Saturday, August 31, 2024

जानिए 12 वर्ष तक लगातार त्रिफला खाने के लाभ

 1 सितम्बर 2024

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🚩जानिए 12 वर्ष तक लगातार त्रिफला खाने के लाभ


🚩त्रिफला एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसमें हरड़, बहेड़ा और आंवला के फल शामिल होते है। आयुर्वेद के अनुसार,त्रिफला का सेवन शरीर की तीनों दोषों—वात, पित्त और कफ—को संतुलित करने में सहायक होता है। त्रिफला के निरंतर सेवन से शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है और इसे दीर्घकालिन स्वास्थ्य लाभ के लिए अत्याधिक प्रभावी माना गया है।


 🚩 त्रिफला का महत्व और लाभ


🚩त्रिफला के बारे में कहा जाता है कि:हरड़,बहेड़ा,आंवला घी शक्कर संग खाए,हाथी दाबे कांख में और चार कोस ले जाए।"


🚩यह कहावत त्रिफला के चमत्कारिक प्रभावों को दर्शाती है। इसका मतलब है कि त्रिफला का सेवन करने से व्यक्ति में इतनी ऊर्जा और ताकत आती है कि वह हाथी को भी अपनी कांख में दबाकर चार कोस (1 कोस = 3-4 किमी) चल सकता है।


🚩 त्रिफला के सेवन के नियम और विधियां 

1. सेवन विधि: त्रिफला का सेवन सुबह खाली पेट ताजे पानी के साथ करना चाहिए। सेवन के बाद एक घंटे तक कुछ भी न खाएं और न पिएं। इसके अलावा, ऋतु के अनुसार त्रिफला के साथ अलग-अलग चीजें मिलाकर सेवन करने की सलाह दी जाती है:

   - बसंत ऋतु (मार्च - मई): त्रिफला को शहद के साथ मिलाकर लें।

   - ग्रीष्म ऋतु (मई - जुलाई): त्रिफला के साथ गुड़ मिलाकर सेवन करें।

   - वर्षा ऋतु (जुलाई - सितम्बर): त्रिफला के साथ सैंधा नमक मिलाकर लें।

   - शरद ऋतु (सितम्बर - नवम्बर): त्रिफला के साथ देशी खांड मिलाकर लें।

   - हेमंत ऋतु (नवम्बर - जनवरी): त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

   - शिशिर ऋतु (जनवरी - मार्च):त्रिफला के साथ पीपल छोटी का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।


🚩2. मात्रा का निर्धारण: त्रिफला की मात्रा का निर्धारण उम्र के अनुसार किया जाता है। जितने वर्ष की उम्र है,उतने रत्ती त्रिफला का सेवन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आपकी उम्र 50 वर्ष है, तो 50 x 0.12 = 6 ग्राम त्रिफला लेना चाहिए। 


🚩 त्रिफला का सेवन करने से मिलने वाले लाभ:


- पहला वर्ष: शरीर की सुस्ती दूर होती है।

- दूसरा वर्ष: सभी रोगों का नाश होता है।

- तीसरा वर्ष: नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

- चौथा वर्ष: चेहरे की सुंदरता में निखार आता है।

- पांचवां वर्ष: बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होता है।

- छठा वर्ष: शरीर में बल बढ़ता है।

- सातवां वर्ष: सफेद बाल काले होने लगते है।

- आठवां वर्ष: शरीर यौवन शक्ति से परिपूर्ण होता है।

- नवां वर्ष: शरीर में दिव्य गुणों का विकास होता है।

- दसवां वर्ष: देवी सरस्वती का वास कंठ में होता है।

- ग्यारहवां और बारहवां वर्ष: वचन सिद्ध होते है।


 🚩त्रिफला के विभिन्न प्रयोग:


- नेत्र-प्रक्षालन: एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को पानी में भिगोकर रखें और सुबह उस पानी से आँखें धो लें। इससे आँखों की रोशनी में सुधार होता है।

- कुल्ला करना: त्रिफला का पानी सुबह कुल्ला करने के बाद मुंह में रखने से दांत और मसूड़े मजबूत रहते है।

- वजन कम करने के लिए: त्रिफला के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।


🚩सावधानियां:

- त्रिफला का सेवन दुर्बल, कृश व्यक्ति, गर्भवती स्त्री, और नए बुखार में नहीं करना चाहिए।

- त्रिफला का सेवन करते समय दी गई मात्रा का सख्ती से पालन करें। अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में विकार उत्पन्न हो सकते है।


🚩 स्वस्थ जीवन के लिए सुझाव:


- रिफाइन्ड नमक, तेल, शक्कर, और मैदा का सेवन न करें।

- प्राकृतिक भोजन और शुद्ध पानी का सेवन करें।

- आध्यात्मिकता और ध्यान का अभ्यास करें।

- अपने आहार और दिनचर्या में संतुलन बनाए रखें।


🚩त्रिफला का नियमित और सही तरीके से सेवन करने से आप न केवल विभिन्न बीमारियों से बच सकते है,बल्कि दीर्घकालिन स्वास्थ्य और सुंदरता भी प्राप्त कर सकते है। आयुर्वेद का यह अनमोल उपहार आपके जीवन को नई ऊर्जा और स्वास्थ्य से भर देगा।


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Friday, August 30, 2024

बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश का अनोखा मंदिर

 31 August 2024

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🚩बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश का अनोखा मंदिर


🚩बिजली महादेव मंदिर, हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत कुल्लू शहर में स्थित एक प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर है। यह मंदिर व्यास और पार्वती नदियों के संगम के पास, ऊंचे पर्वत की चोटी पर स्थित है, जो भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 


 🚩कुल्लू घाटी की मान्यता और पौराणिक कथा:

कुल्लू घाटी की मान्यता के अनुसार, यह घाटी एक विशालकाय सांप के रूप में मानी जाती है। कहा जाता है कि इस विशालकाय सांप का वध भगवान शिव ने किया था। उसी स्थान पर भगवान शिव का यह मंदिर बना है, जिसे बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। 


 🚩शिवलिंग पर गिरती है आकाशीय बिजली:

इस मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहां के शिवलिंग पर हर 12 साल में एक बार भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। मान्यता है कि यह आकाशीय बिजली भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग पूरी तरह खंडित हो जाता है। हाल ही में, दो साल पहले ही यहां बिजली गिरी थी, जिससे शिवलिंग टूट गया था, लेकिन इस घटना में कभी कोई जनहानि नहीं होती।


 🚩खंडित शिवलिंग की पुनर्स्थापना:

इस मंदिर के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़ों को इकट्ठा करते है और मक्खन के साथ उन्हें जोड़ते है। कुछ महीनों के बाद, शिवलिंग फिर से ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है और कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने शिवलिंग के स्वरूप में आ जाती है। इस प्रक्रिया को देखकर लगता है जैसे भगवान शिव स्वयं अपनी पिंडी को फिर से जीवित कर रहे है। इस अनोखे चमत्कार के कारण यहां के निवासियों ने भगवान शिव को "मक्खन महादेव" का नाम भी दिया है। 


 🚩भक्तों के लिए आस्था और रोमांच का केंद्र:

बिजली महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 3 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है, जो कि घने जंगलों और सुंदर पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरती है। इस यात्रा के दौरान, भक्तों को प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत अनुभव मिलता है। मंदिर के पास से घाटी और नदियों का नज़ारा बेहद मनमोहक होता है। 


 🚩भक्तों की आस्था और मंदिर का महत्त्व:

बिजली महादेव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह प्राकृतिक सुंदरता और रोमांच का अनुभव भी कराता है। यहां आनेवाले भक्त भगवान शिव की महिमा का अनुभव करते है और इस अनोखे मंदिर के दर्शन करके खुद को धन्य मानते है। 


🚩यह वीडियो उस समय का है जब अंतिम बार बिजली गिरी थी, और भक्तों ने इस अद्भुत घटना का अनुभव किया। 


🚩इस मंदिर की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रकृति और भगवान की शक्तियों का आदर और सम्मान करना चाहिए। कुल्लू घाटी के इस अनोखे मंदिर की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि एक अद्वितीय अनुभव के रूप में भी यादगार रहती है।


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Thursday, August 29, 2024

मंदिरों की छत समतल क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है ?

 30 अगस्त 2024

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🚩मंदिरों की छत समतल क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है ?


🚩मंदिर तो आपने देखे ही होंगे। मंदिरों की छतों पर एक विशेष प्रकार की आकृति बनाई जाती है जो ऊपर की ओर नुकीली होती है। प्रश्न यह है कि मंदिरों की छतों को इस प्रकार क्यों बनाया जाता है? क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक या धार्मिक कारण है? आइए, विस्तार से जानते है:


🚩मंदिरों की छतें कितने प्रकार की होती है ?


🚩विशेषज्ञों के अनुसार,भारत में मंदिर निर्माण की दो प्रमुख शैलियां है : उत्तर भारतीय 'नागर शैली' और दक्षिण भारतीय 'द्रविड़ शैली'। उत्तर भारत में मंदिर की छत को 'शिखर' कहा जाता है,जबकि दक्षिण भारत में इसे 'विमान' कहते है। 'शिखर' और 'विमान' दोनों ही मंदिर की छत की उन संरचनाओं को संदर्भित करते है जो ऊंचाई  ओर बढ़ती है। दक्षिण भारत में, 'शिखर' केवल ऊपर रखे पत्थर को कहा जाता है, जबकि उत्तर भारत में शिखर के सबसे ऊपर 'कलश' रखा जाता है। 


🚩इनके अलावा, पूर्वी भारत में 'रिक्हा देउल' और पश्चिमी भारत में 'वेसर शैली' जैसी अन्य शैलियां भी पाई जाती है, जो स्थानीय सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार विकसित हुई है।


🚩मंदिर की छत को पिरामिड जैसा क्यों बनाया जाता है ?


🚩1. धार्मिक और आध्यात्मिक कारण : धार्मिक दृष्टि से ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड का आरंभ एक बिंदु से हुआ था, इसीलिए मंदिर का शिखर भी एक बिंदु के रूप में होता है, जो ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। यह ऊर्जा पूरे मंदिर में फैलती है, जिससे मंदिर में शांति और पवित्रता का अनुभव होता है। शिखर को ऊंचा और नुकीला बनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि यह आकाश की ओर इशारा करते हुए आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक बनता है।


🚩2.वास्तुकला और विज्ञान:

विज्ञान भी इस बात को मान्यता देता है कि पिरामिड जैसी आकृति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संग्रहण अधिक होता है। इस प्रकार की संरचना के अंदर, विशेष रूप से यदि वह खोखली हो, ऊर्जा का मंडार (समूह) बनता है। इस प्रकार, मंदिर के अंदर ध्यान या प्रार्थना करने वाले व्यक्ति को इस ऊर्जा का लाभ मिलता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।


🚩3. जलवायु अनुकूलता:

   इस प्रकार की छत के कारण सूर्य की सीधी किरणें इसे प्रभावित नहीं कर पाती। त्रिकोणाकार छत का ऊपरी हिस्सा सूर्य की किरणों को अधिक झेल सकता है, जबकि अंदर का भाग ठंडा और आरामदायक रहता है। भारत में गर्म जलवायु को देखते हुए, इस प्रकार की वास्तुकला यात्रियों और भक्तों को राहत देने के लिए भी उपयोगी सिद्ध होती है।


🚩4. संरचनात्मक स्थिरता:

   पिरामिड आकार की संरचनाएं और भूकंप-रोधी होती है। त्रिकोणीय आकृति का केंद्र गुरुत्वाकर्षण के कारण मजबूत और संतुलित रहता है, जो किसी भी प्राकृतिक आपदा, जैसे भूकंप या तेज हवाओं के दौरान भी मंदिर को संरक्षित रखता है।


🚩5. दूर से पहचान:

   मंदिर के शिखर को ऊंचा और नुकीला बनाने का एक और उद्देश्य यह है कि इसे दूर से आसानी से पहचाना जा सके। शिखर का आकार ऐसा होता है कि कोई भी व्यक्ति प्रतिमा के ऊपर खड़ा नहीं हो सकता, जो धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि भगवान की प्रतिमा के ऊपर किसी का होना अशुभ माना जाता है।


इस प्रकार, मंदिरों की छत की संरचना केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और वास्तुकला संबंधी कारणों से भी महत्वपूर्ण है। मंदिरों का निर्माण एक पूर्ण वैज्ञानिक विधि से किया जाता है, जिससे वहां पवित्रता, शांति और दिव्यता बनी रहती है।  


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Wednesday, August 28, 2024

पनीर के फायदे और नुकसान

29August 2024

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🚩 पनीर के फायदे और नुकसान


पनीर, जो आज के दौर में एक लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है,आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा के अनुसार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है। आयुर्वेद में इसे "निकृष्टतम भोजन" कहा गया है, जिसे पशुओं को भी नहीं खिलाना चाहिए। पनीर, दूध को फाड़कर या उसके प्राकृतिक रूप को विकृत करके बनाया जाता है। जिस तरह हम सड़ी हुई सब्जी नहीं खाते,उसी तरह पनीर भी एक तरह से सड़ा हुआ दूध ही है। 


🚩पनीर का भारतीय इतिहास में अभाव  

भारतीय इतिहास में पनीर का कोई उल्लेख नहीं मिलता,क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारत में दूध को विकृत करने की मनाही रही है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं दूध को फाड़कर कुछ बनाने से बचती है।


🚩पनीर खाने के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव  

आयुर्वेद के अनुसार,विकृत दूध से बने खाद्य पदार्थ जैसे पनीर, लिवर और आंतों के लिए हानिकारक होते है।आधुनिक चिकित्सा शोध भी इस बात की पुष्टि करते है कि पनीर खाने से पाचनतंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है,जिससे पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती है। पनीर में मौजूद प्रोटीन को पचाना जानवरों के लिए भी कठिन होता है, फिर मनुष्य इसे कैसे पचा सकते है? इससे कब्ज, फैटी लीवर, और IBS (इर्रिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती। इसके अतिरिक्त,पनीर के अत्याधिक सेवन से रक्त में थक्के जमने का खतरा रहता है, जो ब्रेन हैमरेज और हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है।


🚩पनीर और हार्मोनल  असंतुलन  

पनीर का अत्यधिक सेवन हार्मोनल असंतुलन भी पैदाकर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हाइपोथायरायडिजम जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, महिलाओं में गर्भधारण करने की क्षमता भी कम हो सकती है।


🚩पनीर की लोकप्रियता और इसके व्यंजन  

आजकल पनीर का उपयोग कढ़ाई पनीर,शाही पनीर,मटर पनीर, चिली पनीर आदि अनेक प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है। यह समोसे, पकौडे और बर्गर में भी व्यापक रूप  प्रयोग होता है। भारतीय लोग पनीर के इतने शौकीन हो चुके है कि बिना पनीर खाए उन्हें भोजन अधूरा लगता है। 


🚩पनीर और मिलावट का खतरा  

यह भी देखा गया है कि बाजार में मिलने वाले पनीर में अक्सर मिलावट की जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए और भी हानिकारक होता है। अतः, यदि आप पनीर का सेवन करना चाहते है तो घर पर ही इसे तैयार करें ताकि आप मिलावट और अन्य स्वास्थ्य जोखिमों से बच सकें।


🚩पनीर के बारे में सोचें  

अगली बार, जब भी आप पनीर खाने का विचार करें, तो यह जरूर सोचें कि क्या यह वास्तव में आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है या केवल स्वाद के लिए ही आप इसका सेवन कर रहे है। 


🚩निष्कर्ष  

पनीर को लेकर आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के विचारों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने आहार में इसके उपयोग पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए, हमें यह समझना चाहिए कि पनीर का सेवन हमारे शरीर के लिए अधिक हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए, सेहतमंद जीवनशैली अपनाने के लिए हमें पनीर से दूर रहना चाहिए।


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Tuesday, August 27, 2024

ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य

 28 August 2024

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🚩ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य


🚩ॐ पर्वत, जिसे 'आदि कैलाश' के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। यह पर्वत अपनी अनोखी विशेषता के कारण दुनियांभर के तीर्थयात्रियों, साहसिक पर्यटकों और पर्वतारोहियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पर्वत की अनूठी बात यह है कि इसकी हिमाच्छादित चोटियों पर प्राकृतिक रूप से 'ॐ' का चिन्ह अंकित है, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक है।


🚩'ॐ' का यह प्रतीक मात्र एक आकृति नहीं, बल्कि एक दिव्य संदेश है जो आध्यात्मिकता, ध्यान और साधना का मार्ग दिखाता है। हिन्दू धर्म में 'ॐ' को सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्र माना गया है। जब लोग इस पर्वत पर 'ॐ' के चिन्ह को देखते है,तो उन्हें ऐसा लगता है मानो साक्षात भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा हो। यह पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा के मार्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां से कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का भी आभास होता है।


🚩 ॐ पर्वत के आस-पास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहां पर हिमालय की ऊंची चोटियों के साथ-साथ हरे-भरे जंगल,गहरी घाटियां और निर्मल जलधाराएं मिलती है जो इस स्थान को एक स्वर्गीय धाम का आभास कराती है। यहां का वातावरण शुद्ध और शांतिपूर्ण है, जो ध्यान और साधना के लिए आदर्श माना जाता है। 


🚩ॐ पर्वत की यात्रा काफी चुनौतीपूर्ण मानी जाती है क्योंकि यहां पहुंचने के लिए कठिन पहाड़ी रास्तों और अनिश्चित मौसम का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, तीर्थयात्री और पर्यटक यहां की यात्रा करते है क्योंकि यहां पहुंचने के बाद उन्हें एक अलग ही आध्यात्मिक शांति और संतोष का अनुभव होता है। यात्रा के दौरान, यात्री भारतीय सेना और आईटीबीपी (इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस) के गाइडेंस में सुरक्षित रहते है,जो यात्रा को सुरक्षित और सफल बनाने में मदद करते है।


🚩यह भी मान्यता है कि जो लोग ॐ पर्वत की यात्रा करते है,वे अपने जीवन में आध्यात्मिक उत्थान और शांति की प्राप्ति करते है। यहां का हर एक दृश्य,चाहे वह हिमाच्छादित पहाड़ हो,बर्फीली हवा हो या फिर 'ॐ' का दिव्य प्रतीक—सब कुछ एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव कराता है।


🚩अतः, ॐ पर्वत न केवल एक प्राकृतिक चमत्कार है बल्कि यह एक ऐसा स्थान है जहां आध्यात्मिक ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्तियों का अद्भुत संगम होता है। यह स्थान अपने आप में एक जीवंत मंदिर की तरह है, जो न केवल भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि यह जीवन की गहरी सच्चाइयों और दिव्यता की ओर भी मार्गदर्शन करता है।

🚩इस प्रकार, ॐ पर्वत न केवल प्राकृतिक सुंदरता का धाम है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक केंद्र भी है जो भारत की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक धरोहर को संजोए हुए है। यहां की यात्रा हर भारतीय के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव है, जो आत्मा को शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

जो भी इस पवित्र पर्वत की यात्रा करता है वह अपने जीवन में अनंत शांति और सुख का अनुभव करता है।


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Monday, August 26, 2024

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश: हमारे जीवन में कैसे लाए?

 27 August 2024

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🚩श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश: हमारे जीवन में कैसे लाए?



🚩श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद शामिल है। यह संवाद कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर होता है जहां अर्जुन अपने ही रिश्तेदारों और दोस्तों के खिलाफ युद्ध करने को लेकर दुविधा में होते है। श्रीकृष्ण उन्हें कर्तव्य,धर्म,भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में सिखातें है। ये उपदेश न केवल अर्जुन के लिए बल्कि सभी के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता के मुख्य सिद्धांत और उन्हें दैनिक जीवन में कैसे लागू करें:


🚩1. कर्तव्य पालन (धर्म):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि हर किसी का जीवन में एक कर्तव्य या उद्देश्य होता है, जिसे "धर्म" कहा जाता है। हमें अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाना चाहिए, बिना परिणाम की चिंता किए।  

   - कैसे लागू करें: समझें कि आपके जीवन में आपकी जिम्मेदारियां क्या है—चाहे वह एक छात्र,माता-पिता या कार्यकर्ता के रूप में हो—और उन्हें समर्पण और ईमानदारी से निभाएं। उदाहरण के लिए,यदि आप एक छात्र है,तो अंकों की चिंता किए बिना अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करे। प्रयास करना परिणाम से अधिक महत्वपूर्ण है।


🚩2. निस्वार्थ कर्म (कर्म योग):

   - सिद्धांत: गीता हमें बिना किसी इनाम या पहचान की इच्छा के निस्वार्थ कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। श्रीकृष्ण कहते है कि हमें कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उसके फल पर।  

   - कैसे लागू करें:अच्छे कर्मों का अभ्यास करे, जैसे कि किसी की मदद कर करना या बिना किसी प्रत्याशा के स्वयंसेवा करना। यह पड़ोसी की मदद करना, दान करना, या किसी मित्र की बिना प्रशंसा की आशा के सहायता करना हो सकता है। यह आपको परिणामों से कम जुड़ाव और भीतर से अधिक शांति प्रदान करता है।


🚩3. ईश्वर की भक्ति (भक्ति योग):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण ईश्वर की भक्ति के महत्व पर जोर देते है। वे अर्जुन को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित होने और विश्वास रखने के लिए प्रेरित करते है।  

   - कैसे लागू करें: नियमित प्रार्थना, ध्यान, या भक्ति गीतों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध बनाएं। विश्वास करें कि ईश्वर आपको मार्गदर्शन कर रहे है और जो कुछ भी होता है, एक कारण के लिए होता है। आप अपने दैनिक कार्यों को भी, चाहे वे कितने भी साधारण क्यों न हों, ईश्वर को अर्पण के रूप में समर्पित कर सकते है।


🚩4.ज्ञान और विवेक (ज्ञान योग):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम वास्तव में कौन है—कि हमारी आत्मा (आत्मा) शाश्वत है और ईश्वर का अंश है।  

   - कैसे लागू करें:आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन करने, उनके अर्थ पर चिंतन करने और ध्यान करने में समय बिताएं। यह समझने की कोशिश करें कि भौतिक वस्तुएं और अहंकार अस्थाई है, जबकि आत्मा शाश्वत है। यह जागरूकता कठिन परिस्थितियों में भी आपको शांत और स्थिर रहने में मदद कर सकती है।


🚩5. सफलता और असफलता में समानता (समत्व): 

   - सिद्धांत: गीता अच्छे और बुरे समय दोनों में संतुलित मन बनाए रखने की सलाह देती है। श्रीकृष्ण सिखाते है कि किसी को भी सफलता या असफलता में शांत और संयमित रहना चाहिए।  

   - कैसे लागू करें: अपने मन को स्थिर रखने के लिए ध्यान और मनन का अभ्यास करें। जब आप चुनौतियों या असफलताओं का सामना करते है, तो बहुत अधिक परेशान होने की कोशिश न करें। याद रखें कि अच्छे और बुरे दोनों समय अस्थाई होते है।


🚩6. आसक्ति का त्याग (वैराग्य):

   - सिद्धांत:गीता हमें लोगों,संपत्ति और परिणामों से मुक्त होने का आग्रह करती है। आसक्ति अक्सर दुःख का कारण बनती है।  

   - कैसे लागू करें: अपनी चीज़ों और रिश्तों का आनंद लें, लेकिन उनके प्रति बहुत अधिक निर्भर न रहें। उदाहरण के लिए, अपनी चीज़ों की सराहना करें, लेकिन उन्हें अपनी पहचान न बनने दें। समझें कि परिवर्तन जीवन का हिस्सा है, और इसे अनुग्रहपूर्वक स्वीकार करने का अभ्यास करें।


🚩7. ईश्वर की योजना में विश्वास:

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि सब कुछ ईश्वर की दिव्य योजना के अनुसार होता है और हमें इस ब्रह्मांडीय व्यवस्था पर विश्वास करना चाहिए।  

   - कैसे लागू करें:जब चीजें आपके अनुसार नहीं होती है, तो याद रखें कि ईश्वर की योजना पर विश्वास करें। विश्वास रखें कि हर घटना के पीछे एक उच्च उद्देश्य होता है, और ईश्वर की इच्छा के सामने आत्मसमर्पण करना सीखें। यह विश्वास शांति लाता है और चिंता को कम करता है।


🚩8. मानवता की सेवा (सेवा):- सिद्धांत: दूसरों की निस्वार्थ सेवा करना ईश्वर की सेवा करने के समान है। गीता करुणा और दूसरों की मदद को एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में महत्व देती है।  

   - कैसे लागू करें:अपने समुदाय के लोगों की मदद करने के तरीके खोजें, चाहे वह दान, स्वयंसेवा, या सरल सहायता कार्यों के माध्यम से हो। सेवा के हर अवसर को ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने और दुनियां में सकारात्मक योगदान देने के एक तरीके के रूप में देखें।


🚩निष्कर्ष:


🚩श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेश व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों है। वे हमें एक सार्थक जीवन जीने के तरीके के बारे में मार्गदर्शन करते है, जो उद्देश्य, भक्ति, और आंतरिक शांति से भरा होता है। इन उपदेशों का पालन करके,हम अपने जीवन में संतुलन पा सकते है,दूसरों की सेवा कर सकते है और अपने आध्यात्मिक मार्ग से जुड़े रह सकते है। चाहे आप उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी के लिए मार्गदर्शन के रूप में देखें या ईश्वर से दिव्य निर्देशों के रूप में, गीता के सिद्धांत किसी भी व्यक्ति को एक बेहतर, अधिक संतोषजनक जीवन जीने में मदद कर सकते है।


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Sunday, August 25, 2024

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: महत्व, पौराणिक कथाएं व्रत की विधि और जीवन के पाठ

 26 August 2024

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: महत्व, पौराणिक कथाएं व्रत की विधि और जीवन के पाठ


द्वापर युग में भाद्रपद मास, कृष्णपक्ष, अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा के कारागार में वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। उनके अष्टमी तिथि की रात्रि में अवतार लेने का प्रमुख कारण उनका चंद्रवंशी होना बताया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का दिन ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ के नाम से प्रसिद्ध है, जो भारत और विश्वभर में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।


 पौराणिक मान्यताएं और जन्माष्टमी व्रत का महत्व


🚩 स्कन्दपुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति जानबूझकर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करता, वह अगले जन्म में जंगल में सर्प और व्याघ्र (बाघ) के रूप में जन्म लेता है। यह पौराणिक मान्यता व्रत के महत्व को दर्शाती है और इस व्रत को करने की प्रेरणा देती है ताकि जीवात्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके और पुनर्जन्म से मुक्ति मिल सके।


🚩 ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि अट्ठाइसवें चतुर्युगी के द्वापरयुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। व्रत के संबंध में यह भी कहा गया है कि यदि दिन या रात में थोड़ा भी रोहिणी नक्षत्र न हो तो विशेष रूप से चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करना चाहिए। इससे भक्तों को अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।


🚩 भविष्यपुराण में उल्लेख है कि भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत जो मनुष्य नहीं करता, वह अगले जन्म में क्रूर राक्षस के रूप में जन्म लेता है। केवल अष्टमी तिथि में उपवास करने का प्रावधान है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो उसे 'जयंती' नाम से पुकारा जाता है। ‘जयंती’ तिथि को व्रत रखने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है।


🚩 वह्निपुराण का कहना है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि थोड़ी भी रोहिणी नक्षत्र की कला हो, तो उसे जयंती नाम से ही संबोधित किया जाता है। इस स्थिति में विशेष प्रयत्न के साथ उपवास करने का महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


 श्रीकृष्ण के जीवन से मिलने वाले ज्ञान और जीवन के महत्वपूर्ण पाठ


भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वे हमें दैनिक जीवन में भी मार्गदर्शन करती है। उनकी शिक्षाएं भगवतगीता में संग्रहित है, जो जीवन के हर पहलू पर गहन दृष्टिकोण प्रदान करती है।


🚩 कर्तव्य पालन: श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जिसमें उन्होंने कर्तव्य पालन का महत्व बताया। उन्होंने सिखाया कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से करना चाहिए, बिना फल की चिंता किए। यह शिक्षा आज भी जीवन में कर्मयोग का मार्ग दिखाती है।


🚩 अहंकार का त्याग: श्रीकृष्ण ने हमेशा अहंकार और घमंड को त्यागने की बात कही है। उनका मानना था कि अहंकार इंसान को उसके मूल उद्देश्य से भटका देता है। जीवन में सादगी और नम्रता को अपनाने से ही सच्ची सफलता प्राप्त होती है।


🚩 समता का भाव: श्रीकृष्ण ने जीवन में समता का भाव बनाए रखने की बात कही है। सुख और दुःख हार और जीत, लाभ और हानि — इन सभी में समता रखना एक सच्चे योगी का लक्षण है। यह भाव हमें मानसिक स्थिरता और शांति प्रदान करता है।


🚩 प्रेम और भक्ति का महत्व: भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों के साथ अपने प्रेमपूर्ण संबंधों के माध्यम से भक्ति का महत्व बताया। उन्होंने राधा और गोपियों के साथ अपने संबंधों के माध्यम से दिखाया कि सच्चे प्रेम और भक्ति से भगवान को पाया जा सकता है। 


🚩 संसार के मोह से मुक्ति: श्रीकृष्ण ने गीता में बताया कि मनुष्य को संसार के मोह से मुक्त होना चाहिए। उन्होंने बताया कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है। इसलिए,जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलने के लिए हमें आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए और अपने सच्चे स्वरूप को पहचानना चाहिए।


🚩 साहस और धैर्य: श्रीकृष्ण ने जीवन के कठिन क्षणों में भी धैर्य और साहस बनाए रखने की प्रेरणा दी। चाहे वह बाल लीलाओं में पूतना वध हो या कंस का अंत, श्रीकृष्ण ने हर स्थिति में धैर्य और साहस का परिचय दिया। यह सिखाता है कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए धैर्य और साहस अत्यंत आवश्यक है।


🚩 निर्भयता का पाठ: श्रीकृष्ण ने कहा कि भक्त को निडर रहना चाहिए। उन्होंने अपने जीवन से सिखाया कि भय को त्यागकर ही मनुष्य अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। चाहे वह कालिया नाग का दमन हो या कंस के अत्याचारों का अंत,श्रीकृष्ण ने हर जगह निर्भयता का प्रदर्शन किया।


 जन्माष्टमी व्रत का पालन और पूजा विधि


जन्माष्टमी व्रत का पालन करने वाले भक्त पूरी रात जागरण करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन में लीन रहते है। इस दिन विशेष रूप से भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण किया जाता है। भक्तजन व्रत रखकर भगवान को माखन-मिश्री, फल, फूल आदि का भोग लगाते है। अर्धरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है और नए वस्त्र पहनाकर झूला झुलाया जाता है। 


श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें दिखाती है कि सच्चा धर्म वही है जो व्यक्ति को उसके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करे और उसे सत्य,अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी न केवल भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव है बल्कि यह उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं और जीवन के उच्च मूल्यों को अपनाने का भी संकल्प है।


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