Saturday, September 30, 2023

पत्थरबाजी सोची-समझी जिहादी रणनीति, मुस्लिमों द्वारा गणेश उत्सव पर देशभर में पत्थर बाजी

 30 September, 2023


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🚩पहले गुड़ी पड़वा फिर रामनवमी , हनुमान जयंती और अब... गणेशोत्सव पर देशभर में कई जगहों पर इस्लामी कट्टर पंथियों ने जमकर पत्थर बाजी की !


🚩गज़वा-ए-हिंद को साकार करने के लिए कट्टरपंथी जेहादियों द्वारा, हिन्दुओं और हिन्दू त्यौहार के खिलाफ़ हिंसा की वारदातें दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही हैं !


🚩आज समय की मांग है कि सभी सनातनियों को आपस में मिल-जुलकर एकजुट होकर आगे आना ही होगा !


🚩पत्थरबाजी एक बहुत सोची-समझी जिहादी रणनीति है। एक खास तरह के पत्थरों को इकट्ठा करना, उन्हें फेंकने का प्रशिक्षण देना, उसका नियंत्रित इस्तेमाल करना, यह सब संगबाजी जिहाद का हिस्सा हैं। बिना पूर्व योजना के संगबाजी हो ही नहीं सकती। संगबाजी का सबसे बड़ा फायदा है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह सुरक्षाबलों की बंदूकों को निष्क्रिय कर देती है। अगर सुरक्षाबल गोली से जवाब दें, तो यह उनके दुष्प्रचार और मुसलमानों के एकत्रीकरण के लिए बहुत लाभदायक होता है। संगबाजी के कई स्वरूप होते हैं। पहला, जो कश्मीर में देखने को मिला। दूसरा, जो रामनवमी शोभायात्राओं में दिखा और तीसरा, जो हाल के

गणेश उत्सव में देखने को मिला।


 🚩गणेश उत्सव पर देशभर में अनेक जगह पर पत्थर बाजी


🚩मध्य प्रदेश के धार जिले के कुक्षी में गुरुवार रात को अनंत चतुर्दशी के मौके पर निकाले जा रहे श्री गणेशजी की यात्रा पर इस्लामी कत्थरपंथियो ने जमाकर पथराव किया गया।


🚩राजस्थान के नागौर जिले के खींवसर के बस स्टैंड के पास तालाब में गुरुवार देर शाम गणपति जी का विसर्जन किया जा रहा था, ऐसे में बड़ी संख्या में महिलाएं-पुरुष और बच्चे नाचते गाते तालाब की ओर बढ़ रहे थे। तभी कट्टरपंथियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी।


🚩झारखंड के कतरास शहर में गणेश पूजा की धूम के दौरान रानी बाजार गणेश पूजा समिति के द्वारा गणेश प्रतिमा के विसर्जन के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगो ने पत्थरबाजी की । जिसमें पांच लोग घायल हो गए। थाना पहुंच कर पुलिस से शिकायत की है। शिकायत के आधार पर पुलिस ने मामले की छानबीन शुरु कर दी है।


🚩गुजरात के वडोदरा में गणेश यात्रा के दौरान हिंसा हुई है। वहां सोमवार रात जिस वक्त गणेश यात्रा एक निकल रही थी उसपर मुसलमान के कुछ लोगो ने पत्थरबाजी किया। पुलिस ने मामले में 13 लोगों को हिरासत में लिया है।


🚩गुजरात के नर्मदा जिले में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो गया है। यहां लांबा इलाके में बजरंग दल की शौर्य यात्रा पर जमकर पत्थरबाजी और आगजनी की गई। पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागकर भीड़ को मौके से हटा दिया है। बड़ी संख्या में पुलिसफोर्स की तैनाती की गई है।


🚩विशेश्वरगंज(बहराइच)। बारावफात जुलूस की तैयारियों के दौरान विशेश्वरगंज थाना क्षेत्र में मंगलवार को उस समय तनाव फैल गया जब समुदाय विशेष के युवकों ने दूसरे समुदाय के लोगों के मकानों पर हरा झंडा लगा दिया। जब विरोध हुआ तो मुस्लिम समुदाय के युवकों ने लगभग 200 की संख्या में पहुंचकर झंडा उतारने वाले लोगों पर हमला कर दिया।


🚩इस दौरान मुस्लिम जिहादियों ने जमकर पत्थरबाजी की जिसमें एक किशोर अनुराग पुत्र शिवकुमार जायसवाल घायल हो गया। पुलिस ने 14 नामजद व 10 अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। एसपी ने बताया कि चार लोगों को गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है। गंगवल बाजार क्षेत्र में पुलिस बल तैनात किया गया है।


🚩पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर गुरुवार (28 सितंबर 2023) को निकले बारावफात जुलूस में कई जगहों पर उपद्रव देखने को मिला। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जुलूस में शामिल लोगों ने पत्थरबाजी की। सुल्तानपुर में तिरंगे के अपमान का मामला सामने आया है। बदायूं में का एक वीडियो वायरल है, जहाँ मुस्लिम भीड़ ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाती दिख रही है।


🚩कुशीनगर में पत्थरबाजी


🚩कुशीनगर में बारावफात जुलूस के दौरान पत्थरबाजी हुई। नवीन सब्जी मंडी के नौका टोला से बारावफात का जुलूस नगर भ्रमण के लिए निकला। इसमें एक ट्राली पर नाबालिग हाथ में तख्ती लिए था, जिस पर लिखा हुआ था- 15 मिनट याद आया। उसी ट्राली पर हैदराबाद के विवादित मुस्लिम नेता अकबरूद्दीन ओवैसी की हेट स्पीच का ऑडियो भी बज रहा था।


🚩ये जुलूस वापस जब गोला बाजार पहुँचा तो ओवैसी के ऑडियो पर हिंदू युवकों ने आपत्ति की, इसके बाद जुलूस में शामिल मुस्लिम युवकों ने राम जानकी मंदिर के पास पथराव किया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो वायरल हो गया, जिसके बाद पूरे इलाके में तनाव फैल गया। भारी पुलिस बल और पीएसी की तैनाती करनी पड़ी।


🚩पथराव में राम जानकी नगर की मुस्कान और रितेश घायल हो गए। इस मामले में पुलिस ने पथराव करने वाले 37 ज्ञात और कुछ अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर 6 आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया है।


🚩सबसे बड़ा सवाल


🚩अब सबसे बड़ा सवाल यह उत्पन्न होता है कि हिंदू त्यौहार की यात्रा पर हिंसा से लाभ किसको मिलता है। इसके उत्तर के लिए हमें गजवा-ए-हिंद के इस्लामिक सिद्धांत पर गौर करना होगा। सभी भारतीय मुसलमान इस सिद्धांत से मजहबी रूप से बंधे हुए हैं। इसकी निंदा या इसके बहिष्कार की सजा शरियत के मुताबिक मौत है। गजवा-ए-हिंद इस्लामिक कट्टरपंथ और ध्रुवीकरण के बिना संभव नहीं है। दारुल हरब से दारुल इस्लाम की यात्रा ध्रुवीकरण के बिना संभव नहीं है। इसके लिए हिंदुओं के खिलाफ समय-समय पर हिंसा अत्यंत आवश्यक है। भारत में मुसलमानों में यह डर हमेशा रहा है कि उनके मजहब के लोग कहीं अतीत की रास्ते पर न चल पड़ें। कहीं हिंदू वातावरण में दोबारा सम्मिलित न हो जाएं। देवबंद की स्थापना भी इसीलिए हुई थी, क्योंकि 1857 के युद्ध के बाद मौलवियों की यही मान्यता थी कि वह मुगल राज पुन: स्थापित करने में इसलिए नाकामयाब हुए, क्योंकि भारत के मुसलमानों पर हिंदू धर्म का असर काफी बढ़ गया था और एक साझा संस्कृति बनती जा रही थी। अहल-ए-हदीस आंदोलन का भी यही कारण था।


🚩डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने अपनी किताब ‘थॉट्स आन पाकिस्तान’ में लिखा है कि यह कहना बिल्कुल गलत है कि एक गुजराती मुसलमान और एक गुजराती हिंदू या एक कश्मीरी हिंदू और एक कश्मीरी मुसलमान, सांस्कृतिक रूप से एक हैं। उनका कहना है कि यह केवल एक मुसलमान की सोच में अस्थाई समझौता है। उनका मानना है कि किन्हीं कारणों से इस्लामीकरण रुक गया था, जो कभी न कभी पूरा होगा। अगर डॉ. आंबेडकर का विश्लेषण गलत रहा होता, तो बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल एक राज्य होते। बांग्लादेश से हिंदुओं का पलायन नहीं होता और कोलकाता में हिंदू त्यौहार की शोभायात्रा पर बंगाली मुसलमान पत्थरबाजी न करते।


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Friday, September 29, 2023

श्राद्ध करने से क्या-क्या लाभ...न करने से क्या क्या हानि....जानिए:-

29 September, 2023


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🚩श्राद्धकर्म से देवता और पितर तृप्त होते हैं और श्राद्ध करनेवाले का अंतःकरण भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव करता है। बूढ़े-बुजुर्गों ने हमारी उन्नति के लिए बहुत कुछ किया है तो उनकी सद्गति के लिए हम भी कुछ करेंगे तो हमारे हृदय में भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव होगा।


🚩औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया था तब शाहजहाँ ने अपने बेटे को लिख भेजाः “धन्य हैं हिन्दू जो अपने मृतक माता-पिता को भी खीर और हलुए-पूरी से तृप्त करते हैं और तू जिन्दे बाप को भी एक पानी की मटकी तक नहीं दे सकता? तुझसे तो वे हिन्दू अच्छे, जो मृतक माता-पिता की भी सेवा कर लेते हैं।”


🚩गरुड़ पुराण में श्राद्ध महिमा:


🚩कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।

आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।

पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।

देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।

देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।


🚩”समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।(10.57-59)


🚩”सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे निराश होकर दुःखित मन से अपने-अपने लोकों को चले जाते हैं। अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया-तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्हीं पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। उन्हें भूख-प्यास कभी नहीं लगती। इसीलिए विद्वान को प्रयत्नपूर्वक यथाविधि शाकपात से भी अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।


🚩भगवान विष्णु गरूड़ से कहते हैं- जो लोग अपने पितृगण, देवगण, ब्राह्मण तथा अग्नि की पूजा करते हैं, वे सभी प्राणियों की अन्तरात्मा में समाविष्ट मेरी ही पूजा करते हैं। शक्ति के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करके मनुष्य ब्रह्मपर्यंत समस्त चराचर जगत को प्रसन्न कर देता है।


🚩हे आकाशचारिन् गरूड़ ! पिशाच योनि में उत्पन्न हुए पितर मनुष्यों के द्वारा श्राद्ध में पृथ्वी पर जो अन्न बिखेरा जाता है,उससे संतृप्त होते हैं। श्राद्ध में स्नान करने से भीगे हुए वस्त्रों द्वारा जो जल पृथ्वी पर गिरता है, उससे वृक्ष योनि को प्राप्त हुए पितरों की संतुष्टि होती है। उस समय जो गन्ध तथा जल भूमि पर गिरता है, उससे देव योनि को प्राप्त पितरों को सुख प्राप्त होता है। जो पितर अपने कुल से बहिष्कृत हैं, क्रिया के योग्य नहीं हैं, संस्कारहीन और विपन्न हैं, वे सभी श्राद्ध में विकिरान्न और मार्जन के जल का भक्षण करते हैं। श्राद्ध में भोजन करने के बाद आचमन एवं जलपान करने के लिए ब्राह्मणों द्वारा जो जल ग्रहण किया जाता है, उस जल से पितरों को संतृप्ति प्राप्त होती है। जिन्हें पिशाच, कृमि और कीट की योनि मिली है तथा जिन पितरों को मनुष्य योनि प्राप्त हुई है, वे सभी पृथ्वी पर श्राद्ध में दिये गये पिण्डों में प्रयुक्त अन्न की अभिलाषा करते हैं, उसी से उन्हें संतृप्ति प्राप्त होती है।


🚩इस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्यों के द्वारा विधिपूर्वक श्राद्ध किये जाने पर जो शुद्ध या अशुद्ध अन्न, जल फेंका जाता है, उससे उन पितरों की तृप्ति होती है,जिन्होंने अन्य जाति में जाकर जन्म लिया है। जो मनुष्य अन्यायपूर्वक अर्जित किये गये पदार्थों के श्राद्ध करते हैं, उस श्राद्ध से नीच योनियों में जन्म ग्रहण करने वाले चाण्डाल पितरों की तृप्ति होती है।


🚩हे पक्षिन् ! इस संसार में श्राद्ध के निमित्त जो कुछ भी अन्न, धन आदि का दान अपने बन्धु-बान्धवों के द्वारा किया जाता है, वह सब पितरों को प्राप्त होता है। अन्न, जल और शाकपात आदि के द्वारा यथासामर्थ्य जो श्राद्ध किया जाता है, वह सब पितरों की तृप्ति का हेतु है। – गरूड़ पुराण


🚩श्राद्घ नहीं कर सकते हैं तो…


🚩अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें : “हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), अमुक गोत्र (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें। इस निमित्त मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं। गौ माता को चारा खिला देना चाहिए।


🚩श्राद्ध के बारे में संपूर्ण जानकारी 


https://goo.gl/SdZbct


🚩श्राद्ध पक्ष में रोज भगवद्गीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और 1 माला “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा” की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।


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Thursday, September 28, 2023

सावधान: भगत सिंह के नाम पर इस सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है,पूरा लेख अवश्य पढ़ें

28 September, 2023


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🚩'मैं नास्तिक क्यों हूँ? शहीद भगत सिंह की यह छोटी सी पुस्तक वामपंथी, साम्यवादी लाबी द्वारा आजकल नौजवानों में खासी प्रचारित की जा रही है, जिसका उद्देश्य उन्हें भगत सिंह के जैसा महान बनाना नहीं अपितु उनमें नास्तिकता को बढ़ावा देना है। कुछ लोग इसे कन्धा भगत सिंह का और निशाना कोई और भी कह सकते हैं। मेरा एक प्रश्न उनसे यह है की क्या भगत सिंह इसलिए हमारे आदर्श होने चाहिए कि वे नास्तिक थे, अथवा इसलिए कि वे एक प्रखर देशभक्त और अपने सिद्धान्तों से किसी भी कीमत पर समझौता न करने वाले बलिदानी थे? सभी कहेंगे कि इसलिए कि वे देशभक्त थे।


🚩 भगतसिंह के जो प्रत्यक्ष योगदान है उसके कारण भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में उनका कद इतना उच्च है कि उन पर अन्य कोई संदिग्ध विचार धारा थोपना कतई आवश्यक नहीं है। इस प्रकार के छद्म प्रोपगंडा से भावुक एवं अपरिपक्व नौजवानों को भगतसिंह के समग्र व्यक्तित्व से अनभिज्ञ रखकर अपने राजनीतिक उद्देश्य तो पूरे किये जा सकते हैं, भगतसिंह के आदर्शों का समाज नहीं बनाया जा सकता। किसी भी क्रांतिकारी की देशभक्ति के अलावा उनकी अध्यात्मिक विचारधारा अगर हमारे लिए आदर्श है तब तो भगत सिंह के अग्रज महान कवि एवं लेखक, भगत सिंह जैसे अनेक युवाओं के मार्ग द्रष्टा, जिनके जीवन में क्रांति का सूत्र पात स्वामी दयानंद द्वारा रचित अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश को पढने से हुआ था, कट्टर आर्यसमाजी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जी जिनका सम्पूर्ण जीवन ब्रह्मचर्य पालन से होने वाले लाभ का साक्षात् प्रमाण था, क्यों हमारे लिए आदर्श और वरण करने योग्य नहीं हो सकते?


🚩क्रान्तिकारी सुखदेव थापर वेदों से अत्यंत प्रभावित एवं आस्तिक थे एवं संयम विज्ञान में उनकी आस्था थी। स्वयं भगत सिंह ने अपने पत्रों में उनकी इस भावना का वर्णन किया है। हमारे लिए आदर्श क्यों नहीं हो सकते?

'आर्यसमाज मेरी माता के समान है और वैदिक धर्म मेरे लिए पिता तुल्य है। ऐसा उद्घोष करने वाले लाला लाजपतराय जिन्होंने जमीनी स्तर पर किसान आन्दोलन का नेतृत्व करने से लेकर उच्च बौद्धिक वर्ग तक में प्रखरता के साथ देशभक्ति की अलख जगाई और साइमन कमीशन का विरोध करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। वे क्यों हमारे लिए वरणीय नहीं हो सकते? क्या इसलिए कि वे आस्तिक थे? वस्तुतः: देशभक्त लोगों के प्रति श्रद्धा और सम्मान रखने के लिए यह एक पर्याप्त आधार है कि वे सच्चे देशभक्त थे और उन्होंने देश की भलाई के लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थों और सपनों सहित अपने जीवन का बलिदान कर दिया, इससे उनके सम्मान में कोई कमी या वृद्धि नहीं होती कि उनकी आध्यात्मिक विचारधारा क्या थी। रामप्रसाद के बलिदान का सम्मान करने के साथ अशफाक के बलिदान का केवल इस आधार पर अवमूल्यन करना कि वे इस्लाम से सम्बंधित थे, केवल मूर्खता ही कही जाएगी।

ऐसे हजारों क्रांतिकारियों का विवरण दिया जा सकता है जिन्होंने न केवल मातृभूमि की सेवा में अपने प्राण न्योछावर किये थे अपितु मान्यता से वे सब दृढ़ रूप से आस्तिक भी थे। क्या उनकी बलिदान और भगत सिंह के बलिदान में कुछ अंतर हैं? नहीं। फिर यह अन्याय नहीं तो और क्या है?

अब यह भी विचार कर लेना चाहिए कि भगत सिंह की नास्तिकता क्या वाकई में नास्तिकता है? भगत सिंह शहादत के समय एक 23 वर्ष के युवक ही थे। उस काल में 1920 के दशक में भारत के ऊपर दो प्रकार की विपत्तियाँ थीं। 1921 में परवान चढ़े खिलाफत के मुद्दे को कमाल पाशा द्वारा समाप्त किये जाने पर कांग्रेस एवं मुस्लिम संगठनों की हिन्दू-मुस्लिम एकता ताश के पत्तों के समान उड़ गई और सम्पूर्ण भारत में दंगों का जोर आरंभ हो गया। हिन्दू मुस्लिम के इस संघर्ष को भगत सिंह द्वारा आज़ादी की लड़ाई में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में महसूस किया गया, जबकि इन दंगों के पीछे अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति थी। इस विचार मंथन का परिणाम यह निकला कि भगत सिंह को "धर्म" नामक शब्द से घृणा हो गई। उन्होंने सोचा कि दंगों का मुख्य कारण धर्म है। उनकी इस मान्यता को दिशा देने में मार्क्सवादी साहित्य का भी योगदान था, जिसका उस काल में वे अध्ययन कर रहे थे। दरअसल धर्म दंगों का कारण ही नहीं था, दंगों का कारण मत-मतान्तर की संकीर्ण सोच थी। धर्म पुरुषार्थ रूपी श्रेष्ठ कार्य करने का नाम है, जो सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। जबकि मत या मज़हब एक सीमित विचारधारा को मानने के समान हैं, जो न केवल अल्पकालिक हैं अपितु पूर्वाग्रह से युक्त भी हैं। उसमें उसके प्रवर्तक का सन्देश अंतिम सत्य होता है। मार्क्सवादी साहित्य की सबसे बड़ी कमजोरी उसका धर्म और मज़हब शब्द में अंतर न कर पाना है।


🚩उस काल में अंग्रेजों की विनाशकारी नीतियों के कारण भारत देश में गरीबी अपनी चरम सीमा पर थी और अकाल, बाढ़, भूकंप, प्लेग आदि के प्रकोप के समय उचित व्यवस्था न कर पाने के कारण थोड़ी सी समस्या भी विकराल रूप धारण कर लेती थी। ऐसे में चारों ओर गरीबी, भुखमरी, बीमारियाँ आदि देखकर एक देशभक्त युवा का निर्मल ह्रदय का व्यथित हो जाना स्वाभाविक है। परन्तु इस प्रकोप का श्रेय अंग्रेजी राज्य, आपसी फूट, शिक्षा एवं रोजगार का अभाव, अन्धविश्वास आदि को न देकर ईश्वर को देना कठिन विषय में अंतिम परिणाम तक पहुँचने से पहले की शीघ्रता के समान है। दुर्भाग्य से भगत सिंह जी को केवल 23 वर्ष की आयु में देश पर अपने प्राण न्योछावर करने पड़े, वरना कुछ और काल में विचारों में प्रगति होने पर उनका ऐसा मानना कि संसार में दुखों का होना इस बात को सिद्ध करता है कि ईश्वर नाम की कोई सत्ता नहीं हैं, वे स्वयं ही अस्वीकृत कर देते।

संसार में दुःख का कारण ईश्वर नहीं अपितु मनुष्य स्वयं हैं। ईश्वर ने तो मनुष्य के निर्माण के साथ ही उसे वेद रूपी उपदेश में यह बता दिया कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है? अर्थात् मनुष्य को सत्य-असत्य का बोध करवा दिया था। अब यह मनुष्य का कर्तव्य है कि वो सत्य मार्ग का वरण करे और असत्य मार्ग का त्याग करे। पर यदि मनुष्य अपनी अज्ञानता से असत्य मार्ग का वरण करता है तो आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक तीनों प्रकार के दुखों का भागी बनता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार कर्म करने में मनुष्य स्वतंत्र है- यह निश्चित सिद्धांत है मगर उसके कर्मों का यथायोग्य फल मिलना भी उसी प्रकार से निश्चित सिद्धांत है। जिस प्रकार से एक छात्र परीक्षा में अत्यंत परिश्रम करता है उसका फल अच्छे अंकों से पास होना निश्चित है, उसी प्रकार से दूसरा छात्र परिश्रम न करने के कारण फेल होता हैं तो उसका दोष ईश्वर का हुआ अथवा उसका हुआ। ऐसी व्यवस्था संसार के किस कर्म को करने में नहीं हैं? सकल कर्मों में हैं और यही ईश्वर की कर्मफल व्यवस्था है। फिर किसी भी प्रकार के दुःख का श्रेय ईश्वर को देना और उसके पीछे ईश्वर की सत्ता को नकारना निश्चित रूप से गलत फैसला है। भगत सिंह की नास्तिकता वह नास्तिकता नहीं है जिसे आज के वामपंथी गाते हैं। यह एक 23 वर्ष के जोशीले, देशभक्त नौजवान युवक की क्षणिक प्रतिक्रिया मात्र है, व्यवस्था के प्रति आक्रोश है। भगतसिंह की जीवन शैली, उनकी पारिवारिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि और सबसे बढकर उनके जीवन-शैली से सिद्ध होता है कि किसी भी आस्तिक से आस्तिकता में कमतर नहीं थे। वे परोपकार रूपी धर्म से कभी अलग नहीं हुए, चाहे उन्हें इसके लिए कितनी भी हानि उठानी पड़ी। महर्षि दयानन्द ने इस परोपकार रूपी ईश्वराज्ञा का पालन करना ही धर्म माना है और साथ ही यह भी कहा है कि इस मनुष्य रूपी धर्म से प्राणों का संकट आ जाने पर भी पृथक न होवे। भगतसिंह का पूरा जीवन इसी धर्म के पालन का ज्वलंत उदाहरण है। इसलिए उनकी आस्तिकता का स्तर किसी भी तरह से कम नहीं आंका जा सकता।


🚩मेरा इस विषय को यहाँ उठाने का मंतव्य यह स्पष्ट करना है की भारत माँ के चरणों में आहुति देने वाला हर क्रांतिकारी हमारे लिए महान और आदर्श है। उनकी वीरता और देश सेवा हमारे लिए वरणीय है। भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा और देशभक्ति का श्रेय नास्तिकता को नहीं अपितु उनके पूर्वजों द्वारा माँ के दूध में पिलाई गयी देश भक्ति की लोरियां हैं, जिनका श्रेय स्वामी दयानंद, करतार सिंह सराभा, भाई परमानन्द, लाला लाजपतराय, प्रोफेसर जयदेव विद्यालंकार, भगत सिंह के दादा आर्यसमाजी सरदार अर्जुन सिंह और उनके परिवार के अन्य सदस्य, सिख गुरुओं की बलिदान की गाथाओं को जाता है, जिनसे प्रेरणा की घुट्टी उन्हें बचपन से मिली थी और जो निश्चित रूप से आस्तिक थे। भगत सिंह की महानता को नास्तिकता के तराजू में तोलना साम्यवादी लेखकों द्वारा शहीद भगत सिंह के साथ अन्याय के समान है। वैसे साम्यवादी लेखकों की दोगली मानसिकता के दर्शन हमें तब भी होते हैं जब वे भगत सिंह द्वारा गोरक्षा के लिए हुए कुका आंदोलन एवं वंदे मातरम के आज़ादी के उद्घोष के समर्थन में उनके द्वारा लिखे हुए साहित्य कि अनदेखी इसलिए करते हैं क्योंकि यह उनकी पार्टी के एजेंडे के विरुद्ध जाता हैं। प्रबुद्ध पाठक स्वयं इस आशय को समझ सकते हैं। - डॉ विवेक आर्य


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Wednesday, September 27, 2023

श्राद्ध नही करने से क्या होगा ? श्राद्ध क्यों और कैसे करना चाहिए ? जानिए सबकुछ......

27 September, 2023


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🚩भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है, लेकिन मरने के बाद, अंत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सद्गति के लिए किए जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है।


🚩मरणोत्तर क्रियाओं-संस्कारों का वर्णन हमारे शास्त्र-पुराणों में आता है। आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) के कृष्ण पक्ष को हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है। श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष : 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक श्राद्ध पक्ष है।


🚩 दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत आशीर्वाद से आपके कुल में दिव्य आत्माएँ अवतरित हो सकती हैं। जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता, ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि के लिए सकाम व निष्काम भाव से यह श्राद्धकर्म करना चाहिए।


🚩हिन्दू धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है । हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। ‘श्राद्ध-विधि’ इसी भावना पर आधारित है।


🚩मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग, नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।


🚩पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव, पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस्या के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना ही चाहिए।


🚩आधुनिक विचारधारा एवं नास्तिकता के समर्थक शंका कर सकते हैं कि “यहाँ दान किया गया अन्न पितरों तक कैसे पहुँच सकता है ?”


🚩भारत की मुद्रा ‘रुपया’, अमेरिका में ‘डॉलर’ एवं लंदन में ‘पाउण्ड’ होकर मिल सकती है एवं अमेरिका के डॉलर जापान में येन एवं दुबई में दीनार होकर मिल सकते हैं। यदि इस विश्व की नन्हीं सी मानव रचित सरकारें इस प्रकार मुद्राओं का रुपान्तरण कर सकती हैं तो ईश्वर की सर्वसमर्थ सरकार आपके द्वारा श्राद्ध में अर्पित वस्तुओं को पितरों के योग्य करके उन तक पहुँचा दे- इसमें क्या आश्चर्य है ?


🚩मान लो, आपके पूर्वज अभी पितृलोक में नहीं, अपित मनुष्य रूप में हैं। आप उनके लिए श्राद्ध करते हो तो श्राद्ध के बल पर उस दिन वे जहाँ होंगे वहाँ उन्हें कुछ न कुछ लाभ होगा।


🚩मान लो, आपके पिता की मुक्ति हो गयी हो तो उनके लिए किया गया श्राद्ध कहाँ जाएगा? जैसे, आप किसी को मनीआर्डर भेजते हो, वह व्यक्ति मकान या आफिस खाली करके चला गया हो तो वह मनीआर्डर आप ही को वापस मिलता है, वैसे ही श्राद्ध के निमित्त से किया गया दान आप ही को विशेष लाभ देगा।


🚩दूरभाष और दूरदर्शन आदि यंत्र, हजारों किलोमीटर का अंतराल दूर करते हैं- यह प्रत्यक्ष है। इन यंत्रों से भी मंत्रों का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है।


🚩देवलोक एवं पितृलोक के वासियों का आयुष्य मानवीय आयुष्य से हजारों वर्ष ज्यादा होता है। इससे पितर एवं पितृलोक को मानकर उनका लाभ उठाना चाहिए तथा श्राद्ध करना चाहिए।


🚩भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे। पैठण के महान आत्मज्ञानी संत हो गये श्री एकनाथजी महाराज! पैठण के निंदक ब्राह्मणों ने एकनाथजी को जाति से बाहर कर दिया था एवं उनके श्राद्ध-भोज का बहिष्कार किया था। उन योगसंपन्न एकनाथजी ने ब्राह्मणों के एवं अपने पितृलोक वासी पितरों को बुलाकर भोजन कराया। यह देखकर पैठण के ब्राह्मण चकित रह गये एवं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमायाचना की।


🚩जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। श्राद्धपक्ष आश्विन के (गुजरात-महाराष्ट्र में भाद्रपद के) कृष्ण पक्ष में की गयी श्राद्ध-विधि गया क्षेत्र में की गयी श्राद्ध-विधि के बराबर मानी जाती है। इस विधि में मृतात्मा की पूजा एवं उनकी इच्छा-तृप्ति का सिद्धान्त समाहित होता है ।


🚩प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर देवऋण, पितृऋण एवं ऋषिऋण रहता है। श्राद्धक्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है। देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है। ऋषि-मुनि-संतों के विचारों को, आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उन्हें लक्ष्य मानकर आदरसहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है।


🚩पुराणों में आता है कि आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण पक्ष की अमावस (पितृमोक्ष अमावस) के दिन सूर्य एवं चन्द्र की युति होती है। सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन हमारे पितर यमलोक से अपना निवास छोड़कर सूक्ष्म रूप से मृत्युलोक (पृथ्वीलोक) में अपने वंशजों के निवास स्थान में रहते हैं। अतः उस दिन उनके लिए विभिन्न श्राद्ध करने से वे तृप्त होते हैं।


🚩गरुड़ पुराण (10.57-59) में आता है- ‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दु:खी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है।


🚩‘हारीत स्मृति’ में लिखा है : न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुष:। न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम ।।


🚩‘जिनके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल-खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होते, कोई निरोग नहीं रहता। किसी की लम्बी आयु नहीं होती और उनका किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता ( किसी-न-किसी तरह की झंझट और खटपट बनी रहती है )।’


🚩महर्षि सुमन्तु ने कहा: “श्राद्ध जैसा कल्याण-मार्ग गृहस्थी के लिए और क्या हो सकता है? अत: बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।”


🚩अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें : “हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), अमुक गोत्र (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें! इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं।


🚩श्राद्ध पक्ष में रोज भगवद्गीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” और एक माला “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा” की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।


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Tuesday, September 26, 2023

अमेरिका में बना दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर, 1000 साल तक रहेगा अक्षुण्ण


26 September, 2023

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🚩सनातन धर्म और संतो को लेकर भारत में भले कुछ असुर स्वभाव के लोग गलत टिप्पणियां करते हो, लेकिन सनातन धर्म अब दुनिया भर में फेल रहा है, क्योंकी सनातन धर्म से ही व्यक्ति सही उन्नति कर सकता है और सनातन हिंदू धर्म के कुछ नियम पालन करने से हर व्यक्ति स्वथ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जी सकता है, इसलिए आज दुनिया सनातन धर्म के सामने नत मस्तक हो रही है।


🚩अमेरिका में बड़ा मंदिर


🚩अमेरिका के न्यू जर्सी में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर बनकर तैयार हो गया है। 8 अक्टूबर 2023 को इस मंदिर का शुभारंभ होगा। इसे बीएपीएस अक्षरधाम नाम दिया गया है। मंदिर को अमेरिका में रहने वाले 12 हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने मिलकर बनाया है। 183 एकड़ में फैले इस मंदिर को बनाने में 12 साल का समय लगा है।


🚩 रिपोर्ट्स के अनुसार, यह मंदिर अमेरिका के न्यू जर्सी में रॉबिन्सविल टाउनशिप में बनाया गया है। यह अक्षरधाम मंदिर न्यूयॉर्क शहर से 90 किलोमीटर और राजधानी वॉशिंगटन डीसी से 289 किलोमीटर दूर है। स्वामीनारायण अक्षरधाम समिति ने साल 2011 में इस मंदिर को बनाना शुरू किया था। अब यह दिव्य-भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है।


🚩इस मंदिर में बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है। साथ ही धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेते हुए 10 हजार से अधिक प्रतिमाएँ बनाई गई हैं। इस अक्षरधाम मंदिर में मुख्य मंदिर के अलावा 12 उप-मंदिर, 9 शिखर और 9 पिरामिड शिखर शामिल हैं। यही नहीं इस मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर का अंडाकार गुंबद बनाया गया है।


🚩मंदिर में चार प्रकार के पत्थर चूना पत्थर, गुलाबी बलुआ पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट शामिल हैं। मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि यह 1000 साल तक चलता रहे। मंदिर में लगाए गए पत्थर बहुत अधिक गर्मी और बहुत अधिक ठंड दोनों ही सहने में सक्षम हैं। इसके अलावा यहाँ एक ब्रह्म कुंड बनाया गया है। इसमें भारत की पवित्र नदियों और अमेरिका के सभी राज्यों समेत दुनिया भर के 300 से अधिक जलाशयों से पानी इकट्ठा किया गया है।


🚩183 एकड़ में फैला यह मंदिर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। सबसे बड़ा मंदिर कंबोडिया के अंकोरवाट में स्थित है। यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल 12वीं सदी का अंकोरवाट मंदिर करीब 500 एकड़ में फैला हुआ है। राजधानी दिल्ली में 100 एकड़ में फैला हुआ अक्षरधाम मंदिर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर है।


🚩अमेरिका के न्यू जर्सी में बने इस अक्षरधाम मंदिर की तस्वीरें दिल्ली में बने अक्षरधाम मंदिर की याद दिलाती हैं। दोनों ही अक्षरधाम मंदिर एक ही समिति द्वारा बनाए गए हैं, इसलिए इनके डिजाइन लगभग एक जैसे ही हैं। बीएपीएस संत स्वामी महाराज 8 अक्टूबर 2023 को न्यू जर्सी में मंदिर का उद्घाटन करेंगे। 18 अक्टूबर से इसे आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।


🚩भारत में भले आज कुछ लोग पाश्चात सभ्यता अपना रहे हो लेकिन विश्व भर में भारतीय संस्कृती की तरफ लोग आकर्षित होकर नियम का अनुसरण कर रहे है , स्थाई शांति और सुख चाहिए तो केवल और केवल सनातन हिंदू धर्म में ही है और दुनिया आज ये बात जानने लगी है इसलिए विदेशों में मंदिरों और साधु संतो और देवी देवताओ को मानने वाले की संख्या लगातार बढ़ रही है।


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Monday, September 25, 2023

पादरी के पास मिलीं 600 बच्चों की नंगी तस्वीरें, 1000+ का किया यौन शोषण ....

25 September, 2023

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🚩केरल के एक नन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक पादरी अपने कक्ष में ननों को बुला कर ‘सुरक्षित सेक्स’ का प्रैक्टिकल क्लास लगाता था। इस दौरान वह ननों के साथ यौन सम्बन्ध बनाता था। उसके ख़िलाफ़ लाख शिकायतें करने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा। उसके हाथों ननों पर अत्याचार का सिलसिला तभी थमा, जब वह रिटायर हुआ। सिस्टर लूसी ने लिखा था कि उनके कई साथी ननों ने अपने साथ हुई अलग-अलग घटनाओं का जिक्र किया और वो सभी भयावह हैं। ऐसे तो हजारों पादरियों पर दुष्कर्म के अपराध साबित हो चुके है। ईसाई पादरी बच्चों एवं ननों का यौन शोषण करते हैं।


🚩अमेरिका के शहर लॉस एंजिल्स में एक पादरी के पास बच्चों की 600 से अधिक आपत्तिजनक फोटो बरामद हुई हैं। यह पादरी लॉस एंजिल्स के इलाके लॉन्ग बीच के एक चर्च में कार्यरत था। आरोपित को महीनों की जाँच के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है।


🚩अमेरिका: पादरी के पास बच्चों की नंगी तस्वीरें

अमेरिकी समाचार वेबसाइट ‘लॉस एंजिल्स टाइम्स‘ के अनुसार, शहर के लॉन्ग बीच इलाके के कैथोलिक पादरी रोडोल्फो मार्टिनेज ग्वेरा (38) को गिरफ्तार किया गया जो कि चर्च व्यवस्था में काफी वरिष्ठ था। उसके खिलाफ कई रिपोर्ट बच्चों के गुमशुदगी विभाग में भेजी गईं। पादरी के खिलाफ अप्रैल में जाँच चालू की गई थी।


🚩जाँच में पाया गया कि पादरी के पास 600 से अधिक बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरें थी। इसमें अधिकांश तस्वीरें 12 वर्ष के कम आयु के बच्चों की थी। मामले में शामिल होने वाले वकीलों का कहना है कि जिस पादरी पर यह आरोप हैं वह काफी शक्तिशाली है। मामले में शामिल वकील एरिक नासरेंको ने कहा, “आरोपित के अपराध विश्वास घटाते हैं और इनमें बड़ी संख्या में बालकों के यौन शोषण की तस्वीरें हैं।”


🚩ग्वेरा को बुधवार (13 सितंबर, 2023) को कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा। अभी वह पुलिस की हिरासत में है।


🚩स्विट्जरलैंड: पादरियों ने 1002 का किया यौन शोषण

इस मामले के अलावा स्विट्ज़रलैंड से भी एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहाँ एक रिसर्च में पाया गया है कि वर्ष 1950 से लेकर अब तक चर्च के पादरियों एवं अन्य कर्मचारियों ने 1000 से अधिक यौन शोषण किए हैं।


🚩ज्यूरिख विश्वविद्यालय द्वारा की गई एक रिसर्च में सामने आया है कि स्विस कैथोलिक पादरियों एवं कर्मचारियों द्वारा 1000 से अधिक यौन शोषण किए गए जिसमें से 74% पीड़ित नाबालिग थे। इस रिसर्च के लिए पीड़ितों से बात की गई और पुराने मामलों को खंगाला गया। हैरान करने वाली बात यह है कि अधिक शोषण पुरुषों का हुआ है। रिसर्च में बताया गया है कि पीड़ितों में 56% पुरुष थे जबकि 39% महिलाएँ थीं, 5% के विषय में जानकारी जुटाई नहीं जा सकी। रिसर्च करने वालों ने यह भी कहा है कि यह सभी अपराधों का छोटा सा नमूना है और असल संख्या कहीं अधिक हो सकती है।


🚩न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में पेनसिलवेनिया में 300 से अधिक कैथोलिक पादरियों ने 1000 से अधिक बच्चों का यौन-शोषण किया था । रिपोर्ट के अनुसार हजारों ऐसे और भी मामले हो सकते हैं जिनका रिकॉर्ड नहीं है या जो लोग अब सामने नहीं आना चाहते ।


 🚩अमेरिका में 1980 के बाद चर्च के अंदर चल रहे यौन-शोषण के मामलों पर चर्च को अभी तक 3.8 अरब डॉलर का मुआवजा देना पड़ा है । अमेरिका में यह शोषण इतना व्याप्त हो चुका है कि कई लॉ फर्म्स अभिभावकों से सम्पर्क कर पूछ रही हैं कि ‘‘क्या आपके बच्चे का यौन-शोषण तो नहीं हुआ ?’’ अधिकतर शिकार उस वक्त 8-12 वर्ष की आयु के बच्चे थे।


 🚩बी.बी.सी. के अनुसार ‘ऑस्ट्रेलिया के कस्बों से लेकर आयरलैंड के स्कूलों और अमेरिका के शहरों से कैथोलिक चर्च में पिछले कुछ दशकों में बच्चों के यौन-शोषण की शिकायतों की बाढ़ आ गयी है। इस बीच इस पर पर्दा डालने का प्रयास भी चल रहा है और शिकायतकर्ता यह कह रहे हैं कि ‘‘वेटिकन ने उनसे हुई ज्यादतियों पर उचित कार्यवाही नहीं की।’’


🚩कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी है। मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता का पोल खुल चुकी है। चर्च  कुकर्मो की  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पादरियों द्वारा किये गए इस कुकृत्य के लिए माफी माँगी थी।


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Sunday, September 24, 2023

ऐतिहासिक अन्याय टॉप ट्रेंड क्यों कर रहा था ? जानिए.....

24 September, 2023


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🚩रविवार को ट्वीटर (एक्स) पर #ऐतिहासिक_अन्याय हैशटैग को लेकर टॉप ट्रेंड चल रहा था, इसमें हजारों ट्वीट हुई , ट्वीट के जरिए बताया जा रहा था की हिंदू संत आसाराम बापू को झूठे केस में फँसाकर 11 साल से जेल में रखा गया है, जबकि सबूत चीख चीख कर पुकार रहे हैं कि बापू आशारामजी निर्दोष हैं।


🚩आइए जानते है जनता क्या ट्वीट कर के बता रही थी


🚩निराली बहन लिखती हैं कि Asharamji Bapu का Jodhpur Case एक षडयंत्र ही है क्योंकि इसमें Too Many Flaws हैं जैसे कि

१. लड़की के कई विरोधात्मक जन्म साक्ष्य के बावजूद नाबालिग बना पोक्सो का दुरुपयोग करना

२. FIR की जगह और टाइम को ग़लत बताते कई गवाह और वीडियो साक्ष्य

३. कॉल डिटेल को इग्नोर करना

#ऐतिहासिक_अन्याय

https://twitter.com/DadhaniyaNirali/status/1705773603311304868?t=wK_irPxGQkccid-LWT4nog&s=19


🚩हरेश दुबे भाई लिखते हैं कि Sant Shri Asharamji Bapu के Jodhpur Case में सारे साक्ष्यों की अनदेखी की गई :

🍁मेडिकल रिपोर्ट नॉर्मल

🍁FIR में रेप का जिक्र नहीं

🍁थाना की रिपोर्ट की डायरी के पन्ने फटे हुए

🍁रिपोर्ट के समय की वीडियोग्राफी गायब

न्यायालय की कार्यवाही में Too Many Flaws हैं।

https://twitter.com/HarshDu32611429/status/1705772220591849524?t=DZ8ITXdLBLR4JDOnN6We1A&s=19


🚩आलोक भाई लिखते हैं कि

Asaram Bapu Ji के #ऐतिहासिक_अन्याय के लिए चेतनात्मक प्रतिकार करना ही वास्तविक साधक व सत्य पथिक के चैत्य परिशुद्धि परिपत्र है।गुरु ही वह किरण जो जीवन,समाज में मानवता की लौ जागृत रखता है।

We Will Defeat Jodhpur Case With Too Many Flaws & Conspirational International Claws In All Its Format

https://twitter.com/Aloksinghom/status/1705784627015872913?t=VtbyH5ZgnC9a4tUNU9IHLw&s=19


🚩नेहा बहन लिखती हैं कि Asaram Bapu Ji के Jodhpur Case में Too Many Flaws हैं।

जैसे आरोपित घटना के समय लड़की की कुटिया में मौजूदगी के कोई सबूत व गवाह नहीं। आरोप लगाने वाली लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में भी रेप प्रमाणित नहीं। फिर भी रेप की धारा लगाकर निर्दोष संत को 10 वर्षों से जेल #ऐतिहासिक_अन्याय है।

https://twitter.com/NehaSinghOm/status/1705779101834104897?t=56ujHCXuUFY0xbmvct7nhg&s=19


🚩संग्रामजित भाई लिखते हैं कि बिल्कुल, Asharamji Bapu   के Jodhpur Case में कोर्ट के पास ऐसा कोई सबूत या गवाह नहीं था जो कुटिया में लड़की की उपस्थिति बता सके। Too Many Flaws इस #ऐतिहासिक_अन्याय का अब अंत होना चाहिए और निर्दोष संत को अतिशीघ्र न्याय मिलना चाहिए।

https://twitter.com/SangramjitNaya1/status/1705781625035145556?t=th1ONdIMfbgyt3QGesAVbA&s=19


🚩शिव कुमार भाई ने लिखा कि Asharamji Bapu के खिलाफ

Jodhpur Case में 

Too Many Flaws पाए जाने के बाद भी कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट में क्लीन चिट होने पर भी #ऐतिहासिक_अन्याय करते हुए निर्दोष संत को आजीवन कारावास की सजा सुना दी।

पॉक्सो एक्ट में जेजे एक्ट से आयु क्यों निर्धारित नहीं की गई?

https://twitter.com/SHIWP/status/1705782760126955611


🚩परसराम काग लिखते है की Asharamji Bapu के Jodhpur Case में तथाकथित घटना के 5 दिन बाद FIR करवाई गई,

 वो भी जोधपुर की घटना बताकर

 दिल्ली में रात्रि 2:45 बजे।

Too Many Flaws इस केस के जाँच में भी। 

ये तो #ऐतिहासिक_अन्याय है 

एक निर्दोष संत के साथ😡

https://twitter.com/KukshiKag/status/1705773761713340464?t=I-d4ZkVcmFNGZ0Ivu-LePg&s=19


🚩पलव्वी बहन लिखती हैं कि Asharamji Bapu के 

Jodhpur Case में हुआ है #ऐतिहासिक_अन्याय❗

 क्योंकि इसमें है Too Many Flaws👇 

लड़की के स्कूल दस्तावेज़ के अनुसार वह बालिग है।

लड़की व उसके भाई की आयु में अंतर पाया गया।

केस पूर्णतःबोगस व बनावटी है! बापूजी को षड्यंत्र के तहत फँसाया गया है!

pic.twitter.com/bnDO5EvxiU


🚩गौरतलब है कि हिंदू संत आशाराम बापू पिछले 11 साल से जोधपुर जेल में बंद हैं, उनकी रिहाई की सतत मांग उठती रही है, अब देखते हैं- न्यायालय और सरकार उनको कब रिहा करती है???


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Saturday, September 23, 2023

सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर निराशा जाहिर की.....

 सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर निराशा जाहिर की.....



23 September, 2023

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🚩देश में न्याय इसलिए देरी से मिलता है कि देश में जजों की कमी, वकीलों द्वारा पैसे ऐठने के कारण लंबा खीचना, राजनीति हस्तक्षेप, अंग्रेजों के बनाए कानून , बदला लेने या, पैसा नोचने की नीयत से झूठे केस दर्ज करना, और देश के जजों में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि अपराधियों को सजा और निर्दोषों को न्याय मिलना ही मुश्किल हो गया है। कई जज तो रिश्वत लेते पकड़े भी गये है।


🚩सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता


🚩सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय किशन कौल ने न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर निराशा जाहिर की है। उनका कहना है कि कई गरीब सलाखों के पीछे सिर्फ इसलिए रह जाते हैं, क्योंकि वे खर्च नहीं उठा सकते। जबकि, वकील करने में सक्षम अमीरों को जमानत मिल जाती है। इस दौरान उन्होंने जेलों में सालों से बंद विचाराधीन कैदियों के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया।


🚩अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी स्पेशल कैंपेन 2023 की लॉन्चिंग के मौके पर जस्टिस कौल ने कहा कि गरीब और अशिक्षितों को हिरासत में लिए जाने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। उन्होंने कहा, 'न्यायाधीशों के तौर पर हमारी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि कानून का पालन और उनके साथ इस आधार पर भेदभाव न हो कि वे किस स्तर के वकील की सहायता ले पा रहे हैं।'


🚩इस अभियान के तहत उन कैदियों की पहचान और समीक्षा करना ह, जिनकी रिहाई पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक रखे जाने की बात डराने वाली है। उन्होंने कहा कि इसे लेकर कोई भी अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता। जस्टिस कौल ने कहा कि गरीब कैदियों को लगातर हिरासत में रखे जाने का असर उनपर और उनके परिवार पर पड़ता है।


🚩जस्टिस कौल ने कहा कि जेल में बंद ऐसे

 विचाराधीन कैदियों का मुद्दा न्यायपालिका के सामने उठता रहा है, जो रिहाई की समीक्षा किए जाने के योग्य इस दौरान उन्होंने न्याय व्यवस्था से गरीबों की मदद की भी अपील की और कहा कि वे कानूनी सहायता में लगने वाला खर्च नहीं उठा सकते।


🚩उन्होंने कहा, 'आज हिरासत को विकास के संदर्भ में देखा जा रह अगला दोष सिद्ध होने से पहले हिरासत में रखे जाना आपराधिक न्याय संसाधनों को भटका देता है और आरोपियों और उनके परिवारों पर बोझ डालता है।'


🚩सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े भी सवाल उठा चुके हैं कि ‘धनी और प्रभावशाली’ तुरंत जमानत हासिल कर सकते हैं । गरीबों के लिए कोई न्याय की व्यवस्था नहीं है ।


🚩कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस के एल मंजूनाथ ने कहा कि यहाँ सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए कोई स्थान नहीं है और इस देश में न्याय के लिए कोई जगह नहीं ।


🚩इसलिए आज न्याय प्रणाली से देश की जनता का भरोसा उठ गया है ।


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Friday, September 22, 2023

सनातन धर्म के उद्देश्य क्या हैं ? जानिए.....



22 September, 2023

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🚩सनातन धर्म से विचारधारा है जो हिंदू धर्म का मूल आधार है। इसके तत्व और सिद्धांतों में विभिन्न दर्शनशास्त्रों का समावेश होता है, जो मनुष्य के जीवन के संपूर्ण क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यह एक अनन्य धार्मिक परंपरा है जिसकी भूमिका है नैतिकता, दायित्व, आध्यात्मिकता, ध्येय सम्प्रेषण, समर्पण और सामरिकता की प्रोत्साहना करना।


🚩सनातन धर्म के उद्देश्य हैं- मनुष्य के सामर्थ्य और उद्यम को प्रोत्साहित करना, स्वाधीनता में जीने का हौसला देना, सभी जीवों के प्रति सम्मान और प्रेम का विकास करना, एकाग्रता स्थिति में संपूर्ण ब्रह्मांड के साथीपन अनुभव करना और मुक्ति की प्राप्ति के लिए मार्ग दर्शन करना।


🚩सनातन धर्म के चार मुख्य सिद्धांत हैं:


🚩1. योग: योग ध्यान और आध्यात्मिक एकाग्रता के माध्यम से मन, शरीर और आत्मा का मिलान करने का एक विज्ञान है। यह आत्म और परमात्मा के साथ मिलन करने का मार्ग प्रदान करता है, जिससे चित्तशांति, मनोवृत्ति का नियंत्रण और सामरिकता की अनुभूति होती है।


🚩2. कर्म: कर्मयोग धार्मिक कर्मों को समर्पित और ईश्वर के प्रति समर्पित रहने का मार्ग है। यह आदर्श है कि हम किसी भी कर्म को भाग्य के रूप में स्वीकार करें और भावना पूर्ण समर्पण से कार्य करें।


🚩3. ज्ञान: ज्ञान उद्घोष के माध्यम से हमारे अन्तरात्मा के साथीपन का विकास करता है। इसका अर्थ है कि हमें अपनी असली स्वभाव को पहचानना चाहिए, खोज करना कि हम कौन हैं और हमारा आध्यात्मिक स्वभाव क्या है।


🚩4. आचार्य: गुरु या आचार्य के मार्गदर्शन में रहकर हम सनातन धर्म के सिद्धांतों का सदुपयोग कर सकते हैं। उनके ज्ञान, प्रेरणा और परामर्श के माध्यम से हम आगे बढ़ सकते हैं और आध्यात्मिक विकास के पथ पर चल सकते हैं।


🚩इस प्रकार, सनातन धर्म का महत्वपूर्ण तत्व है स्वयं का सम्मान, कर्म, ज्ञान, ध्यान, साधना और सामरिकता के माध्यम से आपसी सद्भाव, प्रेम, शांति और पूर्णता की प्राप्ति करना।


🚩सनातन धर्म, भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण धार्मिक सिद्धांत है। इसमें विभिन्न वैदिक साहित्यों, जैसे कि वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत आदि के माध्यम से निर्मित धार्मिक आचारों और तत्वों का पालन किया जाता है।


🚩वैदिक साहित्य सनातन धर्म के मूल स्रोत हैं और वेदों में विभिन्न विधियाँ, मन्त्रों, उपास्यताओं और देवताओं के बारे में ज्ञान है। ये भारत की सबसे प्राचीन और पवित्रतम ग्रंथ हैं और हजारो वर्षों से यहां के धर्मीय जीवन का आधार रहे हैं।


🚩सनातन धर्म की धार्मिक प्रतिष्ठान अधिकांशतः मंदिरों में स्थापित होती हैं। ये मंदिर विभिन्न देवताओं के समर्पित होते हैं और साधकों को उन देवताओं की पूजा, आराधना और अनुष्ठानों के लिए आवंटित किए जाते हैं। इन मंदिरों में आरती, पूजा, हवन, प्रवचन आदि करने की परंपरा चलती है और ये आध्यात्मिक स्थान ही नहीं, व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान हैं।


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Thursday, September 21, 2023

क्या प्राचीन भारत में स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं था ?

 जानिए उन महान महिलाओं को....



21 September, 2023

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🚩पौराणिक समय में भारत में कई ऐसी स्त्रियां हुई हैं जो अपने साहस और बुद्धि के लिए जानी जाती हैं। आज हम प्राचीन भारत की ऐसी कुछ स्त्रियों के बारे में बात करने जा रहे हैं। आइए जानते हैं प्राचीन भारत की कुछ ऐसी ही 5 यशस्वी और बुद्धिमान महिलाओं के बारे में जिनके गुणों के चलते उन्हें आज भी याद किया जाता है।


🚩कई वर्षों तक स्त्री शिक्षा को यह कहकर नकारा गया कि प्राचीन भारत में भी स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। लेकिन यह बिल्कुल असत्य है। प्राचीन धर्म ग्रंथों को उठाकर देखा जाए तो पता चलता है कि पौराणिक काल में ऐसी कई ज्ञानवान स्त्रियां हुई हैं जिनके आगे बड़े-बड़े विद्वानों ने घुटने टेक दिए थे।


🚩विदुषी गार्गी


🚩बुद्धिमान स्त्रियों की बात की जाती है तो सबसे पहले विदुषी गार्गी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वेदों की रचना में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गर्गवंश में वचक्नु नामक महर्षि की पुत्री गार्गी का पूरा नाम 'वाचकन्वी गार्गी' है। जिस प्रकार महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण और अर्जुन के संवाद से गीता की उत्पत्ति हुई।


🚩ठीक उसी तरह राजा जनक के दरबार में हुए शास्त्रार्थ में ऋषि याज्ञवल्क्य और गार्गी के बीच हुए प्रश्न-उत्तरों से 'बृहदारण्यक उपनिषद' का निर्माण हुआ। विदुषी गार्गी के सामने महान ऋषि और दार्शनिक याज्ञवल्‍क्‍य भी नतमस्तक हो गए थे।


🚩विदुषी मैत्रेयी  


🚩विदुषी मैत्रेयी भी प्राचीन भारत की सबसे ज्ञानी स्त्रियों में से एक रही हैं। वह मित्र ऋषि की बेटी और महर्षि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी थी। महर्षि याज्ञवल्क्य पहली पत्नी भारद्वाज ऋषि की पुत्री कात्यायनी थीं। वह बहुत ही शांत स्वभाव की थी और अध्ययन, चिंतन और शास्त्रार्थ में रुचि रखती थीं। एक दिन ऋषि याज्ञवल्क्य ने गृहस्थ आश्रम छोड़कर वन में जाने का फैसला किया।


🚩ऐसे में उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों से कहा कि वह संपत्ति को आपस में बराबर हिस्से में बांट लें। कात्यायनी ने पति का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन मैत्रेयी को पता था कि धन-संपदा से आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए उन्होंने भी पति के साथ वन में जाने को कहा ताकि उन्हें भी ज्ञान और अमरत्व की प्राप्ति हो सके।


🚩माता सीता


🚩रामायण का मुख्य पात्र और श्री राम की धर्म पत्नी सीता पतिव्रता नारी तो थी ही साथ ही वह बहुत ही विद्वान भी थीं। माता सीता जी को विदुषी गार्गी से वेद-पुराणों का ज्ञान मिला था। आप उनकी वीरता का अंजादा इसी बात से लगा सकते हैं की उन्होंने बचपन में ही शिव धनुष उठा लिया था। इसी घटना को देखकर राजा जनक ने फैसला लिया कि जो भी शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देखा सीता जी का विवाह उसी से होगा। राजा जनक की इस शर्त को केवल राम जी ही पूरा कर सके और उनका विवाह सीता जी से हुआ।


🚩द्रौपदी


🚩महाभारत के मुख्य किरदारों में से एक द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री थी। वह पंच कन्याओं में से एक थी जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता था। द्रौपदी सुंदर होने के साथ ही बहुत बुद्धिमान भी थी। महाभारत में भी यह देखने को मिलता है कि जब भी पांडवों को कोई निर्णय लेने में संकोच हुआ तब द्रौपदी ने हमेशा उनकी सहायता की। द्रौपदी अपने सशक्त व्यक्तित्व के लिए जानी जाती है।  


🚩अरुंधति


🚩अरुंधति सात ऋषियों (सप्तर्षि) में से एक ऋषि वशिष्ठ की पत्नी थीं। वह एक तपस्विनी थी। अरुंधति को सप्तर्षि मंडल में वशिष्ठ के पास ही दिखाई देती हैं। जैसा कि वैदिक और पौराणिक साहित्य में उल्लेख किया गया है, अरुंधति भक्ति, शुद्धता जैसे कई गुणों का प्रतीक हैं। वह भी प्राचीन भारत की महान स्त्रियों में गिनी जाती हैं।


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Wednesday, September 20, 2023

तमिल नाडु में ब्राह्मण, हिंदू विरोधी मानसिकता का जनक कौन था ? किसने साजिश की??? जानिए.....

 20

September, 2023

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🚩चेन्नई की झुग्गी-झोपड़ी में एक दलित परिवार में जन्मे और वहीं पचीस वर्ष बिताने वाले ऐम वेंकटेशन एक आस्थावान हिंदू हैं। उन्होंने चेन्नई के विवेकानन्द महाविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है। जब वेंकटेशन ने महाविद्यालय में प्रवेश लिया तो उनके कथनानुसार उन्हें प्रतिदिन पेरियारवादियों के एक ही कथन का लगातार सामना करना पड़ा कि पेरियार एक महान दलित उद्धारक थे। चूंकि उन्हें पेरियार दर्शन का कोई ज्ञान नहीं था, उन्होंने पेरियार से संबंधित समस्त उपलब्ध साहित्य के अध्ययन और शोध करने का संकल्प लिया। इसके लिये उन्होंने पेरियार द्वारा स्थापित, संचालित और संपादित सभी पत्रिकाओं , विदुथालाई, कुडियारासु , द्रविड़नाडु, द्रविड़न, उनके समकालीन सभी नेताओं अन्नादुराई, ऐम पी सिवागन, केएपी विश्वनाथन, जीवानंदम आदि के भाषण और लेख तथा 'पेरियार सुयामरियादि प्रचारनिलयम' द्वारा प्रकाशित उनके समस्त साहित्य पर गहन शोध किया। एक आस्थावान हिंदू होने के कारण पेरियार द्वारा हिंदू देवी देवताओं पर लगाये गये बेबुनियाद आरोपों से आहत होकर पेरियार का सत्य सामने लाने के लिये वेंकटेशन ने एक पुस्तक तमिल में लिखी, 'ई.वी. रामास्वामी नायकरिन मरुपक्कम'(पेरियार का दूसरा चेहरा)।

वेंकटेशन के शब्दों में :

" मैं अपने ईष्ट देवी-देवताओं और हिंदू धर्म पर पेरियार के असभ्य और जंगली विचारों को सहन न कर सका। मुझे जिसने जन्म दिया उस प्रिय और पवित्र मां पर यह हमला था। पेरियार के संपूर्ण साहित्य पर शोध के बाद मुझे तीव्र सांस्कृतिक चोट पहुंची और उनकी हिंदू देवी-देवताओं और मेरे धर्म के प्रति घनघोर घृणा देखकर मैं अत्यधिक दुखी हो गया। पेरियार ने दलितों के लिये कुछ भी नहीं किया बल्कि उन्हें दोयम दर्जे का ही बनाये रखा। अगर पेरियार सौ प्रतिशत ब्राह्मण विरोधी थे तो अस्सी प्रतिशत दलित विरोधी भी थे।"

वेंकटेशन की पुस्तक पेरियार का संपूर्ण शव विच्छेदन करती हुई पेरियार वादियों के गले की हड्डी बन गई है। वेंकटेशन का दावा है कि जो भी सत्य का अन्वेषक है वह इस पुस्तक को पढ़ने के बाद पेरियार को त्याग देगा।


🚩इस पुस्तक का तमिल से अंग्रेज़ी और हिंदी में अनुवाद आज तक ना हो पाने के कारण पेरियार का असली चेहरा देश के सामने प्रकट नहीं हो पाया है। परिणाम स्वरूप पेरियार को दलित उध्दारक बताने और अंबेडकर के साथ जोड़ने का कुचक्र आज भी जारी है। 


🚩वेंकटेशन ने पेरियार दलित, राष्ट्र और धर्म विरोधी एजेंडे का बेरहमी से तथ्यों का संदर्भ देकर जो पोस्टमार्टम किया है वो आंखें खोलने वाला है। वेंकटेशन कहते हैं:

" अंग्रेजों ने हमपर शासन प्रारंभ करने के साथ ही यह समझने लिया था कि शायद वो भारत पर स्थाई रूप से शासन करने में असमर्थ होंगे। क्योंकि उनके विरुद्ध निरंतर विद्रोह होने लगा था और इन घटनाओं को लेकर वो बहुत चिंतित थे। उन्होंने मंथन किया कि यदि उन्हें भारत पर अपना शासन चलाये रखना है तो किसी भी तरह विरोध की आग को बुझाना ही होगा। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने विदेश से अनेक विद्वानों को भारत बुलाया। इन विद्वानों को यह पता लगाना था कि किन-किन उपायों और कार्यवाहियों से वो अनंत काल तक शासन कर सकते हैं।यही बात समझने के लिये सारे आयातित गोरे विद्वान देश के विभिन्न राज्यों में गये। एक ऐसे ही गोरे विद्वान के अनुसार :

"यदि हम भारत पर स्थाई रूप से शासन करना चाहते हैं तो हमें इस देश को विभाजित और तोड़ना पड़ेगा। भारत एक स्वाभिमानी राष्ट्र है और हमें सर्वप्रथम भारतियों के स्वाभिमान को नष्ट करना होगा। इस राष्ट्र की नींव हिंदू आध्यात्मिकता है जिसे सर्वप्रथम जड़ से उखाड़ फेंकना है। यदि हम ऐसा करने में असफल रहे तो हम भारत पर लंबे समय तक शासन नहीं कर पायेंगे। इसी हिंदू संस्कृति को हमें अपमानित, हीन और पूरी तरह ध्वस्त करना होगा। हिंदू देवी-देवताओं को लोगों की निगाहों से गिराना होगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनकी भाषा को नीचा साबित करना होगा। हमें यह भी पक्का करना होगा कि भारतीय हमारी इन बातों पर विश्वास भी करने लगे जायें कि उनकी संस्कृति नीच है। इसमें कुछ भी अच्छा नहीं है। इसप्रकार भारतियों को मानसिक रूप से अपना गुलाम बना लेना ही उनपर शासन करने का एकमात्र उपाय है। उपर्युक्त सारी संस्तुतियां

आयातित गोरे विद्वानों के शोध से निकल कर सामने आयीं और अंग्रेजों ने तत्परता से इसपर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। 

सर्वप्रथम काल्डवेल ने 'ए ग्रामर औफ द्रविड़ियन लैंग्वेजेस' लिखी। साथ ही यह भी लिखा कि सारी भारतीय भाषायें तमिल से ही उपजी हैं और संस्कृत का तमिल से कोई संबंध नहीं है। इसके तुरंत पश्चात् ऐसे ही लेखों कि बाढ़ आने लगी। इसी समय अंग्रेजों ने निर्णय लिया कि भारत को तोड़ने के लिये उन्हें अपने भारतीय समर्थकों के साथ ही उन कतिपय नेताओं की भी आवश्यकता है जो उनकी साजिश को अंजाम दे सकें। इसलिये अंग्रेजों के इशारे पर तत्कालीन मद्रास प्रांत में टी एम नायर, सर पित्ती तेइगरिया आदि ने जस्टिस पार्टी का गठन किया। प्रारंभ में यह गैर राजनीतिक थी परंतु शनै: शनै: राजनीति में शामिल होने लगी। जस्टिस पार्टी ने ही सर्वप्रथम ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण की अवधारणा तमिलनाडु में पैदा की। ऐसी विभाजनकारी अवधारणा तमिलनाडु में इसके पहले अनुपस्थित थी। हमारे अपने ही लोगों के माध्यम से अंग्रेजों ने हमें कदम दर कदम तोड़ना शुरू कर दिया।

 1916 में जस्टिस पार्टी की स्थापना हुयी और 1919 में पेरियार राजनीति में आये। इससे पहले इन्हें राजनीति में कोई नहीं जानता था। राजनीति के प्रारंभिक दिनों में वो राष्ट्रभक्त और आध्यात्मिक थे। उन्होंने आर्य और द्रविड़ के विभाजन की अवधारणा को सिरे से नकारा भी। 1919 में एक पत्रिका 'नेशनलिस्ट' में लेख लिखकर आर्य-द्रविड़ विभाजन के सिद्धांत सिरे से नकारते हुये पेरियार ने इसे धोखा बताया। यहां तक कि जब उन्होंने अपनी प्रथम पत्रिका निकाली तो ये लिखा कि वो यह कार्य ईश्वर के दिव्य आशीर्वाद से कर रहे हैं। उन्होंने एक हिंदू संत से अपनी पत्रिका के कार्यालय का उद्घाटन भी करवाया। पेरियार ने जस्टिस पार्टी का विरोध सैद्धांतिक रूप से भी किया और अपने कार्यों से भी। पेरियार और थिरू वी के ने एक संगठन बनाकर जस्टिस पार्टी का तमिलनाडु में विरोध भी किया। फिर अचानक पेरियार ने जस्टिस पार्टी से संबंध बनाने शुरू किये जिसके सभी सदस्य अंग्रेजों के पिट्ठू थे। सच्चाई यह थी कि जस्टिस पार्टी बनाने में अंग्रेजों का ही हाथ था। जस्टिस पार्टी के कारण पेरियार की प्रसिद्धि और प्रचार बढ़ने लगा।


🚩पेरियार तमिलनाडु के सर्वाधिक धनी व्यक्ति थे। उन दिनों जितने भी राष्ट्रीय नेता तमिलनाडु आते थे वो पेरियार के व्यक्तिगत् अतिथि हुआ करते थे। उनका रहना, खाना-पीना सब पेरियार के घर पर ही होता था। पेरियार का परिवार इरोड का एक सम्मानित और संपन्न परिवार था। उनकी नेतृत्व क्षमता का आकलन कर अंग्रेजों ने उन्हें जस्टिस पार्टी में शामिल करने की योजना पर कार्य करना शुरू कर दिया। अंग्रेजों के इशारे पर जस्टिस पार्टी के कर्णधारों ने पेरियार से मिलना जुलना और उनसे संबंध बनाना चालू कर दिया। पेरियार ने भी उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और थोड़े ही समय में दोनों के मध्य नज़दीकी संबंध भी बन गये।


🚩तभी कतिपय आर्थिक अनियमितताओं को लेकर पेरियार और कांग्रेस में गहरी दरार पड़ गयी। अधिकतर लोगों को इस बात की जानकारी आज भी नहीं है। दरअसल आंध्रप्रदेश के संस्थानम ने चेरन मां देवी गुरुकुलम को पांच हजार का दान दिया था। पेरियार पर आरोप था कि उसने कांग्रेस के पैसे का दुरपयोग किया। पेरियार ने अपने बचाव में कहा कि यह पैसा उसकी अनुमति लिये बिना दिया गया। इसी आरोप के साथ पेरियार का कांग्रेस के साथ मतभेद गहराता चला गया और उसने 'सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट' की शुरुआत कर दी। इस मूवमेंट के पीछे अंग्रेजों की गहरी साज़िश थी और उनके और जस्टिस पार्टी के अतिरिक्त और किसी ने भी इसका समर्थन तमिलनाडु में नहीं किया। शनै: शनै: पेरियार अंग्रेजों के बौद्धिक प्यादा हो गये। अंग्रेजों के दृष्टिकोण का उन्होंने समर्थन करना शुरु कर दिया।


🚩यदि हम 1927 के पश्चात् पेरियार के दिये हुये भाषणों के देखें तो सब राष्ट्र और हिंदू विरोधी थे। यदि इन भाषणों को गहराई से देखें तो आश्चर्यजनक रूप से ये दलित विरोधी थे। इसका कारण यह है कि गांधी दलितों को मंदिरों में प्रवेश दिलाने के लिये उस समय सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे। गांधी ने अपील की चूंकि आगम नियमों के मुताबिक शूद्र मंदिर के मंडप तक जा सकते हैं, दलितों को भी मंडप तक जाने का अधिकार है। उनको भी यह अनुमति मिलनी चाहिये पेरियार ने तुरंत इस बात का प्रतिवाद किया कि शूद्र और दलित समान हैं। उस काल में शूद्रों मंडप तक जा सकते थे। पेरियार ने कभी यह नहीं कहा कि मंदिर प्रवेश के लिये सभी वर्णों को समान अधिकार है। वो शूद्रों को चौथा वर्ण मानते थे और दलित को पांचवां जो मंदिर प्रवेश के अधिकारी नहीं है। उन्होंने मरते दम तक यह माना कि शूद्र और दलित अलग-अलग है। इस बात को उन्होंने सार्वजनिक मंचों से कई बार बिना किसी शर्म के कहा भी। 

तभी चेतन मां देवी गुरुकुलम में हुयी एक घटना ने पूरे तमिलनाडु को झकझोर दिया। हुआ यह कि वी वी एस अय्यर ने विशेष रूप से पकाये भोजन को गुरुकुल के दो ब्राह्मण विद्यार्थियों को ही दिया। यह घटना तमिलनाडु में बड़ा मुद्दा बन गयी। तुरंत इसका बहाना खड़ा कर सर्वप्रथम पेरियार ने ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण का हौआ राज्य में खड़ा करना शुरू किया। यहीं से उसकी ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण की राजनीति की नींव पड़ी। इस मुद्दे के समाधान और सभी को समान अधिकार देने के लिये एक राष्ट्रवादी कांग्रेसी गावियकंद गणपथि सास्त्रुगल अय्यर सामने आये। उन्होंने कहा कि यद्यपि गुरुकुल में एक भी दलित विद्यार्थी नहीं है फिर भी एक दलित को गुरुकुल का बावर्ची नियुक्त किया जाये। जिसके हाथों से पकाया भोजन सभी विद्यार्थी खायें। यही सामाजिक न्याय का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण होगा। अय्यर संस्कृत के उत्कृष्ट विद्वान भी थे। लेकिन सामाजिक न्याय के योद्धा पेरियार ने कहा कि वो इस सुझाव को कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने प्रश्न खड़े किये कि कैसे दलित का पकाया भोजन शूद्रों खा सकता है। यह उनकी दलित विरोधी मानसिकता थी जिसका पालन उन्होंने आजीवन किया। हास्यास्पद रूप से आज भी पेरियार को दलितों का मसीहा बताकर लोगों को बरगलाया जाता है। यह झूठ का पुलिंदा मात्र है।


🚩अपने दलित विरोधी विचारों के साथ ही उन्हें अब यह लगा कि हिंदुत्व का विनाश कर ही राष्ट्र को तोड़ा जा सकता है। इसके लिये जो रणनीति उसने बनायी उसमें प्रथम था रामायण को गालियां देना। रामायण को नीचा साबित करने के लिये अनेक पुस्तकें लिखी गयीं। महाभारत को भी नहीं बख्शा गया। हम सभी महान संत और कवि कंब से परिचित हैं जिन्होंने कंब रामायण लिखी थी। पेरियार ने एक पुस्तक 'कंब रस्म' लिखकर रामायण को बेहद अश्लील तरीके से प्रस्तुत किया। नीचता की पराकाष्ठा कर उसने संत कवि कंब, भगवान राम और देवी सीता को जी भर गालियां दीं।

पेरियार के इस कदम का शैव मतावलंबियों ने तालियां बजाकर स्वागत् और समर्थन किया क्योंकि पेरियार वैष्णव मत वालों पर हमला कर रहा था। शैव मठों के प्रमुख महंतों ने, जिसमे कुंद्राकुडी अडिगल भी सम्मिलित थे, इसी कारण पेरियार का समर्थन किया। यही स्थिति थी उस समय तमिलनाडु में। लेकिन कुछ समय पश्चात् जब पेरियार ने तमिल शैव 'पेरिया पुराणम्' पर भी हमला बोला तब शैवों को पेरियार की असल साजिश का एहसास हुआ। फलस्वरूप सभी मतावलंबी एकजुट होकर पेरियार के विरोध में आ गये। एक-एक कर सभी हिंदू ग्रंथ पेरियार के निशाने पर आने लगे। यहां तक कि उसने तिरुक्कुरल को भी हर संभव गालियां देनी प्रारंभ कर दी। पेरियार के शब्दों में तिरुक्कुरल "सोने की थाली में परोसी गयी मानव विष्ठा है।"


🚩प्राचीन तमिल महाकाव्य सिलापथिकरम के रचनाकार इलांगो अडिगल, तोल्कापियर आदि जितने महापुरुष, जिनको तमिल हिंदू हृदय से पूजते थे, उन सभी को पेरियार अपमानित करने लगा। पेरियार की इस साज़िश के पीछे एकमात्र कारण यह था कि इन महापुरुषों और इनके द्वारा रचित सभी ग्रंथों से हिंदू, जिन्हें वो पवित्र मानते हैं, गुमराह होकर इनसे घृणा करने लगें और इनसे विमुख हो जायें। पेरियार का शातिर दिमाग यह जानता था किसी भी व्यक्ति को उसकी संस्कृति से काट कर ही उसे किसी विदेशी संस्कृति को अपनाने के लिये सहजता से तैयार किया जा सकता है। यही उसका एकमात्र ध्येय भी था।


🚩इसके बाद उसने राम के पुतले का दहन किया। विनयागर (गणेश) मूर्ति को सलेम जिले में जनता के मध्य तोड़ा।पेरियार की कहने पर उसके गुंडों ने हर तरह के अत्याचार हिंदू मान्यताओं पर करना शुरू किया। किसी ने भी उसका विरोध नहीं किया। विनयागर मूर्ति तोड़ने के मामले पर सलेम जिले में हिंदुओं की धार्मिक आस्था आहत करने का मुकदमा पेरियार के संगठन द्रविड़ कड़गम पर दर्ज भी हुआ। अदालत में न्यायाधीश की टिप्पणी थी कि यदि मूर्ति तोड़ने से वास्तव में किसी की भावना आहत हुयी है तो कम से कम किसी एक ने तो इसपर मौके पर या बाद में अपनी प्रतिक्रया दी होती। चूंकि किसी ने भी विरोध नहीं किया तो इसका अर्थ है कि किसी को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी और सबने इस कार्य को स्वीकार किया।

उस समय सभी मौन थे। पेरियार की सभी हरकतों को हमने अपनी नियति मान ली थी। किसी ने भी विरोध में चूं तक नहीं की। एक ओर हमारा हिंदू धर्म था और दूसरी ओर हमारी भाषा जिसे हम देवी के रूप में पूजते थे। उसने संस्कृत और तमिल को बांट दिया। दलितों के दिमाग में यह बात ठूंस दी कि संस्कृत विदेशी भाषा है और दलितों और संस्कृत का कोई नाता नहीं है। लेकिन भला ऐसा कैसे संभव है ? दलितों और संस्कृत के मध्य सदा से गहरा और निकट का नाता रहा है। वाल्मीकि जी और व्यास ने संस्कृत में लिखा। किसने उन्हें संस्कृत पढ़ाई ? संस्कृत ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी जाता रहा। दलितों की एक उपजाति है वल्लुवर जो आज की तारीख तक हिंदू पंचांग संस्कृत में लिखते हैं। क्या कोई बिना संस्कृत ज्ञान के पंचांग लिख सकता है ? ध्यान देने की बात है कि आज भी वल्लुवरों को कोई ब्राह्मण संस्कृत नहीं पढ़ाता है। डा. अंबेडकर ने कहा था कि यदि कोई भाषा संपूर्ण राष्ट्र की साझा भाषा हो सकती है तो वो केवल संस्कृत ही है। ऐसा उन्होंने संविधान सभा की चर्चा के मध्य संसद में कहा था। सिलापथिकरम कोवलन संस्कृत के विद्वान थे। वो संस्कृत सहजता से बोला भी करते थे। एकबार किसी राहगीर ने उनसे संस्कृत भाषा में लिखा कोई पता पूछा तो उन्होंने संस्कृत पढ़कर उसे उत्तर दिया। कोवलन वनिबा चेट्टियार थे जो एक वैश्य उपजाति है। यह इस बात का प्रमाण है कि संस्कृत आमजन की भाषा भी थी। हर व्यक्ति के हृदय में संस्कृत के लिये भक्तिभाव था। अत: पेरियार के लिये यह आवश्यक था कि अपने कुटिल उद्देश्य की पूर्ति हेतु संस्कृत के प्रति आम जनता के भक्तिभाव को कैसे भी हो तोड़ा और नष्ट किया जाये।


🚩तमिलनाडु में दलित और अन्य जातियां सदा से मिलजुल कर रहा करती थीं। पेरियार इसी आपसी सद्भाव को तोड़कर समाज को दलित और गैर दलित में बांटने की साज़िश रच रहा था। इस साज़िश के तहत उसने योजनाबद्ध तरीके से यह घोषणा की कि समस्त जातिगत् झगड़े ब्राह्मणों के कारण ही हैं। तमिलनाडु के अनेक गांवों में जहां एक भी ब्राह्मण नहीं आबाद था वहां जातिगत् झगड़े और हिंसा हुआ करते थे। पेरियार ने इन सभी के लिये ब्राह्मणों को जिम्मेदार ठहराता था। आज भी तमिलनाडु में ऐसा ही होता है। मुडुकुलथुर दंगे तमिलनाडु की मझोली जातियों के समूह मुक्कलदोर और देवेन्द्र कुला वेल्लार दलितों के बीच ही हुये थे। इस दंगे में दो व्यक्ति मारे गये थे। एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इन दंगों को लेकर कहा :

" तुम जातियों का विनाश चाहते हो या नहीं ! मन बना लो। फांसी की रस्सी के लिये तैयार रहो। सभी युवा खून से हस्ताक्षर कर इस बारे में घोषणा करें कि वो गांधी की मूर्तियों तोड़ेंगे और ब्राह्मणों को मारेंगे।"


🚩जबकि मुडुकुलथुर और ब्राह्मणों के बीच कोई संबंध ही नहीं था। साथ ही पेरियार ने यह भी कहा कि सभी प्रकार की जातिगत् झगड़े ब्राह्मणों के कारण हैं। 


🚩पेरियार ने एक हजार से भी अधिक निबंध और लेख लिखे हैं। अस्सी प्रतिशत से अधिक अपने लेखों में उसने सभी स्थानों में सभी प्रकार की समस्याओं का कारण केवल ब्राह्मणों को ही बताया है।

वर्ष 1962 में किलवेनमनि दंगों में नायडू जाति वालों ने 44 दलितों को जिंदा जला कर मार डाला था। इस पूरे क्षेत्र में एक भी ब्राह्मण नहीं रहता था। यहां भी पेरियार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दंगों के लिये ब्राह्मणों को दोषी मानते हुये मांग की:

" जातियों को तोड़ने के लिये ब्राह्मणों का समूल नाश कर दिया जाये। "

भारत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। जो भी इस दिव्य राष्ट्र और हिंदुत्व की रक्षा करता है उसे हम उच्च पायदान पर रख कर उसको एक संत के समान पूजते हैं। यदि कोई भगवान वस्त्र धारण करता है तो हम उसका सम्मान करते हैं। हमारे हृदय में ब्राह्मणों के लिये सदा से सम्मान इसलिये रहा है क्योंकि वो भौतिक जीवन का त्याग कर राष्ट्रीय के लिये ही जीते रहे हैं। कुंज वृत्ति ! अर्थात् ब्राह्मणों द्वारा खेतों में गिरे अन्य के दानों को चुनकर उन्हें पकाकर खाना। यही वो ब्राह्मण थे जिनका तमिलनाडु में सभी समुदाय सदा से सम्मान करते थे। ब्राह्मणों की यही प्रतिष्ठा धूमिल और नष्ट करना पेरियार के जीवन का एक बड़ा लक्ष्य था। इसके लिये पेरियार ने समाज की सभी समस्याओं के लिये ब्राह्मणों को दोषी ठहराना प्रारंभ किया। वह और उसके लोग बहुत धूर्तता से इस साज़िश को मूर्तरूप देने लगे। अंततोगत्वा तमिलनाडु के निर्दोष ब्राह्मण पेरियार की कुटिल चाल की भेंट चढ़ ही गये। वह अपनी चाल में सफल हो गया।

तत्पश्चात् पेरियार ने वर्ष 1944 में एक प्रस्ताव पारित किया:

" अंग्रेजों को भारत छोड़कर वापस नहीं जाना चाहिये। लेकिन यदि ऐसा करना ही पड़े तो वो भारत के सभी राज्यों को आजादी दे दें। बस तमिलनाडु ही अंग्रेजों के राज्य के अधीन रहे।"

 इस प्रस्ताव के सामने आते ही तमिलनाडु की जनता की आंखें खुलीं और उन्हें एहसास हुआ कि पेरियार और उसके संगठन द्रविड़ कड़गम और जस्टिस पार्टी के समस्त कार्यकलापों के पीछे अंग्रेजी राज का ही हाथ है। ये दोनों संगठन ब्रिटिश राज की ही उपज थे।" -लेखक- अरुण लवानिया


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Tuesday, September 19, 2023

महिलाओं से अनजाने में कुछ गलतियां

 महिलाओं से अनजाने में कुछ गलतियां हो गई हो तो इस व्रत को अवश्य करे ,पापों से मिलेगी मुक्ति,पूरा लेख अवश्य पढ़ें......



19 September, 2023

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🚩भारत ऋषि-मुनियों का देश है। इस देश में ऋषियों की जीवन-प्रणाली का और ऋषियों के ज्ञान का अभी भी इतना प्रभाव है कि उनके ज्ञान के अनुसार जीवन जीनेवाले लोग शुद्ध, सात्त्विक, पवित्र और व्यवहार में भी सफल हो जाते हैं तथा परमार्थ में भी पूर्ण सफलता प्राप्त करते हैं।

ऋषि तो ऐसे कई हो गये, जिन्होंने अपना जीवन केवल ‘बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय’ बिता दिया।

हम उन ऋषियों का आदर करते हैं, पूजन करते हैं। उनमें से भी वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, अत्रि, गौतम और कश्यप आदि ऋषियों को तो सप्तर्षि के रूप में नक्षत्रों के प्रकाशपुंज में निहारते हैं ताकि उनकी चिरस्थायी स्मृति बनी रहे।

ऋषियों को ‘मंत्रद्रष्टा’ भी कहते हैं। ऋषि अपने को कर्ता नहीं मानते। जैसे वे अपने साक्षी-द्रष्टा पद में स्थित होकर संसार को देखते हैं, वैसे ही मंत्र और मंत्र के अर्थ को साक्षी भाव से देखते हैं। इसलिए उन्हें ‘मंत्रद्रष्टा’ कहा जाता है।


🚩ऋषि पंचमी के दिन इन मंत्रद्रष्टा ऋषियों का पूजन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएँ व्रत रखती हैं ।


🚩ऋषि की दृष्टि में तो न कोई स्त्री है न पुरुष, सब अपना ही स्वरूप है। जिसने भी अपने-आपको नहीं जाना है, उन सबके लिए ऋषि पंचमी का पर्व है। जिस अज्ञान के कारण यह जीव कितनी ही माताओं के गर्भों में लटकता आया है, कितनी ही यातनाएँ सहता आया है उस अज्ञान को निवृत्त करने के लिए उन ऋषि-मुनियों को हम हृदयपूर्वक प्रणाम करते हैं, उनका पूजन करते हैं।


🚩उन ऋषि-मुनियों का वास्तविक पूजन है- उनकी आज्ञा शिरोधार्य करना। उन्होंने खून-पसीना एक करके जगत को आसक्ति से छुड़ाने की कोशिश की है। हमारे सामाजिक व्यवहार में, त्यौहारों में, रीत-रिवाजों में उन्होंने कुछ-न-कुछ ऐसे संस्कार डाल दिये कि अनंत काल से चली आ रही मान्यताओं के परदे हटें और सृष्टि को ज्यों-का-त्यों देखते हुए सृष्टिकर्ता परमात्मा को पाया जा सके। उन ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनका पूजन करना चाहिए, ऋषिऋण से मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए।


🚩वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह बात सिद्ध हो चुकी है कि मासिक धर्म के दिनों में स्त्री के शरीर से अशुद्ध परमाणु निकलते हैं, उसके मन-प्राण विशेषकर नीचे के केन्द्रों में होते हैं। इसलिए उन दिनों के लिए शास्त्रों में जो व्यवहार्य नियम बताये गये हैं, उनका पालन करने से हमारी उन्नति होती है।


🚩इस व्रत की कथा के अनुसार जिस किसी महिला ने मासिक धर्म के दिनों में शास्त्र-नियमों का पालन नहीं किया हो या अनजाने में ऋषि के दर्शन कर लिये हों या इन दिनों में उनके आगे चली गयी हो तो उस गलती के कारण जो दोष लगता है, उस दोष के निवारण हेतु, इस अपराध के लिए क्षमा माँगने हेतु यह व्रत रखा जाता है।


🚩ऋषि-मुनियों को आर्षद्रष्टा कहते हैं। उन्होंने कितना अध्ययन करने के बाद सब रहस्य बताये हैं! ऐसे ही नहीं कह दिया है। अभी भी आप अनुभव कर सकते हैं कि जिन दिनों घर की महिलाएँ मासिक धर्म में होती हैं, उन दिनों में प्रायः आपका मन उतना प्रसन्न और उन्नत नहीं रहता जितना और दिनों में रहता है।


🚩जिन घरों में शास्त्रोक्त नियमों का पालन होता है, लोग कुछ संयम से जीते हैं, उन घरों में तेजस्वी संतानें पैदा होती हैं।


🚩व्रत-विधि :


🚩ऋषि पंचमी का दिन त्यौहार का दिन नहीं है, व्रत का दिन है। आज के दिन हो सके तो अधेड़ा का दातुन करना चाहिए। दाँतों में छिपे हुए कीटाणु आदि निकल जायें और पायरिया जैसी बीमारियाँ नहीं हों तथा दाँत मजबूत हों- इस तरह दाँतों की तंदुरुस्ती का ख्याल रखते हुए यह बात बतायी गयी हो, ऐसा हो सकता है।


🚩इस दिन शरीर पर गाय के गोबर का लेप करके नदी में 108 बार गोते मारने होते हैं। गोबर के लेप से शरीर का मर्दन करते हुए स्नान करने के पीछे रोमकूप खुल जायें, चमड़ी पर से कीटाणु आदि का नाश हो जाय और साथ में एक्युप्रेशर व मसाज भी हो जाय- ऐसा उद्देश्य हो सकता है। 108 बार गोते मारने के पीछे ठंडी, गर्मी या वातावरण की प्रतिकूलता झेलने की जो रोगप्रतिकारक शक्ति शरीर में है, उसे जागृत करने का हेतु भी हो सकता है। अब आज के जमाने में नदी में जाकर 108 बार गोते मारना सबके लिए तो संभव नहीं है, इसलिए ऐसा आग्रह भी नही रखना चाहिए, लेकिन स्नान करो तब 108 बार हरिनाम लेकर अपने दिल को तो हरिरस से जरूर नहलाओ।


🚩स्नान के बाद सात कलश स्थापित करके सप्त ऋषियों का आवाहन करते हैं। उन ऋषियों की पत्नियों का स्मरण करके, उनका आवाहन, अर्चन-पूजन करते हैं। जो ब्राह्मण हो, ब्रह्मचिंतन करता हो, उसे सात केले घी-शक्कर मिलाकर देने चाहिए- ऐसा विधान है। अगर कुछ भी देने की शक्ति नहीं है और न दे सकें तो कोई बात नहीं, पर दुबारा ऐसा अपराध नहीं करेंगे यह दृढ़ निश्चय करना चाहिए। ऋषि पंचमी के दिन बहनें मिर्च, मसाला, घी, तेल, गुड़, शक्कर, दूध नहीं लेतीं। उस दिन लाल वस्त्र का दान करने का विधान है।

आज के दिन सप्तर्षियों को प्रणाम करके प्रार्थना करें कि ‘हमसे कायिक, वाचिक एवं मानसिक जो भी भूलें हो गयी हों, उन्हें क्षमा करना। आज के बाद हमारा जीवन ईश्वर के मार्ग पर शीघ्रता से आगे बढ़े, ऐसी कृपा करना।’


🚩खान-पान, स्नानादि तो हम हर रोज करते हैं, पर व्रत के निमित्त उन ब्रह्मर्षियों को याद करके सब क्रियाएँ करें तो हमारी लौकिक चेष्टाओं में भी उन ब्रह्मर्षियों का ज्ञान छलकने लगेगा। उनके अनुभव को अपना अनुभव बनाने की ओर कदम आगे रखें तो ब्रह्मज्ञानरूपी अति अद्भुत फल की प्राप्ति भी हो सकती है।


🚩ऋषि पंचमी का यह व्रत हमें ऋषिऋण से मुक्त होने के अवसर की याद दिलाता है। लौकिक दृष्टि से तो यह अपराध के लिए क्षमा माँगने का और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है, पर सूक्ष्म दृष्टि से अपने जीवन को ब्रह्मपरायण बनाने का संदेश देता है। ऋषियों की तरह हमारा जीवन भी संयमी, तेजस्वी, दिव्य, ब्रह्मप्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करनेवाला हो- ऐसी मंगल कामना करते हुए ऋषियों और ऋषिपत्नियों को मन-ही-मन आदरपूर्वक प्रणाम करते हैं।

(साभार- लोक कल्याण सेतु पत्रिका: अगस्त 2003)


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गणोशोत्सव भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी मनाया जाता हैं.....

18 September, 2023


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🚩गणेश चतुर्थी के दिन से पूरे देश में गणेशोत्सव मनाते हैं। लोग बड़े ही भक्ति भाव से गणेश की स्थापना कर रहे हैं । हिन्दुओं के साथ-साथ गैर हिन्दुओं में भी बप्पा के बहुत भक्त हैं। परंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान गणेश के जयकारे जिस तरह भारत में लगते हैं उसी तरह भारत से हजारों मील दूर कई देशों में भी गूंज रहे हैं। यहां गणपति की वैसी ही भक्ति, उतनी ही धूमधाम से पूजा और उतने ही उत्साह के साथ मूर्ति विसर्जन किया जाता है।


🚩अफ्रीकी देश घाना में गणपति बप्पा की पूजा अफ्रीकी लोग करते हैं। यहां हर साल भगवान गणेश की पूजा धूमधाम से की जाती है और भारतीय हिन्दू की तरह ये भी गणेश मूर्ति का विसर्जन करते हैं।


🚩नेपाल में गणेश मंदिर की स्थापना सबसे पहले सम्राट अशोक की पुत्री चारूमित्रा ने की थी। वहां के लोग भगवान गणेश को सिद्धिदाता और संकटमोचन के रूप में मानते हैं। परेशानियों से बचने के लिए वहां गणेश जी की पूजा की जाती है। 


🚩चीन के प्राचीन हिन्दू मंदिरों में चारों दिशाओं के द्वारों पर गणेश जी स्थापित है। 


🚩तिब्बत में गणेश जी को दुष्टात्माओं के दुष्प्रभाव से रक्षा करने वाला देवता माना जाता है।

 

🚩जापान - जापान में भगवान गणेश को 'कांगितेन' के नाम से जाना जाता हैं, जो जापानी बौद्ध धर्म से सम्बंध रखते हैं। कांगितेन कई रूपों में पूजे जाते हैं, लेकिन इनका दो शरीर वाला स्वरूप सर्वाधिक प्रचलित है। चार भुजाओं वाले गणपति का भी वर्णन यहां मिलता है।

 

🚩श्रीलंका - तमिल बहुल क्षेत्रों में काले पत्थर से निर्मित भगवान पिल्लयार (गणेश) की पूजा की जाती है। श्रीलंका में गणेश के 14 प्राचीन मंदिर स्थित हैं। कोलंबो के पास केलान्या गंगा नदी के तट पर स्थित केलान्या में कई प्रसिद्ध बौद्ध मंदिरों में भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित हैं। 

 

🚩इंडोनेशिया - माना जाता है कि इंडोनेशियन द्वीप पर भारतीय धर्म का प्रभाव पहली शताब्दी से है। यहां के भारतीयों के लिए भगवान गणेश की मूर्तियां ख़ासतौर पर भारत से मंगाई जाती हैं। यहां के 20 हज़ार के नोट पर भी गणेशजी की तस्वीर है। यहां उन्हें ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। 

 

🚩थाईलैंड - गणपति 'फ्ररा फिकानेत' के रूप में प्रचलित हैं। यहां इन्हें सभी बाधाओं को हरने वाले और सफलता के देवता माना जाता है। नए व्यवसाय और शादी के मौके पर उनकी पूजा मुख्य रूप से की जाती है। गणेश चतुर्थी के साथ ही वहां गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।


🚩इन देशों के अलावा बर्मा, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, गुयाना, मारीशस, फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, कंबोडिया, न्यूजीलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो आदि में भी गणेशोत्सव मनाया जाता है।


🚩गणेशोत्सव की शुरूआत-


🚩गणेशोत्सव के इतिहास पर गौर करें तो कहा जाता है है कि पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया था। शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना की थी।


🚩लेकिन सन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ परिवार तक ही सीमित थी। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें।


🚩तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।


🚩तिलक द्वारा सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत करने से दो फायदे हुए; एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया।


🚩इस तरह से हुई गणेशोत्सव की शुरूआत।


🚩बहरहाल आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस गणेशोत्सव को आज भी सभी भारतीय बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।


🚩इसलिए यह जरूरी है कि देशभर में आज भी उल्लास के साथ मनाये जाने वाले गणेशोत्सव में फ़िल्मी व पॉप आदि गाने नहीं बजाने चाहिए और ना ही दारू आदि का नशा करना चाहिए। यह मात्र तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये- इसका ध्यान रखना चाहिए।


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Sunday, September 17, 2023

भगवान गणेश जी प्रथम पूज्यनीय कैसे बने ? कलंग से बचने व विघ्ननाश के लिए गणेश चतुर्थी को,ये उपाय अवश्य करें....

17 September, 2023

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🚩जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर सर्वप्रथम श्री गणपतिजी का पूजन अनिवार्य है।


🚩उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।


🚩जिस दिन गणेश तरंगें पहली बार पृथ्वी पर आयीं अर्थात जिस दिन गणेशजी अवतरित हुए, वह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन था। उसी दिन से गणपति का चतुर्थी से संबंध स्थापित हुआ।


🚩शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन आता है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपनी शक्ति से एक पुतला बनाकर उसमें प्राण भर दिए और उसका नाम ‘गणेश’ रखा।


🚩पार्वतीजी ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूँ, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।


🚩भगवान शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका।


🚩अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे माँ भगवती क्रुद्ध हो उठी और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।


🚩शिवजी के निर्देश अनुसार पर उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।


🚩माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया।


🚩भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तुम्हारा नाम सर्वोपरि होगा। तुम सबके पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों की अध्यक्षता करोगे।


🚩गणेश्वर! आप भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुये हैं। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।


🚩सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमयः पिता


🚩"गणेशजी 'सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमयः पिता' करके शिव-पार्वती की सात प्रदक्षिणा की, दंडवत् प्रणाम किया तो गणेश जी पर शिवजी और माँ पार्वती ने कृपा बरसायी और गणेशजी प्रथम पूजनीय हुए, दुनिया जानती है । इसलिए हिन्दू संत आसाराम बापू ने  'वेलेंटाइन डे' के कुप्रभावों से बचकर माता-पिता का सत्कार करने को कहा और 14 फरवरी को मातृ पितृ पूजन दिवस की शुरुवात की ।"


🚩लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजन का विधान इसी कारण रखा गया कि धन जीवन में अहंकार, व्यसन जैसी बुराइयां लेकर न आये अर्थात गलत तरीकों से धन न कमाएं। ईमानदारी से कमाया गया धन ही हमारे लिए सुखकारी होगा, अन्यथा धन पाकर भी कितने लोग हैं जो सुखी नहीं रह पाते हैं।


🚩गणेश चतुर्थी के दिन गणेश उपासना का विशेष महत्त्व है। इस दिन गणेशजी की प्रसन्नता के लिए इस ‘गणेश गायत्री’ मंत्र का जप करना चाहिए:

*महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।


🚩श्रीगणेशजी का अन्य मंत्र, जो समस्त कामनापूर्ति करनेवाला एवं सर्व सिद्धिप्रद है: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे। सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः।।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खंड : 13.34)


🚩गणेशजी बुद्धि के देवता हैं। विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपना अध्ययन-कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान गणपति, माँ सरस्वती एवं सद्गुरुदेव का स्मरण करना चाहिए। इससे बुद्धि शुद्ध और निर्मल होती है।


🚩विघ्न निवारण हेतु


🚩गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है।


🚩सावधानी 


🚩गणेश चतुर्थी तिथि को चंद्रमा के दर्शन से बचना चाहिए। अगर चंद्रमा को देख लिया तो झूठा कलंक लग जाता है। उसी तरह जिस तरह से श्री कृष्ण को स्यमंतक मणि चुराने का लगा था। लेकिन अगर चंद्रमा को देख ही लिया तो कृष्ण-स्यमंतक कथा को पढ़ने या विद्वानजनों से सुनने पर गणेश जी क्षमा कर देते हैं।


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Saturday, September 16, 2023

पेरियार की कुत्सित व घृणित मानसिकता का परिचय देती है,उसकी लिखी किताब सच्ची रामायण...

16 September, 2023

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🚩तमिलनाडु के दिवंगत नेता पेरियार को इस विघटनकारी मानसिकता का जनक कहा जाये, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पेरियार ने दलित वोट-बैंक को खड़ा करने के लिए ऐसा घृणित कार्य किया था। स्टालिन जैसे लोग भी अपनी राजनीतिक हितों को साधने के लिए उन्हीं का अनुसरण कर रहे है। पेरियार ने अपने आपको सही और श्री राम जी को गलत सिद्ध करने के लिए एक पुस्तक भी लिखी थी जिसका नाम था सच्ची रामायण।


🚩सच्ची रामायण पुस्तक वाल्मीकि रामायण के समान राम जी का कोई जीवन चरित्र नहीं है। बल्कि हम इसे रामायण की आलोचना में लिखी गई एक पुस्तक कह सकते हैं। इस में रामायण के हर पात्र के बारे में अलग अलग लिखा गया है। उनकी यथासंभव आलोचना की गई है। इस में राम ,सीता ,दशरथ हनुमान आदि के बारे में ऐसी ऐसी बाते लिखी गई है। जिनका वर्णन करने में लेखनी भी इंकार कर दे। सब से बड़ी बात सच्ची रामायण में पेरियार ने जबरन कुछ पात्रों को दलित सिद्ध करने का प्रयास किया है। इन ( पेरियार द्वारा घोषित ) दलित पात्रों का पेरियार ने जी भरकर महिमामंडन किया। यहाँ तक की रावण की इस पुस्तक में बहुत प्रशंसा की गई है। यहाँ तक कहा गया है कि राम उसे आसानी से हरा नहीं सकते थे। इसलिए उसे धोखे से मार गया। इसी पुस्तक में लिखा है के सीता अपनी इच्छा से रावण के साथ गयी थीं, क्यों कि उन्हें राम पसंद नहीं थे।


🚩पेरियार श्रीराम के विषय में लिखता है कि तमिलवासियों , भारत के शूद्रों तथा महाशूद्रों के लिये राम का चरित्र शिक्षाप्रद एवं अनुकरणीय नहीं है।


🚩पेरियार के अनुसार...

महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जो चित्रण किया गया है वो राम इस कल्पना के विपरीत हैं । पेरियार की कुत्सित मानसिकता का परिचय देती है उसकी यह दिमागी कचरे के बंडल जैसी किताब सच्ची रामायण, जिसके आगे रामायण शब्द लिखना भी बुरा लगता है।

पेरियार लिखता है कि, राम विश्वासघात, छल, कपट, लालच, कृत्रिमता, हत्या,आमिष-भोज और निर्दोष पर तीर चलाने की साकार मूर्ति थे।


🚩रामायण के प्रमुख पात्र भगवान राम मनुष्यरूप में प्रकट हो कर सभी के लिए आदर्श और मर्यदापुर्षोत्तम हैं। राम के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए वाल्मीकि रामायण पढ़ें । 

 

🚩*एतदिच्छाम्यहं श्रोतु परं कौतूहलं हि मे।महर्षे त्वं समर्थो$सि ज्ञातुमेवं विधं नरम्।।*(बालकांड सर्ग १ श्लोक ५)

आरंभ में वाल्मीकि जी नारदजी से प्रश्न करते है कि “हे महर्षि ! ऐसे सर्वगुणों से युक्त नर रूप में नारायण के संबंध में जानने की मुझे उत्कट इच्छा है,और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं।


🚩महर्षि वाल्मीकि ने श्रीरामचंद्र को *सर्वगुणसंपन्न* कहा है।

*अयोध्याकांड प्रथम सर्ग श्लोक ९-३२ में श्री राम जी के गुणों का वर्णन करते हुए वाल्मीकि जी लिखते है।


*सा हि रूपोपमन्नश्च वीर्यवानसूयकः।भूमावनुपमः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमः।९।कदाचिदुपकारेण कृतेतैकेन तुष्यति।न स्मरत्यपकारणा शतमप्यात्यत्तया।११।*

अर्थात्:- श्रीराम बड़े ही रूपवान और पराक्रमी थे।वे किसी में दोष नहीं देखते थे।भूमंडल पर उनके समान कोई न था।वे गुणों में अपने पिता के समान तथा योग्य पुत्र थे।९।।

कभी कोई उपकार करता तो उसे सदा याद रखते तथा उसके अपराधों को याद नहीं करते।।११।।


🚩आगे संक्षेप में इसी सर्ग में वर्णित श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं।देखिये

*श्लोक १२-३४*।इनमें श्रीराम के निम्नलिखित गुण हैं।

१:-अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता।महापुरुषों से बात कर उनसे शिक्षा लेते।

२:-बुद्धिमान,मधुरभाषी तथा पराक्रमी, पर इन सब गुणों का गर्व न करने वाले।

३:-सत्यवादी,विद्वान, प्रजा के प्रति अनुरक्त , प्रजा भी उनको चाहती थी।

४:-परमदयालु,क्रोध को जीतने वाले,दीनबंधु।

५:-कुलोचित आचार व क्षात्रधर्म के पालक।

६:-शास्त्र विरुद्ध बातें नहीं मानते थे,वाचस्पति के समान तर्कशील।

७:-उनका शरीर निरोग था(आमिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता), सदैव तरूणावस्था जैसे सुंदर शरीर से सुशोभित थे।

८:-‘सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् सांगवेदवित’-संपूर्ण विद्याओं में प्रवीण, षडमगवेदपारगामी।बाणविद्या में अपने पिता से भी बढ़कर।

९:-उनको धर्मार्थकाममोक्ष का यथार्थज्ञान था तथा प्रतिभाशाली थे।

१०:-विनयशील,महान गुरुभक्त एवं आलस्य रहित थे।

११:- धनुर्वेद में सब विद्वानों से श्रेष्ठ।

कहां तक वर्णन किया जाये...? वाल्मीकि जी ने तो यहां तक कहा है, कि *लोके पुरुषसारज्ञः साधुरेको विनिर्मितः।*( वही सर्ग श्लोक १८)

अर्थात्:-

*उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था, कि संसार में विधाता ने समस्त पुरुषों के सारतत्त्व को समझने वाले साधु पुरुष के रूप में एकमात्र श्रीराम को ही प्रकट किया है।*


🚩अब पाठकगण स्वयं निर्णय कर लेंगे कि श्रीराम क्या थे !! लोभी,हत्यारा,मांसभोजी आदि या सदाचारी और श्रेष्ठतमगुणों और मर्यादा की साक्षात् मूर्ति !!!

श्री राम तो रामो विग्रहवान धर्मः अर्थात धर्म के साक्षात् मूर्त रूप हैं।

राम तो राम हैं...हमारा उनके श्रीचरणों में प्रणाम है ।


🚩भारत देश जो आज है उतना ही नहीं है। भारत के कई राजा पूरे पृथ्वी के सम्राट रहे हैं, ऐसा कई हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णन आता है। लेकिन दुष्ट स्वभाव के ( राक्षस जैसे ) लोग धीरे धीरे विभाजन करते गए और अन्य मत पंथ आते गए और आखिर में भारत एक छोटा देश बन कर रह गया और आज इस भारत  में भी राष्ट्र विरोधी ताकतें लोगों को जात-पात में बांटकर अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते है। 


🚩आसानी से समझना है तो यही है , कि जो सनातन विरोधी है... वही राष्ट्र विरोधी है और वे राष्ट्र और संस्कृति को खत्म करके अपनी सत्ता कायम करना चाहते हैं । इसलिए ऐसे दुष्ट स्वभाव के लोगो की पहचान करके देश से उनको उखाड़ फेंकना चाहिए।


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Friday, September 15, 2023

कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियां हमारे लिए छोड जाओ......

15  September, 2023


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🚩कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। मुस्लिम आतंकी संगठन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी ।

 

🚩मुस्लिम आतंकवादियों ने 14 सितंबर के दिन कश्मीरी हिन्दूओं को धमकी देकर सर्वप्रथम 14 सितम्बर 1989 को श्रीनगर में हिंदुओं की रक्षा करने वाले भाजपा नेता श्री टिकालाल की हत्या की थी। उसके बाद 19 जनवरी 1990 को लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सदा के लिए अपनी धरती, अपना घर छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा। वे आज भी शरणार्थी हैं। उन्हें वहां से भागने के लिए बाध्य करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं।

कितनी दुःखद बात है कि , उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिन्दू शरणार्थियों को वो भी नहीं !

 

🚩वर्ष 1990 के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी। हिजबुल मुजाहिद्दीन ने 4 जनवरी 1990 को प्रेस नोट जारी किया, जिसे कश्मीर के उर्दू समाचार पत्रों आफताब’ और अल सफा’ ने छापा । प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था । कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएं आरंभ हो गयी थी । कश्मीर की मस्जिदों के ध्वनि प्रक्षेपक जो अब तक केवल अल्लाह-ओ-अकबर’के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कर कहने लगे कि,

‘कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियां हमारे लिए छोड जाओ !

कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है !

असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन’ (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदु स्त्रियों के साथ, किंतु पुरुष नहीं’),

...ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे ।

 

🚩दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि कश्मीर में सभी इस्लामी वेशभूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया ।  कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, घर और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिह्नित कर दिए गए । यहां तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने के लिए उन्हें बाध्य किया गया ।

24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ –


🚩कश्मीर में काफिरों का कत्ल करो’ का सन्देश गूंज रहा था । इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भूल चुका था, वह एक बार पुन: अपने सामने था !

 

🚩आज कश्मीर घाटी में हिन्दू नहीं हैं। जम्मू और दिल्ली में आज भी उनके शरणार्थी शिविर हैं। 33 साल से वे वहां जीने को बाध्य हैं। कश्मीरी पंडितों की संख्या 3 से 7 लाख के लगभग मानी जाती है, जो भागने पर मजबूर किए गए और उनकी एक पूरी पीढ़ी नष्ट हो गयी। कभी धनवान रहे ये हिन्दू, आज सामान्य आवश्यकताओं के लिए भी पराश्रित हो गए हैं।  उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे। उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आ कर, कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरुंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं।

 

🚩कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहां कभी पांडवों की 28 पीढ़ियों ने राज्य किया था । वो कश्मीर जिसे आज भी भारत मां का मुकुट कहा जाता है । 500 साल पूर्व तक यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था। औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह कश्मीर के विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गये थे। किंतु कुछ समय पश्चात उन्हें भी औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित कर भरे दरबार में उनका क़त्ल कर दिया था। भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है।

"हिंदु घटा तो भारत बंटा" के तर्क की कोई काट उपलब्ध नहीं है। कश्मीर उसी का एक उदाहरण है।


🚩मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेक्युलर पार्टियों और हिंदु संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजी के पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती ! गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेक्युलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर कत्ल किए गए दसों सहस्र कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता ! सरकार कहती है, कि कश्मीरी हिंदु स्वेच्छा से’ कश्मीर छोड़ कर भागे । इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड्यंत्र भी रचा गया है ।


🚩.....जरा सोचिए आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं , जो आज भी विस्थापित हैं !?

भोगने वाले भोग रहे हैं । जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है और याद करके आंखें आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है ।

रामायण की देवी सीता को शरण देने वाले भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पडा ! कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है –

" मन करता है फूल चढा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी ही धरती पर ! "

स्त्रोत : IBTL

 

🚩कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद के पहली बलि सिद्ध हुए। वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 29 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सके !

 

🚩अब भाजपा की सरकार द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाने से कश्मीरी हिन्दुओं के मन में पुनः घाटी में बसने की उम्मीदें जागी हैं । अब शीघ्र ही सरकार कश्मीरी हिन्दुओं के घाटी में पुनर्वसन की व्यवस्था करेगी , ऐसी ही आशा है।


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