Thursday, January 16, 2020

208 कुलिपतियों ने मोदीजी को लिखा पत्र, वामपंथी करने नहीं दे रहे हैं पढ़ाई

16 जनवरी 2020

*🚩जेएनयू में 5 जनवरी को हुए हिंसा के बाद देश के 208 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। जिसमें वामपंथियों के कैंपस में हिंसक गतिविधियों पर चिंता जाहिर की है। चिट्ठी में 208 विश्वविद्यालयों के कुलपति के हस्ताक्षर भी हैं। इस चिट्ठी में लिखा गया है कि, वामपंथी कार्यकर्ताओं की गतिविधियों की वजह से कैंपस में पढ़ाई-लिखाई काम बाधित होता है और इससे विश्वविद्यालयों का वातावरण खराब हो रहा है। इन कुलपतियों ने आरोप लगाया है कि इन वाम गुटों द्वारा कम उम्र के छात्रों को वैचारिक रूप से प्रभावित किया जा रहा है जिससे नए छात्र पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं।*

*🚩क्या लिखा है पत्र में...*

*🚩प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में कुलपतियों ने कहा, “हम शिक्षाविदों का समूह शिक्षण संस्थानों में बन रहे माहौल पर अपनी चिंताएं बताना चाहते हैं। हमने यह अनुभव किया है कि, शिक्षण संस्थानों में शिक्षा सत्र के रोकने और बाधा डालने की कोशिश राजनीति के नाम पर वामपंथी छात्र एक एजेंडे के तहत कर रहा है। हाल ही में जेएनयू से लेकर जामिया और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लेकर जादवपुर विश्वविद्यालय के माहौल में जिस तरह की गिरावट आई है वह वामपंथियों और लेफ्ट विंग एक्टिविस्ट के एक छोटे समूह की वजह से हुआ है।”*

*🚩बच्चों को गलत तरीके से किया जा रहा प्रभावित*

*🚩कुलपतियों ने कहा, ”इन संस्थानों में वामपंथियों की वजह से पढ़ाई-लिखाई के कामों में बाधा पहुंची है। छोटी उम्र में ही छात्रों को भ्रमित करने की कोशिश ना केवल उनके सोचने की क्षमता बल्कि उनकी कौशल को भी प्रभावित कर रही है। इसकी वजह से छात्र ज्ञान और जानकारी की नई सीमाओं को लांघने और खोजने की बजाय छोटी राजनीति में उलझ रहे हैं।विचारधारा के नाम पर अनैतिक राजनीति करके समाज और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ असहिष्णुता बढ़ाई जा रही है। इस तरह के प्रयासों से बहस को सीमित करके विश्वविद्यालयों और संस्थानों को दुनिया की नजरों से दूर करने की कोशिश की जा रही है।”*

*🚩बढ़ रही असहिष्णुता*

*🚩विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने कहा, ”विद्यार्थियों के विभिन्न समूह और वर्गों के बीच असहिष्णुता जन्म ले रही है बल्कि अध्यापकों और बुद्धिजीवियों के बीच भी खराब माहौल बन रहा है। सार्वजनिक स्थानों पर अपनी बात स्वतंत्र रूप से रखने में बेहद मुश्किल हो रही है और ऐसे कार्यक्रम करना भी कठिन होता जा रहा है क्योंकि लेफ्ट विंग राजनीति सेंसरशिप थोप रही है। धरना प्रदर्शन हड़ताल और बंद वामपंथियों के प्रभाव वाले इलाके में आम हो गए हैं। वामपंथी विचारधारा से सहमत नहीं होने पर व्यक्तिगत रूप से निशाना साधना और सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करना, तंग करना ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।”*

*🚩गरीब छात्रों का हो रहा नुकसान*

*🚩सभी 208 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने लिखा है कि ”लेफ्ट विंग की राजनीति की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान गरीब छात्रों और मित्र समुदाय से आने वाले छात्रों को हुआ है। लेफ्ट विंग की वजह से वे पढ़ने-सीखने और बेहतर भविष्य बनाने के अवसरों से चूक रहे हैं। वैकल्पिक राजनीति करने और अपने स्वतंत्र विचारों को रखने के मौके भी उनसे छीने जा रहे हैं। वह अपने आप को वामपंथियों की राजनीति से घिरा हुआ पाते हैं। हम सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की ओर से अपील करते हैं कि वह एक साथ आएं और शिक्षा की स्वतंत्रता, भाषण की आजादी और बहू विचार के साथ खड़े हों।” स्त्रोत : एशियन नेट*

*🚩राजस्थान के अलवर जिले में रामगढ़ के बीजेपी विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने कहा था कि वामपंथीयों के द्वारा गलत कार्य करने के कारण JNU में रोजाना 50 हजार हड्डी के टुकड़े, 3 हजार इस्तेमाल किए हुए कंडोम और 500 इस्तेमाल किए हुए अबॉर्शन इंजेक्शन मिलते हैं और 10 हजार सिगरेट के बट तथा शराब की 2000 बोतले मिलती हैं । JNU के वामपंथी छात्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों में 'नेकेड डांस' भी करते हैं ।*

*🚩जब देशभर में दुर्गा अष्टमी मनाई जाती है तब JNU के वामपंथी छात्र महिषासुर की जयंती मनाते हैं।*

*🚩आपको बता दें कि मुस्लिम महिला फाउंडेशन की सदर नाजनीन ने कहा था कि JNU के वामपंथी छात्र पाकिस्तान और हाफिज सईद के हाथों बिक कर स्मैक और पैसों के लिए भारत को बदनाम कर रहे हैं। आईएसआई के एजेंट बनकर ऐसे लोग भारत में शिक्षा ले रहे हैं, इनको जल्द देश निकाला जाए।*

*🚩हमारे देश के इतिहास को तोर मरोड़ करके झूठा इतिहास लिखने वाले वामपंथी ही हैं । वामपंथी देश के टुकड़े करना चाहते हैं उनको देश से कोई लेना देना नही है अतः इन वामपंथीयों से सावधान रहें। सरकार को इन वामपंथीयों पर नकेल कसनी चाहिए।*

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Saturday, January 11, 2020

ईसाई के 172 देश, मुस्लिम के 58, हिंदू के 1 भी नहीं, जानिए इसका कारण

11 जनवरी 2020

*🚩लगता है कि भारत के अनेक प्रभावी बुद्धिजीवी और पत्रकार, विदेशी लोग यहाँ की 80 प्रतिशत जनता के हिन्दू होने, उसकी भावना, दुःख और उस पर होते भेद-भाव से निरे अनजान, बेपरवाह हैं। वे भूलकर भी नहीं बताते कि मुस्लिम देशों में रहने वाले हिन्दुओं के साथ क्या बर्ताव होता है; किस तरह पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिन्दू उजड़ गए, करोड़ों की जनसंख्या मानो लुप्त हो गई। जबकि भारत में मुस्लिम आबादी फलती-फूलती, हिन्दुओं से भी अधिक तेजी से बढ़ती गई।*

*🚩दूसरी ओर, तमाम पड़ोसी देशों से लाखों मुस्लिम यहाँ बेहतर रोजगार और संपत्ति की चाह में अवैध रूप से निरंतर आते गए। इसमें पीड़ित और सुखी समुदायों की जो तस्वीर बनती है, उसे छिपाया गया। बल्कि, उलटा प्रचार हुआ कि भारत में हिन्दू उत्पीड़क और मुस्लिम उत्पीड़ित हैं। जबकि यदि यहाँ मुसलमानों को उत्पीड़न मिला होता तो बाहरी मुसलमान यहाँ आने की नहीं सोच सकते थे। जैसे, कोई ईसाई, हिन्दू या बौद्ध किसी भी मुस्लिम देश में जाकर रहने की कभी नहीं सोचता।*

*🚩भारत के प्रभावी, विशेषतः अंग्रेजी विमर्श में "हिन्दू" शब्द कभी सकारात्मक रूप में नहीं मिलता। उन बौद्धिकों के विदेशीपने का सब से बड़ा उदाहरण यही है कि जिस मानवीयता, सार्वभौमिक सदभाव और न्याय को वे बाकी दुनिया के नारों और सिद्धांतों में खोजते रहते हैं, वह यहीं हिन्दू परंपरा में मौजदू होने का उन्हें कोई भान नहीं। वे जिन मापदंडों से भारत और विशेषकर हिन्दू धर्म की निंदा करते रहते हैं, उन मापदंडों को सऊदी अरब, इस्लाम या चीन की चर्चा करते हुए साफ छोड़ देते हैं। देश या विदेश, कहीं भी हिन्दुओं का उत्पीड़न, उन पर अन्याय उनके लिए कोई खबर नहीं है, जबकि हर कहीं मुसलमानों की कैसी भी चाह, कष्ट उनके लिए प्रथम चिंता होती है, जिसे बढ़ा-चढ़ा कर छापना, दुहराना, उस पर लंबे-लंबे लेख लिखना, प्रचारित करना मानो उनका धर्म है। ऐसा घोर दोहरापन क्यों है? इस्लामी देशों के संसाधनों, ईनामों का भी इस में योगदान है। मुसलमानों के उग्र दबाव की भी इस में भूमिका है, जिस का डर अनेक बौद्धिकों को चुप रखता है।*

*🚩वस्तुतः जिसे आधुनिक सेक्यूलर बनाम सांप्रदायिक हिन्दुत्व की लड़ाई बताया जाता है, वह एक भ्रष्ट, जड़ वामपंथी एलीट और पारंपरिक आध्यात्मिक हिन्दू समाज के बीच का संघर्ष है। पर भारत में ही हिन्दुओं को हीन बना देने में इस की भी भूमिका है कि भारत में सरकारों और नेताओं ने दूसरे देशों में हिन्दुओं पर जुल्म, अन्याय का कभी नोटिस नहीं लिया। सरकार द्वारा ऐसी अनदेखी से अंततः देश के अंदर भी हिन्दुओं की स्थिति हीन होते जाना तय था।*

*🚩सभी मनुष्यों के लिए एक मापदंड़ अपनाए जाने चाहिए। सभी समुदायों, उनके विचारों, धर्मों, संगठनों को समान सिद्धांत से तौलना चाहिए। केवल हिन्दुओं के लिए निष्पक्षता, सदभाव, और सहिष्णुता के ऊँचे मापदंड बनाना अनुचित है। व्यवहारतः यह हिन्दुओं को आक्रामक मतवादों, मिशनरियों और तबलीगियों के हाथों खत्म होने की ओर विवश करना है। नागरिकता कानून का विरोध इसी का उदाहरण है।*

*🚩पिछले दशकों में बार-बार देखा गया कि बाहर या अंदर, हिन्दू शरणार्थियों के लिए कोई उदारवादी बौद्धिक आवाज नहीं उठी, जबकि बाहर से आते मुस्लिम घुसपैठियों, उग्रवादियों, आतंकवादियों के लिए भी मानवाधिकार, मानवीयता, सम्मान, आदि की पैरोकारी होती रही।*

*🚩हिन्दुओं ने दूसरे देशों पर कभी हमला नहीं किया, कभी अपने मिशनरियों को भेजकर दूसरों को छल-बल से हिन्दू विचारों को स्वीकार करने के लिए विवश नहीं किया, कभी दूसरों को गुलाम बनाकर आर्थिक शोषण-दोहन नहीं किया, कभी न कहा कि सत्य, ज्ञान या ईश्वर केवल हिन्दुओं के पास है, और जो ऐसा नहीं मानते वे नीच और गंदे हैं। 1947 ई. में मुसलमानों द्वारा अलग देश बना लेने के बाद भी करोड़ों मुसलमानों को यहीं रहने दिया। इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा कब्जा किए गए अपने महान तीर्थ-स्थानों तक को खाली नहीं कराया, फिर भी हिन्दुओं को ही असहिष्णु, अत्याचारी कहा जा रहा है! यह हद पार करने जैसा है।*

*🚩झूठ और जोर-जबर्दस्ती से समझौता करना कोई भलमनसाहत नहीं है। यह आत्म-विनाश का रास्ता है। निश्चय ही यह भारत का धर्म या चाह भी नहीं है कि वह भी इस्लामी या कम्युनिस्ट मतवादियों जैसी मतवादी संकीर्णता अपना ले। परन्तु अपनी धर्म-परंपरा और संस्कृति का बचाव भी न करना, और हर तरह के बाहरी, साम्राज्यवादी मतवादों के सामने हथियार डाल देना भी उसे स्वीकार्य नहीं हो सकता।*

*🚩समय आ गया है कि भारत की प्रभावी बौद्धिकता में जमे हिन्दू-विरोध को उखाड़ फेंका जाए। यह घोर भेद-भाव है, जिस से सामाजिक वातावरण निस्संदेह बिगड़ता है। ईर्ष्या-द्वेष, संदेह, और वैमनस्य बढ़ता है। ऐसा होना किसी भी न्यायप्रिय को स्वीकार नहीं हो सकता। हिन्दू धर्म-समाज को भारत से ही विस्थापित करने की योजनाओं, रणनीतियों को रोकना जरूरी है।*

*🚩यह खुलकर और दृढ़ता से कहना जरूरी है कि यदि दुनिया में 58 देश अपने को इस्लामी गणतंत्र कहते हैं, करीब 172 देश ईसाईयों के हैं। तो एक देश हिन्दुओं का होना सर्वथा उपयुक्त है। वह भी, जिसे हजारों वर्ष से हिन्दू देश जाना ही जाता है। तब भारत की हिन्दू पहचान को कुचलकर ‘सेक्यूलरिज्म’ थोपना भयंकर जुल्म है। किसी मुस्लिम देश में सेक्यूलरिज्म का नामो-निशान नहीं है। यूरोप और अमेरिका में भी विविध ईसाई दलों, समूहों को सहज वरीयता और विशेष सम्मान प्राप्त है। वहाँ सरकार कभी भी ईसाइयों की उपेक्षा या गैर-ईसाइयों को विशेष सुविधा और विशेष अधिकार देकर काम नहीं करती। केवल भारत में ही हिन्दुओं को संवैधानिक और सामाजिक रूप में भी दबा दिया गया है। यहाँ जिन हिन्दू संगठनों को सांप्रदायिक, असहिष्णु कहकर बदनाम किया जाता है, उन्होंने एक भी माँग या काम नहीं किए जो तमाम मुस्लिम देशों में जारी इस्लामी विशेषाधिकारों की बराबरी भी कर सके। तब केवल हिन्दू संगठनों की निंदा, और मुस्लिम संगठनों, गतिविधियों पर चुप्पी रखना हिन्दू-विरोधी कुटिलता ही है।*

*🚩जो लोग ‘हिन्दू राष्ट्र’ की संभावना को अनिष्टकारी कह कर निंदित करते हैं, वे नहीं बताते कि हिन्दू भारत के पाँच हजार वर्षों के इतिहास में कब ऐसा मजहबी शासन बना जिस का डर दिखाया जा रहा है? क्या किसी हिन्दू राजा का शासन वैसे संकीर्ण, एकाधिकारी मजहबी राज का मॉडल था, जिस की तुलना चर्च के मध्ययुगीन शासन या इस्लामी सत्ताओं से की जा सके? कौन हिन्दू राजा ऐसा मतांध था जिसने दूसरे विश्वासों, विचारों को खत्म करने की कोशिश की? किसने अपने विचार या किताब को तलवार के बल दुनिया भर में फैलाने की कोशिश की? क्या राम, कृष्ण या शिवाजी का भी राज्य ऐसा ‘हिन्दुत्ववादी’ मॉडल है? यदि नहीं, तो हिन्दू राष्ट्र से डराना झूठा प्रपंच मात्र है।*

*🚩वस्तुतः जिसे हिन्दू सांप्रदायिकता कह कर निंदित किया जाता है, वह इस्लामी उग्रवाद की प्रतिक्रिया भर है। यह विशुद्ध आत्मरक्षात्मक है। अपने धर्म, समाज और देश की रक्षा करने की भावना। भारत दोनों ओर से घोषित ‘इस्लामी गणतंत्र’ देशों से घिरा है। उन की खुली-छिपी मार भी झेल रहा है। उन देशों में हिन्दुओं की दुर्दशा दुनिया के किसी भी समुदाय से बुरी है। फिलीस्तीन, सूडान या तिब्बत के लोगों के लिए बोलने वाले दुनिया भर में मिलते हैं। पर बंगलादेश में अभागे, उत्पीड़ित हिन्दुओं के लिए बोलने वाला, एक तस्लीमा नसरीन को छोड़कर, कोई नहीं सुना गया। भारत के किसी सेक्यूलरवादी, वामपंथी, गाँधीवादी बौद्धिक ने उन के लिए एक शब्द तक नहीं कहा। - डॉ. शंकर शरण*

*🚩हिंदुओं को भी जाति-पाती में नही बंटकर एक होकर भारत देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग करनी चाहिए।*

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Friday, January 10, 2020

जानिए विश्व हिंदी दिवस क्यो मनाया जाता है? कितनी महान भाषा है

10 जनवरी 2020

🚩 *हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।*

🚩 *दुनिया में पहला विश्व हिंदी दिवस भारत में नहीं बल्कि नार्वे में मनाया गया था । नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने तथा दूसरा और तीसरा विश्व हिन्दी दिवस भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ला की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था।*

🚩 *इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में, रविवार 10 जनवरी 2010 को, विश्व हिन्दी सचिवालय, शिक्षा, संस्कृति एवं मानव संसाधन मन्त्रालय, भारतीय उच्चायोग, इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र तथा हिन्दी संगठन के मिले-जुले सहयोग से विश्व हिन्दी दिवस 2010 मनाया गया।*

🚩 *जिसमें मुख्य अतिथि हंगरी के भारोपीय शिक्षा विभाग से आई हुई डॉ. मारिया नेज्यैशी थी इस उपलक्ष्य पर विश्व हिन्दी सचिवालय की एक रचना (एक विश्व हिन्दी पत्रिका) का भी लोकार्पण गणराज्य के राष्ट्रपति माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ जी के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर कविता-प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, सम्मान उन सभी नवोदित कवियों का वास्तव में रहा जिनको अपनी कलात्मकता प्रेषित करने का एक मंच प्राप्त हुआ।*

🚩 *विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।*

🚩 *अपने अधिकतर भाषण अंग्रेजी में ही देने वाले भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी, 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।*

🚩 *हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जा रही है*

🚩 *दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।*

🚩 *2005 में दुनिया के 160 देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी। लेकिन 2015 में दुनिया के 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब हिंदी बोलने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है। चीन के 20 विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है।*

🚩 *भारत देश में 78 फीसद लोग बोलते हैं, हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है। लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है।*

🚩 *चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है। दुनिया में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है।*

🚩 *भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है। भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।*

🚩 *हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो बाकायदा "विश्व हिंदी सचिवालय" की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है।*

🚩 *आपको बता दें कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपनी सिफारिशों में सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में से धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और भारतीय भाषाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर शामिल करने पर जोर दिया है। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की सुविधा देने पर जोर दिया गया है।*

🚩 *हिंदी भाषा इसलिये दुनिया में प्रिय बन रही है क्योंकि इस भाषा को देवभाषा संस्कृत से लिया गया है जिसमें मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। जबकि अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द केवल 10,000 ही हैं ।*

🚩 *हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।*

🚩 *इंटरनेट पर अंग्रेजी को पछाड़कर राज करेगी हिंदी*

*गूगल और केपीएमजी की एक संयुक्त रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2021 तक इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का राज होगा । हिंदी, बांग्ला, मराठी, तमिल और तेलुगु आदि भारतीय भाषाओं के यूजर्स तेजी से बढ़ेंगे और अंग्रेजी के दबदबे को खत्म कर देंगे । अभी हमें भी इंटरनेट पर अंग्रेजी नही बल्कि राष्ट्र भाषा का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।*

🚩 *विदेशों में हिन्दी भाषा का उपयोग बढ़ रहा है लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि हमारे देश में ही कुछ आधुनिकता प्रेमी बोलने में संकोच करते हैं, कुछ वकील और संसद हिंदी नहीं बोलना जानते हैं।*

🚩 *आज मैकाले की वजह से ही हमने मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । लेकिन आज दुनिया में हिंदी भाषा का महत्व जितना बढ़ रहा है उसको देखकर समझकर हमें भी हिंदी भाषा का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।*

🚩 *अपनी राष्ट्र एवं मातृभाषा की गरिमा को पहचानें ।*

*सरकारी विभाग, एवं इंटरनेट आदि सभी स्तर पर हिंदी का उपयोग करना चाहिए एवं अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुँमुखी विकास में सहभागी बनें ।*

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