तत्त्व कार्यरत रहता है । अनेक परिवारों में नवरात्रि का व्रत कुलाचार के रूप में किया जाता है । आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से इस व्रत का प्रारंभ होता है ।

5. नवरात्रि की कालावधि में सूक्ष्म स्तर पर होने वाली गतिविधियां:-

नवरात्रि के नौ दिनों में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में एक सहस्र गुना अधिक सक्रिय रहता है । इस कालावधि में देवीतत्त्व की अतिसूक्ष्म तरंगें धीरे-धीरे क्रियाशील होती हैं और पूरे ब्रह्मांड में संचारित होती हैं । उस समय ब्रह्मांड में शक्ति के स्तर पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं और ब्रह्मांड की शुद्धि होने लगती है । देवीतत्त्व की शक्ति का स्तर प्रथम तीन दिनों में सगुण-निर्गुण होता है । उसके उपरांत उसमें निर्गुण तत्त्व की मात्रा बढ़ती है और नवरात्रि के अंतिम दिन इस निर्गुण तत्त्व की मात्रा सर्वाधिक होती है । निर्गुण स्तर की शक्ति के साथ सूक्ष्म स्तर पर युद्ध करने के लिए छठे एवं सातवें पाताल की बलवान आसुरी शक्तियों को अर्थात मांत्रिकों को इस युद्ध में प्रत्यक्ष सहभागी होना पड़ता है । उस समय ये शक्तियां उनके पूरे सामर्थ्य के साथ युद्ध करती हैं ।

6. श्री दुर्गा देवी का वचन

नवरात्रि की कालावधि में महाबलशाली दैत्यों का वध कर देवी दुर्गा महाशक्ति बनी । देवताओं ने उनकी स्तुति की । उस समय देवी मां ने सर्व देवताओं एवं मानवों को अभय का आशीर्वाद देते हुए वचन दिया कि इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।
तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।
– मार्कंडेयपुराण 91.51

इसका अर्थ है, जब-जब दानवों द्वारा जगत को बाधा पहुंचेगी, तब-तब मैं अवतार धारण कर शत्रुओं का नाश करूंगी ।

इस श्लोक के अनुसार जगत में जब भी तामसी, आसुरी एवं दुष्ट लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदार एवं धर्मनिष्ठ व्यक्तियों को अर्थात साधकों को कष्ट पहुंचाते हैं, तब धर्मसंस्थापना हेतु अवतार धारण कर देवी उन असुरों का नाश करती हैं ।

8. नवरात्रि के नौ दिनों में शक्ति की उपासना करनी चाहिए

`असुषु रमन्ते इति असुर: ।’ अर्थात् `जो सदैव भौतिक आनंद, भोग-विलासिता में लीन रहता है, वह असुर कहलाता है ।’ आज प्रत्येक मनुष्य के हृदय में इस असुर का वास्तव्य है, जिसने मनुष्य की मूल आंतरिक दैवी वृत्तियों पर वर्चस्व जमा लिया है । इस असुर की माया को पहचानकर, उसके आसुरी बंधनों से मुक्त होने के लिए शक्ति की उपासना आवश्यक है । इसलिए नवरात्रि के नौ दिनों में शक्ति की उपासना करनी चाहिए । हमारे ऋषि मुनियों ने विविध श्लोक, मंत्र इत्यादि माध्यमों से देवी मां की स्तुति कर उनकी कृपा प्राप्त की है । श्री दुर्गासप्तशति के एक श्लोक में कहा गया है,

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो:स्तुते ।।
– श्री दुर्गासप्तशती, अध्याय 11.12

अर्थात शरण आए दीन एवं आर्त लोगों का रक्षण करने में सदैव तत्पर और सभी की पीड़ा दूर करनेवाली हे देवी नारायणी!, आपको मेरा नमस्कार है । देवी की शरण में जाने से हम उनकी कृपा के पात्र बनते हैं । इससे हमारी और भविष्य में समाज की आसुरी वृत्ति में परिवर्तन होकर सभी सात्त्विक बन सकते हैं । यही कारण है कि, देवी तत्त्व के अधिकतम कार्यरत रहने की कालावधि अर्थात नवरात्रि विशेष रूप से मनायी जाती है ।

नवरात्रि के नौ दिनों में घट स्थापना के उपरांत पंचमी, षष्ठी, अष्टमी एवं नवमी का विशेष महत्त्व है । पंचमी के दिन देवी के नौ रूपों में से एक श्री ललिता देवी अर्थात महात्रिपुर सुंदरी का व्रत होता है । शुक्ल अष्टमी एवं नवमी ये महातिथियां हैं । इन तिथियों पर चंडीहोम करते हैं । नवमी पर चंडीहोम के साथ बलि समर्पण करते हैं ।

संदर्भ – सनातन धर्म के ग्रंथ, ‘त्यौहार मनाने की उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र‘, ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’ एवं ‘देवीपूजन से संबंधित कृत्यों का शास्त्र‘ एवं अन्य ग्रंथ।

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Friday, October 16, 2020

लव जिहाद ने खड़ी की बेटियों के लिए पहाड़ जैसी बड़ी समस्या - असम मंत्री

16 अक्टूबर 2020


लव जिहाद के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में कई सरकारें इसे रोकने की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं और इसके खिलाफ़ मुखर होकर एक्शन भी ले रही हैं। आज इसी कड़ी में असम के मंत्री (वित्त, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण) व भाजपा विधायक हिमंत बिस्वा सरमा ने भी अपना बयान दिया है।




उन्होंने लव जिहाद की ओर इशारा करते हुए बताया कि जो मुस्लिम लड़के झूठा नाम रख कर हिंदू लड़कियों से निकाह करते हैं, वह कोई सच्ची शादी नहीं होती बल्कि विश्वासघात होता है।

समाचार एजेंसी से बात करते हुए असम मंत्री हिमंत बिस्वा ने कहा, “कई मुस्लिम लड़के हिंदू नाम से फेसबुक अकॉउंट बनाते हैं और मंदिर में जाकर अपनी तस्वीर डालते हैं और जब एक बार लड़की ऐसे लड़कों से शादी कर लेती है तो उसे लड़के का असली नाम पता चलता है। इसे असली विवाह नहीं बल्कि विश्वासघात कहा जाता है।”

बता दें कि इससे पहले असम मंत्री हिमंत ने मदरसों पर भी अपना बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि उनके राज्य में नवंबर में सभी मदरसों को बंद करने के बारे में एक अधिसूचना जारी की जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य में लगभग 100 संस्कृत स्कूल भी बंद किए जाएँगे।

बिस्वा ने एएनआई को बताया था, “मेरी राय में, कुरान का शिक्षण सरकारी धन पर नहीं हो सकता है। अगर हमें ऐसा करना है तो हमें बाइबल और भगवद गीता दोनों को भी पढ़ाना चाहिए। इसलिए, हम एकरूपता लाना चाहते हैं और इस प्रथा को रोकना चाहते हैं।”

गौरतलब है कि पिछले दिनों लव जिहाद के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब लड़की को हिंदू नाम बताकर फँसा लिया गया और बाद में उसे नारकीय जीवन जीने पर या तो मजबूर किया गया या फिर मार कर कहीं फेंक दिया गया। पिछले दिनों भी इसी संबंध में भाजपा के वरिष्ठ नेता हिमंत बिस्वा ने असम चुनावों के मद्देनजर आह्वान किया था कि यदि उनकी सरकार आई तो इस लव जिहाद के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होगी।

उन्होंने कहा था, ‘‘हमें असम की जमीन पर लव जिहाद के खिलाफ एक नई और कड़ी लड़ाई शुरू करनी होगी। अगर भाजपा दुबारा सत्ता में आती है तो हम यह निर्णय लेंगे कि अगर कोई भी लड़का धार्मिक पहचान छुपाता है और असम की बेटियों और महिलाओं पर कुछ भी नकारात्मक टिप्पणी करता है तो उसे कड़ी सजा मिले।”

हिमंत बिस्वा सरमा ने यह भी कहा था, ‘‘लव जिहाद ने असम की बेटियों के लिए पहाड़ जैसी बड़ी समस्या खड़ी की है। कई लड़कियों की तो तलाक की नौबत आ गई क्योंकि उन्हें गलत नाम बताकर लड़कों ने धोखा दिया।”

हिंदू युवतियों को अपने माँ-बाप धर्म के संस्कार नहीं देते हैं जिससे हिंदू युवतियां सेक्युलर बन जाती हैं और स्कूलों में भी शिक्षा सेक्युलरिज्म की दी जा रही है। ऊपर से वेब सीरीज, सीरियलों एवं फिल्मों द्वारा लव जिहाद को बढ़ावा दिया जाता है जिसके कारण हिंदू युवती लव जिहाद में आसानी से फंस जाती है और उनका आखरी अंत बड़ा दर्दनाक होता है।

लव जिहाद से हिंदू युवतियों की जिंदगी बर्बाद हो गई है ऐसी एक-दो नहीं हजारों-लाखों घटनाएं होंगी पर उसकी खबरें इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया नहीं बताती है जिसके कारण ऐसी खबरें जनता तक पहुँच नहीं पाती हैं जिसके कारण दूसरी हिंदू युवतियां भी लव जिहाद में फंसकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर देती हैं।

माँ-बाप पहले सनातन धर्म का संस्कार जरूर दें और लव जिहाद में फंसने वाली जिन लड़कियों का जीवन बर्बाद हो गया है उनका भी उदाहरण दें जिसके कारण आपकी बेटियां इनके चंगुल से बच सकें।

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Thursday, October 15, 2020

खुलासा : फेसबुक मार्क जुकरबर्ग ने नहीं !! एक भारतीय ने बनाया है !!

15 अक्टूबर 2020


देखा जाए तो आजतक दुनिया में जितनी खोजे हुई हैं वे सब भारतीयों ने ही की है... । उसमें हमारे ऋषि-मुनियों का ज्यादा योगदान रहा है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जितनी भी भारतीयों ने खोजे की उसको तथाकथित इतिहासकारों ने छुपा दी और उस खोज पर विदेशी लोगों की मुहर लगा दी। इसके कारण भारतीय आज अपनी संस्कृति पर गर्व करने की बजाय पाश्चात्य संस्कृति की तरफ प्रभावित हो जाता है।




अगर आपसे कहा जाए कि फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि एक भारतीय है, तो क्या आप इस बात पर भरोसा करेंगे ?? नहीं न, लेकिन ये सच है। इस भारतीय शख्स का नाम है 'दिव्य नरेंद्र'। नरेंद्र ने फेसबुक बनाया तो लेकिन उन्हें कभी भी इसका क्रेडिट नहीं मिला। नरेंद्र ने अपने दो अन्य साथियों के साथ मिलकर वो आइडिया डेवलप किया था, जिसे आज हम फेसबुक के नाम से जानते हैं। नरेंद्र ही वो पहले शख्स हैं, जिन्होंने जुकरबर्ग के खिलाफ विश्वासघात का मुकदमा किया था।

◆ कौन हैं नरेंद्र?

नरेंद्र का जन्म 1984 में न्यूयार्क के ब्रांक्स में हुआ था। नरेंद्र भारत से अमेरिका शिफ्ट हुए डॉक्टर दंपत्ति के बड़े बेटे हैं। साल 2000 में उन्होंने हार्वर्ड में दाखिला लिया और साल 2004 में वो अप्लाइड मैथमेटिक्स में ग्रेजुएट हुए।  इसके बाद उन्होंने MBA और कानून की भी पढाई की। नरेंद्र हार्वर्ड कनेक्शन (बाद में नाम कनेक्टयू) के सह-संस्थापक थे, जिसे उन्होंने कैमरुन विंकलेवोस और टेलर विंकलेवोस के साथ मिलकर बनाई थी। इस फार्मूला पर बना है फेसबुक नरेंद्र ने हावर्ड के अपने दो क्लासमेट के साथ मिलकर हार्वर्ड कनेक्ट सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट 21 मई 2004 में लांच की। जिसका नाम बाद में बदलकर कनेक्टयू कर दिया। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत दिसंबर 2002 में की गई। इस प्रोजेक्ट का पूरा फॉरमेट और अवधारणा वही है, जिस पर फेसबुक शुरू हुआ। कनेक्टयू वेबसाइट लांच हुई, हार्वर्ड कम्युनिटी के तौर पर इस पर काम शुरू किया फिर ये बंद हो गई। 

◆ ये थे पहले प्रोग्रामर

संजय मवींकुर्वे नाम के प्रोग्रामर के सबसे पहले हार्वर्ड कनेक्शन बनाने को कहा गया। संजय ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया लेकिन साल 2003 में उन्होंने इसे छोड़ दिया और गूगल चले गए। संजय के प्रोजेक्ट बीच में छोड़ने के बाद नरेंद्र ने विंकलेवोस और हार्वर्ड के स्टूडेंट और अपने दोस्त प्रोग्रामर विक्टर गाओ को साथ काम करने का प्रस्ताव दिया। विक्टर गाओ ने कहा कि वो इस प्रोजेक्ट का फुल पार्टनर बनने की बजाए पैसे पर काम करना चाहेंगे। इसके लिए नरेंद्र ने उन्हें 400 डॉलर दिए और उन्होंने वेबसाइट कोडिंग पर काम किया। लेकिन बाद में व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने खुद को इस प्रोजेक्ट से अलग कर लिया। 

◆ नरेंद्र ने किया था मार्क जुकरबर्ग को एप्रोच 

2003 में नवंबर में विक्टर के रिफरेंस पर विंकलेवोस और नरेंद्र ने मार्क जुकरबर्ग को एप्रोच किया कि वो उनके साथ काम करें। हालांकि जुकरबर्ग को काम के लिए एप्रोच करने से पहले ही नरेंद्र और विंकलेवोस इस पर काफी काम कर चुके थे। नरेंद्र के मुताबिक, कुछ दिनों बाद हमने काफी हद तक वो वेबसाइट डेवलप कर ली लेकिन हमें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि जैसे ही हम उसे कैंपस में लोगों को दिखाएंगे, वो लोगों के बीच हलचल पैदा करेगी। मार्क जुकरबर्ग ने जब हार्वर्ड कनेक्शन टीम से बात की तो टीम को वो काफी इंट्रेस्टेड लगे। जुकरबर्ग को वेबसाइट के बारे में बताया गया कि वे कैसे उसका किस तरह विस्तार करेंगे, कैसे उसे दूसरे स्कूलों और अन्य कैंपस तक ले जाएंगे। हालांकि, ये सारी जानकारियां गोपनीय थी, लेकिन मीटिंग में बताना जरूरी था।

◆ पार्टनर बनने के बाद दिया धोखा 

नरेंद्र के मुताबिक, मौखिक बातचीत के जरिए ही जुकरबर्ग उनके पार्टनर बन गए। इसके बाद जुकरबर्ग को प्राइवेट सर्वर लोकेशन और पासवर्ड के बारे में बताया गया, जिससे वेबसाइट का बचा काम और कोडिंग पूरी की जा सके। जुकरबर्ग के टीम में शामिल होने के बाद माना गया कि वो जल्द ही प्रोग्रामिंग के काम को पूरा कर देंगे और वेबसाइट लांच कर दी जाएगी। इन सारे कामों के समझने के कुछ ही दिन बाद जुकरबर्ग ने कैमरुन विंकलेवोस को ईमेल भेजा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें नहीं लगता कि प्रोजेक्ट को पूरा करना कोई मुश्किल होगा। जुकरबर्ग ने लिखा था कि मैंने वो सारी चीजें पढ़ ली हैं, जो मुझको भेजी गई हैं और मुझे इन्हें लागू करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। इसके बाद अगले दिन जुकरबर्ग ने एक और ईमेल भेजा, जिसमें लिखा था कि मैने सब कर लिया है और वेबसाइट जल्द ही शुरू हो जाएगी। लेकिन इसी के बाद से जुकरबर्ग धोखा देने लगे। 

◆जुकरबर्ग ने फोन कॉल्स किए इग्नोर

जुकरबर्ग ने धीरे-धीरे करके हार्वर्ड कनेक्ट टीम के फोन उठाने बंद कर दिए। न ही वो टीम के मेल के जवाब दे रहे थे। जुकरबर्ग ने ये जताना शुरू कर दिया कि वो किसी ऐसे काम में बिजी हो गए हैं कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है। इसके बाद 4 दिसंबर 2003 को जुकरबर्ग ने मेल किया और लिखा कि सॉरी मैं आप लोगों के कॉल के जवाब नहीं दे सका, मैं बहुत बिजी हूं। इसके बाद वो हर मेल में ऐसी ही बातें कहने लगे।
 
◆ चुपके से लॉन्च किया फेसबुक 

धीरे-धीरे जुकरबर्ग ने हावर्ड टीम के साथ मतभेद पैदा किए और अलग हो गए। इसी के बाद उन्होंने द फेसबुक डॉट कॉम के नाम से 4 फरवरी 2004 को नई वेबसाइट लांच कर दी। इस वेबसाइट में सबकुछ वही था, जो हार्वर्ड कनेक्ट के लिए डेवलप किया जा रहा था। ये सोशल नेटवर्क साइट भी हार्वर्ड स्टूडेंट्स के लिए ही थी, जिसका विस्तार बाद में देश के अन्य स्कूलों तक करना था। विंकलेवोस और नरेंद्र को इस बात का देरी से पता चला। जब उन्हें इस बात का पता चला तो नरेंद्र और उनके सहयोगियों की जुकरबर्ग से तीखी नोकझोंक हुई। यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए नरेंद्र को कोर्ट जाने की सलाह दी। कोर्ट ने माना आइडिया नरेंद्र का था यूनिवर्सिटी की सलाह मानकर नरेंद्र और विंकलेवोस कोर्ट में पहुंचे। साल 2008 में जुकरबर्ग ने इनसे समझौता किया और 650 लाख डॉलर की रकम दी। हालांकि, नरेंद्र इस समझौते से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि उनका तर्क था कि उस समय फेसबुक के शेयरों की जो बाजार में कीमत थी, उन्हें उसके हिसाब से हर्जाना नहीं दिया गया। लेकिन अमेरिकी कोर्ट के फैसले से इस बात को तो खुलासा हो गया था कि दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का आइडिया दिव्य नरेंद्र का था। 

◆ नरेंद्र चलाते हैं समजीरो नाम की कंपनी 

नरेंद्र अब अपनी कंपनी चलाते हैं, जिसका नाम समजीरो है। इस कंपनी को उन्होंने और हावर्ड के क्लामेट अलाप ने शुरू किया। ये कंपनी प्रोफेशनल निवेशक फंड, म्युचुअल फंड और प्राइवेट इक्विटी फंड पर काम करती है। नरेंद्र ने दो साल पहले एक अमेरिकन एनालिस्ट फोबे व्हाइट से शादी रचाई। 

फेसबुक तो एक नमूना है बाकी सर्जरी हो, हवाई जहाज हो, परमाणु हथियार हो अथवा बिजली से लेकर शरीर के स्वास्थ्य तक कि सारी खोजे हमारे ऋषि-मुनियों ने की है लेकिन आज हम असली इतिहास छुपाकर नकली इतिहास पढ़ाया जाता है जिसके कारण आज हम असली भारतीय खोजकर्ताओं को भुला रहे हैं, अब समय की मांग रहते हुए असली इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए।

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Wednesday, October 14, 2020

केवल साल 2020 में ही 12 साधुओं की बेरहमी से कर दी गई हत्याएं

14 अक्टूबर 2020


पिछले साढ़े छ: सालों में यानी भाजपा के सत्ता संभालने के बाद से ही मुख्यधारा मीडिया में ‘धर्म और जाति’ की खबरें प्रमुखता से दिखाई जाने लगी। केवल हमारे देश में ही नहीं, विदेशों तक में सबको ऐसे केसों के बारे में पता चलने लगा, जहाँ अल्पसंख्यकों पर हमला हुआ। अब चाहें बुद्धिजीवियों के कारण कहें या राजनेताओं की वजह से, दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों तक को मुस्लिमों के ख़िलाफ साजिश बता दिया गया। इसके अलावा जब-जब कोई अल्पसंख्यक या कोई दलित समुदाय के लोगों पर हमला हुआ, तो उसे फौरन आग की तरह फैलाया गया। वहीं किसी सवर्ण पर हमले की घटना पर हर जगह बस मौन पसरा दिखा। नतीजतन सवर्णों पर हुए हमलों की घटनाओं के बारे में विदेशों में तो छोड़िए, भारत तक में भी अधिकांश लोगों ने आवाज नहीं उठाई।




पुराने मामले छोड़ कर यदि सिर्फ़ साल 2020 की बात करें तो इस वर्ष कई साधुओं व संतों पर हमला हुआ। मगर, केवल पालघर जैसे मामलों को ही मीडिया ने प्रमुखता से दिखाया, वो भी बड़े सामंजस्य के साथ। कई हमलों को तो मीडिया ने हजारों अनर्गल खबरों के बीच में ही दबा दिया या यदि उन्हें कवर भी किया तो किसी छोटे से कॉलम के लिए, वो भी बिना किसी फॉलोअप आदि के।

आज हम आपको ऐसे ही कुछ हमलों की जानकारी देने जा रहे हैं जो केवल साल 2020 में ही घटे हैं।

16 जनवरी 2020 को चित्रकूट के बालाजी मंदिर के महंत अर्जुन दास को कुछ उपद्रवियों ने मार डाला। पुलिस ने इस केस में अलोक पांडे, मंगलदास, राजू मिश्रा व दो अन्य लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया। रिपोर्ट्स में इस घटना को जमीनी विवाद का अंजाम बताया गया और साथ ही कहा गया कि आरोपितों ने हमले के तीन दिन पहले घटनास्थल की रेकी की थी। इसके बाद आकर महंत को गोली मारी। गोली लगने से जहाँ महंत की मृत्यु हो गई वहीं उनके साथी घायल हो गए।

16 अप्रैल 2020, जूना अखाड़ा के दो संतों को हिंसक भीड़ ने अपना निशाना बनाया और पालघर में उनकी लिंचिंग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मृतकों की पहचान 70 साल के कल्पवृक्ष गिरि महाराज और 35 साल के सुशील गिरी महाराज के रूप में हुई। उनके साथ हिंसक भीड़ ने उनके ड्राइवर को भी मौत के घाट उतारा। मामले के तूल पकड़ने पर उनके ऊपर तरह तरह के इल्जाम लगाए गए। हालाँकि बाद में जब वीडियो आया तब इस हकीकत का खुलासा हुआ कि आखिर कैसे पुलिस की मौजूदगी में हिंसक भीड़ ने बेरहमी से संतों को मारा। इस पूरे मामले की जाँच में यह भी खुलासा हुआ था कि यह हत्या जानबूझकर की गई और इससे कई राजनैतिक कोण भी जुड़े हुए थे। यह भी अंदाजा लगाया गया कि एनसीपी की शह पर ईसाई मिशनरियों ने इस घटना को अंजाम दिलवाया।

28 अप्रैल को बुलंदशहर में दो पुजारियों पर हमला हुआ। उनका शव मंदिर के परिसर में क्षत-विक्षत मिला। पुजारियों की पहचान जगदीश उर्फ रंगी दास और शेर सिंह उर्फ सेवा दास के रूप में हुई। रिपोर्ट्स में बताया गया कि उन्होंने मुरारी नाम के व्यक्ति को चोरी करते पकड़ा था। इसके बाद मुरारी ने गुस्से में उन दोनों को धारदार हथियार से मारा और बाद में कई ग्रामीणों ने उसे तलवार के साथ गाँव के बाहर जाते देखा। पुलिस की छानबीन में आरोपित को गाँव से दो किलोमीटर दूर से पकड़ा गया था।

23 मई को महाराष्ट्र के नांदेड़ में दो साधुओं की हत्या हुई। पीड़ितों की पहचान बाल ब्रह्मचारी शिवाचार्य महाराज गुरु और भगवान शिंदे के रूप में हुई। साधुओं का शव घर के बाथरूम से बरामद हुआ। पुलिस रिपोर्ट ने बताया कि कम से कम दो आरोपित चोरी करने के लिए घर में घुसे और जब साधुओं से उनका आमना-सामना हुआ तो चार्जिंग केबल से उनका गला घोंट दिया। इसके बाद आरोपितों ने 69,000 रुपए लूटे, लैपटॉप चोरी किया और बाकी वस्तुएँ भी नहीं छोड़ीं। कुल मिलाकर साधु के कमरे से 1,50,000 रुपए गायब थे। पुलिस ने इस संबंध में साईनाथ सिंघाड़े को गिरफ्तार किया था।

13 जुलाई को मेरठ के अब्दुल्लापुर में एक शिव मंदिर के केयरटेकर कांति प्रसाद से मारपीट का मामला सामने आया। कांति प्रसाद की गलती बस यह थी कि वह भगवा धारण करते थे और इसी को देखकर एक ग्रामीण अनस कुरैशी उन पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करता था। 13 जुलाई को जब कांति प्रसाद बिजली का बिल जमा कराकर लौट रहे थे, तब भी अनस ने यही किया और उन्हें बीच सड़क पर मारना शुरू कर दिया। इस बीच किसी तरह कांति प्रसाद उससे बच कर अनस के घर पहुँचे, लेकिन वहाँ भी अनस ने पीछे से आकर उन पर हमला कर दिया। जब कांति प्रसाद के घरवालों को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई और पिता को अस्पताल में भर्ती करवाया। हालाँकि हालत गंभीर होने के कारण कांति प्रसाद बच न सके और अगले दिन उन्होंने दम तोड़ दिया।

23 जुलाई को यूपी के एक मंदिर में 22 वर्षीय साधु का शव पेड़ से लटका पाया। रिपोर्ट्स में उनकी पहचान बालयोगी सत्येंद्र आनंद सरस्वती बताई गई, जो हिमाचल प्रदेश से सुल्तानपुर आए थे। वह छतौना गाँव के वीर बाबा मंदिर में लंबे समय से रह रहे थे। जब पुलिस को उनकी अप्राकृतिक मृत्यु का मालूम चला तो शव को हिरासत में ले लिया गया। हालाँकि कुछ ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि यह आत्महत्या नहीं, हत्या है।

23 अगस्त को बिहार के लखीसराय में नक्सलियों ने नीरज झा को किडनैप किया और 1 करोड़ की फिरौती माँगी। जब परिवार वालों को पुजारी का शव मिला तो वो इतनी बुरी तरह से क्षत विक्षत था कि परिवार वाले उन्हें पहचान ही नहीं पाए। बाद में उनके भाई पंकज झा ने जनेऊ के कारण उन्हें पहचाना।

11 सिंतबर को मंड्या शहर के बाहरी इलाके में आरकेश्वर मंदिर में 3 पुजारियों की हत्या की गई। पुलिस ने इनकी पहचान गणेश, प्रकाश और आनंद के रूप में की। तीनों का शव पुलिस को खून से लथपथ बरामद हुआ। रिपोर्ट्स से पता चला कि पुजारियों का सिर पत्थर से कुचला गया था। हमलावरों ने वारदात को अंजाम देने के बाद मंदिर में लूटपाट भी की और दानपेटी में बस कुछ सिक्के छोड़े। 15 सितंबर को पाँचों हमलावरों को पकड़ा गया। इनकी पहचान अभिजीत, रघु, विजि, मंजा और गाँधी के रूप में हुई।

24 सितंबर को मध्यप्रदेश के जिला हरदा के तहसील खिड़किया, ग्राम बारंगी में 80 वर्षीय महंत नारायण गिरीजी को बेरहमी से हत्या कर दी गई।

8 अक्टूबर को राजस्थान के करौली जिले के बोकना गाँव में 6 लोगों ने एक मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण की कोशिश करते हुए 50 वर्षीय पुजारी बाबूलाल वैष्णव को पेट्रोल डालकर जला के मार डाला । उन्हें जयपुर के एसएमएस अस्पताल में गंभीर हालात में भर्ती करवाया गया और 9 अक्टूबर को उनकी मौत हो गई।

10 अक्टूबर को राम जानकी मंदिर के तिर्रे मनोरमा गाँव में इटियाथोक थाने में पुजारी को गोली मारी गई। यह वारदात भी जमीन विवाद पर हुई। अभी उनका इलाज लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में चल रहा है। रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि पुजारी सम्राट दास जिस राम जानकी मंदिर के पुजारी थे, उसकी जमीन पर भू माफियों की नजर थी। उन पर इस बाबत पिछले साल भी हमला हुआ था। पुलिस ने अब इस संबंध में एफआईआर रजिस्टर कर ली है और अपनी पड़ताल भी शुरू कर दी है।

आजकल साधु-संतों की हत्या व उनके ऊपर झूठे केस दायर करना, उनको मीडिया द्वारा बदनाम करना, उनके खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर फिल्में बनाना ये कार्य जोरो से चल रहा है पर सरकार इस पर ध्यान नही दे रही है, जनता की तीव्र मांग है कि साधु-संतों के हत्यारों को फाँसी का प्रावधान होना चाहिए जिसके कारण आगे कोई भी किसी साधु की हत्या न करें और साधुओं की सुरक्षा के लिए भी व्यवस्था करनी चाहिए, साधु-संतो पर जो झुठे केस दायर किये जा रहे हैं उनके खिलाफ भी कार्यवाही करनी चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Tuesday, October 13, 2020

कानून के रखवाले हिंदुओं को कैसे प्रताड़ित करते हैं पढ़ लीजिये

13 अक्टूबर 2020


वैसे लगता है कि भारत में राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य करना अपराध हो गया है, जबकि जो लोग राष्ट्र व भारतीय संस्कृति के खिलाफ़ कार्य कर रहे हैं वे शायद अच्छे कार्य कर रहे हैं क्योंकि कानून इनको आसानी से राहत दे देता है और राष्ट्रहित के कार्य करने वाले सालों से जेल मे प्रताड़ित किये जाते हैं।




आपको ताजा उदाहरण देते हैं जैसे कि न्यायालय ने ड्रग्स मामले में रिया चक्रवर्ती को जमानत दे दी, नाबालिग रेप केस में सपा नेता गायत्री प्रजापति को जमानत मिल गई, करोड़ों रूपये के घोटाले करने वाले लालू प्रसाद यादव को जमानत मिल गई, देशभर में कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को जमानत मिल गई, देश के 'टुकड़े' करने का नारा लगाने वाले उमर खालिद और कन्हैया कुमार को जमानत मिल गई, बलात्कार आरोपी बिशप फ्रेंको व तरुण तेजपाल को जमानत मिल गई , 65 गैर जमानती वारंट होने के बाद भी दिल्ली के इमाम बुखारी को आज तक एरेस्ट नहीं कर पाए और यही न्यायालय राष्ट्र और भारतीय संस्कृति के उत्थान कार्य करने वाले 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 7 साल से आज तक जमानत नहीं दे पाई ।

बता दें कि जब किसी नेता, अभिनेता, जज या पत्रकार अथवा मुस्लिम और इसाई धर्मगुरु आदि पर आरोप लगते हैं तब सभी बुद्धजीवी बोलतें हैं कि जांच चल रही है, कानून अपना काम कर रहा है, कानून सबके लिए समान है आदि-आदि, लेकिन जैसे ही किसी हिंदुनिष्ठ या हिंदू साधु-संत पर झुठे आरोप लगते हैं तो सभी बोलने लग जाते हैं कि आरोपी पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, फिर भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है, ये शर्मनाक बात है आदि-आदि, कुछ इस तरह के नारे लगते हैं और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया जाता है और सालों तक जमानत भी नहीं दी जाती है।

जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी पर हत्या का आरोप लगा और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया गया फिर वे बाद में निर्दोष बरी हुए।

वैसे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद, स्वामी नित्यानंद, डीजी वंजारा जी आदि को भी सालों तक जेल में प्रताड़ित किया गया और आखिर में वे निर्दोष बरी हुए।

अभी वर्तमान में हिंदू संत आशाराम बापू का केस तो आप देख ही रहे हैं, उनके पास षडयंत्र के तहत फंसाने और निर्दोष होने के प्रमाण भी हैं फिर भी उनको जमानत नहीं दी जा रही है।

दूसरी ओर सलमान खान को सजा होने के बाद भी 1 घण्टे में ही जमानत मिल जाती है, संजय दत्त को बार-बार पेरोल मिल जाती है, लालू को सजा होने के बाद बेटे की शादी में जाने के लिए जमानत मिल जाती है, पत्रकार तरुण तेजपाल पर आरोप सिद्ध होने के बाद भी जमानत मिल जाती है, बिशप फ्रैंको को 21 दिन में जमानत मिल जाती है, इससे साफ सिद्ध होता है कि कानून केवल समान बोला जा रहा है पर कानून व्यवस्था देखने वाले समानता का व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु लगता है कि नीति बहुत ही पक्षपाती है। देश में कई ऐसे कैदी हैं जिनके पास वकील रखने व जमानत लेने के पैसे नहीं हैं इसलिए जेल में सड़ रहे हैं, वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। किसी साधु-संत अथवा आम आदमी पर आरोप लगते ही गिरफ्तार कर लिया जाता है पर बड़े नेता-अभिनेता, अमीर आदि को गिरफ्तारी से पहले ही जमानत हासिल हो जाती है।

इन सब बातों से साफ पता चलता है कि कानून समान बोला जा रहा है पर उसका पालन नहीं हो रहा है इससे हिंदुनिष्ठ और आम जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है, यह जनता के लिए दुःखद बात है इस पर सरकार और न्यायालय को ठोस कदम उठाना चाहिए नहीं तो निर्दोष पीड़ित होते ही रहेंगे।

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