Thursday, October 19, 2017

नूतन वर्ष को क्या करने से वर्षभर प्रसन्न और निरोग रहे?

अक्टूबर 19, 2017   www.azaadbharat.org
भारतीय संस्कृति के नूतन वर्ष प्रकाशमय पर्व की आप सभी को खूब-खूब हार्दिक शुभकामनाएँ...
दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन.. जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष, दैन्य आदि जिस भाव में रहता है, उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है।'महाभारत' में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते हैं-
यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।


'हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।'
अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें। वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।
आज के दिन से हमारे नूतन वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसलिए भी हमें अपने इस नूतन वर्ष में कुछ ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करना चाहिए।
पहले के जमाने में गाँवों में दीपावली के दिनों में वर्ष के प्रथम दिन नीम और अशोक वृक्ष के पत्तों के तोरण (बंदनवार) बाँधते थे, जिससे कि वहाँ से लोग गुजरें तो वर्ष भर प्रसन्न रहें, #निरोग रहें । अशोक और नीम के पत्तों में रोगप्रतिकारक शक्ति होती है । उस तोरण के नीचे से गुजरकर जाने से वर्ष भर रोगप्रतिकारक शक्ति बनी रहती है । वर्ष के प्रथम दिन आप भी अपने घरों में तोरण बाँधो तो अच्छा है ।
कैसे करें नूतन वर्ष का स्वागत ?
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले तु गोविंदः प्रभाते करदर्शनम् ।।
अपने मुँह पर हाथ घुमा लेना । फिर दायाँ नथुना चलता हो तो दायाँ पैर और बायाँ चलता हो तो बायाँ पैर धरती पर पहले रखना ।
इस दिन विचारना कि ‘जिन विचारों और कर्मों को करने से हम मनुष्यता की महानता से नीचे आते हैं उनमें कितना समय बरबाद हुआ ? अब नहीं करेंगे अथवा कम समय देंगे और जिनसे मनुष्य-जीवन का फायदा होता है - सत्संग है, भगवन्नाम सुमिरन है, सुख और दुःख में समता है, साक्षीभाव है... इनमें हम ज्यादा समय देंगे, आत्मज्योति में जियेंगे । रोज सुबह नींद में से उठकर 5 मिनट शिवनेत्र पर ॐकार या ज्योति अथवा भगवान की भावना करेंगे...।’
नूतन वर्ष के दिन सुबह जगते ही बिस्तर पर बैठे-बैठे चिंतन करना कि ‘आनंदस्वरूप परमात्मा मेरा आत्मा है । प्रभु मेरे सुहृद हैं, सखा हैं, परम हितैषी हैं, ॐ ॐ आनंद ॐ... ॐ ॐ माधुर्य ॐ...।
नूतन वर्ष पर #पुण्यमय दर्शन
नूतन वर्ष के दिन #मंगलमय चीजों का दर्शन करना भी शुभ माना गया है, पुण्य-प्रदायक माना गया है । जैसे  :
उत्तम ब्राह्मण, तीर्थ, वैष्णव, देव-प्रतिमा, सूर्यदेव, सती स्त्री, संन्यासी, यति, ब्रह्मचारी, गौ, अग्नि, गुरु, गजराज, सिंह, श्वेत अश्व, शुक, #कोकिल, खंजरीट (खंजन), हंस, मोर, नीलकंठ, शंख पक्षी, बछड़े सहित गाय, पीपल वृक्ष, पति-पुत्रवाली नारी, तीर्थयात्री, दीपक, सुवर्ण, मणि, मोती, हीरा, #माणिक्य, तुलसी, श्वेत पुष्प, फल, श्वेत धान्य, घी, दही, शहद, भरा हुआ घड़ा, लावा, दर्पण, जल, श्वेत पुष्पों की माला, गोरोचन, कपूर, #चाँदी, तालाब, फूलों से भरी हुई वाटिका, शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा, चंदन, कस्तूरी, #कुमकुम, पताका, अक्षयवट (प्रयाग तथा गया स्थित वटवृक्ष), देववृक्ष (गूगल), देवालय, देवसंबंधी जलाशय, देवता के आश्रित भक्त, देववट, सुगंधित वायु, #शंख, दुंदुभि, सीपी, मूँगा, स्फटिक मणि, कुश की जड़, गंगाजी की मिट्टी, कुश, ताँबा, पुराण की पुस्तक, शुद्ध और बीजमंत्रसहित भगवान विष्णु का यंत्र, चिकनी दूब, रत्न, तपस्वी, सिद्ध मंत्र, समुद्र, #कृष्णसार (काला) मृग, यज्ञ, महान उत्सव, गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, गोधूलि, गौशाला, गोखुर, पकी हुई खेती से भरा खेत, सुंदर (सदाचारी) #पद्मिनी, #सुंदर वेष, वस्त्र एवं दिव्य #आभूषणों से विभूषित सौभाग्यवती स्त्री, #क्षेमकरी, गंध, दूर्वा, चावल और अक्षत (अखंड चावल), सिद्धान्न (पकाया हुआ अन्न) और उत्तम अन्न- इन सबके दर्शन से पुण्यलाभ होता है ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड, अध्याय : ७६ एवं ७८)
दीपावली वर्ष का #आखिरी दिन है और नूतन वर्ष प्रथम दिन है। यह दिन आपके जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का दिन है।
दीपावली की रात्री में #वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए #शुभ #संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, #साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में और मंदिर में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, #आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष।'
(संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य ऋषि प्रसाद से)
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