Wednesday, October 2, 2019

जानिये नवरात्रि कब से और कैसे शुरू हुई? उसका महत्त्व एवं इतिहास

02 अक्टूबर 2019

*🚩नवरात्रि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा का त्यौहार है । जिनकी स्तुति कुछ इस प्रकार की गई है,*

*_सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।_*
*_शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।_*

*अर्थ : अर्थात सर्व मंगल वस्तुओं में मंगलरूप, कल्याणदायिनी, सर्व पुरुषार्थ साध्य करानेवाली, शरणागतों का रक्षण करनेवाली, हे त्रिनयने, गौरी, नारायणी ! आपको मेरा नमस्कार है ।*

*🚩1. मंगलरूप त्रिनयना नारायणी अर्थात मां जगदंबा !*

*जिन्हें आदिशक्ति, पराशक्ति, महामाया, काली, त्रिपुरसुंदरी इत्यादि विविध नामों से सभी जानते हैं ।  जहां पर गति नहीं वहां सृष्टि की प्रक्रिया ही थम जाती है । ऐसा होते हुए भी अष्ट दिशाओं के अंतर्गत जगत की उत्पत्ति, लालन-पालन एवं संवर्धन के लिए एक प्रकार की शक्ति कार्यरत रहती है । इसी शक्ति को आद्याशक्ति कहते हैं । उत्पत्ति-स्थिति-लय यह शक्ति का गुणधर्म ही है । शक्ति का उद्गम स्पंदनों के रूप में होता है । उत्पत्ति-स्थिति-लय का चक्र निरंतर चलता ही रहता है ।*

*🚩श्री दुर्गासप्तशतीके अनुसार श्री दुर्गा देवी के तीन प्रमुख रूप हैं,*

*1. महासरस्वती, जो ‘गति’ तत्त्व का  प्रतीक हैं ।*

*2. महालक्ष्मी, जो ‘दिक’ अर्थात ‘दिशा’तत्त्वका प्रतीक हैं ।*

*3. महाकाली जो ‘काल’ तत्त्व का प्रतीक हैं ।*

*🚩जगत का पालन करने वाली जगदोद्धारिणी मां शक्ति की उपासना हिंदू धर्म में वर्ष में दो बार नवरात्रि के रूप में, विशेष रूप से की जाती है ।*

*वासंतिक नवरात्रि : यह उत्सव चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।*

*शारदीय नवरात्रि : यह उत्सव आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।*

*🚩2. ‘नवरात्रि’ किसे कहते हैं ?*

*नव अर्थात प्रत्यक्षत: ईश्वरीय कार्य करनेवाला ब्रह्मांड में विद्यमान आदिशक्तिस्वरूप तत्त्व । स्थूल जगत की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, प्रत्यक्ष तेजतत्त्वात्मक प्रकाश का अभाव तथा ब्रह्मांड की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वरीय तेज का प्रक्षेपण करने वाले मूल पुरुषतत्त्व का अकार्यरत होने की कालावधि । जिस कालावधि में ब्रह्मांड में शिवतत्त्व की मात्रा एवं उसका कार्य घटता है एवं शिवतत्त्व के कार्यकारी स्वरूप की अर्थात शक्ति की मात्रा एवं उसका कार्य अधिक होता है, उस कालावधि को ‘नवरात्रि’ कहते हैं । मातृभाव एवं वात्सल्य भाव की अनुभूति देनेवाली, प्रीति एवं व्यापकता, इन गुणों के सर्वोच्च स्तर के दर्शन कराने वाली जगदोद्धारिणी, जगत का पालन करने वाली इस शक्ति की उपासना, व्रत एवं उत्सव के रूप में की जाती है ।*

*🚩3. ‘नवरात्रि’ का इतिहास*

*- रामजी के हाथों रावण का वध हो, इस उद्देश्य से नारदने रामसे इस व्रत का अनुष्ठान करने का अनुरोध किया था । इस व्रत को पूर्ण करने के पश्चात रामजी ने लंका पर आक्रमण कर अंत में रावण का वध किया ।*

*- देवी ने महिषासुर नामक असुर के साथ नौ दिन अर्थात प्रतिपदा से नवमी तक युद्ध कर, नवमी की रात्रि को उसका वध किया । उस समय से देवी को ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नाम से जाना जाता है ।*

*🚩4. नवरात्रि का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व*

*- ‘जगमें जब-जब तामसी, आसुरी एवं क्रूर लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदारात्मक एवं धर्मनिष्ठ सज्जनों को छलते हैं, तब देवी धर्मसंस्थापना हेतु पुनः-पुनः अवतार धारण करती हैं । उनके निमित्त से यह व्रत है ।*

*- नवरात्रि में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलनामें 1000 गुना अधिक कार्यरत होता है । देवीतत्त्व का अत्यधिक लाभ लेने के लिए नवरात्रि की कालावधिमें ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ नामजप अधिकाधिक करना चाहिए ।*

*🚩नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन बढ़ते क्रम से आदिशक्ति का नया रूप सप्त पाताल से पृथ्वी पर आनेवाली कष्टदायक तरंगों का समूल उच्चाटन अर्थात समूल नाश करता है । नवरात्रि के नौ दिनों में ब्रह्मांड में अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगें एवं आदिशक्ति की मारक चैतन्यमय तरंगों में युद्ध होता है । इस समय ब्रह्मांड का वातावरण तप्त होता है । श्री दुर्गा देवी के शस्त्रों के तेज की ज्वालासमान चमक अति वेग से सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों पर आक्रमण करती है । पूरे वर्ष अर्थात इस नवरात्रि के नौवें दिन से अगले वर्ष की नवरात्रिके प्रथम दिनतक देवी का निर्गुण तारक तत्त्व कार्यरत रहता है । अनेक परिवारों में नवरात्रि का व्रत कुलाचार के रूप में किया जाता है । आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से इस व्रत का प्रारंभ होता है ।*

*🚩5. नवरात्रि की कालावधि में सूक्ष्म स्तर पर होने वाली गतिविधियां:-*

*नवरात्रि के नौ दिनों में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में एक सहस्र गुना अधिक सक्रिय रहता है । इस कालावधि में देवीतत्त्व की अतिसूक्ष्म तरंगें धीरे-धीरे क्रियाशील होती हैं और पूरे ब्रह्मांड में संचारित होती हैं । उस समय ब्रह्मांड में शक्ति के स्तर पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं और ब्रह्मांड की शुद्धि होने लगती है । देवीतत्त्व की शक्ति का स्तर प्रथम तीन दिनों में सगुण-निर्गुण होता है । उसके उपरांत उसमें निर्गुण तत्त्वकी मात्रा बढ़ती है और नवरात्रि के अंतिम दिन इस निर्गुण तत्त्वकी मात्रा सर्वाधिक होती है । निर्गुण स्तर की शक्ति के साथ सूक्ष्म स्तर पर युद्ध करने के लिए छठे एवं सातवें पाताल की बलवान आसुरी शक्तियों को अर्थात मांत्रिकों को इस युद्ध में प्रत्यक्ष सहभागी होना पड़ता है । उस समय ये शक्तियां उनके पूरे सामर्थ्य के साथ युद्ध करती हैं ।*

*🚩6. श्री दुर्गा देवी का वचन*

*नवरात्रि की कालावधि में महाबलशाली दैत्यों का वध कर देवी दुर्गा महाशक्ति बनी । देवताओं ने उनकी स्तुति की । उस समय देवीमां ने सर्व देवताओं एवं मानवों को अभय का आशीर्वाद देते हुए वचन दिया कि इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।*
*तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।*
*– मार्कंडेयपुराण 91.51*

*इसका अर्थ है, जब-जब दानवोंद्वारा जगत्को बाधा पहुंचेगी, तब-तब मैं अवतार धारण कर शत्रुओं का नाश करूंगी ।*

*इस श्लोक के अनुसार जगत में जब भी तामसी, आसुरी एवं दुष्ट लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदार एवं धर्मनिष्ठ व्यक्तियोंको अर्थात साधकों को कष्ट पहुंचाते हैं, तब धर्मसंस्थापना हेतु अवतार धारण कर देवी उन असुरोंका नाश करती हैं ।*

*🚩8. नवरात्रि के नौ दिनों में शक्ति की उपासना करनी चाहिए*

*`असुषु रमन्ते इति असुर: ।’ अर्थात् `जो सदैव भौतिक आनंद, भोग-विलासितामें लीन रहता है, वह असुर कहलाता है ।’ आज प्रत्येक मनुष्य के हृदय में इस असुर का वास्तव्य है, जिसने मनुष्य की मूल आंतरिक दैवी वृत्तियों पर वर्चस्व जमा लिया है । इस असुर की मायाको पहचानकर, उसके आसुरी बंधनोंसे मुक्त होनेके लिए शक्तिकी उपासना आवश्यक है । इसलिए नवरात्रिके नौ दिनोंमें शक्तिकी उपासना करनी चाहिए । हमारे ऋषिमुनियोंने विविध श्लोक, मंत्र इत्यादि माध्यमोंसे देवीमां की स्तुति कर उनकी कृपा प्राप्त की है । श्री दुर्गासप्तशति के एक श्लोकमें कहा गया है,*

*🚩शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।*
*सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो:स्तुते ।।*
*– श्री दुर्गासप्तशती, अध्याय 11.12*

*अर्थात शरण आए दिन एवं आर्त लोगों का रक्षण करने में सदैव तत्पर और सभी की पीड़ा दूर करनेवाली हे देवी नारायणी!, आपको मेरा नमस्कार है । देवी की शरण में जाने से हम उनकी कृपा के पात्र बनते हैं । इससे हमारी और भविष्य में समाज की आसुरी वृत्ति में परिवर्तन होकर सभी सात्त्विक बन सकते हैं । यही कारण है कि, देवी तत्त्व के अधिकतम कार्यरत रहने की कालावधि अर्थात नवरात्रि विशेष रूप से मनायी जाती है ।*

*🚩नवरात्रि के नौ दिनों में घट स्थापना के उपरांत पंचमी, षष्ठी, अष्टमी एवं नवमी का विशेष महत्त्व है । पंचमी के दिन देवी के नौ रूपों में से एक श्री ललिता देवी अर्थात महात्रिपुर सुंदरी का व्रत होता है । शुक्ल अष्टमी एवं नवमी ये महातिथियां हैं । इन तिथियों पर चंडीहोम करते हैं । नवमी पर चंडीहोम के साथ बलि समर्पण करते हैं ।*

*🚩संदर्भ – सनातन धर्म के ग्रंथ, ‘त्यौहार मनाने की उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र‘, ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’ एवं ‘देवीपूजन से संबंधित कृत्यों का शास्त्र‘ एवं अन्य ग्रंथ*

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Tuesday, October 1, 2019

देश-विदेश में मनाया गया बाaपू आसारामजी का आत्मसाक्षात्कार दिवस

30 सितंबर 2019

*🚩आश्विन मास, शुक्ल पक्ष द्वितीया संवत् 2021 (7 अक्टूबर 1964) के दिन मध्याह्न ढाई बजे साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज की कृपा से हिंदू संत आशारामजी बापू को आत्म-साक्षात्कार हुआ था, अर्थात जीव और शिव और आत्मा-परमात्मा की एकता का बोध हुआ था ।*

*🚩हिन्दू संत आसारामजी बापू के देश-विदेश में फैले उनके अनुयायियों ने सोमवार को उनका आत्मसाक्षात्कार दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया ।*

*🚩इस दिन देशभर में जगह-जगह पर इनके अनुयायी  विशाल भगवन्नाम संकीर्तन यात्राएं निकालते हैं और वृद्धाश्रमों, अनाथालयों व अस्पतालों में निःशुल्क औषधि, फल व मिठाई वितरित करते हैं ।*

*🚩गरीब व अभावग्रस्त क्षेत्रों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है जिसमें वस्त्र,अनाज व जीवन उपयोगी वस्तुएं वितरित की जाती हैं । इस दिन विभिन्न स्थानों पर छाछ,पलाश व गुलाब के शरबत के प्याऊ लगाये जाते हैं । सत्साहित्य का वितरण,गरीब विद्यार्थियों में नोटबुक व उनकी जीवनोपयोगी सामग्री के साथ-साथ गौ माता को चारा खिलाना, हवन,जाहिर सत्संग कार्यक्रम आदि किए गए।*

*🚩आपको बता दें कि संत संस्कृति का प्रचार करते हैं, जगह-जगह जाकर प्रवचन के द्वारा लोगों में हिन्दू संस्कृति का ज्ञान देना ये बहुत बड़ा कार्य है जो हिन्दू संतों द्वारा किया जा रहा है इसी सिलसिले में हिंदू संत आसाराम बापू को भी टारगेट किया गया है जिससे हिंदुत्व व हिंदू संस्कृति खत्म किया जा सके।*

*🚩85 वर्षीय हिंदू संत आसराम बापू जोधपुर जेल में बंद है, लेकिन उनके करोड़ भक्त आज भी समाज-देश व संस्कृति हित के कार्य कर रहे हैं ।*

*🚩आपको बता दें कि उनके ऊपर जो आरोप लगे उसमें जो FIR लिखी है उसमें बलात्कार का आरोप नहीं था, उसमें केवल छेड़छाड़ी का आरोप था। मेडिकल में तो छेड़छाड़ी से भी क्लीनचिट मिल गई और आपको बता दें कि लड़की ने जिस समय की तथाकथित घटना बताई है, उसके कॉल डिटेल्स से पता चलता है कि उस समय वो अपने एक मित्र से बात कर रही थी और बापू आसारामजी उस समय किसी कार्यक्रम में थे जहां सैकड़ों लोग मौजूद थे, इन सबको अनदेखा किया और सेशन कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद दे दी । उनके वकील का कहना था कि मीडिया ट्रायल के कारण जज ने दबाव में आकर फैसला दिया है, हाईकोर्ट से निर्दोष बरी हो जाएंगे ।*

*🚩आपको बता दें कि बापू आसारामजी ने देश-विदेश में सनातन धर्म का इतना प्रचार प्रसार किया कि करोड़ों लोग एवं बुद्धिजीवी लोग उनके कथनानुसार जीवन जीने लगे, जिससे वेटिकन सिटी को भारी नुकसान हुआ धर्मान्तरण का धंधा बंद होने लगा एवं करोड़ों लोग व्यसन और व्यभिचार छोड़कर संयमी बनने लगे और उनके द्वारा बताए गए घरेलू उपचार से स्वस्थ, सुखी होने लगे इसके कारण विदेशी प्रोडक्ट बिकने बंद हो गए और मल्टीनेशनल कम्पनियों को अरबों-खबरों का नुकसान हुआ इसलिए मिशनरियों और विदेशी कम्पनियों ने कुछ करोड़ रुपये मीडिया को देकर उन्हें बदनाम करवाया और केस करके जेल भिजवाया ताकि उनकी दुकानें चलती रहें ।*

*🚩आप सभी इस षड्यंत्र को अच्छी तरह समझें और उसका विरोध करें अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष हिन्दू साधु-संत एवं हिंदुनिष्ठ नेता विधर्मियों कि चपेट में आते रहेंगे और हिन्दू संस्कृति खत्म कर दी जाएगी ।*

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नवरात्रि या उपवास में साबूदाने खाते हैं तो सावधान, जान लीजिए असलियत

नवरात्रि या उपवास में साबूदाने खाते है तो सावधन, जान लीजिए असलियत

01 अक्टूबर 2019

भारतीय जीवनचर्या में व्रत एवं उपवास का विशेष महत्त्व है। उनका अनुपालन धार्मिक दृष्टि से किया जाता है परंतु व्रतोपवास करने से शरीर भी स्वस्थ रहता है। लेकिन उपवास के नाम पर साबूदाना और तला हुआ आलू खाना भयंकर हानि करता है।

आमतौर पर साबूदाना शाकाहार कहा जाता है और व्रत-उपवास में इसका काफी प्रयोग होता है । लेकिन शाकाहार होने के बावजूद भी साबूदाना पवित्र नहीं है । क्या आप इस सच्चाई को जानते हैं ?

यह सच है कि साबूदाना ‘कसावा’ के गूदे से बनाया जाता है परंतु इसकी निर्माण-विधि इतनी अपवित्र है कि इसे शाकाहार एवं स्वास्थ्यप्रद नहीं कहा जा सकता ।

साबूदाना बनाने के लिए सबसे पहले कसावा को खुले मैदान में बनी कुण्डियों में डाला जाता है तथा रसायनों की सहायता से उन्हें लम्बे समय तक सड़ाया जाता है ।
इस प्रकार सड़ने से तैयार हुआ गूदा महीनों तक खुले आसमान के नीचे पड़ा रहता है ।

रात में कुण्डियों को गर्मी देने के लिए उनके आस-पास बड़े-बड़े बल्ब जलाये जाते हैं । इससे बल्ब के आस-पास उड़नेवाले कई छोटे-छोटे जहरीले जीव भी इन कुण्डियों में गिरकर मर जाते हैं ।

दूसरी ओर इस गूदे में पानी डाला जाता है जिससे उसमें सफेद रंग के करोड़ों लम्बे कृमि पैदा हो जाते हैं । इसके बाद इस गूदे को मजदूरों के पैरों-तले रौंदा जाता है । इस प्रक्रिया में गूदे में गिरे हुए कीट-पतंग तथा सफेद कृमि भी उसीमें समा जाते हैं । यह प्रक्रिया कई बार दोहरायी जाती है ।

इसके बाद इसे मशीनों में डाला जाता है और 'मोती जैसे चमकीले दाने बनाकर साबूदाने का नाम-रूप दिया जाता है परंतु इस चमक के पीछे कितनी अपवित्रता छिपी है वह सभीको दिखायी नहीं देती ।

अब आपने साबूदाने की सच्चाई जान ली है अतः पवित्र व्रत उपवास में इसका उपयोग नही करें ।

अब प्रश्न आता है कि हम व्रत में साबूदाना नही खाये तो क्या खाये..?

व्रत में सबसे उत्तम होता है गौ-माता का दूध ।

फलाहार में जैसे कि सेब, अनार, अंगूर आदि ले सकते हैं।

सिंघाड़े का आटा, खजूर, राजगिरे का शिरा आदि व्रत में खा सकते हैं ।


आयुर्वेद तथा आधुनिक विज्ञान दोनों का एक ही निष्कर्ष है कि व्रत और उपवासों जहाँ अनेक शारीरिक व्याधियाँ समूल नष्ट हो जाती हैं, वहाँ मानसिक व्याधियों के शमन का भी यह एक अमोघ उपाय है। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है व शरीरशुद्धि होती है।

फलाहार का तात्पर्य उस दिन आहार में सिर्फ कुछ फलों का सेवन करने से है लेकिन आज इसका अर्थ बदलकर फलाहार में से अपभ्रंश होकर फरियाल बन गया है और इस फरियाल में लोग ठूँस-ठूँसकर साबुदाने की खिचड़ी या भोजन से भी अधिक भारी, गरिष्ठ, चिकना, तला-गुला व मिर्च मसाले युक्त आहार का सेवन करने लगे हैं। उनसे अनुरोध है कि वे उपवास न ही करें तो अच्छा है क्योंकि इससे उपवास जैसे पवित्र शब्द की तो बदनामी होती है, साथ ही साथ शरीर को और अधिक नुक्सान पहुँचता है। उनके इस अविवेकपूर्ण कृत्य से लाभ के बदले उन्हें हानि ही हो रही है।

सप्ताह में एक दिन तो व्रत रखना ही चाहिए। इससे आमाशय, यकृत एवं पाचनतंत्र को विश्राम मिलता है तथा उनकी स्वतः ही सफाई हो जाती है। इस प्रक्रिया से पाचनतंत्र मजबूत हो जाता है तथा व्यक्ति की आंतरिक शक्ति के साथ-साथ उसकी आयु भी बढ़ती है।

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Sunday, September 29, 2019

जानिए नवरात्र का इतिहास और उस समय व्रत करने से कितना होगा फायदा

28 सितंबर 2019

*🚩नवरात्रि पर देवी पूजन और नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व है । माँ दुर्गा के नौ रूपों की अराधना का पावन पर्व शुरू हो रहा है । इस साल 10 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक नवरात्र मनाया जाएगा ।*

*🚩नवरात्रि एक बड़ा हिंदू पर्व है । नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें' । इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति (देवी) के नौ रूपों की पूजा की जाती है । दसवां दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है ।*

*🚩नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है । पौष, चैत्र, आषाढ़,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है । नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं ।  इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति (देवी) के नौ रूपों की पूजा की जाती है ।  दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है । नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्यौहार है जिसे पूरे भारत और अन्य देशों में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है ।*

*🚩आश्विन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक का पर्व शारदीय नवरात्र के रूप में जाना जाता है । यह व्रत-उपवास व जप-ध्यान का पर्व है ।*

*🚩‘श्रीमद्देवी भागवत’ में आता है कि विद्या, धन व पुत्र के अभिलाषी को नवरात्र-व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए । जिसका राज्य छिन गया हो, ऐसे नरेश को पुनः गद्दी पर बिठाने की क्षमता इस व्रत में है ।*

*🚩नौ देवियाँ है :-* 

*🚩शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है ।*

*🚩ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारिणी ।*

*🚩चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली ।*

*🚩कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है ।*

*🚩स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता ।*

*🚩कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि ।*

*🚩कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वाली ।*

*🚩महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली माँ ।*

*🚩सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली ।*

*🚩शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है ।*

*🚩सर्वप्रथम भगवान श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की । तब से असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा ।*

*🚩आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है । माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है । ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं । इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं । नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है ।*

*🚩नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं । भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दश महाविद्या अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं । दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं । देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है । सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं ।*

*🚩नवरात्रि भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनायी जाती है । गुजरात में इस त्यौहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है । गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में जान पड़ता है । यह आधी रात तक चलता है । डांडिया का अनुभव बड़ा ही असाधारण है । देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद । पश्चिम #बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है । इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है ।*

*नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (शक्ति) का प्रतिनिधित्व है । वसंत की शुरुआत और #शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है । इन दो समय माँ दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है । त्यौहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं । #नवरात्रि पर्व, #माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है । यह पूजावैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से है । ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं ।*

*🚩नवरात्रि के पहले तीन*

*🚩नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी #दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं । यह पूजा ऊर्जा और शक्ति की जाती है । प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है । #त्यौहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है । दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है । तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुँच गयी है उसकि पूजा की जाती है । देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है।*

*🚩देवी की आरती*

*🚩व्यक्ति जब #अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है । नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन #लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी की पूजा करने के लिए समर्पित है । शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है । ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है । इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रीयों को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता है और एक दीया, देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है ।*

*🚩नवरात्रि का सातवां और आठवां दिन*

*सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, #सरस्वती, की पूजा की है । प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं । आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है ।*

*🚩नवरात्रि का नौवां दिन*

*नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है । यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है । इस दिन पर, कन्या पूजन होता है । उसमे नौ #कन्याओं की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है । इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है । कन्याओं का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। #पूजा के अंत में कन्याओं को उपहार के रूप में नए कपड़े पेश किए जाते हैं ।*

*🚩नवरात्रि के व्रत में इन बातों का रखना चाहिए ख्याल:*
*- नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखने वालों को दाढ़ी-मूंछ और बाल नहीं कटवाने चाहिए । इस #दौरान बच्चों का मुंडन करवाना शुभ होता है ।*
*- नौ दिनों तक नाखून नहीं काटने चाहिए ।*
*- इस दौरान खाने में प्याज, #लहसुन और नॉन वेज बिल्कुल न खाएं ।*
*- नौ दिन का व्रत रखने वालों को काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए ।*
*- व्रत रखने वाले लोगों को बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग जैसी चमड़े की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ।*
*- #व्रत में नौ दिनों तक खाने में अनाज और नमक का सेवन नहीं करना चाहिए । खाने में कुट्टू का आटा, समारी के चावल, सिंघाड़े का आटा, सेंधा नमक, फल, आलू, मेवे, मूंगफली खा सकते हैं ।*
*- #विष्णु पुराण के अनुसार, नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोने, #तम्बाकू चबाने और शारीरिक संबंध बनाने से भी व्रत का फल नहीं मिलता है ।*

*🚩यदि कोई पूरे नवरात्र के उपवास न कर सकता हो तो सप्तमी, अष्टमी और नवमी - तीन दिन उपवास करके #देवी की #पूजा करने से वह नवरात्र के #उपवास के फल को प्राप्त करता है ।*

*नवरात्र पर जागरण*
*🚩नवरात्र पर उत्तम #जागरण वह है, जिसमें*
*(1) #शास्त्र-अनुसार चर्चा हो ।*
*(2) #दीपक प्रज्वलित हो ।*
*(3) #भक्तिभाव से युक्त माँ का कीर्तन हो ।*
*(4) वाद्य, ताल आदि से युक्त सात्त्विक संगीत हो ।*
*(5) प्रसन्नता हो ।*
*(6) #सात्त्विक नृत्य हो, ऐसा नहीं कि डिस्को या अन्य कोई पाश्चात्य नृत्य किया ।*
*(7) #माँ #जगदम्बा पर नजर हो, ऐसा नहीं कि किसीको गंदी नजर से देखें ।*
*(8) मनोरंजन सात्त्विक हो; रस्साकशी, लाठी-खेंच आदि कार्यक्रम हों ।*

*🚩#नवरात्र का व्रत सभी मनुष्यों को नियमित तौर पर करना ही चाहिए । जिससे घर में सुख, शांति, बरकत व मधुरता आती है । #आध्यात्मिकता का प्रादुर्भाव होता है । घर की बाधाएँ व क्लेश दूर होते हैं । अपने जीवन में व्यक्तित्व और चरित्र के निर्माण होता है । आपसी जीवन में प्रेम और समन्वय बढ़ता है ।*

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