Saturday, May 16, 2020

मजदूरों की हालत सुनकर आपके भी आँसू निकल जाएंगे, पार्टियां कर रही है सिर्फ राजनीति

16 मई 2020

🚩आज भारत देश अजीब मोड़ पर आ गया है। देशभर में लॉकडाउन लगा हुआ है जिससे गरीबों और मजदूरों का जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। आज देश में ऐसा माहौल है कि अगर ये कहे कि सरकार गरीब मजदूरों के लिए अच्छा कर रही है तो लोग बोलते हैं कि बीजेपी का भगत है। अगर ये बोले कि सरकार मजदूरों की सहायता नहीं कर रही तो बोलते हैं कि कांग्रेस का चमचा है। पर वास्तव में गरीब मजदूरों की बेबसी और लाचारी किसी को नहीं दिखाई दे रही। इन सभी चीजों से ऊपर उठकर निष्पक्ष रूप से सच्चाई उजागर करने की कोशिश की जा रही है ताकि सभी को सच्चाई से अवगत कराया जा सकें क्योंकि मजदूर भारत के निर्माण के कर्मयोगी है।

🚩भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है मतलब देश की जनता ही सरकार चुनती है। मगर उनके चुने हुए ये नेता स्वयं को जनता का सेवक नहीं अपितु राजा समझते हैं और जरूरत पड़ने पर अपने निजी फायदे के लिए इसी जनता की लाशों पर राजनीति करने से भी नहीं झिझकतें।

🚩24 तारीख की रात को एकाएक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कोरोना खतरे की वजह से 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। दुकानें, ट्रेन, फ्लाइट, बस, ऑटो, टैक्सी सब कुछ बंद कर दिया गया। केवल परचून, सब्जी और दवाइयों की दुकानें ही खुली थी। लॉकडाउन का फैसला बिल्कुल उचित था पर देश की जनता को ज्यादा दिक्कत इसलिए हुई कि एकाएक लॉकडाउन कर दिया गया। सरकार ने पहले कोई लॉकडाउन का संकेत नहीं दिया। एकाएक लॉकडाउन से देश की जनता को बहुत समस्या हुई। सबसे अधिक समस्या हुई गरीब मजदूरों को।

🚩सब कुछ बंद होने से गरीब मजदूरों की नौकरी और मजदूरी छूट गई। यातायात के साधन बंद थे ही। अब इनको ये समस्या आई कि खाए कहाँ से, घर का किराया कैसे दें। एकाएक बाहर भी आटे, चावल के दाम बढ़ गए थे। ये तो भारत में होता ही है, कुछ लालची लोग मजबूरी का फायदा उठाने से नहीं चूकतें।

🚩एक महत्वपूर्ण बात ये थी कि मजदूर जिन ठेकेदारों, कम्पनियों या संस्थाओं में कार्य कर रहे थे उनके प्रमुख लोगों ने भी उनका ध्यान नही रखा वे चाहते तो वे खुद सुविधा उपलब्ध करवा सकते थे अथवा प्रशासन से मिलकर उनकी अच्छी व्यवस्था करवा सकते थे पर उन्होंने अपना स्वार्थ ही साधा उन्होंने सिर्फ काम कराके उनको रोड पर छोड़ दिया इसलिए अव्यवस्था हो रही हैं।

🚩हालांकि सरकार ने मजदूरों से अपील की कि आप जहां है, वहीं रहें। आपको भोजन पानी दिया जाएगा। सरकार की कोशिशें पर्याप्त नहीं थी। इसका सबूत था गरीब मजदूरों में डर जिसकी वजह से वे खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे। सरकार द्वारा जितनी भी कोशिशें हुई, वे कुछ लालची लोगों और नेताओं की घटिया राजनीति की वजह से जमीनी स्तर पर पूरी तरह गरीबों और मजदूरों तक नहीं पहुँची।

🚩मजबूर असहाय और लाचार थे। कोई रोजगार नहीं, जेब में फूटी कौड़ी नहीं, खाने को अनाज नहीं। साथ में छोटे-छोटे बच्चे और पत्नी। अब बताओ गरीब मजदूर क्या करें? जहाँ है वहाँ रुके तो भूखा मरे और घर जाए तो कैसे जाए। और हमारे देश के आदमखोर नेता जो इन्हीं गरीबों की वोट से नेता बने, अपने फायदे के लिए इनकी जिंदगी से खिलवाड़ करने से भी बाज़ नहीं आये।

🚩आपने देखा होगा दिल्ली में एकाएक हज़ारों मजदूर आनंद विहार बस स्टैंड पर इकट्ठा हो गए थे। कारण था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार गरीब मजदूरों के लिए बसें भेजेगी। इसी बात पर बहुत नीच स्तर की राजनीति की कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने। इन्होंने अफवाह फैला दी कि उत्तर प्रदेश के लिए बसें आ रही है। इसी कारण हजारों मजदूर आनंद विहार बस स्टैंड पर इकट्ठा हो गए। कोरोना महामारी के कारण जहां सोशल डिस्टेंसिंग अनिवार्य है, कुछ नेता सियासी फायदे के लिए इन गरीब मजदूरों की जान को जोखिम में डालने से भी नहीं घबराएं।

🚩उसी आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल रोज नई नई शर्ट पहनकर अलग अलग चैनलों पर विज्ञापन दे रहा है कि हमने ये किया, वो किया, इतने गरीबों को भोजन कराया। इस बहुरूपिऐं की इतना झूठ बोलते वक़्त जबान भी नहीं लड़खड़ाती।

🚩वहीं कांग्रेस पार्टी से सोनिया गांधी सरकार को कोसती है और सरकार में कमियां निकालती है। ये उसी कांग्रेस पार्टी की मुखिया है, जिसने 70 साल देश पर राज किया पर फिर भी गरीबी दूर नहीं कर पाई। और आज यहीं पार्टी बोलती हैं कि गरीब मजदूर दुखी है, सोच लीजिए कितने बड़े मक्कार है ये। फिर राहुल गांधी, जो पैंतीस को पिच्चतीस बोलता है, कुंभाराम को कुम्भकर्ण बोलता है, आलू को सोने में बदलने वाली मुर्खतापूर्ण बात करता है, वहीं राहुल गांधी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार के निर्णयों पर सवाल उठाता है। ये खुद को बहुत बड़ा इकोनॉमिस्ट दिखाता है पर इसको पता कुछ भी नहीं। इनको ना ही गरीबों, मजदूरों से मतलब है, ना ही देश से, इनको बस सत्ता से मतलब है और वे इसके लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं।

🚩गरीब मजदूरों के नाम पर राजनीति कर रहे नेताओं से मेरा एक ही प्रश्न है कि तुमने कितने भूखे गरीबों, मजदूरों को भोजन दिया? कितनों को अपने घर में शरण दी? कितनों को दवाई और दूसरी चीजें दी? कितने मजदूरों को यातायात के साधन उपलब्ध कराए? अगर नहीं तो तुम लोगों को कुछ बोलने का कोई हक नहीं इसलिए चुप रहो। अगर तुम्हारे साथ ऐसा होता, तुम्हारे बीवी बच्चे भूखे होतें, तुम्हें भूखे परिवार सहित सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ता, तो तुम्हें पता चलता।

🚩हर जगह बस राजनीति ही हो रही है। कांग्रेस बीजेपी शासित और केंद्र सरकार के कदमों पर उंगली उठा रही है पर कांग्रेस शासित राज्यों में कुछ नहीं कर रही। वहां कुछ गलत होता है तो बोलती भी नहीं। वहीं बीजेपी को भी बस कांग्रेस शासित राज्यों में ही अव्यवस्था दिखती है। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए षड़यंत्र भी हो रहे हैं, जान बूझकर अव्यवस्था भी की जा रही है ताकि उंगली उठाने का मौका मिले। और इस गिरी हुई राजनीति के बीच देश का गरीब मजदूर पीस रहा है।

🚩प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बार बार देश को सम्बोधित करके जनता को समझा रहे हैं, खुद को बचाकर रखने की अपील कर रहे हैं। सरकार के कुछ कदम तो बढ़िया है, पर ये पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए। गरीबों, मजदूरों को मदद पहुँचाने में सरकार कामयाब नहीं रही।

🚩एक और कदम सरकार का अजीब लगा। भारत सरकार विदेशों से भारतीयों को बचा लाई, उनको लाने के लिए कई हवाईजहाज भेजे, उनसे कोई किराया भी नहीं लिया। चलो ये अच्छा किया पर वैसे किराया ले भी लेते तो भी क्या दिक्कत थी, ये लोग सक्षम थे। पर जो गरीब, मजदूर जिनके पास खाने को पैसे नहीं थे, उनके लिए मुफ्त की बसें क्यों नहीं भेजी गई? मुफ्त ट्रेनें क्यों नहीं चलाई गई? क्या गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं?

🚩12 मई से केंद्र सरकार द्वारा "श्रमिक ट्रैन" चलाई गई जो बढ़िया निर्णय है। पर इन ट्रेनों में "राजधानी एक्सप्रेस" जितना किराया लिया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है। अब सरकार बताए कि गरीब मजदूर कहाँ से इतने पैसे लाये कि इतना किराया भर सके। अब तक तो उनके पैसे भी खत्म हो चुके होंगे। और मान लो कि एक सवारी का औसतन किराया 2000 रुपये है और एक मजदूर परिवार में बच्चों सहित 4-5 सवारी है। बताओ वो गरीब कहाँ से 8000-10000 रुपये लेकर आएगा?

🚩कुछ गरीब मजदूरों की व्यथा सुनी तो रोना आ गया। कितने ही मजदूर भूखे-प्यासें हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुँचे पर इन नेताओं को उनकी मुसीबतों से कोई फर्क नहीं पड़ा। सुनिए कुछ मजदूरों की व्यथा 👇🏻

(1) औरंगाबाद, महाराष्ट्र में 08 मई को 16 मजदूरों को मालगाड़ी ने रौंद दिया। ये पैदल अपने घर जा रहे थे और थककर रेल की पटरी पर सो गए थे। इतने थक गए थे कि मालगाड़ी की आवाज़ तक नहीं सुनाई दी। ऐसे सोए कि फिर कभी नहीं उठे।

(2) उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में 16 मई को सुबह भीषण हादसे में 24 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई। सभी श्रमिक एक ट्रक और ट्रोले में सवार थे। दिल्ली-कानपुर हाइवे पर हुए दर्दनाक हादसे में 36 श्रमिक गंभीर रूप से घायल हैं। इनमें से ज्यादातर मजदूर बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे।

(3) बिहार के पूर्णिया जिले की मुख्तारा सादातपुर में लखनऊ-मुजफ्फरपुर हाईवे के किनारे राेती दिखीं। जब पूछा तो बताया- ‘डेढ़ माह तक पानी बिस्किट पर जिंदगी कटी। मजदूरी करते थे। अचानक कर्फ्यू लग गया। क्या खाते? साथ काम करने वाले पैदल ही निकलने लगे, तो हम भी चल दिए। खुद किसी तरह भूखे रह लिए, बच्चे भूख से रोते-रोते बेसुध हो सो जाते, तो कलेजा फट जाता। कई दिनों तक एक रोटी के चार-चार टुकड़े कर पानी में भिगो कर बच्चों काे खिलाया।’ मुख्तारा की यह पीड़ा काेराेना के कारण मजदूरी पर आए संकट की कहानी है। गुड़गांव से लौटते वक्त लखनऊ के पास ट्रक ने  उसके पति काे टक्कर मार दी, जिससे उसका पैर टूट गया। कई बार गिड़गिड़ाने पर भी मदद नहीं मिली। आखिरकार एक गिट्टी लदे ट्रक वाले ने बैठा लिया।

(4) रायपुर में एक ह्रदय विदारक दृश्य देखा गया। जितने भी मजदूर एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं, उनके बच्चों के चेहरे मुरझाए हुए और आंखें सूखे हुए दिखे। और आखिर दर्द बयां भी किससे करें? एक बच्चा पत्थर पर बैठा था। मां की गोद की आदत तो जैसे छूट गई और अब तो पत्थर पर भी नींद आ जाती है। मजदूर महाराष्ट्र से निकलकर, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, झारखंड जाने के लिए निकले हैं। मजदूर कहते हैं कि कि सब कुछ सहन हो जाता है, लेकिन बच्चों के चेहरे देख रोना आता है। कभी दूध मिल जाता है, तो कभी भूखे ही चलते रहना पड़ता है। बच्चों का सफर भी ऐसा कि कभी मां की गोद सफर का सहारा बनती है, तो कभी पिता की अंगुली और कंधे, और कभी-कभी पत्थर भी। और ये सफर अभी जारी है .......

(5) मुजफ्फरपुर में श्रवण कुमार नामक मजदूर दिखाई दिया। हरियाणा के गुड़गांव में सिलाई-कढ़ाई करने वाला श्रवण कंधे पर बैग टांगे पैदल ही 1000 किमी से ज्यादा के सफर पर है। पैदल चलते-चलते रास्ते में दिखने वाले ट्रक, ट्रोला और अन्य वाहनों से हाथ हिलाकर मदद मांगता, लेकिन सब अपने-अपने रास्ते निकल जाते और श्रवण वहीं छूट जाता। 7 दिन पैदल चलकर इतना थक चुका है कि पांव एक कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं। बढ़ने की कोशिश करता है तो पांव के छाले तड़पा देेते हैं। हाल पूछने पर फफक-फफक कर रो पड़ता है। बताता है- ‘6 हजार रुपए महीना मिलता था। काम-धंधा बंद हो गया तो मजदूर पिता ने गांव से कुछ पैसे भेजे, जो जल्द खत्म हो गए। मकान मालिक ने भी दो महीने का किराया लेकर जाने को कह दिया। बस, अब जल्द घर पहुंचना है।’

(6) भोपाल में देश का भविष्य नंगे पैर दिखाई दिया। 05 साल का राहुल पिता के साथ नंगे पैर 700 किमी के सफर पर चल रहा है। सुबह का समय है पर सड़क अभी से गर्म होने लगी है। साथ में माता-पिता भी हैं। ना गर्म सड़क से बचने का कोई उपाय और ना तेज धूप से बचने का जतन। उसे तो शायद यह भी पता नहीं कि वह किस मंजिल की तरफ और क्यों जा रहा है? लेकिन इतना जरूरी जानता है कि मिस्त्री का काम करने वाले पिता अविनाश दास सब कुछ समेटकर कहीं जा रहे हैं। अविनाश भोपाल के बंजारी इलाके में मिस्त्री का काम करते थे और जब कोई मदद नहीं मिली, तो पैदल ही छत्तीसगढ़ के अपने गांव मुंगेली के लिए निकल पड़े। अब ना तो पैसे बचे हैं और ना ही खाने-पीने का कोई सामान।

(7) लखनऊ के मलीहाबाद की रहने वाली गुड़िया ने रुंधे गले से सवाल किया कि अगर उन्हें खाना मिल ही जाता तो रात में चोरों की तरह क्यों भागते? मकान मालिक ने उनका सामान निकालकर बाहर फेंक दिया था। लेकिन अगर खाना मिल गया होता तो कहीं टेंट में ही रहकर जिंदगी गुजार लेते। जब खाना नहीं मिला तो वे अपनी किस्मत के भरोसे तीनों बच्चों के साथ निकल पड़ीं। वे आनंद विहार रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों के सहारे लखनऊ के लिए निकल चुकी हैं। सड़क से जाते समय उन्हें पकड़े जाने का डर है। उन्हें अपनी मंजिल कब मिलेगी, अपने घर तक कैसे पहुंचेंगी, इसका कोई अंदाजा नहीं है। रास्ते में बच्चों की भूख कैसे मिटेगी, इस सवाल पर उनकी आंखें केवल आसमान की ओर उठ जाती हैं। उनके गले से कोई आवाज नहीं निकलती।

(8) यूपी के सुल्तानपुर के रहने वाले महेश बताते हैं कि लगभग 15 दिन हो गए, उनके पास कोई काम नहीं है। खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं है। दिल्ली सरकार के रैन बसेरों या स्कूलों में भी उन्हें खाने की कोई व्यवस्था होती नहीं दिखी तो पैदल ही घर जाने का निर्णय कर लिया। अब वे अपने चार अन्य साथियों के साथ सुल्तानपुर के लिए निकल चुके हैं। लगभग 650 किलोमीटर का दिल्ली से सुल्तानपुर का उनका सफर कैसे गुजरेगा, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

🚩बेशक सरकार ने पैकेजों की घोषणा की पर गरीबों मजदूरों का कोई भला नहीं हुआ, इनके आंसू नहीं सूखे, इनकी भूख नहीं मिटी, इनका दर्द कम नहीं हुआ, इनके चेहरे से मायूसी और डर नहीं गया। फिर क्या फायदा ऐसे विकास का, फिर क्या फायदा उन सुविधाओं का देश के नागरिकों को ही नहीं मिली। सरकार से अपील है कि इन गरीब मजदूरों तक जमीनी स्तर तक मदद पहुँचाये, केवल आंकड़े ना गिनाए। और कुछ नेता जो इन गरीब मजदूरों के नाम पर सियासत कर रहे हैं, उनसे एक ही प्रश्न है कि तुमने इन गरीब मजदूरों के लिए क्या किया? अरे आदमखोरों कुछ तो शर्म करो। बंद करो राजनीति और हिम्मत है तो इनकी मदद करो नहीं तो चुप रहो।

🚩देश के सक्षम नागरिकों से अपील है कि इन गरीब मजदूरों की मदद जरूर करें। अगर ये कहीं दिखे तो इनको खाना पानी दे और हो सके तो रात में रुकने के लिए शरण भी दे। ध्यान रहे मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।

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Friday, May 15, 2020

भगतसिंह के बारे में हर कोई जनाता है पर सुखदेव के बारे में जानिए कितना कष्ट झेला था...

15 मई 2020

🚩हमारा भारतवर्ष पहले स्वतन्त्र एवं धन-धान्य से परिपूर्ण था लेकिन भारत की यह सम्पन्नता विदेशी लोगों की नजर में खटकने लगी। हमारे भोलेपन का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने हमारे देश पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों के अत्याचार ने इस सीमा को पार कर लिया था और भारतवासी इस अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए छटपटाने लगें। एक ओर महात्मा गांधी का अहिंसा आन्दोलन चल पड़ा और दूसरी ओर क्रान्तिकारियों ने क्रान्ति का बिगुल बजा दिया। ऐसे ही एक वीर क्रान्तिकारी थे सुखदेव।

🚩सुखदेव का जन्म 15 मई, सन् 1907  में पंजाब प्रान्त के लायलपुर नामक स्थान में हुआ था (वर्तमान में लायलपुर पाकिस्तान में है)। उनकी माताजी अत्यन्त धार्मिक तथा भावुक प्रवृत्ति वाली महिला थीं और परिवार आर्यसमाजी था, जिसका अत्यधिक प्रभाव सुखदेव पर पड़ा। धार्मिक बातों में उनकी बहुत रुचि थी और अपनी मां से तो वीर रस की कहानियां भी सुना करते थे। इसका प्रभाव यह हुआ कि वे वीर और निडर बन गए एवं योद्धा बनकर देशसेवा में लग गए। उनका स्वाभाव बड़ा ही शांत और कोमल था, इसलिए उनके सहपाठी और शिक्षक सदैव उनका आदर और प्यार करते थे। उनके स्वाभाव में उदारता की भावना यथेष्ट थी। सुखदेव अपने सिद्धांतों में बड़े दृढ़ थे। जो दिल में समा जाती थी वह सारे संसार का विरोध करने पर भी छोड़ना नहीं चाहते थे। सुखदेव अपनी धुन के पक्के थे। सहपाठियों में जब किसी विषय को लेकर तर्क-वितर्क उपस्थित होता तो सुखदेव बड़ी दृढ़ता से अपना पक्ष समर्थन करते और अंत में आपकी अकाट्य युक्तियों के सामने प्रतिद्वंदी को मस्तक झुका देना पड़ता था। आर्य परिवार में जन्म ग्रहण के कारण उनके विचारों पर आर्यसमाज का विशेष प्रभाव था। समाज के सत्संगों में वे बड़े उत्साह से भाग लिया करते थे, इसके अलावा हवन, योगाभ्यास और संध्या का भी शोक था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी लायलपुर में स्थित आर्य स्कूल से शुरू हुई, विद्यालय का नाम धनपतमल आर्य स्कूल था। यहां से शिक्षा ग्रहण करने के बाद उनको सनातन हाईस्कूल में भर्ती कर दिया गया था और सन् 1922 में उन्होंने प्रवेशिका की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की। परिवार आर्यसमाजी तथा क्रान्तिकारी था। इनके चाचा अचिन्त राम क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न रहा करते थे। वे भी आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे।

🚩सन् 1919 की एक घटना है- जब सुखदेव केवल बारह साल के थे, उनके चाचा अचिन्त राम सरकार विरोधी गतिविधि में गिरफ्तार कर लिए गए थे। उस समय सुखदेव थोड़ा-थोड़ा समझने लगे थे कि अंग्रेज उनके दुश्मन हैं, उनको हमारे इस देश पर शासन करने का कोई हक नहीं है। इन गोरों से हमारे देश को जितना जल्दी हो आजाद कराया जाए- यही हम सब भारतवासियों के लिए अच्छा होगा।

🚩सन् 1920-21 में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटना घटित हुई- उन दिनों बालक सुखदेव कक्षा नौ में पढ़ते थे। तभी ब्रिटिश सरकार की ओर से हुक्म आया कि शहर के सारे विद्यालयों के छात्र-छात्राएं एक जगह एकत्रित होकर ब्रिटिश झण्डे का अभिवादन करेंगे। बालक सुखदेव भला इस समारोह में कैसे शामिल होते! क्योंकि वे अंग्रेजों को अपना कट्टर दुश्मन समझते थे। इसलिए उस समारोह में जाने के बजाय सीधे घर आ गए। घर आकर जब उन्होंने यह घटना अपने चाचाजी को सुनाई तो चाचा अपने भतीजे की बात पर जरा भी नाराज नहीं हुए, बल्कि उनकी देशभक्ति तथा निडरता को देखकर मन-ही-मन प्रसन्न हो उठे। देश में एक-के-बाद-एक ऐसी घटनाएं घटती जा रही थीं जिन्हें देखकर व सुनकर सुखदेव का मन देशभक्ति की तरफ बढ़ता ही जा रहा था।

🚩सन् 1921 में गांधी जी ने भारत में असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया। इस आन्दोलन से सारे भारतवासियों में एक अद्भुत विचारधारा उत्पन्न हो गई। पूरे भारत में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार होने लगा। जगह-जगह विदेशी वस्तुओं को जलाया जा रहा था। पंजाब में भी लोग जगह-जगह विदेशी वस्तुओं की होली जलाने लगें, एक अजीब-सा माहौल बन गया था। इस घटना ने सुखदेव के दिल पर एक ऐसी छाप छोड़ी जो कि उन्होंने विदेशी वस्त्रों तथा वस्तुओं का पूर्ण रूप से त्याग करने का निश्चय कर लिया। राष्ट्र-सेवा ही उन्होंने अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया था तथा प्रण किया कि जब तक मैं जीवित रहूंगा, देश-सेवा करता रहूंगा।

🚩कुछ समय पश्चात वे भगतसिंह के सम्पर्क में आये। भगतसिंह उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए। दल में वह ऐसे ही नौजवानों को चाहते थे, जो अपनी चिन्ता किये बगैर मातृभूमि के लिए अपने प्राण त्यागने को सदा तैयार रहें। सन् 1926 में भगतसिंह तथा अन्य क्रान्तिकारियों ने मिलकर लाहौर में "नौजवान भारत सभा" की स्थापना की, इस सभा में क्रान्तिकारी सुखदेव भी शामिल थे। "नौजवान भारत सभा" क्रान्तिकारी आन्दोलन का एक खुला मंच था। इस सभा का काम लोगों को अपने उद्देश्य तथा विचारों के बारे में अवगत कराना था। इस सभा की स्थापना गुप्त संगठन के कार्य का क्षेत्र तैयार करना और लोगों में उग्र राष्ट्रीय भावना को जगाना था। भगतसिंह इस सभा के मुख्य सूत्रधार थे। सुखदेव भी इस सभा के प्रमुख एवं सक्रिय सदस्यों में से एक थे। लाहौर में कमीशन आ रहा था, क्रान्तिकारियों को इसकी सूचना पहले ही मिल गई थी। उन्हें जोरदार प्रदर्शन करके अपना विरोध प्रकट करना था। सुखदेव, भगतसिंह तथा अन्य पांच-छह क्रान्तिकारियों ने मिलकर एक योजना बनायी। एक क्रान्तिकारी के घर प्रदर्शन के लिए काले झण्डे तैयार किए जा रहे थे। किसी तरह से पुलिस को इसकी सूचना मिल गई। वे इस प्रदर्शन को विफल करना चाहते थे, उन्होंने देशभक्तों को गिरफ्तार करने के लिये विभिन्न स्थानों पर छापे मारे। पुलिस की आंखों में धूल झोंककर सभी क्रान्तिकारी वहां से भाग खड़े हुए। किसी कारणवश सुखदेव वहां से भाग नहीं सके, वह वहीं पकड़े गए। पुलिस वाले बहुत अधिक खुश हुए और आपस में कह रहे थे- "चलो एक तो मिला! इसी से ही सारे लोगों के बारे में पता चल जाएगा।" लेकिन वाह रे सुखदेव! पुलिस की कितनी मार खाई। यातनाएं सहीं, मगर दल के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। इस प्रकार के क्रान्तिकारी को नमन। आपने निडर होकर पुलिस वालों को करारा जवाब दिया-" मैं मर जाऊंगा लेकिन तुम्हें कभी भी अपने साथियों के बारे में नहीं बताऊंगा।"

🚩एक बार की बात है, लाहौर की बोस्टल जेल में भूख हड़ताल को तोड़ने के लिए क्रान्तिकारियों की पिटाई हो रही थी, अंग्रेज पिटाई करके भूख हड़ताल को तोड़ना चाहते थे। डॉक्टर क्रान्तिकारियों को जबरदस्ती दूध पिलाना चाहता था, इसके लिए जेल अधिकारियों की सहायता ली गई। जेल का बड़ा दरोगा खान बहादुर खैरदीन, बारह-पन्द्रह तगड़े सिपाही एक-एक करके कैदी क्रान्तिकारियों को कोठरियों से अस्पताल तक पहुंचाने में व्यस्त थे। दरोगा ने सुखदेव की कोठरी खुलवाई। कोठरी का दरवाजा खुलते ही सुखदेव तीर की तरह भाग निकले। दस रोज के अनशन के बाद भी उन्होंने ऐसी दौड़ लगाई कि जेल के अधिकारी परेशान हो गए। दस दिन का भूखा आदमी भी इस कदर फुर्ती से दौड़ सकता है, इस बात की उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। बड़ी मुश्किल से जब सुखदेव काबू में आये तो उसने मारपीट शुरु कर दी। किसी को मारा- किसी को काट खाया। अपने आदमियों को एक भूखे आदमी से पिटते देख दरोगा को गुस्सा आ गया। डॉक्टर के पास ले जाने से पहले उसने सुखदेव की खूब मरम्मत करवा दी, परन्तु वह बेझिझक मार खाते गए और दरोगा की ओर उपेक्षा के भाव से मुस्कुराते रहे। उनकी इस शरारतभरी मुस्कुराहट से दरोगा अत्यधिक क्रोधित हो उठा। जब सिपाही और दरोगा उसे टांगकर अस्पताल ले जा रहे थे तो उसने टांगें फटकारनी शुरू कर दीं। दरोगा पास आकर हिदायत देने लगा। सुखदेव ने दरोगा के सीने पर ऐसी लात मारी कि वह बेचारा धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। दरोगा चाहता तो सुखदेव की अच्छी मरम्मत करवा सकता था, परन्तु वह अपनी झेंप मिटाने के लिए वहां से चला गया। सुखदेव हठी स्वभाव के थे, अगर उनको कोई बात सवार हो गई तो मजाल है जो कोई उनके फैसले को डिगा दे। आपके बाएं हाथ पर "ॐ" शब्द गुदा हुआ था। फरारी की हालत में पहचान के लिए यह बहुत बड़ी निशानी थी। आगरे में बम बनाने के लिए नाइट्रिक एसिड खरीदकर रखा गया था। "ॐ" शब्द मिटाना जरूरी था, जिससे पकड़े जाने पर पहचान न हो सके। इस "ॐ" शब्द को मिटाने के लिए उन्होंने गुदे हुए स्थान पर बहुत-सा नाइट्रिक एसिड डाल दिया। शाम तक जहां-जहां एसिड लगा था, गहरे घाव हो गए। पूरा हाथ सूज गया औए बुखार भी चढ़ आया। साथियों से पूछने पर उसने एक शब्द भी नहीं कहा और न ही तकलीफ के कारण हंसी-ठिठोली में कमी आने दी। एक दिन शाम को वह दुर्गा भाभी के घर पहुँचे। भगवती भाई उस समय कहीं बाहर गए हुए थे। भाभी रसोईघर में खाना बना रही थीं। सुखदेव चुपचाप भगवती भाई के कमरे में जाकर बैठ गया। इस प्रकार सुखदेव को काफी देर खामोश देखकर भाभी को उत्सुकता होने लगी कि वह अकेला कमरे में क्या कर रहा है? जाकर देखा तो दंग रह गयीं। सुखदेव ने मेज पर मोमबत्ती जला रखी थी और उसकी लौ पर हाथ किये बैठा था। जिस स्थान पर उसका नाम लिखा था, वहां की खाल जल चुकी थी। वह अधूरा काम छोड़ना नहीं चाहता था। इस दृश्य को देखकर भाभी के रोंगटे खड़े हो गए- इस स्वभाव के थे वीर सुखदेव।

🚩नौजवानों की क्रान्तिकारी टोलियों ने फिर से हथियार उठा लिए थे, किसी भी तरह देश को आजाद कराना था। सुखदेव का काम भी बड़ी तत्परता से चल रहा था। दल की केन्द्रीय समिति की बैठक हुई- जिसमें यह निश्चय किया गया कि दिल्ली के असेम्बली भवन में बम फेंका जाए। इस कार्य को भगतसिंह करना चाहता थे लेकिन दल के अन्य सदस्यों ने उसकी बात नहीं मानी। साण्डर्स की हत्या के सिलसिले में पंजाब पुलिस भगतसिंह के पीछे पड़ी थी। भगतसिंह के पकड़े जाने का अर्थ था- उसकी फांसी, जो दल के लोग नहीं चाहते थे। उनका इरादा किसी दूसरे व्यक्ति को भेजने का था- और यही निश्चय किया गया कि भगतसिंह के स्थान पर अन्य किसी को भेजा जाएगा, जो इस काम को कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर सके। सौभाग्य से सुखदेव इस सभा में नहीं थे। बम फेंकने के लिए समिति की आज्ञा की जरूरत थी। भगतसिंह ने आग्रह करके समिति की बैठक बुलाई। सुखदेव को भी इस बैठक में बुलाया गया। भगतसिंह बम फेंकने के लिए अड़ गये। विवश होकर समिति को उसकी बात माननी पड़ी। सुखदेव अपने मित्र को खोना नहीं चाहते थे इस कारण उन्होंने भगतसिंह से बहस भी की लेकिन भगतसिंह के जिद के कारण उदास होकर उसी शाम किसी से कुछ कहे बिना सुखदेव लाहौर पहुंच गए। सड़क से जुलूस जब गुजर रहा था तो पुलिस के इशारे पर उसके किसी आदमी ने उस जुलूस में बम फेंक दिया। शहर में दंगा भड़क उठा। पुलिस इस दंगे को दबा नहीं पाई तथा अपनी इस करतूत पर वह खिसिया गयी थी। क्रान्तिकारियों को इस दंगे से जोड़कर वह अपना मतलब हल करना चाहती थी। पुलिस वालों ने सबसे पहले भगतसिंह को पकड़ा लेकिन वह जमानत पर छूट गए। इसके बाद वहां से सुखदेव को गिरफ्तार किया गया, जिसमें उसके कई अन्य साथी थे।

🚩भगतसिंह, सुखदेव और विजय कुमार सिन्हा ने तीन सदस्यों की कमेटी बनाई जिसका काम हर क्षेत्र में अंग्रेज अफसरों का विरोध करना था। उनका हमेशा से एक ही नारा था- 'क्रान्ति अमर रहे', 'वन्देमातरम्', 'इन्कलाब जिन्दाबाद'!
क्रान्तिकारियों को अंग्रेज अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। दुश्मनों को खत्म करने के लिए उन्होंने चुन-चुनकर उनको फांसी देना शुरू कर दिया था। वे समझते थे कि इस तरह उनके मनोबल को गिरा देंगे- लेकिन यह उनकी सबसे बड़ी भूल थी। लाहौर कारागार में सुखदेव, भगतसिंह व राजगुरु तीनों ही कैद थे। उनके मुकदमे की सुनवाई, अदालत में चल रही थी। अंग्रेजों का ध्येय समाप्त हो चुका था। उन्होंने मुकदमे की सुनवाई भी पूरी नहीं होने दी सरकार को भय था कि अगर निष्पक्ष फैसला हुआ तो उसकी हार हो सकती है, और क्रांतिकारी भी छूट जाएंगे, यह सब कैसे सम्भव था! 7 अक्टूबर, सन् 1930 में सरकार ने सुखदेव, भगतसिंह तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुना दी। सरकार इस फैसले को छिपाकर न रख सकी। लोगों को अंग्रेजों की जल्दबाजी में किये गए फैसले के बारे में पता हो चुका था। यह फैसला सुनकर चारों ओर क्रान्ति आ गई। अगले दिन 8 अक्टूबर को उत्तर भारत के प्रत्येक स्थान पर हड़ताल हो गई। पूरा वातावरण 'भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव जिन्दाबाद' के नारों से गूंजने लगा।

🚩फांसी पर चढ़ने से पहले उन तीनों के होठों पर मुस्कान थिरक रही थी, उन्हें अपनी मौत का जरा-सा भी भय नहीं था। 23 मार्च, सन् 1931 की शाम को लाहौर की केन्द्रीय जेल में तीनों क्रान्तिकारियों भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी पर लटका दिया गया। - लेखक : प्रियांशु सेठ

🚩भारत के इतिहास में इन तीनों क्रान्तिकारियों का नाम सवर्ण अक्षरों में लिखा गया। इस बात में कोई सन्देह नहीं कि आर्यावर्त के वीर पुत्र सुखदेव एक सच्चे देशभक्त थे, उन्होंने देश पर हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। हम सभी को उनपर गर्व होना चाहिए तथा उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए कि जब-जब हमारे देश पर कोई संकट आएगा, तब-तब हम सभी एक मजबूत दीवार बनकर उस संकट का सामना करेंगे।

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Thursday, May 14, 2020

सनातन धर्म को कर रहा विश्व नमन, बिना प्रचार के फैल रहा है चहुओर...

14 मई 2020

🚩ये बिल्कुल सत्य है कि सनातन धर्म आज के दिन विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो बिना प्रचार प्रसार के ही फैल रहा है, जिसे विश्व के लोग प्रेम से अपना रहे है।

🚩हिन्दू धर्म को अपनाने का मुख्य कारण है इसका वैदिक ज्ञान जो "वसुधैव कुटुम्बकम्", "सर्वे भवन्तु सुखिनः" की बात करता है, इसके धर्मग्रंथों यथा वेद और श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान जो निष्काम कर्म और आत्मा परमात्मा का ज्ञान प्रदान करता है, इसकी परंपराएं जो वैज्ञानिक सिद्ध हो चुकी है।

🚩आज पूरा विश्व कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है। कोरोना ने पूरे विश्व में तबाही मचा रखी है। पश्चिमी जीवनशैली कोरोना महामारी से बचाने में ना केवल असफल रही है उल्टा पश्चिमी जीवनशैली कोरोना वायरस को फैलाने में मददगार सिद्ध हुई है।

🚩कोरोना वायरस से बचने के लिए वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने जो सावधानी रखने की बात कही, जो सफाई रखने की बात कही, वो तो सनातन संस्कृति में परम्पराएं के रूप में सदियों से चली आ रही हैं। पहले सनातन संस्कृति की ऐसी कुछ परम्पराओं के विषय में बता रहे हैं 👇🏻

(1) सनातन धर्म में दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते करने की परंपरा है।

(2) जब कोई घर में प्रवेश करता है तो हाथ पैर धोकर प्रवेश करता है।

(3) सनातन धर्म में मृत शरीर का दाह-संस्कार करने की परंपरा है। मृत शरीर को अग्नि द्वारा जलाया जाता है।

(4) सनातन संस्कृति में श्मशान घाट और अस्पताल से आने के बाद स्नान करने की परंपरा है।

(5) सनातन संस्कृति ने सदा शाकाहारी रहने की शिक्षा दी और शाकाहार जीवन का अनुसरण किया।

(6) सनातन संस्कृति के योग और प्राणायाम की खोज की और स्वस्थ रहने के लिए योग, प्राणायाम करने की शिक्षा दी।

(7) सनातन संस्कृति संतों द्वारा ही "ॐ" और दूसरे मंत्रों की खोज की गई जिनमें आरोग्यता के साथ साथ भगवान से मिलाने की शक्ति है।

(8) सनातन संस्कृति ने यज्ञ, भजन, पूजा-पाठ, घण्टी-शंख बजाना आदि परम्पराएं चलाई जिनसे पर्यावरण शुद्ध होता है।

(9) सनातन संस्कृति में पशुओं, जंगलों, तुलसी, पीपल आदि को पूजने की प्रथा भी है।

🚩उपरोक्त सभी परम्पराओं पर दुनिया पहले सनातन संस्कृति पर हँसती थी। पर जब पूरे विश्व को अदृश्य और अति सूक्ष्म वायरस ने अपनी चपेट में लिया तो वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने यहीं पद्दतियां अपनाने की सलाह दी जिनका हम सदियों से अनुसरण कर रहे हैं। तब पूरा विश्व भी सनातन संस्कृति की प्रशंसा करता नजर आया और इस बात को स्वीकार किया कि सनातन संस्कृति की परम्पराएं वैज्ञानिक हैं।

🚩अब कोरोना त्रासदी के दौरान विश्व में कुछ हुए घटनाक्रमों को देखते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि सनातन संस्कृति का लोहा सबने माना हैं👇🏻

(1) विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप की मौजूदगी में व्हाइट हॉउस के रोज़ गार्डन में प्रार्थना दिवस मनाया गया और इस दौरान यहां वैदिक शांति पाठ का उच्चारण भी किया गया। यहां शांति पाठ के उच्चारण के लिए खास हिन्दू पंडित को बुलाया गया था। मंदिर के पुजारी हरीश ब्रह्मभट्ट ने यहां वैदिक मंत्र का उच्चारण किया।

(2) स्पेन को कोरोना वायरस ने पूरी तरह हिला दिया है। यहां भी डॉक्टर, नर्स से लेकर पूरा स्टॉफ मरीजों के लिए प्रार्थना करता दिखा। इस दौरान वे बड़े अनुशासित ढंग से वे "ॐ" मंत्र का उच्चारण करते नजर आए।

(3) इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कोरोना से बचने के लिए भारतीय तरीके से अभिवादन करने को कहा है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने देशवासियों से कहा कि वो हाथ ना मिलाएं और भारत के अभिवादन की परंपरा की तरह नमस्ते करें।

(4) व्हाइट हॉउस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने एक दूसरे को नमस्ते कहकर अभिवादन किया।

(5) बकिंघम पैलेस में प्रिंस चार्ल्स और ब्रिटिश टीवी एंकर फ्लोएला बेंजामिन ने एक दूसरे का नमस्ते करके अभिवादन किया।

(6) टोक्यो, जापान में प्रधानमंत्री आवास पर प्रधानमंत्री शिंजो आबे और गवर्नर युरिको कोइके ने एक दूसरे को नमस्ते करके अभिवादन किया।

(7) फ्रांस में राष्ट्रपति इमेनुएल मेंक्रो ने स्पेन के राजा को नमस्ते किया।

(8) शेफील्ड, ब्रिटेन में शेफील्ड यूनाइटेड VS नोविर्च सिटी फुटबाल मैच से पहले खिलाड़ी एक दूसरे को अभिवादन करते नज़र आए।

(9) फिलीपींस में डॉक्टर राधिका देवी जो कोरोना के मरीजों का इलाज कर रही थी, वो बीच में माला के साथ भगवन्नाम जप करते नज़र आई।

(10) श्रीलंका में कोरोना से मृत्यु के पश्चात दाह संस्कार को अनिवार्य किया।

(11) चीन जहां से कोरोना पूरे विश्व में फैला था, वहाँ भी सरकार ने कोरोना से मृत्यु के बाद दाह संस्कार के आदेश दिए हुए थे।

(12) जर्मनी में चांसलर एंजेला मर्केल के लिए उस वक्त स्थिति असहज हो गई जब जर्मनी के आंतरिक मंत्री होर्स्ट जेहोफान ने एंजिला मर्केल से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया।

(13) कोरोना वायरस फैलने का कारण मांसाहार था इसलिए पूरी दुनिया मांसाहार छोड़कर शाकाहार को अपनाती नज़र आई।

(14) जर्मनी की ल्युबेक यूनिवर्सिटी ने भारतीय खानपान पर रिसर्च करती नज़र आई।

(15) हावर्ड वैद्यकीय विद्यालय, अमेरिका ने कहा कि कोरोना वायरस से जुड़ी व्यग्रता और बेचैनी से निपटने के लिए योग व ध्यान करें।

(16) अमेरिका ने स्वीकार किया कि तुलसी और पीपल सर्वोत्तम है।

(17) फ्रांस ने स्वीकार किया कि शंख ध्वनि लाभदायक है।

(18) इजराइल ने कहा कि यज्ञ-हवन से वायरस दूर होते हैं।

(19) कोरोना पर भारत का मजाक उड़ाने वाले अर्थशास्त्री जिम ओ नील को अमेरिकी अभिनेत्री शेरोन स्टोन ने जवाब दिया कि भारत ने शाकाहार को आदर्श बनाया और आयुर्वेद का विस्तार किया, जिस कारण भारत कभी गम्भीर बीमारी के संकट में नहीं पड़ा। भारत ने इतिहास के पन्नों में कोई महामारी उत्पन्न नहीं की। भारतीय सभ्यता दुनिया में सबसे उन्नत है इसलिए नमस्ते को विश्व के नेता प्रचारित कर रहे हैं। अपनी उन्नत संस्कृति और आदर्शों की वजह से भारत हर संकट से लड़ने में कामयाब रहा था और रहेगा।

🚩विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है पर ये भी वास्तविकता है कि विश्व सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहा है। पूरे विश्व में हिन्दू धर्म इतना लोकप्रिय हो रहा है कि लोग अपना धर्म छोड़कर हिन्दू धर्म और हिन्दू जीवनशैली अपना रहे हैं। जानिए पूरा विश्व कैसे हिन्दुत्व का लोहा मानकर उसे अपना रहा है 👇🏻

(1) रूस में हिन्दू धर्म बहुत तेजी से फैल रहा है। ऑस्ट्रेलिया में भी हिन्दू धर्म बड़ी तेजी से फैल रहा है, वहां बड़े-बड़े मंदिर बन रहे हैं।

(2) टेनिस में कई बार विम्बलडन विजेता रह चुके स्टार खिलाड़ी नोवाक जोकोविच ने कहा कि शाकाहार, योग और ध्यान ने मुझे शिखर पर पहुँचाया है।

(3) दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया के नोट पर भगवान गणेश की फ़ोटो है। भगवान गणेश को इंडोनेशिया में शिक्षा, कला और विज्ञान का देवता माना जाता है।

(4) मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में सुग्रीव के नाम पर खुला पहला हिंदू विश्‍वविद्यालय खुल चुका है।

(5) स्विट्जरलैंड में यूरोपीय संशोधन केंद्र ने संशोधन के बाद कहा कि भगवान शिवजी का 'तांडव नृत्य' ब्रह्मांड में हो रहे मूल कणों के उतार-चढ़ाव की क्रियाओं का प्रतीक है।

(6) अमेरिका की सेटन हॉल यूनिवर्सिटी में श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ना अनिवार्य है।

(7) अमेरिका की हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में रामायण और श्रीमद्भागवत गीता पढ़ाई जा रही है।

(8) श्रीमद्भगवद्गीता का विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। सभी ने इसे महान ग्रन्थ स्वीकार किया है।

(9) रोमानिया में 11वीं कक्षा में रामायण और महाभारत का कुछ अंश पढ़ाया जा रहा है।

(10) यूरोपीय विद्वान मार्क स्ट्रैंथ ने कहा कि धर्म के आधार पर सभी देश दरिद्र है किन्तु भारत धर्म के क्षेत्र में अरबपति तथा सबसे महान राष्ट्र है।

(11) सैमुअल जानसन के अनुसार हिन्दू लोग धार्मिक, प्रसन्नचित, शांतिप्रिय, न्यायप्रिय, सत्यभाषी, दयालु, कृतज्ञ, ईश्वरभक्त तथा भावनाशील होते हैं।

(12) दक्षिण अफ्रीका के पूर्व क्रिकेटर जोंटी रोडस भारत और हिन्दू धर्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया और जब उनको बेटी हुई तो उसका नाम "इंडिया" रखा।

(13) इंग्लैंड क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान हिन्दू धर्म से बहुत प्रभावित है और इसलिए वो हिंदी भी सीख रहे हैं। कुछ दिन पहले केविन पीटरसन ने हिंदी भाषा में ट्वीट किया था। उन्होंने उसमें लिखा - "नमस्ते इंडिया, हम सब कोरोना वायरस को हराने में एक साथ हैं, हम सब अपनी-अपनी सरकार की बात का निर्देश करें और घर में कुछ दिन के लिए रहें, यह समय है होशियार रहने का। आप सभी को ढेर सारा प्यार"।

🚩एक तरफ जहाँ इस्लाम धर्म को फैलाने के लिए मुस्लिम जिहाद, लव जिहाद जैसे अमानवीय कृत्य कर रहे हैं, ईसाई मिशनरियां पैसे, छल, बल द्वारा गरीबों,आदिवासियों, मजबूरों का धर्म परिवर्तन कर रही है वहीं दूसरी और अपनी महान, वैदिक और वैज्ञानिक परम्पराओं की वजह से हिन्दू धर्म को लोग बिना प्रचार प्रसार के ही अपना रहे हैं। जहां रोगों को चमत्कार से दूर करने की बात करने वाले सैकड़ों पादरी और मौलवी कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मर गए वहीं हिन्दू संतों द्वारा खोजा गया योग, प्राणयाम, जप और संतों द्वारा शाकाहार जीवनशैली की शिक्षा और दूसरी सनातन परम्पराएं पूरे विश्व की कोरोना वायरस से रक्षा कर रही हैं। ये गर्व की बात है कि हमारा जन्म भारत में हुआ। गर्व से कहो कि हम सनातन धर्मी है।

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Tuesday, May 12, 2020

विश्व को सर्जरी करना सिखाया भारत के ऋषि-मुनियों ने, जानिए दिव्य इतिहास!

12 मई 2020

🚩भारत की संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति हैं और विश्व को सब कुछ भारत ने ही सिखाया है लेकिन हमें इतिहास सही नही पढ़ाया जा रहा है जिसके कारण हम हमारी संस्कृति की महानता नही समझ पा रहे हैं।

🚩आयुर्वेद के नियम हजारों साल पहले आयुर्वेद चिकित्सा के ऋषि-मुनियों ने बनाये हुए हैं। हमारी आयुर्वेद चिकित्सा में एक महापुरुष हुए, जिनका नाम था महर्षि चरक। इन्होने सबसे ज्यादा रिसर्च इस बात पर किया कि जड़ी बूटियों से क्या क्या बीमारियाँ ठीक होती हैं या पेड़ पोधों से कौन सी बीमारियाँ ठीक होती है। पेड़ों के पत्तों से कौन सी बीमारियाँ ठीक होती हैं, उस पर उन्होंने सबसे ज्यादा रिसर्च किया।

🚩आपको जानकर आश्चर्य होगा और ख़ुशी भी होगी कि सर्जरी का अविष्कार इसी देश में हुआ। यानी भारत में हुआ, सारी दुनिया ने सर्जरी भारत से सीखी। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी ने यहीं से सर्जरी सीखी, अमेरिका में तो बहुत बाद में आयी सर्जरी और ब्रिटेन ने भारत से लगभग 400 साल पूर्व ही सर्जरी सीखी। ब्रिटेन के डॉक्टर यहाँ आते थे और सर्जरी सीख कर वापिस जाते थे।

🚩 महर्षि सुश्रुत शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखे गऐ ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में बहुत अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।

🚩जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।

🚩आपको शायद सुनकर आश्चर्य होगा कि आज से 400 साल पहले भारत में सर्जरी के बहुत बड़े विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) चला करते थें। हिमाचल प्रदेश में एक जगह है कांगड़ा, यहाँ सर्जरी का सबसे बड़ा कॉलेज था।  एक ओर जगह है भरमौर, हिमाचल प्रदेश में ही, वहां एक दूसरा बड़ा केंद्र था सर्जरी का। ऐसे ही एक तीसरी जगह है, कुल्लू, वहां भी एक बहुत बड़ा केंद्र था। अकेले हिमाचल प्रदेश में 18 ऐसे केंद्र थें। फिर उसके बाद गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा सम्पूर्ण भारत में सर्जरी के एक हजार दो सौ के आसपास केंद्र थें, यहाँ अंग्रेज आकर सीखते थें। 

🚩आपको बता दे कि लंदन में एक बहुत बड़ी संस्था है जिसका नाम है फेलो ऑफ़ द रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन (FRS), इस संस्था की स्थापना उन डॉक्टरों ने की थी जो भारत से सर्जरी सीख कर गये थें और उनमें से कई डॉक्टर्स ने मेमुआर्ट्स लिखे हैं।  मेमुआर्ट्स माने अपने मन की बात।  तो उन मेमुआर्ट्स को अगर पढ़े तो इतनी ऊँची तकनीक के आधार पर सर्जरी होती थी ये आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि 400 साल पहले इस देश में रहिनोप्लास्टिक होती थी रहिनोप्लास्टिक मतलब शरीर के किसी अंग से कुछ भी काट कर नाक के आसपास के किसी भी हिस्से में उसको जोड़ देना और पता भी नही चलता।

🚩एक कर्नल कूट अंग्रेज की डायरी में लिखा हुआ कि उसका 1799 में कर्नाटक में हैदर अली के साथ युद्ध हुआ।  हैदर अली ने उसको युद्ध में पराजित कर दिया।  हारने के बाद हैदर अली ने उसकी नाक काट दी। हमारे देश में नाक काटना सबसे बड़ा अपमान है। तो हैदर अली ने उसको मारा नही चाहे तो उसकी गर्दन काट सकता था। हराने के बाद उसकी नाक काट दी और कहा कि तुम अब जाओ कटी हुई नाक लेकर।

🚩कर्नल कूट कटी हुई नाक लेकर घोड़े पर भागा, तो हैदर अली की सीमा के बाहर उसको किसी ने देखा कि उसकी नाक से खून निकल रहा है, नाक कटी हुई है हाथ में थी। तो जब उससे पूछा कि ये क्या हो गया तो उसने सच नही बताया। तो उसने कहा कि चोट लग गयी है। तो व्यक्ति ने कहा कि ये चोट नही है तलवार से काटी हुयी है। तो कर्नल कूट मान गया की हाँ तलवार से कटी है।

🚩उस व्यक्ति ने कर्नल कूट से कहा कि तुम अगर चाहो तो हम तुम्हारी नाक जोड़ सकते है। तो कर्नल कूट ने कहा की ये तो पुरे इंग्लैंड में कोई नही कर सकता तुम कैसे कर दोगे। तो उसने कहा कि हम बहुत आसानी से कर सकते है। तो बेलगाँव में कर्नल कूट के नाक को जोड़ने का ऑपरेशन हुआ। उसका करीब तीन साढ़े तीन घंटे ऑपरेशन चला। वो नाक जोड़ी गयी फिर उसपर लेप लगाया गया। 15 दिन उसको वहां रखा गया।

🚩15 दिन बाद उसकी छूट्टी हुई, 3 महीने बाद वो लंदन पहुंचा तो लंदन वाले हैरान थे कि तुम्हारी नाक तो कहीं से कटी हुई नही दिखती। तब उसने लिखा कि ये भारतीय सर्जरी का कमाल है। तो ये जो सर्जरी हमारे देश में विकसित हुई इसके लिए महर्षि सुश्रुत ने बहुत प्रयास किये तब जाकर ये सर्जरी भारत में फैली।

🚩यहाँ तो आपको भारत के ऋषि-मुनियों की केवल एक ही खोज बताई है बाकी तो विश्व मे जितनी भी आज खोजे हो रही है वे पहले हमारे ऋषि-मुनि कर चुकें हैं बस हमे जरूरत है तो सिर्फ सही इतिहास पढ़ाने और उसके अनुसार चलने की।

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