Thursday, November 30, 2023

हिंदुओं की इस गलती के कारण फिर आया मुस्लिम तुष्टिकरण का ट्रेंड

01 December 2023

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🚩देश में कुछ दिनों से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति खत्म हो रही थी। बीजेपी के उभार के बाद एक ट्रेंड देखने को मिल रहा था कि हर राजनीतिक दल खुद को सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर झुका दिखाने की कोशिश कर रहा था। यही कारण था समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने भी अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिये पर रखना शुरू कर दिया था। अपने आपको मुसलमानों का हितैषी कहने वाले दलों ने भी मुस्लिम कैंडिडेट उतारने में कटौती कर रखी थी। पर इस बार हो रहे विधानसभा चुनावों में फिर पुराना ट्रेंड जोर पकड़ रहा है। बीजेपी विरोधी सभी पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए खुलकर हर चाल चल रही हैं। तेलंगाना में बीआरएस ने मुस्लिम कम्युनिटी के लिए अलग आईटी पार्क बनाने की घोषणा की है तो कांग्रेस ने मुस्लिम मेनिफेस्टो ही जारी कर दिया। इसी बीच बिहार से ऐसी खबर आ रही है कि नीतीश कुमार ने मुस्लिम समुदाय के लिए अलग छुट्टियों का कैलंडर ही जारी कर दिया है।


🚩राजनीतिक पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक को इसलिए महत्व देते है की हिंदू जाति पाती में बंटा है और मुस्लिम समुदाय अपनी एकता दिखाकर मुस्लिम समुदाय के पक्ष में खड़े रहने वाले को ही वोट देते है, अब हिंदुओं को भी इससे सिख लेनी चाहिए की जाती में नही बंटकर एक होकर रहना चाहिए नही तो फिर से गुलामी की जंजीरों में ना झकड़ना पड़े क्योंकि हमारे अनगिनत पूर्वजों ने अपना बलिदान देकर बड़ी मुश्किल से आजादी हासिल की है जिसके कारण आज हम स्वतंत्रता की सांसे ले रहे हैं।


🚩बिहार सरकार का मुस्लिम तुष्टिकरण


🚩2024 में सरकारी स्कूलों के लिए नीतीश सरकार ने छुट्टी का जो कैलेंडर जारी किया है उससे पता चलता है कि रामनवमी, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि और रक्षाबंधन जैसी छुट्टियाँ हटा दी गई हैं। वहीं बकरीद और मुहर्रम पर छुट्टी एक-एक दिन के लिए बढ़ा दी गई है। यह कैलेंडर बिहार के कक्षा 1 से लेकर कक्षा 12 तक के विद्यालयों पर लागू होगा।


🚩2023 में तीज पर दो दिन और जिउतिया पर एक दिन की छुट्टी थी, जो अब नहीं मिलेगी। दीपावली पर भी मात्र एक दिन की छुट्टी दी गई है। राज्य में इससे पहले अशोक अष्टमी और अंतिम श्रावणी की छुट्टी भी होती थी, लेकिन इस बार इन्हें भी रद्द किया गया है। भाईदूज और मकर संक्रान्ति जैसे त्योहारों की कोई छुट्टी नहीं होगी।


🚩आपको बात दे की बिहार सरकार, दिल्ली सरकार, आंध्र प्रदेश सरकार, केरल सरकार आदि मौलवियों को हर महीने वेतन देती है लेकिन किसी भी साधु संत को आजतक वेतन ही क्या देंगे ये लोग उनके दैवीय कार्य में सहयोग की कोई बात आजतक हमने तो नही देखी सुनी। जबकि मंदिरों के दान के पैसे हड़प कर ही मस्जिदों के मौलवियों को वेतन दिया जाता है।


🚩आपको बता दें कि विश्व में ऐसा कोई देश नहीं है जो बहुसंख्यक समाज को छोड़कर अल्प संख्यक समाज के लिए सारी योजनाएं चला रहा हो, भारत ही एक ऐसा देश है जहां बासुसंख्यक हिंदुओं को दबाया धकेला जा रहा है और उनके ही पैसे से अल्प संख्यक समुदाय को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है और हिंदुओं के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया किया जा रहा है ।


🚩अब आप सोचते होंगे कि सरकारें गलत कर रही है।

लेकिन बता दे की सरकार सिर्फ आपके वॉट देखती है जिस तरफ पलड़ा भारी होता है उस तरफ उनका झुकाव होता है ,अगर हिंदू चाहते हैं कि हमारा हक हमें मिलना चाहिए और हमारे पैसों के बल पर ही अल्पसंख्यकों के जिहाद को बढ़ावा न मिले,उसके लिए हिंदुओं को जात-पात से उपर उठकर ,आपस में अपनी एकता दिखानी होगी । एक दूसरे का सहयोग करना होगा तभी नेता आपके वॉट के लिए आपके हित की योजनाएं बनाएंगे और हिंदू समाज फिर से उन्नत होगा। इससे विश्व का भी मंगल होगा । जागो... अब गलती नही करना ! एकता बनाए रखना ! बस फिर सारी सफलताएं आपके कदमों में होगीं...!


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Wednesday, November 29, 2023

प्रदेश सरकार आई एक्शन में... सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य (उ.प्र.) में हलाल प्रोडक्ट्स पर लगा बैन !!

30 November 2023

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🚩मुसलमानों द्वारा प्रत्‍येक पदार्थ अथवा वस्‍तु इस्‍लाम के अनुसार वैध अर्थात ‘हलाल’ होने की मांग की जा रही है । उसके लिए ‘हलाल सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र)’ लेना अनिवार्य किया गया । इसके द्वारा इस्‍लामी अर्थव्‍यवस्‍था अर्थात ‘हलाल इकॉनॉमी’ को धर्म का आधार होते हुए भी बहुत ही चतुराई के साथ भारत में लागू किया गया। अब तो यह हलाल प्रमाणपत्र की मांग केवल मांसाहार तक सीमित न रहकर अन्य खाद्यपदार्थों, सौंदर्य प्रसाधनों, औषधियों, चिकित्‍सालयों, घर के अन्य संबंधित सामानों और मॉल के लिए भी आरंभ हो गई है । भविष्‍य में यह मांग स्‍थानीय व्‍यापारों, पारंपरिक उद्योगों के साथ ही अंतः और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संकट खड़े नहीं कर सकती , इसकी क्या गारन्टी है...!?

इसलिए आज ही इस पर विचार करना अत्यावश्‍यक है ।

 

🚩योगी सरकार द्वारा हलाल प्रोडक्ट पर लगाया गया बेन...


🚩उत्तर प्रदेश में हलाल प्रोडक्ट बैन होने के बाद वहाँ की योगी सरकार ने राज्य के सभी थोक और फुटकर विक्रेताओं को आदेश दिया है कि वो 15 दिनों के अंदर अपने स्टॉक में मौजूद हलाल उत्पादों को हटा लें। साथ ही हलाल सर्टिफिकेट के साथ सामान बनाने वाले UP की 92 कंपियों से कहा गया है कि वो दुकानों पर बेचा गया अपना माल वापस मँगा लें और उसे बिना हलाल के ठप्पे वाले नए पैक में भर कर बेचें। हलाल उत्पादों में मिलावट की आशंका को देखते हुए इसके सैंपल भी जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेजे गए हैं।


🚩खाद्य सुरक्षा प्रशासन की आयुक्त अनीता सिंह ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि 18 नवंबर 2023 को हजरतगंज थाने में हलाल सर्टिफिकेट से जुड़े लोगों पर FIR दर्ज होने के बाद इस मामले में कार्रवाई तेज कर दी गई है। अब तक प्रदेश भर में 92 दबिश के साथ 500 स्थानों पर जाँच-पड़ताल की जा चुकी है। इस दौरान लगभग 3000 किलो हलाल प्रोडक्ट को जब्त किया गया है। जब्त हुए सामान की अनुमानित कीमत 7 से 8 लाख रुपए के बीच बताई जा रही है।


🚩इसके अलावा मिलावट की आशंका के चलते 81 सैम्पलों को जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेजा गया है। जांच आयुक्त अनीता सिंह के अनुसार मिलावट पाए जाने पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने गुरुवार (23 नवंबर 2023) को इस बाबत जिले के सभी अधिकारियों से कॉन्फ्रेंस कर बात भी की। मीटिंग के दौरान उन्होंने छापेमारी तेज करने के निर्देश दिए। छापेमारी के दौरान तेलंगाना, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि की कंपनियों के प्रोडक्ट हालात सर्टिफिकेट के साथ उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में बिकते मिले जिन्हे जब्त किया जा रहा है।


🚩जब्त हुए सामानों में चीनी, तेल और बेकरी के सामान अदि हैं। आयुक्त अनीता सिंह ने आगे बताया कि माँस और उसके उत्पादों को सर्टिफिकेट देने के लिए पूरे देश में महज 3 कम्पनियाँ अधिकृत हैं। इसमें से एक लखनऊ में है। फिलहाल पूरे देश में 700 से 800 ऐसे संस्थान पाए गए हैं, जो हलाल सर्टिफिकेट जारी कर रहे थे। इन सभी संस्थानों को उत्तर प्रदेश में बैन किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने हलाल सर्टिफिकेट को वर्ग विशेष को लाभ पहुँचाने का हथकंडा बताया है।


🚩भारत में हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर ली गई राशि को जमीअत उलेमा-इ-हिन्द कहाँ खर्च करती है, इसके बारे में बताते हैं स्वराज्य के वरिष्ठ संपादक अरिहंत पवरिया जी। 19 दिसम्बर 2019 को प्रकाशित हुए अपने लेख में वो बताते हैं कि किस प्रकार जमीअत उलेमा-इ-हिन्द आतंकवाद के मामलों में आरोपी एक समुदाय विशेष के लोगों को लगातार कानूनी समर्थन प्रदान करता है और इस बात की पुष्टि वो स्वयं अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित की गई सूची👇 से करते हैं। 

 

https://hindi.opindia.com/national/halal-economy-and-funding-terrorism-from-indian-consumer/

 

🚩जिन कंपनियों के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स इस्लामिक कन्ट्रीज में मौजूद हैं, उन्हें हलाल सर्टफिकेशन लेने के लिए एक निश्चित राशि किसी चैरिटेबल संगठन को दान करनी पड़ती है, लेकिन अपनी पसंद की नहीं। यहाँ भी हलाल समितियों द्वारा दी गई चैरिटेबल संगठनों की सूची को ही इस्तेमाल में लाया जाता है।

मज़े की बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र ने इनमें से कुछ चैरिटेबल संगठनों को आतंकवादी समूह घोषित किया हुआ है।


🚩जनता द्वारा हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कोई गलत बात नहीं है और यह निश्चित रूप से ‘इस्लामोफोबिया’ नहीं है और ये अनैतिक भी नहीं है। इसलिए हर एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सभी प्रकार के भेदभावों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए।


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Tuesday, November 28, 2023

केरल के मदरसे में अप्राकृतिक दुष्कर्म के मामले में तीन मौलवी गिरफ्तार

 29 November 2023

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🚩कुछ मीडिया वालों का एक ही लक्ष्य रहता है, ईसाई धर्मगुरु हो या मुस्लिम धर्मगुरु उनके ऊपर कोई आरोप लगता है अथवा अपराध सिद्ध भी हो जाये तो उसको इस तरीके से दिखाएंगे की जैसे कोई हिन्दू साधु-संत हैं,क्योंकि उनका उद्देश्य है हिन्दू संस्कृति के आधार स्तम्भ साधु-संतों को बदनाम करके हिन्दू धर्म को नीचा दिखाना।और कुछ भोले हिन्दू उनकी बातों में आ भी जाते हैं । बिकाऊ मीडिया की बात को सच मानकर अपने धर्मगुरुओं को गलत बोलने लग जाते हैं।


🚩मुस्लिमपरस्ती में कुछ मीडिया वाले इस कदर मदमस्त हैं कि उन्हें कहीं कोई अपराधी मुस्लिम समुदाय या कई बार ईसाई भी दिख जाए तो ये पूरा गिरोह चटपट येन-केन प्रकारेण दर्शकों/पाठकों के सामने मामले को ऐसा स्पिन देने की कोशिश में लग जाएगा कि समुदाय विशेष का अपराध भी ढक जाए और कोई निरपराध समुदाय या व्यक्ति , खासतौर पर हिन्दू धर्म प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सवालों के घेरे में भी आ जाए। इसलिए ऐसी बिकाऊ मीडिया से सावधान रहें।


 🚩केरल के मामले में मीडिया ने चुप्पी साधी है क्योंकि दुष्कर्म के आरोप में पकड़ा जाने वाला व्यक्ति मुस्लिम समुदाय का मौलवी है।


🚩आपको बता दें कि केरल में मौलानाओं के हाथों बच्चों के यौन शोषण और कुकर्म के दो चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं। पहली घटना में, तीन मदरसा शिक्षकों को, जिनमें से एक उत्तर प्रदेश का है, नेदुमंगड पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वहीं दूसरा मामला भी यौन शोषण का ही है। दरअसल, अधिकारियों ने बताया कि नाबालिग छात्रों पर यौन उत्पीड़न के मामले में 18 नवंबर, 2023 को ही मदरसा शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया गया था।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पहले मामले में आरोपितों की पहचान कडक्कल कांजीराथुम्मुडु बिस्मी भवन के 24 वर्षीय एल सिद्दीकी, करीबा ऑडिटोरियम के पास जैस्मीन विला के 28 वर्षीय एस मुहम्मद शमीर और उत्तर प्रदेश के खीरी जिले के गणेशपुर के 30 वर्षीय मुहम्मद रसलाल हक के रूप में हुई। तीनों पर आरोप है कि मदरसे में किशोरों के साथ अप्राकृतिक सेक्स किया। 


🚩इस मामले में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद यह कार्रवाई की गई। दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए किशोर न्याय अधिनियम, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और प्रासंगिक भारतीय दंड संहिता की धाराएँ लागू की गईं।


🚩रिपोर्ट के अनुसार, तीनों आरोपित पिछले एक साल से नेदुमंगड (Nedumangad) में एक मदरसा चला रहे थे। वहीं शिकायत के बाद कट्टक्कडा के पुलिस उपाधीक्षक (डीवाईएसपी) एन शिबू, नेदुमंगड स्टेशन हाउस अधिकारी (एसएचओ) ए सुनील, उप-निरीक्षक (एसआई) सुरेश कुमार, सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई), जिला पुलिस अधीक्षक किरण नारायणन ने अपराधियों की गिरफ्तारी को सुनिश्चित किया।


🚩दरअसल, वरिष्ठ सिविल पुलिस अधिकारी (एससीपीओ) सी बीजू, दीपा और सिविल पुलिस अधिकारी (सीपीओ) अजीत मोहन को सीडब्ल्यूसी से आरोपितों के खिलाफ उनके भयानक अपराधों के बारे में पीड़ितों द्वारा की गई शिकायत की सूचना मिली, जो दीनी तालीम के लिए मदरसे में आए थे। फ़िलहाल,अब तीनों आरोपितों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के बाद रिमांड पर भेज दिया गया है।


🚩इस बीच, वाज़िकादावु पुलिस ने 22 नवंबर, 2023 को मलप्पुरम में पुथुक्कादावु मुहम्मद शाकिर नामक एक मौलवी को भी गिरफ्तार किया है, जिसे शाकिर बाक्वावी ममपाद के नाम से भी जाना जाता है, उस पर भी एक साल तक एक बच्चे से छेड़छाड़ करने का आरोप था।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित ने 21 नवंबर, 2023 को अपने मदरसा शिक्षक के दुर्व्यवहार के बारे में बताया और शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में वाज़िकादावु पुलिस स्टेशन के हाउस ऑफिसर, मनोज परायट्टा ने बताया, “हमें मंगलवार को शाकिर के खिलाफ शिकायत मिली। लड़के ने अपने शिक्षक शाकिर के दुर्व्यवहार के बारे में पुलिस को बताया। और हमने बिना देर किए आरोपित को उसके घर से पकड़ लिया था।”


🚩हालाँकि, यौन उत्पीड़न के इस मामले में मदरसे के शिक्षक द्वारा करीब एक साल से बच्चे का यह उत्पीड़न चल रहा था। मदरसे के शिक्षकों ने पीड़ितों के द्वारा इस मामले के बारे में खुलासा करने पर भयंकर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। इसके अलावा, जाँच दल इस एंगल से भी जाँच कर रही है कि और कितने समय से इन आरोपितों ने मदरसे के कितने और बच्चों को शिकार बनाया। 


🚩बता दें कि इस्लामिक प्रचारक यौन उत्पीड़न के आरोपित मुहम्मद शाकिर के फेसबुक पेज पर 23,000 से अधिक फेसबुक फॉलोअर्स और 8,000 से अधिक यूट्यूब सब्सक्राइबर्स है। उसके ज़्यादातर वीडियो इस्लामिक प्रचार से जुड़े हैं।


🚩सुदर्शन न्यूज़ चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके जी ने कई बार बताया है, कि अधिकतर मीडिया को ईसाई मिशनरियों की वेटिकन सिटी और मुस्लिम देश जैसे अरब, दुबई आदि से फंडिग होती है, जिससे वे हिन्दू संस्कृति तोड़ने के लिए हिन्दुओं के आस्था के केंद्र और निर्दोष हिन्दू साधु-संतों के प्रति भारत की जनता के मन में नफरत पैदा करने का काम करते हैं । वे हिन्दुओं के मन में ये डालने का प्रयास करते हैं कि आपके धर्मगुरु तो अपराधी हैं। आप हिन्दू धर्म छोड़कर हमारे धर्म में आ जाओ । ये उनकी थ्योरी है, जबकि वे मौलवी और ईसाई पादरियों के कुकर्म नहीं बताते ।


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Monday, November 27, 2023

पाकिस्तान ने शारदा पीठ की दीवार तोड़ी, हिंगलाज माता के मंदिर को भी किया ध्वस्त

28 November 2023

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🚩पाकिस्तान में लगातार एक के बाद एक हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सेना ने Pok स्थित पौराणिक धर्मस्थल शारदा पीठ की जमीन पर वहाँ कॉफी हाउस बनाकर जबरन कब्जा कर लिया है। वहीं कट्टरपंथी मुस्लिमों की भीड़ द्वारा हिंगलाज माता मंदिर को भी नुकसान पहुँचाया गया है।


🚩दरअसल, थारपारकर जिले के अधिकारियों ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मीठी शहर में स्थित इस मंदिर को तोड़ने के लिए एक अदालती आदेश का हवाला दिया। बताया जा रहा है कि इसे ध्वस्त करने में पाकिस्तान का पूरा प्रशासन शामिल रहा। जबकि यह मंदिर यूनेस्को (UNESCO) की संरक्षण लिस्ट में आता है। 


🚩हालाँकि, पाकिस्तान में हिन्दू मंदिरों को तोड़ना या हिंदुओं पर हमले की यह पहली घटना नहीं है, लेकिन इस बार कोर्ट के आदेश का सहारा लेकर जिस तरह से हिंगलाज माता मंदिर को ध्वस्त किया गया है। यह गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों की श्रृंखला में एक और डराने वाली घटना है। 


🚩CNN न्यूज-18 की रिपोर्ट केअनुसार, LOC के पास हिंदुओं के जिस धार्मिक स्थल शारदा पीठ मंदिर को तोड़ा गया,उसे सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुरक्षा के आदेश के बावजूद तोड़ा गया। दरअसल, यहाँ पाकिस्तानी सेना द्वारा मंदिर के करीब एक कॉफी हाऊस बनाया जा रहा है, जिसका उद्घाटन इसी साल नवंबर में होना है। ऐसे में यहाँ पाकिस्तानी सेना ने शारदा पीठ की जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया है।


🚩हालाँकि, यहाँ के स्थानीय लोगों ने पाकिस्तानी सेना की इस तानाशाही के खिलाफ विरोध भी किया और कब्जा हटाने पर भी जोर दिया, लेकिन वे नहीं माने और उन्होंने स्थानीय सीविल सोसाइटी के सदस्यों को ही उल्टा प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। बता दें कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें टार्गेट करके हिंसा, हत्या और उनकी जमीनों को कब्जा तक शामिल है। 


🚩पाकिस्तान में पहले भी तोड़े गए हैं कई हिन्दू मंदिर...


🚩मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यूनेस्को साइट होने के बावजूद भी जब शारदा पीठ ध्वस्त होने से नहीं बच पाया तो यह विश्व भर के लिए चिंता का विषय है। इससे पहले जुलाई में भी पाकिस्तान में एक मंदिर को तोड़ दिया गया था। तब कराची में मरीमाता का मंदिर जमींदोज कर दिया गया था। इस मंदिर को तब ध्वस्त किया गया था जब पूरे इलाके में लाइट नहीं थी। बाहरी दीवार और गेट को छोड़कर अंदर का पूरा ढाँचा ही ढहा  दिया गया था।


🚩बता दें पाकिस्तान में मंदिरों का यह विध्वंस धरोहरों के अंतरराष्ट्रीय संरक्षण के प्रयासों का खंडन करता है और क्षेत्र में सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की रक्षा के बारे में सवाल उठाता है। ये घटनाएँ पाकिस्तान जैसे देश में हिंदुओं पर लगातार हो रहे उत्पीड़न को उजागर करती हैं।


🚩बीते 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90% हिंदू देश छोड़ चुके हैं। 95% हिंदू मंदिर नष्ट कर दिए गए हैं और उनकी संपत्ति पर जबरन कब्जे कर लिए गए हैं। हिंदुओं की नाबालिग लड़कियों से शादी कर लेते हैं या उनके साथ जबरदस्ती का व्यवहार करते हैं ।


🚩पिछले 12 सालों में 14,000 हिंदू लड़कियों का अपहरण किया गया है।


🚩पाकिस्तान वहाँ के हिंदुओं के लिए नर्क से कम नहीं है। हिंदू समुदाय की लड़कियों का अपहरण और उनका इस्लाम में धर्मांतरण रोजमर्रा की बात हो गई है। इससे तंग आकर हिंदू समुदाय के लोग किसी भी कीमत पर पाकिस्तान छोड़ना चाहते हैं,पर जाएं कहाँ !!

हालाँकि, भारत का वीजा नहीं मिलने के कारण हिंदू समुदाय के कई लोगों द्वारा आत्महत्याएं भी कर ली गई।


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Sunday, November 26, 2023

गुरु नानक देव में ऐसा क्या था जो इतने पूज्यनीय बन गए ?

27 November 2023

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🚩पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में 15 अप्रैल, 1469 को एक किसान के घर गुरु नानकजी का जन्म हुआ। यह स्थान लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित है। अब यह ‘नानकाना साहब’ कहलाता है। तलवंडी का नाम आगे चलकर गुरु नानक देव जी के नाम पर ननकाना पड़ गया। गुरु नानक देव जी के पिता का नाम कालू एवं माता का नाम तृप्ता देवी था। उनके पिता खत्री जाति एवं बेदी वंश के थे। वे कृषि और साधारण व्यापार करते थे और गाँव के पटवारी भी थे। गुरु नानक देव जी की बाल्यावस्था गाँव में व्यतीत हुई। बाल्यावस्था से ही उनमें असाधारणता और विलक्षण प्रतिभा थी। उनके साथी जब खेल-कूद में अपना समय व्यतीत करते तो वे नेत्र बन्द कर आत्म-चिन्तन में निमग्न हो जाते थे। इनकी इस प्रवृत्ति से उनके पिता कालू चिन्तित रहते थे।


🚩आरंभिक जीवन


🚩सात वर्ष की आयु में वे पढ़ने के लिए गोपाल अध्यापक के पास भेजे गये। एक दिन जब वे पढ़ाई से विरक्त हो, अन्तर्मुख होकर आत्म-चिन्तन में निमग्न थे, अध्यापक ने पूछा- पढ़ क्यों नहीं रहे हो ? गुरु नानक देव जी का उत्तर था- मैं सारी विद्याएँ और वेद-शास्त्र जानता हूँ। गुरु नानक देव जी ने कहा- मुझे तो सांसारिक पढ़ाई की अपेक्षा परमात्मा की पढ़ाई अधिक आनन्दायिनी प्रतीत होती है, यह कहकर निम्नलिखित वाणी का उच्चारण किया- मोह को जलाकर (उसे) घिसकर स्याही बनाओ, बुद्धि को ही श्रेष्ठ काग़ज़ बनाओ, प्रेम की क़लम बनाओ और चित्त को लेखक। गुरु से पूछ कर विचारपूर्वक लिखो (कि उस परमात्मा का) न तो अन्त है और न सीमा है।


🚩इस पर अध्यापक जी आश्चर्यान्वित हो गये और उन्होंने गुरु नानक देव जी को पहुँचा हुआ फ़क़ीर समझकर कहा- तुम्हारी जो इच्छा हो सो करो। इसके पश्चात् गुरु नानक देव जी ने स्कूल छोड़ दिया। वे अपना अधिकांश समय मनन, ध्यानासन, ध्यान एवं सत्संग में व्यतीत करने लगे। गुरु नानक देव जी से सम्बन्धित सभी जन्म साखियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं, कि उन्होंने विभिन्न सम्प्रदायों के साधु-महत्माओं का सत्संग किया था। उनमें से बहुत से ऐसे थे, जो धर्मशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। अन्त: साक्ष्य के आधार पर यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि गुरु नानक देव जी ने फ़ारसी का भी अध्ययन किया था। ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ में गुरु नानक देव जी द्वारा कुछ पद ऐसे रचे गये हैं, जिनमें फ़ारसी शब्दों का आधिक्य है।


🚩बचपन


🚩गुरु नानक देव जी की अन्तमुंखी-प्रवृत्ति तथा विरक्ति-भावना से उनके पिता कालू चिन्तित रहा करते थे। गुरु नानक देव जी को विक्षिप्त समझकर कालू ने उन्हें भैंसे चराने का काम दिया। भैंसे चराते-चराते गुरु नानक देव जी सो गये। भैंसें एक किसान के खेत में चली गयीं और उन्होंने उसकी फ़सल चर डाली। किसान ने इसका उलाहना दिया,किन्तु जब उसका खेत देखा गया, तो सभी आश्चर्य में पड़े गये। फ़सल का एक पौधा भी नहीं चरा गया था। 9 वर्ष की अवस्था में उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। यज्ञोपवीत के अवसर पर उन्होंने पण्डित से कहा – दया कपास हो, सन्तोष सूत हो, संयम गाँठ हो, (और) सत्य उस जनेउ की पूरन हो। यही जीव के लिए (आध्यात्मिक) जनेऊ है। ऐ पाण्डे यदि इस प्रकार का जनेऊ तुम्हारे पास हो, तो मेरे गले में पहना दो, यह जनेऊ न तो टूटता है, न इसमें मैल लगता है, न यह जलता है और न यह खोता ही है।


🚩विवाह


🚩सन 1485 ई. में गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी, मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ। उनके वैवाहिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी है। 28 वर्ष की अवस्था में उनके बड़े पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ। 31 वर्ष की अवस्था में उनके द्वितीय पुत्र लक्ष्मीदास अथवा लक्ष्मीचन्द उत्पन्न हुए। गुरु नानक देव जी के पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा, किन्तु उनके सारे प्रयास निष्फल सिद्ध हुए। घोड़े के व्यापार के निमित्त दिये हुए रुपयों को गुरु नानक देव जी ने साधुसेवा में लगा दिया और अपने पिताजी से कहा कि यही सच्चा व्यापार है। नवम्बर, सन् 1504 ई. में उनके बहनोई जयराम (उनकी बड़ी बहिन नानकी के पति) ने गुरु नानक देव जी को अपने पास सुल्तानपुर बुला लिया। नवम्बर, 1504 ई. से अक्टूबर 1507 ई. तक वे सुल्तानपुर में ही रहें अपने बहनोई जयराम के प्रयास से वे सुल्तानपुर के गवर्नर दौलत ख़ाँ के यहाँ मादी रख लिये गये। उन्होंने अपना कार्य अत्यन्त ईमानदारी से पूरा किया। वहाँ की जनता तथा वहाँ के शासक दौलत ख़ाँ नानकजी के कार्य से बहुत सन्तुष्ट हुए। वे अपनी आय का अधिकांश भाग ग़रीबों और साधुओं को दे देते थे। कभी-कभी वे पूरी रात परमात्मा के भजन में व्यतीत कर देते थे। मरदाना तलवण्डी से आकर यहीं गुरु नानक देव जी का सेवक बन गया था और अन्त तक उनके साथ रहा। गुरु नानक देव जी अपने पद गाते थे और मरदाना रवाब बजाता था। गुरु नानक देव जी नित्य प्रात: बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। कहते हैं कि एक दिन वे स्नान करने के पश्चात् वन में अन्तर्धान हो गये। उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा- मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ, मैंने तुम्हें आनन्दित किया है। जो तुम्हारे सम्पर्क में आयेगें, वे भी आनन्दित होगें। जाओ नाम में रहो, दान दो, उपासना करो, स्वयं नाम लो और दूसरों से भी नाम स्मरण कराओं। इस घटना के पश्चात् वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर मूला को सौंपकर विचरण करने निकल पड़े और धर्म का प्रचार करने लगे। मरदाना उनकी यात्रा में बराबर उनके साथ रहा।


🚩यात्राए


🚩गुरु नानक देव जी की पहली ‘उदासी’ (विचरण यात्रा) अक्तूबर , 1507 ई. में 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारिका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया। उन्होंने बहुतों का हृदय परिवर्तन किया। ठगों को साधु बनाया, वेश्याओं का अन्त:करण शुद्ध कर नाम का दान दिया, कर्मकाण्डियों को बाह्याडम्बरों से निकालकर रागात्मिकता भक्ति में लगाया, अहंकारियों का अहंकार दूर कर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया। यात्रा से लौटकर वे दो वर्ष तक अपने माता-पिता के साथ रहे।


🚩उनकी दूसरी ‘उदासी’ 1517 ई. से 1518 ई. तक यानी एक वर्ष की रही। इसमें उन्होंने ऐमनाबाद, सियालकोट, सुमेर पर्वत आदि की यात्रा की और अन्त में वे करतारपुर पहुँचे।


🚩तीसरी ‘उदासी’ 1518 ई. से 1521 ई. तक लगभग तीन वर्ष की रही। इसमें उन्होंने रियासत बहावलपुर, साधुबेला (सिन्धु), मक्का, मदीना, बग़दाद, बल्ख बुखारा, क़ाबुल, कन्धार, ऐमानाबाद आदि स्थानों की यात्रा की। 1521 ई. में ऐमराबाद पर बाबर का आक्रमण गुरु नानक देव जी ने स्वयं अपनी आँखों से देखा था। अपनी यात्राओं को समाप्त कर वे करतारपुर में बस गये और 1521 ई. से 1539 ई. तक वहीं रहे।


🚩व्यक्तित्व


🚩गुरु नानक देव जी का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म-सुधारक, समाज-सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में विद्यमान थे। उनमें विचार-शक्ति और क्रिया-शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। उन्होंने पूरे देश की यात्रा की। लोगों पर उनके विचारों का असाधारण प्रभाव पड़ा। उनमें सभी गुण मौजूद थे। पैगंबर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्मसुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबंधु आदि सभी गुण जैसे एक व्यक्ति में सिमटकर आ गए थे। उनकी रचना ‘जपुजी’ का सिक्खों के लिए वही महत्त्व है जो हिंदुओं के लिए गीता का है।


🚩रचनाएँ और शिक्षाएँ


🚩’श्री गुरु-ग्रन्थ साहब’ में उनकी रचनाएँ ‘महला 1’ के नाम से संकलित हैं। गुरु नानक देव जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान, सत्य, कर्त्ता, निर्भय, निर्वर, अयोनि, स्वयंभू है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति-पूजा आदि निरर्थक है। बाह्य साधनों से उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। आन्तरिक साधना ही उसकी प्राप्ति का एक मात्र उपाय है। गुरु-कृपा, परमात्मा कृपा एवं शुभ कर्मों का आचरण इस साधना के अंग हैं। नाम-स्मरण उसका सर्वोपरि तत्त्व है, और ‘नाम’ गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक देव जी की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है। उनकी वाणी में यत्र-तत्र तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति की मनोहर झाँकी मिलती है, जिसमें उनकी असाधारण देश-भक्ति और राष्ट्र-प्रेम परिलक्षित होता है। उन्होंने हिंन्दूओं-मुसलमानों दोनों की प्रचलित रूढ़ियों एवं कुसंस्कारों की तीव्र भर्त्सना की है और उन्हें सच्चे हिन्दू अथवा सच्चे मुसलमान बनने की विधि बतायी है। सन्त-साहित्य में गुरु नानक ही एक ऐसे व्यक्ति हैं; जिन्होंने स्त्रियों की निन्दा नहीं की, अपितु उनकी महत्ता स्वीकार की है। गुरुनानक देव जी ने अपने अनु‍यायियों को जीवन की दस शिक्षाएँ दी-


🚩ईश्वर एक है।

सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।

ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है।

ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।

ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए।

बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ।

सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा माँगनी चाहिए।

मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।

सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।

भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।


🚩भक्त कवि गुरु नानक देव जी


🚩पंजाब में मुसलमान बहुत दिनों से बसे थे, जिससे वहाँ उनके कट्टर ‘एकेश्वरवाद’ का संस्कार धीरे – धीरे प्रबल हो रहा था। लोग बहुत से देवी देवताओं की उपासना की अपेक्षा एक ईश्वर की उपासना को महत्व और सभ्यता का चिह्न समझने लगे थे। शास्त्रों के पठन पाठन का क्रम मुसलमानों के प्रभाव से प्राय: उठ गया था, जिससे धर्म और उपासना के गूढ़ तत्व को समझने की शक्ति नहीं रह गई थी। अत: जहाँ बहुत से लोग जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाते थे, वहाँ कुछ लोग शौक़ से भी मुसलमान बनते थे। ऐसी दशा में कबीर द्वारा प्रवर्तित ‘निर्गुण संत मत’ एक बड़ा भारी सहारा समझ पड़ा।


🚩निर्गुण उपासना


🚩गुरुनानक देव जी आरंभ से ही भक्त थे, अत: उनका ऐसे मत की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था, जिसकी उपासना का स्वरूप हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को समान रूप से ग्राह्य हो। उन्होंने घर बार छोड़ बहुत दूर दूर के देशों में भ्रमण किया जिससे उपासना का सामान्य स्वरूप स्थिर करने में उन्हें बड़ी सहायता मिली। अंत में कबीरदास की ‘निर्गुण उपासना’ का प्रचार उन्होंने पंजाब में आरंभ किया और वे सिख संप्रदाय के आदिगुरु हुए। कबीरदास के समान वे भी कुछ विशेष पढ़े लिखे न थे। भक्तिभाव से पूर्ण होकर वे जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह (संवत् 1661) ग्रंथसाहब में किया गया है। ये भजन कुछ तो पंजाबी भाषा में हैं और कुछ देश की सामान्य काव्य भाषा हिन्दी में हैं। यह हिन्दी कहीं तो देश की काव्यभाषा या ब्रजभाषा है, कहीं खड़ी बोली जिसमें इधर उधर पंजाबी के रूप भी आ गए हैं, जैसे चल्या, रह्या। भक्त या विनय के सीधे सादे भाव सीधी सादी भाषा में कहे गए हैं, कबीर के समान अशिक्षितों पर प्रभाव डालने के लिए टेढ़े मेढ़े रूपकों में नहीं। इससे इनकी प्रकृति की सरलता और अहंभावशून्यता का परिचय मिलता है। संसार की अनित्यता, भगवद्भक्ति और संत स्वभाव के संबंध में उन्होंने कहा हैं –


🚩इस दम दा मैनूँ कीबे भरोसा, आया आया, न आया न आया।

यह संसार रैन दा सुपना, कहीं देखा, कहीं नाहि दिखाया।

सोच विचार करे मत मन मैं, जिसने ढूँढा उसने पाया।

नानक भक्तन दे पद परसे निसदिन राम चरन चित लाया


🚩जो नर दु:ख में दु:ख नहिं मानै।

सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै

नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।

हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना

आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरास।

काम, क्रोध जेहि परसे नाहि न तेहिं घट ब्रह्म निवासा

गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगुति पिछानी।

नानक लीन भयो गोबिंद सो ज्यों पानी सँग पानी।


🚩शरीर का निर्वाण


🚩गुरु नानक देव जी की देह पंचतत्वों में सन् 1539 ई. में लीन हुई। इन्होंने गुरुगद्दी का भार गुरु अंगददेव (बाबा लहना) को सौंप दिया और स्वयं करतारपुर में ‘ज्योति’ में लीन हो गए। गुरु नानक देव जी आंतरिक साधना को सर्वव्यापी परमात्मा की प्राप्ति का एकमात्र साधन मानते थे। वे रूढ़ियों के कट्टर विरोधी थे। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु-सभी के गुण समेटे हुए थे।


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Saturday, November 25, 2023

मिडिया ने इन तीन बड़ी खबरों को जनता को क्यों नहीं बताया ?

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26 November 2023

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🚩इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया की समाज में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका है । मीडिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ भी कहा गया है क्योंकि इसकी जिम्मेदारी देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर नजर रखना भी है, लेकिन आज पैसे और टीआरपी की अंधी दौड़ में एक तरफा झूठी खबरों को दिखाकर अपनी विश्वसनीयता खो रही है। इसके कारण आज समाज का हर वर्ग मीडिया की आलोचना जरूर करता है।


🚩दिपावली पर ऐसी तीन खबरे है जो जनता को बताना इसलिए जरूरी था की मिडिया ने उनके खिलाफ महीनो तक झूठी खबरें चलाई थी जब उनके कार्य की प्रशंसा वाली खबरें सामने होते हुए भी जनता को नही बताई इससे साफ होता है की मिडिया झूठी खबरें ही परोसती है? अथवा पैसा के लालच वाली ही खबरे चलाती है? अथवा केवल टीआरपी वाली खबरें ही चलाती है?


🚩आइए आज आपको तीन बड़ी खबरें बताते है जो मीडिया ने कही नही दिखाई।


🚩पहली खबर


🚩दिपावली पर्व पर सभी देशवासी अपने परिजनों के साथ दिवाली की खुशियां मना रहे थे लेकिन कुछ ऐसे लोग थे जो गरीब और आदिवासियों के बीच जाकर दीवाली मना रहे थे उनके घर जाकर मिठाई, बर्तन, कपड़े, पैसे और जीवन उपयोगी सामग्री का वितरण कर रहे थे और यह एक जगह पर नही लेकिन देश के सैंकड़ों जगह पर ये महान सेवा कार्य चल रहा था और ये कार्य ओर कोई नही बल्कि हिन्दू संत श्री आशारामजी बापू के संस्था और उनके अनुयायी कर रहे थे जो जेल जाने से पहले संत आशाराम बापू 60 साल तक यही सेवाकार्य कर रहे थे। देशभर में इस सेवाकार्य में लाखों गरीब और आदिवासी लाभाविन्त हुए लेकिन मीडिया ने इस खबर को कही नही दिखाई।


🚩दुसरी खबर


🚩दीपावली पर्व पर संत श्री आशारामजी आश्रम मोटेरा अहमदाबाद में 12 नवंबर से 18 नवंबर 2023 तक बच्चों को दिव्य संस्कार देने के लिए 7 दिवसीय एक विद्यार्थी शिविर का आयोजन किया था; उसमें हजारों बच्चे आए थे और उन बच्चो को योग, प्राणायाम, ध्यान, माता सरस्वती के मंत्रजप, सात्विक भोजन करवाया जाता है और उनको उच्च संस्कार दिए जाते हैं जिससे राष्ट्र और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बने। लेकिन इस खबर को भी नही दिखाया गया।


🚩तीसरी खबर


🚩संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि बापू आसारामजी के मार्गदर्शन के अनुसार आश्रम, समितियाँ, युवा सेवा संघ, महिला मंडल एवं उनके असंख्य शिष्यों द्वारा उनके निर्देशानुसार गोपाष्टमी पर्व पर हर साल देशभर में विशाल स्तर पर मनाया जाता है ।


🚩इस साल भी आश्रम, समितियों, युवा सेवा संघ, महिला उत्थान मंडल एवं बापू आसारामजी के असंख्य शिष्यों द्वारा गोपाष्टमी पर्व पर गौशालाओं के अलावा गाँव-गाँव जाकर गायों का पूजन करके पुष्टिवर्धक लड्डू खिलाया गया और अनुदान दिया गया और गौ-रक्षा यात्राएँ निकालकर लोगों को गौ-रक्षा एवं गौसेवा के लिए प्रेरित किया गया ।


🚩बापू आसारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि बापू आसारामजी ने कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर भारतभर में अनेक गौशालाएं खोली हैं और वहां हजारों ऐसी गायें हैं जो दूध नहीं देती हैं फिर भी उनका पालन-पोषण व्‍यवस्थित ढंग से किया जाता है ।


🚩मीडिया ने संत आशाराम बापू के खिलाफ अनेक झूठी कहानियां बनाकर दिखाई, लेकिन गरीबों, आदिवासियों, बच्चों और गौमाता के लिए इतने बड़े सेवाकार्य चल हुए लेकिन उससे संबंधित एक लाइन भी मीडिया में नहीं दिखाई दी इसलिए जनता मीडिया को बिकाऊ मीडिया कहने लगी है।


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Friday, November 24, 2023

सिख के नौवें गुरु ने हिंदू धर्म बचाने के लिए जो कार्य किया कभी नही भूल पाएंगे

25 November 2023

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🚩गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।


🚩90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं पर अनेक अत्याचार हुए। धर्मान्धों के आतंक से ऋषि कश्यप की धरती अपवित्र हुई थी, लेकिन यह पहली बार नही था जब धरती के स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर में ऐसा हो रहा था।


🚩मुग़ल शासक औरंगजेब के शासनकाल के दौरान कश्मीरी हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया जा रहा था।


🚩जो कश्मीरी हिंदु मना करता उसे मार दिया जाता, महिलाओं का बलात्कार कर दिया जाता, घरों को आग लगा दिया जाता था। तब एक व्यक्ति थे, जिन्होंने इसका कड़ा विरोध किया था, वो थे "त्याग मल।"


🚩यह त्याग मल और कोई नहीं बल्कि सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी थे। तब गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीश कटा लिया था लेकिन शीश कभी झुकने नहीं दिया।


🚩गुरु तेग बहादुर का जन्म 1621 में अमृतसर में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की आयु में करतारपुर की जंग के दौरान मुग़लों के खिलाफ अदम्य साहस दिखाने की वजह से उन्हें 'तेग बहादुर' का नाम मिला था। 1664 में वो सिखों के नौवें गुरु के रूप में चुने गए।


🚩गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।


🚩गुरु तेग बहादुर जी ने उन्हें अपनी गिहबानी में ले लिया। गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी हिंदुओं के लिए पूरा सुरक्षा चक्र बनाया था। इसी बात से औरंगजेब तिलमिला उठा। गुरु तेग बहादुर अपने 3 शिष्यों के साथ जुलाई 1675 में आनंदपुर से दिल्ली जा रहे थे, तभी उनके शिष्यों सहित उन्हें मुग़ल सेना ने गिरफ्तार कर लिया था।


🚩गिरफ्तार करने के बाद उन्हें 4 महीनों तक अलग-अलग कारावास में बंदी बनाकर रखा, जिसके बाद 2 नवंबर 1675 में उन्हें दिल्ली में औरंगजेब के समक्ष लाया गया। औरंगजेब ने उन्हें भरी सभा में लोभ-लालच देकर मुसलमान बनने को कहा जिसे गुरु तेग बहादुर ने अपने साहस का परिचय देते हुए साफ ठुकरा दिया।


🚩औरंगजेब ने इसके बाद उन्हें "इस्लाम और मौत" में से एक को चुनने को कहा जिसके बाद भी गुरु तेग़ बहादुर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए।


🚩इन सब के बाद गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए उनके 3 कश्मीरी हिंदु शिष्यों के सर धड़ से अलग कर दिए गए, गिरफ्तार किए गए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गए, दूसरे भाई दयाल दास को खौलते तेल की कढ़ाई में जिंदा फेंकवा दिया वहीं तीसरे भाई सति दास को ज़िंदा जला दिया गया। इन सब के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया।


🚩जब यह सब देखने के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने 24 नवंबर को उनका सर कलम करने का आदेश दिया। दिल्ली में ही मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर के सर को कलम किया गया।


🚩"हिन्द दी चादर" के नाम से प्रख्यात गुरु तेग बहादुर जी का शीश जिस जगह गिरा था, आज वहाँ उनके नाम पर "शीशगंज गुरुद्वारा" के नाम से गुरुद्वारा स्थित है।


🚩सनातन धर्म की रक्षा के लिए, अपने कश्मीरी हिंदु भाइयों के लिए बलिदान देने वाले वो शख़्स जो करतारपुर के संघर्ष के बाद त्याग मल से तेग बहादुर बने, ऐसे ही अनगिनत बलिदानों से आज भारत टिका हुआ है।


🚩भारत की मिट्टी को आक्रांताओं को से बचाने के लिए ना जाने कितनों ने अपने रक्त से इसको सींचा है। इसका सम्मान कीजिए, इस पर गर्व कीजिए कि आपके पूर्वजों ने किसी आक्रान्ता के सामने गर्दन नहीं झुकाया, किसी आक्रांता के सामने आपके लोगों ने मरना स्वीकार किया लेकिन खुद को बेचना नहीं।


🚩गुरु श्री तेग बहादुर जी के बलिदान पर देश और इस देश के सभी लोग उनके सदैव ऋणी रहेंगे ।


🚩सनातन धर्म की रक्षा के लिए भारत के महान वीर योद्धाओ ने अपने जीवन में अनेकों संघर्ष किए , यहां तक कि अपने जीवन की राष्ट्र की रक्षा के लिए आहुति भी दी,ऐसे महान वीर योद्धाओ को हमे याद रखना चाहिए और हमे भी धर्म और देश की रक्षा संघर्ष करना चाहिए।


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Thursday, November 23, 2023

चांदी के वर्क वाली मिठाई या अन्य मिठाई एवं चॉकलेट खाने से पहले सच जान ले.......

24 November 2023

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🚩हिन्दू त्यौहार में मिठाईयां खूब खाई जाती हैं, उसमें भी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए चांदी के वर्क वाली मिठाईयां ख़रीद के खाई जाती हैं और खिलाई जाती हैं।


🚩देशभर में दीपावली की धूम मची है, उसमे भी वर्क वाली मिठाईयों का खूब उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ये मिठाई खाने जैसी है कि नहीं, क्या भगवान को वर्क वाली मिठाई का भोग लगाना उचित है या नहीं, ये जानना बेहद जरूरी है।

कुछ साल पहले मेनका गांधी ने मीडिया को बताया कि मिठाई व पान ही नहीं सेब जैसे फल को आकर्षक बनाने के लिए उनके ऊपर जो चांदी का वर्क लगाया जाता है वह मांसाहार की श्रेणी में आता है।


🚩उनका कहना है कि यह वर्क जिंदा बैलों का कत्ल कर उनकी आंत के सहारे तैयार किया जाता है । वर्क लगी मिठाइयों के बढ़ते आकर्षण के कारण प्रति वर्ष हजारों गौवंशीय पशुओं की हत्या की जाती है।


🚩उन्होंने बताया कि गौवंशीय पशु की आंत से बनी वर्क में चांदी, एल्यूमिनियम अथवा उस जैसी धातु का बड़ा टुकड़ा डाला जाता है । फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से पीट कर पतला करके आकार दिया जाता है ।


🚩बैल की आंत पीटते रहने से फटती नहीं है । चांदी के वर्क के चक्कर में कुछ लोग एल्यूमिनियम भी बेच देते हैं।


🚩मेनका गाँधी का कहना है कि इस कारोबार से जुड़े लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पशु हत्या, गाय की हत्या में भी संलिप्त कहे जा सकते हैं । 'पांच साल पहले इंडियन एयरलाइंस ने यह महसूस किया कि चांदी वर्क मांसाहार है, और अपने कैटरर को विमान में परोसी जाने वाली मिठाइयों पर वर्क न लगाने के निर्देश दिए थे । साथ ही पत्र भेज कर बैल की आंतों के सहारे तैयार कराए जाने वाले वर्क पर रोक लगाने को कहा था ।



🚩चॉकलेट का अधिक सेवनः हृदयरोग को आमंत्रण


🚩क्या आप जानते हैं कि चॉकलेट में कई ऐसी चीजें भी हैं जो शरीर को धीरे-धीरे रोगी बना सकती है ? प्राप्त जानकारी के अनुसार चॉकलेट का सेवन मधुमेह एवं हृदयरोग को उत्पन्न होने में सहाय करता है तथा शारीरिक चुस्ती को भी कम कर देता है। यदि यह कह दिया जाये कि चॉकलेट एक मीठा जहर है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।


🚩कुछ चॉकलेटों में इथाइल एमीन नामक कार्बनिक यौगिक होता है जो शरीर में पहुँचकर रक्तवाहिनियों की आंतरिक सतह पर स्थित तंत्रिकाओं को उदीप्त करता है। इससे हृदयरोग पैदा होते हैं।


🚩हृदयरोग विशेषज्ञों का मानना है कि चॉकलेट के सेवन से तंत्रिकाएँ उदीप्त होने से डी.एन.ए. जीन्स सक्रिय होते हैं जिससे हृदय की धड़कने बढ़ जाती हैं। चॉकलेट के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने वाले रसायन पूरी तरह पच जाने तक अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। अधिकांश चॉकलेटों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली निकेल धातु हृदयरोगों को बढ़ाती है।


🚩इसके अलावा चॉकलेट के अधिक प्रयोग से दाँतों में कीड़ा लगना, पायरिया, दाँतों का टेढ़ा होना, मुख में छाले होना, स्वरभंग, गले में सूजन व जलन, पेट में कीड़े होना, मूत्र में जलन आदि अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।

वैसे भी शरीर स्वास्थ्य एवं आहार के नियमों के आधार पर किसी व्यक्ति को चॉकलेट की कोई आवश्यकता नहीं है।


🚩'मिठाई की दुकान अर्थात् यमदूत का घर'


🚩आचार्य सुश्रुत ने कहा हैः 'भैंस का दूध पचने में अति भारी, अतिशय अभिष्यंदी होने से रसवाही स्रोतों को कफ से अवरूद्ध करने वाला एवं जठराग्नि का नाश करने वाला है !' यदि भैंस का दूध इतना नुकसान कर सकता है तो उसका मावा जठराग्नि का कितना भयंकर नाश करता होगा? मावे के लिए शास्त्र में किलाटक शब्द का उपयोग किया गया है, जो भारी होने के कारण भूख मिटा देता है।


🚩जब मावा, पीयूष, छेना (तक्रपिंड), क्षीरशाक, दही आदि से मिठाई बनाने के लिए उनमें शक्कर मिलायी जाती है, तब तो वे और भी ज्यादा कफ करने वाले, पचने में भारी एवं अभिष्यंदी बन जाते हैं। पाचन में अत्यंत भारी ऐसी मिठाइयाँ खाने से कब्जियत एवं मंदाग्नि होती हैं जो सब रोगों का मूल है। इसका योग्य उपचार न किया जाय तो ज्वर आता है एवं ज्वर को दबाया जाय अथवा गलत चिकित्सा हो जाय तो रक्तपित्त, रक्तवात, त्वचा के रोग, पांडुरोग, रक्त का कैंसर, मधुमेह, कोलेस्ट्रोल बढ़ने से हृदयरोग आदि रोग होते हैं। कफ बढ़ने से खाँसी, दमा, क्षयरोग जैसे रोग होते हैं। मंदाग्नि होने से सातवीं धातु (वीर्य)  कैसे बन सकती है? अतः अंत में नपुंसकता आ जाती है!


🚩आज का विज्ञान भी कहता है कि 'बौद्धिक कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए दिन के दौरान भोजन में केवल 40 से 50 ग्राम वसा (चरबी) पर्याप्त है और कठिन श्रम करने वाले के लिए 90 ग्राम। इतनी वसा तो सामान्य भोजन में लिये जाने वाले घी, तेल, मक्खन, गेहूँ, चावल, दूध आदि में ही मिल जाती है। इसके अलावा मिठाई खाने से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है। धमनियों की जकड़न बढ़ती है, नाड़ियाँ मोटी होती जाती हैं। दूसरी ओर रक्त में चरबी की मात्रा बढ़ती है और वह इन नाड़ियों में जाती है। जब तक नाड़ियों में कोमलता होती है तब तक वे फैलकर इस चरबी को जाने के लिए रास्ता देती है। परंतु जब वे कड़क हो जाती हैं, उनकी फैलने की सीमा पूरी हो जाती है तब वह चरबी वहीं रुक जाती है और हृदयरोग को जन्म देती है।'


🚩मिठाई में अनेक प्रकार की दूसरी ऐसी चीजें भी मिलायी जाती हैं, जो घृणा उत्पन्न करें। शक्कर अथवा बूरे में कॉस्टिक सोडा अथवा चोंक का चूरा भी मिलाया जाता है जिसके सेवन से आँतों में छाले पड़ जाते हैं। प्रत्येक मिठाई में प्रायः कृत्रिम (एनेलिन) रंग मिलाये जाते हैं जिसके कारण कैंसर जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।


🚩जलेबी में कृत्रिम पीला रंग (मेटालीन यलो) मिलाया जाता है, जो हानिकारक है। लोग उसमें टॉफी, खराब मैदा अथवा घटिया किस्म का गुड़ भी मिलाते हैं। उसे जिन आयस्टोन एवं पेराफील से ढका जाता है, वे भी हानिकारक हैं। उसी प्रकार मिठाईयों को मोहक दिखाने वाले चाँदी के वर्क एल्यूमीनियम फॉइल में से बने होते हैं एवं उनमें जो केसर डाला जाता है, वह तो केसर के बदले भुट्टे के रेशे में मुर्गी का खून भी हो सकता है !!


🚩आधुनिक विदेशी मिठाईयों में पीपरमेंट, गोले, चॉकलेट, बिस्कुट, लालीपॉप, केक, टॉफी, जेम्स, जेलीज, ब्रेड आदि में घटिया किस्म का मैदा, सफेद खड़ी, प्लास्टर ऑफ पेरिस, बाजरी अथवा अन्य अनाज का बिगड़ा हुआ आटा मिलाया जाता है। अच्छे केक में भी अण्डे का पाउडर मिलाकर बनावटी मक्खन, घटिया किस्म के शक्कर एवं जहरीले सुगंधित पदार्थ मिलाये जाते हैं। नानखटाई में इमली के बीज के आटे का उपयोग होता है। कन्फेक्शनरी में फ्रेंच चॉक, ग्लकोज का बिगड़ा हुआ सीरप एवं सामान्य रंग अथवा एसेन्स मिलाये जाते हैं। बिस्कुट बनाने के उपयोग में आने वाले आकर्षक जहरी रंग हानिकारक होते हैं।


🚩इस प्रकार, ऐसी मिठाइयाँ वस्तुतः मिठाई न होते हुए बल, बुद्धि और स्वास्थ्यनाशक, रोगकारक एवं तमस बढ़ानेवाली साबित होती है।


🚩मिठाइयों का शौक कुप्रवृत्तियों का कारण एवं परिणाम है। डॉ. ब्लोच लिखते हैं कि मिठाई का शौक जल्दी कुप्रवृत्तियों की ओर प्रेरित करता है। जो बालक मिठाई के ज्यादा शौकीन होते हैं उनके पतन की ज्यादा संभावना रहती है और वे दूसरे बालकों की अपेक्षा हस्तमैथुन जैसे कुकर्मों की ओर जल्दी खिंच जाते हैं।


🚩स्वामी विवेकानंद ने भी कहा हैः

''मिठाई (कंदोई) की दुकान साक्षात यमदूत का घर है।''


🚩जैसे, खमीर लाकर बनाये गये इडली-डोसे आदि खाने में तो स्वादिष्ट लगते हैं परंतु स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं, इसी प्रकार मावे एवं दूध को फाड़कर बने पनीर से बनायी गयी मिठाइयाँ लगती तो मीठी हैं पर होती हैं जहर के समान। मिठाई खाने से लीवर और आँतों की भयंकर असाध्य बीमारियाँ होती हैं। अतः ऐसी मिठाइयों से आप भी बचें, औरों को भी बचायें।


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Wednesday, November 22, 2023

पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए....

23 November 2023

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🚩भीष्म पंचक व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है।


🚩 इस साल यह व्रत 23 नवम्बर 2023 से 27 नवम्बर 2023 तक रहेगा ।


🚩इस व्रत में कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी से कार्तिक माह की देव पूर्णिमा तक व्रती को अन्न का त्याग करना होता है एवं फल और दूध पर रहना होता है और 5 दिन तक भीष्म पितामह को अर्घ्य देना होता हैं।


🚩 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है । सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है ।


🚩 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे । अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।


🚩 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।


🚩 भीष्मपंचक व्रत कथा:-


🚩कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।


🚩 इसी संदर्भ में एक और कथा है…


🚩महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे। तक भगवान कृष्ण पाँचो पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म जी ने पाँच दिनों तक राज धर्म ,वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था । उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।


🚩भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए ?


🚩 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए ।


सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने ।भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।



🚩‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)


🚩अर्घ्य के जल में थोडा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ… – ऐसी प्रार्थना करें ।


🚩इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।


🚩इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है ।


🚩पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है ।


🚩इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।


🚩जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है :वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।


🚩जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ । वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ ।


🚩 इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है l इस दिन भगवान नारायण जागते हैं l इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए :-उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज l उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ll


🚩‘हे गोविन्द ! उठिए, उठिए , हे गरुड़ध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये l’ (साभार : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा ऋषि प्रसाद पत्रिका)


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Tuesday, November 21, 2023

तूलसी विवाह कब से शुरू हुआ ? इस दिन क्या करे ? जिससे माँ लक्ष्मी की कृपा हमेंशा बनी रहे ? जानिए:-

22 November 2023

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🚩तुलसी विवाह उत्सव 23 नवम्बर से 27 नवम्बर 2023


🚩देवउठनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।


🙏🏻जो मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी विवाह करेगा,उसे इस लोक और परलोक में यश प्राप्त होगा। - भगवान विष्णु 


🚩तुलसी के दर्शन मात्र से स्वर्ण दान का पुण्य मिलता है,तुलसी जहाँ रहती वहाँ माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा होती हैं।


🚩तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसकी लक्ष्मी स्वरूप में पूजा की, तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ऐसे घर मे तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसका पूजन अर्चन किया तो ऐसे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती। मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। विशेषकर कार्तिक माह में तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है।


🚩कार्तिक के महीने में अगर आप महीने भर कार्तिक स्नान कर रहै हैं, तो आपको तुलसी जी का भी विशेष पूजन करना चाहिए। कहा जाता है कि तुलसी विवाह के दिन व्रत करने से जन्म और जन्म के पूर्व के पापों से मुक्ति मिल जाती है। कार्तिक मास की एकादशी को तुलसी विवाह का त्यौहार बेहद शुभ माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया नाम से भी जाना जाता है।


🚩अमिट पुण्यों के फल को देने वाला व्रत भीष्म पंचक व्रत इस साल 23 नवम्बर से 27 नवम्बर 2023 तक रहेगा। भीष्म पंचक के प्रथम दिन 23 नवम्बर 2023 को देवउठनी एकादशी हैं, इस दिन भगवान नारायण जागते हैं, इस कारण निम्न मंत्र से का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए:-उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुड़ध्वज। उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।। अर्थात : हे गोविंद! उठिए , हे गरुड़ध्वज! उठिए , हे कमलाकांत ! निंद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिए।


🚩देवउठनी एकादशी के दिन संध्या के समय भगवान विष्णु की कपूर आरती करने से अकाल मृत्यु, एक्सीडेंट आदि के भय से सुरक्षा होती हैं।


🚩तुलसी विवाह की कथा:-


🚩एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।


🚩दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।


🚩भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु माँ ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था।


🚩इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुँचे, जहाँ वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा। ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।


🚩भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का तनिक भी आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।


🚩इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे।


🚩वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा,उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।


🚩उसी दैत्य जालंधर की यह भूमि जलंधर नाम से विख्यात है। सती वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। कहते हैं कि इस स्थान पर एक प्राचीन गुफा भी थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।


🚩जिस घर में तुलसी होती हैं, वहाँ यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।


🚩तुलसी के दर्शन मात्र से स्वर्ण दान का पुण्य मिलता है,तुलसी जहाँ रहती वहाँ माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा होती हैं, देवउठनी एकादशी के दिन जो शाम को संध्या के समय भगवान विष्णु की आरती करता हैं, उन्हें एक्सिडेंट आदि से सुरक्षा होती है। तुलसी से वास्तु दोष दूर होते हैं ,तुलसी के 1 पत्ते के सेवन से भी कई बीमारियों से सुरक्षा मिलती है,तुलसी की हवा से भी सूक्ष्म कीटाणुओं से रक्षा होती है,इसलिए हर घर में तुलसी होना चाहिए,संत श्री आशारामजी बापू आश्रमों द्वारा घर घर तुलसी लगाओ अभियान भी चलाया जाता हैं।बापूजी के साधकों द्वारा देशभर में 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस भी मनाया जाता हैं।


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Monday, November 20, 2023

गोपाष्टमी पर ही गांधी परिवार की मौत क्यों हुई ? नेता के मुकरने के बाद संतों का श्राप ?

21  November 2023

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🚩1965 में भारत के लाखों संतों ने गोहत्याबंदी और गोरक्षा पर कानून बनाने के लिए एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया गया था। 1966 में अपनी इसी मांग को लेकर सभी संतों ने दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली निकाली। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। गांधीवादी बड़े नेताओं में विनोबा भावे थे। विनोबाजी का आशीर्वाद लेकर लाखों साधु-संतों ने करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में बहुत बड़ा जुलूस निकाला।

 

🚩इंदिरा गांधी स्वामी करपात्रीजी और विनोबाजी को बहुत मानती थीं। इंदिरा गांधी के लिए उस समय चुनाव सामने थे। कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने करपात्रीजी महाराज से आशीर्वाद लेने के बाद वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जाएंगे, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं।

 

🚩इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। ऐसे में स्वामी करपात्री महाराज को लगा था कि इंदिरा गांधी मेरी बात अवश्य मानेंगी। उन्होंने एक दिन इंदिरा गांधी को याद दिलाया कि आपने वादा किया था कि संसद में गोहत्या पर आप कानून लाएंगी। लेकिन कई दिनों तक इंदिरा गांधी उनकी इस बात को टालती रहीं। ऐसे में करपात्रीजी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

 

🚩 संपूर्ण घटनाक्रम :

 

🚩करपात्रीजी महाराज शंकराचार्य के समकक्ष देश के मान्य संत थे। करपात्री महाराज के शिष्यों अनुसार जब उनका धैर्य चुक गया तो उन्होंने कहा कि गोरक्षा तो होनी ही चाहिए। इस पर तो कानून बनना ही चाहिए। लाखों साधु-संतों ने उनके साथ कहा कि यदि सरकार गोरक्षा का कानून पारित करने का कोई ठोस आश्वासन नहीं देती है, तो हम संसद को चारों ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पाएगा और न बाहर आ पाएगा। 

 

🚩संतों ने 7 नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया। इस धरने में मुख्य संतों के नाम इस प्रकार हैं- शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ, स्वामी करपात्रीजी महाराज और रामचन्द्र वीर। रामचन्द्र वीर तो आमरण अनशन पर बैठ गए थे।

 

🚩गोरक्षा महाभियान समिति के संचालक व सनातनी करपात्रीजी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय की सातों पीठों के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, माधव संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग व हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं को पं. लक्ष्मीनारायणजी चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे। लाल किला मैदान से आरंभ होकर नई सड़क व चावड़ी बाजार से होते हुए पटेल चौक के पास से संसद भवन पहुंचने के लिए इस विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में अपने घरों से लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। हर गली फूलों का बिछौना बन गई थी।

 

🚩कहते हैं कि नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चौक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। लाखों लोगों की भीड़ जुटी थी जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। हजारों संत थे और हजारों गोरक्षक थे। सभी संसद की ओर कूच कर रहे थे। 

 

🚩कहते हैं कि दोपहर 1 बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा कि यह सरकार बहरी है। यह गोहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ और सारे सांसदों को खींच-खींचकर बाहर ले आओ, तभी गोहत्याबंदी कानून बन सकेगा।

 

🚩कहा जाता है कि जब इंदिरा गांधी को यह सूचना मिली तो उन्होंने निहत्थे करपात्री महाराज और संतों पर गोली चलाने के आदेश दे दिए। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गोरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। माना जाता है कि एक नहीं, उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गोरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।

 

🚩गुलजारी लाल नंदा का इस्तीफा : इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। इधर, संत रामचन्द्र वीर अनशन पर डटे रहे, जो 166 दिनों के बाद समाप्त हुआ था। देश के इतने बड़े घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका ‘आर्यावर्त’ और ‘केसरी’ में छपी थी। कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ ने अपने गौ अंक विशेषांक में विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।

 

🚩करपात्रीजी का श्राप : इस घटना के बाद स्वामी करपात्रीजी के शिष्य बताते हैं कि करपात्रीजी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।

 

🚩‘कल्याण’ के उसी अंक में इंदिरा को संबोधित करके कहा था- ‘यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है फिर भी मुझे इसका दु:ख नहीं है, लेकिन तूने गौहत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है, वह क्षमा के योग्य नहीं है। इसलिए मैं आज तुझे श्राप देता हूं कि ‘गोपाष्टमी’ के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा। आज मैं कहे देता हूं कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा।’ जब करपात्रीजी ने यह श्राप दिया था तो वहां प्रमुख संत ‘प्रभुदत्त ब्रह्मचारी’ भी मौजूद थे। कहते हैं कि इस कांड के बाद विनोबा भावे और करपात्रीजी अवसाद में चले गए।

 

🚩इसे करपात्रीजी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्‍टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे। 

 

🚩गोहत्याबंदी का कानून की मांग का इतिहास : स्वाधीन भारत में विनोबाजी ने पूर्ण गोवधबंदी की मांग रखी थी। उसके लिए कानून बनाने का आग्रह नेहरू से किया था। वे अपनी पदयात्रा में यह सवाल उठाते रहे। कुछ राज्यों ने गोवधबंदी के कानून बनाए।

 

🚩इसी बीच हिन्दू महासभा के अध्यक्ष निर्मलचन्द्र चटर्जी (लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पिता) ने एक विधेयक 1955 में प्रस्तुत किया था। उस पर जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में घोषणा की कि ‘मैं गोवधबंदी के विरुद्ध हूं। सदन इस विधेयक को रद्द कर दे। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि ऐसे विधेयक पर न तो विचार करे और न कोई कार्यवाही।’

 

🚩1956 में इस विधेयक को कसाइयों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उस पर 1960 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। धीरे-धीरे समय निकलता जा रहा था। लोगों को लगा कि अपनी सरकार अंग्रेजों की राह पर है। वह आश्वासन देती रही और गोवध एवं गोवंश का नाश का होता गया। इसके बाद 1965-66 में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी स्वामी करपात्रीजी और देश के तमाम संतों ने इसे आंदोलन का रूप दे दिया। गोरक्षा का अभियान शुरू हुआ। देशभर के संत एकजुट होने लगे। लाखों लोग और संत सड़कों पर आने लगे। इस आंदोलन को देखकर राजनीतिज्ञ लोगों के मन में भय व्याप्त होने लगा।

 

🚩इसकी गंभीरता को समझते हुए सबसे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 21 सितंबर 1966 को पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि ‘गोवध बंदी’ के लिए लंबे समय से चल रहे आंदोलन के बारे में आप जानती ही हैं। संसद के पिछले सत्र में भी यह मुद्दा सामने आया था। और जहां तक मेरा सवाल है, मैं यह समझ नहीं पाता कि भारत जैसे एक हिन्दू बहुल देश में, जहां गलत हो या सही, गोवध के विरुद्ध ऐसा तीव्र जन-संवेग है, गोवध पर कानूनन प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सकता?’

 

🚩इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण की यह सलाह नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि सर्वदलीय गोरक्षा महाभियान ने दिल्ली में विराट प्रदर्शन किया। दिल्ली के इतिहास का वह सबसे बड़ा प्रदर्शन था। तब प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, पुरी के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ ने गोरक्षा के लिए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस जुल्म के विरोध में और गोवधबंदी की मांग के लिए 20 नवंबर 1966 को अनशन प्रारंभ कर दिया। वे गिरफ्तार किए गए। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का अनशन 30 जनवरी 1967 तक चला। 73वें दिन डॉ. राममनोहर लोहिया ने अनशन तुड़वाया। अगले दिन पुरी के शंकराचार्य ने भी अनशन तोड़ा। उसी समय जैन संत मुनि सुशील कुमार ने भी लंबा अनशन किया था।

 

🚩12 अप्रैल 1978 को डॉ. रामजी सिंह ने एक निजी विधेयक रखा जिसमें संविधान की धारा 48 के निर्देश पर अमल के लिए कानून बनाने की मांग थी। 21 अप्रैल 1979 को विनोबा भावे ने अनशन शुरू कर दिया। 5 दिन बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने कानून बनाने का आश्वासन दिया और विनोबा ने उपवास तोड़ा। 10 मई 1979 को एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो लोकसभा के विघटित होने के कारण अपने आप समाप्त हो गया।

 

🚩इंदिरा गांधी के दोबारा शासन में आने के बाद 1981 में पवनार में गोसेवा सम्मेलन हुआ। उसके निर्णयानुसार 30 जनवरी 1982 की सुबह विनोबा ने उपवास रखकर गोरक्षा के लिए सौम्य सत्याग्रह की शुरुआत की। वह सत्याग्रह 18 साल तक चलता रहा। आज भी गोवध पर केंद्र सरकार किसी भी तरह का कानून नहीं ला पाई है। गोरक्षकों का आंदोलन जारी है।

 

 

🚩 कौन थे करपात्रीजी महाराज?

 

🚩स्वामी करपात्रीजी महाराज का मूल नाम हरनारायण ओझा था। वे हिन्दू दशनामी परंपरा के भिक्षु थे। दीक्षा के उपरांत उनका नाम ‘हरीन्द्रनाथ सरस्वती’ था किंतु वे ‘करपात्री’ नाम से ही प्रसिद्ध थे, क्योंकि वे अपनी अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। वे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि प्रदान की गई।

 

🚩अखिल भारतीय राम राज्य परिषद भारत की एक परंपरावादी हिन्दू पार्टी थी। इसकी स्थापना स्वामी करपात्रीजी ने सन् 1948 में की थी। इस दल ने सन् 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थीं। सन् 1952, 1957 एवं 1962 के विधानसभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थीं।  स्त्रोत : वेब दुनिया

shorturl.at/oyEG

 

🚩अधिकतर नेता वोट पाने के लिए साधु-संतों के पास जाते हैं, कई वादा भी करते हैं पर जब संतों के आशीर्वाद से चुनाव जीत जाते हैं तब वे अपने वादा भूल जाते है और संतों का अनादर करने लग जाते हैं फिर उनको परिणाम भी भयंकर मिलते हैं। नेताओं को सावधान होना चाहिए आज भी आशाराम बापू जैसे निर्दोष संत जेल में है उनकी रिहाई और गौहत्या पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।


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सरकार और जनता के नाम आसाराम बापू ने लिखा पत्र....

20 November 2023

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🚩जोधपुर जेल से हिंदु संत आशारामजी बापू ने देशवासियों व सरकार के नाम गाय माता की महत्ता बताकर एक पत्र भेजा हुआ है जिसको पढ़कर हर कोई सराहना कर रहा है । सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ है आप भी इसे पढ़िए। इसमें इतनी उपयोगी बाते है जिसके कारण गोपाष्टमी के पावन पर्व पर इस पत्र का जन जन तक पहुंचाना चाहिए।

 

🚩पत्र में बापू आशारामजी ने लिखा था कि गौपालक और गौप्रेमी धन्य हो जायेंगे…

 

🚩ध्यान दें…

गोझरण अर्क बनानेवाली संस्थाएँ एवं जो लोग गोमूत्र से फिनायल व खेतों के लिए जंतुनाशक दवाइयाँ बनाते हैं, वे 8 रुपये प्रति लीटर के मूल्य से गोमूत्र ले जाते हैं । गाय 24 घंटे में 7 लीटर मूत्र देती है तो 56 रुपये होते हैं । उसके मूत्र से ही उसका खर्चा आराम से चल सकता है । गाय के गोबर, दूध और उसकी उपस्थिति का फायदा देशवासियों को मिलेगा ही ।

 

🚩ऋषिकेश और देहरादून के बीच आम व लीची का बगीचा है। पहले वह 1लाख 30 हजार रुपये में जाता था, बिल्कुल पक्की व सच्ची बात है । उनको गायें रखने की सलाह दी गयी तो वे 15 गायें, जो दूध नही देती थी, लगभग निःशुल्क ले आये । उस बगीचे का ठेका दूसरे साल 2 लाख 40 हजार रुपये में गया । अब उन्होंने बताया कि गायें उस धरती पर घूमने से, गोमूत्र व गोबर के प्रभाव से अब वह बगीचा 10 लाख रुपये में जाता है । अपने खेतों में गायों का होना पुण्यदायी, परलोक सुधारनेवाला और यहाँ सुख-समृद्धि देनेवाला साबित होगा ।

 

🚩अगर गोमूत्र, गौ-गोबर का खेत-खलिहान में उपयोग हो जाय तो उनसे उत्पन्न अन्न, फल, सब्जियाँ प्रजा का कितना हित करेंगी, कल्पना नहीं कर सकते !!

विदेशी दवाइयों के निमित्त कई हजार करोड़ रुपये विदेशों में जाते हैं और देशवासी उन दवाइयों के दुष्प्रभाव के शिकार हो जाते हैं ।

 

🚩बापू आशारामजी ने पत्र में आगे लिखा कि प्रजा हितैषी जो सरकारें हैं, उन मेरी प्यारी सरकारों को प्यार भरा प्रस्ताव पहुँचाओगे तो मुझे खुशी होगी । मानव व देश का भला चाहने वाले प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रोनिक मीडिया इस बात के प्रचार का पुनीत कार्य करेंगे तो मानव के स्वास्थ्य व समृद्धि की रक्षा करने का पुण्य भी मिलेगा, प्रसन्नता भी मिलेगी व भारत देश की सुहानी सेवा करने वाले मीडिया को देशवासी कितनी ऊँची नजर से देखेंगे और दुआएँ देंगे । उनकी 7-7 पीढ़ियाँ इस सेवाकार्य से सुखी, समृद्ध व सद्गति को प्राप्त होंगी।

 

🚩केमिकल की फिनायल व उसकी दुर्गंध से हवामान दूषित होता है । गौ-फिनायल से आपकी सात्त्विकता, सुवासितता बढ़ेगी ही ।

 

🚩सज्जन सरकारें, प्रजा का हित चाहनेवाली सरकारें मुझे बहुत प्यारी लगती हैं । गौ-गोबर के कंडे से जो धुआँ निकलता है, उससे हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं । शव के साथ श्मशान तक की यात्रा में मटके में गौ-गोबर के कंडे जलाकर ले जाने की प्रथा के पीछे हमारे दूरद्रष्टा ऋषियों की शव के हानिकारक कीटाणुओं से समाज की सुरक्षा लक्षित है ।

 

🚩अगर गौ-गोबर का 10 ग्राम ताजा रस प्रसूतिवाली महिला को देते हैं तो बिना ऑपरेशन के सुखदायी प्रसूति होती है ।

 

🚩गोधरा (गुज.) के प्रसिद्ध तेल-व्यापारी रेवाचंद मगनानी की बहू के लिए गोधरा व बड़ौदा के डॉक्टरों ने कहा था : ‘‘इनका गर्भ टेढ़ा हो गया है । उसी के कारण शरीर ऐसा हो गया है, वैसा हो गया है… सिजेरियन (ऑपरेशन) ही कराना पड़ेगा ।’’ आखिर अहमदाबाद गये । वहाँ 5 डॉक्टरों ने मिलकर जाँच की और आग्रह किया कि ‘‘जल्दी सिजेरियन के लिए हस्ताक्षर करो; या तो संतान बचेगी या तो माँ, और यदि संतान बचेगी तो वह अर्धविक्षिप्त होगी । अतः सिजेरियन से एक की जान बचा लो ।’’

 

🚩परिवार ने मेरे से सिजेरियन की आज्ञा माँगी । मैंने मना करते हुए गौ-गोबर के रस का प्रयोग बताया । न माँ मरी न संतान मरी और न कोई अर्धविक्षिप्त रहा । प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहें तो देख सकते हैं । अभी वह लड़की महाविद्यालय में पढ़ती होगी । अच्छे अंक लाती है । माँ भी स्वस्थ है । कई लोग देख के भी आये । कइयों ने उनके अनुभव की विडियो क्लिप भी देखी होगी । गौ-गोबर के रस द्वारा सिजेरियन से बचे हुए कई लोग हैं ।

 

🚩विदेशी जर्सी तथाकथित गायों के दूध आदि से मधुमेह, धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, ऑटिज्म, स्किजोफ्रेनिया (एक प्रकार का मानसिक रोग), मैड काऊ, ब्रुसेलोसिस, मस्तिष्क ज्वर आदि भयंकर बीमारियाँ होने का वैज्ञानिकों द्वारा पर्दाफाश किया गया है । परंतु भारत की देशी गाय के दूध में ऐसे तत्त्व हैं जिनसे एच.आई.वी. संक्रमण, पेप्टिक अल्सर, मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, स्तन व त्वचा का कैंसर आदि अनेक रोगों से रक्षा होती है । उसमें स्वर्ण-क्षार भी पाये गये हैं । गाय के दूध-घी का पीलापन स्वर्ण-क्षार की पहचान है । लाइलाज व्यक्ति को भी गौ-सान्निध्य व गौसेवा से 6 से 12 महीने में स्वस्थ किया जा सकता है ।

 

🚩पुनः गोमूत्र, गोबर से निर्मित खाद एवं गौ-उपस्थिति का खेतों में सदुपयोग हो ! भारत को भूकम्प की आपदाओं से बचाने के लिए मददगार है गौसेवा !

 

🚩लोग कहते हैं कि ‘आप 8000 गायों का पालन-पोषण करते हैं !’ तो मैं तुरंत कहता हूँ कि ‘वे हमारा पालन-पोषण करती हैं । उन्होंने हमसे नहीं कहा कि हमारा पालन-पोषण करो, हमें सँभालो । हमारी गरज से हम उनकी सेवा करते हैं, सान्निध्य लेते हैं ।’

 

🚩महाभारत (अनुशासन पर्व : 80.3) में महर्षि वसिष्ठजी कहते हैं : ‘‘गाय मेरे आगे रहें । गाय मेरे पीछे भी रहें । गाय मेरे चारों ओर रहें और मैं गायों के बीच में निवास करूँ ।’’

 

🚩हे साधको ! देशवासियों ! सुज्ञ सरकारों ! इस बात पर आप सकारात्मक ढंग से सोचने की कृपा करें ।               

-आप सभीका स्नेही

आशाराम बापू, जोधपुर

(नोट : यह संदेश अगस्त 2016 का है)

 

🚩आपको बता दे कि बापू आशारामजी ने कत्लखानों में जाति हजारों गायों को बचाकर अनेकों गौशाला बनाई उसमें अधिकितर गाये दूध देने वाली नही है फिर भी उनका पालन व्यवस्थित तरीके से किया जता है। और विदेशी कम्पनियों की कमर तोड़ दी थी और लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाकर और आदिवासियों को जीवन उपयोगी सामग्री देकर धर्मांतरण की दुकानें बंद करवा दी थी । 14 फरवरी वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस और 25 दिसंबर को क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवा दिया । ऐसे अनेकों देश हित के कार्यों हैं जिसके कारण उन्हें फंसाया गया है ।


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Sunday, November 19, 2023

गोपाष्टमी कब से शुरू हुई ? इस दिन मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए क्या करना चाहिए ?

19 November 2023

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🚩गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है । गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी छोटी अंगुली पर धारण किया था । गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा । तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया ।


🚩उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे,परंतु जब लगातार 7 दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब 8 वें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ । तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की । कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा । वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था । उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है ।


🚩कैसे मनायें गोपाष्टमी पर्व ?


🚩गोपाष्टमी के दिन गायों को स्नान कराएं । तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें । गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, 7 परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं । इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है ।


🚩गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है ।


🚩भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है । विशेषकर गौशालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्त्व का उत्सव है । इस दिन गौशालाओं में एक मेले जैसा लग जाता है । गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं । यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जानेवाला उत्सव है । इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं ।


🚩देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापों का नाश होता है । गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं । ‘स्कंद पुराण’ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवी-देवताओं का निवास बताया गया है ।


🚩गायों को घास देने वाले का कल्याण होता है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं ।

विशेष : ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन की पूजा का विधान नहीं है ।


🚩गाय माता को प्रतिदिन रोटी देना चाहिए, गाय के गौमूत्र, गोबर,दूध, और घी से कई तरह की बीमारियों से रक्षा होती हैं।


🚩विश्व के लिए वरदानरूप : गोपालन


🚩देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है । जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते । पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है । इसका सेवन हमारे पाप-ताप भी दूर करता है । गाय से हमें बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है ।

 (स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित “गाय” नामक सत्साहित्य से)


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Saturday, November 18, 2023

भगवान श्री राम के जन्म के बारे में अंग्रेज ने 400 साल पहले क्या लिखा था ?

18 November 2023

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🚩अयोध्या में राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है और 22 जनवरी, 2024 को उद्घाटन के साथ ही हिन्दुओं के 500 वर्षों के संघर्ष का परिणाम उनके समक्ष भव्य स्वरूप में उपस्थित होगा। इस संघर्ष के पीछे कई हिन्दुओं का बलिदान है, जिन्होंने इस्लामी आक्रांताओं, अंग्रेजों और फिर सेक्युलर सत्ताधीशों के सामने सीना ठोक कर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी। आज उन बलिदानों को याद करने का समय है, साथ ही यह याद रखना भी जरूरी है कि कैसे एक मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित करने के लिए इस्लामी आक्रांताओं ने पूरा इतिहास ही अपने हिसाब से बदल डाला।


🚩उनके जाने के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने इसका बीड़ा उठाया और ये साबित करने की कोशिश की कि अयोध्या में कभी राम मंदिर था ही नहीं। ऐसे वामपंथी इतिहासकारों को सुप्रीम कोर्ट तक की फटकार मिली। आज फिर से समय है इतिहास को देखने का, जो हमें भूलना नहीं है। आइए, चलते हैं 17वीं शताब्दी में और जानते हैं कि कैसे अयोध्या सदियों से भगवान श्रीराम की भूमि रही है। वामपंथी इतिहासकार तो रामायण और रामचरितमानस तक को नहीं मानते, लेकिन अंग्रेजों के लिखे पर वो क्या कहेंगे?


🚩अगस्त 1608 में विलियम फिंच नामक एक अंग्रेज़ यात्री भारत आया था। सूरत में वो कैप्टन हॉकिंस के साथ पहुँचा था। बड़ी बात ये है कि वो जब 1608-11 में अयोध्या पहुँचा तो उसने अपने सफरनामे में लिखा है कि कैसे यहाँ के लोग भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं और प्राचीन काल से ही ये नगर उनसे जुड़ा हुआ है। बता दें कि सर विलियम हॉकिंस ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के प्रतिनिधि थे। 24 अगस्त, 1608 को जो अंग्रेजों का पहला जहाज सूरत में उतरा था, उसका नाम ‘हेक्टर’ था और विलियम हॉकिंस ही उसके कैप्टन थे।


🚩विलियम हॉकिंग्स ने ही तत्कालीन बादशाह जहाँगीर को पत्र लिख कर भारत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति माँगी थी। वो अपने साथ इंग्लैंड के तत्कालीन राजा जेम्स प्रथम का एक पत्र जहाँगीर के लिए लेकर आए थे। उन्हीं के साथ आए विलियम फिंच ने आगरा और अन्य शहरों में रह कर यहाँ के रीति-रिवाज को समझा और मुगलों के काम करने की प्रक्रिया को जाना। उस समय भारत में पुर्तगाली अक्सर कारोबार करते थे और इंग्लैंग को उनके विरोध का सामना करना पड़ा।


🚩खम्भात के सूबेदार से विलियम फिंच ने अनुमति ले ली कि वो अपना माल सूरत में उतार सकता है। बाद में उसके बीमार पड़ने के कारण ही विलियम हॉकिंस को अकेले मुग़ल दरबार में जाना पड़ा था। अंग्रेजों को कपड़ों का व्यापार करने की अनुमति मिली थी। विलियम हॉकिंस को तुर्की भाषा आती थी और इस कारण मुगलों से बातचीत में उन्हें कोई समस्या नहीं हुई। हालाँकि, तब जहाँगीर के करीबी मुक़र्रब खान (जो बाद में कन्वर्ट होकर रोमन कैथोलिक बन गया था) ने पुर्तगालियों के इशारे पर अंग्रेजों के काम में अड़ंगा लगाया।


🚩हालाँकि, जहाँगीर को विलियम हॉकिंग्स काफी पसंद आए थे और उसने उन्हें अपने दरबार में रहने का ऑफर दिया। उनके लिए न सिर्फ मासिक वेतन तय किया गया, बल्कि 400 घोड़े भी उनके कमांड में दिए थे । बावजूद इसके भी हॉकिंस को मनपसंद अनुमति नहीं मिली और उन्हें वापस जाना पड़ा। बाद में अंग्रेजों की नौसेना ने लाल सागर में भारत का कारोबार रोका और फिर मुगलों के साथ उनकी डील हुई। फिर सन् 1615 में सर थॉमस रो , जहाँगीर के साथ तोहफे लेकर अजमेर पहुँचे।


🚩ये तो थी अंग्रेजों के सूरत और जहाँगीर के दरबार में पहुँचने की कहानी। अब बात करते हैं कि विलियम फिंच ने अयोध्या के बारे में क्या लिखा था, आइए देखें उसी के शब्दों में...


🚩 “अयोध्या यहाँ 50 ईसापूर्व से स्थित है। ये एक प्राचीन नगर है। ये एक पवित्र राजा का स्थल है। हालाँकि, अभी इसके अवशेष ही बचे हैं। यहाँ 4 लाख वर्ष पूर्व बने रामचंद्र के महलों और घरों के खँडहर अभी तक हैं। भारतीय उन्हें भगवान मानते हैं, जिन्होंने दुनिया का तमाशा देखने के लिए शरीर धारण किया था।”


🚩विलियम फिंच आगे लिखता है कि वहाँ कई ब्राह्मण रहते हैं, जिनके पास वहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के नाम-पता की सूची दर्ज है। उसने ये जिक्र भी किया है कि पवित्र सरयू नदी में स्नान करने के लिए वहाँ हिन्दू आते हैं। वो लिखता है कि हिन्दू ( तत्कालीन समय के ) बताते हैं कि इस पवित्र स्नान की प्रक्रिया 4 लाख वर्षों से चली आ रही है। उसने नदी से 2 कोस की दूरी पर स्थित गुफाओं का जिक्र भी किया है, जो काफी संकरी हैं ।


🚩बाबरी ढाँचा तो आपको याद होगा? इसे कारसेवकों ने 1992 में ध्वस्त कर दिया था। इस ढाँचे की तस्वीरें आपने देखी होंगी। जबकि उस ज़माने की अधिकतर संरचनाएँ आर्किटेक्चर के मामले में समृद्ध हुआ करती थीं। पर बाबरी ढाँचा को देख कर ऐसा लगता था जैसे बाबर के सेनापति मीर बाक़ी ने आनन-फानन में सिर्फ जमीन हथियाने की मंशा से इसे बनवा दिया होगा।इसका प्रारूप बड़ा ही बचकाना नज़र आता था। राम मंदिर को ध्वस्त कर उसके ही मलबे से इसे तैयार किया गया था।


🚩अब विलियम फिंच को तो छोड़िए, यहाँ तक कि आइना-ए-अकबरी में भी भगवान विष्णु के 10 अवतारों का जिक्र है और इसमें भी लिखा है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था। विलियम फिंच ने श्रद्धालुओं की सूची और उनका विवरण रखने वाले ब्राह्मणों का जिक्र किया है। इन्हें हम पंडा कहते हैं। पंडा बड़े धार्मिक स्थलों पर होते ही होते हैं। आज भी आप देवघर चले जाइए, वहाँ पंडों के पास सारे डिटेल्स होंगे आपके पूर्वजों के अगर वो वहाँ जाते रहे होंगे। ये सिर्फ एक उदाहरण है।


🚩‘अर्ली ट्रेवल्स टू इंडिया 1583-1619’ नामक पुस्तक में विलियन फिंच का लिखा हुआ उसका सफरनामा दर्ज है। राम मंदिर के वकील CS वैद्यनाथन ने भी सुप्रीम कोर्ट में इसका जिक्र किया था। इस पुस्तक को इतिहासकार विलियम फॉस्टर ने लिखा था। विलियम फिंच के बारे में बता दें कि अंग्रेजी में कश्मीर के बारे में लिखने वाले पहले यात्रियों में उसका नाम आता है। पंजाब, पूर्वी तुर्किस्तान और पश्चिमी चीन को जोड़ने वाले व्यापारिक रूट के बारे में भी उसने काफी कुछ लिखा है।


🚩उसने काले बारूद की तरह दिखने वाले चावलों का भी जिक्र किया है। विलियम फिंच ने लिखा है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से यहाँ आने वाले श्रद्धालु अपने साथ ऐसे चावल के कुछ दाने प्रसाद के रूप में लेकर जाते हैं। उनका मानना है कि ये हमेशा से चलता आ रहा है। उसने रामचंद्र के खँडहरों में बड़ी मात्रा में सोना होने का दावा भी किया है। उसने ये भी लिखा है कि व्यापारिक दृष्टिकोण से भी अयोध्या समृद्ध है। साफ़ है, ये कारोबार का भी बड़ा स्थल था।


🚩बकौल विलियम फिंच, अयोध्या में घोड़े के सींग बहुतायत में मिलते थे और उनका इस्तेमाल कर के ढाल बनाई जाती थी। साथ ही तरह-तरह के पीने के प्याले बनाने में भी उनका इस्तेमाल किया जाता था। उसने कुछ भारतीयों के हवाले से लिखा है कि इनमें से कुछ सींग काफी दुर्लभ हैं, यहाँ तक कि आभूषणों की तुलना भी उनसे नहीं हो सकती। इसका अर्थ है कि अयोध्या एक महत्वपूर्ण जगह हुआ करती थी, आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए भी और आर्थिक गतिविधियों के लिए भी।


🚩इन सबके बावजूद 500 से भी अधिक वर्षों तक हिन्दुओं को अपने आराध्य देव के जगह पर अपना अधिकार साबित करने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी, बलिदान देने पड़े और दूसरे पक्ष की क्रूरता का सामना भी करना पड़ा।


🚩आज हम दिवाली पर जगमगाती अयोध्या देख रहे हैं, खुश हो रहे हैं, पर याद रहे कि इसके पीछे का बलिदान और इसका इतिहास भूलने की गलती कभी न होने पाए ।


वामपंथी इतिहासकारों को अब जब तथ्यों के साथ जवाब दिया जा रहा है और वो झूठे साबित हो रहे हैं। इसलिए हमें भी तथ्यों से लैस रहना है।

        - अनुपम कुमार सिंह


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Thursday, November 16, 2023

वैज्ञानिक रहस्य : छठ पूजा क्यों की जाती हैं ? क्या लाभ होता है ? विधि क्या है ?

17 November 2023

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🚩भारत देश की अनगिनत विशेषताएं हैं । उनमें से एक है, ‘पर्व’ । यहां प्रतिदिन, प्रतिमास कोई-न-कोई पर्व अवश्य ही मनाया जाता है । इसके लिए विशेषतः ‘कार्तिक मास’ सबसे अधिक प्रसिद्ध है ।


🚩हमारी परंपराओं की जड़े बहुत गहरी हैं, क्योंकि उन सभी का मूल स्त्रोत पुराणों में एवं प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथो में, हमारे ऋषि-मुनियों के उपदेश में मिलता है । यथा- ‘सूर्यषष्ठी’ अर्थात् छठ महोत्सव । सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी।


🚩छठ व्रत में सर्वतोभावेन भगवान् सूर्यदेव की पूजा की जाती है । जिन्हें आरोग्यका रक्षक माना जाता है । ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत’ यह वचन प्रसिद्ध है । इसे आज का विज्ञान भी मान्यता देता है । इससे हमें यह ज्ञात होता है कि, हमारे ऋषि-मुनि कितने उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे ।


🚩आइए, इस पावन पर्व पर भगवान् सूर्यदेव के साथ-साथ हमारे पूर्वज एवं उन ऋषि -मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञता पूर्वक शरणागत भाव से कोटि-कोटि नमन करते हुए प्रार्थना करें कि, उन्होंने अपने जीवन में अनगिणत प्रयोग करके, जो सत्य एवं सर्वोत्तम ज्ञान हमें दिया है, उनके बताए मार्ग पर चलकर हमें अपने जीवन को सार्थक करने एवं अन्यों को भी इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का बल वे हमें प्रदान करें । छठपर्व बिहार एवं झारखंड में सबसे अधिक प्रचलित और लोकप्रिय धार्मिक अनुष्ठान के रूप में जाना जाता है । इस अनुष्ठान को वर्ष में दो बार-चैत्र तथा कार्तिक मास में संपन्न किया जाता है । दोनों ही मासों में शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पण करते हैं और सप्तमी तिथि को प्रातःकाल उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पण किया जाता है । छठपर्व का सबसे अधिक महत्त्व छठ पूजा की पवित्रता में है ।


🚩छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है।


🚩छठ पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है।


🚩अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है। छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपरावर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है।


🚩ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।


🚩छठव्रत में व्रती को 4 दिन एवं रात्रि स्वयं को कायिक, वाचिक तथा मानसिक रूप से पवित्र रखना होता है, तभी इसका फल मिलता है उदा. वाक्संयम रखना पडता है । वाक्संयम में सत्य, प्रिय, मधुर, हित, मित एवं मांगल्यवाणी अंतर्भूत होती है । यह 4 दिन एवं रात्रि व्रती को केवल साधनारत रहना पड़ता है । वैसे तो यह पर्व विशेष रूप से स्त्रिायों द्वारा ही मनाया जाता है, किंतु पुरुष भी इस पर्व को बडे उत्साह से मनाते हैं ।


🚩चतुर्थी तिथि को व्रती स्नान करके सात्त्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसे बिहार की स्थानीय भाषा में ‘नहायखाय’के नामसे जाना जाता है । पंचमी तिथि को पूरे दिन व्रत रखकर संध्या को प्रसाद ग्रहण किया जाता है । इसे ‘खरना’ अथवा ‘लोहंडा’ कहते हैं ।


🚩षष्ठी तिथि के दिन संध्याकाल में नदी अथवा जलाशय के तट पर व्रती महिलाएं एवं पुरुष सूर्यास्त के समय अनेक प्रकार के पकवान एवं उस ऋतु में उपलब्ध को बांस के सूप में सजाकर सूर्य को दोनों हाथों से अर्घ्य अर्पित करते हैं । सप्तमी तिथि को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत प्रसाद ग्रहण किया जाता है । इसी दिन इस व्रत की समाप्ति भी होती है और व्रती भोजन करते हैं ।


🚩किसी भी व्रत, पर्व, त्यौहार तथा उत्सव मनाने के पीछे कोई-न-कोई कारण अवश्य ही रहता है । छठपर्व मनाने के पीछे भी अनेकानेक पौराणिक तथा लोककथाएं हैं साथ में एक लंबा इतिहास भी है । भारत में सूर्योपासना की परंपरा वैदिककाल से ही रही है ।


🚩वैदिक साहित्य में सूर्य को सर्वाधिक प्रत्यक्ष देव माना गया है । संध्योपासनारूप नित्य अवश्यकरणीय कर्म में मुख्यरूप से भगवान् सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है । महाभारत में भी सूर्योपासना का सविस्तार वर्णन मिलता है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृतिदेवी का छठा अंश होने के कारण इस देवीका नाम ‘षष्ठी’देवी भी है । स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक स्वामी का (स्कंद) पालन-पोषन छह कृत्तिकाओं ने मिलकर किया था, इस कारण यह छह कृत्तिकाएं अपने शिशु की रक्षा करें इस भाव से उन सभी का एकत्रित पूजन किया जाता है ।


🚩एक कारण के अनुसार सुकन्या-च्यवन ऋषि की कथा कही जाती है । एक कथानुसार राजा प्रियव्रत की कथा कही जाती है, एक अन्य कथा अनुसार मगधसम्राट जरासंध के किसी पूर्वज राजा को कुष्ठरोग हो गया था । उन्हें कुष्ठरोग से मुक्त करने के लिए शाकलद्वीपी ब्राह्मण मगध में बुलाए गए तथा सूर्योपासना के माध्यम से उनके कुष्ठरोग को दूर करने में वे सफल हुए । सूर्य की उपासना से कुष्ठ-जैसे कठिनतम रोग दूर होते देख मगध के नागरिक अत्यंत प्रभावित हुए और तब से वे भी श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने लगे ।


🚩यह कहा जाता है कि, ‘मग’ लोग सूर्यउपासक थे । सूर्य की रश्मियों से चिकित्सा करने में वे बहुत ही निष्णात (प्रवीण) थे । उनके द्वारा राजा को कुष्ठरोग से मुक्ति देने से राजा ने उन्हें अपने राज्य में बसने को कहा । ‘मग’ ब्राह्मणोंसे आवृत्त होनेके कारण यह क्षेत्र ‘मगध’ कहलाया । तभी से पूरी निष्ठा, श्रद्धा, भक्ति तथा नियमपूर्वक 4 दिवसीय सूर्योपासना के रूप में छठपर्व की परंपरा प्रचलित हुई एवं उत्तरोत्तर समृद्ध ही होती गई।


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