Friday, May 31, 2019

धूम्रपान आप या आपके घर मे कोई करता है तो जान लीजिए क्या होगा ?

🚩धूम्रपान आप या आपके घर मे कोई करता है तो जान लीजिए क्या होगा ?
31 मई 2019
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🚩जिस प्रकार दीपक के तेल को जलाकर उसका काजल एकत्रित किया जाता है उसी प्रकार अमेरिका के दो प्रोफेसर, ग्रेहम और वाइन्डर ने तम्बाकू जला कर उसके धुएँ की स्याही इक्टठी की। उस तम्बाकू की स्याही को अनेकों स्वस्थ चूहों के शरीर पर लगाया। परिणाम यह हुआ कि कितने चूहे तो तत्काल मर गये । अनेकों चूहों का मरण दो-चार मास बाद हुआ जबकि अन्य अनेकों चूहों को त्वचा का कैंसर हो गया और वे घुट-घुट कर मर गये। जिन चूहों के शरीर पर तम्बाकू की स्याही नहीं लगायी गयी थी और उन्हें उनके साथ रखा गया था उन्हें कोई हानि न हुई। इस प्रयोग से सिद्ध हो गया कि तम्बाकू का धुआँ शरीर के लिए कितना खतरनाक है।

🚩विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2016 में कहा था कि ‘‘तंबाकू का सेवन दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (11 देशों)-(जिसमें भारत शामिल है) में करीब 24.6 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं और 29 करोड़ से थोड़े कम इसका धुआंरहित स्वरूप में सेवन करते हैं।
🚩उन्होंने कहा, ‘‘तंबाकू से हर साल क्षेत्र में 13 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जो 150 मौत प्रति घंटे के बराबर है ।’’
🚩WHO के मुताबिक तंबाकू सेवन और धूम्रपान से दुनिया में हर 6 सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत होती है ।
बीसवीं सदी के अंत तक सिगरेट पीने के कारण 6 करोड़ 20 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे ।
🚩विकसित देशों में हर छठी मौत सिगरेट के कारण होती है। महिलाओं में सिगरेट पीने के बढ़ते चलन के कारण यह आँकड़ा और बढ़ा है ।
🚩तम्बाकू से होने वाले दुष्परिणाम-
निकोटीन, टार और कार्बन-मोनोऑक्साइड जैसे हानिकारक कैमिकल से युक्त तंबाकू जितना आपके फेफड़ों और चेहरे को प्रभावित करता है  उतना ही हानिकारक आपके नाजुक दिल के लिए भी होता है ।
🚩तंबाकू का सेवन करने वाले के मुँह से बदबू तो आती है, लेकिन उसके साथ ही उसको मुंह और गले में भयानक कैंसर की भी संभावना होती है । तंबाकू में मौजूद निकोटीन पूरे शरीर में रक्त की पूर्ति करने वाली महाधमनी को प्रभावित करता है। यह फेफड़ों को भी काफी हद तक प्रभावित करता है जिससे श्वास संबंधी समस्याएं आम हो जाती हैं।
🚩तंबाकू के नियमित सेवन से सिर दर्द और चक्कर आना जैसी आम शिकायत भी हो सकती है। इतना ही नहीं तंबाकू आपकी रक्त वाहिनिकाओं को प्रभावित कर हृदय संबंधी गंभीर बीमारियों को भी जन्म दे देता है। यह हमारे पाचन तंत्र को खराब करने के साथ-साथ हम पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी डालता है। तम्बाकू से अनेक भयंकर बीमारियां होती है ।
🚩धूम्रपान से बच्चों पर भयंकर असर...
जिन घरों में  धूम्रपान  आम होता है, उन घरों के बच्चे न चाहते हुए भी जन्म से ही 'धूम्रपान' की ज्यादतियों के शिकार हो जाते हैं।  कोई वयस्क एक मिनट में लगभग 16 बार सांस लेता है, जबकि बच्चों में इसकी गति अधिक होती है।
🚩पाँच साल का एक सामान्य बच्चा एक मिनट में 20 बार साँस लेता है। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यह गति बढ़कर 60 बार प्रति मिनट तक हो सकती है।
🚩जाहिर है कि जिन घरों में  सिगरेट  या बीड़ी का धुआँ रह-रहकर उठता है उन घरों के बच्चे तंबाकू के धुएँ में ही साँस लेते हुए बड़े होते हैं।
चूँकि वे वयस्कों से अधिक तेज गति से साँस लेते हैं इसलिए उनके फेफड़ों में भी वयस्कों के मुकाबले अधिक धुआँ जाता है। धुएँ के साथ जहरीले पदार्थ भी उसी मात्रा में दाखिल होते हैं।
🚩धूम्रपान का धुआँ बच्चों में निमोनिया या पल्मोनरी ब्रोंकाइटिस अर्थात साँस के साथ उठने वाली खाँसी की समस्या पैदा कर सकता है।बच्चों के मध्यकर्ण में अधिक पानी भर सकता है, उन्हें सुनने की अथवा वाचा की समस्या पैदा हो सकती है।
धूम्रपान के धुएँ में पलने वाले बच्चों के फेफड़े कम क्षमता से काम करते हैं। इसी वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली भी कमजोर होती है। वे युवावस्था में दूसरों के मुकाबले कम तगड़े होते हैं।
🚩बच्चों का सामान्य विकास अवरुद्ध हो जाता है। उनका वजन और ऊँचाई दूसरों के मुकाबले कम होती है। जिन्होंने जीवन में कभी भी धूम्रपान नहीं किया हो उन्हें पेसिव स्मोकिंग के कारण फेफड़ों के कैंसर होने का 20-30 प्रतिशत जोखिम होता है।
🚩धूम्रपान छोड़ने के अनेक फायदे...
1. धूम्रपान बंद करने के 12 मिनट के भीतर ही आपकी उच्च हृदय गति (हाई बी.पी) और रक्त चाप में कमी(लो बी.पी) दिखने लगेगी। 12 घंटे बाद अपने खून में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर घटकर सामान्य पर पहुंच जाएगा। वहीं दो से 12 हफ्तों में आपके शरीर के भीतर खून के प्रवाह और फेफड़ों की क्षमता बढ़ जाएगी।
🚩2. धूम्रपान छोड़े हुए एक साल बीतते-बीतते आप में दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा धूम्रपान करने वालों की तुलना में आधा तक रह जाएगा। वहीं पांच साल तक पहुंचने पर मस्तिष्काघात का खतरा नॉन स्मोकर के स्तर पर पहुंच जाएगा।
3. दस साल तक अपने-आपको धूम्रपान से दूर रखने पर आप में फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा धूम्रपान करने वाले की तुलना में आधे पर पहुंच जाएगा। वहीं मुंह, गले, मूत्राशय, गर्भाशय और अग्नाशय में कैंसर का खतरा भी कम हो जाएगा ।
🚩4. धूमपान छोड़ने पर आपकी जीवन प्रत्याशा में भी इजाफा होगा। अगर आप 30 वर्ष की उम्र से पहले ही धूम्रपान की लत से तौबा कर लेते हैं तो धूम्रपान करने वालों की तुलना में आपकी जीवन प्रत्याशा करीब 10 साल तक बढ़ जाएगी, लेकिन धूम्रपान छोड़ने में देर करने से आपकी जिंदगी भी छोटी होती चली जाएगी।
5. धूम्रपान छोड़ने से आप में नपुंसकता की आशंका कम होती है। इसके अलावा महिलाओं में गर्भधारण में कठिनाई, गर्भपात, समय से पहले जन्म या जन्म के समय बच्चे का वजन बेहद कम होने जैसी समस्याएं भी कम होती है।
🚩6. आपके धूम्रपान से तौबा करने पर आपके बच्चों में भी सैकंड हैंड स्मोक से होने वाली श्वास संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।
7.धूम्रपान छोड़ना आपकी जेब के लिए भी फायदेमंद हैं। मान लें अगर आप औसतन प्रतिदिन 10 सिगरेट पीते हैं और एक सिगरेट की कीमत 10 रुपये है, तो आप साल भर में ही 36,500 रुपये बस धूम्रपान में ही फूंक डालते हैं। इन पैसों से आप कुछ तो बेहतर काम कर ही सकते हैं।
🚩व्यसन छोड़ने के उपाय-
अजवाइन साफ कर इसे नींबू के रस और काले नमक में दो दिन तक भीगने के लिए छोड़ दें, फिर इसे सुखा लें और इसके बाद इसको मुंह में घंटो रखकर तंबाकू को खाने जैसी अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं ।
अगर आपको तंबाकू खाने की तलब काफी ज्यादा है तो आप बारीक सौंफ के साथ मिश्री के दाने मिलाकर धीरे धीरे चूस सकते हैं ।
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Wednesday, May 29, 2019

यह बात मीडिया आपको नहीं बताएगी, पर जानना अत्यंत आवश्यक है

29 मई 2019
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🚩श्रीलंका में एक स्थान है करुनेगला ! यहाँ पर एक काफी पुराना और प्रतिष्ठित अस्पताल है, "करुनेगला टेक्निकल हॉस्पिटल" । पूरे शहर में यह इकलौता अस्पताल है तो यहां इलाज करानेवालों की संख्या भी अधिक है । चूंकि करुनेगला, सिंहली और तमिल हिन्दू बाहुल्य शहर है तो ज्यादातर मरीज भी इन्हीं समुदायों के होते हैं । कुछ परिवार मुस्लिम भी हैं। चूंकि अस्पताल प्रतिष्ठित है, स्पेशलिस्ट डाक्टर भी इस अस्पताल में अधिक हैं तो दूर-दूर से भी मरीज़ आते हैं !

🚩इसी अस्पताल के स्त्री रोग विभाग के अध्यक्ष अस्वाभाविक रूप से डाक्टर मोहम्मद सीगु सियाब्दीन सोफी हैं जोकि एक गाइनकॉलजिस्ट हैं एवं 5 वक्त के नमाज़ी मुसलमान हैं । कुछ दिनों से यह नोटिस किया जा रहा था कि डॉक्टर मोहम्मद सियाब्दीन, मुस्लिम स्त्रियों का नसबंदी ऑपरेशन नहीं करते थे औऱ उन्हें नसबंदी के नुकसान गिनाते थे ! अपनी चेष्टा में वह सफल भी हो जाते थे । अस्वाभाविक रूप से डाक्टर साहब के पास कोलंबों और करुनेगला जैसी जगहों पर 17 प्रॉपर्टी थीं, जिसकी कीमत तकरीबन 400 करोड़ है । खबर यह है कि यह धन उसे सऊदी अरब से प्राप्त होता था । इसी फंड से श्रीलंका को मोमिन बहुल बनाने  का प्रयास उन्होंने किया ।
🚩आइये जानते हैं कि क्या थे वे प्रयास ?
करुनेगला के उसी अस्पताल में एक सिंहली गर्भवती नर्स को प्रसव का दर्द हुआ तो डॉक्टर मोहम्मद सियाब्दीन के पास पहुँची । डाक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी । नर्स को तुरन्त एनस्थीसिया दिया गया तथा ऑपरेशन किया गया । जब होश आया तो पता चला कि भ्रूण जीवित नहीं पाया गया । कुछ दिन बाद नर्स अस्पताल से छुट्टी पाकर घर आयी तो उसे अपने शरीर में कुछ अजीब समस्याओं से दो-चार होना पड़ा ! अल्ट्रासाउंड हुआ तो पता चला कि नर्स का यूटेरस (बच्चेदानी) निकाला जा चुका है । डाक्टर मोहम्मद सियाब्दीन से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि नर्स की बच्चेदानी, डाक्टर सियाब्दीन ने बगैर किसी को संज्ञान में लिए चुपके से निकाल दी है । आप खुद समझ सकते हैं कि गर्भस्थ भ्रूण का क्या किया गया होगा?
🚩जब यह खबर स्थानीय अखबार में छपी और चैनलों में चली तो श्रीलंका में तूफान सा आ गया क्योंकि सैकड़ों महिलाओं ने इसी अस्पताल में डॉक्टर मोहम्मद सियाब्दीन से गर्भ संबंधी इलाज कराया था, वो आक्रोश में आकर अस्पतालों की ओर दौड़ पड़ीं । अस्पतालों में इन सिंहली और हिन्दू महिलाओं को चेक किया गया तो पता चला कि डाक्टर मोहम्मद सियाब्दीन ने सबकी आपराधिक रूप से बगैर जानकारी दिए प्रसव के दौरान नसबंदी कर दी थी ! कड़ी पूछताछ में डाक्टर सियाब्दीन ने बताया कि पिछले 15-20 सालों में उसने ऐसे लगभग 4000 ऑपरेशन किये हैं, जिसमें नसबंदी करके सिंहली और हिन्दू औरतों को बांझ बनाया गया था ! इस डाक्टर के कम्प्यूटर और लैपटॉप से भी काफी डेटा बरामद हुआ है।
           
🚩अब चीजें खुल कर बाहर आ रही हैं । डाक्टर मोहम्मद सीगु सियाब्दीन साफी आतंकी संगठन 'तौहीद जमात' से जुड़ा है । यह इस्लामिक संगठन ISIS से सीधे जुड़ा है और श्रीलंका में अभी चर्चों और होटल में हुए बम विस्फोटों में 400 लोगों की हत्या के लिए ज़िम्मेदार है ! पिछले 20 वर्षों में हज़ारों सिंहली और हिन्दू औरतों को नसबंदी और यूटेरस निकाल कर बांझ बनाना यह आज तक का सबसे घिनौना अपराध इसलिए भी है क्योंकि डाक्टर मोहम्मद सियाब्दीन ने उन हज़ारों बच्चों की हत्या कर दी,जो पैदा होने वाले थे । इस डॉक्टर ने परिवारों की पीढ़ियां की पीढ़ियां खत्म कर दीं । जिसका प्रभाव अनंतकाल तक चलता रहेगा ।
🚩यह जिहाद अमेरिका में WTC पर हमला कर 3000 लोगों को मारने से भी हज़ार गुना बड़ा है ! फ्रांस में एक जेहादी द्वारा ट्रक से कुचल कर 90 लोगों को मार देने जैसा अपराध तो इसके सामने कुछ भी नहीं। इस अपराध के आगे मुझे सारे अपराध बौने लगे क्योंकि मरीज़ डाक्टर को भगवान मानता है, वही डाक्टर उसकी संतानों और आगे आने वाली पीढ़ियों की प्रत्याशा खत्म कर दे, वो भी सिर्फ इसलिए कि काफिर को जीने का हक नहीं इसलिए उनमें भ्रूण बनने की संभावना को नसबंदी और बच्चेदानी निकाल कर समाप्त कर दिया जाए । जानकारियां और भी आ रही हैं मगर इस विषय पर लिखने में कलम अपना हौसला तोड़ रही है। साभार : पवन सक्सेना जी
🚩इस लेख से हिंदुओं को सावधान होने की आवश्यकता है, आपके आसपास ऐसे डॉक्टर हों या कोई लव जिहाद के कार्य कर रहे हों तो हमे सावधान रहना चाहिए अन्यथा आगे चलकर हिन्दू ही हिंदू के पतन का कारण बनेंगे ।
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Tuesday, May 28, 2019

रणनीति बनाकर ईसाई मिशनरियां कार्य कर रही हैं, देशवासियों संभल जाओ

27 मई 2019
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🚩यह लेख डॉ विवेक आर्य ने अपने जीवन के पिछले 15 वर्षों के अनुभव के आधार पर लिखा है। दक्षिण, मध्य और उत्तर भारत में रहते हुए उन्होंने पर्याप्त समय ईसाई समाज के विभिन्न सदस्यों के साथ संवाद किया। यह लेख उसी अनुभव के आधार पर आधारित है। यह लेख पढ़ने में आपको भले 15 मिनिट लगेंगे पर सच्चाई जानना बहुत जरूरी है।
🚩ईसाई समाज शिक्षित समाज रहा है। इसलिए वह कोई भी कार्य रणनीति के बिना नहीं करता। बड़ी सोच एवं अनुभव के आधार पर ईसाईयों ने अपनी प्रचार नीति अपनाई है।
🚩ईसाईयों के धर्मान्तरण करने की प्रक्रिया तीन चरणों में होती हैं।
प्रथम चरण Inculturation अर्थात संस्कृतीकरण
दूसरा चरण expansion अर्थात विस्तार
तृतीय चरण domination अर्थात प्रभुत्व

🚩अंग्रेजी भाषा का एक शब्द है Inculturation अर्थात संस्कृतीकरण। इस शब्द का प्रयोग ईसाई समाज में अनेक शताब्दियों से होता आया है। सदियों पहले ईसाई पादरियों ने ईसाइयत को बढ़ावा देने के लिए "संस्कृतीकरण" रूपी योजना का प्रयोग करना आरम्भ किया था। इसे हम साधारण भाषा में समझने का प्रयास करते है।
🚩1. प्रथम चरण में एक बाग में पहले एक बरगद का छोटा पौधा लगाया जाता है। वह अपने अस्तित्व के संघर्ष करता हुआ किसी प्रकार से अपनी रक्षा कर वृद्धि करने का प्रयास करता है। उस समय वह छोटा होने के कारण अन्य पौधों के मध्य अलग थलग सा नहीं दीखता।
🚩2. अगले चरण में वह पौधा एक छोटा वृक्ष बन जाता है। अब वह न केवल अन्य पौधों से अधिक मजबूत दिखता है अपितु अपने हक से अपना स्थान घेरने की क्षमता भी अर्जित कर लेता है । अन्य पौधों से खाद,सूर्य का प्रकाश, पानी और स्थान का संघर्ष करते हुए वह उन पर विजय पाने की चेष्टा करता हुआ प्रतीत होता है।
🚩3. अंतिम चरण में वह एक विशाल वृक्ष बन जाता है। उसकी छांव के नीचे आने वाले सभी पौधे संसाधनों की कमी के चलते या तो उभर नहीं पाते अथवा मृत हो जाते हैं। उसका एक छत्र राज कायम हो जाता हैं। अब वह उस बाग़ का बेताज बादशाह होता है।
ईसाई समाज में धर्मान्तरण भी इन्हीं तीन चरणों में होता है।
🚩पहले चरण संस्कृतिकरण में एक गैर ईसाई देश में ईसाईयत के वृक्ष का बीजारोपण किया जाता है। ईसाई मत की मान्यताएं, प्रतीक, सिद्धांत, पूजा विधि आदि को छुपा कर उसके स्थान पर स्थानीय धर्म की मान्यताओं को ग्रहण कर उनके जैसा स्वरुप धारण किया जाता है। जैसे भारत के उदहारण से इसे समझने का प्रयास करते हैं ।
🚩1. वेशभूषा परिवर्तन- ईसाई पादरी पंजाब क्षेत्र में सिख वेश पगड़ी बांध कर, गले में क्रोस लटका कर प्रचार करते हैं । हिंदी भाषी क्षेत्र में हिन्दू साधु का रूप धारण कर, गले में रुदाक्ष माला में क्रोस डालकर प्रचार करते हैं । दक्षिण भाषी क्षेत्र में दक्षिण भारत जैसे परिधान पहनकर प्रचार करते हैं ।
🚩2. प्रार्थना के स्वरुप में परिवर्तन- पहले ॐ नम क्रिस्टाय नम। ॐ नम माता मरियमय नम। जैसे मनगढ़ंत मन्त्रों का अविष्कार किया जाता है। फिर प्रार्थना गीत आदि लिखे जाते है जिनमें संस्कृत, हिंदी अथवा स्थानीय भाषा का उपयोग कर ईसा मसीह की स्तुति की जाती हैं। जिससे गाने पर यह केवल एक धार्मिक विधि लगे।
🚩3. त्यौहार विधि में परिवर्तन- स्थानीय त्योहार के समान ईसाई त्योहारों जैसे गुड फ्राइडे, क्रिसमस आदि का स्वरुप बदल दिया जाता है। जिसे वह स्थानीय त्योहारों के समान दिखे। कोई गैर ईसाई इन त्योहारों में शामिल हो तो उसे अपनापन लगे।
🚩4. चर्च की संरचना में परिवर्तन- पंजाब में अगर चर्च बनाया जाता है गुरुद्वारा जैसा दिखे, हिंदी भाषी क्षेत्र में किसी हिन्दू मंदिर के समान दिखे, दक्षिण भारत में किसी दक्षिण भारतीय शैली जैसा दिखे। चर्च के बाहरी रूप को देखकर हर कोई यह समझे की यह कोई स्थानीय मंदिर है। ऐसा प्रयास किया जाता है।
🚩5. साहित्य निर्माण- क्रिस्चियन योग, ईसाई ध्यान पद्यति, ईसाई पूजा विधि, ईसाई संस्कार आदि साहित्य के शीर्षकों को प्रथम चरण में प्रकाशित करता हैं। यह स्थानीय मान्यताओं के साथ अपने आपको मिलाने का प्रयास होता है। अगले चरण में चर्च स्थानीय भाषा में दया, करुणा,एकता, समानता, ईसा मसीह के चमत्कार, प्रार्थना का फल, दीन दुखियों की सेवा करने वाला साहित्य प्रकाशित करता हैं। इस चरण का प्रयास अपनी मान्यताओं को पिछले दरवाजे से स्वीकृत करवाना होता है। यीशु मसीह को किसी हिन्दू देवता एवं मरियम को किसी हिन्दू देवी के रूप में चित्रित करना चर्च के लिए आम बात है। भोले भाले लोगों को भ्रमित करने की यह कला चर्च के संचालकों से अच्छा कोई नहीं जानता।
🚩इस चरण में गैर ईसाई क्षेत्रों में पादरियों की बकायदा मासिक वेतन देकर नियुक्ति होती है। उनका काम दिन-दुखियों की सेवा करना, बीमारों के लिए प्रार्थना करना, चंगाई सभा करना, रविवार को प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए स्थानीय लोगों को प्रेरित करना होता हैं। इस समय बेहद मीठी भाषा में ईसा मसीह के लिए भेड़ों को एकत्र करना एकमात्र लक्ष्य होता है। यह कार्य स्थानीय लोगों के माध्यम घुलमिलकर किया जाता है। जिससे किसी को आपके पर शक न हो। जितने अधिक धर्म परिवर्तन का लक्ष्य पूर्ण होता है उतना अधिक अनुदान ऊपर से मिलता है। यह कार्य शांतिपूर्वक, चुपचाप, बिना शोर मचाये किया जाता हैं। इस प्रकार से प्रथम चरण में स्थानीय संस्कृति के समान अपने को ढालना होता है। इसीलिए इसे संस्कृतिकरण कहते है। हमारे देश में दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, जम्मू कश्मीर, बंगाल आदि राज्य इस चरण के अंतर्गत आते हैं। जहाँ पर चर्च बिना शोर मचाये गरीब बस्तियों में विशेष रूप से दलितों को प्रलोभन आदि देकर उनका धर्म परिवर्तन करने में लगा हुआ है।
🚩द्वितीय चरण में विस्तार होता है। छोटा चर्च अब एक बड़ा बन जाता है। उसका विस्तार हो जाता है। अब वह छुप-छुप कर नहीं अपितु आत्म विश्वास से अपनी उपस्थिती दर्ज करवाता है।
🚩1. स्थानीय सभा के स्वरुप में परिवर्तन- अब वह हर रविवार को आम सभा में लाउड स्पीकर लगाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है। अनेक लोग सालाना ईसाई बनने लगते है। अब उसके पादरी ईसाई मत की क्यों श्रेष्ठ है और पगान स्थानीय देवी देवता क्यों असफल हैं। ऐसी बातें चर्च की दीवारों के भीतर खुलेआम बिना रूकावट के बोलने लगते है। न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता है। अपितु वह धीरे धीरे आक्रामक भी होने लगते है। कुछ अंतराल में बड़ी बड़ी चंगाई सभाओं का आयोजन चर्च करता है। पूरे शहर में पोस्टर लगाए जाते है। स्थानीय टीवी पर उसका विज्ञापन दिया जाता है। दूर दूर से ईसाईयों को बुलाया जाता है। विदेशी मिशनरी भी अनेक बार अपनी गोरी चमड़ी का प्रभाव दिखाने के लिए आते है।
🚩2. चर्च के साथ मिशनरी स्कूल/कॉलेज का खुलना- अब चर्च के साथ ईसाई मिशनरी स्कूल खुल जाता है। उस स्कूल में हिन्दुओं के बच्चे मोटी मोटी फीस देकर अंग्रेज बनने आते हैं। उन बच्चों को रोज अंग्रेजी में बाइबिल की प्रार्थना करवाई जाती है। ईसा मसीह के चमत्कार की कहानियां सुनाई जाती हैं। देश में ईसाई समाज की गतिविधियों के लिए दान कहकर धन एकत्र किया जाता है। जो हिन्दू बच्चा सबसे अधिक धन अपने माँ-बाप से खोस कर लाता है। उसे प्रेरित किया जाता है। जो नहीं लाता उसे नजरअंदाज अथवा तिरस्कृत किया जाता हैं। कुल मिलाकर इन ईसाई कान्वेंट स्कूल से निकले बच्चे या तो नास्तिक अथवा ईसाई अथवा हिन्दू धर्म की मान्यताओं से घृणा करने वाले अवश्य बन जाते हैं। इसे आप का जूता आप ही के सर बोले तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
🚩3. बिज़नेस मॉडल- चर्च अब धर्म परिवर्तित हिन्दुओं को अपने यहाँ रोजगार देने लगता है। चर्च शिक्षा, स्वास्थ्य,अनाथालय, NGO आदि के नाम पर विभिन्न उपक्रम आरम्भ करता है। चपरासी, वाहन चालक से लेकर अध्यापक, नर्स से लेकर अस्पताल कर्मचारी, प्रचारक से लेकर पादरी की नौकरियों में उनकी नियुक्ति होती हैं। कुल मिलाकर यह एक बिज़नेस मॉडल के जैसा खेल होता हैं। धर्म परिवर्तित व्यक्ति को इस प्रकार से चर्च पर निर्भर कर दिया जाता है कि अब उसे न चाहते हुए भी चर्च की नौकरी करनी पड़ती हैं। अन्यथा वह भूखे मरेगा। जिससे धर्म परिवर्तित वापिस जाने का न सोचे। यह मॉडल विश्व में अनेक स्थानों पर आजमाया जा चूका हैं।
🚩4. बाइबिल कॉलेज- चर्च अपने यहाँ पर धर्म परिवर्तित ईसाईयों के बच्चों को चर्च द्वारा स्थापित Theology अर्थात धार्मिक शिक्षा देने वाले विद्यालयों में भर्ती करवाने के लिए प्रेरित करता हैं। इस उद्देश्य दूसरी पीढ़ी को अपने पूर्वजों की जड़ों से पूरी प्रकार से अलग करना होता हैं। इन विद्यालयों में वे बच्चे पढ़ने जाते है जिनके माता-पिता में हिन्दू धर्म के संस्कार होते है। उनके बच्चें एक सच्चे ईसाई के समान सोचे और वर्ते। हिन्दू देवी-देवताओं और मान्यताओं पर कठोर प्रहार करे और ईसाई मत का सदा गुणगान करे। ऐसा उनकी मानसिक अवस्था को तैयार किया जाता है। इन Theology कॉलेजों से निकले बच्चे ईसाइयत का प्रचाररात-दिन करते हैं।
🚩5. पारिवारिक कलह - ईसाई चर्च इस कला में माहिर है। जिस परिवार का कोई सदस्य ईसाई बन जाता है तथा अन्य सदस्य हिन्दू बने रहते है। वह घर झगड़ों का घर बन जाता हैं। शुरू में वह ईसाई सदस्य सभी सदस्यों को ईसाई बनने का दबाव बनता हैं। घर के कार्यों में सहयोग न करना। हिन्दू त्योहारों को बनाने का विरोध करना। हिन्दू देवी देवताओं की निंदा करना। अपनी क्षमता से अधिक दान चर्च को देना। अपनी पत्नी और बच्चों को ईसाई न बनने पर संसाधनों से वंचित करना। अपने माँ-बाप को ईसाई न बनने के विरोध में सुख सुविधा जैसे भोजन,कपड़े,चिकित्सा सुविधा आदि न देना। यह कुछ उदहारण है। अपना एक अनुभव साँझा कर रहा हूँ। बात 2003 की है। मैं कोयम्बटूर तमिल नाडु में MBBS का छात्र था। मेरे समक्ष एक परिवार जो ईसाईयों के पेंटाकोस्टल सम्प्रदाय से था। अपने मरीज का ईलाज करवाने आया। इस ईसाई सम्प्रदाय में दवा के स्थान पर रोगी का ईसा मसीह की प्रार्थना से चंगा होने को अधिक मान्यता दी जाती है। उस परिवार का मुखिया अन्य सदस्यों के न चाहते हुए भी अस्पताल से एक गंभीर रोगी की छुट्टी करवाकर चंगाई प्रार्थना करवाने के लिए चर्च ले गया। रोगी का क्या हुआ होगा सभी समझ सकते है। जो ईसाई यह लेख पढ़ रहे है। वे कृपया आत्मचिंतन करे क्या परिवारों को उजाड़ना यीशु मसीह का कार्य है?
🚩इस दूसरे चरण में तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखण्ड, पंजाब आदि राज्य आते है। इन राज्यों में सरकारें चर्च की गतिविधियों की अनदेखी करती है। क्यूंकि वह चर्च के कार्यों में फालतू हस्तक्षेप करने से बचती है। सरकार की नाक के नीचे यह सब होता है मगर वह कुम्भकर्णी नींद में सोती रहती हैं।
🚩तीसरे चरण में चर्च एक विशाल बरगद बन जाता है। इस चरण को "प्रभुत्व" का चरण कहते है। इस चरण में ईसाई मत का गैर ईसाईयों के प्रति वास्तविक सोच के दर्शन होते है। चर्च के लिए इस चरण में जायज और नाजायज के मध्य कोई अंतर नहीं रहता। वह उसका साम-दाम दंड भेद से अपने उद्देश्य को लागु करने के लिए किसी भी हद तक जाता है।
🚩1. हिंसा का प्रयोग -हिंसा पूर्व में उड़ीसा में ईसाई धर्म परिवर्तन का विरोध करने वाले स्वामी लक्ष्मणानंद जी की हत्या करना भी इसी नीति के अंदर आता हैं। उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा में रियांग जनजाति बस्ती थी। उस जनजाति ने ईसाई बनने से इंकार कर दिया। उनके गावों पर आतंकवादियों द्वारा हमला किया गया। उन्हें हर प्रकार से आतंकित किया गया। ताकि वह ईसाई बन जाये। मगर रियांग स्वाभिमानी थे। वे अपने पूर्वजों की धरती छोड़कर आसाम में आकर अप्रवासी के समान रहने लगे। मगर धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया। खेद है कि कोई भी मानवाधिकार संगठन ईसाईयों के इस अत्याचार की सार्वजानिक मंच से कभी निंदा नहीं करता।
🚩2. सरकार पर दबाव- अपने संख्या बढ़ने पर ईसाई समाज एकमुश्त वोट बैंक बन जाता है। चुनाव के दौर में राजनीतिक पार्टियों के नेता ईसाई बिशप के चक्कर लगाते है। बहुत कम लोग यह जानते है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने तो मिजोरम में भारतीय संविधान के स्थान पर बाइबिल के अनुसार राज्य चलाने की सहमति प्रदान की थी। पंजाब जैसे राज्य में सरकार द्वारा धर्म परिवर्तित ईसाईयों के लिए सरकारी नौकरियों में एक प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। मदर टेरेसा दलित ईसाइयों के आरक्षण के समर्थन में दिल्ली पर धरने में बैठ चुकी है। (कमाल है धर्म परिवर्तन करने के पश्चात भी दलित दलित ही रहते हैं। ) केरल और उत्तर पूर्व में राजनीतिक पार्टियों के टिकट वितरण में ईसाई बहुल इलाकों में चर्च की भूमिका सार्वजानिक हैं। गोवा जैसे राज्य में कैथोलिक चर्च के समक्ष बीजेपी जैसी पार्टियां भी बीफ जैसे मुद्दों पर चुप्पी धारण कर लेती हैं। तमिलनाडु में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा पहले धर्म परिवर्तन के विरोध में कानून बनाने फिर ईसाई चर्च के दबाव में हटाने की कहानी अभी ज्यादा दिन पुरानी बात नहीं हैं। नियोगी कमेटी द्वारा प्रलोभन देकर जनजातियों और आदिवासियों को ईसाई बनाने के विरोध में सरकार को जागरूक करने का कार्य किया गया था। उस रिपोर्ट पर सभी सरकारें बिना किसी कार्यवाही के चुप रहना अधिक श्रेयकर समझती हैं। मोरारजी देसाई के कार्यकाल में धर्म परिवर्तन के विरोध में विधेयक पेश होना था। उस विधेयक के विरोध में मदर टेरेसा ने हमारे देश के प्रधानमंत्री को यह धमकी दी कि अगर ईसाई संस्थाओं पर प्रतिबन्ध लगाया गया, तो वे अपने सभी सेवा कार्य स्थगित कर देंगे। इस पर देसाई जी ने प्रतिउत्तर दिया कि इसका अर्थ तो यह हुआ कि ईसाई समाज सेवा की आड़ में धर्मान्तरण करने का अधिक इच्छुक है। सेवा तो केवल एक बहाना मात्र है। खेद है कि मोरारजी जी की सरकार जल्दी ही गिर गई और यह विधेयक पास नहीं हुआ। इस प्रकार से ईसाई चर्च अनेक प्रकार से सरकार पर दबाव बनाता है।
🚩3. गैर ईसाईयों के घरों में प्रभुत्व के लिए संघर्ष- ईसाई समाज से सम्बंधित नौजवान लड़के-लड़कियों को ईसाइयत के प्रति समर्पण भाव बचपन से सिखाया जाता हैं। पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होने के कारण उनका आपस में वार्तालाप चर्च के परिसर में, युथ प्रोग्राम में, बाइबिल की कक्षाओं में, गर्मियों के कैंप में, गिटार/संगीत सिखाने की कक्षाओं में आरम्भ हो जाता हैं। इस कारण से अनेक युवक युवती आपस में विवाह भी बहुधा कर लेते है। इसके साथ साथ वे अपने कॉलेज में पढ़ने वाले गैर हिन्दू युवक-युवतीयों से भी विवाह कर लेते हैं। इस अंतर धार्मिक विवाह को कुछ लोग सेक्युलर सामाज का अभिनव प्रयोग चाहे कहना चाहे। मगर इस सम्बन्ध का एक अन्य पहलू भी है। वह है प्रभुत्व। ईसाई युवती अगर किसी हिन्दू युवक से विवाह करती है तो वह ईसाई रीति-रिवाजों, चर्च जाने, बाइबिल आदि पढ़ने का कभी त्याग नहीं करती। उस विवाह से उत्पन्न हुई संतान को भी वह यही संस्कार देने का पूरा प्रयत्न करती है। वही अगर ईसाई युवक किसी हिन्दू लड़की से विवाह करता है, तो वह अपनी धार्मिक मान्यताओं को उस पर लागु करने के लिए पूरा जोर लगाता है। जबकि गैर ईसाई युवक- युवतियां अपनी धार्मिक मान्यताओं को लेकर न इतने प्रबल होते और न ही कट्टर होते है। इस प्रभुत्व की लड़ाई में गैर ईसाई सदस्य बहुधा आत्मसमर्पण कर देते हैं। अन्यथा उनका घर कुरुक्षेत्र न बन जाये। धीरे धीरे वे खुद ही ईसाई बनने की ओर चल पड़ते है। ईसाई समाज के लड़के-लड़कियां हिन्दू समाज के प्रबुद्ध वर्ग जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत युवक-युवतियों से ऐसा सम्बन्ध अधिकतर बनाते हैं। इस प्रक्रिया के दूरगामी परिणाम पर बहुत कम लोगों की दृष्टि जाती हैं। कम शब्दों में हिन्दू समाज की आर्थिक, सामाजिक, नैतिक प्रतिरोधक क्षमता धीरे धीरे उसी के विरुद्ध कार्य करने लगती हैं। पाठक स्वयं विचार करें। यह कितना चिंतनीय विषय है।
🚩4. व्यापार नीति- बहुत कम लोग जानते हैं कि संसार के प्रमुख ईसाई देशों के चर्च व्यापार में भारी भरकम धन का निवेश करते हैं । चर्च ऑफ़ इंग्लैंड ने बहुत बड़ी धनराशि इंग्लैंड की बहुराष्ट्रीय कंपनियों में लगाई हुई है। यह विशुद्ध व्यापार है । यह एक प्रकार का चर्च और व्यापारियों का गठजोड़ है। इन कंपनियों से हुए लाभ को चर्च धर्मान्तरण के कार्यों में व्यय करता है। जबकि व्यापारी वर्ग के लिए चर्च धर्मान्तरित नये उपभोक्ता तैयार करता है। एक उदहारण लीजिये चर्च के प्रभाव से एक हिन्दू धोती-कुर्ता छोड़कर पैंट-शर्ट-कोट-टाई पहनने लगता है। व्यापारी कंपनी यह सब उत्पाद बनाती है। चर्च नये उपभोक्ता तैयार करता है। उसे बेचकर मिले लाभ को दोनों मिलकर प्रयोग करते हैं। यह प्रयोग अनेक शताब्दियों से संसार के अनेक देशों में होता आया हैं। प्रभुत्व के इस चरण में अनेक छोटे देशों की आर्थिक व्यवस्था प्रत्यक्ष रूप में इस प्रकार से बहुराष्ट्रीय कंपनियों और परोक्ष रूप से चर्च के हाथों में आ चुकी हैं। यह प्रक्रिया हमारे देश में भी शुरू हो चुकी हैं। इसका एकमात्र समाधान स्वदेशी उत्पादों का अधिक से अधिक प्रयोग हैं ।
🚩5. सांस्कृतिक अतिक्रमण- विस्तार चरण में चर्च सांस्कृतिक अतिक्रमण करने से भी पीछे नहीं हटता। वह उस देश की सभी प्राचीन संस्कृतियों को समूल से नष्ट करने का संकल्प लेकर यह कार्य करता है। आपको कुछ उदहारण देकर समझाते हैं। केरल में कथकली नृत्य के माध्यम से रामायण के प्रसंगों का नाटक रूपी नृत्य किया जाता था । ईसाई चर्च ने कथकली को अपना लिया मगर रामायण के स्थान पर ईसा मसीह के जीवन को प्रदर्शित किया जाने लगा । तमिलनाडु में भरतनाट्यम नृत्य के माध्यम से नटराज/ शिव की पूजा करने का प्रचलन है । चर्च ने भरतनाट्यम के माध्यम से माता मरियम को सम्मान देना आरम्भ कर दिया । हिन्दू त्यौहारों जैसे होली, दीवाली को प्रदुषण बताया और 14 फरवरी जैसे फूहड़ दिन को प्रेम का प्रतीक बताकर मानसिक प्रदुषण फैलाया । हर ईसाई स्कूल में 25 दिसंबर को सांता के लाल कपड़े पहन कर केक काटा जाने लगा। देखा देखी सभी हिन्दुओं द्वारा संचालित विद्यालय भी ऐसा ही करने लगे । किसी ने ध्यान नहीं दिया कि वे लोग किसका अँधा अनुसरण कर रहे हैं । इसे ही तो सांस्कृतिक अतिक्रमण कहते हैं ।
🚩तृतीय चरण में हमारे देश के केरल, उत्तर पूर्वी राज्य नागालैंड, गोवा आदि आते है। जहाँ की सरकार तक ईसाई चर्च की कृपा के बिना नहीं चल सकती। हिन्दुओं की इन राज्यों में कैसी दुर्गति है। समीप जाकर देखने से ही आपको मालूम चलेगा। अगर तीसरा प्रभुत्व का चरण भारत के अन्य राज्यों में भी आरम्भ हो गया तो भविष्य में क्या होगा? यह प्रश्न पाठकों के लिए है। हिन्दू समाज को अपनी रक्षा एवं बिछुड़ चुके अपने भाइयों को वापिस लाने के लिए दूरगामी वृहद् नीति बनाने की अत्यंत आवश्यकता है। अन्यथा बहुत देर न हो जाये!
🚩आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी की सरकार बनने जा रही है। जगन रेड्डी के पिता अपने कार्यकाल में आँध्रप्रदेश में ईसाई मिशनरियों के कार्य को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्द थे। ऐसे में जगन रेड्डी की सरकार के कार्यकाल में आँध्रप्रदेश में ईसाइयत के प्रचार को बढ़ावा मिलना हिन्दू समाज के लिए खतरे की घंटी हैं। विदेशी धन,संसाधन और एक सुनियोजित रणनीति के बल पर आंध्र में ईसाई धर्मप्रचार को रोकने के लिए हिन्दू समाज को व्यापक रणनीति बनानी चाहिए। - डॉ विवेक आर्य
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