28 August 2018
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भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन एवं वैज्ञानिक संस्कृति है उसमें ऐसी व्यवस्था बनाई है कि मनुष्य ही नहीं अपितु जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, वनस्पति आदि सभी सुखी रह सकते हैं ।
भारतीय संस्कृति में अनेक ऐसी परम्पराएं हैं, जिसको अपनाकर हर मनुष्य स्वस्थ्य, सुखी, सम्मानित जीवन जी सकता है । इन सभी परम्पराओं में एक हवन करने की भी परम्परा है, जिसका धुंआ हमारे आस-पास नुकसान पहुँचाने वाले जीवाणु को नष्ट कर देता है और वातावरण को शुद्ध बना देता है और सुख-शांति बनी रहती है । यह बात लाखों साल पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने बताई थी जो आज के वैज्ञानिक की भी बता रहे हैं ।
Havan does not pollution, but rather purifies atmosphere: French scientist |
फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च किया । जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यतःआम की लकड़ी पर किया जाता है । जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है ।
जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है । तथा वातावरण को शुद्ध करती है । इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस का और इसे बनाने का तरीका पता चला ।
गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाए अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है ।
हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च किया । क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणु नाश होता है ? अथवा नहीं ? उन्होंने ग्रंथों में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये सचमुच विषाणु का नाश करती है ।
फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी, 1 किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए । पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलाया गया तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 95% कम हो गया ।
यही नहीं उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओं का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाजे खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 86 प्रतिशत कम था । बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था ।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर 2007 में छप चुकी है । रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है । जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है ।
रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने बताया है कि 1 चम्मच गौघृत जलाकर हम 1 टन ऑक्सीजन प्राप्त कर सकते हैं ।
आपको बता दें कि हवन में पीपल की लकड़ी का भी उपयोग होता है जो वातावरण को अधिक शुद्ध करता है ।
यज्ञ के द्वारा जो शक्तिशाली तत्व वायु मण्डल में फैलाये जाते हैं उनसे हवा में घूमते हुए असंख्य रोगों के कीटाणु सहज ही नष्ट होते हैं । डी.डी.टी., फिनाइल आदि छिड़कने, बीमारियों से बचाव करने की दवाएं या सुइयां लेने से भी कहीं अधिक कारगर उपाय यज्ञ करना है । साधारण रोगों एवं महामारियों से बचने का यज्ञ एक सामूहिक उपाय है । मनुष्यों की ही नहीं, पशु-पक्षियों, कीटाणुओं एवं वृक्ष वनस्पतियों के आरोग्य की भी यज्ञ से रक्षा होती है ।
यज्ञ में जिन मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है, उनकी शक्ति असंख्य गुनी अधिक होकर संसार में फैल जाती है, और उस शक्ति का लाभ सारे विश्व को प्राप्त होता है । मंत्र की सद्बुद्धि शक्ति को यज्ञों के द्वारा जब आकाश में फैलाया जाता है तो उसका प्रभाव समस्त प्राणियों पर पड़ता है और वे सद्बुद्धि से, सद्भावना से, सत्प्रवृत्तियों से अनुप्राणित होते हैं ।
यज्ञों की शोध की जाए तो प्राचीन काल की भांति यज्ञ शक्ति से सम्पन्न अग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, सम्मोहनास्त्र, आदि अस्त्र-शस्त्र पुष्पक विमान जैसे यंत्र, बन सकते हैं, अनेकों ऋद्धि सिद्धियों का स्वामी बना जा सकता है । प्रखर बुद्धि सुसंतति, निरोगता एवं सम्पन्नता प्राप्त की जा सकती है । प्राचीन काल की भांति यज्ञीय लाभ पुनः प्राप्त हों, इसके शोध के लिए यह आवश्यक है कि जनसाधारण का ध्यान इधर आकर्षित हो और साधारण यज्ञ आयोजनों का प्रचार बढ़े ।
हिंदू धर्म मे प्रत्येक शुभ कार्य, प्रत्येक पर्व, त्यौहार संस्कार, यज्ञ के साथ सम्पन्न होता है । यज्ञ भारतीय संस्कृति का पिता है । यज्ञ भारत की सर्वमान्य एवं प्राचीनतम वैदिक उपासना है ।
धन-धान्य व सुख-संम्पदा के लिए हर अमावस्या को घर में एक छोटा सा आहुति प्रयोग कर सकते हैं ।
सामग्री : 1. काले तिल, 2. जौ, 3. चावल, 4. गाय का घी, 5. चंदन पाउडर, 6. गूगल, 7. गुड़, 8. देशी कपूरर, गौ चंदन या कण्डा।
*विधि: गौ चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवनकुंड बना लें, फिर उपरोक्त 8 वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के सभी सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये देवताओं की 1-1 आहुति दें ।*
आहुति मंत्र
*१. ॐ कुल देवताभ्यो नमः*
*२. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः*
*३. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः*
*४. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः*
*५. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः*
*१. ॐ कुल देवताभ्यो नमः*
*२. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः*
*३. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः*
*४. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः*
*५. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः*
हमारे ऋषि-मुनियों ने कितना कुछ हमें दे दिया है फिर भी आज हम पाश्चात्य संस्कृति की ओर जा रहे है वहीं दूसरी ओर पश्चिमी वैज्ञानिक भारतीय ऋषि-मुनियों की परंपराओं पर शोध कर रहे हैं और भूरी-भूरी प्रसंसा कर रहे हैं । हम ऋषि-मुनियों की बात तो नहीं मानते हैं, लेकिन जब भोगियों के देश के कोई वैज्ञानिक बता देते हैं तो उसे तुरन्त मान लेते है ।
हमें हमारी प्राचीन संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए और उसके अनुसार अपना जीवन जीना चाहिए ।
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