24 August 2018
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Know why Shravani Purnima is tied to Rakhi? How to make Vedic Rakhi? |
भारतीय #संस्कृति में #संकल्पशक्ति के सदुपयोग की सुंदर व्यवस्था है । ब्राह्मण कोई शुभ कार्य कराते हैं तो कलावा (रक्षासूत्र) बाँधते हैं ताकि आपके शरीर में छुपे दोष या कोई रोग, जो आपके शरीर को अस्वस्थ कर रहे हों, उनके कारण आपका मन और बुद्धि भी निर्णय लेने में थोडे अस्वस्थ न रह जायें । सावन के महीने में सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं, किस्म-किस्म के जीवाणु बढ़ जाते हैं, जिससे किसीको दस्त, किसीको उलटियाँ, किसीको अजीर्ण, किसीको बुखार हो जाता है तो किसीका शरीर टूटने लगता है । इसलिए रक्षाबंधन के दिन एक-दूसरे को वैदिक रक्षासूत्र बाँधकर तन-मन-मति की स्वास्थ्य-रक्षा का संकल्प किया जाता है । रक्षासूत्र में कितना #मनोविज्ञान है, कितना #रहस्य है !
अपना शुभ संकल्प और शरीर के ढाँचे की #व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यह श्रावणी #पूनम का रक्षाबंधन महोत्सव है ।
अपना शुभ संकल्प और शरीर के ढाँचे की #व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यह श्रावणी #पूनम का रक्षाबंधन महोत्सव है ।
दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा । इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है । रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें । आपकी राखी तैयार हो जाएगी ।
वैदिक राखी का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है । साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है ।
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है ।' (भविष्य पुराण)
जिस पतले रक्षासूत्र ने महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बाँध दिया, उसीसे मैं आपको बाँधती हूँ । आपकी रक्षा हो । यह धागा टूटे नहीं और आपकी रक्षा सुरक्षित रहे । - यही संकल्प बहन भाई को राखी बाँधते समय करे । शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय ‘अभिबध्नामि' के स्थान पर ‘रक्षबध्नामि' कहें ।
( स्त्रोत: संत आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य ऋषि प्रसाद एवं लोक कल्याण सेतु से संकलित )
सुबह 7:43 बजे से 9:18 बजे तक चर,
सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ,
सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत,
दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ,
सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ,
रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत,
रात्रि 9:38 बजे से लेकर 11:03 बजे तक चर,
सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ,
सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत,
दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ,
सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ,
रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत,
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