Tuesday, October 31, 2017

बड़ी खबर : 212 परिवारों ने ईसाई धर्म छोड़कर अपना लिया हिन्दू धर्म

अक्टूबर 31, 2017   www.azaadbharat.org
🚩भारत में भले #वेटिकन सिटी #पैसा देकर पुरजोर #धर्मान्तरण करवा रही हो लेकिन सच छुप नही सकता है, ईसाई धर्म की तो कई महान हस्तियों ने पूरी पोल खोली है ।
🚩फिलॉसफर #नित्शे ने लिखा है कि मैं ईसाई धर्म को एक #अभिशाप मानता हूँ, उसमें आंतरिक विकृति की पराकाष्ठा है । वह द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है । इस भयंकर विष का कोई मारण नहीं । #ईसाईत गुलाम, क्षुद्र और #चांडाल का #पंथ है ।
🚩अमेरिका के तीसरे राष्ट्र

पति थामस जैफरसन ने कहा है कि मैंने पचास और साठ वर्षों के बीच बाइबिल का अध्ययन किया तो तब मैंने यह समझा कि यह किसी पागल का प्रलाप मात्र है ।
🚩#एच.जी.वेल्स लिखते है कि दुनिया की सबसे बड़ी #बुराई है रोमन #कैथोलिक चर्च । 
 🚩#जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि #बाइबिल पुराने और दकियानूसी #अंधविश्वासों का एक #बंडल है । बाइबल को धरती में गाड़ देना चाहिए और प्रार्थना पुस्तक को जला देना चाहिए । 
🚩#डॉ. एनी बेसेन्ट ने लिखा कि मैंने 40 वर्षों तक विश्व के सभी बडे धर्मो का अध्ययन करके पाया कि #हिन्दू धर्म के समान पूर्ण, #महान और #वैज्ञानिक धर्म कोई नहीं है । 
🚩महात्मा गांधी ने बताया है कि हमें #गौमांस #भक्षण और #शराब पीने की #छूट देनेवाला #ईसाई धर्म नहीं चाहिए ।
🚩वो ईसाई धर्म जिसकी निंदा बड़ी-बड़ी हस्तियों ने की है जो सिर्फ 2017 साल पुराना है, उसको महान बताकर सनातन धर्म को तोड़ने की साजिश कर रहे हैं, लेकिन उनको पता नही है कि जो धर्म रावण और कंस जैसे बड़े राक्षस भी नही मिटा पाये वो आज के पादरी क्या मिटा पायेंगे?
🚩ईसाई पादरी किस तरह से लोगों को बहला फुसला कर उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं इसका एक और मामला सामने आया है ।
बहरहाल, उन लोगों की फिर से घर वापसी हो गई है।
🚩गौरतलब है कि ये मामला मध्यप्रदेश झाबुआ वनवासी संत सम्मलेन में दीक्षा कार्यक्रम का है। कभी हिन्दू धर्मं को छोड़कर ईसाई धर्म कबूल कर लेने वाले 212 परिवारों ने एक बार फिर से घर वापसी करते हुए हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया है।
🚩मामला मध्यप्रदेश आदिवासी बाहुल्य जिले #झाबुआ क्षेत्र ग्रामीण अंचल के गांव सेमलिया का है। जहाँ के #212 परिवारों ने लगभग डेढ़ दशक पूर्व हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म को अपना लिया था।
🚩अब उन्हीं परिवार ने हाथीपांवा डूंगर के चार मंदिर में हिन्दू रीतिरिवाजों के साथ बाकायदा घर वापसी की औपचारिकता पूरी कर पुनः हिन्दू धर्म को अपना लिया है। इन सभी लोगों की घर वापसी की पूरी औपचारिकता विश्व हिन्दू परिषद् के धर्म प्रसार स्वामी खुमसिह महाराज झाबुआ अलीराजपुर के प्रसार ने पूरी करवाई की।
🚩#खुमसिंह महाराज के मुताबिक इन सभी लोगों ने स्वेच्छा से ईसाई धर्म का परित्याग कर #हिन्दू धर्म को #अपनाया है और इन सभी लोगों का वैदिक रीति-रिवाज के साथ गायत्री परिवार के पंडितों द्वारा रक्षा सूत्र बांधकर हवन यज्ञ में आहूति डालकर, हाथ में नारियल चुनरी लेकर और हनुमान चालीसा का पाठकर पुनः अपने धर्म में शामिल कराया गया है।
🚩आतंकवादियों से भी ज्यादा खतरा इन ईसाई मिशनरियों से है भारत में भोले-भाले हिन्दुओं को बहला-फुसलाकर लालच देकर ईसाई धर्म मे ले जाते है, और इनके आड़े जो भी आते है उनको मीडिया में भारी फंडिग देकर बदनाम करवाया जाता है और राजनेताओं से मिलकर उनपर झूठे केस लगवाये जाते है और जेल भिजवाया जाता है ।
🚩#ईसाई #पादरी छोटे बच्चों-बच्चियों का कितना #यौन #शोषण करते है पकड़े भी जाते है जेल भी जाते है लेकिन मीडिया उनका नही दिखाती क्योंकि मीडिया का एजंडा है वेटिकन सिटी के इशारे पर हिन्दू धर्म को खत्म करने का । इसलिए वो हमेशा हिन्दू साधु-संत जिनके ऊपर षडयंत्र के तहत झूठे आरोप लगाये जाते है उनको ही बदनाम करती है ।
🚩अतः सभी #हिन्दुओं को #सावधान रहना होगा, आपके आस-पास कोई भी धर्मपरिवर्तन करवाता है तो एक होकर कानून के दायरे में रहकर डटकर मुकाबला करना चाहिए, जिससे आगे कोई धर्मपरिवर्तन करवाने की हिमत्त नही करें ।
🚩स्वामी विवेकानंद जी की बात को हमेशा ध्यान में रखे,
स्वामी जी ने कहा था कि हिन्दू समाज में से एक मुस्लिम या ईसाई बने, इसका मतलब यह नहीं कि एक हिन्दू कम हुआ बल्कि हिन्दूसमाज का एक दुश्मन और बढा ।
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Monday, October 30, 2017

जानिए लोह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल का इतिहास और उनके महान कार्य

अक्टूबर 30, 2017   www.azaadbharat.org
🚩सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के #स्वतंत्रता संग्राम #सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे #प्रथम #गृहमंत्री और #उप-प्रधानमंत्री बने। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को #सत्याग्रह की #सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है।
🚩1857  के स्वातंत्र्य-समर में युवा झवेरभाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजों को चुनौती दी थी । वल्लभभाई के बडे भाई विट्ठलभाई भी प्रसिद्ध देशभक्त थे । वल्लभभाई को निर्भयता व वीरता के संस्कार तो खून में ही मिले थे । वल्लभ भाई की निर्भयता से जहाँ बडों के सिर हर्ष व गर्व से ऊँचे उठ जाते थे, वहीं छोटे भी उन्हें बेहद चाहते थे । स्वभाव से ही वे अन्याय के खिलाफ थे । अपने सहयोगियों के कल्याण में उनकी प्रामाणिक दिलचस्पी थी ।
🚩जीवन परिचय
🚩पटेल का जन्म नडियाद 31 अक्टूबर 1875 गुजरात में एक लेवा #कृषक #परिवार में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के #स्वतन्त्रता #आन्दोलन में भाग लिया।
🚩खेडा संघर्ष
🚩स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
🚩बारडोली सत्याग्रह
🚩बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले #बारडोली का #सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।
🚩आजादी के बाद
🚩यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थी, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनों ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।
🚩गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी #रियासतों (राज्यों) को #भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पड़ी । भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत के लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन #1950 में उनका #देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।
🚩देसी राज्यों (रियासतों) का एकीकरण
🚩सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है।
🚩गांधी, नेहरू और पटेल
🚩स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरी। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।
🚩देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। #सरदार पटेल की महानतम देन थी #562 छोटी-बड़ी #रियासतों का #भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो।
🚩5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि "क्या मर्जी है?" राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था।
🚩जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"
🚩यद्यपि विदेश विभाग नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता।
🚩1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी नेहरू सहमत न थे। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा "क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।" नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती।
🚩गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता।
🚩सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के ह्रदय के सरदार थे।
🚩महान आत्माओं की महानता उनके जीवन - सिद्धांतों में होती है । उन्हें अपने सिद्धांत प्राणों से भी अधिक प्रिय होते हैं ।
🚩सामान्य मानव जिन परिस्थितियों में अपनी निष्ठा से डिग जाता है, महापुरुष ऐसे प्रसंगों में भी अडिग रहते हैं । सत्य ही उनका एकमात्र आश्रय होता है, वे फौलादी संकल्प के धनी होते हैं । उनका अपना पथ होता है, जिससे वे कभी विपथ नहीं होते ।
सरदार वल्लभ भाई पटेल जिन्हें देश ‘लौह पुरुष के नाम से भी जानता है, ऐसे ही एक वल्लभ भाई थे ।
🚩उनके जीवन का यह प्रसंग उनके इसी सद्गुण की झाँकी कराता है ।
वल्लभ भाई अपने पुत्र-पुत्री को शिक्षा हेतु यूरोप भेजना चाहते थे । इस हेतु रुपये भी कोष में जमा कर दिये गये थे लेकिन ज्यों ही असहयोग आंदोलन की घोषणा की गयी, त्यों ही उन्होंने पूर्वनिर्धारित योजना को ठप कर दिया ।
🚩उन्होंने दृढ निश्चय किया कि ‘चाहे जो हो, मैं मन, वचन और कर्म से असहयोग के सिद्धांतों पर दृढ रहूँगा । जिस देश के निवासी हमारी बोटी-बोटी के लिए लालायित हैं, जो हमारे रक्त-तर्पण से अपनी प्यास बुझाते हैं, उनकी धरती पर अपनी संतान को ज्ञानप्राप्ति के लिए भेजना अपनी ही आत्मा को कलंकित करना है । भारत माता की आत्मा को दुखाना है ।
🚩उन्होंने सिर्फ सोचा ही नहीं, अपने बच्चों को इंग्लैंड में पढने से साफ मना कर दिया । ऐसी थी उनकी सिद्धांत-प्रियता । तभी तो थे वे #‘लौह पुरुष है।
🚩#वल्लभ भाई पटेल को सन 1991 में मरणोपरान्त #भारत रत्न से #सम्मानित #किया गया है।
🚩पटेल के प्रति हरिवंशराय बच्चन के उदगार...
यही प्रसिद्ध लोहपुरुष प्रबल,
यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल,
हिला इसे सका कभी न शत्रु दल,
पटेल पर, स्वदेश को गुमान है।
सुबुद्धि उच्च श्रृंग पर किये जगह,
हृदय गंभीर है समुद्र की तरह,
कदम छुए हुए ज़मीन की सतह,
पटेल देश का, निगहबान है।
हरेक पक्ष के पटेल तौलता,
हरेक भेद को पटेल खोलता,
दुराव या छिपाव से इसे गरज ?
कठोर नग्न सत्य बोलता।
पटेल हिंद की नीडर जबान है।
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